बुधवार, 30 जून 2010

एक विदेशी भारत आया .वापस जाते हुए मुझे मिला |.मैंने पूछा मेरा हिंदुस्तान कैसा लगा ?वो  बोला बहुत अच्छा; बहुत पुराना तथा गौरवशाली इतिहास है, हिंदुस्तान का, लेकिन कोई हिन्दुस्तानी नहीं मिल पाया |.मै नाराज हुआ ऐसा कैसे हो सकता है ,कौन मिला ? ओ बोला कश्मीर में कश्मीरी ,महारास्ट्र में मराठी ,बंगाल में बंगाली ,बिहार में बिहारी और इसके बाद सिख ,बौध ,जैन और फिर पंडित ठाकुर ,पिछड़े ,दलित और फिर उसमे भी पता नहीं क्या क्या और उसके आगे भी पता नहीं क्या क्या ;;बस कोई हिन्दुस्तानी नहीं मिला |;ये मजाक हो सकता है, लेकिन है बड़ा दर्दनाक मजाक और इसके लिए जिम्मेदार  हम सब है  उसके बाद , हमारी शह पाकर इन चीजो की राजनीति करने वाले नेता है |.हम हिदुस्तानी कब बनेगे ? जाति धर्म की सस्ती  लड़ाइया छोड़ कर हम केवल हिन्दुस्तानी कहलाने तथा इसी रूप में पह्चाने जाने  की लड़ाई कब शुरू करेंगे ?आइये उस विदेशी को कल नहीं आज ही जवाब दे और आज और अभी  ये लड़ाई शुरू करे .हम सब एक सौ बीस करोड़ साथी आ रहे है ना इस लड़ाई में एक साथ .जो रोके उसे सामने से हटा दो ,अब इन बुराइयों का नामों निशान मिटा दो .जय हिंद .

शनिवार, 26 जून 2010

जनता और नेता दोनों क्यों भूल जाते है कि दूसरी सरकारों में भी पेट्रोलियम का दाम दस दस बार बढ़ा था .दारू महँगी हल्ला नहीं,कपड़ा महंगा हल्ला नहीं ,गाड़िया  ,होटल ,सोना ,हवाई सफ़र कुछ भी महंगा हो हल्ला नहीं होता,गेहू ,दाल .चावल .सरसों का तेल किसी  भी जीवन के लिए जरूरी चीज का दाम सरकार नहीं बढाती ,इनका मूल्य  पैदा करने वाला किसान भी नहीं बढाता,इन सारी  चीजो का दाम व्यापारी और जमाखोरी करने मुनाफाखोरी करने वाले बढ़ाते है ,ये कुछ खास दलों में बैठे है ,इसलिए इनसे चंदा लेने वाले इनके खिलाफ कोई आन्दोलन नहीं करते ,इनकी चर्चा भी नहीं करना चाहते .दूसरी तरफ    सरकार सुरक्षा ,सड़क ,विकास ,कल्याण ,गाव  का विकास ,चिकित्सा ,शिक्छा इत्यादि सब पर खर्च करे  और विदेश से खरीद कर पेट्रोल सस्ता दे ..जब किसान से खरीद कर यही हल्ला करने वाली ताकते जमाखोरी करती है ,मिलावट करती है तथा किसान से खरीदे एक [१]रूपये किलो के आलू को २० रूपये किलो  में बेचती है ,इसी तरह जब ३० रुपये मीटर का कपड़ा ३०० रूपये मीटर में बिकता है .जब सरकार स्कूटर तथा गाडियों पर से हजारो  रूपया टैक्स घटा देती है तथा चार दिन बाद ही कंपनिया उतना ही  बढ़ा देती है तब कोई हड़ताल नहीं ,हल्ला नहीं ,धरना नहीं .लेकिन जो हमारे देश में नहीं होता तथा बाहर से महंगा आता है उसपर सब्सिडी क्यों दी जाये इसपर बहस होनी चाहिए ,सब्सिडी तों केवल जीवन रक्छक  दवाओ पर हो खाद पर हो गरीबो द्वारा खरीदे जाने वाले समान पर हो ये तों ठीक है .लेकिन लाखो रुपये कि गाड़ी वाले को क्यों मिले ?अगर बहुत दर्द है तों दूसरे देशो कि तरह यहाँ भी लोग सामान्य आवागमन पैदल और साईकिल से क्यों नहीं करते ?देश भक्त है तों पेट्रोल और डीजल बचाए देश का काम अपने उत्पादन से ही चल जाये और मजबूरी में ही बाहर से आयात करना पड़े .फिर दाम नहीं बढ़ना पड़ेगा .देश का कर्जा भी घटेगा .नेता रैलियों में लोगो  का समय और देश का डीजल ,पेट्रोल बर्बाद करने के स्थान पर अपने असली संगठन के माध्यम से सन्देश पहुचाये या टी वी और रडियो पर अपनी बात कह कर काम चलाये .नेता गाडियों का काफिला लेकर ना चले ,जिम्मेदार पदों जैसे राष्ट्रपति प्रधानमंत्री इत्यादि के अलावा सभी नेता बिजी विदाउट बिजनेस होते है अतः हेलिकोप्टर और जहाज का इस्तेमाल ना करे .कार्यक्रताओ को भी दिल्ली और प्रदेश कि राजधानियों में अपने पीछे चक्कर ना कटवाए .अधिकारियो का परिवार गाड़ी का इस्तेमाल सब्जी और पान ,खरीदने के लिए तथा सरकारी काम के अलावा ना करे .व्यापारी भी अकेले अकेले गाडियों का इस्तेमाल न करे .एक स्थान पर जाने के लिए एक गाड़ी का इस्तमाल करे .ज्यादा पेट्रोल खाने वाली गाड़िया चलना बंद करे ,उनके उत्पादन परभी रोक लगे .घने बाजारों में पेट्रोल से चलने वाले वाहन ले जाने पर रोक लगे .पंजाब कि तर्ज पर मुहल्लों में साझा चूल्हों को प्रोत्साहन दिया जाये जहा सभी लोग अपनी रोटी बनवा सके .ऐसे तमाम सुझाव हो सकते है यदि इस देश के लोगो में भी थोड़ी सी राष्ट्रीयता  कि भवना आ जाये तों यह देश कर्ज मुक्त भी हो जायेगा तथा बलशाली भी ,पर करे कौन जब वैसे ही काम चल जा रहा है .जब केवल धरना प्रदर्शन से काम चल जाये तों विरोध के साथ वैकल्पिक सुझाव या कार्यक्रम देने कि क्या आवश्यकता है .सरकारे बदलती है पर विपक्छ के नारे और सत्ता पक्छ का जवाब वही रहता है .जनता कि याददाश्त भी सचमुच कमजोर है या वो याद रखना नहीं चाहती .खैर मजा आ रहा है उन लोगो के बयान देखकर जिनपर कितनी भी महंगाई का कोई असर नहीं हो सकता है और उन लोगो को प्रदर्शन कि अगुवाई करते देख कर जो करोडो रूपया हर महीने पानी कि तरह बहाते रहते है .हो सके तों उन  धन्ना  सेठो के खिलाफ आन्दोलन करना चाहिए जो महंगाई कि जड़ है ,जो एक रूपये  का मॉल सौ रूपये  में बेचते है या जमा खोरी कर चीजो का आभाव बना देते है .इस बात पर भी आन्दोलन होना चाहिए कि फैक्ट्रियो से जो मॉल बने उसकी कीमत उसपर दर्ज हो तथा निति के अनुसार मुनाफा मिला कर बिक्री का दाम भी दर्ज हो .जनता का हक होना चाहिए कि वह जाने कि  किस कीमत के उत्पादन का क्या मूल्य दे रही है .यदि इन सब बातो पर आन्दोलन होने लगे तथा किसान को उसकी उपज में उसकी मेहनत ,जमीन कि कीमत का ब्याज और इसपर लाभ मिलने लगे तों किसान आत्महत्या नहीं करेगा .सवाल तों यह भी बहस में आना चाहिए कि किसान कि पूँजी होती है उसका खेत ,वह भी मेहनत करता है लेकिन उसका परिवार बढ़ने के साथ उसके घर छोटे होने लगते है बेटो कि संख्या के साथ खेत कम होने लगता है लेकिन उससे बहुत कम पूँजी लगा कर व्यापारी केवल दुकान या फैक्ट्री से बड़ी बड़ी कोठिया खड़ी कर लेता है बेटो के साथ कोठियो कि संख्या भी बढ़ने लगती है और दुकनो तथा कारखानों   कि भी .इस दोहरे चरित्र के अर्थशास्त्र पर बहस भी होनी चाहिए तथा निर्णायक आन्दोलन भी होना चाहिए .लेकिन कोई नेता करेगा नहीं क्योकि जनता नारों से ही सत्ता दे दे रही है और गरीबी कि बात करने से ही कम चल जा रहा है तों फिर इस पर बात करने कि क्या आवश्यकता है .जब जातिवाद और धर्म का उन्माद ही राम बाण हो और व्यक्तियों को मीडिया महान बता कर काम चला देता हो तों फिर मौलिक परिवर्तन के बारे में क्या सोचना और गरीब .मजदूर ,किसान ,बेरोजगार तथा साधारण नौकरी पेशा के बारे में क्यों सोचना ?बात पेट्रोल से शुरू हुई पेट्रोल बचाने से  लेकर दोहरे नारे और दोहरी नीतिया ,जनता कि दोहरी जिंदगी ,दोहरे मापदंड और परिणाम तथा भविष्य तक पहुच गयी .बात कही का ईंट कही का रोड़ा लग रही हो लेकिन बात जुडी हुई भी है और इस पर एक ना एक दिन बहस भी करना पड़ेगा तथा फैसला भी लेना पड़ेगा .मै भारत कि राजनीतिक व्यवस्था के भविष्य कि दीवार पर यह सन्देश  लिखा हुआ पढ़ रहा हूँ .

बुधवार, 23 जून 2010

आज कश्मीर में फिर एक कर्नल शहीद हो गए .ये वीरो कि भेट हम कब तक चढाते रहेंगे .जब जब सीधा युद्ध हुआ है हमने १९६२ के अलावा  जो हिंदी चीनी भाई भाई का नारा लगाने वाले के धोखा देने के कारण हुआ था ,हम सभी युद्ध जीते ,शान से जीते .लेकिन ये कायराना युद्ध हमें भारी पड़ रहा है .युद्ध में शहीद होने वालो से कई गुना ज्यादा हमारे सिपाही जान गवा चुके है .जब सीधा युद्ध भी होता है तों १: अंतररास्ट्रीय दबाव और हस्तक्छेप होता है २:युद्ध में हमारे सिपाही तथा अफसर शहीद होते है ,इस शिखंडी युद्ध के मुकाबले नगण्य ३:युद्ध में हथियार खर्च होता है ४:युद्ध में पैसा खर्च होता है ५:युद्ध में देश आपातकाल से गुजरने के कारण अनिश्चितता में जी रहा होता है .
इस दुश्मन के शिखंडी युद्ध में पैसा खर्च हो  रहा है युद्ध से ज्यादा ,सिपाही और अफसर शहीद हो रहे है युद्ध से ज्यादा ,हथियार खर्च हो रहा है युद्ध से ज्यादा ,स्थाई आपातकाल लगा है पूरे देश में ,पता नहीं कब कहाँ  आतंकवादी हमला हो जाये ,या बम फट जाये और कश्मीर जो जन्नत कहा गया है उसे तों स्थाई युद्ध भूमि में बदल दिया है कुछ कायर लोगो ने .अनिश्चतता इतनी के कही भीड़ भरे इलाके में जाने में लोग घबराते है और उसपर भी दुनिया के देश शांति तथा दोस्ती का सन्देश देने के नाम पर अघोषित हस्तक्छेप ही कर रहे है .
और  जब सारी स्थितिया युद्ध कि ही है ,देश को युद्ध से ज्यादा देना और भुगतना पड़ रहा है ,संबंधो के बीच कि दीवारे गिरने के स्थान पर छल कपट कि इंटो और अविश्वास के गारे से और ज्यादा मजबूत होती जा रही है तथा इसमे घाटे में केवल हमारा देश है ,पडोसी दुश्मन तों दुनिया के दादाओ  से आतंकवाद से लड़ने के नाम पर खूब पैसा तथा हथियार पा रहा है तथा उसे इस कायराना लड़ाई में हमारे खिलाफ ही इस्तेमाल कर रहा है .ये भी हो सकता है कि दुनिया को अपनी मुट्ठी में रखने कि इच्छा
रखने वाले देशो कि निति ही यही हो कि भारत तेजी से बढ़ रहा है ,एक बड़ी ताकत बनता जा रहा है ,इसे रोकने के लिए दुश्मन को मजबूत करो और कितना भी मजबूत होकर ओ भारत से सीधी लड़ाई जीत नहीं सकता है इसलिए ऐसी लड़ाई करवाते रहो जिससे भारत का विकास रोका जा सके ,उसका स्वतंत्र आवागमन बाधित हो ,जनता में अविश्वास पैदा हो .ये अलग बात है कि ये सब उनकी गलतफहमी ही साबित हो रहा है .
वे शायद भूल गए है कि ये वही देश है जिससे उन्हें एक लंगोटी पहने हुए शख्स ने बिना एक बूँद खून बहाए भागा दिया था .जिस देश के सुभाष नमक एक व्यक्ति ने उनकी पूरी सत्ता जिसपर उन्हें गुमान था को धोखा देकर ना केवल देश से निकल गया बल्कि बिना किसी साधन के फ़ौज खड़ी कर ली और सिंगापुर से जीतता हुआ भारत के अन्दर तक घुस आया .ये वही देश है जिसके नौजवानों ने उनकी संसद में घुस कर बम फेका था .ये वही देश है जिसमे बिना संचार साधनों के पूरे देश में सन्देश फैला कर  मंगल पाण्डेय ने एक युद्ध ही छेड़ दिया था ,और ये वही देश है जिसके जवानो ने अकेले रह जाने पर भी कई पेटन टंक तोड़े है
तथा चौकिया जीती है .पता नहीं इस देश को अपने जैसा कायर देश समझने कि भूल कैसे कर बैठे है कुछ देश .
लेकिन युद्ध तों चल रहा है ,हम मर भी रहे है ,बहुत कुछ खो भी रहे है .तब सवाल ये उठता है कि ये युद्ध उसी तरह क्यों लड़ा जाये जैसा दुश्मन चाहते है ,क्यों ऐसे लड़ा जाए जिसमे पता ही नहीं होता है कि दुश्मन कहा है और बिना हथियार उठाये ही हमारे जवान मर जाते .क्या हमारे बहादुर जवानो को शोभा देता है कि वे बिना दस बीस को मारे शहीद हो जाये .देश को तय तों करना ही पड़ेगा कभी ना कभी कि जवान शहीद हो तों सर उठा कर और जीत का नारा लगा कर शहीद हो .दुश्मनों को एक बार फिर १९७१ का सबक तों देना पड़ेगा या उससे भी ज्यादा कि फिर सौ सालो तक वो ऐसा या वैसा कोई भी युद्ध लड़ने कि सोच भी ना सके .तब इंडिया गेट पर खड़े हो कर ए आर रहमान गायेंगे :माँ तुझे सलाम :तथा लता दी गायेंगी :ये मेरे वतन के लोगो जरा आँख में भर लो पानी जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो क़ुरबानी :और हम सब मिल कर गायेंगे :जवानो की  माएं कितनी  रातो से  सोई  ही नहीं है ,माँ का तिलक किया  जवानो ने  अपने खून से ,सरहदो  की लकीर खींची है अपने नाखून से ,लजा ना जाये बेटो कि शहादत और उनका दूध  इसलिए शहीदों की माताएं  कभी रोई ही  नहीं है .आओ तिरंगा उतना ऊँचा उठा दे  ,कितनी भी दूर दुश्मन सबको दिखाई दे .इस झंडे को छूने कि सोच हांफ  जाये ओ ,इक कदम बढे तों  डर से कांप जाये ओ .