शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

उक्रेन_का_सबक

#उक्रेन_का_सबक 

कोई बडा और ताकतवर देश सिर्फ कमजोर देशो पर हमला करता है 
द्वितीय विश्वयुद्ध को छोड दे तो यही हुआ है 
अमरीका प्रतिबंध प्रतिबंध खेलता रहता है जो उसका प्रिय खेल है 
अमरीका के झांसे मे आने वाले देशो का सदा नुक्सान ही हुआ है ।
रुस का जरूर मित्र देश के साथ खड़ा रहने का इतिहास है ।
चीन बडा व्यापारी देश बन चुका है और वो उतना ही सुरक्षा का इन्तजाम कर रहा है जो उसके लिये और दुनिया की बड़ी ताकतो से निपटने के लिये जरूरी है  और वो तथा चीन दोनो 100 साल आगे की कल्पना कर अपनी तैयारी मे लगे है जबकि कुछ देश मंदिर मस्जिद बुर्का हिजाब जैसी चीजो को ही भविश्य मान बैठे है ।
छोटे देश लाख कोशिश कर भी बड़ी ताकतो के हमलो को झेल नही सकते है हा बर्बाद होकर भी लड़ सकते है ।
दुनिया तेजी से बदली है और इसके युद्ध के नियम तथा हथियार भी बदले है ।
जीतने के लिये जरूरी है मजबूत होना और मजबूत होने की पहली शर्त है देश का अन्दरूनी विवादो से ऊपर होना , देश मे एकता होना , आपसी सद्भाव तथा विश्वास होना ,सरकार पर विश्वास होना तथा इसकी शर्त है सरकार का पारदर्शी होना ,समझदार और दूरदर्शी होना और सम्पूर्ण जनता मे ये विश्वास पैदा करना की वो सब कुछ सबके लिये कर रहे है तथा सबके भविश्य और सुरक्षा के लिये कर रहे है।
अन्दर से टूटा हुआ देश आर्थिक प्रगति नही कर सकता तथा यदि अंदर झगडे है और कभी भी हालात बिगड़ने का अवसर है तो कही का भी इन्वेस्टर नही आयेगा और अन्दरूनी व्यापार भी प्रभावित होगा जबकि देश की मजबूती के लिये जरूरी है की देश आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हो ,शैक्षणिक स्तर उच्च हो और स्वास्थ्य की गुणवत्ता भी उच्च कोटि की हो , बेरोजगारी ना के बराबर हो ,कृषि से लेकर व्यापार तक सब सम्पन्न हो और वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता हो सभी क्षेत्रो मे स्वाथ्य ,भविश्य की आवश्यकताओ तथा सैन्य जरूरतो के क्षेत्र मे तथा भविश्य मे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लेकर पृकृति संरक्षण और आवश्यक चीजो के असम्भव निर्माण तक ।
इन सब चीजो के लिये वातावरण तभी बन सकता है जब नेतृत्व करने वाले सभी लोग दूरदर्शी हो और अपने ,अपनी पार्टी तथा सत्ता नही बल्कि आने वाली पीढियो के लिये सपने देखे ,सिधांत गढ़े और सन्कल्पित हो ।
वरना स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा और भविश्य की पीढियो के लिये सपनो की पतिस्पर्धा के बजाय तू तू मैं मैं तो किसी भी देश को पीछे ही ले जाता है ।
इतिहास के सपनो मे जीना या इतिहास की नफरत को ढोना और भविश्य की पीढियो को भी देकर जाने का इरादा सिर्फ और सिर्फ बर्बादी ही लाने वाला होता है ।इराक हो ,सीरिया हो ,उक्रेन या अन्य ऐसे कोई भी देश वो कितना भी फौजी साजो सामान इकट्ठा कर ले पर अगर वो किसी बड़े को खटक गये तो उसकी बर्बादी तय है और इस गलतफहमी मे रहना की उसको हथियार बेचने और अपने हितो के लिये इस्तेमाल करने वाला कोई दूसरा देश उसके लिये लड़ने आयेगा गलतफहमी ही साबित होता रहेगा क्यो कोई भी देश खुद को दूसरे के लिये बर्बाद नही करता क्योकी युद्ध बहुत महंगा शौक है । इसलिये छोटे , आर्थिक ,जनसांख्यिकी से कमजोर और विकासशील देशो के लिये सबसे अच्छा है की वो किसी बड़े की कठपुतली न बने और अपने हित अहित के साथ सबसे सम्बंध रखे और किसी बड़े के राजनीति का मैदान न बने ,चुनौती ही दे ।पहले और दूसरे विश्व युद्ध की विभिषीका कोई भी अभी भूला नही है ।
किसी भी देश का अपना निर्माण खास माहौल और ऐतिहासिक परिस्थितयो और कारको से होता है और उन्ही हालातो मे सुखी होता है तथा तरक्की करता है ।कुछ समाज हमेशा से तानाशाही व्यवस्था मे रहे और उसके आदी है तो वहा उसी फ्रेम मे कोई भी व्यवस्था हो जनता को फर्क नही पडेगा जब तक की लोकतंत्र की हवा का एहसास उसके अन्दर घर न कर जाये और वो तब होता है जब पूरी जनता उसका खुद अनुभव करती है या उसे सहज जानकारी होती है । भारत उन्मुक्त वातावरण का समाज रहा है यहा का समाज थोडे कम मे भी जी लेता है और संतुष्ट रहता है पर उसका उन्मुक्त वातावरण और उन्मुक्त हंसी उससे नही छिननी चाहिये इसलिये तानाशाही जैसा कोई कदम या सोच भारत के लिये आत्मघाती होगी । भारत को धर्म और जातीय झगड़ो वाले समाजो और देशो से सबक लेने की जरूरत है और जितनी जल्दी समझ लेगा उतना ही देश मजबूत हो जायेगा तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तरक्की भारत को दुनिया के सामने शान्ती तथा सद्भाव की चुनौती देने लायक हो जायेगी तथा ये दुनिया मे शान्ती का सन्देश देने लायक हो जायेगा महात्मा गांधी को सामने रख कर ।
ये वक्त फिर से विचार करने का है कि जवाहर लाल नेहरू द्वारा शुरु किया गया गुट निरपेक्ष आंदोलन कितना सार्थक था और वो खुद मे तीसरी धुरी था जी बाकी दो को बैलेंस करता था ।
पहले अमरीकी स्वार्थो ने काफी देशो को बर्बाद किया है और अब उक्रेन पूरी दुनिया के छोटे और कम बिकसित या विकासशील देशो के लिये नये सिरे से एक्जुट होकर नई रणनीति बनाने का वक्त है और भारत इन सबकी अगुवाई कर सकता है पर उसके लिये पहले भारत मे पूर्ण एकता और विश्वास जरूरी है ।
उक्रेन तो एक हफ्ते मे निपट जायेगा परंतु ये अन्तिम साबित नही होगा बल्कि ये नये तरह के युद्ध का प्रारंभ है ।  संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी उपयोगिता खो चुका है  और बेहतर है कि ख़त्म हो जाए ।
चीन की चुनौती भारत के लिये कम नही है और वो चुनौती खुद की वैचारिक और रणनीतिक गल्तियो से पैदा हुयी है ।इन गल्तियो को तुरंत स्वीकार कर उसका परिमार्जन और अनुभव का उपयोग करते हुये उससे बाहर निकलना वक्त की मांग है चाहे वह राजनीतिक विरोधी के  पास ही क्यो न हो ।
युद्ध से बचना है तो युद्ध को महंगा करना होगा और बंटा हुआ देश तथा अज्ञानी नेत्रत्व ये नही कर सकता ।

आत्मा_तो_मत_बेचो

#आत्मा_तो_मत_बेचो 

जमीन बेचो , पेड़ पौधे और प्रकृति बेचो , मिट्टी बेचो , फल फूल बेचो , योग बेचो , मंदिर मस्जिद और ईश्वर बेचो 
पर आत्मा 
वो भी बेच रहे हो रोज 
और उसकी आवाज सुनाई नहीं पड़ती ।
आत्मा नहीं बिकी तो सब बच जायेगा 
इंसान भी और इंसानियत भी ।
जरा सोचो 
और 
जरा आत्मा की सुनो ।

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

आइए रंगो से बात करे रंगो की बात करे

आइए रंगो की बात करे ,आइए रंगो से बात करे ::

मेरे बगीचे के रंग । अगर ये सभी रंग नही होते तब भी क्या अच्छा लगता मेरा छोटा सा बगीचा ? रंगो से ही तो जीवन है और उसमे सभी रंग होते है । सफेद भी एक रंग ही है पर इसका अर्थ और उसकी खुशी आप की मानसिकता पर निर्भर है ,रंग काला भी है जो कपड़ो में तो फैशन में आता है ऐसे ही रंग केसरिया और हरा भी है । तंग कोई भी हो वो हरी डालियों पर है और उन्हें खुराक हरी पत्तियों से ही मिलती है ।
हर ऐसा नही है तो बिना हरियाली के रंग खिला कर दिखाए कोई , घर को किसी और रंग का बना कर दिखाए कोई , धान, गेहूं, अरहर हो या चना या मूंग और बाजरा बिना हरियाली के उगाए कोई । सब्जियां जो हरी होती है वही पौष्टिक मानी जाती है पर इसका मतलब ये नही की रंगीन टमाटर और हजार पौष्टिक नही है पर क्या करे उनको भी हरी पत्तियों का ही साथ है । गुलाब सफेद हो गुलाबी या पीला पत्तियां तो सफेद ही होती है ।आम हो सेब, पपीता ,अनार या कोई भी फल उसका सहारा भी हरियाली ही है ।
पर घमंड हरियाली को भी नही होना चाहिए क्योंकि ऐसी कोई भी हरियाली जिसमे फल और भोज्य नही वो या तो पशुओं के खाने और चारे के काम आती है या घास हैं अच्छी लगने के बावजूद पैरो से रौंदी जाती है । इंसान खुद प्रेम से उसी पौधे को भी लगाता है जो उसे कुछ देता है , जो काम का होता है कष्टदायक नही होता है जो फल या अन्न देता है । बबूल लोग कहा लगाते है और कौन बैठता है बबूल पर ? कहा बच्चे शैतानी करते है बबूल पर ? बबूल हो या कांटेदार नागफनी वहा लगाए जाते है जहा बाड़ का काम करे और खुद को न चुभे ।
और रंग भी कुछ स्थाई होते है जीवन के लिए जरूरी जैसे फल और अनाज पर मौसमी रंग होते है सिर्फ सजावट के लिए जो मौसम बदलने के साथ खत्म हो जाते है और उनमें बीज हुए तो रख लिए जाते है अगले मौसम के लिए । लेकिन फलों के रंग हरे हो या कैसे भी कई बार इंसान का पीढ़ी दर पीढ़ी साथ दे जाते है वर्षो । अनाज की फसलें भी बीज के रूप में साथ दे रहे है पीढ़ियों से और पीढ़ियों तक ।
इंसान भी कुछ ऐसे हो तो होते है जिनको लोग याद करते है पीढ़ियों तक , कुछ गुण और ज्ञान बोए जाते है पीढ़ियों तक और कुछ फूलो की खुशबू भी रची बसी है न जाने कब से और रहेंगी न जाने कब तक । पर कभी काफी बबूल दिखते थे और नागफनी भी ,बबूल तो खत्म होते जा रहे है और नागफनी कही कही गमलों में सिमटती जा रही है । तलाब में मिलने वाला बेहया तो खुद मनुष्य ही खत्म करता रहता है और रास्ते पर चलते वक्त घाव कर देने वाले पौधों को भी ।
तो आइए हम सभी रंगो को प्यार करे और मान ले संग किसी खास के नही बल्कि सबके है और सभी रंगो से बना बगीचा ही सुंदर लगता है तथा ये भी को चुभने और घायल करने वाले रंग कोई भी हो किसी को पसंद नही है ।
मैं भी कहा कहा चला गया जबकि बता ये रहा था की मेरे छोटे से बगीचे में इस वक्त रंगो की बहार है ।

बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

इति कथा सम्पन्नम |

एक लघु कथा -  
चाहे तो पढ़िए ---

बड़े भाई
हां छोटे भाई
ये क्या कर रहे हो ? काम की बाते और विकास की बाते ?
क्या छोटे क्या ये ठीक नहीं
अरे क्या गजब कर रहे हो लोग गाँव घर के बाहर और अन्दर झांक कर देख रहे है और पिचले चुनाव के वादों को भी याद कर रहे है | हम दोनों कही के नहीं रहेंगे | क्या जवाब देंगे ?
तब क्या करें भाई ?
ये फालतू की बातें छोड़ो और कुछ और सोचो जिससे लोग गाँव और पड़ोस की सड़क ,नाली ,पानी ,सफाई ,नौकरी ,महंगाई ,देश के जवानों की हत्या १५ लाख ,काला  धन , नोट्बंदी सब भूल जाये | न आप का कुछ याद रहे और न मेरा |
बही तुमने तो चिंता में डाल दिया | ये तो जनता हम दोनों को सबक सिखा देगी और कोई विकल्प ढूढ़ लेगी |
कही ऐसा न हो की बिना पैसा खर्च करने वाले निर्दलीय इम्नादार लोगो को वोट देना सीखा जाये और हम लोगो की राजशाही ख़त्म हो जाये |
हां भाई बहुत बुरा हो जायेगा |
फिर
फिर क्या
वही पुँराना शुरू करते है | जातियों में जाती और गोत्र के गौरव का भाव जगाते है |
धर्म को धर्म का डर दिखाते है | धर्मस्थलो का सवाल उठाते है | धर्म की घृणा बांटते है |
हो गया काम
लेकिन ये हथकंडे तो जनता जानती है ,कही नहीं फंसी जाल में तो फेल हो जायेगा फार्मूला
तो नया शुरू करते है
कुछ नए शब्दों निकालते है की मजबूरी हो जाये लोग उसी के इर्द गिर्द चर्चा करने को |
अच्छा क्या ?
गदहा
आतंकवादी
चोर
गुंडा
जितनी गन्दी से गन्दी बात हो सके नहीं तो भद्दी भद्दी गलिया देने लगेंगे हम दोनों जोर जोर से दोनों एक दूसरे को
और इतना शोर करेंगे और करते ही रहेंगे की जनता बस तमाशबीन हो जाये
बस
इसी में वोट का टाइम निकल जायेगा
अच्छे लोग भी इस शोर में खो जायेंगे
और हम लोगो को गलियों की पसंद और नापसंद में एक बार और जनता को लामबंद करने में कामयाब हो जायेंगे ,
हम दोनों में से ही कोई जीतेगा |
हाथ मिलाओ
हां हां हां हां हां हां हां
जनता क्या हमसे ज्यादा दिमाग रखती है
जनता कही की
अरे पूरा पांच साल बचा है ,अपराध ,नाली ,पानी सड़क ,बिजली रोजगार विकास की चर्चा के लिए ,देश की सुरक्षा ,जवानों की हत्या ,आतंकवाद ,काला धन ,नोट ,रोजगार इत्यादि
कम से कम चुनाव में तो ये बाते जनता को भूल ही जाना चाहिए
बड़े बतमीज है ये जनता के लोग की एक डेढ़ महीना ये सब भूल कर केवल हम लोगो के जुमलो और झटको को सुनना चाहिए
चुनाव ख़त्म हो जाये तो फिर अपनी बैठक और चाय की दुकान और काफी हाउस में बैठ कर ,चौपाल पर खूब चर्चा करना इन  मुद्दों की और हमें खूब गालियाँ दे देना ,
वहा सुन ही कौन रहा है | तुम ही बोल रहे हो और तुम ही सुन रहे हो
सा ;;; चुनाव में याद करने लगते है | ये भी कोई तरीका है
जहा सी तमीज नहीं है इन कीड़ो मकोडो में
जाने दो भाई नाराज मत हो | अभी तो गधो को बाप बनाने का वक्त है \
एक महीना बन लो फिर इन गधो पर राज करो
अच्छा पैग बनाओ
इस नए झकास आइडिया पर ; चियर्स .
किसी ने हमें मिलते देखा तो नहीं
या बात करते सुना तो नहीं
तो तय रहा
यहाँ से निकलते ही एक दूसरे को गन्दी से गन्दी गलिया देनी है ,बिना संकोच ,बिना लिहाज
हां हां हां हां हां हा
लोकतंत्र की जय .भीडतंत्र जिंदाबाद |
इति कथा सम्पन्नम |

रविवार, 19 फ़रवरी 2023

दुनिया में युद्ध क्यों और हथियार क्यों ?

यूक्रेन के युद्ध ने ये बता दिया कि यदि बड़ी ताकते और हथियार आमने सामने है तो इस्तेमाल होने वाले कंधे चाहे कितने भी कमजोर हो युद्ध जीत हार के लिए नही बल्कि सिर्फ बरबादी के लिए लड़े जाते है 
यू तो अमरीका रूस और चीन ने भी कहा जीता संपूर्णता से युद्ध और किस देश पर काबिज होकर रह पाया ? हा बर्बाद करके और कुछ खुद भी बर्बाद होकर चले ही गए ।
ऐसा भी हुआ है इतिहास में की देश और ताकत छोटी ही सही पर वहा की आवाम और स्त्री बच्चे तक ठान कर निकल पड़े तो महाशक्ति अमरीका तक को दुम दबाकर भाग जाना पड़ा ।
देश चाहे जीते या हारे पर युद्ध को तो एक दिन खत्म होना ही पड़ता है और एक दिन युद्ध वाली ताकते या तो बहाना बना कर वापस चली जाती है या वार्ता की मेज पर  बैठ जाती है ।
लेकिन एक सच अटल है की मानवता मर जाती है । मांगे और कलाइयां सुनी हो जाती है ,ना जाने कितने घर अनिश्चित काल तक के लिए अंधेरे में डूब जाते है ,ना जा कितने बच्चे अनाथ हो जाते है ,ना जा कितने घर ,बस्तियां और शहर तथा गांव उजड़ जाते है ।
युद्ध का अंतिम और क्रूर सत्य तो यही है ।
फिर युद्ध क्यों ? क्या हासिल होता है युद्ध से ? बस हथियार बनाने वालो के कारोबार के लिए क्यूं हो युद्ध ? युद्ध इस बात के क्यों न हो की किसी भी हालत में नही होगा युद्ध ,किसी भी हालत में कही भी नही चलेगा कोई हथियार , खत्म कर दे पूरी दुनिया से सब हथियार इसके लिए हो जाए पूरी दुनिया में कोई अहिंसक युद्ध । 
आइए युद्ध शब्द को ही मिटा दे दुनिया के सभी शब्दकोश से ,सभी की याददाश्त से , सभी के दिमाग से ।
और बस मानवता की रक्षा ,मानवता का भला ,मानवता की हर तरह से सुरक्षा और मानवता के भविष्य और विकास की प्रतियोगिता और बढ़ चढ़ सहयोग को ही मान ले पूरी दुनिया अब से अनंत काल तक का नया युद्ध ।

बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

रस्सियों से बंधे पशु और धागों तथा अंधविश्वासों से बंधे मनुष्य में अंतर ही क्या है ?

गांय भैंस बैल ही नही हाथी भी ऐसी रस्सी से बांध दिया जाता है को वो थोड़ी सी कोशिश से तोड़ सकते है
वही रस्सी पकड़ कर पालने वाले का छोटा बच्चा भी किधर भी घुमा लाता है
ऐसे ही इंसानों में भी तमाम स्त्री पुरुष युवा और बच्चे भी बांध दिए गए है रंग बिरंगी रस्सियों से हाथो में और गर्दनों में और उसके गुलाम बना दिए है । बच्चो को छोड़ दे तो बाकी सब तोड़ सकते है इस अंधविश्वास की रस्सियों को पर
ऐसी अज्ञात भय और लालच के शिकार है बड़ी संख्या में लोग सभी धर्मो के
और जानवर पालने वाले के बचे की तरह ये भी हांके जाते रहते है किधर भी इन अंधविश्वास की रस्सियों और मान्यताओं के सहारे तमाम कमजोर पाखंडी अज्ञानियो द्वारा ।
पता नही कब मुक्त होगा मनुष्य इन सबसे ।
#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

धर्म_पूजा_देवत्व_स्वर्ग_और_नर्क_या_मात्र_ढकोसला

#धर्म_पूजा_देवत्व_स्वर्ग_और_नर्क_या_मात्र_ढकोसला


काफी लोगो को देखता हूं कि ढोंगियों के द्वारा थोपी किताबे घंटे भर से ज्यादा रोज पढ़ते है और गाते है और कई तथाकथित देवी देवो की स्तुति करते है 

और उठते ही चीख चिल्ला रहे होते हैं। सालो से पूजा कर रहे है पर खुद का मन दिमाग और जुबान अशांत है ।

काफी लोग पूजा के नाम पर सारे कर्म करते है और फिर सारे बुरे काम भी हा सारे ही पूरी शिद्दत से करते हैं लेकिन साल में दो चार बार किसी नामी धार्मिक स्थल पर घूम आते है और किसी खास नदी में किसी खास तट पर डुबकी मार कर पाप धो आते है ।

कितना आसान बना दिया है धर्म के ठेकेदारों ने की पापो की सजा आप पर छोड़ दिया है ,डुबकी , कथा ,पूजा , दान और फूल बंगला आप खुद तय कर अगर कोई भगवान है तो उसे छल सकते हो 

या पता नही खुद को ,समाज को और मानवता को ही छलते रहते है जजमान और ठेकेदार मिलकर ।

वरना तो पढ़ा था की ईश्वर को ढूढने लोग सब कुछ छोड़कर हिमालय की कंदराओं में चले जाते थे और लौट कर आते ही नही थे ।

पता नही उनमें से किसी को भी भगवान मिले या नही । किसी ने लौट कर बताया नही । पौराणिक कथाओं में भगवानों और देवो के किस्से जरूर मिलते है पर जरा आस्था किनारे रख कर समीक्षा की जाए तो वो सब भी तमाम इंसानी अच्छाइयों और बुराइयों वाले इंसान ही नजर आते है ,सारी कमजोरियों वाले इंसान और उनकी लड़ाइयों और श्राप जलन धोखे इत्यादि की समीक्षा करिए ना आप को आज के आसपास होने वाले दृश्य ही नजर आएंगी। बाकी किसी भी कहानी उपन्यास और सिनेमा की पटकथा लिखते या रचते हुए हीरो में कुछ अस्वाभाविक शक्तियां और गुण दिखाने ही पड़ते है और उसे महान दिखाने के लिए विरोध में गढ़े गए खलनायक में उतने ही अवगुण भी ।

सच में पूजा करने वाले को तो बिल्कुल शांतचित्त हो जाना चाहिए ,निर्विकार , सुख दुख से ऊपर , लोभ लालच से ऊपर , दुनियादारी से ऊपर और स्वयं अच्छा बन कर समाज को बुराइयों से दूर करने के लिए समर्पित ,सभी तरह की बुराइयों से । इंसान को आदर्श इंसान बना देने का नाम ही धर्म है और वही धारण करने योग्य है और सचमुच का हर बुराई से मुक्त बन जाने की अवस्था की देवत्व है और इसको पा लेना ही स्वर्ग को पा लेना है और  बाकी सभी अवस्थाएं ही नर्क में जीना और ऐसे कर्म ही नर्क को रचना है ।

आज सुबह के चिंतन से ।

#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच

आंदोलन_पर_रोक_निकले_तो_सजा

#आंदोलन_पर_रोक_निकले_तो_सजा

सिविल नाफरमानी,करो या मरो , सत्याग्रह , नमक कानून तोड़ो, डांडी मार्च , असहयोग आन्दोलन इत्यादि से ही आजादी मिली और अपना गिरेबान पकड़ने वाली महिला से नेहरू जी ने कहा कि आजादी में ये अधिकार मिला है ।
1947 के बाद से ही विपक्ष के और कुछ सत्ता पक्ष के नेता भी धरना प्रदर्शन रैली चक्का जाम सड़क जाम से विरोध व्यक्त करते रहे भाजपा सहित 
पर 
अब इस सत्ता के आने के बाद दो चीजे हो रही है - 
1- कोई किसी तरह विरोध नही कर सकता बल्कि प्रदर्शन की आशंका में ही घर में कैद कर दिए जाते है और दरवाजे से निकले तो सैकड़ों मुकदमे लग जाते है और शिकायत ये भी की अदालते मुकदमे खत्म क्यों नही कर रही है और रोज संख्या बढ़ाते जाओ। 
2- अगर कभी धरना प्रदर्शन किया इत्यादि किया था तो पहले अदालतें उनको लोकतांत्रिक अधिकार मान कर बरी कर देती थी 
पर अब हर मामले में राजनैतिक कार्यकर्ताओं को 2/3 साल की सजा दे दे रही है अदालतें खासकर गैर भाजपा दलों के कार्यक्रताओ को ।
(हा अगर तोड़फोड़ , आगजनी हुई हो तो जरूर जुर्माना या मात्रा में सजा हो सकती है )
दुनिया के लिए भी लोकतांत्रिक देश में ये दोनो काम नही होते है 
क्या लोकतंत्र को धीरे धीरे खत्म किया जा रहा है ? क्या वर्तमान सत्ता पार्टी ने मान लिया है की अब वो कभी विपक्ष में नही आयेगी ? 
क्या दूसरी सरकारों में भाजपा के लोगो के साथ भी यही व्यवहार हो रहा है ? 
यदि नही तो क्यों यही व्यवहार नहीं हो रहा है ।
आजादी मिले अभी चंद दिन ही तो हुए । अभी शहीदों का लहू ठीक से सूखा भी नही और उनके सपनों और इरादों को कुचला क्यों जा रहा है ?
अब भारत के क्या सत्ता और प्रशासन की मनमानी के खिलाफ आवाज उठाना अपराधी बन जाना होगा ? 
सवाल बढ़ते जा रहे है 
महात्मा गांधी से लेकर सुभाष बाबू तक , सरदार पटेल से लेकर आजाद और भगत सिंह तक , सरदार पटेल से लेकर हजारों अनाम शहीदों की आत्माएं आज के भारत से और की जवानी से सवाल पूछ रही है 
और 
जवाब में या तो सन्नाटा है या लाठी गोली मुकदमा और जेल है ।
इस अघोषित वीभत्स आपातकाल से  भारत को मुक्ति कब मिलेगी 
और 
शहीदों के सपनो का स्वतंत्र भारत खुलकर कब हसेगा और सड़क परचलेगा 
डा लोहिया ने कहा था " जिंदा कौम पांच साल इंतजार नही करती 
उन्होंने ये भी था कि 
जब सड़के सूनी और खामोश हो जाएगी तो संसद आवारा हो जाएगी 
फिर सड़को को सूना और खामोश करने का क्या अर्थ लगाया जाए 
धरना और प्रदर्शन पर लगातार मिलती सजाओ का क्या अर्थ लगाया जाए 
जिन सांसदों और विधायकों की अपराधियों में गिनती की जाती है सैकड़ों में क्या वो सब अपराधी है या उनमें से उंगलियों पर गिनने लायक ही अपराधी है 
और बाकी सब पर तो आंदोलनों के ही मुकदमे है जो आई पी सी में ही दर्ज होने के कारण अपराधी में गिन लिए जाते है
क्या संसद और विधान सभाओं को आगे आकर खुद इसका प्रतिकार नही करना चाहिए 
क्या आंदोलनो और प्रदर्शन के लिए अलग कानून और नियमावली तथा क्या और कहा तक किया जा सकता है ये नही बना देना चाहिए
और 
क्या मांगो प्रदर्शनों के प्रति प्रशासन और सत्ता की भी जवाबदेही नही तय हो जानी चाहिए की कितने दिन में सुनवाई और निर्णय करना ही पड़ेगा 
और नही किया तो फिर देश की जनता आगे क्या कर सकती है ? 
क्या सत्याग्रह और आंदोलन की हत्या और सजा महात्मा गांधी और सभी स्वतंत्रता सेनानियो को गाली ,उनका , अपमान, उनके दिखाए मार्ग की उपेक्षा और उनके सपनों  की हत्या नही है ? 
#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2023

बहुमत बनाम बहुमत

संसद और विधान सभाओं में विपक्ष तो सदा से हंगामा करता रहा है पूरी दुनिया में जब बहुमत उसकी आवाज अनसुनी करता है या दबाता है 
पर बहुमत वाला सत्ता पक्ष हंगामा करे तो इसका मतलब है की उसके पास जवाब नहीं है वो घिर गया है
अक्सर एक तिहाई वाले सत्ता में तथा बहुमत वोट विपक्ष में होता है

शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

धर्म और जाति से देश को बरगलाते नेता

जिनके भी पास देश समाज और मानवता के लिए कोई सार्थक सपने नही है ,सिद्धांत नही है और  उन सपनों को पूरा करने का संकल्प नही है ,सचमुच के सरोकारों को लेकर कोई सोच नही है ,कोई वैकल्पिक कार्यक्रम नही है ,सरोकारों से सरोकार नहीं है वो ही लोग समाज और देश को तुच्छ और गैर जरूरी मुद्दो पर भटकाते रहते है । 
जो खुद खरबपति हो गए और जिनके पैर छूने को ब्राह्मण ठाकुर लाइन लगाए है उन्ही को बड़ी जातियों से परेशानी भी है 
आम भारतीय और नई पीढ़ी तो अपने दैनंदिनी संघर्ष से जूझ कर हल ढूंढ रहा है 
इसे जाति और धर्म में उलझा कर अज्ञानी नेतृत्व मुंह छुपाना चाहता है सचमुच के मुद्दो से ।