सोमवार, 22 जून 2020

अड़ोस पड़ोस हलचल और हालचाल

अड़ोस पड़ोस हलचल और हालचाल  -ड़ा सी पी राय 
राजनीतिक चिंतक और वरिष्ट पत्रकार 
-----------------------------------------चीन ,नेपाल पाकिस्तान तीनो मोर्चो को एक साथ खोले रखना ठीक नही है ।
अन्धे होकर अमरीका की गोद मे बैठ जाना भी ठीक नही है 
और इस चक्कर मे विश्वसनीय दोस्त रहे रुस को दूर कर देना भी ठीक नही हुआ और न ईरान के साथ संबंधो मे परिवर्तन ।
आसपास के बहुत से देश तबाह है तो मजबूत दिखने बाले देश भी अंदर से आज खोखले है ।
हम आज अर्थिक सँकट और कोरोना सँकट मे है और चारो तरफ से घिरे है तो चीन भी चारो तरफ से घिरा है और सँकट मे है ।चीन ने अर्थिक विस्तार इतना ज्यादा कर लिया है की तमाम जगह अपने को अर्थिक रूप से फंसा लिया है ।चीन आज लड़ाकू योद्धा नही बल्की ऐसा व्यापारी बन गया है जो अपने घर और व्यापार की रक्षा के लिए सुरक्षा भी रखता है ।
नेपाल की अपनी जरूरते और मजबूरिया है और जब हम अपनी तरफ से जाने वाली पाइप लाईन काट काट देंगे तो वो पानी पीने कही तो जायेगा ही ।लेकिन लाख मावोवादी शासन आ गया हो पर आज भी नेपाल हिन्दूओ का देश है और पशुपति नाथ से लेकर सीता माँ तक का घर है और इन लोगो के होते हुये उसे इतनी आसानी से और इतनी जल्दी भारत से काटा नही जा सकता है ।नेपाल की अच्छी खासी निर्भरता भारत पर आज भी है तो भारत की सेना मे तैनात इतनी बडी संख्या मे नेपाली गोरखा जहाँ हमारी फौज का मजबूत आधार है वही यदि हम सचेत नही रहे और चीजो को ठीक से नही देखा समझा तो आने वाले समय मे वे आत्मघाती भी साबित हो सकते है ।
पाकिस्तान की हकीकत सिर्फ इतनी है की सेना के राज के करण वो पिछड गया है और अर्थिक बदहाली का शिकार है और तमाम अर्थिक स्रोत पर काबिज उनकी सेना और बड़े नेता तथा ठेकेदार लोगो की रुचि पाकिस्तान को बनाने मे कम और दुनिया के दूसरे देशो मे सम्पत्तियाँ बनाने और अपने परिवारो का वहाँ  सुरक्षित इन्तजाम करने मे अधिक रही है ।
पर किसी भी पाकिस्तानी से कही मुलाकात हो जाये तो वो भारतीय से प्रेम से ही मिलता है ।
बंगला देश को पैदा करने और बनाने मे भारत ने बहुत कुछ खोया भी है और बंगला देश से बंगाल और उत्तर पूर्व का हजारो साल का संस्कृतिक और हर तरह का सम्बन्ध है इसलिए उसे भी अनदेखा नही किया जा सकता क्योकी चीन ने उसकी अर्थव्यवस्था मे बडा योगदान देना ही नही शुरू किया है बल्की नीतियाँ ऐसी बनायी है और टैक्स का ढांचा ऐसा बनाया है की बंगला देश तेजी से तरक्की कर रहा है और यहा तक की अन्य देशो का निराश और परेशान व्यापार बंगला देश पहुचने लगा है ,यहा तक की भारत का भी और नौबत यहा तक पहुच गई की बंगला देश ने भारत को पाकिस्तान के साथ मध्यस्तता का प्रस्ताव देने लायक खुद को मान लिया और नागरिकता कानून की चर्चा के दौर मे उसका जवाब मुकाबले पर खड़े देश वाला था । 
नागरिकता कानून की बहस और भारत के अंदर से प्रतिक्रियाओ और अन्य भी घटनाओ ने संयुक्त अरब अमीरात इत्यादि से विभिन्न आपत्तियो और आवाजो को उठाने को प्रेरित कर संबंधो , संभावनाओ और भविष्य को लेकर झोल पैदा कर दिया है ।
हर अदमी अब दुनिया को ग्लोबल विलेज कहता है पर भारत मे सोशल मीडिया और ट्रोल ग्रुप और दलो के आई टी सेल ये नही देख पाते है कि दुनिया भी उन्हे देख रही है ।
 हर देश  की कुछ कमजोरियाँ है और अन्तर्विरोध भी है पर दुर्भाग्य से भारत के दूतावासो ने और सभी खुफिया संगठनो ने पिछ्ले कुछ सालो मे लगता है की सिर्फ ऐश किया है और अपनी जिम्मेदारियो का निर्वाह नही किया है ।
हा यह याद रखना होगा की केवल नौकरशाहो द्वारा बडी चीजे नही की जा सकती है उसको वही कर सकता है जो नेत्रत्व कर सकता हो और मजबूत फैसले ले सकता हो दूरगामी फैसले ।
जब सरकार मे बैठे लोगो की निगाह और लक्ष्य इन चीजो की तरफ होता है और उसमे गम्भीरता होती है तो वैसे ही लोग विभिन्न देशो और स्थानो पर लगाये जाते है और उन्हे पता होता है की उनका उद्देश्य क्या है क्योकी उनको स्पष्ट निर्देश रहता है की अगले कुछ सालो का लक्ष्य क्या है । सरकार भले बदल जाये पर देश का लक्ष्य नही बदलता यह किसी देश की तरक्की और मजबूती की मुख्य बुनियाद है ।इसिलिए बुनियाद यह भी है की सिर्फ चुनाव के 3/4 महीने कोई कुछ भी कर ले और बाकी दिनो भी विपक्ष अपनी धारदार भूमिका निभाए चाहे जब चाहे जो हो पर सभी मुख्य बड़े नेताओ , पूर्व राष्ट्रपति,पूर्व प्रधानमंत्री,
पूर्व विदेश मंत्री,पूर्व रक्षा मंत्री,पूर्व गृह मंत्री ,पूर्व वित्त मंत्री और पूर्व सेनाध्य्क्ष ,और खुफिया विभागो के भी पूर्व काबिल लोगो की लगातार ऑफ द रिकॉर्ड चर्चा और विचार विमर्श ,सूचनाओ और भविष्य की योजनाओ पर गोपनीय रणनीतियो का निर्धारण लगातार होते रहना जरूरी है क्योकी देश सबका है और लोकतंत्र है तो कोई भी कभी भी सत्ता मे हो सकता है और कोई भी विरोध मे ,और चूँकि सभी के कुछ अनुभव भी है और कुछ भविष्य के सपने भी तो देश उन सभी के विचारो और रणनीतियो का लाभ क्यो न पाये या उनसे वंचित क्यो रहे । आदर्श व्यव्स्था तो यही है ।
नेपाल से लड़कर नही मिल कर और उनकी तथा वहा के समाज की जिन्दगी ने घुस कर और जनता से जनता के संवाद को बढा कर बहुत कुछ ठीक भी किया जा सकता है और हासिल भी किया जा सकता है ।
पाकिस्तान के अन्तर्विरोधो पर निगाह भी और दखल भी और वहा की जनता चाहे बलूच हो या सिन्धी या भारत से गए लोग जो आज भी दोयम दर्जे के नागरिक है क्या हम उनको जोड़ सकते है ? क्या हम उनकी आँखो मे कुछ सपने जगा सकते है ?  और भी बहुत कुछ पर उनका इस्तेमाल राजनीती के लिए करेंगे तो कुछ नही होगा सिर्फ कुछ वोट हासिल करने के अलावा ।
भूटान के बारे मे एक थोडे कम से समय की और दूसरी थोडी दूरगामी रणनीति तय करनी होगी ।
श्रीलंका,मालदीव ,म्यांमार,बंगला देश के मामले मे भी कही रस्सी या तो कमजोर पडी या ढीली पड़ गई । हा इतनी भी न खिंच जाये की टूट ही जाये ।
सिर्फ दलाई लामा को शरण देकर भूल जाना भी तो बडी भूल साबित हुई । अगर पीओके पर दूनिया मे चर्चा हो सकती है , फिलिस्तीन को मान्यता मिल सकती हौ और इस्राईल को मान्यता मिल सकती है तो बौद्ध धर्म तो पूरी दूनिया के तमाम देशो मे है ,तिब्बत की आज़ादी या दलाई लामा और इनके लोगो के लिए चीन जमीन खाली करे इसपर लगातार मुद्दा क्यो नही रह सकता है ।  हम लोग मानवता और लोकतंत्र के ठेकेदार है तो तिनामिन चौक पर बच्चो पर टैंक चढाये गए तब या होंगकोग मे जो आन्दोलन चल रहा है उस पर हमारा देश और बड़े नेता मुखर क्यो नही है ? तिब्बत बचाओ आन्दोलन क्यो मरने दिया गया । आसपास के देशो का ढीलाढाला महासंघ का ये सपना आसपास के सभी देशो की आवांम देखने लगे इसके लिए सभी दल सयुक्त रूप से डा लोहिया के इस सपने पर काम क्यो नही कर सकते । इन चीजो के दूरगामी परिणाम हो सकते थे और है । विभिन्न देशो के साथ मैत्री संघ और शैक्षिक संस्कृतिक आदान प्रदान के कार्यक्रम क्यो बंद हो गए और क्यो नही चलाये जा सकते है रणनीतिक रूप से ।
जहाँ तक अभी के हालात का सवाल है उसे सरकार का नही बल्की देश का सवाल बना देना चाहिये ।
1-अर्थिक मोर्चे के लिए एक सर्व्दलीय और सर्वकालिक जानकार लोगो का समूह बने ।
2-नेपाल के लिए एक समूह बने जिसमे उसकी जानकारी तथा वहा से अच्छे सम्बन्ध रखने वाले नेता किसी भी दल के , विदेश, बड़े धर्म गुरु , नेपाल के एक्सपर्ट  विदेश सेवा के लोग , वहा काम कर चुके खुफिया विभाग के लोग इत्यादि हो ।
3-बंगला देश , भुटान , श्रीलंका सहित अलग अलग देशो के लिए भी ऐसा ही हो ।
4-पाकिस्तान के लिए उसको हैंडिल कर चुके और सफलता से चीजो को अंजाम दे चुके लोगो का समूह बने ।
5-चीन के लिए प्रधानमंत्री के नेत्रत्व मे एक सर्व्दलीय प्रतिनिधिमंडल चीन से वार्ता करे और साथ साथ अपनी क्षमता और रणनीति के अनुसार सेना अपना काम तत्काल शुरू करे और भारत लाईन ऑफ कन्ट्रोल का एक नक्शा तत्काल जारी करे उसके अनुसार चीन को वापस जाने को मजबूर करे अन्यथा फिलहाल जहाँ  भारत के पक्ष मे परिस्थितिया हो उन इलाको मे उससे ज्यादा किलोमीटर अंदर तक जाकर बैठ जाये ।
साथ ही विएतनाम , जापान सहित जिन देशो से चीन के हित टकराते है उंन सभी देशो के लिए तत्काल मंत्री या पूर्व मंत्री के नेत्रत्व मे प्रतिनिधिमंडल भेज कर आक्रमक रणनीति अपनाने का संदेश दे ।
पर अब जो भी करना है मजबूती से करना है और स्थाई करना है ।
रुस ईरान इत्यादि के साथ हुई गलती का सुधार भी जरूरी एजेंडा होना चाहिये ।
देश सँकट मे है तो चुनाव और राजनीती संगठन के लोग देखे चाहे सत्ता हो या विपक्ष पर सत्ता के पदो पर बैठे लोग और विपक्ष मे बैठे ये जिम्मेदारियां निभा चुके लोग फिलहाल देश बनाने और बचाने के काम मे जुटे ।