सोमवार, 4 नवंबर 2024

आगरा का पहला इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज

#जिन्दगी_के_झरोखे_से-

#जब_मैने_जनेश्वर_मिश्रा_जी_से_आगरा_मे_पहला_इलेक्ट्रानिक_टेलिफोन_एक्सचेंज_लगवाया_था --

मैने अपनी पिछली पोस्ट मे लिखा था की कैसे मेरे घर पहला फ़ोन अर्जुन सिंह जी ने और दूसरा वीर बहादुर सिंह जी ने लगवाया था ।
पुराने जमाने मे जी टेलिफोन और टेलिफोन एक्सचेंज होते थे ,वाह क्या बात थी । उस समय काले फ़ोन होते थे घुमा कर मिलाने वाले और बात आप करते थे पर कमरे मे मौजूद सब लोग सब सुनते थे ।मैने ट्रंककाल के लिए मुख्य एक्सचेंज जाकर मिलवा कर पूरे पूरे दिन इन्तजार करने बारी बारी और कैसे बात होती थी पर भी विस्तार से लिखा था ।
आज उस जमाने के एक्सचेंज और उसके हालात और कोई एम पी एम एल ए नही होते हुये भी आगरा मे पहला एलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज लगवाने का किस्सा -
उस समय फ़ोन मिलना बहुत मुश्किल था और लक्जरी था ,स्टेटस सिम्बल भी ,लेकिन किसी के घर होता था तो वो या तो सबका बुरा बने और कठोर व्यवहार करे वर्ना मुसीबत भी होता था ।
मैं टेलिफोन कमेटी का सदस्य बना तब तक काले वाले डायल करने वाले फ़ोन की जगह रंग बिरंगे फ़ोन प्रायरटी के हिसाब से डने लगा था ।मेरे घर भी बटन वाला पहला फ़ोन लाल और दूसरा हल्का नीला लगा था ।पर एक्सचेंज और डी पी यानी आप के घर के पास खम्भे पर लगा एक बक्सा जिससे काय लोगो की लाइन जाती थी खुद मे बडी मुसीबत थी । उस जमाने मे टेलिफोन विभाग मे किसी अधिकारी से जान पहचान होने ऐसे ही होता था जैसे अब प्रशासन और पुलिस के अधिकारी से जान पहचान होना बहुत महत्वपुर्ण और इज्जत की बात होती है समाज मे , और लाइन मैंन से जान पहचान या जुगाड भी बडी बात थी ।फ़ोन वाले लोगो का इन जान पहचानो को कायम करने का बडा प्रयास होता था । फ़ोन अधिकतर खराब होते ही थे तो दो ही तरीका था की यदि किसी अधिकारी को जानते है तो वह ऐसी व्यव्स्था कर देता था की आप का फ़ोन खराब न हो इसका ध्यान नीचे का स्टाफ रखे ,नीचे का स्टाफ जानने वाला होता था तो वो भी एहसान कर देता था । और अगर लाइन मैंन जानने वाला हुआ तो वो बडा मददगार   होता था ।खासकर जिन लोगो को बाहर फ़ोन करना होता था या ज्यादा फ़ोन करना होता था उनके लिए तो लाइन मैन कोई खुदाई खिदमतगार से कम नही होता था ।
बड़े खेल थे ,एक्सचेंज मे स्विच बदल देना ,जो अच्छा हो उसमे अपने आदमी का पेयर लगा देना ,किसी को सबक देना है या एहसान के लिए बुलाना है तो उसका पेयर निकाल देना या डेड स्विच मे लगा देना ये सब काम एक्सचेंज मे होता था और लाइन मैंन यही काम बाहर डी पी पर करता था ।बेचारे का घूस कोई ज्यादा नही था बस 50 दीजिये और इस समय से महीने दो महीने मुक्त रहिये ।
पर हा अगर आप को ज्यादा काल करना हो या बाहर की काल हो जो बहुत महंगी पडती थी जैसे आज विदेश की पडती है तो उसके रेट थे ज्यादा के ,लोकल के और बाहर के । लाइन मैंन को बस यह सेवा चाहने वाले के खम्भे पर कुछ देर तक बैठना होता था और जिसको सेवा देना है उसका तार दूसरो के पेयर मे बदल कर लगाना होता था जिनकी काल इनी गिनी होती थी या अगर रात को काल से काम चल सकता है तो वो तार बदल कर जाकर सो जाता था और सुबह जल्दी उठ कर पेयर ठीक कर देता था । जिसके पेयर को इस्तेमाल करता था उसका डेड कर देता था ताकी वो यही समझे की फ़ोन खराब हो गया है और जब शिकायत आयेगी तो तार लगा देगा और कार्बन आ गया या पता नही कैसे तार निकल गया ,अब ठीक से लगा दिया इत्यादि जवाब होता था ।फिर किसी का बिल तो ज्यादा आना ही था ।उस जमाने मे इसका बहुत झगड़ा होता था स्थानीय फ़ोन विभाग से लेकर दिल्ली तक शिकायत जाती थी और विवाद ज्यादा होने पर सबसे बडा अफसर जाच करने का आश्वासन दे देता था और स्टाफ को चेतावनी भी ,कुछ बिल कम कर देना,विवाद मे डाल देना या किश्त बना देना इत्यादि होता था ।
मतलब जिन्दगी मे फ़ोन अगर स्टेटस सिम्बल था तो एक मसला भी था ।
वो तो भला हुआ की राजीव गांधी प्रधान मंत्री बन गए और वो सैम पित्रोदा को ले आये और दोनो ने मिलकर डिजिटल फ़ोन का विस्तार किया और फ़ोन को गली गली तक पहुचाया ।
यद्दपि देश आधुनिक फ़ोन प्रणाली आ चुकी थी और उसका राजीव गांधी सरकार मे विस्तार भी हुआ था पर आगरा मे अभी पुराना वाला सिस्टम ही चल रहा था ।
हमारी दिल्ली मे सरकार बनी और उसमे जनेश्वर मिश्रा जी संचार मंत्री स्वतंत्र प्रभार बन गए ।यद्दपि वो बहुत वरिष्ट थे क्योकी 1977 की सरकार मे ही बहुत महत्वपुर्ण मंत्रालयो के मंत्री रह चुके थे और उसके भी पहले जवाहर लाल नेहरू की सीट पर उनके बाद उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित जीती और जब वो सयुक्त राष्ट्र चली गई तो उनकी खाली सीट पर कांग्रेस के दिग्गज केशव देव मालवीय को हरा कर जनेश्वर जी सांसद बन चुके थे सीधे विश्वविद्यालय से ही पर चूँकि उन्होने बाद मे विश्वनाथ प्रताप सिंह को चुनाव हराया था तो उस खुंदक मे उस सरकार के प्रधान-मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपना अहम संतुष्ट करने के लिए जनेश्वर जी को राज्य मंत्री बनाया ,ये अलग बात की अन्ततः स्वतंत्र प्रभार दे दिया,खैर बाद ने जनेश्वर जी कैबिनेट मंत्री बने और वो भी रेलवे के ।
खैर जब घर का बडा भाई मंत्री बन गया तो क्या कहने थे और जनेश्वर जी मेरे घर भी इतनी बार आये थे की सब लोग रिश्ता जानते थे ,बस फ़रमाइश शुरू हो गयी फ़ोन की और मैने भी हर जानने वाले शिक्षक ,पत्रकार और सभी दोस्तो जिन्होने भी कहा मंत्री के यहा से आदेश कर फ़ोन लगवा दिया ।
उसी तरह पेट्रोलियल मंत्री रहे सत्य प्रकाश मालवीय जी से गैस के कनेक्सन भी सैकडो लोगो को दिलवाया ।उस समय गैस सिलेंडर दहेज मे जाता था ।
पर इन सारी व्यवस्थाओ को बदला भी कांग्रेस पार्टी ने ही की आप जब जो चाहे मिलने लगा ।
इसी बीच आगरा मे मेरे घर के पास संजय प्लेस मे नया टेलिफोन एक्सचेंज बनने का प्रस्ताव हुआ और उसमे आधुनिक एक्सचेंज लगना था पर बिल्कुल नया वाला इलेक्ट्रानिक नही । मुझे टेलिफोन विभाग के मेरे मित्र इन्जीनियर ने ये बात बताया और उन्होने जानकारी इसलिए दिया था की वो जानते थे की मंत्री से मेरे क्या सम्बंध है और उन्होंने ही बिल्कुल आधुनिक एक्सचेंज सिस्टम के बारे मे भी बताया ।
बिना देरी किये एक चिट्ठी टाइप करवा कर मैं जनेश्वर जी के यहा पहुचा । उनके साथ लंच किया और लंच के बाद उनको ऑफिस जाना था ,मैं भी साथ ही ऑफिस चला गया और वहां जाकर उनको अपना पत्र दिया ।उन्होने पढा और अपने पी एस को बुला कर बात किया और आदेश कर दिया की संजय प्लेस आगरा के लिए बिल्कुल नया वाला एक्सचेंज किट एलोट कर दिया जाये ।
और इस तरह आगरा के संजय प्लेस मे पहला एलेक्ट्रॉनिक टेलिफोन एक्सचेंज लग गया ।

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