#जिंदगी_के_झरोखे_से ---
सिंगापूर की यात्रा १९८४/८५
एक दिन सुबह सुबह उपाध्याय जी जो हमारे पारिवारिक मित्र थे घर आये और चाय पीने के बाद बोले की सिंगापूर चलना है रिवाल्वर लेने और साथ में टीवी ,वीसीआर भी ले आएंगे। उस ज़माने में टीवी सहित अधिकतर इलेक्ट्रॉनिक सामान लोग सिंगापूर से ही लाते थे और बहुत लोग तो काम ही यही करते थे की महीने में बारी बरी अलग लोग सिंगापूर का चक्कर काटते और आकर इलेक्ट्रॉनिक सामान यहाँ बेच कर मुनाफा कमाते । वो दो भाई और एक उनके मित्र जाना चाहते थे पर उनकी दिक्कत थी की उनमे से किसी को अंग्रेजी नहीं आती थीं। तो वो लग चाहते थे की मैं भी साथ चलू। उनको किसी से शायद ये भी पता लग गया था की सिंगापूर में मेरे कोई रिश्तेदार रहते है। उन्होंने कहा की वो तीन लोग मिल कर मेरा टिकट और खर्च उठा लेंगे।
मैंने कहा की कल बताता हूँ ,अगले दिन मैंने सिंगापूर अपने साढू भाई से बात किया क्योकि मेरे घर टेलीफोन सलाहकार समिति के सदस्य वाला फोन लग गया था जो मुझे उस वक्त के संचार मंत्री अर्जुन सिंह ने बनाया था और उसमे १२०० काल फ्री होती थी। वह तीन पीढ़ी रहे है और वहां विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर थे उस वक्त और ये तो वह जाकर पता लगा की वो उत्तर भारतीय लोगो के संगठन के अध्यक्ष और आर्य समाज के अध्यक्ष भी थे और बाद में विवि से अवकाश लेने पर वह चल रहे डी ए वी विद्यालयों के सर्वे सर्व हो गए जो अभी तक है। जब उनको बताया की मैं सिंगापूर आ रहा हूँ तो बहुत खुश हुये। मैंने उनसे आने का पूरा डिटेल पूछा और ये भी की तीन अन्य लोग साथ आ रहे है तो कोई सामन्य होटल बता दे और उन सात दिनों के लिए बुक करवा दे जब मैं तारिख बताऊँ तो उन्होंने कहा की होटल की कोई जरूरत नहीं आप हमारे साथ रुकिए और हमारे घर में नीचे कुछ कमरे है जो भारत से आने वालो के काम आते है और उनका बहुत काम किराया है पर आपके साथियो के लिए वो मेहमान है इसलिए कोई किराया नही।
अगले दिन मैंने उपाध्याय जी से चलने को हां कर दिया और ये भी बता दिया की वो जितना मुझपर खर्च कर रहे है उससे ज्यादा उनका होटल का मेरे साढू के घर पर रहने के कारन बच जायेगा और तैयारी शुरू हो गयी पासपोर्ट बनवाने के लिए टी सी आई से बात हुयी और उसी से टिकट और वीसा इत्यादि की भी। मेरा पासपोर्ट बना हुआ था क्योकि उससे पहले ही मैंने अमेरिकन विश्वविद्यालयों में पी एच डी के फॉर्म भरा था और मेरा अलबामा तथा ऑबर्न विवि में स्कालरशिप के साथ चयन भी हो गया था पर कसी वजह से मैं नहीं जा पाया पर उसी के कारन पासपोर्ट बन गया था। सब हो गया और टिकट आ गया तो उपाध्याय उनके साथी ने बहुत ज्यादा डालर खरीद लिया जो अपराध था और उस समय कस्टम के नियम बहुत सख्त थे।
मुझे तो मेरे बचपन के मित्र जिसके पिता और मेरे पिता साथ में प्रोफ़ेसर थे और हम एक घर के दो हिस्सों में करीब ३० साल से ज्यादा साथ रहे शिशिर सुमन रावत जो उस वक्त मरीन इंजिनियर हो गया था जब उसे पता चला की मैं सिंगापूर जा रहा हूँ तो उसने खुद १०० अमरीकी डालर दे दिए घूमने के नाम पर। उस वक्त सिंगापुर डालर भारत के ६ रूपये के बराबर था जो आज भारत के ५४ रूपये के बराबर है और अमरीकी डालर १३ रूपये के आसपास था और कुछ भारतीय मुद्रा मेरे पास थी थोड़ी सी ही क्योकि बताया गया था की वो भी काम आ जाती है
मेरे दो बहुत ही घनिष्ट दोस्त उस समय पालम एयरपोर्ट पर कस्टम अफसर थे ,मैंने उनको सूचित कर दिया था की मेरा ये कार्यक्रम है और जाने आने में कोई दिक्कत न हो ये वो लोग देख ले। उन लोगो की उस दिन छुट्टी थी तो उन्होंने अपने घर ही बुला लिया और हम लोग टैक्सी से उनके घर ही चले गए और वही खाना खाया। देर रात क्या अगले दिन सुबह की फ्लाइट थी लुफ्थांसा एयरलाइन्स की। अचनाक उपध्याय जी ने मेरे दोस्तों को बता दिया की वो इतने डालर लेकर जा रहे है काम तो नहीं पड़ेंगे तब उन लोगो ने कानून बताया की जेल का इंतजाम है ये इसलिए जितना नियम है उससे १०० / ५० ज्यादा तो चल जायेगा बाकि यही रख जाइये और वापसी में ले लीजियेगा। बच गए।
रात को फ्लाइट पकड़ा और कुल ५ घंटे का सफर था ,सिंगापूर एयरपोर्ट पर पहुंचे। क्या शानदार और कितना बड़ा एयरपोर्ट था। बाहर निकले तो सामने एक भारतीय टैक्सी वाला दिख गया उससे बात किया और साढू भाई का पता बताया तो उसने नाम लेकर पूछ लिया की उनके घर जाना है क्या ? और थोड़ी ही देर में हम उनके घर पर थे। उन्होंने मेरे साथ के लोगो को नीचे का तीन बेड वाला एक अकमरा दिया और मुझे ोप्पर घर में बुला लिया रहने को। ये मेरे साथियो ने पहले ही कह दिया था की वो प्रदेश का कुछ नहीं खाऐंबगे बल्कि जो घर से बना कर बेसन और आते के लड्डू और मटरी इत्यादि लाये है वही खाएंगे और ये बात मैंने परिबार को बता दिया की ऐसी सोच है इन लोगो की ,तो मैं उनके घर ही नाश्ता खाना करता और साथी अपना लाया हुआ कहते। बड़ी मुश्किल से एकाध बार चाय जरूर पी लिया इन लोगो ने। भारत की आस्थाये भी कितनी कष्टकारी हो जाती है कब ही कभी।
भारतीयों का बाजार कहे जाने वाले सेरंगुन रोड पर जहा आसपास सब भारतीय ही रहते थे और उन्ही की अधिकतर दुकाने भी और उनमे सबसे प्रसिद्द मुस्तफा का स्टोर था जी अब शायद बहुत बड़ा माल बन गया है। मुस्तफा उत्तर प्रदेश के जौनपुर का निवासी था और उसके यहाँ काम करने वाले लड़के लड़किया भी ९०% उसी के आसपास के ही थे हिन्दू मुसलमान सब। दो ही दिन बाद मेरी मुस्तफा से दोस्ती हो गयी और जब भी वहां जाता उसकी चाय या ठंडा जरूर पीता। उसके स्टोर की स्थिति ये थी की कार हुए जहाज जैसी चीजे छोड़ दीजिये तो बाकि आप के दिमाग में जो भी खरीदने की इच्छा हो सब एक छत के नीचे मौजूद था और सभी सामान बिलकुल ऐसी कीमत पर की हमने दूसरी जगहों पर भी देखा तो मुस्तफा सस्ता था । थके हुए थे और रात भर के जगे तो पहले दिन पूर्ण विश्राम और थोड़ा आसपास चहलकदमी का तय किया।
मैं आगरा से चलते वक्त ही तय कर के गया था की क्या करना है और एक ब्रीफकेस जो बहुत पुराना करीब टूटने वाला था वो ले गया था और अपना बहुत पुराना जूता। इसलिए उसी दिन पहला काम मैंने ये किया की मुस्तफा जाकर पहले अपने लिए हारा की एक जींस और टीशर्ट खरीदा और एक जूता भी और वापस आकर अपना ब्रीफकेस तथा पुराना जूता कूड़े में डाल दिया। ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योकि वापसी पर कस्टम में हर चीज की कीमत जोड़ी जाती थी और अधिक हुआ तो जुर्माना।
अगले दिन साढ़ू भाई की राय के अनुसार हम चार भारत के दूतावास गए जहा से रिवाल्वर खरीदने की इजाजत मिलती थी ,वहां भी साढू भाई का नाम काम आया और तुरंत काम हो गया फिर हथियार की दुकान पर पहुंचे और दोनों उपाध्याय भाइयो ने दो रिवाल्वर खरीदा ,एक ने १० हजार की बेवले और दूसरे ने ७ हजार की आर्मेनिएस। वहा हथियार की खरीद की सिर्फ रसीद मिलती थी और आप का हथियार पुलिस के माध्यम से एयरपोर्ट कार्गो पहुंच जाता और बाद में पालम कार्गो से खबर मिलने पर ट्रांजिट लाइसेंस लेकर आना होता था।
सिंगापूर में दो चीज के लिए मौत की सजा है हथियार और ड्रग। हम लोग जिस दिन पहुंचे थे उसी एक आदमी ड्रग के साथ पकड़ा गया था और ७वे दिन जब वापस आ रहे थे उसे फांसी लग चुकी थी ऐसा न्याय है वहां क्या।
फिर एक तरीका बनाया मैंने की जब भी खाली होता मुस्तफा और आसपास चला जाता और जो मैंने रात को बैठकर अपनी लिस्ट बनाया था वो सामान देखता उसका ब्रांड नेम और कीमत एक कागज पर लिखता जाता और वो स्टोर में किधर है ये भी ताकि अपना हिसाब लगा कर आखिरी दिन जो पैसा बचा हो उसमे माँ पिता ,भाई बहन पत्नी बेटियां और शशिर के परिवार के लिए कुछ न कुछ जरूर खरीद लूँ और किया भी यही की पूरा हिसाब बन गया तो पहले अटैची की दुकान पर गया आने के एक दिन पहले और इटावा के रहने वाले ठाकुर साहब ने सत्कार भी किया ठीक कीमत पर बहुत अच्छी अटैची भी दिया।
हां जब ठाकुर साहब की दुकान पर बैठा था तो एक घटना घटी की सामने की सड़क पर ट्रक का नीचे का कोई हिस्सा टूट गया जिससे सड़क थोड़ी खुद गयी और मैं अभी बैठा ही था की सड़क ठीक करने वाले आ गए बस सड़क का उतना हिस्सा घेरा हुए चौकोर काट कर घर कर दिया ,फिर दूसरी गाड़ी में तैयार गिट्टी इत्यदि आयी थी वो भर बुलडोजर से दबा दिया और कुछ छिड़क दिया और थोड़ी देर पास से ही होकर मैं आया तो सड़क बिलकुल पहले जैसी थी। वही मैंने उस साल ही तैयार जोड़ने का वो तरीका देखा जो आजकल ट्यूबलेस तैयार मे होता है और ये भी देखा की तैयार का उतना हिस्सा काट कर वहा कुछ भर दे रहे थे और तैयार बिलकुल ठीक हो जा रहा था।
दूसरी चीज सिंगापूर में सड़क पर कागज फेंकने या थूकने पर ५० डालर का जुरमाना था तो भारत के गए लोग भी उसका पालन करते थे। वहां पुलिस कही दिखती नहीं थी पर जो ही कोई गलती करता पता नहीं कहा से तुरंत पहुंच जाती। मुस्तफा के यहाँ एक बार कोई चालाकी दिखा कर कुछ छुपा कर ले जाने की कोशिश कर रहा था और उसके यहाँ चुकी खुद समान उठा कर काउंटर पर पेमेंट का तरीका था तो जब तक वो अंदर रहे किसी ने कुछ नहीं कहा और अंदर कुछ लोग बैठ कर कैमरे से निगरानी रखते है जो ही उसने स्टोर से एक कदम बाहर रखा उन्होंने पकड़ लिया और मुश्किल से ३/४ मिनट में पुलिस आ गयी।
पूरे सिंगापूर में साथ दिन में भी न कॉलर गन्दा हुआ और न कपडा ,इतना साफ है और कोई एक इंच भी ऐसी जगह नहीं है जहा हरियाली और घास न हो। जब मैंने इसके बारे में पुछा तो साढू भाई ने बताया की दर असल पहले सिंगापूर के प्रधानमंत्री ने खुद अपने घर के आसपास पेड़ लगाए और घर लगाया और जब वो सब ठीक दीखनेक लगा तो उन्होंने जनता को एक दिन सम्बोधित किया की कृपया जब कभी समय हो और अगर मेरे घर की तरफ से कही जाना हो तो जरूर ध्यान से देखिये मैंने अपने घर के आसपास हरियाली उगाया है और अगर आप सब ये अच्छा लगे तो मेरी प्रार्थना है की सभी लोग अपने घर और दफतर इत्यादि के पास भी ऐसा ही करे और यह आंदोलन जैसा बन गया और आज पूरा सिंगापुर हरा भरा है सिर्फ उस हिस्से को छोड़कर जो उन्होंने छोड़ा है आने वाली पीढ़ियों को दिखाने को की कभी सिंगापूर कैसा था और पूर्वजो ने आज कैसा सिंगापूर नयी पीढ़ी को दिया है।
सिंगापुर सिर्फ इतना बड़ा है की आप बस से ४५ मिनट में मलेशिया में प्रवेश कर जाते है। सिंगापूर के लोग भी जब ज्यादा कपडे सिलवाने होते है तो मलेशिया जाते है जहा सिलाई सस्ती है और कपडे भी। सिंगापूर में एक ही मजबूत है पर चुनाव कोई भी लड़ सकता है लेकिन वहां के प्रधानमंत्री ने काम ही इतना किया की लोग उनकी पार्टी को ही जिताते चले आ रहे है पर वह भारतीय की भी काफी भागीदारी है ,संभव काम से काम दो राष्ट्रपति भारतीय हो चुके और कुछ मंत्री तो हमेशा रहते है। आज वहा के पूर्व प्रधानमंत्री के पुत्र प्रधानमंत्री है। सिंगापूर में है नौजवान को तीन साल फ़ौज में रहना अनिवार्य है। सिंगापूर में खेती तो है ही नहीं वो पर्यटन और समुद्री जहाजों के रख रखाव तथा मुक्त व्यापर पर ही निर्भर है पर आज इतना मजबूत है।
उसी समय मुझे पता चला की प्रधान मंत्री ने कहा की या तो मैं खुद को मृद्ध कर लूँ और अपने परिवार को या अपने देश को इन दो रास्तो में मैंने दूसरा रास्ता चुना। इस बात पर मैं आज ही किसी का मजाक पढ़ रहा था की भारतीय नेताओ ने भी यही कहा पर चूँकि देश को मजबूत करने और उसके लिए समर्पित होने का रास्ता सिंगापूर के प्रधानमंत्री ने चुन लिया था इसलिए भारतीय नेताओ के पास बस दूसरी च्वाइस ही बची खुद को और परिवार को सम्पन्न करने की।
सिंगापूर की दो घटनाये जानने लायक है १- जब भारत में इंदिरा गाँधी जी की हत्या हो गयी तो पूरी दुनिया की तरह सिंगापूर में भी भारत के लोगो ने उसके खिलाफ जुलुस निकाला। तो प्रधानमंत्री ने भारतीय लोगो के नेताओ को बुलाया और कहा की मामले पर दुनिया के दूसरे देश को क्या प्रतिक्रिया देनी है यह सरकार का विदेश विभाग तय करेगा और आप लोग सिंगापूर के नागरिक है तो आप सरकार से तो बात कर सकते है और अपनी मांग रख सकते है पर दूसरे देश की अंदरूनी घटनाओ पर प्रतिक्रिया सकते इसलिए अगर आप लोग अभी भी भारत की अंदरूनी राजनीति में रूचि रखते है तो मैं जहाज तैयार करावा देता हूँ और अपना सब कुछ बेच कर आप लोग भारत चले जाइये। २- दूसरी घटना संभवतः टाटा के साथ हुयी थी जब वो सिंगापूर में कुछ कारोबार करने और ऑफिस शुरू करने का प्रस्ताव लेकर गए तो प्रधानमंत्री से मिले ,प्रधानमंत्री ने उनसे केवल तीन सवाल किये की हमारे देश को फायदा होगा और कितना ,हमारे देश के कितने लोगो को नौकरी मिलेगी और किस स्टार की और इनका जवाब मिलने पर उन्होंने पुछा की कितनी जल्दी वो काम शुरू कर सकते है और वही बैठे बैठे विभाग को बुलाया और किसी बिल्डिंग के बारे में बताया की आप देख कर बताइये की क्या उससे आप का काम चल जायेगा और आप को और क्या क्या चाहिए और एक अधिकारी की ड्यूटी लगा दिया की तय समय में सब हो जाये और शुरू होने की तारिख लिख ले रहा हूँ उस दिन सुबह १० नबाजे वह खुद आऊंगा। यह राज है वह की तरक्की का अनुशासन का।
अब अपनी यात्रा पर आता हूँ। मेरे साथ गए लोगो की कोई रूचि घूमने में या सिंगापूर को जानने और देखन इसमे नहीं थी पर मेरी रूचि सब देखने और सब जानने की थी। जानने के लिए तो सुबह नश्तक के समय या रात को खाने के समय या साथ जाते वक्त रस्ते में मैं जो भी सवाल होते पूछता जाता था और साढ़ू भाई विवि से वापस आकर कही न कही ले जाते और बाकि समय मैं खुद घूमता और अपनी लिस्ट बनाता। इसी घुमने में मैं एक बार मुस्तफा स्टोर के बगल से कुछ आगे निकल गया तो देखा की एक बिल्डिंग में काफि लोग जा और आ रहे है ऐसा भी देखा की टूरिस्ट ग्रुप का गाइड कुछ बोल कर वही खड़ा हो गया हो गया और ज्यादातर लोग अंदर जाने लगे तो उत्सुकता बस मैं भी चला गया देखा की कई मंजिल पर तमाम केबिन बने है और लड़किया हर केबिन में मौजूद है और वो मसाज पार्लर था। मुझे एक भारतीय लड़की मिली तो उसका इंटरव्यू कर डाला की क्यों ये सब कर रही है तभी देखा की स्कूल या कालेज की ड्रेस पहने कुछ लड़किया आयी ,उनके बारे में पुछा तो पता लगा की वो भी यहाँ मसाज के लिए आयी है और शायद और भी कुछ और वहां एक लड़की को एक ही ग्राहक की परमीशन थी और उनका रेगुलर मेडिकल होता था। यह भी नया ज्ञान मिला पहली बार।
घूमने के क्रम में हम एक दिन समुद्र के किनारे भी गए गए साढ़ू भाई ने नया अपार्टमेंट लिया था ,उसकी बालकनी से क्या खूब नज़ारा था। उसके बाद एक छुट्टी का दिन था उस दिन संतोषा जाने का तय किया गया जजों समुद्र में छोटा सा टापू है। जाते वक्त हम लोग हवा में केबल कार से गए और वापसी में एक काफी बडा स्टीमर समझ लीजिये उससे आये। संतोष सिंगापूर का मुख्य आकर्षण है लोग वहा आकर रुकते है या लौट भी जाते है। संतोषा बहुत ही खूबसूरत जगह है जहा आप समुद्र में तैराकी करिये ,घूमिये और खाइये पीजिये। पर मुझे वहां सब चीजों के साथ जो चीज बहुत भाई वो मेरे बचपन के पहले हीरो नेता जी सुभाषचंद्र बोस की यादगार सबकुछ। वह का रोस्टेड मुर्गा भारत के मुर्गो से दो गुना से ज्यादा। पूरा परिवार साथ गया था और बहुत ही आनंद आया। सचमुच आज लगा की नया देखा है पहली बार और नेता जी की याद तो खैर कहने ही क्या।
एक दिन जब खरीददारी कर रहा था तो पत्नी के लिए कुछ और भी खरीदने का सोचा पर समझ नहीं आया की लूँ कैसे साडी ईत्यादि तो ले लिया था वहां का साबुन ,पेस्ट जिसको आजतक नहीं भूल पाता हूँ और बहुत कुछ कुछ सबके लिए पर कुछ अभी और लेने की गुंजाइश थी। पत्नी भी साइज़ नहीं बता पायी और मैं बताऊँ कैसे कोई ,काउंटर पर लड़की थी और वो सब कई दिन से देख कर और भारतीय जानकार परिवार जैसी हो गयी थी पर मैंने यू ही कह दिया की पत्नी के लिए खरीदना चाह रहा हूँ पर समझ नही आ रहा की कैसे लूँ ,बड़ी अजीब स्थिति स्थिति मेरे लिए पर वो बोली की सर परेशान न हो और यहाँ देख कर बताइये की आप की वाइफ किसके जैसी है अंदाज से और इधर उधर देख कर एक की तरफ मैंने यूँ ही इशारा कर दिया ,वो उसके पास गयी और आकर उसने दी निकल दिया की ले जाइये ठीक ही होगा वार्ना किसी और के काम आ जायेगा .
एक दिन मैं यूँ ही घूमता हुआ मैं आर्यसमाज मंदिर चला गया। वहां शाम को लोग एकत्र होते थे। कुछ साल पहले वाद विवाद प्रतियोगिता के लिए पढ़ने को सत्यार्थ प्रकाश और स्वामी दयानन्द के बारे में पढ़ रखा था तो वह लोगो से नया परिचय हुआ तो किसी ने पूछ लिया की क्या मैं कुछ जानता हूँ स्वामी जी के बारे में बस अवसर मिला तो कुछ बोला भी और दो कविताये भी सुना दिया फिर क्या था वहां के लोगो ने कुछ भेट किया और पर्स थोड़ा और भरी हो गया।
मेरे एक मौसा जी भी सिंगापूर में रहते है जो मौसी जी की शादी के बाद कभी भारत न खुद आये और न परिवार तथा बच्चो को भेजा की भारत में तो उतरते ही बीमार हो जाएंगे जबकि मेरे साढ़ू भाई जो तीन पीढ़ी से वहां है वो हर साल कुछ दिनों के लिए भारत जरूर आते है और अपने सहित सबको मिलते है ,मेरी बेटियों की शादी में २०१५ में इतनी उम्र में भी दोनों लोग सिंगापूर से केवल शादी में भाग लेने आये। मैंने उनसे पुछा की क्या आप मेरे मौसा जी को जानते है तो मैंने जो ब्यौरा दिया वो पहचान गए और उनको फोन कर बता दिए की मैं आया हूँ और फिर उधर से अगले दिन डिनर का निमत्रण मिल गया। मौसी तो मिल कर कुछ देर तक रोती ही रही। विदा के समय १०० सिंगापूर डालर और एक कपड़ा भेंट में मिला जो बहुत सुन्दर था और वो कत्थई सफारी सूट मैंने काफी पहना मौसी के प्रेम का उपहार।
साढ़ू की तीसरी पीढ़ी के बावजूद वो लोग घर में भोजपुरी ही बोलते है और शुद्ध भारतीय शाकाहारी भोजन ही करते है। उनकी बेटी ने एक चीनी लड़के से शादी किया है। मेरी पत्नी जब जीवित थी तो वो बेटी और उसका पति तथा बच्चे आगरा आये घूमने ,घर आते ही चारो ने प्रणाम किया। मैंने सोचा की चाइनीस और थाई खाना लाऊँ इन लोगो के लिए तो जब उससे पुछा तो दामाद बोला की वो जो पानी भर कर कहते है और जो आलू जो डीप फ्राई करते है वो यानि गोलगप्पा और भल्ला इत्यदि। आगरा के सबसे अच्छे ये सब मैं लेकर आया और सबनेक खूब मन से खाया। आप को आश्चर्य होगा की चीनी दामाद और उसके बच्चे भी हिंदी ही नहीं भोजपुरी के शब्द बोलने लगे थे।
और सातवे दिन हम लोगो को छोड़ने साढू भाई सपरिवार एयरपोर्ट पर आये। बाकि साथियो ने टीवी और वी सी आर खरीद लिया था और मैंने एक कैमरा ,एक
और भी चीजे जो छूट रही होंगी वो आत्मकथा में होगी
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