गुरुवार, 20 अगस्त 2020

इति कथा सम्पन्नम |

बड़े भाई
हां छोटे भाई
ये क्या कर रहे हो ? काम की बाते और विकास की बाते ?
क्या छोटे क्या ये ठीक नहीं
अरे क्या गजब कर रहे हो लोग गाँव घर के बाहर और अन्दर झांक कर देख रहे है और पिचले चुनाव के वादों को भी याद कर रहे है | हम दोनों कही के नहीं रहेंगे | क्या जवाब देंगे ?
तब क्या करें भाई ?
ये फालतू की बातें छोड़ो और कुछ और सोचो जिससे लोग गाँव और पड़ोस की सड़क ,नाली ,पानी ,सफाई ,नौकरी ,महंगाई ,देश के जवानों की हत्या १५ लाख ,काला  धन , नोट्बंदी सब भूल जाये | न आप का कुछ याद रहे और न मेरा |
बही तुमने तो चिंता में डाल दिया | ये तो जनता हम दोनों को सबक सिखा देगी और कोई विकल्प ढूढ़ लेगी |
कही ऐसा न हो की बिना पैसा खर्च करने वाले निर्दलीय इम्नादार लोगो को वोट देना सीखा जाये और हम लोगो की राजशाही ख़त्म हो जाये |
हां भाई बहुत बुरा हो जायेगा |
फिर
फिर क्या
वही पुँराना शुरू करते है | जातियों में जाती और गोत्र के गौरव का भाव जगाते है |
धर्म को धर्म का डर दिखाते है | धर्मस्थलो का सवाल उठाते है | धर्म की घृणा बांटते है |
हो गया काम
लेकिन ये हथकंडे तो जनता जानती है ,कही नहीं फंसी जाल में तो फेल हो जायेगा फार्मूला
तो नया शुरू करते है
कुछ नए शब्दों निकालते है की मजबूरी हो जाये लोग उसी के इर्द गिर्द चर्चा करने को |
अच्छा क्या ?
गदहा
आतंकवादी
चोर
गुंडा
जितनी गन्दी से गन्दी बात हो सके नहीं तो भद्दी भद्दी गलिया देने लगेंगे हम दोनों जोर जोर से दोनों एक दूसरे को
और इतना शोर करेंगे और करते ही रहेंगे की जनता बस तमाशबीन हो जाये
बस
इसी में वोट का टाइम निकल जायेगा
अच्छे लोग भी इस शोर में खो जायेंगे
और हम लोगो को गलियों की पसंद और नापसंद में एक बार और जनता को लामबंद करने में कामयाब हो जायेंगे ,
हम दोनों में से ही कोई जीतेगा |
हाथ मिलाओ
हां हां हां हां हां हां हां
जनता क्या हमसे ज्यादा दिमाग रखती है
जनता कही की
अरे पूरा पांच साल बचा है ,अपराध ,नाली ,पानी सड़क ,बिजली रोजगार विकास की चर्चा के लिए ,देश की सुरक्षा ,जवानों की हत्या ,आतंकवाद ,काला धन ,नोट ,रोजगार इत्यादि
कम से कम चुनाव में तो ये बाते जनता को भूल ही जाना चाहिए
बड़े बतमीज है ये जनता के लोग की एक डेढ़ महीना ये सब भूल कर केवल हम लोगो के जुमलो और झटको को सुनना चाहिए
चुनाव ख़त्म हो जाये तो फिर अपनी बैठक और चाय की दुकान और काफी हाउस में बैठ कर ,चौपाल पर खूब चर्चा करना इन  मुद्दों की और हमें खूब गालियाँ दे देना ,
वहा सुन ही कौन रहा है | तुम ही बोल रहे हो और तुम ही सुन रहे हो
सा ;;; चुनाव में याद करने लगते है | ये भी कोई तरीका है
जहा सी तमीज नहीं है इन कीड़ो मकोडो में
जाने दो भाई नाराज मत हो | अभी तो गधो को बाप बनाने का वक्त है \
एक महीना बना लो फिर इन गधो पर राज करो
अच्छा पैग बनाओ
इस नए झकास आइडिया पर ; चियर्स .
किसी ने हमें मिलते देखा तो नहीं
या बात करते सुना तो नहीं
तो तय रहा
यहाँ से निकलते ही एक दूसरे को गन्दी से गन्दी गलिया देनी है ,बिना संकोच ,बिना लिहाज
हां हां हां हां हां हा
लोकतंत्र की जय .भीडतंत्र जिंदाबाद |
इति कथा सम्पन्नम | 

सोमवार, 10 अगस्त 2020

राजनीती की कबड्डी

#राजनीती भी कबड्डी के खेल की तरह है 
अपने पाले के आसपास खेलना ही सुरक्षित होता है 
दूसरे के पाले मे अक्सर अंन्दर तक वही जाते है जिनका बूता होता है छुड़ा कर अपने पाले मे आ जाने का 
पर 
जिनकी कबड्डी बोलने मे ही सांस फूल रही है उनके लिए ट्विटर का खेल ही ठीक है 
या बुद्धि और समर्पण हो दिलेरी हो तो अपने पाले मे दुशमन को आने को मजबूर करो ।

मुर्दा बन जाये क्या

देश और समाज पर लिखना और बोलना बंद कर मैं भी मुर्दा बन जाऊ क्या ? 
केवल खुद का सुख तो इसी मे है 
सबकी हा मे हा मिलाओ अब खुश आप भी खुश 
वैसे भी 
"कोई नृप होए हमे का हानि "
हमारा मूल मंत्र और मूल चारित्र है 
तभी तो केवल कुछ सौ लोग आते थे सूदुर पच्छिम से या कही से भी और हमे लूट कर चले जाते थे ,पडोसी की लूटने का ज्ञान लुटेरो को हम ही देते थे और उसके लुटने पर खुश होते थे फिर हमारे लुटने पर हमारा पड़ोसी खुश होता था और मिल जाता था लुटेरो से । चलता रहा यही क्रम हजारो साल ।
वो तो पता नही कहा से गांधी बाबा आ गए और सुभाष से भगत तक को जान देने का शौक चर्रा गया बिना ये जाने की ये समाज डमरू और तमाशा प्रेमी है ।
आज भी यही चल रहा है और ताकत की पूजा मे हम लहलोट हो जा रहे है ।चाहे कोई कितना बर्बाद कर दे हमे पर हम खुश है 
हम कभी नही बदलेंगे 
क्योकी तमाशे देखना , बदर का डमरू पर नाचना और उसी डमरू पर खुद भी नाच लेना हमारा शौक है और हमारे जीन का चारित्र भी ।
कोई भी डमरू की आवाज पर हमसे कुछ भी करवा सकता है ।
हम मर रहे हो ,हमे भूखे हो ,हम बर्बाद हो रहे हो पर बस कोई डमरू बजा दे तो उत्सव प्रेमी हम उसी हालत मे अपना सब दुख भूल दौड पडते है नाचने और उत्सव मनाने के लिए ।
हमारा कोई कुछ बिगाड़ नही सकता क्योकी जेहन से हमने खुद को उसके लिए हजारो साल से तैयार किया हुआ है ।
मैं भी क्यो हवा के विपरीत चलूँ ? 
हवा जब तेज हो तो मुकाबला क्यो करुँ ? 
क्योकी मैं भी पीठ उस तरफ कर उसके वेग के कम हो जाने का इन्तजार न करू ? 
और 
क्यो न मैं दिखावे को ही सही डमरू की आवाज पर मुस्करा ही देने की कोशिश करुँ ? 
चली चुटकले ढूढता हूँ और सुनाता हूँ आप को आज से 
ढूढता हूँ भूले बिसरे गीत और सुनाता हूँ आप को 
नही तो अपनी लिखी कविताओ और कहानियो से ही बोर करता हूँ आप को ।
मैं पूरे समाज और देश जैसा बन जा रहा हूँ और बस सुबह के नाश्ते से रात के खाने तक डमरू की पूजा और डमरू के आदेश को ही खा लूँगा 
और फिर सो जाऊंगा निश्चिंतता के बिस्तर पर ।
रोज सुबह और शाम गिनूगा और पूरा हो जायेगा जीवन एक दिन ।
बोलो डमरू बाबा की जय 
नाच मेरी बुलबुल की पैसा मिलेगा 
ऐसा भी मिलेगा वैसा भी मिलेगा 
जैसा डमरू चाहेगा तैसा  मिलेगा ।
चलो नाच लेते है सत्ता और ताकत के हर ताता थैय्या पर ।
गांधी सुभाष भगत ये कौन थे ? 
क्या कर लिया इन्होने ?
इनसे ज्यादा ताकत तो डमरू ने दिखा दिया ।
इसलिए अब इनको भूल जाते है और दिल दिमाग से भी इन्हे मिटा देते है ।

अयोध्या अन्दोलन का सच जो मैने देखा

#जिंदगी_के_झरोखे_से--
1990 - 25 सितम्बर को गुजरात के सोमनाथ से अडवाणी जी ने रथयात्रा शुरू कर दिया था ।अडवाणी जी देश के लोकतंत्र की एक राष्ट्रीय पार्टी के दो बड़े नेताओ मे से एक और उसके अध्यक्ष थे जिसकी जिम्मेदारी देश के भविष्य के लिए लड़ने और शैडो गवर्नमेंट बना कर वैकल्पिक विकास का एजेंडा शिक्षा स्वास्थ्य कृषी सुरक्षा इत्यादि होना चाहिये था वो इन मुद्दो के लिए नही बल्की मंदिर बनाने के लिए माहौल बनाने निकला था । उनको 30 अक्तूबर को अयोध्या पहुचना था पर 23अक्तूबर को उनको लालू यादव ने समस्तीपुर मे गिरफ्तार कर लिया और फिर उनका रथ वाहि थाने मे ही सड़ गया किसी को उसकी याद नही आई ।
काश अडवाणी जी देश की समस्याओ के लिए रथ लेकर निकले होते गरीबी और बेरोजगारी के खिलाफ निकले होते , गांव की बदहाली के खिलाफ निकले होते , अशिक्षा और अभाव मे मौत के खिलाफ निकले होते तो शायद हम जैसे लोग भी साथ हो लेते पर !
कहानी के विस्तार मे नही जाकर मुद्दे पर आता हूँ जिसके लिए आज लिख रहा हूँ 
राम लला हम आयेंगे ,मंदिर वही बनायेंगे 
बच्चा बच्चा राम का जन्मभूमि के काम 
इत्यादि नारे लगवाये जा रहे थे 
आरएसएस और भाजपा तथा विश्व हिन्दू परिसद ने कार सेवा का एलान किया । 21अक्तूबर से ही देश भर से ये सब संगठन मिल कर लोगो को विभिन्न रस्तो से अयोध्या के 100 किलोमीटर के दायरे मे चारो तरफ लाने लगे ।
और अन्ततः 30 अक्तूबर  और फिर 2 नवम्बर  को इस तरह कूच किया जैसे किसी दूसरे देश मे विजय प्राप्त करने क
जा रहे हो ।
अयोध्या मे पूजा और दर्शन होता था उस समय भी पर विवाद अदालत मे था ।
मैं उस वक्त पार्टी का प्रदेश महामंत्री और प्रवक्ता था हम लोगो ने दो प्रस्ताव किया यह कहते हुये की दर्शन और पूजा सबका अधिकार है पर संविधान और कानून से खिलवाड़ सरकार मे बैठा हुआ और उसकी शपथ लिया कोई भी व्यक्ति नही करने देगा और हम भी नही ।
पर हमारे दो प्रस्ताव है --
हम मध्यस्थता करने को तैयार है दोनो पक्ष साथ बैठ जाये और सहमती से तय कर ले क्या होना चाहिये सरकार उसी को मानेगी 
2--यदि सहमती नही बनती है तो फिर एक ही तरीका है की अदालत जो तय करे वो माना जाये ।
कोई तीसरे तरीके को संविधान और कानून से चलने वाले देश मे किसी भी हालत मे नही स्वीकार किया जा सकता है और न किसी हालत मे स्वीकार किया जायेगा ।
तब इन लोगो ने जवाब दिया था जो आज पूरे देश को जानना चाहिये -
कि 
"यह अदालत और कानून नही बल्की हमारी आस्था का सवाल है और इसे हम खुद हल करेंगे "
बड़े नेताओ ने आफ द रिकार्ड यह कहा था की सिर्फ साफ सफाई करेंगे और घोषणा हो चुकी है तो दर्शन कर लौट जायेंगे ।
लाखो की भीड खेतो मे होकर अयोध्या पहुची और रोकने पर पुलिस तथा प्रशसनिक अधिकारियो पर हमलावर हो गई । अधिकारियो ने बहुत समझाने का प्रयास किया की शान्ती से दर्शन करे और वापस चले जाये पर भीड उग्र हो गई जिसके लिए पीछे से सिखा पढा कर लाया गया था ।
भीड गुम्बद पर चढ़ गई और तोड़फोड़ करने लगी 
मजबूरन पुलिस को बल प्रयोग करना पडा और उसमे 16 लोगो की जाने गई जो बहुत अफसोसजनक है क्योकी वो सब इसी देश के नागरिक थे और अपने परिवारो के प्रिय थे । किसी भी हालत मे कभी भी अपने ही नागरिको पर पुलिस की लाठी और गोली चले यह लोकतंत्र के बिल्कुल खिलाफ है और जिम्मेदार राज्य की अवधारणा के भी खिलाफ है । मरने वाले अधिकतर पिछड़े वर्गो के जवान थे ।ये भी सच है की उन मृतको के परिवारो का इन संगठनो और इनकी सरकारो ने फिर कभी हालचाल भी नही पूछा ।
आरएसएस के झूठ तन्त्र ने फैला दिया की हजारो जाने चली गई और सरयू का पानी लाल हो गया और एक खून खौला देने वाला वीडियो भी बना दिया इन लोगो ने 24 घन्ते मे और देश भर मे बांट भी दिया जैसे अन्ना के आन्दोलन मे मिंनटो मे झंडे और मशाले बट जाती थी ,बस आप दोनो को एक साथ रख कर देख्ते जाइए । मैने दिल्ली मे किसी संघी के घर वो वीडियो देखा ,पूरी पिक्चर थी सारे इफेक्ट डाल कर बनायी गई जिसमे लाशे ही लाशे दिखाई गई ,नाली मे खून बहता दिखाया गया , पहले सोमनाथ से लेकर बाबर तक पता नही क्या क्या बताया गया और उसमे एक हेलिकोप्टर उड़ता दिखाया गया था जिसमे बैठे मुलायम सिह यादव को मशीन गन से लोगो पर गोली चलते दिखाया गया था ।
हमने चुनौती दिया की आप मृतको के नाम बताओ ।  ये लोग जो भी नाम बताते हम पूरा सिस्टम लगा कर उनको ढूढ लाते और मीडिया के सामने पेश कर देते । इंनकी सारी लिस्ट और बात फर्जी नकलती गई और अन्त मे वो 16 लोग बचे जो सचमुच मरे थे और उनकी मौत पर हम सबको अफसोस तब भी था और आज भी है ।
पर यह भी उल्लेखनीय है की कल्याण सिंह की भाजपायी सरकार मे जब सरकारी तौर पर फिर लाखो की भीड आई और विवादित ढांचा तोड गया तो उस पर चढे तमाम लोग उसी के नीचे दब गये थे पर सत्ता का नशा और इस विश्व विजय के जोश मे वो बेचारे समचार की सुर्खिया नही बने ।
उसके बाद अयोध्या से ही मार काट लूट शुरू हो गई और यहा तक की खुद भाजपा का अल्पसंख्यक सेल का अध्यक्ष चीखता ही रह गया की मैं तो आप की पार्टी के इस पद पर हूँ, पर ? (इसका ब्योरा उस दिन के हिन्दू के मौके पर मौजूद रिपोर्टर की रिपोर्ट मे मिल जायेगा ।
कैसे लोग आये थे ये धार्मिक काम करने इसी से समझ लीजिये की रुचिरा गुप्ता इनकी भीड मे ही थी तो उसके शरीर से कपडे गायब हो गए और ये देख कर बी बी सी के रिपोर्टर मार्क टूली ने उसे अपना कोट पहनाया और पिटता रहा पर किसी तरह रुचिरा को भीड से निकालने मे कामयाब रहा ।
दंगो मे 2000 से ज्यादा जाने गई ,हजारो करोड़ की सम्पत्ती नष्ट हुई और उठान लिए हुये विकास का पहिया बैठ गया और सालो पीछे चला गया ।
दंगो मे इन लोगो ने क्या किया था आतंक फैलाने को सर्फ इस बात से जान लीजिये की एक टेप बनाया था जी किसी छत पर अचानक काफी तेज आवाज मे चीखता --बचाओओ ओ ,भागो ओ ओ ,आ गए हजारो मुस्लमान ,अरे मार दिया अरे एक और मार दिया भागो ओ ।
और हम लोग जो आगरा के कालेज कैम्प्स मे रहते थे उसके लोग भी अपने हथियार लेकर निकल आये और छपने की जगह ढूढ़ने लगे ,मैने कहा की यहा कहा कोई मुस्लमान है आसपास पर कोई सुनने को तैयार नही था ,आगरा का लाजपत कुन्ज और ऐसी तमाम कालोनी जो मुस्लिम इलाको से 8 से 10 किलोमीटर दूर है लोग रात रात भर पहरा देने लगे ,रास्तो पर बड़े बड़े पत्थर और पुराने टायर रख दिये इत्यादि 
और मुसलमान अपने मुह्ल्लो मे दुबका था की निकले नही की पी ए सी आयेगी और फिर सिर्फ गोलियो की आवाज होगी ।
(दंगो मे क्या क्या हुआ और कौन लोग मरे , किनके साथ क्या क्या हुआ और क्या क्या कर्म करते हुये महान लोग जय श्रीराम के नारे लगते थे और राम का नाम कर बडा कर रहे थे और कौन सी संपत्तियाँ नष्ट हुई इत्यादि तमाम आयोग और जांच कमेटी की रिपोर्ट अब सार्वजनिक है और हो सचमुच देश के वफादार और जिम्मेदार लोग है उनको सब पढ़ना चाहिये और सब जानना चाहिये ।
हर दंगे के बाद भाजपा की सीटे बढती गई ।
और 
इसी बीच विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अडवाणी जी के अभियान के मुकाबले मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू कर दिया ।उनकी सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया और चंद्रशेखर जी प्रधान मंत्री बन गए ।
# बीच मे ये भी जान लीजिये की विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को भाजपा का समर्थन था और भाजपा के प्रिय जगमोहन कश्मीर के राज्यपाल थे जब कश्मीरी पंडीत कश्मीर छोड कर गए ,पर उस वक्त भाजपा ने न उसे मुड़दा बनाया और न कश्मीरी पण्डितो के सवाल पर उस सरकार से समर्थन ही वापस लिया#
हा तो चंद्रशेखर जी के अटल बिहारी वाजपेयी श्रीमति सिंधिया , भैरोंसिंह शेखावत सहित काफी भाजपा नेताओ से अच्छे सम्बंध थे और उनकी सरकार मे हम लोगो के युवा राजनीती के मित्र सुबोधकांत सहाय गृह मंत्री थे ।
(  मन्दिर सम्बन्धी हिन्दू परिसद और इन लोगो की बैठक और प्रधान मंत्री से मिलकर बात करने की इच्छा पर चंद्रशेखर जी का उनकी बैठक मे श्रीमति सिंधिया के यहा खुद पहुच जाना और फिर उन्होने क्या सुना और क्या कहा तथा फिर मुस्लिम पक्ष से क्या कहा जानने के लिए Chanchal Bhu की वाल खंगालिए थोडा समय निकाल कर )
अन्त मे चंद्रशेखर जी विवाद का एक सर्वसम्मत हाल निकाल ही लिया अपनी दृढता और दूरदर्शिता से जिसपर अंदर सब सहमत थे और वो फौसला करीब ऐसा ही था जो उसके बाद इतनी बर्बादी और दंगो तथा नफरत की खेती के बाद अन्ततः अदालत ने ही दिया # फिर याद रखिये की हमने कहा था की या तो बातचीत से हल कर लो या अदालत को करने दो और तब आस्था के नाम पर अदालत को मानने से इंकार कर दिया था इस जमात ने #
और अपनी सरकार बन जाने पर उसी अदालत को माना भी और दिन रात देश से भी कहते रहे की अदालत को सभी माने मिलजुल कर और पूरे देश ने माना मुसलमान ने भी । पूरा देश शान्त रहा पर यदि अदालत का फौसला इसका उल्टा होता तो क्या होता ,कल्पना से रूह काँप जाती है ।
प्रधान-मंत्री चंद्रशेखर के निवास से विश्व हिन्दू परिसद वाले यह कह कर निकले की थोडी देर मे आपस मे राय कर के आते है और फिर आये ही नही ।
अब पाठक ध्यान से पढे और समझे इस जमात के इरादे की , आदत को , रणनीति को ,इच्छा को , इनके हथकण्डे को , देश के प्रति जिम्मेदारी को , देश के भविष्य को लेकर चिंतन को , चिंता को और इनके देश के लिए सपने ,सिद्धांत और सक्ल्प को । 
( लखनऊ से दिल्ली तक की सत्ता के करीब रह कर , निस्पक्ष रूप से जागृत रह कर जो देखा , जो जाना , जो समझा सब लिख दिया क्योकी जो अब 45 साल के है तब स्कूल मे पढ रहे होंगे और 1990 मे पैदा लोग अब 30 साल के हुये होगे ।देश की 65%आबादी 35 साल के नीचे की है इसका मतलब ये है की उनको जो बताया गया होगा शाखा मे ता सन्घ के प्रचार ने वो उसी को सच मानते है ।इसलिए सभी जागरूक और सच्चे देशभक्तो की जिम्मेदारी है की पूरे देश को सच की तस्वीर दिखाए बड़े पैमाने पर और देश को फसीवद की तरफ जाने से बचाए ।
आज इसिलिए मैने एक पोस्ट मे लिखा था की देश दो पाटो के बीच फंस गया है -एक जो सच है और दूसरा आरएसएस का सच । देखे ईश्वर कैसे बचाता है मेरे देश को ।
जो सच्चे हिन्दू है और सचमुच मे राम कृष्ण और शिव को मानते है और चाहते है की समाज इन तीनो के नाम पर घृणा और दंगे मे न फंसे बल्की इनके जो गुण और ज्ञान आज को और भविष्य को अच्छा बनाते हो और भारत को तथा भारत वासियो को अच्छा बनाते हो उनका प्रसार हो उनकी भी जिम्मेदारी है की देश और समाज को सही धर्म का ज्ञान कराये ,स्वामी विवेकानन्द से लेकर गांधी जी और डा लोहिया तक के धर्म और इन लोगो के बारे मे लिखे का ज्ञान कराने का अभियान चलाये ।
अदालत का फौसला आया , मन्दिर बनेगा , देश मे सब उसके पक्ष मे है पर उसे धार्मिक आयोजन ही रखा जाता और उसमे राजनीती नही की जाती तो भारत बनता 
लेकिन इन लोगो को भारत बनाना ही कब था या है इन्हे तो बस वोट और सरकार बनाना है सब बेच देने के लिए ।

आज देश और पड़ोसी

आज देश और पड़ोसी
---------------------------
भारत के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप मे लिख रहा हूँ 
कि 
चीन ,नेपाल पाकिस्तान तीनो मोर्चो को एक साथ खोले रखना ठीक नही है ।
अन्धे होकर अमरीका की गोद मे बैठ जाना भी ठीक नही है 
और इस चक्कर मे विश्वसनीय दोस्त रहे रुस को दूर कर देना भी ठीक नही हुआ और न ईरान के साथ संबंधो मे परिवर्तन ।
आसपास के बहुत से देश तबाह है तो मजबूत दिखने बाले देश भी अंदर से आज खोखले है ।
हम आज अर्थिक सँकट और कोरोना सँकट मे है और चारो तरफ से घिरे है तो चीन भी चारो तरफ से घिरा है और सँकट मे है ।चीन ने अर्थिक विस्तार इतना ज्यादा कर लिया है की तमाम जगह अपने को अर्थिक रूप से फंसा लिया है ।चीन आज लड़ाकू योद्धा नही बल्की ऐसा व्यापारी बन गया है जो अपने घर और व्यापार की रक्षा के लिए सुरक्षा भी रखता है ।
नेपाल की अपनी जरूरते और मजबूरिया है और जब हम अपनी तरफ से जाने वाली पाइप लाईन काट काट देंगे तो वो पानी पीने कही तो जायेगा ही ।लेकिन लाख मावोवादी शासन आ गया हो पर आज भी नेपाल हिन्दूओ का देश है और पशुपति नाथ से लेकर सीता मा तक का घर है और इन लोगो के होते हुये उसे इतनी आसानी से और इतनी जल्दी भारत से काटा नही जा सकता है ।नेपाल की अच्छी खासी निर्भरता भारत पर आज भी है तो भारत की सेना मे तैनात इतनी बडी संख्या मे नेपाली गोरखा जहा हमारी फौज का मजबूत आधार है वही यदि हम सचेत नही रहे और चीजो को ठीक से नही देखा समझा तो आने वाले समय मे वे आत्मघाती भी साबित हो सकते है ।
पाकिस्तान की हकीकत सिर्फ इतनी है की सेना के राज के करण वो पिछड गया है और अर्थिक बदहाली का शिकार है और तमाम अर्थिक स्रोत पर काबिज उनकी सेना और बड़े नेता तथा ठेकेदार लोगो की रुचि पाकिस्तान की बनाने मे कम और दूनिया के दूसरे देशो मे सम्पत्तियाँ बनाने और अपने परिवारो का वहा सुरक्षित इन्तजाम करने मे अधिक रही है ।
पर किसी भी पाकिस्तानी से कही मुलाकात हो जाये तो वो भारतीय से प्रेम से मिलता है ।
हर देश की कुछ कमजोरिया है और अन्तर्विरोध है पर दुर्भाग्य से भारत के दूतावासो ने और सभी खुफिया संगठनो ने पिछ्ले कुछ सालो मे लगता है की सिर्फ ऐश किया है और अपनी जिम्मेदारियो का निर्वाह नही किया है ।
जब सरकार मे बैठे लोगो की निगाह और लक्ष्य इन चीजो की तरफ होता है और उसमे गम्भीरता होती है तो वैसे ही लोग विभिन्न देशो और स्थानो पर लगाये जाते है और उन्हे पता होता है की उनका उद्देश्य क्या है क्योकी उनको स्पष्ट निर्देश रहता है की अगले कुछ सालो का लक्ष्य क्या है । सरकार भले बदल जाये पर देश का लक्ष्य नही बदलता यह किसी देश की तरक्की और मजबूती की मुख्य बुनियाद है इसिलिए बुनियाद यह भी है की सिर्फ चुनाव के 3/4 महीने कोई कुछ भी कर ले और बाकी दिनो भी विपक्ष अपनी धारदार भूमिका निभाए चाहे जब चाहे जो हो पर सभी मुख्य बड़े नेताओ , पूर्व राष्ट्रपति,पूर्व प्रधानमंत्री,
पूर्व विदेश मंत्री,पूर्व रक्षा मंत्री,पूर्व गृह मंत्री ,पूर्व वित्त मंत्री और पूर्व सेनध्य्क्ष ,और खुफिया विभागो के भी पूर्व काबिल लोगो की लगातार ऑफ द रिकॉर्ड चर्चा और विचार विमर्श ,सूचनाओ और भविष्य की योजनाओ पर गोपनीय रणनीतियो का निर्धारण लगातार होते रहना जरूरी है क्योकी देश सबका है और लोकतंत्र है तो कोई भी कभी भी सत्ता मे हो सकता है और कोई भी विरोध मे । और चूँकि सभी के कुछ अनुभव भी है और कुछ भविषय के सपने भी तो देश उन सभी विचारो और रणनीतियो का लाभ क्यो न पाये या उनसे वंचित क्यो रहे । आदर्श व्यव्स्था तो यही है ।
नेपाल से लड़कर नही मिल कर और उनकी तथा वहा के समाज की जिन्दगी ने घुस कर और जनता से जनता के संवाद को बढा कर बहुत कुछ ठीक भी किया जा सकता है और हासिल भी किया जा सकता है ।
पाकिस्तान के अन्तर्विरोधो पर निगाह भी और दखल भी और वहा की जनता चाहे बलूच हो या सिन्धी या भारत से गए लोग जो आज भी दोयम दर्जे के नागरिक है क्या हम उनको जोड़ सकते है ? क्या हम उनकी आँखो मे कुछ सपने जगा सकते है ?  और भी बहुत कुछ पर उनका इस्तेमाल राजनीती के लिए करेंगे तो कुछ नही होगा सिर्फ कुछ वोट हासिल करने के अलावा ।
भुटान के बारे मे थोडे कम से समय की और दूसरी थोडी दूरगामी रणनीति तय करनी होगी ।
श्रीलंका,मालदीव ,म्यांमार,बंगला देश के मामले मे भी कही रस्सी या तो कमजोर पडी या ढीली पड़ गई ।हा इतनी भी न खिंच जाये की टूट ही जाये ।
सिर्फ दलाई लामा को शरण देकर भूल जाना भी तो बडी भूल साबित हुई । अगर पीओके पर दूनिया मे चर्चा हो सकती है , फिलिस्तीन को मान्यता मिल सकती हौ और इस्राईल को मान्यता मिल सकती है तो बौद्ध धर्म तो पूरी दूनिया के तमाम देशो मे है ,तिब्बत की आज़ादी या दलाई लामा और इनके लोगो के लिए चीन जमीन खाली करे इसपर लगातार मुद्दा क्यो नही रह सकता है ।हम लोग मानवता और लोकतंत्र के ठेकेदार है तो तिनामिन चौक पर बच्चो पर टैंक चढाये गए तब या होंगकोग मे जो आन्दोलन चल रहा है उस पर हमारा देश और बड़े नेता मुखर क्यो नही है ? तिब्बत बचाओ आन्दोलन क्यो मरने दिया गया । आसपास के देशो का ढीलाढाला महासंघ को ये सपना आसपास के सभी देशो की आवांम देखने लगे इसके लिए सभी दल सयुक्त रूप से डा लोहिया के इस सपने पर काम क्यो नही कर सकते । इन चीजो के दूरगामी परिणाम हो सकते थे और है । विभिन्न देशो के साथ मैत्री संघ और शैक्षिक संस्कृतिक आदान प्रदान के कार्यक्रम क्यो बंद हो गए और क्यो नही चलाये जा सकते है रणनीतिक रूप से ।
जहा तक अभी के हालात का सवाल है उसे सरकार का नही बल्की देश का सवाल बना देना चाहिये ।
1-अर्थिक मोर्चे के लिए एक सर्व्दलीय और सर्वकालिक जानकार लोगो का समूह बने ।
2-नेपाल के लिए एक समूह बने जिसमे उसकी जानकारी तथा वहा से अच्छे सम्बन्ध रखने वाले नेता किसी भी दल के , विदेश, बड़े धर्म गुरु , नेपाल के एक्सपर्ट  विदेश सेवा के लोग , वहा काम कर चुके खुफिया विभाग के लोग इत्यादि हो ।
3-बंगला देश , भुटान , श्रीलंका सहित अलग अलग देशो के लिए भी ऐसा ही हो ।
4-पाकिस्तान के लिए उसको हैंडिल कर चुके और सफलता से चीजो को अंजाम दे चुके लोगो का समूह बने ।
5-चीन के लिए प्रधानमंत्री के नेत्रत्व मे एक सर्व्दलीय प्रतिनिधिमंडल चीन से वार्ता करे और साथ साथ अपनी क्षमता और रणनीति के अनुसार सेना अपना काम तत्काल शुरू करे और भारत लाईन ऑफ कन्ट्रोल का एक नक्शा तत्काल जारी करे उसके अनुसार चीन को वापस जाने को मजबूर करे अन्यथा फिलहाल जहा भारत के पक्ष मे परिस्थितिया हो उन इलाको मे उससे ज्यादा किलोमीटर अंदर तक जाकर बैठ जाये ।।
साथ ही विएतनाम , जापान सहित जिन देशो से चीन के हित टकराते है उंन सभी देशो के लिए तत्काल मंत्री या पूर्व मंत्री के नेत्रत्व मे प्रतिनिधिमंडल भेज कर आक्रमक रणनीति अपनाने का संदेश दे ।
पर अब जो भी करना है मजबूती से करना है और स्थाई करना है ।
रुस ईरान इत्यादि के साथ हुई गलती का सुधार भी जरूरी एजेंडा होना चाहिये ।
देश सँकट मे है तो चुनाव और राजनीती संगठन के लोग देखे चाहे सत्ता हो या विपक्ष पर सत्ता के पड़ो पर बैठे लोग और विपक्ष मे बैठे ये जिम्मेदारियां निभा चुके लोग फिलहाल देश बनाने और बचाने के काम मे जुटे ।

राजनीती की सूइया

एंटी क्लॉक वाइस घूमती राजनीती की सुइया "
और विश्वास का संकट"

मैने कुछ साल पहले लिखा था की आने वाले वक्त मे राजनीती की सूइया एंटी क्लॉक वाइस घूमेगी ।
कांग्रेस पार्टी आज़ादी के लिए बनी वो काम किया कुर्बानी भी दिया आज़ादी की लडाई से बाद तक और शुन्य पर खड़े देश को दुनिया के मुकाबले खड़ा भी कर दिया पर आपात्काल की लफंगा ब्रिगेड की भर्ती ने इसका लगातार क्षरण किया और ये समय समय पर अपने सिद्धांतो से विचलन और हरम की सजिशो के कारण  विघटन का शिकार होती रही ।गांधीवाद की बुनियाद और नेहरु के तथा इन्दिरा गांधी के प्रगतीशील सोच से बढती हुई पार्टी कभी शहबानो तो कभी अयोध्या मे ताला खुलने और नरसिंहा राव के समय के विध्वस और फिर मनमोहन सिंह के समय मध्य मार्ग को छोड पूरी तरह पूंजीवादी रास्ते पर जाने के कारण पतन की आखिरी पायदान पर जा खड़ी हुई ।इससे बडा क्या दिवालियापन हो सकता है की इतनी पुरानी और इतनी बडी पार्टी अपने लिए एक अध्यक्ष नही चुन पा रही है और सडक पर देश और लोकतंत्र के लिए लड़ने के बजाय दिल्ली के चंद बंगलो की आपसी लडाई मे उलझी हुई है ।कांग्रेस के पास बहुत अच्छा अवसर है मजबूत वापसी का पर वह आज सुविधा और भ्रम के बीच झूल रही है । उसके लोग निकल जा रहे पर किसी पास फुर्सत नही है अपनो से संवाद करने और तारतम्य बिठाने का क्योकी कोई भी जिम्मेदार नही है ।वो अपनी भी नही समझ पा रही है की इन्दिरा युग कब का बहुत पीछे जा चुका और अब टाक टू माई चपरासी और टाक तो माई पी ए से दल नही चलने वाला । व्यक्ति विशेष के चमत्कार धूमिल हो चुके है और खुद की सीट बचाना मुश्किल हो रहा है ऐसे मे भी और ज्यादा लोगो को और अपनो को जोडने के बजाय अहंकार से टूटने दिया जा रहा है ।
भाजपा आरएसएस की राजनीतिक विंग के रूप मे स्थापित हुई पहले जनसंघ के नाम पर और मूलतह शहरो मे बसे पकिस्तान से आये लोगो और व्यापार के पक्ष मे बात करने के कारण व्यापारियो तक सीमित रही लम्बे समय तक ।इससे पूर्व बंगाल मे मुस्लिंम लीग से साथ सरकार बना चुकी थी। फिर 1960 के दशक मे गाय के नाम पर सधुवो को उकसा कर पहचान बनायी तो 1967 मे डा लोहिया के गैर कांग्रेसवाद के घोड़े पर सवार होकर मुस्लिम मजलिस ,कम्युनिष्ट इत्यादि के साथ सरकार मे शामिल हुई ,फिर आपात्काल के बाद जनता पार्टी मे शामिल हो सभी दलो की पवित्रता का लाभ लिया और उसके बाद जनता दल और कम्युनिष्टो की मिली जुली सरकार समर्थन किया जिसमे कश्मीर का पलायन हुआ और ये कुछ नही बोली ।जब सारे राजनीतिक हथियार फ़ेल हो गए तो सीधे धर्म और राम को एजेंडा बना लिया फिर बात तब बनी जब तमाम छोटे छोटे दलो की जोडा जिसमे खालिस्तान के समर्थक अकाली दल को तो आतंकवादियो को शहीद कहने वाली महबूबा मुफ्ती को भी और बढते गए अपनी पुरनी बाते छोड़ते गए रणनीतिक तौर कर । जहा जो मिला उसी को पार्टी मे शामिल कर लिया और आज करीब 150 सांसद अधिकतर पूर्व कांग्रेसी या अन्य दलो के है । अंग्रेजी मे भाषण होने लगे और हिन्दी सिसकने लगी ।फिर पहले चीन की साम्यवादी पार्टी से सीखा और फिर इस्राइल से और जिन्न का कोई चिराग हाथ लग गया और विजय आसमान तक पहुचने लगी ,दीनदयाल उपाध्याय का अन्त्योदय दहाड़ मार कर रोने लगा और जाकर अम्बानी अडानी के महलो मे उसे शरण मिली ।सिद्धांत और कर्म के बजाय विश्वास धर्म ,राम और अफवाहो पर ही सीमित हो गया । 
साम्यवादीयो का जिक्र ही नही कर रहा हूँ क्योकी न मैं इनकी भाषा समझ पाया न उद्देश्य ही आजतक और शायद देश की जनता भी ।
समाजवादी पार्टी की  स्थापना 10 % बनाम 90 % की लडाई और गांधी लोहिया जयप्रकाश को लेकर हुई थी खासकर लोहिया के समाजिक न्याय ,सप्त क्रांति और चौखम्भा राज को लेकर ,जे पी की सम्पूर्ण क्रांति और गांधी के प्रीती पराई जानो और समाजिक समरसता को लेकर ,पर समय के साथ समाजिक न्याय पारिवारिक और जातिगत न्याय तक सीमित हो गया और शक्ति के केन्द्रीयकरण ने चौखम्भा राज को गहरे दफना दिया , कौन गांधी और कौन जयप्रकाश ।ऐसी सभी पार्टियाँ जो कभी लोकदल , जनता पार्टी ,जनता दल के नाम पर बने और बिखरे सब एक जैसे ही साबित होते रहे और अपने नेताओ के सीमित उद्देश्य को पूरा कर अविश्वसनीयता तथा असफलता का शिकार होते रहे आरोपो के बोझ से दबे हुये ।
बसपा की स्थापना काशिराम ने बहुत मेहनत से किया था और सोई हुई कमजोर जातियो को जगाया भी और जोडा भी ।
पर वो भी अन्ततः सिर्फ कैसे भी कुर्सी और महल मुकुट ,नोटो की माला तक सिमट गई ।
दोनो ही पार्टिया जिनको गाली देती थी उन्ही की गोद मे बैठ गई ।दोनो ही पार्टियो ने विचार और वैचारिक आधार रखने वालो की कमजोर किया या नेपथ्य ने डाल दिया ।
दोनो ही पार्टियो के नेता 10 से 90 की न्याय दिलाते दिलाते खुद 10 मे शामिल हो गए और लगातार इसमे और ऊंची पायदान पर पहुचने की ही जद्दो जहद दिखती रही ।
अवसर तो इन सभी नेताओ को मिला और वो चाहते तो सम्पूर्ण पिछड़े दलित अल्पसंख्यक और सभी गरीबो को इमानदारी से समान भाव से ताकत देते आगे बढाते , मजबूत करते तो आज राजनीती की दशा और दिशा ही कुछ और होती और देश आखिरी पायदान के व्यक्ति के कल्याण की तरफ बढ़ रहा होता और ये सब दल एक सार्थक भूमिका निभा रहे होते पर इन्होने ये नही करने और स्वार्थी होने तथा संकुचित होने का गुनाह किया है जिसका खमियाजा भोग रहे है और भोगते रहेंगे ।जैसे अन्ना ने आन्दोलनो की विश्वसनीयता खत्म कर कई सालो के लिए उसकी सम्भवना ही खत्म कर दिया वैसे ही इन पिछड़ो और दलितो तथा गरीबो की बात करने वालो ने भी अब लम्बे समय के लिए उसे खत्म कर दिया है क्योकी सब चेहरे विश्वसनीयता खो बैठे है ,किसी के पास 20 कोठिया तो किसी के पास बेहिसाब दौलत ने उनको कायर बना दिया है ।
आज दोनो पार्टियाँ परशुराम परशुराम खेल रही है की कौन कितनी बडी मूर्ति बनाएगा ।राजनीतिक और दिमागी दिवालियेपन ने देश के मतदाता को हिला कर रख दिया है ।
एक नेता तो पहले ही घोसित कर चुके है की वो विष्णू का मंदीर बनायेंगे और कृष्ण की विशाल मूर्ति का भी वादा कर चुके है ।
सरदार पटेल की ऊंची मूर्ति सिर्फ गुजरात के चुनाव के लिए चीन से बनवायी गई और उसके लिए आसपास के गाणव उजड़े और आज सरदार पटेल बाढ मे डूबे अपनी सुरक्षा की गुहार लगा रहे है ।
अभी कोरोना ने आइना दिखा दिया की कोई मन्दिर मस्जिद चर्च किसी काम नही आया , हा गुरद्वारे जरूर काम आये पर सेवा के क्योकी उन्होने अंधभक्ति और ढोग नही बल्की सेवा को ही धर्म के रूप मे अपने मानने वालो के मनो मे बैठा दिया है ।
धर्म और उसके प्रतीको पर प्रश्नचिंह लग गया इस आपदा मे और कोई धर्म और देव किसी भक्त के काम नही आया तो हम डाक्टर को पृथ्वी का देव कहने लगे और अस्पताल को आज का देवालय तथा शिक्षा और विज्ञान तथा अनुसंधान की जरूरत सबको महसूस होने लगी सुविचरित रोजगार नीति और विकास नीति के साथ ।
ये अच्छा अवसर था जनता को अन्धविश्वास और पोंगापंथी से बाहर निकालने का और उसमे वैज्ञानिक सोच पैदा करने का ,यह अच्छा अवसर था सरकार के लिए अपनी 1924 /25 की सोच और उद्देश्य से बाहर   निकल कर नये तरीके से सोचने का और विकास की दिशा और पृतिब्द्धता मोड़ने का ,सब जोडने और शिक्षा चिकित्सा विज्ञान कृषी ,गांधी नेहरु के सपनो के भारत की तामीर करने ,गांधी द्वारा बताये ग्राम स्वराज की तरफ बढ़ने और बड़े पूजिपतियो के सरक्षण के बजाय अधिकतम चीजो के लिए कुटीर उद्द्योग की तरफ बढ़ने और गांधी जी की उस सोच की तरफ बढ़ने का की आसपास के अधिकतम गाव अपने उत्पादन पर ही निर्भर हो जाये जरूरत की अधिकतम चीजो के लिए ।पर सरकार अपने मातृ संगठन की सोच से नही निकली और इवेंट जारी रखा तथा आपदा को अवसर मांन जनता को फिर से मन्दिर और मूर्ति मे उलझा दिया ।
तो विपक्ष के पास भी अवसर था मजदूरो के साथ सड़क सड़क को नाप देने का और कोरोना के प्रति जागरूकता पैदा करते हुये गाव से लेकर शहर की बस्तियो तक छा जाने का पर वो घरो मे बैठा ट्वीट ट्वीट ही खेलता रहा चंद लोगो को छोडकर ।विपक्ष मे जो लोग गरीब गुरबा के कल्याण और समाजिक न्याय की बात कर खड़े हुये थे उनके पास अवसर था मजदूरो की बदहाली और असुरक्षा तथा गरीबो के और माध्यम वर्ग के सवाल पर निकल पड़ने का और धार्मिक पाखंड के नाम पर देश के बटवारे के खिलाफ और उसको वोट के लिए इस्तेमाल होने के खिलाफ बहस छेद कर जनता को उससे बाहर निकाल लाने का पर डरा हुआ ,भ्रमित क्योकी उसकी सिद्धांतो के प्रति प्रतिबद्धता ही नही है और अधिकतर आरोपो से भी घिरे है तो स्वयं की चितंनहीनता के कारण वो स्वयं भी उन्ही लोगो के अभियान मे शामिल हो गया और मन्दिर मंदीर खेलने लगा ,जबकी इस अवसर का लाभ उठा उसे देश और समाज तथा सरकार की हर कमजोरी के खिलाफ वैकल्पिक कार्यक्रम पेश कर जनता मे उछाल देना चाहिये था विचार और फैसलाकुन होने के लिए ।
पर अधिकतर राजकुमारवाद का शिकार विपक्ष अवसर को गंवा बैठा ।तो सत्ता ने भी संवादहीनता और अहंकार तथा अपने 5000 साल पहले के चिंतन वाले थिंकटैंक पर अति आत्मविश्वास के कारण देश और समाज को एक अन्धी खोह की तरफ धकेल दिया है जिसका तुरंत कोई निदान दिखलाई नही पड़ रहा है और सबसे बुरा पक्ष यह है की देश विश्वस के संकट मे फंस गया है और बहस उस मुद्दो पर होने के बजाय जो आज की और कल की आवश्यक आवश्यकता है उलझ गया है की आज़ादी कायम रहेगी या नही ? लोकतंत्र रहेगा या नही ? संविधान रहेगा या नही ? 
और जवाब किसी के पास नही है बल्की जवाब मे सिर्फ सन्नाटा है ।
राजनीती की सुइयां एंटी क्लॉक वाइस घूम गई है काफी हद तक ।अब देखना है की कहा जाकर रुकती है और फिर सही दिशा मे चलना शुरू करती है ।