रविवार, 19 दिसंबर 2021

जिन्दगी के झरोखे से। समाजवादी पार्टी की स्थापना

#जिंदगी_के_झरोखे_से

#समाजवादी_पार्टी_की_स्थापना -

1992 की बात है मुलायम सिंह यादव जी 1991 की भयानक हार से उबर कर कभी कभी दिल्ली जाने लगे थे । चन्द्रशेखर जी की सरकार के जाते जाते मेरी सलाह पर अयोध्या काण्ड को आधार बना कर खतरे के आधार पर मुलायम सिंह यादव के उस वक्त बहुत करीबी और दिल्ली मे मीडिया सलाहकार डा बागची ने प्रधानमंत्री के नाम एक चिट्ठी टाइप करवाया और चन्द्रशेखर जी ने भी बिना देरी के मुलायम सिंह यादव जी के लिये एन एस जी जो एस पी जी के गठन से पूर्व उस बक्त तक प्रधानमंत्री की सुरक्षा देखती थी के ब्लैक कैट कमांडो की स्वीकृत कर दिया पर उस वक्त तक पूर्व मुख्यमंत्री सुरक्षा के लिये सरकारी वाहन नही मिलता था तो डा बागची ने मुझसे पूछा की सुरक्षा तो हो गयी अब गाडी की व्यवस्था कैसे होगी और मैने जिम्मेदारी ले लिये कि हो जायेगी । उसके बाद मैं अपने एक मित्र जो गृह मंत्रालय मे राजभाषा अधिकारी थे और टेनिस कोर्ट के सामने वाले आर के पुरम के सरकारी क्वार्टर मे रहते थे उनके घर गया क्योकी उनके घर के पास मैने एक टैक्सी स्टैंड देखा था ।हम दोनो वहा गये और स्टैंड के मालिक सरदार जी से तीन गाड़ियो के बारे मे गाड़ियो की क्वालिटी और रेट के बारे मे तय किया इस शर्त के साथ कि जब भी फोन किया जायेगा हमे तीन गाडी अवश्य मिलेगी जिसमे से तय समय पर दो एन एस जी कैम्प जायेगी कमांडो को लेने और एक मुलायम सिंह यादव जी के लिये तय समय पर एयरपोर्ट पर वी आई पी लाउंज पहुचेगी । सब तय हो गया ।
यहा यह बताना जरूरी नही है की सत्ता से सीधे 29 सीट पर आकर मुलायम सिंह जी बहुत निराश थे (यद्द्पि चुनाव के बीच ही जब मैं दिल्ली से सुब्रमण्यम स्वामी जो उस वक्त वाणिज्य और कपडा मंत्री थे के यहा से कुछ सामान लेकर लखनऊ वापस जा रहा था क्योकी स्वामी जी के एक व्यक्ति के अलावा मैं ही लखनऊ के दफ्तर मे बैठता था और रास्ते मे शिवपाल जी के घर पर मुलाकात मे बता चुका था कि मुझे 40 से ज्यादा आती नही दिख रही है ) तथा विचलित भी और एक साल तक कुछ भी करने को तैयार नही थे पर कैसे चुनाव के बाद तुरन्त चुनाव लड़े हुये लोगो की बैठक क्यो बुलाया ,फिर कुछ ही समय बाद मेरे द्वारा आयोजित आगरा मे विशाल मन्ड्लीय सम्मेलन के आयोजन मे क्यो आने को तैयार हो गये जिसमे 14 लाख की थैली भेंट की गयी तथा 50 ग्राम सोना या शायद मैं अलग अलग एपिसोड मे बताऊंगा ।
ये भी क्यो बताया जाये की एक साल तक घर से नही निकलने की बात करने वाले मुलायम सिंह यादव जी दिल्ली क्यो आये । दिल्ली मे रुकने की जगह सिर्फ यू पी भवन था जो विधायक के नाते मिलता पर मैं नही चाहता था की वो यू पी भवन मे रुके ।तब डा बागची ने हल निकाला और किसी से बात कर के सम्राट होटल मे उनके लिये सूईट बुक करवाया और यू पी भवन का कमरा मेरे लिये तय हो गया क्योकी जब भी उन्हे दिल्ली आना होता मुझे लखनऊ से फोन आ जाता था ,फिर मैं सरदार जी को गाडी के लिये फोन करता और खुद भी दिल्ली पहुच जाता था और यू पी भवन मे सामान रख कर समय पर एयरपोर्ट जाकर रिसीव करना ,रोज सुबह से शाम तक साथ रहना और फिर वापसी पर एयरपोर्ट विदा कर वापस जाना ये अगली सत्ता आने तक चलता रहा । पहली बार आने पर मैने कुछ लोगो से मिलवाया जिनके नामो की जरूरत नही है । शाम को वापस होटल मे आने पर मुलायम सिंह जी बोले कि अरे आप को तो दिल्ली मे बहुत लोग जानते है ,आप तो यहा बहुत काम के रहेंगे ,मैं आप को दिल्ली मे रखुँगा जो कभी भी नही हुआ क्योकी प्राथमिकता मे परिवार और खास जातियां आ गयी ।
खैर सम्राट होटल के बाद आशोका होटल का सूईट बुक होने लगा । एक दिन सूईट के कमरे मे खिडकी के किनारे दो कुर्सियो पर बैठे हम लोग चाय पी रहे थे वही जो मेरे मन मे काफी दिन से घूम रहा यहा मैने उनसे कहा कि फिर से समाजवादी पार्टी की स्थापना किया जाये तब तक हम लोग सजपा मे थे जिनके राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर जी थे और मुलायम सिंह यादव जी प्रदेश अध्यक्ष थे तथा मैं प्रदेश का महामंत्री और प्रवक्ता था । मेरी बात पर उन्होने असहमती व्यक्त किया की मेरा तो केवल 2/4 जिलो मे असर है ,चन्द्रशेखर जी बड़े नेता है उनके साथ रहना ही ठीक है । उसपर मैने कहा की सजपा की जगह समाजवादी पार्टी कर दिया जाये क्योकी वो अजादी की लडाई के समय से एक वैचारिक आन्दोलन रहा है और उससे भावनात्मक रूप से देश भर मे काफी लोग जुडे है चाहे संगठन का स्वरूप यही रहे और चन्द्रशेखर जी रास्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे ,पर आप राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे तो वो एक बडा सन्देश होगा और पहली बार कोई पिछड़ा राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा ,आगे आप की मर्जी आप जो तय करिये ।पर उन्होने इस विचार को पूरी तरह से खारिज कर दिया लेकिन मन मे एक सपना तो मैने जगा ही दिया था ।
हम राज नारायणजी के लोगो का स्थायी अड्डा जनेश्वर जी का घर होता था ,बाकी दिनो मे वही नाश्ता खाना ,वही रुक जाना ,बल्कि देश भर के समाजवादीयो के लिये उनका घर सराय था इसलिये घर के बाहर ही लिख दिया गया था बाद मे लोहिया के लोग । थोडे ही दिन बाद मैं वहा था और बिहार वाले कपिलदेव बाबू भी वहा आये थे । हम तीनो जब साथ बैठे थे तो मैने अपना विचार बताया की मैने मुलायम सिंह जी से ये कहा है पर वो मान नही रहे है ।जनेश्वर जी बोले की ये तो अच्छा विचार है और देश भर मे खाली बैठे सभी समाजवादी साथ आ जायेंगे । कपिलदेव बाबू बोले की मुलायम से हमारी मुलाकात करवाइये हम भी कहेंगे और हमे कुछ नही चाहिए हमारे पास स्वतंत्रता सेनानी का भी पास और पेशन है और विधायक का भी और रहने को जनेश्वर का घर है ,अगर पार्टी बनेगी तो हम पूरा समय देंगे ।फिर जनेश्वर जी और कपिलदेव बाबू की भी बात हुयी और रमाशंकर कौशिक ,भगवती सिंह तथा रामसरन दास से भी चर्चा करने के बाद मुलायम सिंह यादव जी तैयार हो गये और तैयारी शुरू हो गयी । सवाल ये आया की देश भर मे सूचना कैसे हो तो अखबारो मे विज्ञापन दिया गया और मुलायम सिंह जी का फोन नंबर दे दिया गया ।देश भर से फोन आने लगे जगजीवन फोन उठाता था और फिर जिसका भी फोन आया होता था उनका नाम और फोन नंबर मुझे भी लिखवा देता था ।
आखिर 4/5 नवम्बर आ ही गया और बेगम हजरत महल पार्क मे स्थापना सम्मेलन हुआ जिसमे असम केरल बंगाल महाराष्ट्र बिहार मध्यप्रदेश,हरियाणा दिल्ली कश्मीर सहित कई प्रदेशो के लोग शामिल हुये जिसमे असम के पूर्व मुख्यमंत्री गोलप बोरबोरा , हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुकुम सिंह ,बंगाल की सोशलिश्ट पार्टी जिसके मंत्री प्रबाल चन्द्र सिन्हा और किरणमय नन्दा सहित विधायक ,बिहार से बड़े नाम वाले कई समाजवादी शामिल हुये ।पार्टी का स्वरूप राष्ट्रीय उसी दिन दिखने लगा ।ये अलग से लिखूंगा कि किसके और किन कारणो से आगे चल कर सब बड़े नेता साथ छोड़ गये ।
स्थापन सम्मेलन मेरी व्यस्तता का ये आलम था की मैं सिर्फ दो बार मंच पर गया एक बार राजनीतिक प्रस्तांव पर बोलने और दुबारा मुलायम सिंह जी के सर्वसम्मति से राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने पर । 5 को  सम्मेलन खत्म हुआ तो मुलायम सिंह जी बाहर से आये नेताओं से मिलने स्टेट गेस्ट हाउस आये तो सबसे मिलते हुये मेरे कमरा नंबर 47 मे पहुचे ।मैं कुर्सी पर ही बेसुध पड़ा था ।उन्होने धीरे से जगाया और बोले की चाय मगाइये ।दोनो ने चाय पिया तो बोले मैं जानता हूँ कि आप बाहर से आये लोगो की अगवानी और ब्यवस्था मे 3 दिन से ठीक से सोये नही है पर आज से जब तक सबको विदा करना है वो कर के खूब सो लीजियेगा फिर मेरे पास आइएगा तब समीक्षा किया जायेगा और आप का ही ये विचार था तो आगे की बात भी किया जायेगा ।
बाकी सब इतिहास मे दर्ज है और छूटा हुआ सब बाद के एपिसोड मे ।

गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

जिंदगी_के_झरोखे_से

#जिंदगी_के_झरोखे_से ---

सिंगापूर की यात्रा १९८४/८५

एक दिन सुबह सुबह उपाध्याय जी जो हमारे पारिवारिक  मित्र थे घर आये और चाय पीने के बाद बोले की सिंगापूर चलना है रिवाल्वर लेने और साथ में टीवी ,वीसीआर भी ले आएंगे।   उस ज़माने में टीवी सहित अधिकतर इलेक्ट्रॉनिक सामान लोग सिंगापूर से ही लाते थे और बहुत लोग तो काम ही यही करते थे की महीने में बारी बरी अलग लोग सिंगापूर का चक्कर काटते और आकर इलेक्ट्रॉनिक सामान यहाँ बेच कर मुनाफा कमाते ।  वो दो भाई और एक उनके मित्र जाना चाहते थे पर उनकी दिक्कत थी की उनमे से किसी को अंग्रेजी नहीं आती थीं।  तो वो लग चाहते थे की मैं भी साथ चलू।  उनको किसी से शायद ये भी पता लग गया था की सिंगापूर में मेरे कोई रिश्तेदार रहते है।  उन्होंने कहा की वो तीन लोग मिल कर मेरा टिकट और खर्च उठा लेंगे।
मैंने कहा की कल बताता हूँ ,अगले दिन मैंने सिंगापूर अपने साढू  भाई से बात किया क्योकि मेरे घर टेलीफोन सलाहकार समिति के सदस्य वाला फोन लग गया था जो मुझे उस वक्त के संचार मंत्री अर्जुन सिंह ने बनाया था और उसमे १२०० काल फ्री होती थी। वह तीन पीढ़ी  रहे है और वहां विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर थे उस वक्त और ये तो वह जाकर पता लगा की वो उत्तर भारतीय लोगो के संगठन के अध्यक्ष और आर्य समाज के अध्यक्ष भी थे और बाद में विवि से अवकाश लेने पर वह चल रहे डी ए वी विद्यालयों के सर्वे सर्व हो गए जो अभी तक है। जब उनको बताया की मैं सिंगापूर आ रहा हूँ तो बहुत खुश हुये।  मैंने उनसे आने का पूरा डिटेल पूछा और ये भी की तीन अन्य लोग साथ आ रहे है तो कोई सामन्य होटल बता दे और उन सात दिनों के लिए बुक करवा दे जब मैं तारिख बताऊँ तो उन्होंने कहा की होटल की कोई जरूरत नहीं आप हमारे साथ रुकिए और हमारे घर में नीचे कुछ कमरे है जो भारत से आने वालो के काम आते है और उनका बहुत काम किराया है पर आपके साथियो के लिए वो मेहमान है इसलिए कोई किराया नही। 
अगले दिन मैंने उपाध्याय जी से चलने को हां कर दिया और ये भी बता दिया की वो जितना मुझपर खर्च कर रहे है उससे ज्यादा उनका होटल का मेरे साढू  के घर पर रहने के कारन बच जायेगा और तैयारी शुरू हो गयी पासपोर्ट बनवाने के लिए टी सी आई से बात हुयी और उसी से टिकट और वीसा इत्यादि की भी।  मेरा पासपोर्ट बना हुआ था क्योकि उससे पहले ही मैंने अमेरिकन विश्वविद्यालयों में पी एच डी के फॉर्म भरा था और मेरा अलबामा तथा ऑबर्न विवि में स्कालरशिप के साथ चयन भी हो गया था पर कसी वजह से मैं नहीं जा पाया पर उसी के कारन पासपोर्ट बन गया था।  सब हो गया और टिकट आ गया तो उपाध्याय  उनके साथी ने बहुत ज्यादा डालर खरीद लिया जो अपराध था और उस  समय  कस्टम के नियम बहुत सख्त थे।
मुझे तो मेरे बचपन के मित्र जिसके पिता और मेरे पिता साथ में प्रोफ़ेसर थे और हम एक घर के दो हिस्सों में करीब ३० साल से ज्यादा साथ रहे शिशिर सुमन रावत जो उस वक्त मरीन इंजिनियर हो गया था जब उसे पता चला की मैं सिंगापूर जा रहा हूँ तो उसने खुद १०० अमरीकी डालर दे दिए घूमने के नाम पर। उस वक्त सिंगापुर डालर भारत के ६ रूपये के बराबर था जो आज भारत के ५४ रूपये के बराबर है और अमरीकी डालर १३ रूपये के आसपास था और कुछ भारतीय मुद्रा मेरे पास थी थोड़ी सी ही क्योकि बताया  गया था की वो भी काम आ जाती है
मेरे दो बहुत ही घनिष्ट दोस्त उस समय पालम एयरपोर्ट पर कस्टम अफसर थे ,मैंने उनको सूचित कर दिया था की मेरा ये कार्यक्रम है और जाने आने में कोई दिक्कत न हो ये वो लोग देख ले।  उन लोगो की उस दिन छुट्टी थी तो उन्होंने अपने घर ही बुला लिया और हम लोग टैक्सी से उनके घर ही चले गए और वही खाना खाया।  देर रात क्या अगले दिन सुबह की फ्लाइट थी लुफ्थांसा एयरलाइन्स  की।  अचनाक उपध्याय जी ने मेरे दोस्तों को बता दिया की वो इतने डालर लेकर जा रहे है काम तो नहीं पड़ेंगे तब उन लोगो ने कानून बताया की जेल का इंतजाम है ये इसलिए जितना नियम है उससे १०० / ५० ज्यादा तो चल जायेगा बाकि यही रख जाइये और वापसी में ले लीजियेगा।  बच गए। 
रात को फ्लाइट पकड़ा और कुल ५ घंटे का सफर था ,सिंगापूर एयरपोर्ट पर पहुंचे।  क्या शानदार और कितना बड़ा एयरपोर्ट था। बाहर निकले तो सामने एक भारतीय टैक्सी वाला दिख गया उससे बात किया और साढू भाई का पता बताया तो उसने नाम लेकर पूछ लिया की उनके घर जाना है क्या ? और थोड़ी ही देर में हम उनके घर पर थे। उन्होंने मेरे साथ के लोगो को नीचे का तीन बेड वाला एक अकमरा दिया और मुझे ोप्पर घर में बुला लिया रहने को।  ये मेरे साथियो ने पहले ही कह दिया था की वो प्रदेश का कुछ नहीं खाऐंबगे बल्कि जो घर से बना कर बेसन और आते के लड्डू और मटरी इत्यादि लाये है वही खाएंगे और ये बात मैंने परिबार को बता दिया की ऐसी सोच है इन लोगो की ,तो मैं उनके घर ही नाश्ता खाना करता और साथी अपना लाया हुआ कहते।  बड़ी मुश्किल से एकाध बार चाय जरूर पी  लिया  इन लोगो ने।  भारत की आस्थाये भी कितनी कष्टकारी हो जाती है कब ही कभी। 
भारतीयों का बाजार कहे जाने वाले सेरंगुन रोड पर जहा  आसपास सब भारतीय ही रहते थे और उन्ही की अधिकतर दुकाने भी और उनमे सबसे प्रसिद्द मुस्तफा का स्टोर था जी अब शायद बहुत बड़ा माल बन गया है।  मुस्तफा उत्तर प्रदेश के जौनपुर का निवासी था और उसके यहाँ काम करने वाले लड़के लड़किया भी ९०% उसी के आसपास के ही थे हिन्दू मुसलमान सब। दो ही दिन बाद मेरी मुस्तफा से दोस्ती हो गयी और जब भी वहां जाता उसकी चाय या ठंडा जरूर पीता।  उसके स्टोर की स्थिति ये थी की कार हुए जहाज जैसी चीजे छोड़ दीजिये तो बाकि आप के दिमाग में जो भी खरीदने की इच्छा हो सब एक छत के नीचे मौजूद था और सभी सामान बिलकुल ऐसी कीमत पर की हमने दूसरी जगहों पर भी देखा तो मुस्तफा सस्ता था ।  थके हुए थे और रात भर के जगे तो पहले दिन पूर्ण विश्राम और थोड़ा आसपास चहलकदमी का तय किया।
मैं आगरा से चलते वक्त ही तय कर के गया था की क्या करना है और एक ब्रीफकेस जो बहुत पुराना करीब टूटने वाला था वो ले गया था और अपना बहुत पुराना जूता।  इसलिए उसी दिन पहला काम मैंने ये किया की मुस्तफा जाकर पहले अपने लिए हारा की एक जींस और टीशर्ट खरीदा और एक जूता भी और वापस आकर अपना ब्रीफकेस तथा पुराना जूता कूड़े में डाल दिया।  ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योकि वापसी पर कस्टम में हर चीज की कीमत जोड़ी जाती थी और अधिक हुआ तो जुर्माना। 
अगले दिन साढ़ू भाई की राय के अनुसार हम चार भारत के दूतावास गए जहा से रिवाल्वर खरीदने की इजाजत मिलती थी ,वहां भी साढू भाई का नाम काम आया और तुरंत काम हो गया फिर हथियार की दुकान पर पहुंचे और दोनों उपाध्याय भाइयो ने दो रिवाल्वर खरीदा ,एक ने १० हजार की बेवले और दूसरे ने ७ हजार की आर्मेनिएस।  वहा हथियार की खरीद की सिर्फ रसीद मिलती थी और आप का हथियार पुलिस के माध्यम से एयरपोर्ट कार्गो पहुंच जाता और बाद में पालम कार्गो से खबर मिलने पर ट्रांजिट लाइसेंस लेकर आना होता था।
सिंगापूर में दो चीज के लिए मौत की सजा है हथियार और ड्रग।  हम लोग जिस दिन पहुंचे थे उसी एक आदमी ड्रग के साथ पकड़ा गया था और ७वे दिन जब वापस आ रहे थे उसे फांसी लग चुकी थी ऐसा न्याय है वहां क्या।
फिर एक तरीका बनाया मैंने की जब भी खाली होता मुस्तफा और आसपास चला जाता और जो मैंने रात को बैठकर अपनी लिस्ट बनाया था वो सामान देखता उसका ब्रांड नेम और कीमत एक कागज पर लिखता जाता और वो स्टोर में किधर है ये भी ताकि अपना हिसाब लगा कर आखिरी दिन जो पैसा बचा हो उसमे माँ पिता ,भाई बहन पत्नी बेटियां और शशिर के परिवार के लिए कुछ न कुछ जरूर खरीद लूँ और किया भी यही की पूरा हिसाब बन गया तो पहले अटैची की दुकान पर गया आने के एक दिन पहले और इटावा के रहने वाले ठाकुर साहब ने सत्कार भी किया ठीक कीमत पर बहुत अच्छी अटैची भी दिया।
हां जब ठाकुर साहब की दुकान पर बैठा था तो एक घटना घटी की सामने की सड़क पर ट्रक का नीचे का कोई हिस्सा टूट गया जिससे सड़क थोड़ी खुद गयी और मैं अभी बैठा ही था की सड़क ठीक करने वाले आ गए बस सड़क का  उतना हिस्सा घेरा हुए चौकोर काट कर घर कर दिया ,फिर दूसरी गाड़ी में तैयार गिट्टी इत्यदि आयी थी वो भर बुलडोजर से दबा दिया और कुछ छिड़क दिया और थोड़ी देर पास से ही होकर मैं आया तो सड़क बिलकुल पहले जैसी थी।  वही मैंने उस साल ही तैयार जोड़ने का वो तरीका देखा जो आजकल ट्यूबलेस तैयार मे होता  है और ये भी देखा की तैयार का उतना हिस्सा काट कर वहा कुछ भर दे रहे थे और तैयार बिलकुल ठीक हो जा रहा था।
दूसरी चीज सिंगापूर में सड़क पर कागज फेंकने या थूकने पर ५० डालर का जुरमाना था तो भारत के गए लोग भी उसका पालन करते थे। वहां पुलिस कही दिखती नहीं थी पर जो ही कोई गलती करता पता नहीं कहा से तुरंत पहुंच जाती।  मुस्तफा के यहाँ एक बार कोई चालाकी दिखा कर कुछ छुपा कर ले जाने की कोशिश कर रहा था और उसके यहाँ चुकी खुद समान उठा कर काउंटर पर पेमेंट का तरीका था तो जब तक वो अंदर रहे किसी ने कुछ नहीं कहा और अंदर कुछ लोग बैठ कर कैमरे से निगरानी रखते है जो ही उसने स्टोर से एक कदम बाहर रखा उन्होंने पकड़ लिया और मुश्किल से ३/४ मिनट में पुलिस आ गयी। 
पूरे सिंगापूर में साथ दिन में भी न कॉलर गन्दा हुआ और न कपडा ,इतना साफ है और कोई एक इंच भी ऐसी जगह नहीं है जहा हरियाली और घास न हो।  जब मैंने इसके बारे में पुछा तो साढू  भाई ने बताया की दर असल पहले सिंगापूर के प्रधानमंत्री ने खुद अपने घर के आसपास पेड़ लगाए और घर लगाया और जब वो सब ठीक दीखनेक लगा तो उन्होंने जनता को एक दिन सम्बोधित किया की कृपया जब कभी समय हो और अगर मेरे घर की तरफ से कही जाना हो तो जरूर ध्यान से देखिये मैंने अपने घर के आसपास हरियाली उगाया है और अगर आप सब ये अच्छा लगे तो मेरी प्रार्थना है की सभी लोग अपने घर और दफतर इत्यादि के पास भी ऐसा ही करे और यह आंदोलन जैसा बन गया और आज पूरा सिंगापुर हरा भरा है सिर्फ उस हिस्से को छोड़कर जो उन्होंने छोड़ा है आने वाली पीढ़ियों को दिखाने को की कभी सिंगापूर कैसा था और पूर्वजो ने आज कैसा सिंगापूर नयी पीढ़ी को दिया है।
सिंगापुर सिर्फ इतना बड़ा है की आप बस से ४५ मिनट में मलेशिया में प्रवेश कर जाते है। सिंगापूर के लोग भी जब ज्यादा कपडे सिलवाने होते है तो मलेशिया जाते है जहा सिलाई सस्ती है और कपडे भी। सिंगापूर में एक ही मजबूत है पर  चुनाव कोई भी लड़ सकता है लेकिन वहां के प्रधानमंत्री ने काम ही इतना किया की लोग उनकी पार्टी को ही जिताते चले आ रहे है पर वह भारतीय की भी काफी भागीदारी है ,संभव काम से काम दो राष्ट्रपति भारतीय हो चुके और कुछ मंत्री तो हमेशा रहते है।  आज वहा के पूर्व प्रधानमंत्री के पुत्र प्रधानमंत्री है।  सिंगापूर में है नौजवान को तीन साल फ़ौज में रहना अनिवार्य है। सिंगापूर में खेती तो है ही नहीं वो पर्यटन और समुद्री जहाजों के रख रखाव तथा  मुक्त व्यापर पर ही निर्भर है पर आज इतना मजबूत है।
उसी समय मुझे पता चला की प्रधान मंत्री ने कहा की या तो मैं खुद को मृद्ध कर लूँ और अपने परिवार को या अपने देश को इन दो रास्तो में मैंने दूसरा रास्ता चुना।  इस बात पर मैं आज ही किसी का मजाक पढ़ रहा था की भारतीय नेताओ ने भी यही कहा पर चूँकि देश को मजबूत करने और उसके लिए समर्पित होने का रास्ता सिंगापूर के प्रधानमंत्री ने चुन लिया था इसलिए भारतीय नेताओ के पास बस दूसरी च्वाइस ही बची खुद को और परिवार को सम्पन्न करने की।
सिंगापूर की दो घटनाये जानने लायक है १- जब भारत में इंदिरा गाँधी जी की हत्या हो गयी तो पूरी दुनिया की तरह सिंगापूर में भी भारत के लोगो ने उसके खिलाफ जुलुस निकाला।  तो प्रधानमंत्री ने भारतीय लोगो के नेताओ को बुलाया और कहा की मामले पर दुनिया के दूसरे देश को क्या प्रतिक्रिया देनी है यह सरकार का विदेश विभाग तय करेगा और आप लोग सिंगापूर के नागरिक है तो आप सरकार से तो बात कर सकते है और अपनी मांग रख सकते है पर दूसरे देश की अंदरूनी घटनाओ पर प्रतिक्रिया  सकते इसलिए अगर आप लोग अभी भी  भारत की अंदरूनी राजनीति में रूचि रखते है तो मैं जहाज तैयार करावा देता हूँ और अपना सब कुछ बेच कर आप लोग भारत चले जाइये। २- दूसरी घटना संभवतः टाटा के साथ हुयी थी जब वो सिंगापूर में कुछ कारोबार करने और ऑफिस शुरू करने का प्रस्ताव लेकर गए तो प्रधानमंत्री से मिले ,प्रधानमंत्री ने उनसे केवल तीन सवाल किये की हमारे देश को  फायदा होगा और कितना ,हमारे देश के कितने लोगो को नौकरी मिलेगी और किस स्टार  की और इनका जवाब मिलने पर उन्होंने पुछा की कितनी जल्दी वो काम शुरू कर सकते है और वही बैठे बैठे विभाग को बुलाया और किसी बिल्डिंग के बारे में बताया की आप देख कर बताइये की क्या उससे आप का काम चल जायेगा और आप को और क्या क्या चाहिए और एक अधिकारी की ड्यूटी लगा दिया की तय समय में सब हो जाये और  शुरू होने की तारिख लिख ले रहा हूँ उस दिन सुबह १० नबाजे वह खुद आऊंगा। यह राज है वह की तरक्की का अनुशासन का।
अब अपनी यात्रा पर आता हूँ।  मेरे साथ गए लोगो की कोई रूचि घूमने में या सिंगापूर को जानने और देखन इसमे नहीं थी पर मेरी रूचि सब देखने और सब जानने की थी। जानने के लिए तो सुबह नश्तक के समय या रात को खाने के समय या साथ जाते वक्त रस्ते में मैं जो भी सवाल होते पूछता जाता था और साढ़ू भाई विवि से वापस आकर कही न कही ले जाते और बाकि समय मैं खुद घूमता और अपनी लिस्ट बनाता। इसी घुमने में मैं एक बार मुस्तफा स्टोर के बगल से कुछ आगे निकल गया तो देखा की एक बिल्डिंग में काफि लोग जा और आ रहे है ऐसा भी देखा की टूरिस्ट ग्रुप का गाइड कुछ बोल कर वही खड़ा हो गया हो गया और ज्यादातर लोग अंदर जाने लगे तो उत्सुकता  बस मैं भी चला गया देखा की कई मंजिल पर तमाम केबिन बने है और लड़किया हर केबिन में मौजूद है और वो मसाज पार्लर था। मुझे एक भारतीय लड़की मिली तो उसका इंटरव्यू कर डाला की क्यों ये सब कर रही है तभी देखा की स्कूल या कालेज की ड्रेस पहने कुछ लड़किया आयी ,उनके बारे में पुछा तो पता लगा की वो भी यहाँ मसाज के लिए आयी है और शायद और भी कुछ और वहां एक लड़की को एक ही ग्राहक की परमीशन थी और उनका रेगुलर मेडिकल होता था।  यह भी नया ज्ञान मिला पहली बार।
घूमने के क्रम में हम एक दिन समुद्र के किनारे भी गए गए साढ़ू भाई ने नया अपार्टमेंट लिया था ,उसकी बालकनी से क्या खूब नज़ारा था। उसके बाद एक छुट्टी का दिन था उस दिन संतोषा जाने का तय किया गया जजों समुद्र में छोटा सा टापू है। जाते वक्त हम लोग हवा में केबल कार से गए और वापसी में एक काफी बडा स्टीमर समझ लीजिये उससे आये।  संतोष सिंगापूर का मुख्य आकर्षण है लोग वहा आकर  रुकते है या लौट भी जाते है। संतोषा बहुत ही खूबसूरत जगह है जहा आप समुद्र में तैराकी करिये ,घूमिये और खाइये पीजिये। पर मुझे वहां सब चीजों के साथ जो चीज बहुत भाई वो मेरे बचपन के पहले हीरो नेता जी सुभाषचंद्र बोस की यादगार सबकुछ।  वह का रोस्टेड मुर्गा भारत के मुर्गो से दो गुना से ज्यादा।  पूरा परिवार साथ गया था और बहुत ही आनंद आया। सचमुच आज लगा की  नया देखा है पहली बार और नेता जी की याद तो खैर कहने ही क्या। 
एक दिन जब खरीददारी कर रहा था तो पत्नी के लिए कुछ और भी खरीदने का सोचा पर समझ नहीं आया की लूँ कैसे साडी ईत्यादि तो ले लिया था वहां का साबुन ,पेस्ट जिसको आजतक नहीं भूल पाता हूँ और बहुत कुछ कुछ सबके लिए पर कुछ अभी और लेने की गुंजाइश थी। पत्नी भी साइज़ नहीं बता पायी और मैं बताऊँ कैसे कोई ,काउंटर पर लड़की थी और वो सब कई दिन से देख कर और भारतीय जानकार परिवार जैसी हो गयी थी पर मैंने यू  ही कह दिया की पत्नी के लिए खरीदना चाह रहा हूँ पर समझ नही  आ रहा की कैसे लूँ ,बड़ी अजीब स्थिति स्थिति मेरे लिए पर वो बोली की सर परेशान  न हो और यहाँ देख कर बताइये की आप की वाइफ किसके जैसी है अंदाज से और इधर उधर देख कर एक की तरफ मैंने  यूँ ही इशारा कर दिया ,वो उसके पास गयी और आकर उसने दी निकल दिया की ले जाइये ठीक ही होगा वार्ना किसी और के काम आ जायेगा  .
एक दिन मैं यूँ ही घूमता हुआ मैं आर्यसमाज मंदिर चला गया। वहां शाम को लोग एकत्र होते थे।  कुछ साल पहले वाद विवाद प्रतियोगिता के लिए पढ़ने को सत्यार्थ प्रकाश और स्वामी दयानन्द के बारे में पढ़ रखा था तो वह लोगो से नया परिचय हुआ तो किसी ने पूछ लिया की क्या मैं कुछ जानता हूँ स्वामी जी के बारे में बस अवसर मिला तो कुछ बोला भी और दो कविताये भी सुना दिया फिर क्या था वहां के लोगो ने कुछ भेट किया और पर्स थोड़ा और भरी हो गया।
मेरे एक मौसा जी भी सिंगापूर में रहते है जो मौसी जी की शादी के बाद कभी  भारत न खुद आये और न परिवार तथा बच्चो को भेजा की भारत में तो उतरते ही बीमार हो जाएंगे जबकि मेरे साढ़ू भाई जो तीन पीढ़ी से वहां है वो हर साल कुछ दिनों के लिए भारत जरूर आते है और अपने  सहित सबको मिलते है ,मेरी बेटियों की शादी में २०१५ में इतनी उम्र में भी दोनों लोग सिंगापूर से केवल शादी में भाग लेने आये। मैंने उनसे पुछा की क्या आप मेरे मौसा जी को जानते है तो मैंने जो ब्यौरा दिया वो पहचान गए और उनको फोन कर बता दिए की मैं आया हूँ और फिर उधर से अगले दिन डिनर का निमत्रण मिल गया।  मौसी तो मिल कर कुछ देर तक रोती  ही रही।  विदा के समय १०० सिंगापूर डालर और एक कपड़ा भेंट में मिला जो बहुत सुन्दर था और वो कत्थई सफारी सूट मैंने काफी पहना मौसी के प्रेम का उपहार।
साढ़ू की तीसरी पीढ़ी के बावजूद वो लोग घर में भोजपुरी ही बोलते है और शुद्ध भारतीय शाकाहारी भोजन ही करते है। उनकी बेटी ने एक चीनी लड़के से शादी किया है। मेरी पत्नी जब जीवित थी तो वो बेटी और उसका पति तथा बच्चे आगरा आये घूमने ,घर आते ही चारो ने प्रणाम किया।  मैंने सोचा की चाइनीस और थाई खाना लाऊँ इन लोगो के लिए तो जब उससे पुछा तो दामाद बोला की वो जो पानी भर कर कहते है और जो आलू जो डीप फ्राई करते है वो यानि गोलगप्पा और भल्ला इत्यदि। आगरा के सबसे अच्छे ये सब मैं लेकर आया और सबनेक खूब मन से खाया।  आप को आश्चर्य होगा की चीनी दामाद और उसके बच्चे भी हिंदी ही नहीं भोजपुरी के शब्द बोलने लगे थे।
और सातवे दिन हम लोगो को छोड़ने साढू भाई सपरिवार एयरपोर्ट पर आये। बाकि साथियो ने टीवी और वी सी आर खरीद लिया था और मैंने एक कैमरा ,एक
और भी चीजे जो छूट रही होंगी वो आत्मकथा में होगी 

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से-
जब वो #राजीव_गांधी_जिन्दाबाद_बोलते_हुए_आये
और #मुलायम_सिंह_जिन्दाबाद_करते_हुये_निकले
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ये 1993 के विधान सभा चुनाव की बात है ।मैं समाजवादी पार्टी का महामंत्री और प्रवक्ता था ।आगरा मे जातिगत कारणो से पार्टी का कोई बहुत मजबूत आधार नही था पर मेरी अति सक्रियता और सतत संघर्ष से पार्टी कुछ ज्यादा ही नजर आती थी सड़क से समाचारो तक और चूंकि आगरा तीन मध्यप्रदेश और राजस्थान से भी जुड़ा है और आगरा मंडल ही नही इटावा तक के मीडिया का मुख्य केन्द्र है तथा आरएसएस का भी पच्चिमी उत्तर प्रदेश का मुख्यालय है और इस बड़े क्षेत्र का शिक्षा और चिकत्सा का तथा  बुद्धिजीवियो का भी केन्द्र रहा है और  मुलायम सिंह यादव जी की शिक्षा भी यही से हुई है तो उनकी भी आगरा मे ज्यादा रुचि रही और एक टोटका भी शायद उनके दिमाग मे लगातार रहा कि आगरा मे मैने पार्टी का एक तीन दिवसीय कार्यक्रम रखा और उसके बाद ही पार्टी की सरकार बन गई जो 2017 से पहले भी हुआ तो आगरा पार्टी की सक्रियता और प्रचार का केन्द्र था ।
चौ चरण सिंह के समय लोक दल को छोड दे जिसमे वो तीन विधान सभा सीट जीत जाते थे वर्ना 1977 से पहले जब पुरानी समाजवादी पार्टी जीतती थी कुछ सीटे और 1977 मे भी शहर की तीनो सीट कांग्रेस ही जीत गई 

आज उत्तर प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा --

आज उत्तर प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा --


उत्तर प्रदेश का आने वाला चुनाव मील का पत्थर साबित होने वाला है ।बंगाल ने लम्बे समय बाद एक चुनौती को स्वीकार भी किया और चुनौती दिया भी और इबारत लिख दिया राजनीति के पन्ने पर की इरादा हो, संकल्प हो और आत्मबल हो तो कितनी भी बड़ी ताकते सामने हो उन्हे परास्त किया जा सकता है ।

अब बारी उत्तर प्रदेश की है तय करने की कि देश की राजनीति की दशा और दिशा क्या होगी । जो विभिन्न कोनो से आवाज उठती है कि लोकतंत्र खत्म हो जायेगा और संविधान संघविधान मे बदल जायेगा तथा एक संगठन को छोड बाकी सब कैद मे जीवन काटेंगे ,क्या सचमुच वैसा कुछ होगा या ये सब एक भ्रम मात्र है ।तय तो ये भी होना है की जो चल रहा है वही चलेगा या बदलाव आयेगा और खुली बयार फिर से बहेगी ।तय होना है की उत्तर प्रदेश सिर्फ ठोको , मुकदमे लगाओ और जेले भरो पर ही चलेगा या रोटी रोजगार और सचमुच के विकास जिसका लोग सपना देखते है उसपर चलेगा ।

तय ये भी होना है कि 1989 से हर चुनाव मे सत्ता परिवर्तन की बयार इस बार भी बहेगी या कांग्रेस युग की वापसी होगी और सत्ता फिर वापस आयेगी ।

इस युद्द के मुख्य रूप से चार योद्धा है जिसमे भाजपा तथा आरएसएस और समाजवादी पार्टी फिलहाल आमने सामने दिखलाई पड़ रहे है । भाजपा के ऊपर जहा सरकार असफलताओ का बोझ है वही अपने ही विधायको नेताओ और कार्यकर्ताओ की नाराजगी का जोखिम भी ,जहा सभी चीजो की महंगाई का विराट प्रश्न सामने मुह बाये खड़ा है तो किसान आन्दोलन की आंच भी जलाने को तत्पर है ,बेरोजगार नौजवान हुंकार भर रहा है तो कुछ को छोडकर कर पूर प्रशासन तंत्र मे एक कसमसाहट है , या यूँ कहे की चुनावी जमीन भाजपा को निगलने को आतुर दिख रही है ।नागपुर से लेकर दिल्ली और लखनऊ तक भगवा खेमे जबर्दस्त बेचैनी दिखलाई पड़ रही है और साम दाम दंड भेद सब कुछ इस्तेमाल कर किला बचाने की जद्दो-जहद भी साफ नज़र आ रही है तभी राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश तो राजनाथ सिंह मध्य उत्तर प्रदेश और अमित शाह पच्चिमी उत्तर प्रदेश मे चुनाव सम्हालने जा रहे है और प्रधानमंत्री मोदी का अब हर हफ्ते कार्यक्रम लग रहा है । आरएसएस तथा उसके प्रशिक्षित लोग हिन्दू मुसलमान मुद्दा बना देने को कमर कसते नज़र आ रहे है तभी तो केशव मौर्य से मथुरा काशी का राग छिड़वा दिया गया है  भगवा खेमे के योद्धा चाहे उसकी आंच मे प्रदेश बर्बाद क्यो न हो जाये पर चुनाव बड़ी चीज है ।

दूसरी तरफ समाजवादी खेमा लम्बी नीद से उठ कर अपनी अंगडाई लेता हुआ दिख रहा है पर अभी भी जमीनी हकीकत और अपनी कमजोरियो से आंखे मूदे हुये लगता है ।जहा भाजपा सैकड़ो चेहरे और संगठनो के साथ उछल कूद कर रही है वही समाजवादी पार्टी वन मैंन शो के साथ वन मैन आर्मी ही नजर आ रही है । अखिलेश यादव द्वारा मुलायम सिंह यादव को बेइज्जत कर अध्यक्ष पद से हटाने के बाद पार्टी सभी चुनावो मे खेत रही है ।पार्टी का दो मुख्य मजबूत वोट था जिसमे से पिछले विधान सभा चुनाव और लोक सभा चुनाव मे इसमे से यादव लोगो का भाजपा खेमे को काफी समर्थन मिला हिन्दू और मंदिर के नाम पर और अभी भी ये दावा नही किया जा सकता कि 100% यादव वोट पुरानी वाली ताकत तथा जज्बे से सपा के लिये लडेगा और वोट देगा ।दूसरा अडिग वोट मुसलमान का रहा जो 1989 और फिर 1993 से पूरी ताकत के साथ सपा के साथ खड़ा रहा पर इस बार वो विचलित दिखलाई पड़ रहा है और आज़म खान के मामले मे अखिलेश यादव की तब तक की गई बेरुखी जब तक वोवैसी से आज़म से मिलने की इच्छा व्यक्त नही किया और कांग्रेस की तरफ से भी उनके प्रति सहानुभूती नही दर्शाई गई ने भी पूरे मुस्लिम समाज को विचलित कर दिया है साथ मे कभी विष्णू के मंदिर तथा कभी परशुराम के मंदिर की बात कर अखिलेश यादव ने पाया कुछ नही बल्कि भाजपा की नीतियो का पिछलग्गू बनने का काम किया है ।ऐसे मे यदि मुस्लमान को कोई और विकल्प नही मिला तो उसका वोट तो मिल सकता है पर 1991की तरह ही जोश रहित और कम संख्या मे होगा ।पता नही क्यो अखिलेश यादव पर अति जातिवादी होने का ठप्पा भी लग गया है और बडी जातियो के प्रति बेरुखी वाला भाव भी ।ये गलती तो सपा ने प्रारंभ से ही किया कि वो अन्य पिछडी जातियो और अति पिछडी जातियो को ये एहसास नही करा पायी की पार्टी तथा सत्ता उनकी भी है ।मुलायम सिंह के उलट अखिलेश का सुलभ न होना तथा पुराने लोगो के प्रति उपेक्षा भाव और अनुभवी वरिष्ठ लोगो से दूरी भी उनको भारी पड़ती दिख रही है और वो अपना ही राजनीतिक कुनबा ही पूरी तरह समेट नही पा रहे है ।पर अब वो भी सडक पर आ चुके है ।जहा सिर्फ 30या 35 सीट की लडाई मे अपने चाचा शिवपाल यादव और मुलायम सिंह यादव को बाहर का रस्ता दिखा दिया वही कांग्रेस को 125 सीट दे दिया । यद्द्पि भाजपा के सामने आज तक सपा ही है पर अभी तक सपा और उनके सहयोगी 125/130 सीट से ज्यादा पर बढते हुये नज़र नही आ रहे है पर थोडा व्यव्हार और रणनीति बदल कर उछाल लेने से भी इंकार नही किया जा सकता है । कितना ये उनके व्यहार और रणनीति परिवर्तन पर निर्भर है 

तीसरी  पार्टी बसपा है जिसकी नेता मायावती यदि पैसे की भूखी नही होती और धन वैभव तथा अहंकार से दूर रही होती और अपने मिशन के साथियो को दूर नही किया होता तथा काशीराम के रास्ते पर चलती रही होती तो आज देश की सबसे बडी ताकतवर नेता होती या सबसे बड़े 3/4 मे होती ।पर उनकी कमजोरियों और कर्मो ने उनकी लम्बे अर्से से भाजपा की सत्ता के सामने शरणागत कर दिया और लम्बे समय से दिल्ली मे बैठी वो केवल राजनीति की औपचारिकता निभाती हुयी दिख रही है । उनके कर्मो से उनका वोट ठगा हुआ मह्सूस कर रहा है ,फिर भी उनका वोट है ।इस चुनाव मे भी वो पुराने हथकंडो के साथ मिश्रा जी के कन्धे पर चढ़ कर चुनाव को बस जीवित रहने लायक लड़ना चाह्ती है या भाजपा की बैसाखी बन अपनी सुरक्षा और अपने भतीजे की राजनीति मे स्थापना तक के ही इरादे से उतरना चाह्ती है ये वक्त बतायेगा ।  फिर भी मायावती यदि इस चुनाव मे पैसे का लालच छोड कर और क्षेत्रो के सम्मानित लोगो को ढूढ कर टिकेट देती है और अपने खजाने का कुछ अंश लोगो के चुनाव लड़ने पर खर्च करती है तो वो 40 से ज्यादा सीट जीत सकती है और यदि ढर्रा पुराना ही रहता है तो 19 से भी नीचे ही जायेंगी और कितना नीचे इसकी समीक्षा कुछ समय बाद हो सकेगी ।

चौथी पार्टी कांग्रेस है जिसके लिये इस बार सबसे अच्छा अवसर था क्योकी वो 1989 से ही उत्तर प्रदेश सरकार से बाहर है और प्रियंका के रूप मे ये नया चेहरा उनके पास था पर या तो कांग्रेस का नेतृत्व किसी दबाव मे है या फिर मन से हार चुका है और इतना कुण्ठित हो गया है कि नये विचार और कार्यक्रम सोच ही नही पा रहा है । लोगो को जोडने मे कांग्रेस का विश्वास नही नही है बल्कि स्थापित काग्रेसी इस चक्कर मे रह्ते है की जो है उनको भी कैसे निकाला जाये की उनका एकछत्र राज रहे चाहे बंजर जमीन पर ही सही ।खुद राहुल गांधी पूरे परिवार की पूरी ताकत लगाने के बावजूद अपनी पारम्परिक सीट अमेठी हार चुके है और जब सोनिया जी या राहुल जीतते भी है तो अपने जिले की विधान सभा नही जीता पाते पर अभी ये परिवार स्वीकार नही कर पा रहा है की राजनीति कहा जा चुकी और आप करिश्मा करने वाले नही रहे । वैसे भी इधर कांग्रेस सिर्फ उन प्रदेशो मे चुनाव जीती जहा किसी दल से सीधी टक्कर हो और उस प्रदेश मे कांग्रेस का मजबूत नेता हो जिसने अपने प्रदेश मे अपनी साख कायम रखी हो । बंगाल मे शून्य पर आकर और तमिलनाडु केरल तथा असम मे पूरी ताकत और समय लगाकर भी दोनो कूछ हासिल नही कर सके पर अभी भी अपनी कमजोरियो दूर करने और जमीन की हकीकत समझने का कोई इरादा नही दिखता है ।शायद भाजपा और आरएसएस पर ही निगाह रखते तो कुछ तो कमजोरिया दूर कर सकते थे । सिंधिया छोड सकते है महीनो से पता था पर क्यो नही रोक पाये ,सचिन पाइलट ने 5 साल मेहनत की पर उनकी उपेक्षा क्यो और क्यो कुछ फैसला नही ।मध्य प्रदेश में 28 सीटो का चुनाव था और सत्ता का फैसला होना था पर भाई बहन सहित पूरी पार्टी ने कमल नाथ को अकेला छोड दिया ।इतिहास ही याद कर लेते की 1978 मे सिर्फ एक सीट पर इन्दिरा जी ने कैसे गाव गाव पैदल नापा था और जिस गाव मे जहा जगह मिली रुक गई । सांकेतिक राजनीति का तजुर्बा तो हो चुका भट्टा और परसौल मे । जरा पन्ना पलट कर देख लेना चाहिए कि वो सब कर के कितना वोट मिला दोनो जगह । उत्तर प्रदेश में मे भी कही कांग्रेस इसी तरह चलती रही तो कही बंगाल ही न दोहरा दे और अब भी अपने रंगीन चश्मे उतार दे और राजनीतिक पर्यटन को छोडकर कर डट जाते पूर्णकालिक तौर पर और व्यवहारिक राजनीति कर ले तो शायद कुछ साख बच जाये ।वो सत्ता की तरफ जाने वाला रास्ता और समय तो पीछे छूट गया पर सम्मान बचा सकती है और 2024 के लिये बुनियाद रख सकती है ।पर प्रियंका गांधी ने आकर्षण पैदा किया है और संगठन को धार देने की कोशिश की है जिसका परिणाम है की उनकी बड़ी रैलिया हो रही है ।वो नया एजेन्डा भी सेट कर रही है पर जातिवाद के अति का शिकार उत्तर प्रदेश जाती का तड़का भी चाहता है ।अगर कुछ जातिगत छत्रप साथ हो जाते तो कांग्रस कमाल भी कर सकती है ।

कुल मिलाकर पूरा माहौल भाजपा और योगी विरोधी होने के बावजूद आज की तारीख तक विरोध की अकर्मण्यता,सिद्धांतो से विचलन और धारदार राजनीति का अभाव तथा सुविचारित रणनीति का अभाव भाजपा को फिर मुकुट पहना सकता है ।ऊपर लोगो की जिन आशंकाओ का जिक्र किया गया है उनका जवाब देने और फैसलाकुन युद्द छेड़ने की जिम्मेदारी तो विपक्ष के नेताओ की है ।देखते है की 1989 का सिलसिला जारी रहता है और सत्ता बदलती है या 80 के दशक का कांग्रेस का इतिहास भाजपा दोहरा देती है । यदि विपक्ष रणनीतिक साझेदारी के साथ आरएसएस और भाजपा के धार्मिक और जातीय ट्रैप से बच कर फैसलाकुन लडाई लडने उतर सका तो भाजपा को 100 सीट भी नही मिलेगी और सत्ता परिवर्तन होगा और यदि यही ढर्रा रहा तो भाजपा 160 से 210 तक सीट जीतने मे कामयाब हो जाएगी सारी विपरीत स्थितियो के बावजूद भी । सवालो के जवाबो की प्रतीक्षा जनता को भी है और भविष्य के इतिहास को भी ।