शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

विपक्ष फिर चूक गया

रास्ट्रपति का चुनाव विपक्ष की मजबूत एकता का कारण बन सकता था , केन्द्र की वर्तमान सत्ता को चुनौती पेश कर सकता था पर इस बार फिर चूक गया सम्पूर्ण विपक्ष । 
यूँ भी लम्बे समय से विपक्ष भाजपा की सत्ता को न तो संसद मे ही कभी परेशानी मे डाल पाया और न सडक पर चुनौती दे सका है । पिछले 5/6 वर्षो मे कोई बडा आन्दोलन नही खड़ा कर सका । असरदार किसान आन्दोलन हुआ तो वो उनका था विपक्ष कही नही था । एन आर सी और सी ए ए के खिलाफ शाहीन बाग से आवाज उठी वो भी विपक्ष के बिना थी और रोजगार के सवाल पर या अभी अग्निपथ के खिलाफ सडक गरमा गयी तो विपक्ष उसमे भी दूर दूर तक नही था ।
कलमकारो और थोडा बहुत चितंन करने वालो  की जिम्मेदारी सिर्फ सत्ता का कान उमेठना ही नही है बल्कि सिद्धांतहीनता और विचलन का शिकार विपक्ष को भी लगातार कोंचना और आइना दिखाना है और वो भी अपनी इस भुमिका को पूरी तरह नही निभा पा रहे है ।
यद्दपि द्रौपदी मुर्मू का राज्यपाल के रूप मे कार्यकाल बहुत निस्पक्ष और गरिमा के अनुरूप नही बताया जाता है बल्कि उनपर संघ के लिये काम करने के आरोप लगते रहे और ये भी सत्य है की भारत का राष्ट्रपति जो केवल भारत के सार्वभौमिकता का प्रतीक ही नही है बल्कि सम्पूर्ण भारत का प्रतीक है ,तीनो सेनाओ का सर्वोच्च कमान्डर है और दुनिया मे जब वो जाता है या किसी राष्ट्राध्यक्ष का स्वागत करता है तो संपूर्णता से भारत का परिचायक होता है ,शिक्षा ,संस्कृति ,ज्ञान सब कुछ और द्रौपदी मुर्मू इन मामलो मे सम्भवतः 5% भी खरी नही उतरती है । ये भी सच है की आरएसएस के लगातार 50 साल शासन कर अपने सपने को साकार करने की बेचैनी मे भाजपा जिम्मेदार और भविश्य के लिये जवाबदेह शासन देने मे विफल केवल चुनावी मशीन बन चुकी है, वो आने वाली जनरेशन के बजाय आने वाले एलेक्शन के लिये ही सब करती दिखती है और उसका हर फैसला केवल अगले चुनाव को प्रभावित करने के उद्देश्य तक सीमीत होता है और ये फैसला भी भारत राश्ट्र के लिये नही बल्कि आगामी चुनाव के लिये ही है पर सवाल ये है कि क्या विपक्ष ने कोई मजबूत विकल्प दिया ? मजबूत चुनौती पेश किया ? ऐसा उम्मीदवार देते कि जो अपने नही वो भी मजबूर हो जाते उसे वोट देने को जैसे इस मामले मे जो भाजपा के नही वो भी काफी लोग मुर्मू का विरोध नही कर पायेंगे सिर्फ आदिवासी होने के कारण । 
बडा सवाल ये है कि क्या विपक्ष के सारे बड़े नेताओ ने भाजपा की रणनीति पर निगाह रखा और क्या गम्भीरता से चुनौती देने के बारे मे सोचा ? 
मनमोहन सिंह,प्रकाश सिंह बादल ,चन्द्र बाबू नायडू ,#मानिक_सरकार , देव गौडा, शरद यादव ,पवन कुमार चामलिग  इत्यादि के अलावा कोई प्रतिष्ठित पूर्व सर्वोच्च न्यायधीश , कोई पूर्व सेनाध्य्क्ष , शिक्षा जगत का प्रतिष्ठित व्यक्ति ,मेघा पाटकर जैसी कोई प्रसिद्ध समाज सेवी के साथ दक्षिण का होना या वंचित होना इत्यादि रणनीति विपक्ष की भी तो हो सकती थी । 
भाजपा के वर्तमान नेत्रत्व को बेचैन करने को आगे बढ़ कर रणनीतिक रूप से उन्ही के खेमे मे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, वर्तमान उप राष्ट्रपति पर चर्चा चलाई जा सकती थी ।
जब पता था कि आदिवासी कार्ड खेला जा सकता है तो विपक्ष के पास भी तो आदिवासी नेता है जो शिक्षित भी है और अनुभवी भी ।
यदि केवल नाम के लिये ही चुनाव लड़ना था तो किसी सीवर मे घुस कर सफाई करने वाले को वही से उठा कर उम्मीदवार बना देते , किसी खेत से मजदूर को उठा कर खड़ा कर देते ,किसी बिल्कुल अनजान राजनीतिक कार्यकर्ता को ले आते या प्रो पुरुषोत्तम अग्रवाल अथवा प्रो आनंद कुमार जैसे किसी बुद्धिजीवी को उम्मीदवार बना देते ।
विपक्ष को ये समझना होगा की आधे अधूरे मन से और आपसी काट छांट से भाजपा से नही लड़ा जा सकता है और किसी भी चुनाव मे विकल्पहीनता या कमजोर विकल्प और वैकल्पिक कार्यक्रम और मजबूत सैधांतिक धरातल के बिना आरएसएस और उनके राजनीतिक चेहरे भाजपा को नही हराया जा सकता है ।
विपक्ष की सबसे बड़े पार्टी खुद इस वक्त राहुल गांधी को ईडी से बचाने की लड़ाई तक सीमित है । देश की राजनीतिक लड़ाई भी वो केवल राहुल गांधी के नेत्रत्व तक सीमित रखना चाहती है ।
देश, लोकतंत्र सब कुछ दाव पर लगा है पर कोई जिम्मेदार नही है ,कोई जवाबदेह नही है । सब अपना अपना ढोल पीट रहे है । कोई सामुहिक प्रयास नही दिख रहा है ।
क्या भाजपा मे असन्तोष नही है ? क्या वहा सभी नेता और कार्यकर्ता खुश और संतुष्ट है ? ना ,बिल्कुल नही ।पर वो तो नही टूट रही है , उसकी सरकारे नही गिर रही है । फिर विपक्ष की क्यो ? क्योकी विपक्ष मे कोई उसके लिये सतत और सार्थक प्रयास नही करता ।ये कहना की भाजपा ने हमारे लोगो को तोड लिया ये आधा सच है पूरा सच ये है की आप अपनो को अपना बना कर क्यो नही रख पाते,आप अपनो से जुडे क्यो नही रह पाते है । इस पर आत्मचिन्तन तो करना ही चाहिये  । 
अभी से भी यशवंत सिन्हा की जगह किसी अन्य नाम पर विचार करना चाहिये ।

डा सी पी राय 
स्वतंत्र राजनीतिक समीक्षक एवं वरिष्ठ पत्रकार