मंगलवार, 5 नवंबर 2024

मुलायम सिंह

मुलायम सिंह यादव के बारे मे कहा से बात शुरु करे ? उनकी जिन्दगी के इतने छोर है और सब उलझे हुये ।एक नितांत गरीब घर मे और अभाव मे पैदा होकर 1967 मे विधायक बन जाना और 1977 की सरकार मे सहकारिता मंत्री से चला सफर 1989 मे मुख्यमंत्री बनकर रुकता नही है बल्कि बार बार सरकार बनाता है और एक समय ऐसा आता है जब 39 सांसद होते है पार्टी के तथा बंगाल बिहार महाराष्ट्र उत्तराखंड और मध्यप्रदेश मे भी विधायक हो जाते है और लगता था की पार्टी राश्ट्रीय स्तर पर पहुच जायेगी ।फिर एक समय आता है जब पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा जी ,मुख्यमंत्री नितीश कुमार ,लालू यादव और अजीत सिंह सहित कई लोग उन्हे नेता मान लेते है और समाजवादी पार्टी के नाम और झंडे की भी स्वीकार कर लेते है ।ऐसा हो गया होता तो देश मे एक नया विकल्प बन गया होता पर कुछ लोगो ने साज़िशन फ़ेल कर दिया ।
वो गरीबी और परेशानी से निकले तो गरीब का दर्द नही भूले ।पहली सरकार मे किसानो को तकलीफ दे रही चुंगी माफ कर दिया तो डा लोहिया का अनुसरण करते हुये गरीब और गाव की महिलाओ के शौचालय का मुद्दा प्रमुखता से उठाया ।दवा पढाई मुफ्ती होगी रोटी कपडा सस्ती होगी का डा लोहिया का मन्त्र उन्हे याद रहा ।समाजवादियो की मांग थी की रोजगार दो या बेरोजगारी भत्ता दो तो उन्होने वक्त आने पर 12 हजार भत्ता ही नही दिया बल्कि गरीब कन्याओ को 30 हजार कन्याधन भी दिया ।उन्होने ग्रामिण क्षेत्रो को स्कूल कालेज बनाने को सरकारी प्रोत्साहन दिया तो किसान की फसल सुरक्षित रहे इसके लिये कोल्ड स्टोरेज को भी प्रोत्साहित किया ।चिकत्सा के क्षेत्र मे बडा काम किया तो अपने समय मे नौकरिया भी खूब निकाला ।
जितने अदर से मुलायम थे निर्णय लेने मे उतने ही कठोर थे ।वो अयोध्या मे कानून व्यव्स्था का सवाल हो या सीमा पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्यवाही वो विचलित नही हुये । उन्होने ने वैचारिक विरोध को दुश्मनी नही माना और विरोधियो का भी सम्मान किया था उनके भी सभी जायज काम किया ।
मुलायम सिंह मे अहंकार रंच मात्र नही था और सभी से जुडे रहना , अपनो को सहेज कर रखना तथा गैरो को अपना बना लेना उनकी विशेषता थी इसीलिये उन्होने गरीब से निकल कर उस उंचाई को छुवा ।
राजनीतिक तौर पर वो किसी के साथ जो भी व्यव्हार करते थे पर सामजिक सम्मान का ध्यान रखते थे ।
जब उनका पद छीन लिया गया उसके बाद वो अदर से टूट गये थे पर फिर सम्हल कर अपने बेटे और अपनी बनायी पार्टी का साथ दिया पर कही न कही पार्टी और परिवार मे टूटन से वो दुखी थे और क्यो न होते जब एक समय सभी ने उनका साथ छोड दिया था ।
धरतीपुत्र बिरले ही होते है और दिल से जुड़ कर रिश्ते निभाने वालो का राजनीति मे अभाव है ऐसे मे मुलायम सिंह यादव का चले जाना उनके बिना स्वार्थ जुडे हुये लोगो के लिये एक सदमे के समान है ।
मुलायम सिंह यादव जी की यादों को नमन और विनम्र श्रद्धांजलि।

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