सोमवार, 17 जुलाई 2023

प्रोफेसर_साहब

मेरी लिखी कहानी अगर पढ़ना चाहे —-

#प्रोफेसर_साहब --

प्रोफेसर साहब मेडिकल कालेज के नामी गिरामी प्रोफेसर थे । नाम बडा था ज्ञान भी था ही पर ? जाने देते है ।
जब मेनचेस्टर कहे जाने जिले के मेडिकल कालेज मे प्रोफेसर थे तो उनका  लडका भी वही छात्र हो गया था पता नही अपनी मेहनत से या पिता की जुगाड से । बेटे के साथ एक बहुत कुशाग्र छात्र भी पढता था जो तीन साल तक लगातर प्रथम आता रहा । चौथे साल मे प्रोफेसर साहब का माथा ठनका की उनके रहते हुये कोई और छात्र कैसे टॉपर हो सकता है, बस लग गये और चौथे तथा अंतिम साल मे बेटे को टाप करवा ही दिया ।
समय ने करवट लिया और प्रेम के स्मारक वाले शहर के मेडिकल कालेज मे प्रोफेसर साहब हेड बन कर आ गये और जिस अपने छात्र को उन्होने टॉप नही करने दिया था वो भी अध्यापक बन कर उसी कालेज मे आ गया ।थोडे दिन मे प्रोफेसर साहब का दूसरा बेटा इसी कालेज मे दाखिल हो गया । उसकी परीक्षा का अवसर आया तो जिसका नंबर घटा कर पीछे किया था उनसे ही सिफारिश किया अपने दूसरे बेटे को प्रथम स्थान पर पहुचाने की ।
प्रोफेसर साहब ने अपने दोनो बेटो को अमेरिका भेज दिया और खुद लग गये पैसा बटोरने मे । पैसा दांत से पकडते थे प्रोफेसर साहब और शहर मे सबसे ज्यादा फीस वसूलते थे ,कोई रहम नही । कोई बहुत गरीब और जरूरतमंद हो तो गिड़गिड़ा कर मर जाये पर मजाल क्या कि प्रोफेसर साहब का दिल पिघल जाये ।
प्रोफेसर साहब अब बूढे हो चले थे तो सोचा चले कुछ दिन दोनो बेटो के घर अमरीका मे बिताये और मन लग गया तो भारत का घर इत्यादि बेच कर पति पत्नी वही बच्चो के पास रह जायेंगे । बड़े अरमानो और जोश से टिकेट करवा कर अमरीका बड़े बेटे के घर पहुचे । कुछ दिन तो सब ठीक चला पर फिर बेटे से खटपट होने लगी छोटी बड़ी बात पर और बात यहा तक पहुची की बेटा उनके मुह पर ही बोल देता कि क्यो बिला वजह जिन्दा हो ? क्या बक बक करते हो ?  शाम तक मर क्यो नही जाते ।
और एक दिन बेटे ने घर से जाने का फरमान सुना दिया तब छोटे बेटे को फ़ोन किया पर वो लेने ही नही आया और रुखी से बात कर फोन काट दिया । छोटे बेटे से बोले कि टिकेट होने तक अपने घर ले चलो और फिर बस हवाई अड्डे तक छोड देना, पर वो नही आया ।निराश ,उदास,अपमानित  प्रोफेसर साहब भारत अपने घर लौट आये ।

पत्नी गम्भीर बीमार हो गई तो वही काम आया जिसके नंबर कम कर अपने बेटे को टॉप करवाया था । उन्होने पत्नी का ऑप्रेशन किया । कुछ ही दिन मे प्रोफेसर साहब गम्भीर रूप से बीमार हो गये तो उसी डाकटर साहब ने उन्हे अस्पताल मे भर्ती किया और लगातार उनकी देखभाल किया । पर लगता है कि बीमारी से ज्यादा मन की टूटन ने प्रोफेसर साहब को जख्मी कर दिया था अंदर तक और वो एक दिन उदासी चेहरे पर ओढ़े हुये चल बसे ।
सवाल आया कि दो बेटे है उन्हे खबर कर दिया जाये और उनके इन्तजार मे शरीर को संरक्षित कर रख दिया जाये । बेटो को खबर की गई पर दोनो ने ही आने से इंकार कर दिया कि एक मर गये आदमी को बस आग लगाने को वो अमरीका से नही आ सकते । अन्ततः प्रोफेसर साहब के नौकर ने उनका अंतिम संस्कार किया और उस वक्त मुट्ठी भर केवल वो लोग वहाँ मौजूद थे जो उनके कुछ नही लगते थे पर जिनको पढाया था या जो साथ मे शिक्षक थे और जिन्हे ये एहसास था कि नही गये तो लोग क्या कहेंगे ।
प्रोफेसर साहब का दांत से पकडा पैसा अपने भविष्य की बाट जोह रहा है और वो बड़ी सी कोठी प्रोफेसर साहब की पत्नी के अंतिम दिनो का सहयोगी बन वीरानी मे टुकुर टुकुर देखती रहती है और अपने नये मालिक के साथ फिर से गुलजार होने का इन्तजार कर रही है । नौकर ने बेटे का कर्तव्य निभा दिया और संस्कार कर दिया पर वो बेटा तो नही हो पायेगा अधिकार मे और इसिलिए उसने अपनी रोजी रोटी के लिये दूसरा ठिकाना ढूढना शुरू कर दिया है ।
कुछ दिन मे लोग भूल जाना चाहेंगे प्रोफेसर साहब को पर उनके किस्से सबक बन कर काफी दिनो तक फिजा मे तैरते रहेँगे ।
(अभी अभी लिखी एक कहानी । हम सब के आसपास ना जाने कितने प्रोफेसर साहब है और उनके बेटे भी )

सोमवार, 3 जुलाई 2023

अगर कांग्रेस ने दलित प्रधानमंत्री का दाव चल दिया तो


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अगर कांग्रेस ने दलित प्रधानमंत्री का दाव चल दिया तो ?
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अगर राहुल गाँधी ने एक दिन सामने आकर कह दिया की उनकी व्यक्तिगत  राय है आज़ादी  के ७७ साल हो गए अब देश को  किसी  दलित नेता को अपना प्रधानमंत्री चुन लेना चाहिए और कांग्रेस को बहुमत मिलने पर ऐसा करना ही चाहिए | यद्दपि प्रधानमंत्री तो चुने हुए सांसद बहुमत के आधार पर चुनते है और बहुमत वाले या बड़े दल वाले नेता को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री नियुक्त करते है पर कांग्रेस को इस दिशा में प्रयास करना चाहिये | कोई पिछड़ा भी हो सकता है | 
ये एक वक्तव्य देश की राजनीती को फैसलाकुन मोड़ पर पंहुचा देगा |
२०२४ का लोकसभा चुनाव सभी दलों  के लिए करो या मरो का चुनाव है | देश के लोकतंत्र और संविधान तथा चुनाव आयोग और जनता की जागरूकता की परीक्षा का भी चुनाव है |
२०१४ और २०१९ के चुनाव में लगातार बहुमत से जीती भाजपा के लिए २०२४ का रण आसान नहीं लगता है क्योकि २०१४ के चुनाव से पूर्व बड़े वादे  कर दिए गए थे ,काफी सपने दिखा दिए गए थे और गुजरात माडल तथा अच्छे दिन का सपना काफी बड़ा था जो छलावा साबित हुआ तो २०१९ में  एक तरफ  जनता को एक मौका और देने आग्रह की वादे पूरा हो सके और फिर पुलवामा में जवानों की शहादत तथा बालाकोट ने चुनाव को एक तरफा बना दिया था | 
पर इस बार वादा खिलाफी ,महंगाई ,बेरोजगारी ,चीन का कब्ज़ा और विदेश नीति के फ्रंट पर भी कुछ खास नहीं दिखना तथा देश में भाई चारा हो या प्रशासन ,कानून व्यवस्था और अन्य समस्याओं पर ढीला ढाला तथा गैर जिम्मेदारी का रुख सब मुह बाए सामने खड़ा है | 
पिछले चुनाव में बंगाल में ४२ में १८ सीट जीतने वाली भाजपा इस बार १० के नीचे दिख रही है और वहा कांग्रेस तथा साम्यवादी को सीट मिलती दिख रही है यहाँ तक की ममता की कुछ सीट भी इनकी झोली में जा सकती है | महाराष्ट में ४८ में २३ सीट जीतने वाली भाजपा १० के आसपास सिमट जायेगी और उद्धव ठाकरे तथा शरद पवार के नेत्रत्व में महा आघाडी गठबंधन क्लीन स्वीप करता दिख रहा है | मध्य प्रदेश में पिछले चुनाव में २९ में २८ सीट मिली थी पर इस बार विधान सभा चुनाव तो कांग्रेस भारी बहुमत से जीतेगी ही लोकसभा चुनाव में भी १५ या उससे अधिक सीट जीत सकती है | छतीसगढ़ ,में अधिकतम सीट कांग्रेस जीत  जाएगी तो राजस्थान ,में भी इस बार आकड़ा उलट पुलट जायेगा | ऐसी ही स्थिति हरियाणा ,दिल्ली ,पंजाब .हिमाचल और उत्तराखंड में भी दिख रही है |गुजरात में भी पुरानी स्थिति नहीं रहेगी और बिहार में भाजपा ७ तक सिमटती दिख रही है | 
अगर मल्लिकार्जुन खरगे जी को प्रधान मंत्री का उम्मेदवार घोषित कर दिया गया तो कर्णाटक उसी तरह उनका साथ देगा जैसा  गुजरात ने मोदी जी का दिया था और दक्षिण भारत में भी इसका असर दिखेगा | दलित प्रधान मंत्रीं का सवाल पूरे देश के २२%एस सी और बाकि एस टी को उद्द्वेलित करेगा | अल्पसंख्यक समाज ने इस चुनाव में पहले ही कांग्रेस की तरफ जाने का मन बना लिया है वो पूरी ताकत से एकतरफा वोट करेगा और इसके परिणाम स्वरुप ब्राह्मण सहित देश के वो सभी लोग जो भाजपा से नाराज है उनको अपना गुस्सा निकालने का स्थान मिल जाएगा | 
दलित प्रधान मंत्री की  घोषणा करते ही राहुल गाँधी  की छवि एक स्वार्थ से दूर रहने वाले ,सत्ता लोलुपता से दूर रहने वाले त्यागी नेता की बन जाएगी जो देश के सभी नेताओं से काफी आगे दिखलाई पड़ेंगे इसका भरपूर लाभ भीं कांग्रेस पार्टी को मिलेगा | 
२०२४ के युद्ध का सबसे बड़ा मैदान उत्तर प्रदेश बनने जा रहा है जहा  से भाजपा ने २०१४ के ७१ के मुकाबले २०१९  में ६२ सीट जीता था जो उप चुनाव में बढ़कर ६४ हो गयी  है | पिछले चुनाव में सपा के साथ लड़ी बसपा ने  १० सीट जीता तो सपा केवल ५ सीट पर सिमट गयी जिसमे आज़म खान और उनके  लोगो ने ३ सीट जीता तो मुलायम सिंह और अखिलेश यादव किसी तरह  अपनी सीट ही बचा पाए | भाजपा की सहयोगी अनुप्रिया पटेल ने २ सीट जीता तो उप चुनाव में आजमगढ़ और रामपुर में भूतो न भविष्यते जीत हासिल कर भाजपा ने अपनी सीट बढ़ा कर ६४ कर लिया है और भाजपा की सत्ता का सारा दारोमदार उत्तर प्रदेश के प्रदर्शन पर ही टिका है | 
उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल सपा है पर वो न तो उस तरह मुखर है और न सड़क पर है जैसे मुलायम सिंह यादव के समय रहता था | आरोप लगाने वाले ये आरोप भी लगाते है की ई डी और सी बी आई का डर अखिलेश को निकलने नहीं दे रहा है तो १० सीट जीतने वाली मायावती भी इन्ही कारणों से घर से नहीं निकलती है | कभी कभी अपने होने का एहसास करवाने के लिए पार्टी दफ्टर पर प्रकट होतीं है और उनके तमाम निर्णयों से उनके भाजपा के खेमे में होने का आरोप लगता है | 
कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने सबसे ख़राब दौर से गुजर रही है | पिछले विधान सभा चुनाव से पहले सबसे  आक्रमक और सक्रीय नेता  बन कर उभरी प्रियंका गांधी का *लड़की हूँ लड़ सकती हूँ  का नारा विधान सभा चुनाव में कारगर  नहीं रहा और ७ % से अधिक की पार्टी दो पार्टी में आमने सामने का चुनाव हो जाने के करण २ % के आसपास आ गयी  और लोकसभा में भी उत्तर प्रदेश से अकेले सोनिया गाँधी ही संसद पहुच पायी | लेकिन इस बार अल्पसंख्यक समाजं उसी तरह जिस तरह विधान सभा चुनाव में पूरीं ताकत से सपा के साथ था इस चुनाव में काग्रेस के साथ रहने का मन बनाता हुआ दिख रहा है | यदि दलित प्रधानमंत्री  का कार्ड चल दिया कांग्रेस  ने तो मायावती की पार्टी जमीन सूंघ रही होगी और बड़े पैमाने पर दलित कांग्रेस में जाएगा | दलित और अल्पसंख्यक  के इस रुझान को देखते ही ब्राह्मण सहित वो सभी जातियों के आम लोग जो भाजपा से नाराज है पर विकल्प नहीं देख पा रहे है .उनको विकल्प मिल जाएगा और उत्तर प्रदेश की राजनीती की पूरी तस्वीर उलटी हो जाएगी | ऐसा दृश्य भी देखन को मिल सकता है की बसपा के वर्तमान सांसद और सपा के बहुत से कद्दावर नेता अचानक कांग्रेस के खेमे में दिखाई पड़े और भाजपा में चले गए कांग्रेसी वापसी  का रास्ता देखे तथा उपेक्षा का शिकार सांसद भी कांग्रेस के दरवाजे पर मिले | यदि  ऐसा होता है तो उत्तर प्रदेश और की राजनीति पूरा यूटर्न करती हुयी दिखलाइ  पड़ेगी | 
पर इस सब के लिये हमें अभी चंद  महीने इन्तजार करना पड़ेगा क्योकि तात्कालिक घटनाये भी परिदृश्य बदल देती है जैसे पुलवामा ने बदल दिया था पर  भारत में कोई एक मुद्दा कभी दो बार चला नहीं है और लोग पहले से हि शंका व्यक्त करने लगे है की क्या सत्ता चुनाव के लिए कोई पुलवामा जैसा कर सकती है और होता ये है की जब कोई चीज पहले से जनता में चर्चा में आ जाती है तो अपना असर और सत्ता की साख दोनों खो देतीं है | फिर भी आने वाले दिन बतलायेंगे की सत्ता के तरकश में और कितने तीर है और कांग्रेस की रणनीति क्या रहती है तथा समस्त विपक्षी दलों की रणनीति क्या होती है | इन्तजार करना पड़ेगा सितम्बर से नवम्बर तक का तब तस्वीर साफ़ हो पाएगी |

डा सी पी राय