गुरुवार, 27 नवंबर 2014

कितने संघियों और भाजपाइयो के घर और मन में मंदिर है और उसमे सचमुच के राम भी बिराजमान है ??
इनके पापो पर लिखते हुए उंगलियाँ दर्द कर जाती है और बोलते हुए गला ।
अब कितना करे ? ये तो शर्महीन हो गए है ।
क्या ऐसा नहीं हो सकता की चोर ,डकैत ,सबसे बड़ा रईस बनने की इच्छा रखने वाले सरकारी पदों की आड़ में ये सब न करे बल्कि जो वो है और जो उनकी इच्छा है उसी उसी तरह का काम कर के हासिल करे ?? सरकारी सभी तरह के पद तत्काल छोड़ दे | या फिर कोई सरकार क्या कभी आएगी जो अंग्रेजो के द्वारा हम लोगो का शोषण करने ,हम लोगो को प्रताड़ित करने लिए और लूटने के लिए १६ अगस्त १९४७ को छोड़ी गयी व्यवस्था और मानसिकता से भी देश को आज़ाद करवा सके ??
असली आज़ादी तो तभी आएगी वर्ना आज़ादी अधूरी है |
लगता है कि ऊपर वाला भी कलियुगी हो गया है और कलियुग की बुराइयो और उसके वाहको के ही साथ खड़ा हो गया है अपनी सम्पूर्ण ताकत के साथ ।
आप टैक्स चोरी करो ,जमाखोरी करो ,कालावाजारी करो ,मुनाफाखोरी करो ,मिलावाटखोरी करो और गरीबो का खून चूसो और खूब कमाओ तथा दुनिया के सबसे बड़े रईस बन जाओ -- पर फिर धन और वैभव का भौड़ा प्रदर्शन कर लोगो की गरीबी का,गरीबो का ,जरूरत मंदों का मजाक तो मत उडाओ ।
और मीडिया के दोस्तों रईस थोड़े से है और जिनके पास खाना ,कपड़ा ,छत ,दवाई और पढाई नहीं है वो करोडो है और आप इन करोडो को कुछ लोगो का वैभव परोस कर क्या करना चाहते हो ।
देखना कही गरीबो का असंतोष बाहर न आ जाये ।
मेरा मतलब शायद समझ रहे होगे आप दोनों ही ।
भारत का लोकतंत्र सबसे असफलतम प्रधानमन्त्री के नीचे कराह रहा है |इतनी दिन में ही मोदी जी की असफलता ,अज्ञानता और हीन भावना तथा अल्पदृष्टि सामने आ चुकी है जिसे ढकने के लिए इनका थिंक टैंक और संघ मिल कर नए नए सस्ती लोकप्रियता के आयोजन कर और इवेंट मैनेजमेंट कर जनता का ध्यान इनकी असफलतावो और वादा खिलाफी से हटाना चाहते है ,,पर अगले ६ महीने में ये सभी चीजें जनता में नफ़रत पैदा करने लगेगी |
इसलिए बस जरूरी ये है की हर वक्त सिद्धांतो ,,पर खास कर ,भारत के इतिहास और अस्मिता से जोड़ कर इन्हें कठघरे में खड़ा किया जाये | तब ये बौखालायेंगे और और बड़ी गलतियाँ करेंगे तथा लोकतंत्र पर हमला करने की कोशिश करेंगे और वही अवसर लोकतान्त्रिक शक्तियों के खड़े होने का होगा |
देखे कौन कौन क्या करता है ?? ये भी मेरा राजनीती शास्त्र के विद्यार्थी के रूप में व्यक्तिगत बयांन है |

मोदी और संघ एक मानसिकता है

मोदी और संघ एक मानसिकता है जो लोकतंत्र ,,इंसानियत और हिंदुस्तानियत के खिलाफ है और इनसे मेरी सैधांतिक लड़ाई है | मैं इन्हें उस राज के स्थापित करने तक नहीं पहुँचने देना चाहता हूँ जिसमे मैं गैस चैम्बर में डाल दिया जाऊं या काल कोठरी में सडा दिया जाऊं इसलिए मैं तो अंतिम सांस तक इनसे लड़ता रहूँगा और लोगो को जगाता रहूँगा |
कृपया कोई इस लडाई से मुझे न रोके और खुद को मेरी वजह से डर लगे तो मुझे खुद से अलग कर दे |
लड़ाई है लोकतंत्र की ,,हिंदुस्तानियत की और इंसानियत की और मैं संघ को इन चीजो का दुश्मन मानता हूँ
लखनऊ में तो अभी गर्मी का मौसम है पता नहीं बनारस और दिल्ली का क्या हाल है ? कश्मीर से आकर एक दोस्त ने बताया की वह भी गर्मी है ।
हाथी के साथी भी कुछ ऐसे ही बताये जा रहे है ।
महारास्त्र में व्यापार और सौदेबाजी नयी ऊँचाइयाँ छूने को बेक़रार है ।
मौसम विभाग मौन है तो आज का बुलेटिन समांप्त करते है ।
रास्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अन्दर से बंट गया है अगड़ो और पिछडो में ,मराठी और गैर मराठी में तथा चित्पावन और गैर चित्पावन ब्राह्मणों में ।देश में लोकतंत्र कायम रखने वालो और फासीवादी शासन चाहने वालो में ।
इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है ।कसम से ।पर मैं इसकी गन्दी सोच का खात्मा जरूर चाहता हूँ ।
सबकी प्रोन्नति ,अच्छी पोस्टिंग वो कर्मचारी से अधिकारी तक ,ठेकेदार से व्यापारी तक सबका ख्याल सबका विकास पर क्या कभी किसान ,बेरोजगार नौजवान और गरीब के लिए भी कुछ--;:; :इन लोगो जैसा ही;;;;: होगा ?
क्या कभी कोई गरीब राजनीतिक कार्यकर्तावो के बारे में भी सोचेगा की उसके घर में आटा है या नहीं ,उसका बच्चा स्कूल जा रहा है या नहीं और उसकी बीबी दवा बिना मर तो नहीं रही है ??
सभी दलों से मेरा ये सवाल है ?????
जो लोग आज़ादी की लडाई में जब अंग्रेजो भारत छोड़ो कहना था तो दुम दबा कर या तो कही छुप गए या अंग्रेजो के मुखबिर हो गए ,अब आज़ादी के इतने सालो बाद नारा लगा रहे है की अब देश को लोकतंत्र से मुक्त करो और अकेले हमारा फासीवादी राज लाओ ।
सब दलों को खत्म करने की मांग कर रहे है ये ।आज उत्तर प्रदेश की धरती पर भी यही कहा गया ।
एक चुनाव क्या जीत गए जनता से झूठ बोल कर और भारत से लेकर अमरीका तक के अपवित्र साधनों का इस्तेमाल कर के और उसके बाद सभी वादों से मुकर कर अपनी अयोग्यता और अक्षमता सिद्ध कर भी अपने बारे में इतनी ग़लतफ़हमी पैदा हो गयी है ।
क्या कहते है आप साथी ? क्या ये नारा लोकतंत्र का नारा है ? क्या इनके मंसूबे चकनाचूर करने को मुझे कमर नहीं कस लेना चाहिए और क्या इस मुहीम पर निकल नहीं जाना चाहिए साथियों की मदद लेकर ।
मैं इनके इरादों को ध्वस्त कर दूंगा ।वादा रहा ।
राजनीती में अगर विरोध में है तो संघर्ष और खुद के जनता के लिए कार्यक्रम और वादों को लोगो तक पहुंचना तथा सत्ता की हर बुराई और कमजोरी पर हमला करना और जनता के साथ हर पल खड़ा होना होता है ।
पर -----
अगर खुद सत्ता में है तो जितना जरूरी वादों को पूरा करना तथा विकास करना है उतना ही जरूरी वो काम तथा विकास बिना बाधा और भेद भाव के लोगो तक पहुंचे ये भी है ।
उससे भी ज्यादा जरूरी उसका सम्पूर्ण और आखिरी व्यक्ति तक प्रभावशाली प्रचार करना है ताकि लोग जहा अपने हक़ पर निगाह रखे तथा विकास की निगरानी करे वही उनके मनो में ये बैठे की आप क्या क्या कर रहे है ।
और -----
उससे भी ज्यादा जरूरी आखिरी कार्यकर्ता को भी सत्ता तथा संगठन दोनों से जोड़े रखना और उसे ये एहसास करवाना की वो भी सत्ता का बराबर का भागिदार है तथा उसके सुख और दुःख से पार्टी तथा सत्ता जुडी हुयी है ।
और ----
उससे साथ ही बहुत महत्वपूर्ण है केवल तन्त्र के बजे पार्टी तथा सरकार दोनों स्तरों पर समाज के मुद्दों से जुड़ना और सामाजिक मुद्दों पर भी सतत कार्यक्रम चलाना ।
और----
जरूरी है की विरोधी के हर राजनीतिक दांव पेंच को तुरंत भोथरा करते रहना ।विरोधी किसी चीज का श्रेय ले उसके पहले अपने ही संगठन से उठवा कर उसे श्रेय देना ।
विरोधी हमला करे उसके पहले उसके खेमे और उसके पाले में घुस कर उस सार्थक और धारदार राजनैतिक और सैधांतिक हमला कर देना और उसे उसके पाले में ही घेर कर उस पर हमला करते रहना ।
फिर जीत पर जीत आप की होगी क्योंकि जनता का और कार्यकर्ताओ का दिल जीत लेंगे आप ।विरोधी के हर वार को भोथरा और नाकाम कर देंगे आप ।
( बस यूँ ही आज का विचार है ये )
आज आई बी एन 7 पर बहस थी देश के प्रधान् प्रचारक के आस्ट्रेलिया दौरे पर ।ये बीजेपी बताएगी की -1- दूसरे देशो में प्रायोजित सभाए कर क्या हासिल करना चाहती है ? -2- मोदी जी दूसरे देश में अपने देश की व्यवस्था की बुराई कर क्या हासिल करना चाहते हैं ? -3-मंच पर कमल का फूल था रास्ट्रीय झंडा नहीं तो वो बीजेपी की मीटिंग होती है या प्रधान मंत्री की ? -4- कुछ मुसलमानों या वैसे कपडे पहन कर बैठे लोगो को एक ही स्थान पर बैठा कर और कुछ सीखो को एक स्थान पर बैठा कर और कुछ लोगो को बीजेपी के झंडे के रंग की कमीज पहना क्या सिद्ध करना चाहते है ? -5 - देश में कही भी सभा हुयी हो या विदेश में जहा भी हो रही है एक ही तरह की सीटी की आवाज ,हॊऒऒ की आवाज और मोदी मोदी की आवाज आती है ।क्या सभी जगह लोगो की आवाज एक ही जैसी है ? क्या उन देशो में रहने वाले इसी तरह सीटी बजाते है और हुडदंग करते है ? -6- देश से जो हजारो लोग इन सभाओ के लिए भेजे जाते है और गायक इत्यादी जिनके नाम पर लोगो को बुलाया जाता है उनका खर्च कौन करता है ? -7 - आज तक इन सभी इवेंट्स पर बीजेपी कितना खर्च कर चुकी है ?
और देश जानना चाहता है की मोदी जी ने इन 6 महीनो में देश के लिए क्या किया तथा अपने इतने सारे विदेशी दौरों से देश के लिए क्या लाये ?
प्रधानमन्त्री हर घंटे ड्रेस बदलने ,भाषण देने ,पूर्व सरकारों के किये गए कामो का श्रेय लेने और उन्ही का नाम बदल कर अपना बताने तथा इवेंट मैमेजमेंट ही करेंगे या कुछ काम भी करेंगे ?
कुछ सवाल -----
कभी संघ या तथाकथित हिंदूवादी ताकतों ने ऐसा अभियान क्यों नहीं चलाया --
कोइ हिन्दू या हिंदुस्तानी बच्चा भीख नहीं मांगेगा
कोई हिन्दू या हिंदुस्तानी बहन शरीर नहीं बेचेगी
कोई हिन्दू या हिंदुस्तानी फुटपाथ पर नहीं सोयेगा
इन मुद्दों से वोट नहीं मिलता और दंगा नहीं होता तथा समाज नहीं बंटता इसीलिए न ।
क्या आप सभी भी ये चाहते है ?----जो मैं चाहता हूँ ?
1- कोई बच्चा चौराहो पर भीख न मांगे
2- कोई भी रात को फुटपाथ पर न सोये
3- कोई बहन बेटी शरीर बेचने को मजबूर न हो ।
यदि हा तो आप सभी इसे इतना फैलाइए और इसकी चर्चा कर दीजिये की सरकारे ये करने को मजबूर हो जाये ।
हुजुर दुनिया पूछ रही है की भारत का प्रधानमन्त्री कितना फालतू है और कितना बोलता है ।
लोग दो सवाल पूछ रहे है -----
1- भारत में कोई काम नही है क्या प्रधानमन्त्री के पास
2- भारत में भाषण देने पर पाबन्दी है क्या की पी एम् जहा भी जाते है घंटो लम्बा भाषण देते है ।
हुजुर आप को तकलीफ है की आप देश के लिए मर नहीं पाए आज़ादी की लड़ाई में इसलिए देश के लिए जीना चाहते है ।
पर थोडा सा इतिहास पर नजर डाल लीजियेगा कि आज़ादी की लडाई के समय आप का मात्री संगठन भी था और आप के आदर्श तथा आप की विचारधारा के आप के बहुत से नेता भी थे पर तथ्य ये है की उन लोगो ने आज़ादी की लडाई में हिस्सा लेने के स्थान पर उस लडाई का विरोध ही नहीं किया बल्कि मुखबिरी कर के आज़ादी की लडाई लड़ने वालो को जेल भिजवाया और सजा दिलवाया और मरवाया ।
क्या गारंटी है की आप तब रहे होते तो अपने आदर्शो वाला ही काम नहीं किया होता ??
देश के लिए जीने पर सवाल अभी छोड़ देता हूँ ।
हमें सिखाया गया था की सच बोलो ,इश्वर से डरो ,गलत काम मत करो ,किसी को धोखा मत दो ,छल मत करो इत्यादी इत्यादि ।ये कोई साजिश थी क्या ?
वर्ना आज झूठे ,मक्कार ,धोखा देने और छल करने वाले , थाली में छेद करने वाले ,पीठ में छुरा घोंपने वाले ,दलाल ,छिनाल और हर तरह का काम करने वाले तथा हर चीज पेश करने वाले ही सफल हो रहे है ।
हमारे शिक्षको और बुजुर्गो ने हमें गलत बात क्यों सिखाया और गलत रास्ता क्यों दिखाया ।
अगर मुझे सही याद है तो देश में एक विदेश मंत्री ने भी शपथ लिया था और शायद वो सुषमा स्वराज थी ??
कहा है वो ? इस्तीफ़ा दे दिया या अपना काम नहीं कर रही है ?
सुना है मोदी जी भारत यात्रा पर आ रहे है ? स्वागत है ।
जब से पता चला है की बिना इन्वेस्टमेंट के ,बिना रिस्क के और केवल जुबान चला कर बाबा और संत तथा व्यापारी नुमा बाबा बड़े बड़े पूंजीपतियों से भी आगे है धन ,वैभव,और ऐश में तो देश ले पूंजीपतियों के साथ साथ ज्यादा बोलने वाले नेताओ ने भी सोचना शुरू कर दिया है की बाबा का काम ही या भी क्यों न डाल लिया जाये ।
देश के आजकल चर्चित और केवल बोलने वाले नेता ने तो बाबा की तरह बोलने का अभ्यास भी शुरू कर दिया है ऐसा लोग उनके बोलने के नए अंदाज से समझ रहे है ।
सच तो ये है की मैं भी सोच रहा हूँ की और कोई कारोबार करने के लिये तो धन नहीं है तो यही अजमा लूँ ।हा हा हा
लीजिये गौरवशाली हिन्दू सरकार की बात शुरू हो गयी ।
ताकि आप न पूछे की महंगाई क्यों ख़त्म होने के स्थान पर बढ़ गयी ?
ताकि आप न पूछे की 100 दिन में काला धन लाने और हर नागरिक को लाखो रुपये देने का क्या हुआ ?
ताकि आप न पूछे की पाकिस्तान इतने सैनिक मार कर पार्सल भेज चूका आप का एक के बदले 100 का क्या हुआ ?
ताकि आप ये न पूछे की कश्मीर में 370 पर बोलती क्यों बंद है ?
ताकि आप ये न पूछे की चीन से जमीन छीनने वाले थे वो तो और घुस गया ?
ताकि आप ये न पूछे की विदेश में नाच गाने पर कितना और कहा से खर्च हो रहा है ?
ताकि आप ये न पूछे की एक साल के लिए नौकरियां क्यों बंद कर दिया जबकि बेरोजगारी ख़त्म करने का दावा था ?
ताकि आप ये न पूछे की रेल का किराया इतना बढा दिया और रेल का बुरा हाल क्यों है ?
ताकि आप ये न पूछे की भारत के प्रधानमंत्री के पीठ पर हाथ रखने का अधिकार किसी पूंजीपति को कैसे मिला ?
ताकि आप ये नहीं पूछे की कोई अडानी देश से बड़ा कैसे हो गया ?
ताकि आप कोई भी सवाल न पूछे देश के प्रधान प्रचारक से ?
क्या देश अब भी नहीं जागेगा ?

क्या भारत भी सोमालिया और उन तमाम देशो की तरह हो जायेगा जहा धार्मिक कट्टरता उन्ही को दिन रात खा रही है और वो देश नर्क बन गए है ।
मैं तो बहुत चिंतित हूँ ।क्या होगा मेरे देश का ? क्या हिटलर राज्य आएगा यहाँ ? और अलग विचार रखने वालो गैस चैम्बर और गोली मिलेगी ।
संघी और तथाकथित हिन्दुवों के ठेकेदार महात्मा गाँधी ,जवाहर लाल नेहरु ,सरदार पटेल ,डॉ राजेंद्र प्रसाद ,चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ,बाबा साहेब अम्वेदकर ,श्यामा प्रसाद मुखर्जी ,लाल बहादुर शास्त्री ,इंदिरा गाँधी ,मोरारजी देसाई ,चौ चरण सिंह ,राजीव गाँधी ,वी पी सिंह ,चंद्रशेखर ,नरसिम्हा राव ,अटल बिहारी वाजपेयी ,अडवाणी ,मनमोहन सिंह को हिन्दू नहीं मानते ।
इसलिए कह रहे है की चौहान के बाद अब हिन्दू सरकार आई है ।
क्या इरादा है इनका ?
ये कभी भूख ,गरीबी ,बेरोजगारी ,अशिक्षा ,स्वस्थ्य और तरक्की की बात क्यों नही करते ?
किस युग में जी रहे है ये और भारत को किस युग और माहौल में ले जाना चाहते है ?
कभी जब बाढ़ आती है तो कभी कभी कूड़ा करकट भी घर की बैठक से लेकर छत तक पहुँच जाता है | ऐसा ही एक बाढ़ में हो गया है | सफाई हो जाएगी तो कूड़ा करकट जहा होना चाहिए वहा पहुँच जायेगा |
साफ़ साफ़ मत पूछिए |
राजनीती में बहुत से लोग परजीवी बनकर आते है और खुराक पाते ही ताड़ की तरह बढ़ने लगते है जिसमे न तो छाया होती है और न फल लगता है | बस खाद पानी सब सोख कर बढ़ते जाते है बस खुद और खुद के लिए |
क्या इन ताड़ो के पेड़ से कभी राजनीती और देश को मुक्ति मिलेगी ?
अगर बहुत से लोगो के अनुभव से बर्बाद और बदनाम होने से बच सकते हो तो क्या बुराई है कि उस रास्ते पर कदम जाते ही रोक लो ।
बचपन में जब तक संस्कृत पढना मजबूरी थी इतना भारी और बोर लगता था की मास्टर साहब 33 नंबर देकर बस पास कर देते थे और जब क्लास 9 में जाने पर उससे पीछा छूटा तो लगा कैद से मुक्त हो गए ।
आज तक नहीं समझ पाया इतना पढने के बाद की क्या सिखाया संस्कृत ने ।और इतना ज्ञान का भंडार है तो कोई किसी भी क्लास में पढना क्यों नहीं चाहता ।
कही धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की तरह अपने लोगो को इसी बहाने स्कूल और कालेजो में भरने की साजिश तो नहीं जैसे उन्होंने अपने सारे शिष्य योग टीचर बनवा दिए ।
अब ये तो सभी जानते है की क्या किया इतने वर्षो में योग और उसके टीचर ने ।

वैसे तो संघी दो मोर्चे पर काम करते है - 1- अपनी अयोग्यता ,अदूरदर्शिता ,असफलता से ध्यान हटाते है विवाद छेड़ कर और -2- अपने लोगो को मीडिया ,शिक्षा से लेकर हर क्षेत्र में भर देते है भविष्य में फासीवाद लाने के हथियार के रूप में ।
मैं तो समझ रहा था की अभी चुनाव के भाषण और इवेंट ही चल रहे है और जैसे फौजियों और बाहर रहने वालो के डाक से आने वाले वोट के लिए भी लोग संपर्क करते है उसी तरह विदेश में रहने वाले भारतीय वोटरों से भी सभाओ के माध्यम से संपर्क चल रहा है ।
पर आज कई लोगो की पोस्ट पढ़ा की केंद्र सरकार का रिपोर्ट कार्ड क्या है तो झटका लगा की कोई सरकार है क्या दिल्ली में ?
चलिए अब मैं भी 6 महीने का आकलन करता हूँ दूरबीन लगा कर ।
पर नम्बर एक से आखिरी नम्बर तक मौजूद प्रधान मंत्री और सभी विभागों के मंत्री जी आप तो अपनी सभाए जारी रखो ।जब थोडा आराम करना हो तो भारत के आरामगाह में भी आ जाया करो ।
दुनिया में किसी बच्चे ने पैदा होने के बाद संस्कृत में माँ बोल है क्या ?
जो जहा पैदा होता है मुह से वहां की भाषा के शब्द बिना सिखाये निकल जाते है ।
निरक्षर लोगो को भी मानस रामायण कंठस्थ है क्योकि वो सरल बोली वाली भाषा में है ।
बाकी भाषाये व्यक्ति अपनी इच्छा और ज्ञान तथा रोजी रोटी से जोड़ कर सीखता है ।
महामानव लोग नयी क्रांति करेंगे की बच्चा पैदा होते ही संस्कृत बोलेगा और उसी से रोटी कमाएगा ।
रोजगार और रोटी पर रोक लगाने वाले ,गरीब से छीन कर पूंजीपतियों की तिजोरी भरने वाले अब देश से दुनिया तक अपने बूते पर मिलने वाले रोजगार पर भी ग्रहण लगाना चाहते है ।
भारत के लोगो को दुनिया में रोजगार इसलिए मिला की वो टूटी फूटी अंग्रेजी जानते थे और चीन ,रूस जर्मनी के लोगो को इसीलिए नहीं की वो नहीं जानते थे ।
ये ईसा पूर्व की मानसिकता पता नहीं देश को कहा ले जाएगी क्योकि ऐसी मानसिकता वालो का जहा भी शासन आया उन देशो और वहां के लोगो की दुर्दशा सभी ने देखा और देख रहे है ।
ईश्वर मेरे भारत को नकली रामभक्तो से बचाए जिनका राम आदर्शो और मर्यादा का वाहक नहीं बल्कि दंगो और नफरत का वाहक है ।
प्रतिदिन करोडो लोग किसी न किसी से मिलते है पर कुछ लोग अपनी मुलाकात का भी प्रचार करते है और पता नहीं इस प्रचार के लिए क्या क्या करते है ।
वर्ना किसी को क्या पता की किस गाडी में कौन किस घर या दफ्तर में घुसा ?
ये प्रचार की भूख बीमारी है या धंधे के लिए जरूरी है ?
पार्टी संगठन और कार्यकर्ता अपने नेता के नेतृत्व में जनता की तकलीफों और अकांक्षाओ के लिये संघर्ष करते है ।अधिकारी उस वक्त नेता का भी गिरेबान पकड़ लेते है और कर्यकरताओ तथा जनता पर गोली और लाठी चलाते है ।
चुनाव होता है और जनता उस संघर्ष का सम्मान करते हुए भारी मतों से पार्टी को भरी बहुमत से विजयी बनाती है और सरकार बन जाती है ।
और वही अधिकारी असली राजा बन जाते है इन्होने पिछले पांच साल पीटा और अपमानित किया था और कार्यकर्ता तथा जनता फिर दूर से मायूस सत्ता को निहारते है ।सत्ता को कैद कर लेती है फिर से नौकरशाही और तंत्र ।यही कहानी बार बार दोहराई जा रही है मेरे देश में ।फिर वही अधिकारी नचाने लगते है सत्ता को अपनी उंगलियों पर बहुत विनम्र भाव् से और खा जाते है सरकार तथा संगठन को क्रूरता से ।
कार्यकर्ता और समर्थक जनता उत्पीडित होते है और आवाज इस लिए नहीं उठा सकते की तथाकथित रूप से अपनी सरकार है और अगर ज्यादा हो जाने पर आवाज उठाने की हिमाकत कर दें तो फिर वही अधिकारी उसे पीटते है और मुकदमे लाद कर अपराधी बना देते है ।
मुहम्मद बिन तुगलक का इतिहास और कारनामे पढ़े है कुछ वैसे ही फैसले करने लगते है नौकरशाह और जनता की पूँजी और अधिकार को उसके जाने से रोकने और अपनी तिजोरियां भर देने में लगा देते है पूरी ताकत पूरी आपसी एकता और समझ के साथ ।लड़ाते रहते है राजनैतिक शक्ति को और एक दूसरे को जनता में खलनायक सिद्ध करने को सारे हथियार भी देते है और मदद भी करते है उनका ऐसा प्रचार करने हेतु ।ताकि सारी चर्चा में रहे राजनैतिक लोग और ये लूट ले सारे खजाने को ,ताकि को न देखे की कितनी कोठियां और कितनी बड़ी बड़ी बन गयी इनकी ।घर में झोपडी नहीं थी पर कितनी समपत्तियाँ बना लिया इन्होने और किस किस नाम के क्या क्या बना लिया इन्होने ।
राजनैतिक ताकते कब खुद राज करंना और नौकरशाहो को आदेशित करना सीख पाएंगी और कब इस स्थायी व्यवस्था को जवाबदेह बना पाएंगी और कब एक दूसरे को नीचा दिखाने के बजाय एक दूसरे का सम्मान करना तथा सहयोग से जनहित में करते हुए स्वस्थ और वास्तविक लोकतंत्र कायम करना सीख पाएंगी और कब इस तंत्र की कठपुतली बनना नहीं बल्कि इनको आदेशित कर और समयबद्ध तथा गुणवत्ता के मानक पर खरा काम करवाना सीख पाएंगी और कब राजनैतिक ताकत की तरह इस तंत्र में बैठे लोगो को भी यदि उन्हें जनता नकार दे और उनके काम को तो वो भी पद पर न रहे ऐसी व्यवस्था कायम कर पाएंगी ।ये बड़ा सवाल मेरे जेहन में काफी वर्षो से है और मुझे उद्वेलित करता रहता है की यह नौकशाही द्वारा संचालित नकली लोकतंत्र कब तक चलेगा ।
आज एक विज्ञापन देखा आगरा पर और किसी थीम पार्क की चर्चा तो ये विचार अपने आप को उद्वेलित करने लगा ।
सबको शिकायत है भ्रस्ताचार से और सभी बुराइयों से ।पर जिंदगी भर इमानदार रहने वाला जब बच्चे को पढ़ाने जाता है तो लाखो की फीस इमानदारी के पैसे से जमा नहीं होती ,जब इलाज के लिए जाता है और बीमारी बड़ी हो तो इमानदारी उसके काउंटर पर भो खोटा सिक्का बता दी जाती है और बेटी की शादी तो हो ही नहीं सकती क्योकि ईमानदारी प्रशंसा नहीं बल्कि उपहास का विषय बन जाती है और दहेज़ के तराजू में इसका पलड़ा आसमान देखने लगता है ।
किस विषय पर ईमानदारी की तारीफ करे ।जाने दीजिये ये उपदेश की चीज है दूसरो के लिए बाकी जेब भरी हो तो आदेश दीजिये की क्या चाहिए ।
आदर्शो और ईमानदारी की कलयुग में कितनी सजा निर्धारित किया है ईश्वर ने या शास्त्रों ने कही किसी शास्त्र में इसका कोई वर्णन है क्या ?
आप के इन अवगुणों की सजा आप की पत्नी ,परिवार तथा बच्चो को भी मिलेगी क्या ये भी उसमे लिखा है ? क्योकि बाकी सभी व्यवस्थाओ में तो सजा सिर्फ गुनाहगार को मिलती है परिवार को नहीं ।
किसी विद्वान ने पढ़ा हो तो कृपया मेरा भो ज्ञानवर्धन करने की कृपा करे ।
ऊपर वाले बेइमान होंने के लिए भी अरक्षित कर दिया है अवसर ।अवसर ही नहीं तो चाह कर भी नहीं हो सकता कोई ।पर बहुत लोग अवसर होने पर भी कायरता वश नहीं हो पाते है बेइमान ।
बड़ा गूढ़ शास्त्र है ये ।