शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

बहस खेती बनाम पूंजीपति की

गाँव किसान का दर्द और बहस खेती बनाम पूंजी की 

इस समय किसान के खेत का आलू और सब्ज़ियाँ आने लगी तो कितना सस्ता मिल रहा है सब । उससे पहले व्यापारी के गोदाम का था तो आलू ही 50/60 मिल रहा था जिसे गरीब की सब्ज़ी कहते है । यही हाल सब चीज़ का है । किसान पूरी मेहनत से पैदा करता है पर उसके पास भंडारण की क्षमता नही है और 80 प्रतिशत किसान छोटे या सीमान्त किसान है जो सिर्फ उतना ही पैदा कर पाते है की वो खा ले और बाकी बेच कर उसे तत्काल कर्ज चुकाना होता है ,इलाज करवाना होता है जो वो रोके होता है फसल तक ,जरूरी कपडा हो या खेती का सामान या फिर गाय भैस सब उसी मे से आगे पीछे करना होता है ।बच्चो की किताब हो या बेटी को शादी सब करना होता है कुछ नकद और कछ उधार जो उसे गाँव या पास के व्यापारी से मिल पाता है खेत और फसल की गारन्टी पर पैसे की सीमा के अनुसार ।इन्ही तत्कालिक जरूरतो के कारण उसे खाने लायक रोक कर अपनी फसल तत्काल बेचना होता है और इसी बात का फायदा उठाता है व्यापारी ।
एक बार मैने प्रैक्टिकल करने के बाद लिखा था जब मैं आगरा की  मंडी के पास एक कालेज मे गया था तो सोचा की जरा सेब का भाव देखा जाये तो वहाँ 5 किलो या ज्यादा लेने पर सेब 40 रुपया किलो मिल रहा था । मंडी के बाहर की ठेल वाले से पूछा तो 60 हो गया था । फिर केवल 1 किलोमीटर दूर सिकंदरा पर खड़ी ठेल से पूछा तो 80 हो गया ।जब और आगे खन्दारी पर पूछा तो 90 और 100 था और जब शहर के अंदर हरी पर्वत चौराहा पर पूछा तो 120 से कम करने को तैयार नही था ।जिस समय आलू पैदा होता है किसान के खेत से 2 रुपए किलो तक चला जाता है और कभी कभी बोरे की कीमत मे ।कभी तो ये हाल हो जाता है कि किसान वही बाहर आलू फेंक देता है की जो ले जाना चाहे वो ले जाये ।गन्ने के साथ भी हम अक्सर देखते है की गन्ना खेत मे ही जला देते है और टमाटर सड़क पर फेंकते दृश्य भी देखे है ।
पर कभी बिस्किट , कोक ,या फैकट्री की चीजे फेंकते तो नही देखा न दवाई केचप या चिप्स ।और अगर कोई कारण फेकने का आया तो मालिक खुद फैक्ट्री मे आग लगवा कर उससे ज्यादा इन्शीरेंस वसूल लेता है पर किसान के मामले मे इन्श्योरेन्स वाला 10 हजार करोड़ कमाता है और हजारो किसान आत्महत्या करते है क्योकि उनका इन्श्योरेन्स उनका वाजिब मुवावजा देता ही नही है ।
नेता बड़े बड़े वादे किसानो से करते है पर विपक्ष मे और सत्ता मे आते ही पूंजीपतियों के पाले मे खड़े हो जाते है इसलिए किसान बदहाल है वर्ना एक समय तक तो पूरा भारत इसी खेती से ही जिन्दा था और सोने की चिडिया था ।तब कहा थे कारखाने और पूंजीपति । 
यहा तक की लाक डाउन मे भी जब सब बंद था होटल कारखाने जहाज कारे और कपडे भी आल्मारी मे थे तो जरूरत सिर्फ खाने का अन्न , सब्जी दूध सभी को और जो बीमार थे उनको दवाई की पड़ी और किसान ने कोई चीज कम नही होने दिया ।जब मंदी का असर भी कही आता है तो कल कारखाने और दफ्तर लडखडाते है पर खेती उस समय भी देश और समाज को सहारा देती है थामती है और देश को डूबने नही देती ।पर इसका उतना ही उपेक्षित रखा गया और रखा जा रहा है जबकी अमरीका इंग्लॅण्ड जैसे देश खेती को भारी आर्थिक सहयता देते है ।

एक सवाल हमेशा से कचोटता है की जो लोग हमारे सामने जमीन पर रख कर थोडा सा सामान बेच रहे थे या साइकिल पर बेच रहे थे या छोटा मोटा लकडी का खोखा लगाकर बेच रहे थे वो देखते देखते बडी पक्की दुकान के मालिक हो गये ,बडी बडी कोठियो के मालिक हो गये या तक की फैक्ट्री और होटलो के मालिक हो गये और उनके परिवारो मे जितने लडके होते गये उनके उतने करोबार और कोठिया बढती गई ।जब सवाल करो तो कहा जाता है की उसने पैसा लगाया और मेहनत की ।पर किसान भी तो पैसा लगाये बैठा है और अधिकतर मामलो मे इन व्यापारियों से ज्यादा क्योकि किसान का खेत लाखो का है ।उसमें वो खर्च भी करता है बीज पानी खाद पर और दिन रात जाड़ा गर्मी बरसात उसमे पसीना बहाता है ।बिना जान की परवाह किये उसकी रखवाली करता है और कभी बाढ तथा कभी सूखा और कभी फसल तथा पशु की बीमारियो का सबसे ज्यादा रिस्क भी लेता है तो किस मामले मे वो व्यापारी से पीछे है ये सवाल सत्ताओ से भी है और समाज से भी ।उसकी फसल प्राकृतिक आपदा का शिकार होती है तो उसे नाम मात्र का मिलता है ।और बडा सवाल है की व्य्पारी के बच्चे बढे तो व्यापार और घर बढ़ जाते है पर किसान के खेत और मकान छोटे होते जाते है क्यो ? 
किसी किसान को बड़ा होते नही देखा अगर उसके परिवार के कुछ लोग नौकरी या किसी व्यापार मे लग गये तभी उसका जीवन थोडा ठीक होता है वर्ना उसका बेटा फौज मे जाकर जान हथेली पर लिये सिर्फ इसलिए खड़ा रहता है किसी भी परिस्थिती मे सीमा पर ताकी साल के अन्त मे वो कुछ पैसे बचा कर गाँव ले जाये जिससे घर की कुछ जरूरते पूरी हो सके ।
जाह तक फसल कही भी बेचने का सवाल है वो नियम पहले से है पर ८० % से ज़्यादा किसान अपने ब्लॉक या पास की मंडी के बाहर कभी नही जाते क्योंकि उतना उत्पादन ही नही है । 
उनके निकट मंडी बना और हर हाल में उनकी उपज ख़रीद कर और स्वामीनाथन आयोग के अनुसार मूल्य देकर तथा उद्योग की तरह सुरक्षा और इंश्योरेंस देकर ही उसका भला किया जा सकता है तथा उसे कृषि में और गाव में रोका जा सकता है 
गांधी जी की दृष्टि आज भी ठीक है की आसपास के २० गाँव अपनी ज़रूरतें वही से पूरा करे इसके उनका मतलब उन सब चीज़ को भी वही डेवलप करने से था जिनकी ज़रूरत पड़ती है स्कूल कालेज अस्पताल तथा स्थानीय उपज से जुड़े छोटे उद्योग भी ।
नौकरी वालो की तन्ख्वाह पिछ्ले 25सालो मे 250 गुना तक बढी और पूंजीपतियों की संपत्ति तो हजारो गुना पर किसान के फसल की कीमत 19या 20भी मुश्किल से कुछ चीजो की ।
व्यापारी का लाखो करोड़ का कर्जा सरकार माफ कर देती है या बट्टे खाते मे डाल देती तो किसान को भी उतनी ही मदद क्यो नही देती ।नौकरी बाले के बच्चो को अगर पढाई का मिलता है, घर मिलता है उसका मेन्टीनेंस मिलता है, फ़्री बिजली मिलती है ,मेडिकल मिलता है घूमने का पैसा मिलता है तो किसान के बच्चे की पढाई और उसका इलाज क्यो न मिले ? उसको फ़्री नही तो सस्ती बिजली और डीजल क्यो न मिले , उसकी बेटी की शादी की सहयता क्यो न मिले ? उसको चाहे 10 साल मे एक बार ही सही घर ठीक कराने के पैसे क्यो न मिले और प्राकृतिक आपदा आने पर उसका कर्जो माफ क्यो न हो ? 
भारत का मूल गाँव , किसान और खेती है उसे मजबूत करना ही होगा  गांव को शहरो की बराबरी पर विकसित करना ही होगा ।क्या ये तय नही हो सकता कि जो शहर मे एक स्कूल कालेज ,अस्पताल और फैक्ट्री बना रहे है उन्हे उस जिले के गाँव मे भी बनाना ही होगा और उसके लिये लाल फीताशाही खत्म कर , पुलिस का आतंक और शोषण खत्म कर उसे गाँव मे लोगो को सुरक्षा का एहसास कराने की मूल जिम्मेदारी देकर तैयार करना होगा जिससे ये सब खोलने वाले तथा उसमे काम करने वाले शौक से गांवो मे जाने को तैयार हो ।
बहस बडी है पर समय भी बडा है तो कोई तो होगा जो बडा सोचेगा महात्मा गांधी के संदेश समझेगा और भारत को कर्जो से लड़े तथा जनता के पैसे से बडा आदमी बने लोगो का देश नही बल्की खुशहाल गाँव और खुशहाल लोग वाला भारत बनाएगा ।
पर पहले उन सवालो का जवाब ढूढना होगा और सत्ता को जवाबदेह होना होगा जो ऊपर उठे है ।

जिंदगी के झरोखे से ,मन्डलीय सम्मेलन और 14 लाख की थैली

#जिंदगी_के_झरोखे_से 

#1991_मंडलीय_सम्मेलन_और_14_लाख_की_थैली 

बात 1991 के चुनाव के बाद की है पता नही वो घटना अभी तक मैने लिखा या नही जब रात भर चुनाव परिणाम देखने के बाद मैं सुबह ही मुलायम सिंह यादव जी के घर पहुचा था और इतने बुरे परिणाम से वो बेचैन थे ,जबकी पहले ही दिल्ली से लौटते हुये शिवपाल जी कर घर पर उन्हे मैं ऐसे परिणाम की आशंका जाता चुका था प्रदेश का चुनाव देखने के कारण पर सारे अधिकारी और इंटेलीजेंस एजेंसियां उन्हे 125 से 150 तक की रिपोर्ट दे रही थी ।
केवल 29 एम एल ए और चंद्रशेखर जी समेत केवल 4 एम पी सीट सत्ता मे रहते उनको विचलित कर गई थी ।
मिलते ही बोले कि अयोध्या के कारण ये तो सारी जनता नाराज हो गई है इत्यादि । मैने कहा कि छोटा हूँ पर एक बात कहना चाहता हूँ कि अब हमे इसी स्टैंड पर कायम रहना चाहिये । आप ने कुछ बुरा नही किया बल्की मुख्यमंत्री होने के कारण संविधान की रक्षा किया है और उस पर आप को गर्व होना चाहिये । ये ठीक है की संघ अभी जहरीला प्रचार कर कामयाब हो गया पर कल जब लोग समझेंगे की देश तो संविधान और कानून से ही चल सकता है न कि दंगो से तो यही प्रदेश आप को फिर वापस लाएगा ,और हम दोनो चाय पीने बैठ गये और उसी समय ये भी तय हुआ की मात्र 7 दिन मे चुनाव लड़े विधनसभा के 425 और लोक सभा के 85 लोगो की बैठक बुला लिया जाये (इसका किस्सा अलग से ) ।कल्याण सिंह की सरकार बन गई थी ।
पर सरकार जाने के बाद बडा संकट था और पार्टी चलाने मे दिक्कत हो रही थी क्योकि इस मुख्यमंत्री काल मे मुलायम सिंह जी ने पैसे के बारे मे सोचा ही नही था और जहा तक मुझे पता है सिर्फ एक मामले मे ओम प्रकाश चौटाला ने कुछ दिया था जो दिल्ली से टी सीरीज कैसेट के डिब्बो मे ले जाया गया था और जो आया भी वो चुनाव मे खर्च हो गया था । दो बार तो त्योहार के मौके पर भी हम दफ्तर के स्टाफ को तन्ख्वाह नही दे पाये तब मैने तपन दादा को कुछ रुपए दिये की वो जगजीवन और शरमा इत्यादि बराबर बराबर बांट ले और त्योहार मना ले ,तपन अब बुजर्ग हो गये है पर है और जगजीवन तो आज बहुत रईस भी है और एम एल सी भी । इसी तरह मुलायम सिंह जी के घर का फ़ोन कट गया और कई दिन बाद जुड़ा तब एक दिन मैने महामंत्री के रूप मे लोगो का आह्वान कर दिया की जितना मन हो चाहे 5/10 रुपया ही सही मुलायम सिंह यादव जी को मनी ऑर्डर करे ।जो भी पहुचा मैने पूछा नही ।
2 महीने बाद ही मुलायम सिंह यादव जी एक सामाजिक कार्यक्रम के लिये आगरा आये और जैसा की हमेशा होता था कि अन्त मे प्रेस से मुलाकात मेरे निवास पर होती थी । उस दिन भी हुयी ।
प्रेस के बाद इटावा जाना था तो बोले की आप भी चलिये रास्ते मे बात करते चलेंगे और आज ही ट्रेन पकड़ कर लखनऊ जाना है तो आप उसके बाद वापस आ जाईयेगा ,ऐसा अक्सर ही होता था उस दौर मे । मुझे ऐसा याद आता है कि उस दिन देश के जाने माने कवि और हमारे सांसद उदय प्रताप जी भी साथ थे जिन्होने बाद मे मुझसे शिकायत किया था कि रास्ते भर आप दोनो ही बात करते रहे और मैं तो महज श्रोता बना रहा ।
हम लोग इटावा सिचाई विभाग के डाक बंगला पहुचे जहा शायद मुलायम सिंह यादव जी के आने की खबर नही दी गई थी तो जिस सुईट मे ये रुकते थे पुलिस के किसी डी आई जी को आवंटित हो गया था । मैने वहा के व्यवस्थापक को हड़काया कि आवंटन किसी का हो पर जब प्रोटोकोल मे बडा व्यक्ति आ जाता है तो वो आवंटन अपने आप निरस्त हो जाता है ।खैर डरते डरते की साहब मेरे खिलाफ कुछ न हो जाये उसने कमरा खोल दिया ।मुलायम सिंह जी अंदर गये और बस बाथरूम होकर बाहर आ गये कि अच्छा मौसम है ,बाहर पार्क के चबूतरे पर बैठते है जबकी जून आखिर या जुलाई का आरम्भ था और तेज गर्मी थी ।
खैर हम लोग वही बैठ गये । मुलायम सिंह यादव जी का मानना था को कम से कम एक साल चुपचाप आराम किया जाये और राजनीतिक गतिविधिया बंद रखा जाये क्योकि अभी कही भी निकलने पर जनता का गुस्सा झेलना पड़ सकता है ।
मैने कहा की मैं इस बात से सहमत नही हूँ और वही मैने बीजेपी तथा आरएसएस के गढ आगरा से ही तत्काल कार्यक्रम शुरु करने को आमंत्रित किया । वो सहमत नही थे पर मेरे जोर देने पर मान गये की प्रदेश कार्यकारिणी और वरिष्ठ नेताओ की बैठक कर इसपर बिचार हो जाये तो मैने कहा की देर क्यो हो तत्काल बुला लिया जाये और शायद एक हफ्ते बाद ही वो बैठक बुला ली गई लोहिया ट्रस्ट के हाल मे ।वहां मैने सबसे पहले अपनी बात रखा और तर्क की क्यो तत्काल बाहर निकल कर सक्रिय हुआ जाये और आगरा से ही क्यो । तब कुछ लोगो ने कहा की आगरा मे पार्टी नही है और पार्टी का कोर वोटर नही है कार्यक्रम फ़ेल हो सकता है तब मैने आश्वस्त किया कि आगरा मंडल का कार्यकर्ता सम्मेलन रखा जाये और बाकी सब मुझ पर छोड दिया जाये और उसी मे मैने प्रस्ताव रख दिया कि पार्टी चलाने के लिये 5 से 10 लाख तक की थैली भेंट करने की कोशिश भी की जाये और कार्यक्रम तय हो गया सम्भवतः अगस्त की कोई तारीख तय हुयी ,हम लोग मई अन्त मे चुनाव हारे थे ।
मैं वापस आगरा आया और सबसे पहले कागज पर योजना और अनुमानित बजट तथा अपना कार्यक्रम बनाया और दूसरे दिन ही आगरा का सर्किट हाउस तथा सूर सदन हाल बुक कर दिया तथा बाहर पार्किंग मे लगाने के लिये पंडाल और बैठने का इन्तजाम की भीड ज्यादा हो तो अव्यवस्था न हो और अपने एक दोस्त के बात कर गैलरी से बाहर के पंडाल तक देश के किसी भी कार्यक्रम मे पहली बार क्लोस सर्किट टीवी का इस्तेमाल की व्यव्स्था भी । शाम को आगरा मे जो थोडी बहुत पार्टी थी जनता दल टूटने के बाद जिसमे अधिकतर मेरे द्वारा जोड़े गये 8/10 लडके थे उनकी मीटिंग किया और सबको काम अभी से बता दिया । अपने एक दोस्त के होटल मे आने वाले लोगो के लिये 5000 पैकेट खाना बनाने की बात तय कर दिया ।
आगरा के अन्य नेताओ से कह दिया की मुलायम सिंह के आगरा आने से लेकर जाने तक ठहरना , पूरे सम्मेलन का खाना, शहर भर मे स्वागत द्वार और स्वागत , वाल राइटिंग, गाडियाँ इत्यादि सब मेरी जिम्मेदारी और बाकी लोग थैली के लिये धन एकत्र करे ।
इसके बाद मैं मंडल भर के सभी जिलो के दौरे पर निकल गया सभी जिला अध्यक्षो को बता कर और तब तक मंडल बटा नही था अलीगढ़ भी इसी मे था । सभी जिलो मे मैं सम्मेलन और थैली के लिये माहौल बनाने मे कामयाब रहा ।
सम्मेलन से दो दिन पहले से पूरे महात्मा गांधी मार्ग पर वाल राइटिंग मैने खुद भी किया ,खम्भो पर चढ़ चढ़ कर झंडे और बैनर मैने खुद भी बाधे ताकी कार्यकर्ताओ मे उत्साह रहे क्योकि वो धन का नही जन का जमाना था और राजनीती के ये सब काम कार्यकर्ता ही करते थे और हम जैसे लोग तो छात्र राजनीति से ही करते आ रहे थे ।
कार्यक्रम के एक दिन पहले कई दिनो से आता मुलायम सिंह जी का फ़ोन फिर आया कि अभी भी कार्यक्रम रद्द कर दीजिये फेल जो जायेगा और मैने कहा की आप ट्रेन पकड़ लो रात को सुबह मैं स्टेशन पर मिलूंगा ।
उस दिन सुबह 4 बजे मैने कार्यक्रम स्थल की व्यवस्थाये देखा और खुद मंच के पीछे का बडा बैनर टंगवाया और फिर स्टेशन रवाना हो गया । मुलायम सिंह जी और साथ मे आज़म खान साहब आये थे । अपनी योजना के अनुसार पहले स्टेशन के सामने किले के गेट पर अम्बेडकर मैदान मे बाबा साहेब अम्बेडकर की मूर्ति पर इन लोगो से माल्यार्पण करवाया और फिर सर्किट हाऊस पहुचा कर ये कह कर घर आ गया कि आप लोग तैयार हो जाइये और लोगो से मिलिये 10 बजे  निकलेंगे हम लोग ।
घर आया थोडी देर लेटा पर नीद कहा तो उठ कर नहा धोकर तैयार हो गया और 9,45 पर फिर सर्किट हाऊस पहुच गया ।
हम लोग बड़े काफिले के साथ वहाँ से निकले और महत्मा गांधी तथा अन्य महापुरुषो की मूर्तियो पर माल्यार्पण करते हुये काफिला महात्मा गांधी मार्ग पर निकला जिसपर समाज के सभी समाजो तथा धर्मो की तरफ से अलग अलग चौराहो पर स्वागत द्वार पर स्वागत हुआ तथा दो स्थानो पर मुलायम सिंह जी को सिक्को से तौला भी गया और जब हम लोग कार्यक्रम स्थल पर पहुचे तो बाहर ही बडा हुजूम था । अंदर गये तो एक एक सीट पर किसी तरह अटक कर दो दो लोग बैठे थे और सारी सीढियां ही नही बल्की मंच के सामने का खाली स्थान भी भरा था और मंच पर भी तिल रखने को जगह नही थी क्योकि सारे पूर्व और वर्तमान सांसद , विधायक , सभी प्रमुख पदाधिकारी तथा अध्यक्ष इत्यादि मंच पर आ गये थे और मेरे तथा पड़ोस मे रहने वालो के बच्चे भी जबकी मेरे प्रोफेसर पिता तथा पत्नी इत्यादि भी नीचे कार्यकर्ताओ मे बैठे थे ।
दो बात का जरूर उल्लेख करना चाहूँगा कि  मैने अपने कार्यकर्ताओ से कहा था कि जिसकी जहा जिम्मेदारी है वही रहेगा यहा तक की मुलायम सिंह भी सामने आ जाये तो नही हिलना है और बाद मे मैं सबको मिलवाउंगा और साथ फोटो भी करवाउंगा , दूसरा मैने ऐसी व्यव्स्था किया था कि पानी के लिये बस इशारा करिए आप तक पहुच जायेगा और खाने के समय भी सब अपनी जगह ही रहे वही अधिक से अधिक 15 मिनट मे सबको खाना और पानी मिल जायेगा और वही हुआ भी किसी कार्यक्रता ने अपना काम नही छोडा और सारा वितरण मेरी योजना अनुसार ही हो गया ।
मुलायम सिंह जी चाहते थे की अपने स्वागत भाषण और राजनैतिक भाषण के बाद कार्यक्रम का संचालन मैं ही करू पर मेरी ये कमी है की कोई जिम्मेदारी लेने के बाद उसके हर पहलू पर निगाह रखना तथा समय पर व्यवस्थित रूप से चीजो करवा लेना मेरी बेचैनी मे शामिल रहता है इसलिए भाषण के बाद और पूरे कार्यक्रम का ब्योरा देने के बाद मैने पूर्व सिचाई मंत्री बाबू राम यादव से संचालन का आग्रह किया और फिर बाकी सब व्यवस्थित करने मे लग गया जिसका जिक्र ही अखबारो ने किया की सी पी राय मंच पर रहने के बजाय लगातार भाग दौड करते रहे ,करता भी क्यो नही कोई बडी और प्रशिक्षित तथा संपन्न पार्टी तो थी नही ,साधन विहीन ,कमजोर पार्टी थी और आगरा मे सब नये नौजवान थे मेरे जोड़े हुये तो लगता था कही परेशान न हो जाये ।
हा दो दिन पहले लगातार 2/3 घंटे बैठ कर मैने राजनीतिक प्रस्ताव , आर्थिक प्रस्ताव इत्यादि लिख कर प्रिंट करने भेज दिया था और फ़ाईल और कार्यक्रम के पहले वाली रात कई लोग फाइल बनाने मे लगे रहे मेरे घर के बाहर बनी झोपड़ी मे बैठ कर जिसमे कुछ लोग बाद मे बहुत महत्वपूर्ण हो गये और मेरे प्रोफेसर पिता रात को उन सभी को बना बना कर ट्रे भर भर चाय पिलाते रहे और साथ बैठ काम भी करवाते रहे और घर के अंदर मेरी पत्नी और बच्चे भी क्योकि 5000 फाइल बननी थी ।
कार्यक्रम के प्रारंभिक औपचारिकताओ के बाद थैली भेंट होनी शुरु हुयी । वादा किया था कि 10 लाख की कोशिश होगी पर 5 तो होगा ही और भेट किया सब लोगो ने मिल कर 14 लाख जिसके लिये मैने पहले खरीदी अटैची जिसकी दुकान पास ही थी वापस भेज कर बडी अटैची मंगवाया और मथुरा के पंडित राधेश्याम शर्मा ने 50 ग्राम सोना भेट किया ।
दिनभर तमाम नेताओ का भाषण हुआ और अन्त मे मुलायम सिंह जी का नम्बर आया ।वो बहुत भावुक हो गये थे ऐसे स्वागत और कार्यक्रम से तो बोले कि मैं पहले भी कई बार आगरा आया हूँ , चौ चरण सिंह के साथ भी आया जब तीन विधायक थे तो कार्यक्रम रतन मुनी जैन इंटर कालेज मे हुआ था । मैं कल तक सी पी राय से कहता रहा की कैन्सिल कर दीजिये पर इनका आत्मविश्वास था और बोले की बस आप आ जाइये और आज सर्किट हाऊस से यहा तक हर चौराहे पर स्वागत हुआ । यहा भी इतनी भीड हो गई है को अंदर ,बाहर गैलरी और उसके बाहर का पंडाल भरा है और पहली बार मै ये देख रहा हूँ की बाहर वाले लोग भी सब लोग बाहर लगे टीवी पर सब कुछ देख और सुन रहे है । सी पी राय ने उतने अच्छे सब प्रस्ताव लिखे है और बहुत अच्छा सारा इन्तजाम किया है और अनुशासन के साथ सारा इन्तजाम ।
मेरी निगाह मे  यह कार्यकम भीड से ,प्रस्ताव से अनुशासन से , व्यव्स्था से और राजनीती के लिये सर्वश्रेष्ठ कार्यक्रम है और इसका श्रेय केवल सी पी राय को जाता है ।मैने सोचा था 5 लाख नही तो कुछ तो मिलेगा ही पार्टी चलाने को पर यहा तो 5 क्या 14 लाख रुपया और सोना भी मिला है । सी पी राय ने ये कैसे सम्भव किया इनसे बाद मे पूछूंगा पर पार्टी आज से फिर चल गयी और इसके लिये सी पी राय को याद रखा जायेगा ।
नेता के सामने भीड हो और सब अच्छा हो तो जोश तो आ ही जाता है ।जबरदस्त भाषण दिया मुलायम सिंह जी ने और उनके पहले आज़म खान साहब ने भी । काफी बडी संख्या मे नेता लोग बोले ।
सम्मेलन के बाद मैने सूर सदन के बाहर पोर्च से सार्वजनिक सभा को संबोधित करने का इन्तजाम पहले से ही कर रखा था तो मुलायम सिंह को पोर्च पर ले गया । ये बात उनको पहले से नही बताया था ।शाम करीब 5 बज रहा था एम जी रोड पर भीड का समय था और सभा के कारण बडा जाम लग गया ।
सभा के बाद मेरे निवास पर प्रेस से वार्ता और भोजन था । अपने निवास पर मैने कार्यकर्ताओ से उनको मिलवाया ।मुलायम सिंह जी गदगद थे और मेरे सभी कार्यकर्ता भी पर जब स्टेशन उनको छोड़ने गया अपने निवास से तब तक मेरे गले की आवाज मेरा साथ छोड चुकी थी पर तसल्ली इतनी थी की पार्टी को मैने फिर से रफ्तार दे दिया था धन से भी और आत्मविश्वास से भी और खासकर मुलायम सिंह जी का आत्मविश्वास लौट आया था जो बहुत जरूरी था और फिर हम लोग निकल लिये पूरे प्रदेश मे ।
मैने तो बस इमानदारी से अपना कर्तव्य निभाया था ।
कुछ छूट गया होगा तो वो आत्मकथा मे मिलेगा ।

गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

संगम इलाहबाद का

#जिंदगी_के_झरोखे_से

--जब सुबह जगा कर एडीएम साहब #संगम ले गए थे --

उस दिन सुबह संगम के दृश्य । 

न जाने कितनी बार आया था #इलाहबाद पर उस दिन सुबह उठ कर उगते हुए सूर्य की किरणों के साथ संगम जाना और वहा दो नदियो या कहे की दो संस्कृतीयो और दो बहनो गंगा और यमुना का मिलन देखना सचमुच बहुत सुखद अनुभूति रही ।
एक दिन पहले कलक्टर साहब से बात हुई थी तो बोले की संगम गए है या नही और नही कहते ही उन्होने फरमान सुना दिया की सुबह तैयार रहियेगा फला एडिएम साहब संगम प्रेमी है वो  आप को ले जायेंगे । मैं सोचने लगा कि कहा मेरे मुह से नही निकल गया , क्या सचमुच इतनी सुबह आ जायेंगे एडीएम साहब , ना आये तो अच्छा । पर वही हुआ सुबह ही करीब 4,45 पर एडीएम साहब ने सर्किट हाऊस जो कलक्टर साहब जो मेरे मित्र थे उन्होने ही बुक करवाया था के मेरे कमरे का दरवाजा खटखटा दिया और फिर उनके साथ गाडी पर संगम जाना ही पडा ( किसी मुसीबत की तरह जो मेरे चेहरे पर साफ दिख रही है फोटो मे , पर वहा पहुच कर थोडी देर बाद एहसास हुआ की सचमुच मैं आज के पहले एक बहुत अच्छे अनुभव और मनोरम दृश्य से वंचित था ) जहा एक शायद सरकारी वोट तैयार थी और ए डी एम साहब के कोई नीचे वाले कोई कर्मचारी पहले से ही पहुच कर तैयारी किये हुये थे ।
खैर --
सूरज उग रहा था और उनकी किरणे गंगा और जमुना के हरे और सफ़ेद पानी को सुनहरा बना रही थी ।क्या मनोहारी दृश्य था और इतनी सुबह की आस्था का सैलाब उमड़ा हुआ था ।ना जाने कितनी नावो में भरे हुए लोग इस ठिठुरती ठण्ड की परवाह किये बिना आये हुए थे की बिलकुल संगम स्थल पर ही आचमन लेंगे या डुबकी लगाएंगे ताकि ,जो भी उनकी मनोकामना या इच्छा हो । बहुत बड़ी संख्या में चिड़ियों को झुण्ड भी चारो तरफ कलरव कर रहा था ।मैं पूछ नहीं पाया की ये चिड़ियाँ  यहाँ स्थायी रूप से मौजूद रहती है या जाड़े में सूदूर बर्फीले इलाके से साइबेरिया इत्यादि से आई हुयी है इस वक्त ।ये जानकारी कोई दे सके तो आभार व्यक्त करूँगा ।
मुझे उस दिन पहली बार पता लगा की संगम के किनारे का किला अकबर ने बनवाया था ।कही नहीं वर्णन आ पाया होगा मेरे अध्ययन में ।अब जानना पड़ेगा की अकबर ने संगम को किला बनवाने को क्यों चुना और हर बात में विवाद ढूँढने वाले लोग  इसमें कोई विवाद नहीं ढूढ़ पाये क्या ।इस पर बाद में अध्ययन करने पर लिखूंगा ।
मेरे दो संस्कृतियो पर बहस छिड़ सकती है क्योकि दोनों  एक ही इलाके में है और मिलन के बाद तो बस गंगा बचती है और विलीन हो जाती है उसमे यमुना , सरस्वती कहां से निकलती है और कब विलीन हो जाती है रहस्य ही बना हुआ है ।
हां तो संस्कृति पर बहस की बात मैंने जान बूझ कर छेड़ा है । यद्यपि यमुना का हरा जल कुछ साफ़ दीखता है यहाँ पता नहीं कैसे जबकि इसके पीछे यमुना पूरी तरह गन्दी दिखती है लेकिन इस हरे रंग के किनारे की संस्कृति कुछ अलग है और उसका खुलकर वर्णन कर दूंगा तो विवाद बढ़ जायेगा । पर इस दो संस्कृति का मेरा आशय और अनुभव भी क्या है कभी लिखूंगा जरूर ताकि मेरी समझ भी साफ़ हो सके । हो सकता मैं जो समझ रहा हूँ उसमे कुछ पेंच हो या मेरे ही मन में किन्ही लोगो या घटनाओ के कारण कुछ खराश हो ।
गंगा का पानी सफ़ेद और कुछ मटमैला दीखता है संगम पर पर गंगा का किनारा पकडे हुए संस्कृति मटमैली नहीं दिखती ।
बताया गया की संगम पर गंगा और यमुना में भी एक युद्ध चलता रहता है । मैं कहूँगा की दो बहनो की आपसी अठखेली होती है या छेड़छाड़ । पर संस्कृति की बड़प्पन की लड़ाई भी हो सकती है ।
कभी गंगा यमुना को पीछे धकेल देती है तो कभी यमुना गंगा को, पर ये पता नहीं चलता की इस लड़ाई में सरस्वती की भूमिका क्या रहती है , तटस्थ एम्पायर या रेफरी की या बस मजा लेते हुए तीसरे व्यक्ति की ।
पर ये सच्चाई तो कबूल करना ही पड़ेगा की अंत में जीत जाती है गंगा और विलीन हो जाता है उसमे सब कुछ , अस्तित्व , संस्कृति , रंग , स्वाद और दोनों नदिया और फिर हथिनी की चाल से गौर्वान्वित चलने लगती है और गंगा भी विलीन हो जाने के लिए अपने से भी बड़े अस्तित्व में ताकि जीवन , मरण और फिर जीवन का चक्र पूरा हो सके ।
फिर समुद्र से भाप बन कर उड़ता है नया जीवन और नई तरह के जीवन बरस पड़ते है उससे जो फिर कही ताल तलैया , तो अलग अलग क्षेत्र में कोई गंगा , कोई यमुना , कोई राप्ती और कोई सरयू जैसा जीवन पाकर चलती रहे ताकि जीवो का जीवन चलता रहे ।
शायद मैं दर्शन से दर्शन की तरफ चला गया ।पर मुझे याद नहीं की इससे पहले उगता हुआ सूरज कब देखा था ।शायद जब कन्याकुमारी गया था नेता जी के साथ ।
इस सब दृश्य के बीच मोटर बोट मंथर गति से नदियो का सीना चीरती हुयी चली जा रही थी और वहां ले जाने वाले साथी वहां के बारे में , ऐतिहासिकता के बारे में और पुण्य के बारे में वर्णन करते जा रहे थे ।उन्होने आज बताया की यदि संगम नहीं आये तो सब तीर्थ बेकार है तो मन में बरबस आ गया की मैं तो कभी किसी मंदिर ही नहीं गया तीर्थ तो बड़ी बात है ,और तब तो यहाँ आकर भी मैं पुण्य का भागी नहीं बन पाया । वैसे ही शीत प्रकृति के कारण डुबकी लगाने का मतलब कुछ दिनों डॉ0 मित्रो की सेवा में रहना हो जाता पर दृश्य सचमुच ऐसा की मैं लिखे बिना नहीं रह सकता था । शायद ऐसे दृश्य ही लोगों को अपनी तरफ खींचते है और यही खिंचाव आस्था बन जाती है । अब तो साधन हो गए पर जब साधन नहीं रहे होंगे तब जो विलीन हो जाते होंगे इन दृश्यों के आगोश में वो स्वर्ग में जाने वाले और ईश्वर के बुलावे वाले वर्ग में शामिल हो जाते होंगे और जो वापस चले जाते होंगे घर वो ईश्वर की और संगम की कृपा से बच जाने वाले वर्ग में शामिल हो जाते होंगे और इसकी विषद व्याख्या अपने अपने जजमानों को सुनाने वालो की भी काफी तादात होती ही है ।
पर पुण्य मिले या न मिले क्योकि अभी तक कोई प्रमाणिक दस्तवेज और अध्ययन नहीं है जो साबित कर सके की पुण्य क्या है और किस किस को मिला तो क्यों और कैसे मिला और संगम में गहरी डुबकी मार कर भी जिन्हें नहीं मिला क्यों नहीं मिला ।
संगम पर ही जिंदगी जीने वाले मछुवारे ,नाव चलाने वाले और रोज नित्यकर्म से लेकर यही नहाने वाले तो पुण्य से मालामाल हो गए होंगे तो उनके जीवन में क्या विशेष है ये अध्ययन का विषय हो सकता है और शायद शोध से कुछ जानकारी मिले । फिर भी करोडो की आस्था का केंद्र है संगम तभी तो इतने कष्ट सह कर करोडो लोग यहाँ कल्पवास करते है और डुबकी लगाते है । आस्थाएं शायद लोगो को अतिरिक्त ताकत देती और भरपूर ऊर्जा भी ।
जी हां पुण्य मिले या न मिले पर उसी संगम के दर्शन कर लिए आज मैंने भी इतनी सुबह जाकर और इस सुबह जाने की मानसिकता और दबाव में पूरी रात नहीं सोकर तो इस कष्ट के लिए कुछ तो मिलेगा ही ।
पर ये सुबह का दृश्य की किसी भी मायने में कन्याकुमारी के सुबह के दृश्य से पीछे नहीं है और इसे सैलानियो को आकर्षित करने के लिए प्रचारित किया जा सकता था । उस दिन मुझे एहसास हुआ की मेरा प्रदेश किस कदर सुस्त ,दिशाहीन और संकल्पहीन है की राजस्थान अपनी रेट की मार्केटिंग कर लेता है ,कश्मीर , शिमला और अन्य अपनी बर्फ और ठंड, तमिलनाडु कन्याकुमारी का सूर्योदय जो ज्यादातर दिखता ही नही बादलो के कारण इसलिए कह रहा हूँ की जब मैं गया था मुलायम सिंह यादव के दौर मे  कन्याकुमारी तब रात भर जगा बैठा रहा बाल्कनी मे की कही सोता न रह जाउँ और सुबह बस हो गई बादलो मे छुपी हुई ,केरल से लेकर महाराष्ट्र तक समुद्र का किनारा ,तो चेरापूंजी अपनी बारिश और हरियाली ,भूटान सिक्किम मेघालय अरुणाचल अपने पहाड़ और दृश्य तो अमरीका तो बस यू ही किसी भी चीज पर मोटा टिकेट लगा कमा रहा है तो क्या चीज नही है उत्तर प्रदेश मे , साथ ही बिहार और मध्यप्रदेश इत्यादि मे भी , बस सैलानियो के लिए सुरक्षा का भाव अपराधियो और शोहदो से और पुलिस की लूट तथा कमाई के लिए परेशान करने वाली प्रवृति से , और अभाव है मार्केटिंग के लिए भाव , समर्पण ,इरादा और व्यव्स्था की ।
ले दे कर एक ताज महल, या बनारस का घाट भी कुछ लोगो को आकर्षित करता है ।
चलिये इस मुद्दे पर विस्तार से फिर कभी ।
बोलो गंगा मैया की जय (क्योकि जय केवल विजेता और शक्तिशाली की ही बोलने की परम्परा है तो मैं भी इस परम्परा को क्यों तोडू )।

सोमवार, 7 दिसंबर 2020

जिंदगी के झरोखे से 1980 बनारस

#जिंदगी_के_झरोखे_से   #1980_बनारस 

#लोकबंधु_राजनारायण_का_चुनाव_और_आरएसएस 

1980 , चौ चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री थे राजनारायण जी के कारण और राजनारायण जी यानी पुरे देश के नेताजी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे । चौ चरण सिंह ने राजनारायण जी को बनारस से लोकसभा का चुनाव लड़ने को कहा ।यदि जातिवाद मे यकींन करते नेताजी तो कई ऐसी सीट थी जहा से लड़ सकते थे और पूर्ण सुरक्षित सीट भी तय कर सकते थे पर अभी पिछ्ले चुनाव मे ही देश की ताकतवर प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी जी को चुनाव मे हराया था उन्होने तो मान लिया बात और वैसे भी बनारस उनका गृह जिला था पर ये दिक्कत थी कि कांग्रेस से वहा से पंडित कमलापति त्रिपाठी जी चुनाव लड़ रहे थे जिनकी नेताजी बहुत इज्जत करते थे (इस पर किस्सा अलग से बाद मे )
पर 
1980 के इस चुनाव की नौबत चौ चरण सिंह की सरकार से कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने के नाते आयी थी और उसके पहले जनता पार्टी टूटने की नौबत जनसंघीयो की दोहरी सदस्यता और आरएसएस के नाते आयी थी (इस सब पर भी विस्तार से अलग से बाद मे ) । उसी उठापटक मे नेताजी का निस्कासन और उनके समर्थन मे केन्द्र के कई मंत्रियो सहित 100 से ज्यादा सांसदो का इस्तीफा ,उनके द्वारा नेताजी यानी राजनारायण जी को अपना नेता चुनना और नेताजी द्वारा चौ साहब को नेता मानना और दो सांसदो को उनके पास भेजना ,तब चौ साहब का उप प्रधानमंत्री पद से स्तीफा और प्रधानमंत्री बनना इत्यादि अलग अलग लिखा जायेगा और ये भी कि दोहरी सदस्यता का सवाल उठाने और आरएसएस की भूमिका पर सवाल उठाने पर आरएसएस और उससे जुड़े लोगो ने किस कदर कमर के नीचे तक हमला किया लगातार और मुहिम चलायी राजनारायण जी के खिलाफ ये सब लिखूंगा अलग अलग हिस्सो मे ।
फिलहाल बनारस के चुनाव तक सीमित करता हू। राजनारायण जी का चुनाव करीब एकतरफा सा हो गया था उसी मे पहली घटना तो उस दिन हुयी जब चौ चरण सिंह बनिया बाग मे सभा करने आये और मंच से राजनारायण जी की तारीफ करते करते एक हल्का शब्द बोल गये पता नही जान बूझ कर या अनजाने मे जिसका विरोध भी किया मैने उनके मंच से उतरते वक्त और तब राजनारायण जी ने मुझे ज्यादा न बोलने को कह कर चुप करा दिया था ।
चुनाव जब सर्फ दो दिन रह गया था तो हम लोग शहर भर मे अन्तिम व्यवस्थाओ और जन सम्पर्क के लिए घूम रहे थे ।उस दिन शाम थोडी गहरी हो ही रही थी की अचानक नेकरधारी दिखने लगे शहर मे जगह जगह संख्या बहुत नही थी पर वो हर व्यक्ति को बस एक बात कह रहे थे की फैसला हो गया है कि बोट पंडित जी को देना है यानी कांग्रेस उम्मीदवार कमलापति त्रिपाठी जी को जबकी जनता पार्टी जिसके अध्यक्ष चंद्रशेखर जी थे और वर्तमान भाजपा यानी तत्कालीन जनसंघ उसी मे शामिल थी उसके उम्मीदवार जनसंघ के ही ओमप्रकाश सिंह थे जो बाद मे कई बार उत्तर प्रदेश में मंत्री बने भाजपा की सरकारो ने । लेकिन राजनारायण जी आरएसएस के निशाने पर थी और उनके निशाने पर आरएसएस और आरएसएस ये समझ चुकी थी कि जिस आदमी ने कभी डरना और झुकना नही सीखा और तय कर लिया की कांग्रेस को हराना है तो इन्दिरा गांधी जैसी नेता को पहले कोर्ट मे हरा दिया और फिर जनता की अदालत मे भी और ये आदमी अगर मजबूत रह गया तो आरएसएस को कही का नही छोड़ेगा और देश के सामने नंगा कर देगा उनका सिद्धांत और इरादा और फिर उस फकीर आदमी की देश मे विश्वस्नीयता भी जबरदस्त थी ।
कई जगह ये दृश्य देखने के बाद मैं थोडा विचलित हुआ और भाग कर उनके पास पहुचा और उनको बताया की आरएसएस तो अपने उम्मीदवार को हरा कर भी आप को हराने के लिये पंडित जी को वोट डालने की अपील कर रही है और अगर 25/30 हजार वोट भी इधर उधर हो गया तो मुश्किल होगी क्योकि काँटे की टक्कर है ।
नेताजी थोडा सा विचलित हुये पर फिर तुरंत बोले कि ये आप लोग बाहर किसी और से और खासकर अपने कार्यकर्ताओं से मत कहना और जाओ अपना अपना काम करो ।
और नेता जी चंद हजार वोट से चुनाव हार गये ।
लिखने का मकसद चरित्र की व्याख्या करना है ।
बाकी किस्सा अगली कडियो मे और इस चुनाव के दृश्य भी अगली कडियो मे ।

रविवार, 22 नवंबर 2020

फारुख अब्दुल्ला और भाजपा

#फारुख_अब्दुल्ला को चीन का दोस्त बता कर कांग्रेस से उसके साथ रिश्ता पूछ रही #भाजपा कारगिल मे चुनाव मे उनकी #सहयोगी है और दावा किया है की ये समझौता जारी रहेगा ।
बस कांग्रेस उससे समझौता करते ही देशद्रोही हो गई ।
कुछ बात समझ मे आये तो मुझे भी बताईएगा ।

पिछला चुनाव और वोट

पूरे भारत को हमेशा याद रखना होगा की पिछ्ले चुनाव मे करीब 65 करोड़ वोट पडे और उसमे से 23 करोड़ ही भाजपा को मिले 
तो कुछ कम वोट कांग्रेस को भी मिले और ढाई से तीन करोड़ तक चन्द्र बाबू नायडू , ममता बनर्जी, मायावती और अखिलेश को भी मिला ।
ये देश सबका है और इसकी चिंता करने तथा गलत का विरोध करने का अधिकार और कर्तव्य सबका है ।

जातियाँ और धर्म भारत मे

भारत को तरक्की करना और मजबूत होना है तो समझना ही होगा 
कि 
सिर्फ दो ही धर्म है एक गरीब का धर्म और दूसरा अमीर का धर्म 
दो ही जातियाँ है गरीब और अमीर ।
बहुत सी समस्याये खुद हल हो जायेंगी ।

राम पर विवाद या संवाद

एक सवाल है 
राम और कृष्ण पर विवाद की जरूरत है 
या 
उनके जीवन, विचार और  शिक्षा पर व्यापक और सार्थक संवाद की जरूरत है ?

क्या जायज है

क्या ऐसी सोच या सवाल जायज कहे जा सकते है 
कि 
फला धर्म के लोग वो सब करते है तो हम ये सब क्यो न करे ? 
हम अपने को अच्छा रखने और बनाने के जिम्मेदार है 
या दूसरों के साथ प्रतियोगिता मे गड्ढे गिर जायेंगे ?

पूरा भारत तो कभी नही लड़ा (एक ने और मुट्ठी भर ने ही बदला हमेशा इतिहास और हालात )

पूरा भारत तो कभी नही लड़ा 
(एक ने और मुट्ठी भर ने ही बदला हमेशा इतिहास और हालात ) 

सैकड़ों साल पहले ही भारत में लिख दिया गया था कि ; कोउ नृप होय हमें का हानि ; । इससे भारत की मिट्टी का मूल चरित्र सिद्ध होता है ।कुछ लोग कह सकते है कि ये गोस्वामी तुलसीदास ने मुगल राज स्थापित होने के बाद लिखा था ,राम के युग मे ही सम्पूर्ण जनता किसी गलत के खिलाफ खड़ी हो गई हो ऐसा तो नही दिखा ,वो चाहे राम को राजा बनने से रोकना हो या फिर सीता की अग्नी परीक्षा या अग्नी परीक्षा के बाद भी उनका वन जाना । विस्तार मे जानाँ विवाद पैदा कर सकता है ।कृष्ण के युग मे कंस हत्याये करता जा रहा था पर कहा कोई आवाज उठी कि ये गलत है ,चाहे राजा हो या जमीदार या कोई बडा नही है उसे अधिकार इस तरह हत्याये करने का । अशोक के काल मे भी कहा जनता ने कुछ भी कहा था ,जनता तो हमेशा ताकत और सत्ता की अनुगामिनी ही बनी रही ।
वरना बस सैकड़ो की तादात में आते थे विदेशी लुटेरे और लूट कर चले जाते थे भारत को । जब कोई आता तो खेती करता किसान हल बैल लेकर किनारे खड़े होकर तमाशा देखता और बाक़ी लोग भी । लड़ता सिर्फ़ वो था जिसे लड़ने के पैसे मिलते थे और ज़्यादातर वो भी सेनापति के घायल होने या मर जाने पर भाग खड़े होते या विजेता से मिल कर उनके लिए लड़ने लगते । भारत पर आक्रमण करने वाला या राज करने वाला कोई भी बड़ी फ़ौज लेकर नहीं आया था सबकी लड़ाई  और राज भारतीय लोगों के दम पर ही चला । भारत के नागरिक पर जुल्म हो या हत्या सब यही के लोगो ने किया या तो डर कर या फिर बिक कर और विदेशियों को बुलाकर लाने वाले भी भारतीय थे , रास्ता बताने वाले या कमजोरी बताने वाले सारे विभीषण भी भारतीय थे । मैंने कई बार कहा है उदाहरण के लिए की जब सोमनाथ को लूटा जा रहा था तो वहाँ के सारे पंडे और दर्शनार्थी बैठ कर पूजा करने लगे की अभी भगवान का प्रकोप होगा और सब लुटेरे भष्म हो जाएँगे । पर वो करने के बजाय अगर उन्होंने अपने थाली लोटे से भी आक्रमण कर दिया होता तो सोमनाथ नहीं लूटा होता , भगवान की मूर्ति और मंदिर की शक्ति का भ्रम भी बना रहता और लुटेरे टुकड़ो मे मुर्दा पड़े होते  और उससे भी बड़ा काम ये हुआ होता की आइंदा कोई भी भारत पर आक्रमण करने से पहले सौ बार सोचता की भारत का या उसके किसी भी हिस्से का हर आदमी अपने राज या जमीन के लिए लड़ने को खड़ा हो जाता है  । 
आगे भी पूरा देश तो कभी खड़ा नहीं हुआ बल्कि थोड़े से लोग खड़े हुए किसी भी लड़ाई में वो अन्दोलन चाहे आज़ादी का रहा हो और चाहे आपातकाल से पहले का । जिन लोगों ने भी हिंसा का रास्ता अपनाया उनके साथ बहुत कम लोग खड़े हुए । गांधी जी इस मिट्टी की तासीर को अच्छी तरह समझ गए थे इसीलिए उन्होंने अहिंसा का रास्ता अपनाया और इस रास्ते से वो लाखों या करोड़ों जोड़ने में कामयाब हुए पर पूरे देश को नहीं जोड़ पाये वो भी ।
अंग्रेजो के समय भी पूरी जनता तो इसी कोऊ नृप वाले भाव की थी तो बहुत से लोग अंग्रेजो का साथ दे रहे थे ,बहुत से प्रशंसक थे तो हाथो मे हथियार लेकर जलियां वाला बाग से होकर पूरे देश मे गोली लाठी चलाने वाले ,आजाद को गोली मारने वाले ,भगत को फाँसी लगाने वाले और सुभाष की सेना पर गोली बरसाने वाले सब तो भारतीय ही थे केवल आदेश देने वाला अन्ग्रेज होता था और मुखबिरी कर आज़ादी के लिए लड़ने वालो की पकड्वाने वाले भी भारतीय ही थी ।सभी के खिलाफ अंग्रेजो के पक्ष मे मुकदमा लड़ने वाले भी भारतीय थे और गवाही देने वाले भी भारतीय ही थे ।
आज भी वही हालत है जो भारत की तासीर है ।बंद जगह पर छिप कर विरोध करना हो या छुपा कर बटन दबा कर सत्ता बदल देना हो बशर्ते बटन दबाने वाले हिसाब से ही परिणाम दे तो इतना तो अधिकतम भारतीय कर सकता है पर खुले मे आकर चुनौती देना भारत के आवांम की आदत नही है ।इतिहास मे भी भारत ने कभी भी किसी मजबूत को चुनौती नही दिया । ये हमारा चरित्र है गुलाम होना या गुलाम बनाना ।संमता मे हमारा विश्वास ही नही है ।कमजोर को मारना और मजबूत के सामने दुम हिलाना । 
अगर आज भी देश अपने अहित और बुरे भविष्य पर मुखर नही होता तो ये बहुत चिंता की बात नही है ।अगर आज भी सोमनाथ की तरह देश का बडा हिस्सा मन्दिर मे अपना सुख और भविष्य देख रहा है तो इसमे आश्चर्य की कोई बात नही है ।छोटे स्तर पर भी लोग कहा निकलते है बिजली या पानी नही मिलने पर ,सड़क के लिए या किसी भी बुनियादी समस्या के लिए ।पडोस पर हमला होने या बच्चा उठने या बलत्कार होने पर खिड़किया और पर्दे बंद कर जोर दे टीवी चला देने या कान मे रुई ठूस लेना ज्यादा मुनासिब लगता है । पानी नही दे सरकार तो अपना जेट पंप लगा लिया , बिजली के लिए अपने जेनरेटर लगा लिया । जितना सहनशीलता है भारत के समाज मे । पर ऐसा भी नही कि कभी नही निकलते ।जरा किसी धार्मिक स्थल को कुछ हो जाये ,किसी के चित्र या प्रतिमा से कुछ हो जाये या दो जानवरो मे से किसी का कुछ हो जाये तो निकलते है पर फिर भी मुट्ठी भर और बच बच कर कि कोई खतरा तो नही और नही है तथा सामने वाला कमजोर या कम है तो कायरता पूरी ताकत से क्रूरता दिखाती है और चीख की आवाज भी बुलंद होती है ।
दूसरी तरफ राम भी तो तीन ही थे जिसमे से एक व्यव्स्था के लिए और दो युद्द के लिए और दो साम्राज्य पराजित कर आये थे । कृष्ण ने अकेले केवल दिमाग और जुबान का इस्तेमाल कर भारत को  महाभारत तक पहुचा दिया ।बुद्ध निकले तो अकेले थे पर दुनिया के बड़े हिस्से को जोड़ लिया ।ईसा ने सूली पर लटके लटके ही दुनिया के बड़े हिस्से  को अपने सामने झुका दिया और करबला मे कहा करोडो थे पर करोडो को अपना अनुयायी बना दिया ।गांधी अफ्रीका मे भी अकेले थे और भारत भ्रमण पर भी अकेले ही निकले और ऐसा निकले कि बिना हथियार के ही इतने बड़े दुश्मन को देश से निकाल दिया ।उसके बाद भी किसी एक ने ही सत्ताए बदली है भारत की । आज फिर भारत आज़ादी बनाम गुलामी, लोकतंत्र बनाम अधिनायकवाद ,संविधान बनाम प्रधान की इच्छा , कानून बनाम सता की लाठी के बीच झूल रहा है ।अधिकांश कोऊ नृप होय वाले है तो बहुत से अज्ञात कारणो से प्रशंसक है तो बहुत से गली गली मे मुखबिर और बहुत से लाठी बन्दूक और कानून की किताब के साथ इनके साथ खड़े है तो बहुत से चाहे कलम से या कला से ,जुबान से या आंखो की भाषा से लडाई भी लड़ रहे है सच की ,ईमान की ,लोकतंत्र की संविधान की और अन्त मे यही जीत जायेंगे सारे जुल्म के बावजूद क्योकी हमेशा ही ये मुट्ठी भर लोग ही जीते है ।
इतिहास तो यही बताता है । बस देखना इतना है की वो एक कौन होगा इस युद्ध का नायक और क्या कोई  सम्पूर्ण भारत को कभी निकाल सकेगा चाहे जिसके खिलाफ चाहे जब और चाहे जो भी गलत हो ? क्या कोई बदल पायेगा ये आवाज "कोऊ नृप होंय हमे का हानी "से "को नृप होय ये हम ही जानी" मे ।

शनिवार, 21 नवंबर 2020

मौजे का इलास्टिक

कितने लोगो को याद है कि पहले मोजा ऊपर से ढीला हो जाने पर उसके लिए भी इलास्टिक आती थी और ज्यादतर लोग उसका इस्तेमाल करते थे ।

पहले और अब (रफू )

पहले कपडा फट जाने पर फेंक देने का रिवाज नही था अगर गल नही गया है 
बल्की सभी लोग रफू करवा कर पहनते थे ।
और रफुगर भी क्या खूब हुनर रखते थे की बहुतो का रफू किया हुआ पता ही नही चलता था ।

पहले और अब

पुराने जमाने मे किसी शहर मे किसी भी थोडे से परिचित के घर पर चाहे गाँव मे उससे दुश्मनी चल रही रुक जाता था यहा तक की रह कर इलाज करा लेता था और बच्चे तो सालो पढने के लिए रह लेते थे ।
अब तो अपनो के घर भी छोटे हो गये है ।

पहले और अब

पुराने जमाने मे कोई किसी भी पड़ोसी के साथ बच्चे बच्चे या पत्नी और बहू को तीर्थ या अस्पताल , शहर या स्कूल कालेज भेज देता था 
और अब ?

पहले का विश्वास और विश्वस्नीयता

पहले कालेजो मे किसी छात्रा के सिन्दूर या मगल सूत्र देख कर सारे छात्र दीदी या अगर पति भी वही होता था तो भाभी बोलने लगते थे 
यहाँ तक की अपने मुहल्ले की लड़की भी सबकी बहन होती थी ।
अब ?

सिनेमा का बुरा आदमी

पहले सिनेमा और सीरियल मे एक अच्छा आदमी हीरो होता था और बुरा विलेन और अन्त मे अच्छा ही जीतता था 
पर हाजी मस्तान के पैसे लगने के बाद से बुरा आदमी हीरो होने लगा और उसके हालत का बचाव शुरू हुआ 
और याद करिए उसके बाद ही नौजवानो मे भी वैसा बनने की चाहत बढ गई ।

सिनेमा और बुराइयाँ

क्या सिनेमा टीवी काल्पनिक कहानियो और उपन्यासो ने अपराध , भ्रष्टाचार और व्यभिचार के नये नये रास्ते दिखाने और उसके लिए प्रेरित करने का काम किया है 
क्योकी उसमे बहुत कुछ होता है जो उससे पहले समाज मे कही नही था ।

धर्मस्थल और आस्थाए

जब #धर्मस्थल गिने चुने थे और बहुत दूर दूर दुर्गम स्थानो पर थे तो #आस्थाए भी सच्ची थी और ईश्वर का भय भी 
पर जब से धर्मस्थल सड़को गालियो और चौराहो पर आ गये आस्थाए और ईश्वर का भय भी गली चौराहे पर भटक रहे है ।

त्योहार और संस्कार

सिनेमा और टीवी ने तमाम त्योहार उन लोगो तक भी पहुचा दिये जो उन्हे जानते ही नही थे या मनाते नही थे 
काश ये धर्म की शिक्षा और संस्कार भी पहुचाने मे कामयाब हो जाते ।

शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

पता नही कितने लोग मरते

#जिंदगी_के_झरोखे_से

#पता_नही_कितने_लोग_मरे_होते 

हमारी सरकार थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे ।सरकार के खिलाफ दिल्ली से गली तक विपक्ष मुखर था । कुछ मामलो को लेकर मुलायम सिंह यादव जी ने उत्तर प्रदेश बंद का आह्वान कर दिया , जिससे मैं पूरी तरह असहमत था और मैने उनसे विरोध भी व्यक्त किया कि हमारी सत्ता है प्रदेश मे और हम ही बंद काल करे इसका क्या मतलब ? अगर लोगो से लड़ना ही है तो लखनऊ या दिल्ली मे रैली के द्वारा अपना संदेश दिया जा सकता है ।मेरा एतराज इसलिए भी था की हम लोगो जैसी सभी पार्टिया प्रशिक्षित संगठन वाली नही है बल्की भीड वाली है और भीड अनियंत्रित होकर कुछ भी कर सकती है ।
मुख्यमंत्री नही माने और एलान हो गया । 
पार्टी पदाधिकारी होने के कारण मुझे उसे सफल भी करना था और दूसरी तरफ मेरी कोशिश थी की मेरे जिले तो सब शान्ती से हो जाये ।इसके लिए मैने संगठन की बैठक कर काम बाटा एक मेटाडोर पर माइक लगाकर शहर भर मे छोटी छोटी नुक्कड़ सभाए कर और व्यक्तिगत रूप से बाजार कमेटियो के लोगो से बात कर सहयोग भी मांगा । 
बंद के लिए काफी जगह बंद किया लोगो ने लेकिन आरएसएस और भाजपा के लोगो की दुकाने पूरे शहर मे खुली रही । अन्य शहरो मे तो नारा लगा था कि बंद दुकान तुम्हारी और खुली दुकान हमारी और इस नारे के साथ जो जो हुआ उससे सरकार और पार्टी बदनाम हुयी , यहा तक की इलाहबाद मे हाई कोर्ट की घटना ने हमारे चेहरे पर कालिख पोत हमे पूरे देश मे बदनाम भी किया और न्यायालय ने भी हम लोगो पर कड़ा रुख अपनाया ।
पर मेरा मानना था की अपील करना हमारा काम , अपना मुद्दा समझाना हमारा काम और साथ देना या ना देना लोगो का अधिकार है इसलिए उस दिन मैं घर पर ही बैठा था । तुलसीराम यादव सहित कुछ लोग मेरे घर पर मौजूद थे और हम लोग जगह जगह से पता लगा रहे थे की बंद कितना सफल है । पार्टी मे कुछ लोग अति उत्साही थी उनको लेकर मेरा मन शंकित था और मैने घर पर मौजूद लोगो से कहा भी मुझे लग रहा है कि आज फला फला लोग कही घायल न हो जाये अपने कारणो से ।
तब तक तो फ़ोन आया एक कार्यकर्ता का कि फला फला लोगो की भाजपा के लोगो ने बहुत पिटायी कर दिया है और वो लोग जिला अस्पताल ले जाये गये है ।
तुरंत मैने गाडी मे सभी मौजूद लोगो को बैठाया और अस्पताल पहुचा और उन लोगो से घटना की जानकारी लिया और मेरा सोचा ही सच हुआ था ,ये लोग भाजपा और आरएसएस का गढ माने जाने वाले बेलनगंज और रावतपाडा मे जबर्दस्ती दुकाने बंद कराने पहुचे थे और सत्ता के नशे मे थे ।डाक्टर लोगो से इन लोगो के समुचित इलाज की बात किया और प्रशासन से मुकदमा कायम करने के बारे मे बात किया ।
तब तक खबर आयी की पार्टी के लोग किले के पास अम्बेडकर मैदान मे एकत्र हो रहे है तो हम लोग भी उधर के लिए निकल लिए ।
वहा पहुचे तो देखा की अच्छी खासी भीड आ चुकी है और नारे लगाते लोग चले आ रहे है ।
आगरा मे जामा मस्जिद से लेकर कलक्ट्री तक घना मुस्लिम इलाका है और जामा मस्जिद के बाद पूरा हिन्दू बाजार । ताजमहल के आगे बरौली अहीर क्षेत्र पूरा यादव लोगो का है ।उधर ये खबर पहुची की सपाइयो पर हमला हो गया है तो उधर से गाँव के इलाके के लोग जिसको जो सवारी मिली उसी से चल दिया अम्बेडकर पार्क की तरफ और शहर से भी लोग वहा आने लगे । एक दिन पहले अम्बेडकर पार्क मे कोई कार्यक्रम हुआ था तो उसका पंडाल और मंच अभी मौजूद था ।
इन्दौर के पूर्व सांसद कल्याण जैन आगरा मे थे तो वो भी वहाँ पहुच गये ।मुस्लिम समाज के बहुत ही लोकप्रिय नेता हाजी इस्लाम कुरेशी आ गये । आसपास के इलाके मे भी खबर हो गई थी की सपाई इकट्ठे हो रहे है और शायद बाजारो पर हमला कर दे तो पास के बाजारो मे लोगो ने मोर्चाबंदी कर लिया था और ईंट पत्थर के साथ अन्य हथियार लेकर लोग छतो पर जम गये थे और ये बात उधर से आये हुये एक कार्यकर्ता ने मुझे कान मे बता दिया था की माहौल बहुत खराब है ।
मंच से गर्मा गर्म भाषण शुरू हो गये ।भीड जोश मे थी और अनियंत्रित होती जा रही थी तभी हाजी साहब जो सुलझे हुये इन्सांन थे पर उनको पता नही क्या सूझा की उन्होने कह दिया की चलो रावतपाडा और बेलनगंज और आज हिसाब हो ही जाये । भीड हमेशा ऐसी ही बाते पसंद करती है ,ये भीड का मनोविज्ञान होता है ।
मुझे झटका लगा और मैं मंच पर चढ़ गया और जोर से मुलायम सिंह जिन्दाबाद का नारा लगाने लगा जिसमे सारी भीड शामिल हो गई ।
फिर मैने सीधे एक सवाल किया कि क्या आप लोग मुलायम सिंह को कल्याण सिंह बनाना चाहते हो जिन्होने सर्वोच्च न्यायालय में हलफ़नामा देकर भी अयोध्या मे इमारत गिरवा दिया ? हमारी सरकार है और हम एक एक बूद खून का हिसाब करेंगे पर दंगा कर के नही कानून का इस्तेमाल कर के , और मैने थोडा लम्बा भाषण दिया ।जब समझ लिया कि अब जो चाहे करवा सकता हूँ (वैसे भी आम आदमी और आम कार्यकर्ताओ का स्नेह और सम्मान मुझे हमेशा मिला) तब मैने आह्वान कर दिया की हमारा जुलुस रावतपाडा और बेलनगंज नही बल्की कलक्ट्री जायेगा और उसका रास्ता वही तय किया जो पूरा मुस्लिम क्षेत्र मे होकर जाता था और ये भी एलान किया कि यदि 24 घंटे मे सभी हमलावर गिरफ्तार नही हुआ तो अगला जुलुस उन इलाको मे जायेगा जहा मार पीट हुयी ।
बस मैं मंच से उतरा और नारा लगाता हुआ अपने निर्धारित रास्ते पर चल दिया और पीछे पीछे पूरी भीड जिसमे कुछ लोगो ने फिर भी कोशिश किया की भीड दूसरी तरफ मुड़ जाये पर अब वो भीड मेरे असर मे थी ।इस बीच इंटेलीजेंस और पुलिस के लोग भी आ गये थे और मैने उनसे प्रशासन को खबर करवा दिया की सारी भीड आ रही है और अधिकारी वहा मौजूद रहे बात सुनने और अपनी बात कहने के लिए ।
हम लोग कलक्ट्री पहुचे वहा फिर मौने कार्यकर्ताओ के मन वाला जोशीला भाषण दिया और प्रशासन को खूब सुनाया भी ।प्रशासन ने तुरंत सख्त कार्यवाही का आश्वासन दिया तब मैने हाथ जोड़ कर सबको घर जाने और 24 घन्टा समय देने के लिए कहा और लोग शान्ती से अपने घर चले गये ।
बाद मे डी एम और एस एस पी ने मुझे धन्यवाद दिया और बताया की आज कितनी बडी घटना होने से मैने बचा लिया वर्ना पता नही कितने लोग मरते और पूरा शहर दंगे की चपेट मे आ जाता और पुलिस को भी दंगा रोकने को सब कुछ करना पडता सामने चाहे जो भी होता ।
खुद को संतुष्टी मिलती है जब आप कुछ सार्थक और अच्छा कर देते है ।
क्या पाया क्या खोया ये एक तरफ है पर आप ने क्या किया ये भाव आप को सुकून देता है ,अच्छी नीद देता और अपने ऊपर मुस्कराने की हिम्मत देता है ।

मंगलवार, 17 नवंबर 2020

बचपन वाला चंदा मामा

#बचपन_वाला_चंदा_मामा

(समय हो तो जरा पढ कर कुछ लिखिए इस पर )

रात को खाना खाने के बाद टहलने निकला तो आसमान में कुछ चमकता सा दिखा , गौर से देखा कि अरे ये तो अपना बचपन का दोस्त चाँद है जिसे मैं जब गांव में रहता था तब रोज देखता था , आसमान साफ था इसलिए दिख गया चाँद वर्ना कहा दिख पाते है चाँद  सितारे शहर में।  सचमुच शहर बहुत सी चीजों को पाता है तो बहुत सी चीजों से मरहूम रह जाता है खासकर प्रकृति के साथ से। शहर में भी आ गया था तो जब तक छत वाला घर घर था या वो कालेज वाला का घर जहां गर्मियों में बाहर चारपाई बिछा कर बिना डर के सो सकते थे तब भी कई बार देखा था चाँद को ।  हा चाँद देखने को शहर वालो को किसी त्यौहार या आयोजन का इन्तजार करना होता है ,महिलाये करवा चौथ पर देख पाती है तो कुछ लोग रोजा तोड़ने के लिए तो बाकि लोग पता नहीं क्यों चंद्र ग्रहण देखने के लिए। आगरा के लोगो का तो उत्सव होता था शरद पूर्णिमा में ताजमहल जाना ।  शरद पूर्णिमा के दिन चाँद पूरा निखरा हुआ होता है जिसे कहते है फूल मून और पहले इस दिन ताजमहल रात भर खुलता था और लाखो लोग ताजमहल जाते थे और इतनी ज्यादा भीड़ होती थी की भारी पुलिस लगानी होती थी और एक तरफ से आने और दूसरी तरफ से जाने का इंतजाम करना होता था ,सीढिया छोटी पड़  जाती थी तो नए रास्ते बनाने होते थे और मचान टाइप फिर भी शरीर से शरीर टकरा कर चलते थे और कई बार तो लगता था की कही रेला लोगो को गिरा न दे वर्ना न जाने कितने लोग घायल हो जायेंगे पर अधिकतर लोग परिवार के साथ पहले ही जाकर खाना पीना साथ लेकर ताजमहल के सामने के लान में जगह घेर लेते थे क्योकि तब तक ये सब मना नहीं था और वही बैठे बैठे निहारते थे ताजमहल और चद्नी या प्रचलित नाम चमकी ।  दरअसल ताजमहल में ऊपर चारो तरफ ऐसे पत्थर लगे है जो चाँद की रौशनी पड़ने पर चमकते है या रौशनी को परवर्तित करते है और ये तो पूरी रात शेर होता था की ;वो चमकी ; ये शोर कुछ लोग तो सचमुच जो देखने गए होते थे उसके लिए करते थे पर नौजवान अक्सर क़िसी लड़की को देख कर हल्ला करते थे और कुछ हरकते भी ।  काफी लोग पुलिस का लॉकअप भी देख लेते थे इस चक्कर में । चांद का करिश्मा देखिये की दुनिया में मशहूर ताजमहल की भीड़ भी उस दिन बढ़ जाती थी जब चाँद चार चाँद लगा देता था । उस वक्त जब चांद से सामना हुआ इतने लम्बे अरसे बाद तो लगा की चाँद शिकायत कर रहा है और उसका मुँह फूला हुआ है कि तुम तो हमें भूल ही गए ।  थोड़ा शर्मिंदा तो हुआ मैं फिर खो गया उन बचपन की यादो में जब रोज ही चाँद देखता था मैं और साथ ही तारे भी।  तारो को गिनने की कोशिश करना और गिनने की दूसरो को चुनती देना और सबका ही हार जाना हमेशा ही होता था।  वो सप्त ऋषि यानि सात तारो को ढूढना भी कितन अच्छा लगता था और आश्चर्य होता था की उनका क्रम बदलता ही नहीं ,लगातार बिलकुल उसी क्रम में और वैसे ही कोण पर मौजूद है सातो ।  पुंछल तारा भी तो दिखता था कभी कभी और उसकी तरह तरह की कहानिया सुनाते थे बुजुर्ग लोग।  ये बाते तो अक्सर होती थी कि किसी की  हाल में ही मृत्यु हुयी हो तो वह उन्हें किसी नए तारे के रूप में खोजता था और बताता था अपनों को कि देखो वो है तुम्हारी नानी नाना दादा दादी या जो भी रिश्ता रहा हो।  मैंने भी जब बाबा से पुछा था की आजी कहा गयी तो वो किसी तारे को दिखा देते थे की वो है भगवांन के पास। 

चाँद भी क्या है की बचपन में माताए चंदा मांमा दूर के पुए पकाये बूर के आप खाये थाली में मुन्ने को दे प्याली में प्याली गयी रूठ मुन्ना गया रूठ गा गा कर धीरे कौर कौर ठूसते ठूसते पूरा खाना खिला देती थी बच्चे को पर बच्चे भी कहा मानने वाले थे वो मैया मोरी चंद खिलौला लैहों कहने लगते और चाँद की मांग लेते खेलने को तो बहलाना पड़ता था गरीब और भूखे बच्चे को चाँद को रोटी बता कर तो बाकी बता कर की देखो वो बुढ़िया चरखा कात रही है और कपङा बना लेगी तो तुमको देगी ,पर चंदा भी कम थोडे है तभी तो ठंढी हवा की शिकायत कर -हठ कर बैठा चांद एक दिन माता से यह बोला सिलवा दो मा मुझे ऊँन का मोटा एक झिंगोला , मांगने लगा । चांदनी रात में नौका विहार पर निबंध भी खूब लिखवाया गया तो प्रेमियों के लिए आकर्षण की चीज रहा है चाँद ,;आजा सनम मधुर चांदनी में हम तुम मिले तो ; तो किसी को यही चाँद  दर्द भी देता रहा है ,केदार नाथ सिंह को अँधेरे  पाख  का चाँद अच्छा लगा तो त्रिलोचन ने कल्पना किया कि ;अगर चाँद मर जाता ,विजय कुमार को चाँद अघोरी लगा तो अवतार को अमावस का चाँद अच्छा लगा ,नरेश सक्सेना ने सुना की आधा चाँद मांगता है पूरी रात ;तो राजेंद्र रहबर की किसी से शिकायत थी की ईद का चाँद हो गया कोई ,वैसे इसका इस्तेमाल तो कई तरह करते रहे लोग कोई शिकायत के लिए तो कोई ताने के लिए ,गणेश पण्डे को सदेश देना था तो उन्होंने ;उस चाँद से कहना ;से भिजवा दिया संदेश ,विष्णु नगर को भी ;एक दिन चाँद ; दिखा ,राघवेंद्र अवस्थी को ;मेरे चांद पर बने बंगले पर हलचल दिखी ,ज्योति खरे कोने में बैठ गयी चाँद से बतियाने ,धर्मवीर भारती को मदभरी चांदनी अच्छा लगी ,तो जावेद अख्तर को दरिया का साहिल हो और पूरे चाँद हो और तुम आओ में कुछ कुछ हुआ ,तो कुंवर नारायण को कुछ ऐसा क्यों लगा ;रात मीठी चांदनी है मौत की चादर तनी है ,और वासना के ज्वार उठ चन्द्रमा तक खिंच रहे ,बालकवि बैरागी ने चंदा से कहा ,तू चंदा मैं चांदनी तू तरुवर मैं शाख रे ,केदार नाथ अग्रवाल को चाँद अकेला दिखा ,तो बच्चन को चांदनी फैली गगन में चाह मन में लगी ,किसी को चाँद उगने का इंतजार रहता है तो किसी को चांद तू जा में रूचि है ,बशीर बद्र का चाँद कही राहो में खो गया ,तो राकेश कौशिक को चाँद बूढ़ा लगा मुक्तिबोध को चाँद का मुँह टेढ़ा दिखा , तो दिनकर जी की रूचि चाँद के कुर्ते में भी थी , मीना कुमारी को चाँद बहुत तनहा तनहा लगा तो शकेब जलाली की शिकायत है की;गले मिला न कभी चाँद वख्त ऐसा था ,बच्चन जी ने बताया की मुझसे चाँद कहा करता था तो साहिर लुधियानवी को चाँद के मद्धम होने से शिकायत है ,किसी को गुलाबी चाँद ने याद किया तो शीन काफ को घाटी का चाँद अच्छा लगा ,शमशेर बहदुर सिंह ने चाँद से थोड़ी गप्पे मारी ,किसी को चाँद झुका दिखा तो किसी को सदियो से चांद  की पीड़ा दिखी किसी को झुरमुट में अटका चाँद दिखा तो मुक्तिबोध को इंतजार था की डूबता चाँद कब डूबेगा ,किसी को लगा कि चाँद सुरागकशी करने निकला है ,बच्चन ने आह्वान किया की चाँद सितारों मिल कर गाओ ,तो निसार अख्तर को उम्मीद है की सौ चाँद चमकेंगे।  बस चाँद एक अनबूझ पहले की तरह साहित्य के इस कलम से उस कलम तक इस पन्ने से उस पन्ने तक सफर कर रहा है लगातार। 

ऐसा नहीं की कविता तक सीमित है चाँद झूम कर तो कभी ग़मगीन होकर खूब गाया भी गया है चाँद , खोया खोया चाँद , खुला आसमान , आँखों में सारी  रात जाएगी की तकलीफ तो चलो दरदार चलो चाँद के पार चलो की ख्वाहिश , चाँद छुपा बादल में तो चाँद सिफारिश जो करता हमारी तो देता वो तुमको बता कह कर भी कह दी गयी बात अपनी ,और ये भी तो कहा  गया बडी शिद्दत से की चौदवी का चाँद हो या आफताभ हो जो भी हो खुद की कसम लाज़वाब हो ,मैंने पुछा चाँद से गाया गया तो आजा सनम मधुर चांदनी में हम तुम ;तो गली में आज चाँद निकला हो ये रात ये चाँद ,सब जगह चाँद ही मिला अपनी बात कहने को शिकायत करने को ,प्रेम का इजहार करने को या दिल टूटने की शिकायत करने को। 

बाकी आरे  आवा पारे आवा नदिया किनारे आवा जैसे गाने भी सुने थे बचपन में तो आजा रे चांदनी हमारी गली चाँद ले के आजा ,आधा है चन्द्रमा रात आधी , ऐ चाँद तेरी चांदनी की कसम ,मेरा चाँद मेरे पास है गाकर कैसा गरूर दिखा दिया चाँद को ही ,चाँद आहे भरेगा फूल दिल थम लेंगे ,चाँद एक बेवा चूड़ी की तरह ,,चाँद जाने कहा खो गया ,तो चाँद जैसे मुखड़े पर बिंदिया सितारा नजर आया और गा दिया किसी ने ,तो चाँद के पास जो सितारा है वो सितारा हंसी लगता है गाकर भी चांद को ही चिढा दिया  ,चाँद की कटोरी है रात ये चटोरी है ,चाँद ने कुछ कहा रात ने कुछ सुना  गाने मे अलग अंदाज से बात कही तो चाँद  निकलेगा जिधर हम न देखेंगे उधर क्या बात है इस गाने में , चाँद  निकला मगर तुम न आये का दर्द भी उड़ेल दिया प्रेमी ने गाकर ,चाँद सा मुखड़ा क्यों शरमाया , आंख मिली और दिल घबराया ,चाँद से पर्दा कीजिये कही चुरा न ले चेहरे का नूर ,चाँद सी महबूबा हो मेरी  कब ऐसा मैंने सोचा था जैसे गाने में चाँद ने खूब धूम मचाई तो माँ ने ;चंदा है तू मेरा सूरज है तू गाकर बच्चे को रिझाया ,चाँद को ढूढने सभी तारे निकल गए ,चंदा मांमाँ से प्यारा मेरा मामा ,चाँद वो चाँद किसने चुराई तेरी मेरी निदिया ,चंदा रे मेरे भैया से कहना बहना याद करे , चंदा रे चंदा कभी तो जमीन पर आ , चंदा रे जा मेरा सन्देश पिया से कहियो ,चंदा से मेरी पतिया ले जाना , चंदा तोरी चांदनी में जिया जला जाए ,धीरे धीरे चल चाँद गगन में , तो गगन के चंदा मत पूछ हमसे कहा हूँ मैं दिल मेरा कहा , जब तक जगे चाँद गगन में मेरे चाँद तुम सोना नहीं ,वो चाँद जहा वो जाए तू भी साथ चले जाना ,रात के मुसाफिर चंदा जरा बता दे मेरा कसूर क्या है तू फैसला सुना दे ,तुझे सूरज कहु या चंदा ,तुम  चन्द्रमा हो मैं धरा की धूल हूँ ,उस चाँद से प्यारे चंदा हो तुम आकाश पे जो मुस्कराता है, वो चाँद जैसी लड़की इस दिल पे छा रही है ,वो चाँद खिला वो तारे हसे ये रात अजब मतवाली है ,ये चाँद सा रोशन चेहरा ,ये वादा करो चाँद के सामने भुला तो न दोगे मेरे प्यार को ;,इस तरह बहन हो बेटी हो ,बेटा हो ,प्रेमी हो प्रेमिका हो ,प्रेम का प्रस्ताव हो ,प्रेम की शिकायत हो , प्रेम का ताना हो या दूरी का दर्द हो ,प्रेम की ख्वाहिश हो या दिल के टूटने का बयां हो इंसान ने सबमे या तो माध्यम बनाया चाँद को या उसी के सर पर धर दिया सब शिकायत और उलाहना । 

कवियताये हो ,फ़िल्मी गीत हो या अन्य भी साहित्य की रचनाये , पेंटिंग हो या फोटोग्राफी सबके आकर्षण का केंद्र और रचना का आधार रहा है चाँद और चाँद केवल इंसानो को ही नहीं प्रभावित करता रहा बल्कि चकोर भी उसका दीवाना है तो इतना बड़ा अथाह समुद्र भी चाँद के प्रेम में पागल है ,ज्योही चाँद थोड़ा पास आता है समुद्र उछल पड़ता है उसे पाने को इस बात की परवाह किये बिना की उसके ज्वार में न जाने कितनो का क्या हो जायेगा । दूसरी तरफ वही इंसान चन्द्रमा पर पैर रख आया और उस दिन मेरे मन में आया था की अब चाँद की पूजा करने वाले क्या करेंगे क्योकि वो भगवान् नहीं रहा अब ,जो उसे देख कर रोजा तोड़ते है और जो उसे छननी में देख कर और पति को देख कर व्रत तोड़ती है वो अब क्या करेंगी पर मेरा डर निर्मूल निकला सब उसी तरह चल रहा है। सोचा मैने ये भी था की अब प्रेम कैसे होगा और चाँद कैसे मदद करेगा जब उस पर बस्ती बस जाएगी तो आजकल चंदा पर नए गाने और कविताये दिख नहीं रही है ,शायद साहित्य को विज्ञानं ने थोड़ा भ्रम मे डाल दिया है ,विज्ञानं भी जरूरी है पर ये क्या की सारी कल्पनाओ पर धूल डाल  देता है जबकि कल्पनाये ही विज्ञानं का आधार है पर ! ये विज्ञानं और साहित्य की लड़ाई पुरानी है और चलती ही रहेगी पर भावनाओ बिना ,प्रेम बिना इंसान क्या ?

तो मैं तो कल्पना के साथ हूँ ,भावना के साथ हूँ प्रेम के साथ हूँ ,विज्ञानं मेरे लिए प्रयोग की चीज है और प्रेम तथा भावना जीने की चीज है कल्पना जीने लिए भविष्य की ताकत और प्रेरणा की चीज है । तो चाँद मैं तो तुम्हे वैसे ही देखूंगा जब मौका मिलेगा और कोई मुफ्त में घर देगा तो भी तुम्हारी ऊपर वाली बस्ती में मैं तो नहीं जाऊंगा ,मै नहीं  मानता की बुढ़िया चर्खा  नहीं कात रही है ,मैं नही मानता की गरीब की रोटी की आस नहीं हो तुम ,मैं नहीं मानता की बिना छत  फुटपाथ और मैदान मे सोने वालो  का सहारा नहीं हो तुम ,मैं नहीं मानता कि बात नहीं करते हो तुम ,अभी बात ही तो कर रहा हूँ चाँद से मैं । और फोटो खींचने के पहले टहलना छोड़कर निहारता रहा मैं अपने बचपन के दोस्त चाँद को देर तक और बाते भी करता रहा जिसमे सवाल और जवाब दोनों मेरे ही मन के थे।  क्या आप चाँद को देखते है ? नहीं तो निकलिए घरो से और जैसे सूरज के सामने पीठ कर बैठते है स्वस्थ रहने को वैसे ही चांद  को सामने से निहारिये वैसे भी आप चाँद के लिए खीर बना कर रख देते है न पूरी रात की चाँदनी उतर आएगी उस खीर में और वो अमृत हो जाएगी बीमारियों से मुक्ति दिलाएगी तो चाँद को खुद ही निहार लीजिये रोज या जब दिखे खूब देर तक और अपनी शिकायत ,अपना दर्द सब उसी से कह दीजिये अकेलापन परेशांन नहीं करेगा और  आप आत्महत्या का विचार  क्यों लाते है और क्यों सोचते है की आप ही दुखी है ,बस चाँद की तरफ देखिये उससे प्रेम करिये और उसी से शिकायत फिर चादर तान कर रात के लिए सो जाइये ताकि सुबह जग सके नई ऊर्जा ,उत्साह और संकल्प के साथ।  अच्छा चाँद अभी के लिए विदा कहता हूँ ,कल फिर मिलेंगे।

सोमवार, 16 नवंबर 2020

रोज_सीमा_पर_जवान_शहीद_क्यो_हो_रहे_है

#रोज_सीमा_पर_जवान_शहीद_क्यो_हो_रहे_है ?
दो सवाल है -
पहला कि नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक से आतंकवाद तो खत्म हो गया था और फिर 56 इंच और लाल आंख का डर फिर रोज हमारे जवान शहीद क्यो हो रहे है 
दूसरा मरते तो उधर के जवान भी है फिर इस मौत के खेल का मकसद क्या है ? कुछ जीत हार होती ,जमीन छीन लेता कोई तो समझ मे भी आता 
वर्ना बिला वजह दोनो तरफ के घर क्यो सूने हो रहे है ?

रविवार, 15 नवंबर 2020

सत्ता में हो या विपक्ष में पर —

राजनीती में अगर विरोध में है तो संघर्ष और खुद के जनता के लिए कार्यक्रम और वादों को लोगो तक पहुंचना तथा सत्ता की हर बुराई और कमजोरी पर हमला करना और जनता के साथ हर पल खड़ा होना होता है ।
पर -----
अगर खुद सत्ता में है तो जितना जरूरी वादों को पूरा करना तथा विकास करना है उतना ही जरूरी वो काम तथा विकास बिना बाधा और भेद भाव के लोगो तक पहुंचे ये भी है ।
उससे भी ज्यादा जरूरी उसका सम्पूर्ण और आखिरी व्यक्ति तक प्रभावशाली प्रचार करना है ताकि लोग जहा अपने हक़ पर निगाह रखे तथा विकास की निगरानी करे वही उनके मनो में ये बैठे की आप क्या क्या कर रहे है ।
और -----
उससे भी ज्यादा जरूरी आखिरी कार्यकर्ता को भी सत्ता तथा संगठन दोनों से जोड़े रखना और उसे ये एहसास करवाना की वो भी सत्ता का बराबर का भागिदार है तथा उसके सुख और दुःख से पार्टी तथा सत्ता जुडी हुयी है ।
और ----
उससे साथ ही बहुत महत्वपूर्ण है केवल तन्त्र के बजे पार्टी तथा सरकार दोनों स्तरों पर समाज के मुद्दों से जुड़ना और सामाजिक मुद्दों पर भी सतत कार्यक्रम चलाना ।
और----
जरूरी है की विरोधी के हर राजनीतिक दांव पेंच को तुरंत भोथरा करते रहना ।विरोधी किसी चीज का श्रेय ले उसके पहले अपने ही संगठन से उठवा कर उसे श्रेय देना ।
विरोधी हमला करे उसके पहले उसके खेमे और उसके पाले में घुस कर उस पर सार्थक और धारदार राजनैतिक और सैधांतिक हमला कर देना और उसे उसके पाले में ही घेर कर उस पर हमला करते रहना ।
फिर जीत पर जीत आप की होगी क्योंकि जनता का और कार्यकर्ताओ का दिल जीत लेंगे आप ।विरोधी के हर वार को भोथरा और नाकाम कर देंगे आप ।

शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

ये कहा आ गये हम ?

ये कहा आ गये हम 

आज़ादी के बाद आज़ादी की लडाई की सूत्रधार , कर्ता धर्ता कांग्रेस थी जिसने कुर्बानिया दिया था और बस एक सपना लेकर चली थी की मुल्क को सैकड़ो साल की गुलामी से आजाद करवाना है और तानाशाही शासन से लडते वक्त कहा पता होता है की एक दिन अचानक तानाशाह हार कर चल देगा । ये भी तो हो सकता था की लडाई के सारे नायक एक दिन जेलो मे फाँसी चढा दिये जाते या गोलियो से भून दिये जाते ।
आज़ादी मिलने की आहट के साथ कांग्रेस के नेताओ ने सोचना शुरू किया की आजाद देश कैसा बनाना है और चूंकि अन्ग्रेज लूट ले गया था इसलिए संसाधन का भी अभाव था और उसी मे प्राथमिकता तय करनी थी । जवाहर लाल नेहरु ने और साथियो ने तय किया की पहली प्राथमिकता देश को देश की शक्ल देना , शान्ती स्थापित करना और जनता को विश्वास दिलाना है की अब मुल्क हम सबका है और सबको मिल कर बनाना और बढ़ाना है । इसीलिए उन्होने बाँध ,सिचाई के साधन नहरे , बिजली , हर स्तर की और हर तरह की शिक्षा , चिकत्सा इत्यादि को प्राथमिकता दिया तो भविष्यदृष्टा होने के कारण आई आई टी , आई आई एम बनाया तो जमीन से लेकर आसमान तक के अनुसंधान की तरफ भी कदम बढाया ।
वो नही चाहते थे की भारत व्यर्थ की चीजो मे पैसा खर्च करे इसिलिए पंचशील सिद्धांत द्वारा पडोसियों को संदेश दिया की लडाइ के बजाय सह अस्तित्व ही विकास की कुन्जी है और इसमे वो चीन से धोखा खा गये जिस गम मे दुनिया से चले भी गये परंतु जाने से पहले प्राथमिकता मे परिवर्तन कर सैन्य क्षेत्र के लिए भी ऐसी नीव रख गये की फिर 1965 से लेकर बंगला देश होते हुये अब तक उस क्षेत्र मे भी भारत दुनिया की चार ताकतो मे शुमार है ।
आज़ादी की लडाई मे देश के साथ नही रहने वाले या गद्दारी तक करने वालो ने आज़ादी से 22 साल पहले एक संगठन बनाया जिसको कुछ लोग रायल सीक्रेट सर्विस भी कहते है और उनका लगातार यह मानना था की अंग्रेज उनके दुश्मन नही है बल्की मुस्लमान और साम्यवादी उनके बड़े दुश्मन है और इस सोच ने अन्ततः ऐसा जहर पैदा किया की आज़ादी के बाद मुल्क ठीक से सम्हला भी नही था कि अहिंसा से इतनी बडी लडाई जीतने वाले बापू की ह्त्या कर दिया इस विचार ने ।
यह विचार देश ही नही दुनिया की निगाह मे अछूत हो गया तो इन लोगो ने नया पैतरा चला और अपना एक राजनीतिक संगठन बनाया और उसका नाम रखा जनसंघ । काफी दिनो तक इस संगठन को भी लोगो ने भाव नही दिया क्योकी एक तरफ आज़ादी की लडाई मे बडी भूमिका निभाने वाले अलग तरह सोचने वाले ज्ञानी लोगो ने सोशलिस्ट पार्टी बना लिया था जो बहुत प्रभावशाली थी तो राजाओ ने स्वतंत्र पार्टी और कार्ल मार्क्स के विचार भी रुस की क्रांती से दुनिया मे फैल गये थे तो भारत मे भी साम्यवादी पार्टी स्थापित हो चुकी थी ।
राजाओ की स्वतंत्र पार्टी ने आगे चल कर जब विभिन्न दलो के विलय से लोक दल बना था तो उसमे विलय कर लिया था महारानी गायत्री देवी , पीलू मोदी के नेतृत्व मे ।
साम्यवादी पार्टी ने बंगाल और केरल के साथ अन्य स्थानो पर भी मजबूत पैठ बनायी जो काफी दिन तक रही पर भारत की जमीन और भारत की भाषा और सपने से न जुड़ पाने के कारण और लम्बे समय तक रुस और चीन का पिछ्लग्गू दिखने के कारण उसका क्षरण होता गया ।
सोशलिश्ट पार्टी के नेता डा राममनोहर लोहिया जो जवाहर लाल नेहरु के मित्र थे और महात्मा गांधी के भी प्रिय थे अज्ञात कारणो या काल्पनिक भविष्य की परिकल्पनाओ के कारण उसी नेहरु के इतने विरोधी हो गये जो हमेशा चाहते थे की आचार्य नरेंद्र देव ,लोहिया और जयप्रकाश इत्यादि कांग्रेस मे ही रहे और नया भारत बनाने मे सत्ता मे शामिल होकर योगदान दे और गांधी जी भी यही चाहते थे पर बापू की आकस्मिक हत्या के कारण यह नही हो पाया और डा लोहिया इतनी दूर निकल गये की कांग्रेस के सामने अपने को असहाय समझने वाले लोगो को उन्होने एक संजीवनी दे दिया "गैर कांग्रेसवाद "की और अलग अलग विचार के तथा विचारहीन लोग भी एक नाव पर सवार हो गये ।कहा सोशलिश्ट, कहा जनसंघ ,कहा साम्यवादी तो मुस्लिम लीग तक सब एक नाव पर सवार हो गये यद्दपि पूर्व मे भी श्यामाप्रसाद मुखर्जी मुस्लिम लीग के साथ सरकार बना चुके और इस समय काफी जगहो पर कांग्रेस के ही दल बदलुवो के साथ कुछ ही दिनॉ के लिए सरकार बना लिया जिसने यह संदेश भी दिया और इन लोगो मे आत्मविश्वास भी जगाया की इस फार्मूले से सरकार बनायी जा सकती है और फिर इसी तरह बेमेल खिचड़ी सरकारे बनती रही और गिरती रही ।
इस बीच पहले ताकत को केन्द्रित करने के चक्कर मे कांग्रेस ने प्रदेशो मे अपने को कमजोर किया तो आपात्काल लगा कर आज़ादी की लडाई की पूंजी को गंवा दिया ।फिर भी बाद मे उसके लिए प्रायश्चित किया और देश को इस स्थिति तक ला खड़ा किया की देश दुनिया की 5 बडी अर्थिक और सामरिक ताकतो मे शामिल हो गया लेकिन मजबूत और व्यवहारिक नेतृत्व के अभाव मे अपने को सहेज तथा समेट कर नही रख पाने के कारण कांग्रेस कमजोर होती गई और समझौते करते करते क्षेत्रीय दलो का पिछ्लग्गू भी होती गई काफी बड़े क्षेत्र मे और दूसरी तरफ व्यवहारिक और लचीली राजनीती के अभाव मे अपने मजबूत लोगो को खोती चली गई ।
लोकदल और समाजवादी परिवार वाद को ,ऊच नीच की खाई को और 10%बनाम 90%को मुद्दा बना कर चले थे जबकी चौ चरण सिंह जब तक जिन्दा रहे उन्होने किसान को राजनीती के केन्द्र मे रखा पर प्रधानमंत्री तक पहुच कर भी खुद अपने कृषी अर्थशास्त्र को फैसलाकुन तरीके से लागू नही कर पाये । परिवार वाद के खिलाफ राजनीती मे आगे बढे हुये सभी सिर्फ परिवार नही बल्की खानदान वाद और जातिवाद के कीचड़ मे धंस गये आगे चल कर और 90 %की लडाई की बस बात करते रहे और खुद खानदान समेत 10% मे शामिल हो गये और जब इसपर कभी सवाल हुआ तो बेशर्म जवाब था की समता के साथ संपन्नता की लडाई लड़ रहे है वो और अभी कुछ लोगो अंबानी अडानी के साथ बैठे है कभी न कभी सब बैठ जायेंगे ।
बापू की हत्या के बाद पूरी दुनिया मे बदनाम हो गये लोगो ने नई रणनीति पर काम किया और भाषा तथा चेहरे पर प्रगतिशीलता का मुखौटा लगा लिया ,यहा तक की अपने संविधान मे गांधीवाद और समाजवाद को भी जोड़ लिया । जनसंघ की स्थापना के बाद के कई अध्यक्षो का नाम तो आज उनके नेताओ को भी नही याद है पर पहले दीन दयाल उपाध्याय के समय मे अन्त्योदय जैसी बातो से लोगो का ध्यान खीचा ।फिर लोहिया जी और उपाध्याय जी की मुलाकातो ने और साथ ने इनकी कालिख को कम कर समाज मे स्वीकार्यता बढाई तो आपातकाल के बाद जनता पार्टी मे शामिल हो और मंत्री बन कर चेहरे गढ़ने मे कामयाबी मिली ।जहा अटल बिहारी वाजपेयी के रूप मे रणनीतिक तौर पर एक उदारवादी चेहरा गढा गया और भारत के लिए स्वीकार्य बनाया गया वही अडवाणी जी ने 1977 मे ही सूचना प्रसारण मंत्री बनते ही अखबारो मे संघ के लोगो को भरना शुरू किया और आरएसएस की इच्छानुसार काम शुरू हो गया ।आगे चलकर विश्वनाथ प्रताप सिंह के रूप मे इन लोगो को एक और मोहर मिल गया और उन्हे राजा नही फकीर बना कर खुद को थोडा और मजबूत कर लिया ।अटल बिहारी वाजपेयी के चेहरे का फायदा उठा जहा केन्द्र से प्रदेश तक सत्ता पायी वही अपना संघी एजेन्डा भी जारी रखा ।
अन्ततः अन्ना ,विनोद राय जैसो का इस्तेमाल तो गुजरात मे हिन्दू अस्मिता का प्रतीक और फिर मॉडल से लेकर अच्छे दिन तक ने आरएसएस को भारी बहुमत की सत्ता तक पहुचा दिया ।
पर किसने किया क्या ? जो कांग्रेज़ सम्पूर्ण भारत को ही नही बल्की गुट निरपेक्ष आंदोलन के नाम पर 100 से ज्यादा देशो को समेट कर चलती थी वो अपने को भी समेटने मे असफल रही पर देश के प्रति समर्पण , दृष्टी , सपनो और संकल्प के कारण उसने जब और जितना मौका मिला देश के लिए सर्वश्रेस्ठ करने की कोशिश किया ।लेकिन साम्यवादियो ने तो जगह जगह कारखाने बंद करवा कर मजदूरो को बेकार ही किया और सही मायने मे मार्क्सवाद का विस्तार करने मे क्या अपने दल को भारतीय परिपेक्ष्य मे ढाल कर मजबूत करने मे पूरी तरह असफल रहे और अब नजर ही नही आ रहे है केरल के अलावा ।
समाजवादी आन्दोलन और लोहिया के विचार कही दफन हो गये और यह अन्दोलन पूंजीपतियो तथा भ्रष्टाचार की चेरी बन खानदान और जाति के मकडजाल मे फड़फड़ा रहा है और अन्तिम सांसे गिन रहा है ।
आरएसएस ने जरूर अपने को बहुत मजबूत बना लिया है और अपना विस्तार पूंजी से सत्ता के हर तंत्र तक कर लिया है ।चुनाव भाजपा लड़ती है और सामने वो दिखती है पर सत्ता का संचालन और फौसले आरएसएस के होते है ।बिना किसी जवाबदेही के सत्ता का पूरा उपभोग कर रहा है ये संगठन और अपने व्यक्तियो की पार्टी के संगठंन पर हर जगह तथा सत्ता और उसके संस्थनो मे हर जगह बैठता जा रहा है और इसके सभी लोग जिन चीजो की बदनामी होती है उन आरोपो से अछूते नही हौ 
है यद्दपि इसका कहना है कि ये संस्कृतिक संगठन है पर वह संस्कृतिक और समाजिक काम कही दिखता नही सिर्फ फोटो सेशन के अलावा न हिन्दू समाज के दुख दर्द मे ही कही भागीदारी दिखती है । हा भाजपा और उसके नेत्रत्व का चेहरा जरूर इन 6 सालो मे बदरंग हुआ है अज्ञानता और असफलता के कारण , अव्यव्हारिक फौसलो के कारण ।आज जहा देश अर्थिक इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक बदहाली का शिकार है तो सबसे बडी बेरोजगारी का भी ।विदेश नीति के हर मोर्चे पर फ़ेल है तो सारे पडोसियो से सम्बंध खराब किया बैठा है ।चीन ने इतने बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है तो नेपाल , भूटान और बंगला देश भी आंख दिखा रहे है । जनसंघ का नारा था हर हाथ को काम हर खेत को पानी दोनो पता नही कहा विलुप्त हो गये ,हिन्दी सिसक रही है तो देश की बर्बादी मे हिन्दू भी बर्बाद है और हिन्दुस्तन आईने मे खुद को पहचानने की असम्भव कोशिश कर रहा है ।दीन दयाल उपाध्याय का अन्त्योदय आखिरी पायदान पर बैठे अंबानी और अडानी की चौकीदारी कर रहा है ।
लिखने को तो बहुत कुछ है पर सोचने को सिर्फ इतना है कि क्या इसी के लिए इतनी लम्बी आज़ादी की लडाई चली ? क्या इसी के लिए लाखो ने कुर्बानी दिया ? क्या बापू ,भगत ,सुभाष से नेहरु तक के ख्वाब इसी तरह चकनाचूर हो जायेंगे ? क्या राजनीतक दल ऐसे ही अपनी स्वीकार्यता खोते रहेंगे अपने कर्मो से और विचलन से ? क्या भारत  आरएसएस और उसके गुरु गोल्वल्कर के सपनो का हिटलर वाला भारत बन जायेगा जहा सिर्फ और सिर्फ मौत का तांडव और बर्बादी ही बर्बादी होगी ।
और ये भी कि---ये कहा आ गये हम ? 
डा सी पी राय 
स्वतंत्र राजनीतिक चिंतक और वरिष्ठ पत्रकार 
फो -9412254400

गुरुवार, 5 नवंबर 2020

जातिवाद का दौगल चारित्र

जातिवाद को लेकर दोगले चरित्र होते 
कैसे खत्म होगा जातिवाद ?
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तमाम लोगो सहित मैं भी जातिवाद के आतंक से पीड़ित हूँ और उसके ख़त्म होने की कामना करता हूँ पर कैसे ख़त्म होगा जातिवाद ?  मैं ५५ के दशक  में गँव में पैदा हुआ और गाँव से जुडा हूँ और वो भी पूर्वांचल के पर मैंने अपने बचपन में भी जातिवाद का इतना उफान और इतनी घृणा नहीं  देखा था जब लोग पढ़े लिखे नहीं थे ,जितना अब पढ़े लिखो में देश रहा हूँ और वो भी जो तब पैदा हुए जब जातिवाद ख़त्म हो जाना  चाहिए था और कम से कम कही जातिवाद का जहर था भी तो स्कूलों कालेजो में सामान ड्रेस ,समान शिक्षा { उस स्कूल और कालेज में } के कारन ख़त्म हो जाना चाहिए था ,,उस वक्त जातियां थी पर एक दूसरे की पूरक थी और पूरा गाँव एक परिवार था ,किसी का कोई कम नही  रुकता था ,सब सब पर आश्रित थे और सब सबका ध्यान रखते थे और सम्मान करते थे 
किसी भी जाति के व्यक्ति के साथ अकेले बैठ जाइये और उसकी जाती का इतिहास भूगोल पूछ लीजिये फिर देखिये उसकी गौरव गाथा  और साथ उसकी जाती में कौन कौन आता है देश भर में उनमे कौन उच्च है और कौन नीच ,उसकी कितनी धाराये होती है और किनकी किससे शादी नहीं होती ,कौन किसके यहाँ उसी जाती में भी खाना क्या पानी भी नहीं पीता इत्यादि सब सुनने को मिलेगा 
इस पर पूरा लेख बाद में लिखूंगा अभी केवल अपने आसपास के चेहरों का बिना नाम लिखे चरित्र उजागर कर आहा हूँ बड़ा सन्देश देने को काफी लोगो को जिनमे इतनी घृणा भरी है की लगता है कोई बड़ा युद्ध छेड़ने की तैयारी में है जाती के नाम पर समाज में और वो भी आरपार की मार काट वालीं 
मेरे साथ सभी वर्गों के लोग जुड़े है और खुद को समाजवादी भी कहते है पर जैसे मैं उन्हें समाजवाद नहीं पढ़ा पाया सचमुच में इतने सालो में वैसे ही उनमे संस्कार भी नहीं डाल पाया समाजवाद का ,कह सकते है की मेरी असफलता है पर वो सभी मेरे साथ तो कभी कभी कुछ घंटे रहते है बाकि सारा समय तो अपने परिवार और अपनी जाती के साथ रहते है सारी शिक्षा उर संस्कार तो वहा का भरा पड़ा है खून के कतरे कतरे में 
जो साथी प्रमुख पिछड़े वर्ग के है वो बताते है की की हमारा फला धारा से तो शादी ब्याह का रिश्ता ही नहीं पर कुछ लोग महत्वपूर्ण हो गए तो कुछ लोग करने लगे पर हम तो अभी भी नहीं करते है 
जब कभी मैं किसी दलित या मुसलमान के यहाँ किसी अवसर पर जाता हूँ तो ये कन्नी काटने की कोशिश करते है और चले गए तो तबियत कुछ खराब  होती है और वहा खाना पानी कुछ नहीं
जो साथी बघेल जाती के है क्या मजाल की उनकी आप दलित या मुसलमान के घर पानी भी पिला दे ,जो दलित जाती के है उनको बाल्मीकी के घर आप खला पिला नहीं सकते है ;बेचारे देखते रहते है मन मसोस कर और हम खाते पीते रहते है
कौन बड़ा जातिवादी है और जाती के नाम पर भीतर तक घृणा रखता है ?
कुछ ऐसा ही चरित्र है समाज का सम्पुर्ण ,ब्राह्मण सरयूपारी ,कान्यकुब्ज इत्यादि में फंसा है तो क्षत्रिय भी अपने अलग अलग धाराओं में ,बनिया  हो या अन्य सभी का यही हाल है ,पिछड़े और दलित भी इसी चरित्र के साथ जी रहे है तो मुसलमानो से भी सुनता हूँ की फला तो फला है और ऐसा होता है
कौन ख़त्म करेगा जातिवाद ?
और ऐसे चरित्र वाले जब उपदेश देते है और घृणा का हद दर्जे का प्रदर्शन करते है तो आइना दिखाना ही पड़ता है

दगाबाजो_के_देवता

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

#दगाबाजो_के_देवता --

क्यों कुछ लोग ऐसे होते है की उन पर विश्वास करें या नहीं करें कुछ समझ में नहीं आता है । पर इसके लिए जिम्मेदार भी तो वही होते है, अपने अनिर्णय के कारण और कभी कह कर मुकरने के कारण । क्यों कुछ लोग होते है जिनके लिए कभी बहुत सम्मान पैदा होता है मन में पर दूसरे ही पल घृणा होने लगती है उनसे । जब कोई ऐसी स्थिति से लगातार गुजर रहा हो तो कैसी उथल पुथल भरी होती है उसकी जन्दगी में ,उसके मन में और उसके खून के कतरे कतरे में ।

कुछ लोग बहुत बड़े हो जाते है लोगो को इस्तेमाल कर और सीढियां बना कर ,तमाम लोगो के साथ फरेब कर ,तमाम लोगो के साथ कसाई बन कर उसकी उम्मीदों उसके भविष्य और उसके दिल पर छुरियां चला कर बार बार । न जाने कितनो की क़ुरबानी होने और उनकी जिंदगियों को मिटा कर और उन्हें पावडे बना कर उसे खूबसूरत कालीन समझ उस पर चल कर बुलंदियां पाते है ये लोग । घायल कितने पड़े है पीछे उन्हें वैसे ही भूल जाते जाते है जैसे चलते हाथी को पता ही नहीं होता की कितने कीड़े मकोड़े शहीद हो गए उसके पैरों के नीचे । सच है ऐसे लोगो को लोग कीड़े मकोड़े से ज्यादा महसूस ही नहीं होते कभी भी ।

ये किसकी कहानी है क्या बताऊ । ऐसी तमाम कहानियां बिखरी पड़ी है चारो तरफ और ऐसे चरित्र कोई कहानी के काल्पनिक पात्र नहीं बल्कि चारो तरफ फैले हुए । इनके शिकार भी भरे हुए है चारो तरफ । नाम लेना जरूरी नहीं है और ऐसे लोग नाम नही बस बड़े होते है और हजारो साल पहले ही किसी ने कह दिया था की ; समरथ को नहीं दोष गुसाई ;। बाकी लोगो के भी नाम नहीं बस वे इस्तेमाल होने और गर्त में खो जाने वाले कीड़े मकोड़े है ।

ऐसा मंथन सचमुच समुद्र मंथन से कम नहीं होता है । समुद्र मंथन में तो विष निकला था तो अमृत के साथ बहुत सी अच्छी चीजें भी निकली थी ,पर इस समुद्र मंथन में तो केवल विष ही निकलना है और निकल भी रहा है ।

इस विष की कहानी से दूर बड़े मस्त है अपने वैभव ,अपनी आभा ,अपनी सत्ता और अपने गुरूर में । उन्हें परवाह ही नहीं  है की कोई जीए या मरे । कोई  रहे या न रहे । कोई अपमानित हो या सम्मानित । उन्हें तो बस अपनी और अपनों की चिंता है और चिंता है लाखो साल आगे तक की सत्ता और वैभव की । पता नहीं इन्हें राम ,कृष्ण ,बुद्ध ,महावीर ,नानक ,ईशा ,रावण ,कंस ,जदीज और तमाम राजाओं ,नवाबो की उठती और डूबती जिंदगियो से कुछ सीखने को मिला है या नहीं । पता नहीं दुनिया के सिद्धांतो से ऊपर उठकर इन्हें अमरत्व मिल गया है क्या ? क्या इन्हें कोई वरदान मिल गया है की ये और इनके अपने लाखो साल तक सत्ता और वैभव भोगेंगे ,बिना किसी बीमारी के ,बिना किसी पतन के । इन्हें ये अमरत्व मुबारक ,इन्हें ये वैभव मुबारक ,इन्हें ये सत्ता मुबारक ,इन्हें लोगो की हत्या मुबारक ,इन्हें लोगो को दिए धोखे मुबारक ,इन्हें आगे भी इनके हाथ से चलने वाली छुरियां मुबारक ,इन्हें इनकी चालबाजियां मुबारक । ये कौन है ---- ये मै क्यों बताऊँ ? आप सभी आँखें खोलिए और देख लीजिये ऐसे किसी एक को या बहुतों को । आप को ये ज्ञान मुबारक जो आप को ऐसे लोगो से बचा सके ।

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

संघी और ऐसे व्यापार

पिछले सालो से लिख और बोल रहा हूँ जो सत्य हो साबित हुआ है ---

संघ के लोग अगर चाहे तो किसान का शोषण न हो और उसे वाजिब दाम मिले | संघ के लोग अपना मूल कार्य मुनाफाखोरी , मिलावटखोरी और जमाखोरी बंद कर दें तो देश में मंहगाई बहुत कम हो जाये | पता नहीं लोग इन्हें बेनकाब क्यों नहीं करते है ??? सारा बिचौलिया कारोबार और ये सब काम करने वालो को हर शहर के लोग पहचानते है ,सुबह किसी मैदान में आदर्श की बात करते और लाठी भाला चलाते देख सकते है और दिन में दुकानों पर ये सब करते हुए इन्हें पहचाना जा सकता है |

पाकिस्तान के अर्बन नक्सल

पाकिस्तान मे भी बडी जमात है जो गलत को गलत कहती है और इसके खिलाफ सड़क पर खड़ी हो जाती है ।
याद है जब हमारे पाइलट अभिनंदन के लिए तमाम छात्र छात्राओ का हुजूम निकल आया था हाथ मे तख्थियां लेकर उनको रिहा करने की मांग का ।
हमारे दोस्त और जाने माने पत्रकार पीरजादा भी ऐसे लोगो मे है जो हमारे बिचार युद्ध मुक्त देश , सीमा मुक्त पड़ोसी , फौज मुक्त सीमा और पडोसियो के ढीले ढाले महासंघ के पक्ष मे है ।
देख लीजिये अपने देश मे अपनो से लड़ रहे है एक बुराई के खिलाफ ।
पर भारत मे संघ परिवार की निगाह मे ऐसे लोग देशद्रोही और अर्बन नक्सल होते है ।

क्या होगा देश का

#राजनीतिक_दल कोई भी रहे हो 
पर पहले वो अपने संविधान और अच्छे बुरे विचारो और कुछ वैचारिक पुस्तको से, संगठन और कार्यकर्ताओ से चलते थे 
पर 
अब तो आयकर ,ई डी और सुपारी मीडिया , विदेशी सलाहकार और पी आर एजेन्सियाँ इत्यादि उनका मार्ग निर्धारित कर रहे है और चला रहे है ।
क्या होगा देश का और लोकतंत्र का ?

तिलक_तराजू_और_तलवार

#तिलक_तराजू_और_तलवार 
इनको   मारो   जूते    चार 
कहते कहते कब तराजू मे दौलत तौलने लगी , कब तिलक को माथे से लगा लिया और कब भ्रष्टाचार की तलवार से अपना ही अंग भंग कर लिया पता ही नही चला ।
अब झूले मे सो जाना ही नियति है ।
बस यूँ ही ।

पिछड़ो मे घृणा

पिछडी जाति के नेताओ को आगे बढने की प्रेरणा और मदद अगड़ो ने ही किया 
किसी का भी इतिहास देख लीजिये 
पर पता नही इन लोगो को अगड़ो से इतनी घृणा क्यो है 
और 
खासकर नई पीढी तो जहरीले हद तक घृणा से सराबोर है ।

भारत के पिछड़े और दलित नेता

जिन #नेताओ की #राजनीती की बुनियाद #90% जनता बनाम 10% सेठो से की हक की लडाई थी और मकसद इस खाई को पाटना था 
वो सब के सब खाई पाट कर पूरे #खानदान और #रिश्तेदार सहित खुद ही 10% #सेठो_मे_शामिल हो गये ,
चाहे जिसका बहीखाता देख लीजिये । 
नाम तो सब आप की जानते है केन्द्र की सत्ता, आयकर और ई डी भी ।

बाबू जगजीवन राम

बाबा साहेब अम्बेडकर के विचारो के बाद पूरे भारत के  #वंचित_समाज के #असली_नेता थे #बाबू_जगजीवन_राम ,जो कांग्रेस के अध्यक्ष रहे तो रक्षा मंत्री सहित विभिन्न विभाग के मंत्री और हर विभाग के सफल मंत्री ।
आपात्काल के खिलाफ कांग्रेस छोड दिया था और बन गये थे जनता सरकार के उप प्रधान मंत्री ।
वंचितो के नेता के नाम पर अब तो बस पूजिवादी हवस और ऐयाशी के मकसद वाले फर्जी नेता है सब और नितांत नाकाबिल भी ।

संघी जवाब नही देता प्रतिप्रश्न करता है

संघी विचारधारा के लोग आप से अक्सर एक धर्म विशेष के किसी मुद्दे पर सवाल पूछ लेते है कि इस पर भी कुछ बोलिए ।
मुझसे भी आज फिर पूछ लिया 
तो मैने कुछ ऐसे
जवाब दिया --

मुझे तमाम किसानो और बेरोजगारो की आत्महत्या पर , उत्तर प्रदेश मे तमाम सधुवो की हत्या पर , चीन द्वारा 1300 वर्ग मील कब्जे पर , देश की अर्थिक बर्बादी पर , इन सब मुद्दो पर आरएसएस की चुप्पी पर ,संघियो द्वारा की जा रही मिलावटखोरी, जमाखोरी,मुनाफाखोरी इत्यादि इत्यादि जैसी एक हजार चीजो पर आप के कमेँट की प्रतीक्षा है 
और 
देश की आज़ादी से लेकर आज तक की जा रही गद्दारी पर और देश को बेचने पर भी आप के कमेँट की प्रतीक्षा है ।

भाजपा भी तुष्टीकरण की राह पर

जब दूसरी सरकार ने ये पैसा दिया था अल्पसंख्यक बेटियो को तो वो #तुष्टीकरण कहा गया और सुपारी मीडिया मे भी खूब उछला 
पर अब भाजपा सरकार मे -?-

#अल्पसंख्यक_बेटियों_को_बीजेपी_सरकार_का_तोहफा
अल्पसंख्यक समुदाय की पुत्रियों को तोहफा
विवाह में बेटी को 20 हज़ार रुपये की दी जाएगी सहायता ।

अभिशप्त प्रदेश

#उत्तरप्रदेश और #बिहार क्यो #अभिशप्त हो गये है इस कदर #जातिवाद से 
जिस जाती का नेता , केवल उस जाती की सरकार बन जाती है और वो जाति जालिम तथा लुटेरी बन जाती है ।
जबकी बहुमत की सरकार बिना सबके कम या अधिक वोट के बन ही नही सकती है ।
मुद्दे और आकांक्षाये गर्त मे चली जाती है 
और सनक , ऐय्याशी और संपत्ति का नशा सर चढ़ कर बोलता है अगली बार हारने तक ।

बिहार चुनाव पर एक नजर



बिहार चुनाव पर एक नजर 

बिहार मे तेजस्वी की रैलियाँ तो नम्बर एक का इशारा कर रही है 
पर रैलियो मे सुनने की गम्भीरता का अभाव भी दिख रहा है और तेजस्वी के बोलते वक्त भी लगातार होता हुडदंग मेरे राजनीतिक चिन्तन और आकलन को थोडा विचलित भी कर रहा है ।
कांग्रेस मे तो भष्मासुरो की भरमार है और चिराग रोशनी के बजाय विपरीत हवा बहा रहा है ।
कभी भाजपा के खिलाफ प्रधानमंत्री मटेरियल माने जाने वाले नितीश मुख्यमंत्री के लिए भी महंगे होते दिख रहे है तो सत्ता की मलाई चाट कर भाजपा ने बडी चालाकी से चाटा हुये दोने की गन्दगी नितीश के मत्थे मढ़ने मे कामयाबी पा लिया है ,ऐसा लगता है ।
कई बार नये हो या पुराने छोटे खिलाडी भी मैदान मे थका देते है और उनसे जीतने वाला भी उस थकान मे बराबरी के पहलवान से मार खा जाता है ।
वैसे ये बिहार है जिससे एक जमाने तक देश को दिशा दिखाने और देश के लिए लडाई छेड़ने की उम्मीद की जाती रही है पर श्री बाबू , दिनकर , जयप्रकाश ,कर्पूरी जैसो की धरती मे राजनीतिक खाद की जगह यूरिया ने उर्वरा शक्ति उत्पादकता  को शायद बहुत चोट पहुचाया है ।
गम्भीर बहस चुनाव से गायब है और अपने अपने पुराने हथियार पर ही शान चढ़ाने की सभी की कोशिश दिख रही है जो एकतरफ़ा फैसलाकुन तो नही दिख रही है ।
इस बार कुर्सी खाली करो की जनता आती है नारा अभी तक तो किसी भी कोने से सुनायी नही दिया ।
दुष्यंत की पंक्तियाँ कि सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही मेरी कोशिश है की कुछ सूरत बदलनी चाहिये जैसी आवाज भी अभी तक कही से नही आई है जबकी चुनाव प्रचार उठान ले चुका है और सारे महारथी सवार हो चुके है अपने रथो पर ।
ऐसा भी नही सुना अब तक कि "पक गई है आदते बातो से सर होंगी नही ,कोई हंगामा करो ऐसे गुजर होगी नही ।
तो कैसा हो गया ये बिहार ? ये वो बिहार तो नही जहा जेल तोड कर अंग्रेजो को चुनौती दिया था जयप्रकाश ने और ये वो बिहार भी नही है जहा के गांधी मैदान मे सशक्त नेता इन्दिरा गांधी को तार्किक और फैसलाकुन चुनौती दिया था ।
अब अगर किसी भी तरह चाहे धर्म या जाती ,धन या धमकी ,शराब या ताड़ी ही सरकार बनने की बुनियाद हो जाये और मुद्दो पर बहस और जवाबदेही कोसी की बाढ  मे बह गई हो और नंगा भूखा मतदाता भी जाती और धर्म मे ही आत्मसम्मान और भविष्य तलाश रहा हो तो क्या बात करना इस चुनाव की और क्या आकलन करना की क्या होगा और इस चुनाव के परिणाम का बिहार के भविष्य पर देश की राजनीती के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा । जो जीतेगा वो लूटेगा और बिहार तथा यहा का किसान मजदूर वैसे ही एक रोटी और कपडे के लिए देश भर मे भटकेगा । शिकायत करने का अधिकार भी कहा है फिर जनता को की सत्ता ने उसके लिए क्या किया ? क्योकी आपने पूछा ही नही किसी भी चुनाव मे की पिछ्ले 5 साल मे क्या किया और फिर ये भी नही की बताओ की अगले 5 साल मे कौन कौन  क्या करेगा ? वो सुन कर और गुन कर वोट डालते तो वो होता और उसके लिए सबकी जवाबदेही होती ।
जो बोवोगे वही तो काटोगे आप चाहे जनता हो , कार्यकर्ता हो या नेता हो ।
तो आईये इन्तजार करते है बिहार के चुनाव मे पाकिस्तान , मुस्लमान ,
कश्मीर,अगड़ा , पिछड़ा , यादव , कुर्मी , पासवान , 
माझी , ठाकुर , ब्राह्मण ,  भूमिहार , कायस्थ जैसे महत्वपूर्ण मुद्दो पर मतदान का । बाढ ये क्या होती है ,चमकी बुखार ये क्या होता है , बेकारी ये क्या होती है , मजदूरो का पलायन या फिर सड़क पर हजारो मील का सफर याद नही ,अपराध देखा नही , पढाई चाहिये नही । छोडिए इन फालतू चाय या काफी के समय की चर्चाओ को ।
आईये बिहार को और बदतर बिहार बनाये है ।
क्या है संभावनाए ?

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

बचपन_का_दोस्त_चांद

#बचपन_का_दोस्त_चांद 

रात को खाना खाने के बाद टहलने निकला तो आसमान में कुछ चमकता सा दिखा , गौर से देखा कि अरे ये तो अपना बचपन का दोस्त चाँद है जिसे मैं जब गांव में रहता था तब रोज देखता था , आसमान साफ था इसलिए दिख गया चाँद वर्ना कहा दिख पाते है चाँद  सितारे शहर में।  सचमुच शहर बहुत सी चीजों को पाता है तो बहुत सी चीजों से मरहूम रह जाता है खासकर प्रकृति के साथ से। शहर में भी आ गया था तो जब तक छत वाला घर घर था या वो कालेज वाला का घर जहां गर्मियों में बाहर चारपाई बिछा कर बिना डर के सो सकते थे तब भी कई बार देखा था चाँद को ।  हा चाँद देखने को शहर वालो को किसी त्यौहार या आयोजन का इन्तजार करना होता है ,महिलाये करवा चौथ पर देख पाती है तो कुछ लोग रोजा तोड़ने के लिए तो बाकि लोग पता नहीं क्यों चंद्र ग्रहण देखने के लिए। आगरा के लोगो का तो उत्सव होता था शरद पूर्णिमा में ताजमहल जाना ।  शरद पूर्णिमा के दिन चाँद पूरा निखरा हुआ होता है जिसे कहते है फूल मून और पहले इस दिन ताजमहल रात भर खुलता था और लाखो लोग ताजमहल जाते थे और इतनी ज्यादा भीड़ होती थी की भारी पुलिस लगानी होती थी और एक तरफ से आने और दूसरी तरफ से जाने का इंतजाम करना होता था ,सीढिया छोटी पड़  जाती थी तो नए रास्ते बनाने होते थे और मचान टाइप फिर भी शरीर से शरीर टकरा कर चलते थे और कई बार तो लगता था की कही रेला लोगो को गिरा न दे वर्ना न जाने कितने लोग घायल हो जायेंगे पर अधिकतर लोग परिवार के साथ पहले ही जाकर खाना पीना साथ लेकर ताजमहल के सामने के लान में जगह घेर लेते थे क्योकि तब तक ये सब मना नहीं था और वही बैठे बैठे निहारते थे ताजमहल और चद्नी या प्रचलित नाम चमकी ।  दरअसल ताजमहल में ऊपर चारो तरफ ऐसे पत्थर लगे है जो चाँद की रौशनी पड़ने पर चमकते है या रौशनी को परवर्तित करते है और ये तो पूरी रात शेर होता था की ;वो चमकी ; ये शोर कुछ लोग तो सचमुच जो देखने गए होते थे उसके लिए करते थे पर नौजवान अक्सर क़िसी लड़की को देख कर हल्ला करते थे और कुछ हरकते भी ।  काफी लोग पुलिस का लॉकअप भी देख लेते थे इस चक्कर में । चांद का करिश्मा देखिये की दुनिया में मशहूर ताजमहल की भीड़ भी उस दिन बढ़ जाती थी जब चाँद चार चाँद लगा देता था । उस वक्त जब चांद से सामना हुआ इतने लम्बे अरसे बाद तो लगा की चाँद शिकायत कर रहा है और उसका मुँह फूला हुआ है कि तुम तो हमें भूल ही गए ।  थोड़ा शर्मिंदा तो हुआ मैं फिर खो गया उन बचपन की यादो में जब रोज ही चाँद देखता था मैं और साथ ही तारे भी।  तारो को गिनने की कोशिश करना और गिनने की दूसरो को चुनती देना और सबका ही हार जाना हमेशा ही होता था।  वो सप्त ऋषि यानि सात तारो को ढूढना भी कितन अच्छा लगता था और आश्चर्य होता था की उनका क्रम बदलता ही नहीं ,लगातार बिलकुल उसी क्रम में और वैसे ही कोण पर मौजूद है सातो ।  पुंछल तारा भी तो दिखता था कभी कभी और उसकी तरह तरह की कहानिया सुनाते थे बुजुर्ग लोग।  ये बाते तो अक्सर होती थी कि किसी की  हाल में ही मृत्यु हुयी हो तो वह उन्हें किसी नए तारे के रूप में खोजता था और बताता था अपनों को कि देखो वो है तुम्हारी नानी नाना दादा दादी या जो भी रिश्ता रहा हो।  मैंने भी जब बाबा से पुछा था की आजी कहा गयी तो वो किसी तारे को दिखा देते थे की वो है भगवांन के पास। 

चाँद भी क्या है की बचपन में माताए चंदा मांमा दूर के पुए पकाये बूर के आप खाये थाली में मुन्ने को दे प्याली में प्याली गयी रूठ मुन्ना गया रूठ गा गा कर धीरे कौर कौर ठूसते ठूसते पूरा खाना खिला देती थी बच्चे को पर बच्चे भी कहा मानने वाले थे वो मैया मोरी चंद खिलौला लैहों कहने लगते और चाँद की मांग लेते खेलने को तो बहलाना पड़ता था गरीब और भूखे बच्चे को चाँद को रोटी बता कर तो बाकी बता कर की देखो वो बुढ़िया चरखा कात रही है और कपङा बना लेगी तो तुमको देगी ,पर चंदा भी कम थोडे है तभी तो ठंढी हवा की शिकायत कर -हठ कर बैठा चांद एक दिन माता से यह बोला सिलवा दो मा मुझे ऊँन का मोटा एक झिंगोला , मांगने लगा । चांदनी रात में नौका विहार पर निबंध भी खूब लिखवाया गया तो प्रेमियों के लिए आकर्षण की चीज रहा है चाँद ,;आजा सनम मधुर चांदनी में हम तुम मिले तो ; तो किसी को यही चाँद  दर्द भी देता रहा है ,केदार नाथ सिंह को अँधेरे  पाख  का चाँद अच्छा लगा तो त्रिलोचन ने कल्पना किया कि ;अगर चाँद मर जाता ,विजय कुमार को चाँद अघोरी लगा तो अवतार को अमावस का चाँद अच्छा लगा ,नरेश सक्सेना ने सुना की आधा चाँद मांगता है पूरी रात ;तो राजेंद्र रहबर की किसी से शिकायत थी की ईद का चाँद हो गया कोई ,वैसे इसका इस्तेमाल तो कई तरह करते रहे लोग कोई शिकायत के लिए तो कोई ताने के लिए ,गणेश पण्डे को सदेश देना था तो उन्होंने ;उस चाँद से कहना ;से भिजवा दिया संदेश ,विष्णु नगर को भी ;एक दिन चाँद ; दिखा ,राघवेंद्र अवस्थी को ;मेरे चांद पर बने बंगले पर हलचल दिखी ,ज्योति खरे कोने में बैठ गयी चाँद से बतियाने ,धर्मवीर भारती को मदभरी चांदनी अच्छा लगी ,तो जावेद अख्तर को दरिया का साहिल हो और पूरे चाँद हो और तुम आओ में कुछ कुछ हुआ ,तो कुंवर नारायण को कुछ ऐसा क्यों लगा ;रात मीठी चांदनी है मौत की चादर तनी है ,और वासना के ज्वार उठ चन्द्रमा तक खिंच रहे ,बालकवि बैरागी ने चंदा से कहा ,तू चंदा मैं चांदनी तू तरुवर मैं शाख रे ,केदार नाथ अग्रवाल को चाँद अकेला दिखा ,तो बच्चन को चांदनी फैली गगन में चाह मन में लगी ,किसी को चाँद उगने का इंतजार रहता है तो किसी को चांद तू जा में रूचि है ,बशीर बद्र का चाँद कही राहो में खो गया ,तो राकेश कौशिक को चाँद बूढ़ा लगा मुक्तिबोध को चाँद का मुँह टेढ़ा दिखा , तो दिनकर जी की रूचि चाँद के कुर्ते में भी थी , मीना कुमारी को चाँद बहुत तनहा तनहा लगा तो शकेब जलाली की शिकायत है की;गले मिला न कभी चाँद वख्त ऐसा था ,बच्चन जी ने बताया की मुझसे चाँद कहा करता था तो साहिर लुधियानवी को चाँद के मद्धम होने से शिकायत है ,किसी को गुलाबी चाँद ने याद किया तो शीन काफ को घाटी का चाँद अच्छा लगा ,शमशेर बहदुर सिंह ने चाँद से थोड़ी गप्पे मारी ,किसी को चाँद झुका दिखा तो किसी को सदियो से चांद  की पीड़ा दिखी किसी को झुरमुट में अटका चाँद दिखा तो मुक्तिबोध को इंतजार था की डूबता चाँद कब डूबेगा ,किसी को लगा कि चाँद सुरागकशी करने निकला है ,बच्चन ने आह्वान किया की चाँद सितारों मिल कर गाओ ,तो निसार अख्तर को उम्मीद है की सौ चाँद चमकेंगे।  बस चाँद एक अनबूझ पहले की तरह साहित्य के इस कलम से उस कलम तक इस पन्ने से उस पन्ने तक सफर कर रहा है लगातार। 

ऐसा नहीं की कविता तक सीमित है चाँद झूम कर तो कभी ग़मगीन होकर खूब गाया भी गया है चाँद , खोया खोया चाँद , खुला आसमान , आँखों में सारी  रात जाएगी की तकलीफ तो चलो दरदार चलो चाँद के पार चलो की ख्वाहिश , चाँद छुपा बादल में तो चाँद सिफारिश जो करता हमारी तो देता वो तुमको बता कह कर भी कह दी गयी बात अपनी ,और ये भी तो कहा  गया बडी शिद्दत से की चौदवी का चाँद हो या आफताभ हो जो भी हो खुद की कसम लाज़वाब हो ,मैंने पुछा चाँद से गाया गया तो आजा सनम मधुर चांदनी में हम तुम ;तो गली में आज चाँद निकला हो ये रात ये चाँद ,सब जगह चाँद ही मिला अपनी बात कहने को शिकायत करने को ,प्रेम का इजहार करने को या दिल टूटने की शिकायत करने को। 

बाकी आरे  आवा पारे आवा नदिया किनारे आवा जैसे गाने भी सुने थे बचपन में तो आजा रे चांदनी हमारी गली चाँद ले के आजा ,आधा है चन्द्रमा रात आधी , ऐ चाँद तेरी चांदनी की कसम ,मेरा चाँद मेरे पास है गाकर कैसा गरूर दिखा दिया चाँद को ही ,चाँद आहे भरेगा फूल दिल थम लेंगे ,चाँद एक बेवा चूड़ी की तरह ,,चाँद जाने कहा खो गया ,तो चाँद जैसे मुखड़े पर बिंदिया सितारा नजर आया और गा दिया किसी ने ,तो चाँद के पास जो सितारा है वो सितारा हंसी लगता है गाकर भी चांद को ही चिढा दिया  ,चाँद की कटोरी है रात ये चटोरी है ,चाँद ने कुछ कहा रात ने कुछ सुना  गाने मे अलग अंदाज से बात कही तो चाँद  निकलेगा जिधर हम न देखेंगे उधर क्या बात है इस गाने में , चाँद  निकला मगर तुम न आये का दर्द भी उड़ेल दिया प्रेमी ने गाकर ,चाँद सा मुखड़ा क्यों शरमाया , आंख मिली और दिल घबराया ,चाँद से पर्दा कीजिये कही चुरा न ले चेहरे का नूर ,चाँद सी महबूबा हो मेरी  कब ऐसा मैंने सोचा था जैसे गाने में चाँद ने खूब धूम मचाई तो माँ ने ;चंदा है तू मेरा सूरज है तू गाकर बच्चे को रिझाया ,चाँद को ढूढने सभी तारे निकल गए ,चंदा मांमाँ से प्यारा मेरा मामा ,चाँद वो चाँद किसने चुराई तेरी मेरी निदिया ,चंदा रे मेरे भैया से कहना बहना याद करे , चंदा रे चंदा कभी तो जमीन पर आ , चंदा रे जा मेरा सन्देश पिया से कहियो ,चंदा से मेरी पतिया ले जाना , चंदा तोरी चांदनी में जिया जला जाए ,धीरे धीरे चल चाँद गगन में , तो गगन के चंदा मत पूछ हमसे कहा हूँ मैं दिल मेरा कहा , जब तक जगे चाँद गगन में मेरे चाँद तुम सोना नहीं ,वो चाँद जहा वो जाए तू भी साथ चले जाना ,रात के मुसाफिर चंदा जरा बता दे मेरा कसूर क्या है तू फैसला सुना दे ,तुझे सूरज कहु या चंदा ,तुम  चन्द्रमा हो मैं धरा की धूल हूँ ,उस चाँद से प्यारे चंदा हो तुम आकाश पे जो मुस्कराता है, वो चाँद जैसी लड़की इस दिल पे छा रही है ,वो चाँद खिला वो तारे हसे ये रात अजब मतवाली है ,ये चाँद सा रोशन चेहरा ,ये वादा करो चाँद के सामने भुला तो न दोगे मेरे प्यार को ;,इस तरह बहन हो बेटी हो ,बेटा हो ,प्रेमी हो प्रेमिका हो ,प्रेम का प्रस्ताव हो ,प्रेम की शिकायत हो , प्रेम का ताना हो या दूरी का दर्द हो ,प्रेम की ख्वाहिश हो या दिल के टूटने का बयां हो इंसान ने सबमे या तो माध्यम बनाया चाँद को या उसी के सर पर धर दिया सब शिकायत और उलाहना । 

कवियताये हो ,फ़िल्मी गीत हो या अन्य भी साहित्य की रचनाये , पेंटिंग हो या फोटोग्राफी सबके आकर्षण का केंद्र और रचना का आधार रहा है चाँद और चाँद केवल इंसानो को ही नहीं प्रभावित करता रहा बल्कि चकोर भी उसका दीवाना है तो इतना बड़ा अथाह समुद्र भी चाँद के प्रेम में पागल है ,ज्योही चाँद थोड़ा पास आता है समुद्र उछल पड़ता है उसे पाने को इस बात की परवाह किये बिना की उसके ज्वार में न जाने कितनो का क्या हो जायेगा । दूसरी तरफ वही इंसान चन्द्रमा पर पैर रख आया और उस दिन मेरे मन में आया था की अब चाँद की पूजा करने वाले क्या करेंगे क्योकि वो भगवान् नहीं रहा अब ,जो उसे देख कर रोजा तोड़ते है और जो उसे छननी में देख कर और पति को देख कर व्रत तोड़ती है वो अब क्या करेंगी पर मेरा डर निर्मूल निकला सब उसी तरह चल रहा है। सोचा मैने ये भी था की अब प्रेम कैसे होगा और चाँद कैसे मदद करेगा जब उस पर बस्ती बस जाएगी तो आजकल चंदा पर नए गाने और कविताये दिख नहीं रही है ,शायद साहित्य को विज्ञानं ने थोड़ा भ्रम मे डाल दिया है ,विज्ञानं भी जरूरी है पर ये क्या की सारी कल्पनाओ पर धूल डाल  देता है जबकि कल्पनाये ही विज्ञानं का आधार है पर ! ये विज्ञानं और साहित्य की लड़ाई पुरानी है और चलती ही रहेगी पर भावनाओ बिना ,प्रेम बिना इंसान क्या ?

तो मैं तो कल्पना के साथ हूँ ,भावना के साथ हूँ प्रेम के साथ हूँ ,विज्ञानं मेरे लिए प्रयोग की चीज है और प्रेम तथा भावना जीने की चीज है कल्पना जीने लिए भविष्य की ताकत और प्रेरणा की चीज है । तो चाँद मैं तो तुम्हे वैसे ही देखूंगा जब मौका मिलेगा और कोई मुफ्त में घर देगा तो भी तुम्हारी ऊपर वाली बस्ती में मैं तो नहीं जाऊंगा ,मैं नहीं म
मानता की बुढ़िया चर्खा  नहीं कात रही है ,मैं नही मानता की गरीब की रोटी की आस नहीं हो तुम ,मैं नहीं मानता की बिना छत  फुटपाथ और मैदान मे सोने वालो  का सहारा नहीं हो तुम ,मैं नहीं मानता कि बात नहीं करते हो तुम ,अभी बात ही तो कर रहा हूँ चाँद से मैं । और फोटो खींचने के पहले टहलना छोड़कर निहारता रहा मैं अपने बचपन के दोस्त चाँद को देर तक और बाते भी करता रहा जिसमे सवाल और जवाब दोनों मेरे ही मन के थे।  क्या आप चाँद को देखते है ? नहीं तो निकलिए घरो से और जैसे सूरज के सामने पीठ कर बैठते है स्वस्थ रहने को वैसे ही चांद  को सामने से निहारिये वैसे भी आप चाँद के लिए खीर बना कर रख देते है न पूरी रात की चाँदनी उतर आएगी उस खीर में और वो अमृत हो जाएगी बीमारियों से मुक्ति दिलाएगी तो चाँद को खुद ही निहार लीजिये रोज या जब दिखे खूब देर तक और अपनी शिकायत ,अपना दर्द सब उसी से कह दीजिये अकेलापन परेशांन नहीं करेगा और  आप आत्महत्या का विचार  क्यों लाते है और क्यों सोचते है की आप ही दुखी है ,बस चाँद की तरफ देखिये उससे प्रेम करिये और उसी से शिकायत फिर चादर तान कर रात के लिए सो जाइये ताकि सुबह जग सके नई ऊर्जा ,उत्साह और संकल्प के साथ।  अच्छा चाँद अभी के लिए विदा कहता हूँ ,कल फिर मिलेंगे।

रविवार, 20 सितंबर 2020

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से-
जब वो #राजीव_गांधी_जिन्दाबाद_बोलते_हुए_आये
और #मुलायम_सिंह_जिन्दाबाद_करते_हुये_निकले
---एक ऐसा किस्सा जो न कभी देखा और न सुना होगा --
ये 1993 के विधान सभा चुनाव की बात है ।मैं समाजवादी पार्टी का महामंत्री और प्रवक्ता था ।आगरा मे जातिगत कारणो से पार्टी का कोई बहुत मजबूत आधार नही था पर मेरी अति सक्रियता और सतत संघर्ष से पार्टी कुछ ज्यादा ही नजर आती थी सड़क से समाचारो तक और चूंकि आगरा तीन मध्यप्रदेश और राजस्थान से भी जुड़ा है और आगरा मंडल ही नही इटावा तक के मीडिया का मुख्य केन्द्र है तथा आरएसएस का भी पच्चिमी उत्तर प्रदेश का मुख्यालय है और इस बड़े क्षेत्र का शिक्षा और चिकत्सा का तथा  बुद्धिजीवियो का भी केन्द्र रहा है और  मुलायम सिंह यादव जी की शिक्षा भी यही से हुई है तो उनकी भी आगरा मे ज्यादा रुचि रही और एक टोटका भी शायद उनके दिमाग मे लगातार रहा कि आगरा मे मैने पार्टी का एक तीन दिवसीय कार्यक्रम रखा और उसके बाद ही पार्टी की सरकार बन गई जो 2017 से पहले भी हुआ तो आगरा पार्टी की सक्रियता और प्रचार का केन्द्र था ।
चौ चरण सिंह के समय लोक दल को छोड दे जिसमे वो तीन विधान सभा सीट जीत जाते थे वर्ना 1977 से पहले जब पुरानी समाजवादी पार्टी जीतती थी कुछ सीटे, बाह से पहले स्वतंत्र पार्टी और बाद मे लोकदल से रिपुदमन सिंह जीतने लगे तो शहर से बालोजी अग्रवाल सोशलिश्ट पार्टी से जीते थे और 1977 मे भी शहर की तीनो सीट कांग्रेस ही जीत गई थी और बाकी जनता पार्टी जीती थी ।
1993 चुनाव से पूर्व जब मुलायम सिंह यादव के भाई रामगोपल यादव को राज्यसभा के टिकेट दिया गया तो चंद्रशेखर जी से जुड़े विधायको के पार्टी छोड देने के कारण बडा संकट आ गया था उस समय मैने जनता दल से दो वोट मैनेज किये थे बिना एक भी पैसा खर्च किये और बाद मे एतमादपुर के विधायक को पार्टी मे शामिल भी कर लिया ( इस चुनाव का किस्सा अलग से लिखूंगा ) । 
खैर जो मूल किस्सा है जिसके लिए ये एपिसोड लिख रहा हूँ ।
जैसा मैने प्रारंभ मे ही लिखा की पूरी तरह जाति पर आधारित राजनीती के कारण आगरा मे पार्टी मजबूत नही था और मैंने कुछ छात्रो और नौजवानो को जोड़ कर पार्टी चलाना शुरू किया था और लगातार इस कोशिश मे रहता था की कुछ मजबूत लोगो को जोडू, कुछ लोग जुड़े तो कुछ वादा करते रहे पर एन चुनाव मे धोखा दे गए जिनसे हिसाब भी निपटाया मैने मौका पडने पर ।
विधान सभा चुनाव घोसित हो गया था और सभी टिकेट की जोड़ तोड मे लगे थे और चुनकी काशिराम से समझौता हो गया था जिनकी बसपा भी उस चुनाव से पहले तक केवल 11/12 विधायक की पार्टी होती थी और काशिराम भी हमारे ही अप्रत्यक्ष सहोयोग से 1991मे रद्द हुये इटावा जिले का चुनाव दुबारा होने पर इटावा से ही पहली बार सांसद बने थे । पर दोनो दलो के मिल जाने की चुनाव मजबूत हो गया था और 65/35% के फार्मूले पर टिकेट का वितरण होना था । आगरा कैंट की सीट पर मेरी भी निगाह थी क्योकी इस समझौते के कारण समीकरण जीतने लायक हो गए थे पर संसदीय बोर्ड की बैठक मे अध्यक्ष रामसरन दास जी ने ज्यो ही कहा की इस सीट पर सी पी राय को फाइनल कर दिया जाये इसमे कुछ और सोचने की जरूरत ही नही है तो बैठक मे बस इतने से काम के लिए आये रामगोपाल यादव ने जबरदस्त विरोध किया कि उनकी जाती के कितने वोट है वहाँ की टिकेट दिया जाये और मेरा टिकेट रुकवा कर बैठक से चले गए और बोर्ड ने ये मुद्दा मुलायम सिंह यादव के ऊपर छोड दिया । और बाद मे जो भी हुआ मुलायम सिंह यादव ने मुझसे कहा की चुनाव लड़ेंगे तो आप एक सीट पर फंस जायेंगे और वैसे आप इतनी सारी सीट पर जाते है और आप के भाषण की मांग भी रहती है तो छोड दीजिये चुनाव के बाद आप को मैं दिल्ली भेजूंगा आप वहाँ ज्यादा काम आयेंगे ।मैने विरोध भी किया कि आप ने तो 1989मे भी यही कहा था हरियाणा भवन मे संसदीय बोर्ड की बैठक मे की मेरा चुनाव देखिये और मैं मुख्यमंत्री बन जाऊंगा तो विधायक क्या होता है तो बोले की अब वैसा नही होगा मैं जुबान देता हूँ और मैं मांन गया और लग गया अच्छे प्रत्याशी ढूढने मे ।
#उस_दिन मैं आगरा की कलक्ट्री मे था एतमादपुर से चन्द्र भान मौर्य का परचा दाखिल होना था । तभी देख की कांग्रेस के चार बार के विधायक और कैबिनेट स्तर पर कृषी मंत्री रहे डा कृश्न वीर कौशल काफी लोगो के साथ राजीव गांधी जिन्दाबाद का नारा लगाते कांग्रेस के झंडे के साथ कलक्ट्री मे प्रवेश कर रहे थे ।वो पिछला दो चुनाव हार चुके थे और मुझे अच्छी तरह पता था की इस बार इनका टिकेट कट रहा है और कांग्रेस के दिग्गजो मे से एक को एक और ने किसी तरह पटा लिया है और टिकेट उन्ही को मिलेगा ।
बस मेरा दिमाग चल गया ।मैने डा कौशल को नमस्कार किया और उनके साथ साथ सीढिया चढ़ने लगा क्योकी उनका परचा ऊपर के कक्ष मे दाखिल होना था । मैने उनसे कहा की ये पक्का है की आप को टिकेट नही मिल रहा है बल्की फला को मिल रहा है तो बाद मे नाम वापस लेंगे ।आप चाहे तो मैं आप को टिकेट दे दूंगा । उन्होने बस इतना पूछा की क्या बाद मे बेज्जती तो नही होगी ।मैने कहा की मैने कह दिया तो समझ लीजिये हो गया आप कल मेरे साथ चलिये बी फॉर्म भी दिलवा दूंगा और मुलायम सिंह यादव जी से मिलवा भी दूंगा ।फिर क्या था पुराना परचा जेब मे रख नया तुरंत खरीदा गया और समाजवादी पार्टी के नाम का परचा भरा गया ।
आये तो डा साहब और उनके लोग थे राजीव गांधी का नारा लगाते हुये और कांग्रेस का झन्डा लिए हुये पर जब नीचे उतरे तो वही भीड मुलायम सिंह यादव का नारा लगाते हुये और सपा का झन्डा लिए हुये और पूरी कलक्ट्री तथा मीडिया इस भूतों न भविष्य्ते इस घटना पर हत्प्रभ था , और मेरे बारे मे क्या चर्चाये हुई उसके बाद शहर ,राजनीती और मीडिया मे ये समझा जा सकता है ।
टिकेट की लडाई , चुनाव , मेरी सभाए और मेरे भाषण के कैसेट की बिक्री और प्रदेश भर से उसकी मांग इत्यादि पर अगले एपिसोड मे लिखूंगा ।

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

इति कथा सम्पन्नम |

बड़े भाई
हां छोटे भाई
ये क्या कर रहे हो ? काम की बाते और विकास की बाते ?
क्या छोटे क्या ये ठीक नहीं
अरे क्या गजब कर रहे हो लोग गाँव घर के बाहर और अन्दर झांक कर देख रहे है और पिचले चुनाव के वादों को भी याद कर रहे है | हम दोनों कही के नहीं रहेंगे | क्या जवाब देंगे ?
तब क्या करें भाई ?
ये फालतू की बातें छोड़ो और कुछ और सोचो जिससे लोग गाँव और पड़ोस की सड़क ,नाली ,पानी ,सफाई ,नौकरी ,महंगाई ,देश के जवानों की हत्या १५ लाख ,काला  धन , नोट्बंदी सब भूल जाये | न आप का कुछ याद रहे और न मेरा |
बही तुमने तो चिंता में डाल दिया | ये तो जनता हम दोनों को सबक सिखा देगी और कोई विकल्प ढूढ़ लेगी |
कही ऐसा न हो की बिना पैसा खर्च करने वाले निर्दलीय इम्नादार लोगो को वोट देना सीखा जाये और हम लोगो की राजशाही ख़त्म हो जाये |
हां भाई बहुत बुरा हो जायेगा |
फिर
फिर क्या
वही पुँराना शुरू करते है | जातियों में जाती और गोत्र के गौरव का भाव जगाते है |
धर्म को धर्म का डर दिखाते है | धर्मस्थलो का सवाल उठाते है | धर्म की घृणा बांटते है |
हो गया काम
लेकिन ये हथकंडे तो जनता जानती है ,कही नहीं फंसी जाल में तो फेल हो जायेगा फार्मूला
तो नया शुरू करते है
कुछ नए शब्दों निकालते है की मजबूरी हो जाये लोग उसी के इर्द गिर्द चर्चा करने को |
अच्छा क्या ?
गदहा
आतंकवादी
चोर
गुंडा
जितनी गन्दी से गन्दी बात हो सके नहीं तो भद्दी भद्दी गलिया देने लगेंगे हम दोनों जोर जोर से दोनों एक दूसरे को
और इतना शोर करेंगे और करते ही रहेंगे की जनता बस तमाशबीन हो जाये
बस
इसी में वोट का टाइम निकल जायेगा
अच्छे लोग भी इस शोर में खो जायेंगे
और हम लोगो को गलियों की पसंद और नापसंद में एक बार और जनता को लामबंद करने में कामयाब हो जायेंगे ,
हम दोनों में से ही कोई जीतेगा |
हाथ मिलाओ
हां हां हां हां हां हां हां
जनता क्या हमसे ज्यादा दिमाग रखती है
जनता कही की
अरे पूरा पांच साल बचा है ,अपराध ,नाली ,पानी सड़क ,बिजली रोजगार विकास की चर्चा के लिए ,देश की सुरक्षा ,जवानों की हत्या ,आतंकवाद ,काला धन ,नोट ,रोजगार इत्यादि
कम से कम चुनाव में तो ये बाते जनता को भूल ही जाना चाहिए
बड़े बतमीज है ये जनता के लोग की एक डेढ़ महीना ये सब भूल कर केवल हम लोगो के जुमलो और झटको को सुनना चाहिए
चुनाव ख़त्म हो जाये तो फिर अपनी बैठक और चाय की दुकान और काफी हाउस में बैठ कर ,चौपाल पर खूब चर्चा करना इन  मुद्दों की और हमें खूब गालियाँ दे देना ,
वहा सुन ही कौन रहा है | तुम ही बोल रहे हो और तुम ही सुन रहे हो
सा ;;; चुनाव में याद करने लगते है | ये भी कोई तरीका है
जहा सी तमीज नहीं है इन कीड़ो मकोडो में
जाने दो भाई नाराज मत हो | अभी तो गधो को बाप बनाने का वक्त है \
एक महीना बना लो फिर इन गधो पर राज करो
अच्छा पैग बनाओ
इस नए झकास आइडिया पर ; चियर्स .
किसी ने हमें मिलते देखा तो नहीं
या बात करते सुना तो नहीं
तो तय रहा
यहाँ से निकलते ही एक दूसरे को गन्दी से गन्दी गलिया देनी है ,बिना संकोच ,बिना लिहाज
हां हां हां हां हां हा
लोकतंत्र की जय .भीडतंत्र जिंदाबाद |
इति कथा सम्पन्नम | 

सोमवार, 10 अगस्त 2020

राजनीती की कबड्डी

#राजनीती भी कबड्डी के खेल की तरह है 
अपने पाले के आसपास खेलना ही सुरक्षित होता है 
दूसरे के पाले मे अक्सर अंन्दर तक वही जाते है जिनका बूता होता है छुड़ा कर अपने पाले मे आ जाने का 
पर 
जिनकी कबड्डी बोलने मे ही सांस फूल रही है उनके लिए ट्विटर का खेल ही ठीक है 
या बुद्धि और समर्पण हो दिलेरी हो तो अपने पाले मे दुशमन को आने को मजबूर करो ।

मुर्दा बन जाये क्या

देश और समाज पर लिखना और बोलना बंद कर मैं भी मुर्दा बन जाऊ क्या ? 
केवल खुद का सुख तो इसी मे है 
सबकी हा मे हा मिलाओ अब खुश आप भी खुश 
वैसे भी 
"कोई नृप होए हमे का हानि "
हमारा मूल मंत्र और मूल चारित्र है 
तभी तो केवल कुछ सौ लोग आते थे सूदुर पच्छिम से या कही से भी और हमे लूट कर चले जाते थे ,पडोसी की लूटने का ज्ञान लुटेरो को हम ही देते थे और उसके लुटने पर खुश होते थे फिर हमारे लुटने पर हमारा पड़ोसी खुश होता था और मिल जाता था लुटेरो से । चलता रहा यही क्रम हजारो साल ।
वो तो पता नही कहा से गांधी बाबा आ गए और सुभाष से भगत तक को जान देने का शौक चर्रा गया बिना ये जाने की ये समाज डमरू और तमाशा प्रेमी है ।
आज भी यही चल रहा है और ताकत की पूजा मे हम लहलोट हो जा रहे है ।चाहे कोई कितना बर्बाद कर दे हमे पर हम खुश है 
हम कभी नही बदलेंगे 
क्योकी तमाशे देखना , बदर का डमरू पर नाचना और उसी डमरू पर खुद भी नाच लेना हमारा शौक है और हमारे जीन का चारित्र भी ।
कोई भी डमरू की आवाज पर हमसे कुछ भी करवा सकता है ।
हम मर रहे हो ,हमे भूखे हो ,हम बर्बाद हो रहे हो पर बस कोई डमरू बजा दे तो उत्सव प्रेमी हम उसी हालत मे अपना सब दुख भूल दौड पडते है नाचने और उत्सव मनाने के लिए ।
हमारा कोई कुछ बिगाड़ नही सकता क्योकी जेहन से हमने खुद को उसके लिए हजारो साल से तैयार किया हुआ है ।
मैं भी क्यो हवा के विपरीत चलूँ ? 
हवा जब तेज हो तो मुकाबला क्यो करुँ ? 
क्योकी मैं भी पीठ उस तरफ कर उसके वेग के कम हो जाने का इन्तजार न करू ? 
और 
क्यो न मैं दिखावे को ही सही डमरू की आवाज पर मुस्करा ही देने की कोशिश करुँ ? 
चली चुटकले ढूढता हूँ और सुनाता हूँ आप को आज से 
ढूढता हूँ भूले बिसरे गीत और सुनाता हूँ आप को 
नही तो अपनी लिखी कविताओ और कहानियो से ही बोर करता हूँ आप को ।
मैं पूरे समाज और देश जैसा बन जा रहा हूँ और बस सुबह के नाश्ते से रात के खाने तक डमरू की पूजा और डमरू के आदेश को ही खा लूँगा 
और फिर सो जाऊंगा निश्चिंतता के बिस्तर पर ।
रोज सुबह और शाम गिनूगा और पूरा हो जायेगा जीवन एक दिन ।
बोलो डमरू बाबा की जय 
नाच मेरी बुलबुल की पैसा मिलेगा 
ऐसा भी मिलेगा वैसा भी मिलेगा 
जैसा डमरू चाहेगा तैसा  मिलेगा ।
चलो नाच लेते है सत्ता और ताकत के हर ताता थैय्या पर ।
गांधी सुभाष भगत ये कौन थे ? 
क्या कर लिया इन्होने ?
इनसे ज्यादा ताकत तो डमरू ने दिखा दिया ।
इसलिए अब इनको भूल जाते है और दिल दिमाग से भी इन्हे मिटा देते है ।

अयोध्या अन्दोलन का सच जो मैने देखा

#जिंदगी_के_झरोखे_से--
1990 - 25 सितम्बर को गुजरात के सोमनाथ से अडवाणी जी ने रथयात्रा शुरू कर दिया था ।अडवाणी जी देश के लोकतंत्र की एक राष्ट्रीय पार्टी के दो बड़े नेताओ मे से एक और उसके अध्यक्ष थे जिसकी जिम्मेदारी देश के भविष्य के लिए लड़ने और शैडो गवर्नमेंट बना कर वैकल्पिक विकास का एजेंडा शिक्षा स्वास्थ्य कृषी सुरक्षा इत्यादि होना चाहिये था वो इन मुद्दो के लिए नही बल्की मंदिर बनाने के लिए माहौल बनाने निकला था । उनको 30 अक्तूबर को अयोध्या पहुचना था पर 23अक्तूबर को उनको लालू यादव ने समस्तीपुर मे गिरफ्तार कर लिया और फिर उनका रथ वाहि थाने मे ही सड़ गया किसी को उसकी याद नही आई ।
काश अडवाणी जी देश की समस्याओ के लिए रथ लेकर निकले होते गरीबी और बेरोजगारी के खिलाफ निकले होते , गांव की बदहाली के खिलाफ निकले होते , अशिक्षा और अभाव मे मौत के खिलाफ निकले होते तो शायद हम जैसे लोग भी साथ हो लेते पर !
कहानी के विस्तार मे नही जाकर मुद्दे पर आता हूँ जिसके लिए आज लिख रहा हूँ 
राम लला हम आयेंगे ,मंदिर वही बनायेंगे 
बच्चा बच्चा राम का जन्मभूमि के काम 
इत्यादि नारे लगवाये जा रहे थे 
आरएसएस और भाजपा तथा विश्व हिन्दू परिसद ने कार सेवा का एलान किया । 21अक्तूबर से ही देश भर से ये सब संगठन मिल कर लोगो को विभिन्न रस्तो से अयोध्या के 100 किलोमीटर के दायरे मे चारो तरफ लाने लगे ।
और अन्ततः 30 अक्तूबर  और फिर 2 नवम्बर  को इस तरह कूच किया जैसे किसी दूसरे देश मे विजय प्राप्त करने क
जा रहे हो ।
अयोध्या मे पूजा और दर्शन होता था उस समय भी पर विवाद अदालत मे था ।
मैं उस वक्त पार्टी का प्रदेश महामंत्री और प्रवक्ता था हम लोगो ने दो प्रस्ताव किया यह कहते हुये की दर्शन और पूजा सबका अधिकार है पर संविधान और कानून से खिलवाड़ सरकार मे बैठा हुआ और उसकी शपथ लिया कोई भी व्यक्ति नही करने देगा और हम भी नही ।
पर हमारे दो प्रस्ताव है --
हम मध्यस्थता करने को तैयार है दोनो पक्ष साथ बैठ जाये और सहमती से तय कर ले क्या होना चाहिये सरकार उसी को मानेगी 
2--यदि सहमती नही बनती है तो फिर एक ही तरीका है की अदालत जो तय करे वो माना जाये ।
कोई तीसरे तरीके को संविधान और कानून से चलने वाले देश मे किसी भी हालत मे नही स्वीकार किया जा सकता है और न किसी हालत मे स्वीकार किया जायेगा ।
तब इन लोगो ने जवाब दिया था जो आज पूरे देश को जानना चाहिये -
कि 
"यह अदालत और कानून नही बल्की हमारी आस्था का सवाल है और इसे हम खुद हल करेंगे "
बड़े नेताओ ने आफ द रिकार्ड यह कहा था की सिर्फ साफ सफाई करेंगे और घोषणा हो चुकी है तो दर्शन कर लौट जायेंगे ।
लाखो की भीड खेतो मे होकर अयोध्या पहुची और रोकने पर पुलिस तथा प्रशसनिक अधिकारियो पर हमलावर हो गई । अधिकारियो ने बहुत समझाने का प्रयास किया की शान्ती से दर्शन करे और वापस चले जाये पर भीड उग्र हो गई जिसके लिए पीछे से सिखा पढा कर लाया गया था ।
भीड गुम्बद पर चढ़ गई और तोड़फोड़ करने लगी 
मजबूरन पुलिस को बल प्रयोग करना पडा और उसमे 16 लोगो की जाने गई जो बहुत अफसोसजनक है क्योकी वो सब इसी देश के नागरिक थे और अपने परिवारो के प्रिय थे । किसी भी हालत मे कभी भी अपने ही नागरिको पर पुलिस की लाठी और गोली चले यह लोकतंत्र के बिल्कुल खिलाफ है और जिम्मेदार राज्य की अवधारणा के भी खिलाफ है । मरने वाले अधिकतर पिछड़े वर्गो के जवान थे ।ये भी सच है की उन मृतको के परिवारो का इन संगठनो और इनकी सरकारो ने फिर कभी हालचाल भी नही पूछा ।
आरएसएस के झूठ तन्त्र ने फैला दिया की हजारो जाने चली गई और सरयू का पानी लाल हो गया और एक खून खौला देने वाला वीडियो भी बना दिया इन लोगो ने 24 घन्ते मे और देश भर मे बांट भी दिया जैसे अन्ना के आन्दोलन मे मिंनटो मे झंडे और मशाले बट जाती थी ,बस आप दोनो को एक साथ रख कर देख्ते जाइए । मैने दिल्ली मे किसी संघी के घर वो वीडियो देखा ,पूरी पिक्चर थी सारे इफेक्ट डाल कर बनायी गई जिसमे लाशे ही लाशे दिखाई गई ,नाली मे खून बहता दिखाया गया , पहले सोमनाथ से लेकर बाबर तक पता नही क्या क्या बताया गया और उसमे एक हेलिकोप्टर उड़ता दिखाया गया था जिसमे बैठे मुलायम सिह यादव को मशीन गन से लोगो पर गोली चलते दिखाया गया था ।
हमने चुनौती दिया की आप मृतको के नाम बताओ ।  ये लोग जो भी नाम बताते हम पूरा सिस्टम लगा कर उनको ढूढ लाते और मीडिया के सामने पेश कर देते । इंनकी सारी लिस्ट और बात फर्जी नकलती गई और अन्त मे वो 16 लोग बचे जो सचमुच मरे थे और उनकी मौत पर हम सबको अफसोस तब भी था और आज भी है ।
पर यह भी उल्लेखनीय है की कल्याण सिंह की भाजपायी सरकार मे जब सरकारी तौर पर फिर लाखो की भीड आई और विवादित ढांचा तोड गया तो उस पर चढे तमाम लोग उसी के नीचे दब गये थे पर सत्ता का नशा और इस विश्व विजय के जोश मे वो बेचारे समचार की सुर्खिया नही बने ।
उसके बाद अयोध्या से ही मार काट लूट शुरू हो गई और यहा तक की खुद भाजपा का अल्पसंख्यक सेल का अध्यक्ष चीखता ही रह गया की मैं तो आप की पार्टी के इस पद पर हूँ, पर ? (इसका ब्योरा उस दिन के हिन्दू के मौके पर मौजूद रिपोर्टर की रिपोर्ट मे मिल जायेगा ।
कैसे लोग आये थे ये धार्मिक काम करने इसी से समझ लीजिये की रुचिरा गुप्ता इनकी भीड मे ही थी तो उसके शरीर से कपडे गायब हो गए और ये देख कर बी बी सी के रिपोर्टर मार्क टूली ने उसे अपना कोट पहनाया और पिटता रहा पर किसी तरह रुचिरा को भीड से निकालने मे कामयाब रहा ।
दंगो मे 2000 से ज्यादा जाने गई ,हजारो करोड़ की सम्पत्ती नष्ट हुई और उठान लिए हुये विकास का पहिया बैठ गया और सालो पीछे चला गया ।
दंगो मे इन लोगो ने क्या किया था आतंक फैलाने को सर्फ इस बात से जान लीजिये की एक टेप बनाया था जी किसी छत पर अचानक काफी तेज आवाज मे चीखता --बचाओओ ओ ,भागो ओ ओ ,आ गए हजारो मुस्लमान ,अरे मार दिया अरे एक और मार दिया भागो ओ ।
और हम लोग जो आगरा के कालेज कैम्प्स मे रहते थे उसके लोग भी अपने हथियार लेकर निकल आये और छपने की जगह ढूढ़ने लगे ,मैने कहा की यहा कहा कोई मुस्लमान है आसपास पर कोई सुनने को तैयार नही था ,आगरा का लाजपत कुन्ज और ऐसी तमाम कालोनी जो मुस्लिम इलाको से 8 से 10 किलोमीटर दूर है लोग रात रात भर पहरा देने लगे ,रास्तो पर बड़े बड़े पत्थर और पुराने टायर रख दिये इत्यादि 
और मुसलमान अपने मुह्ल्लो मे दुबका था की निकले नही की पी ए सी आयेगी और फिर सिर्फ गोलियो की आवाज होगी ।
(दंगो मे क्या क्या हुआ और कौन लोग मरे , किनके साथ क्या क्या हुआ और क्या क्या कर्म करते हुये महान लोग जय श्रीराम के नारे लगते थे और राम का नाम कर बडा कर रहे थे और कौन सी संपत्तियाँ नष्ट हुई इत्यादि तमाम आयोग और जांच कमेटी की रिपोर्ट अब सार्वजनिक है और हो सचमुच देश के वफादार और जिम्मेदार लोग है उनको सब पढ़ना चाहिये और सब जानना चाहिये ।
हर दंगे के बाद भाजपा की सीटे बढती गई ।
और 
इसी बीच विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अडवाणी जी के अभियान के मुकाबले मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू कर दिया ।उनकी सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया और चंद्रशेखर जी प्रधान मंत्री बन गए ।
# बीच मे ये भी जान लीजिये की विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को भाजपा का समर्थन था और भाजपा के प्रिय जगमोहन कश्मीर के राज्यपाल थे जब कश्मीरी पंडीत कश्मीर छोड कर गए ,पर उस वक्त भाजपा ने न उसे मुड़दा बनाया और न कश्मीरी पण्डितो के सवाल पर उस सरकार से समर्थन ही वापस लिया#
हा तो चंद्रशेखर जी के अटल बिहारी वाजपेयी श्रीमति सिंधिया , भैरोंसिंह शेखावत सहित काफी भाजपा नेताओ से अच्छे सम्बंध थे और उनकी सरकार मे हम लोगो के युवा राजनीती के मित्र सुबोधकांत सहाय गृह मंत्री थे ।
(  मन्दिर सम्बन्धी हिन्दू परिसद और इन लोगो की बैठक और प्रधान मंत्री से मिलकर बात करने की इच्छा पर चंद्रशेखर जी का उनकी बैठक मे श्रीमति सिंधिया के यहा खुद पहुच जाना और फिर उन्होने क्या सुना और क्या कहा तथा फिर मुस्लिम पक्ष से क्या कहा जानने के लिए Chanchal Bhu की वाल खंगालिए थोडा समय निकाल कर )
अन्त मे चंद्रशेखर जी विवाद का एक सर्वसम्मत हाल निकाल ही लिया अपनी दृढता और दूरदर्शिता से जिसपर अंदर सब सहमत थे और वो फौसला करीब ऐसा ही था जो उसके बाद इतनी बर्बादी और दंगो तथा नफरत की खेती के बाद अन्ततः अदालत ने ही दिया # फिर याद रखिये की हमने कहा था की या तो बातचीत से हल कर लो या अदालत को करने दो और तब आस्था के नाम पर अदालत को मानने से इंकार कर दिया था इस जमात ने #
और अपनी सरकार बन जाने पर उसी अदालत को माना भी और दिन रात देश से भी कहते रहे की अदालत को सभी माने मिलजुल कर और पूरे देश ने माना मुसलमान ने भी । पूरा देश शान्त रहा पर यदि अदालत का फौसला इसका उल्टा होता तो क्या होता ,कल्पना से रूह काँप जाती है ।
प्रधान-मंत्री चंद्रशेखर के निवास से विश्व हिन्दू परिसद वाले यह कह कर निकले की थोडी देर मे आपस मे राय कर के आते है और फिर आये ही नही ।
अब पाठक ध्यान से पढे और समझे इस जमात के इरादे की , आदत को , रणनीति को ,इच्छा को , इनके हथकण्डे को , देश के प्रति जिम्मेदारी को , देश के भविष्य को लेकर चिंतन को , चिंता को और इनके देश के लिए सपने ,सिद्धांत और सक्ल्प को । 
( लखनऊ से दिल्ली तक की सत्ता के करीब रह कर , निस्पक्ष रूप से जागृत रह कर जो देखा , जो जाना , जो समझा सब लिख दिया क्योकी जो अब 45 साल के है तब स्कूल मे पढ रहे होंगे और 1990 मे पैदा लोग अब 30 साल के हुये होगे ।देश की 65%आबादी 35 साल के नीचे की है इसका मतलब ये है की उनको जो बताया गया होगा शाखा मे ता सन्घ के प्रचार ने वो उसी को सच मानते है ।इसलिए सभी जागरूक और सच्चे देशभक्तो की जिम्मेदारी है की पूरे देश को सच की तस्वीर दिखाए बड़े पैमाने पर और देश को फसीवद की तरफ जाने से बचाए ।
आज इसिलिए मैने एक पोस्ट मे लिखा था की देश दो पाटो के बीच फंस गया है -एक जो सच है और दूसरा आरएसएस का सच । देखे ईश्वर कैसे बचाता है मेरे देश को ।
जो सच्चे हिन्दू है और सचमुच मे राम कृष्ण और शिव को मानते है और चाहते है की समाज इन तीनो के नाम पर घृणा और दंगे मे न फंसे बल्की इनके जो गुण और ज्ञान आज को और भविष्य को अच्छा बनाते हो और भारत को तथा भारत वासियो को अच्छा बनाते हो उनका प्रसार हो उनकी भी जिम्मेदारी है की देश और समाज को सही धर्म का ज्ञान कराये ,स्वामी विवेकानन्द से लेकर गांधी जी और डा लोहिया तक के धर्म और इन लोगो के बारे मे लिखे का ज्ञान कराने का अभियान चलाये ।
अदालत का फौसला आया , मन्दिर बनेगा , देश मे सब उसके पक्ष मे है पर उसे धार्मिक आयोजन ही रखा जाता और उसमे राजनीती नही की जाती तो भारत बनता 
लेकिन इन लोगो को भारत बनाना ही कब था या है इन्हे तो बस वोट और सरकार बनाना है सब बेच देने के लिए ।