सोमवार, 14 मार्च 2016

आज के सवालो का जवाब है डॉ लोहिया

                                                 
आज के सवालो का जवाब है डॉ लोहिया
                                                                 २३ मार्च उनकी जयंती
                                                                     
                                                                                 
                                                        लोकतंत्र बहुत अच्छी व्यवस्था है पर बुरी भी | कल विजयी होकर सत्ता में बैठे लोग और ताकतवर हुए लोग अगर संतति और सम्पत्ति के मोह में पड गए तो धृतराष्ट्र बन जायेंगे और तब लोकतंत्र बुरा हो जायेगा और अपने मायने भी खो देगा ,अगर अवसर और सत्ता का बटवारा नहीं हुआ तो भी लोकतंत्र मायने खो देगा ,अगर सत्ता और फैसलों का केन्द्रीयकरण रहा और चार खम्भों यानि गाँव ,जिला ,प्रदेश और देश के स्तर पर सत्ता और फैसलों के अधिकार का बटवारा नहीं हुआ तो तो भी लोकतंत्र मायने नहीं रखेगा | यदि सभी तरह की गैर बराबरी से समाज मुक्त नहीं हुआ तो भी लोकतंत्र मायने खो देगा |कुछ यही अर्थ निकलते है डॉ लोहिया के चिंतन के |
डॉ लोहिया तो १९६७ में दुनिया से चले गए परअपने कदमो के ऐसे निशान छोड़ गए और चिंतन की ऐसी लकीर छोड़ गए जो मिटाए नहीं मिट रही रही है | ये अलग बात है की आज भी उनके सवाल अनुत्तरित है तो उनके सपने कही अधूरे तो कही पहले कदम की तलाश में |
आज हम जितनी भी समस्याओ से जूझ रहे है जब उनके बारे में सोचते है तो ४८ साल पहले दुनिया से चले गए और उसके पहले उनके लिखे या कहे शब्द हमारे कानो में गूजने लगते है |
सबसे पहले डॉ लोहिया ने कहा की हिमालय बचाओ और आज हम हिमालय की केवल चिंता और चर्चा कर रहे है | सबसे पहले उन्होंने ही भविष्य में पानी की भयावह स्थति की तरफ ध्यान खीचा और कहा की नदियों का संरक्षण और सफाई एक अभियान होना चाहिए और हम आज गंगा की केवल चिंता और पस्ताव कर रहे है |
उन्हीने जब कहा की चीन धोखा देगा और कभी साथी नहीं होगा तो तत्कालीन सत्ता ने उनको गंभीरता से नहीं लिया था और तब भी उनकी बात सही साबित हुयी थी और आज भी उनकी बात सही है की चीन से प्रभावित राष्ट्रों का एक गुट बनाना चाहिए पर आज नेपाल हमें आँख दिखा रहा , भूटान चीन की तरफ बढ़ रहा है और बाकि पडोसी भी दूर हुए है | जिम्मेदारी तो सत्ताधीशो की ही है |
लोहिया ही तो थे जिन्होंने कहा था की देश को चौखम्भा राज्य चाहिए यानि जिसमे केंद्र केवल विदेश नीति ,रेल , सुरक्षा डाक इत्यादि देखे ,बाकि  मामलों का फैसला प्रदेश ,जिला और गाँव सरकारे अपने स्तर पर करे तभी लोकतंत्र मजबूत होगा | यद्दपि हमने पंचायत व्यवस्था को लागू किया पर इतना बड़ा देश और प्रदेश आज केन्द्रीकरण की बीमारी से कराह रहे है और जो तरक्की की किरण अंतिम छोर तक पहुंचानी चाहिए थी नहीं पहुंची आज तक |
डॉ लोहिया का सबसे चर्चित लोकसभा का बयांन  जिसमे उन्होंने देश के अधिकांश लोगो की आमदनी के बहाने अत्यधिक गैरबराबरी की बहस छेडा था आज भी तो मूल बहस का मुद्दा है जब हम चर्चा करते है की देश की ६५ % आबादी आज भी २० रुपया रोज पर गुजारा करती है और आज ये बहस और भी सनसनीखेज हो जाती है जब हम बुन्देलखण्ड में लोगो को घास की रोटी खाते और देश भर में किसानो को आत्महत्या करते देखते है और जब हम चर्चा करते है की पूजीपति को माफ़ी उसको प्रोत्साहन है और किसान को कुछ माफ़ी या सहायता देश पर बोझ |
डॉ लोहिया ने जब कहा की राम की मर्यादा को समझो और रामायण मेला लगाना शुरू किया तो उनका इरादा था की राम की मर्यादा से समाज को बाँधा जाये पर उन्हें कहा पता था की राम लड़ाई का कारण बन जायेंगे हिंदुस्तान की धरती पर और जब उन्होंने कहा की क्रष्ण प्रेम के प्रतीक है तो वो चाहते थे की समाज उन्ही की भांति सत्य के साथ और अन्याय के खिलाफ खड़ा हो चाहे गलत होने पर अपनो के खिलाफ खड़ा होना पड़े और गैरो के साथ खड़ा होना पड़े |
कोई भी जुल्म हो अमरीका में या कही भी विश्व सरकार की कल्पना का चितेरा हर जगह इसलिए पहुंच जाता था क्योकि वो चाहता था की विश्व सरकार बने और फौजों तथा लड़ाइयो से विश्व मुक्त होकर आगे बढे और आज भी तो विश्व इसी चिता में है ,विश्व के नेता न हो पर मानवता तो है |
भारत और पड़ोसियों के ढीले ढाले महासंघ की चिंता आज इन सभी देशो की सिविल सोसाइटी के जेहन में भी है और चिंतन में भी पर सरकारों और राजनीतिज्ञों के मकडजाल में सर नहीं उठा पा रही है |
जब डॉ लोहिया चाहते थे की पार्टी सरकार का सञ्चालन करे और पार्टी का ताकतवर नेता सत्ता में बैठने के स्थान पर संगठन में रहे तथा जनता के साथ रहे तो उनको शायद आशंका हो गयी थी उसी वक्त की सत्ता में सबसे ताकतवर के बैठते ही लोकतंत्र मर जायेगा और बुराइयाँ असमान छूने लगेंगी और सत्य ही तो साबित हुआ | उनका मकसद था की ताकतवर नेत्रत्व जनता से जुदा रहे और सत्ता को विचलित और पथभ्रष्ट न होने दे | इसलिए वो चाहते थे की संगठन धकेल नहीं बल्कि नकेल का काम करे |
हम जी चीज की भी चिंता कर ले विदेश नीति की ,मानवता की ,पर्यावरण की ,लोकतंत्र की ,हर तरह की गैर बराबरी की ,देश की सुरक्षा के साथ विश्व की सुरक्षा की ,अर्थ व्यवस्था की ,किसान की ,जवान की हर जगह डॉ लोहिया एक सीख और एक दिशा देते हुए आज भी हमारे बीच खड़े है |
पर अब कोई लोहिया पैदा होगा जिसका दुनिया के देशो में इंतजार हो रहा होगा वहा के आन्दोलन के मुद्दों पर और ऐसा अभी तो नहीं दिखता | लेकिन उनकी चिन्ताओ और आज की चिन्ताओ पर अगर आज का नेत्रत्व उन्ही की ईमानदारी के साथ खड़ा हो जाये तो हम स्वर्णिम भविष्य की उम्मीद जरूर कर सकते है |

बुधवार, 2 मार्च 2016

देश के लुटेरे




देश के लुटेरों से वसूली पर --- खामोश क्यों हैं केन्द्रीय सरकार ... ?
क्या- यह 'लूट' भी 'राष्ट्रवादी कार्य-सूची' में शामिल है ... ?

निम्न समाचार के अनुसार - " सरकारी बैंकों के क़र्ज़ों का महाघोटाला कोई एक-दो लाख करोड़ का मामला नहीं है. क़रीब साढ़े आठ लाख करोड़ रुपये के क़र्ज़े ऐसे हैं, जिनकी वसूली की सम्भावना अब न के बराबर समझी जा रही है! यानी भारत की कुल जीडीपी का क़रीब 6.7 प्रतिशत हिस्सा चट किया जा चुका है या जिसके वापस मिलने की अब लगभग उम्मीद नहीं है! और इनमें से 87 फ़ीसदी हिस्सा अमीर कॉरपोरेट समूहों को दिये क़र्ज़ों का है ---"

आखिर, क्यों - इस लूट पर ख़ामोश है वे 'राष्ट्रवादी' --- जो JNU के बेगुनाह वामपंथी छात्रों को जबरन 'राजद्रोही' कराने में चीखते-चिल्लाते दिखाई दे रहे हैं ... ?

" ... कौन हैं ये बक़ायेदार? कोई इनका नाम बताने को तैयार नहीं है. तर्क दिया जा रहा है कि ऐसा करना बैंक और ग्राहक की गोपनीयता को भंग करना होगा, जो क़ानूनी तौर पर जायज़ नहीं है. वाह जनाब वाह! मान गये हुज़ूर! लेकिन एक सवाल पूछने की ग़ुस्ताख़ी कर रहा हूँ. यह तर्क 2011 में कहाँ था, जब कुछ बैंक ‘शर्म करो’ अभियान के तहत अपने उन बक़ायेदारों के नाम और फ़ोटो अख़बारों में विज्ञापन देकर और सड़कों पर होर्डिंग लगा कर छाप रहे थे, जो महज़ कुछ हज़ार या कुछ लाख का क़र्ज़ नहीं चुका पाये थे! यही नहीं, उन्हें धमकी यह भी दी गयी कि अगर अब भी उन्होंने क़र्ज़ नहीं चुकाया तो उनकी गारंटी लेनेवाले लोगों के नाम और फ़ोटो छाप कर उन्हें भी ‘लज्जित’ किया जायेगा!तो चार साल पहले ग़रीब और आम आदमी की इज़्ज़त से खुलेआम और मनमाना खिलवाड़ करनेवाले बैंक और सरकार आज ‘ग्राहक की गोपनीयता’ की दुहाई क्यों दे रहे हैं? इसीलिए न कि मामला बड़े-बड़े अमीरों की इज़्ज़त का है!

अगर अमीर क़र्ज़दारों के नाम बताने में इतना संकोच है, तो उनसे क़र्ज़ वसूलने के लिए बैंक क्या करते होंगे, यह आसानी से समझा जा सकता है. वैसे ग़रीबों से बैंक कैसे क़र्ज़ वसूलते हैं, यह आसपास कुछ लोगों से पूछ कर देखिए. किसानों की दयनीय हालत और उनकी लगातार बढ़ती आत्महत्याओं के बावजूद दस-दस हज़ार रुपये के बक़ाये वसूलने के लिए बैंक कैसे अमानवीय तरीक़े अपनाते हैं, यह किसे पता नहीं? लेकिन अब न बैंक बोल रहे हैं, न सरकार बोल रही है कि इन अमीर क़र्ज़दारों से बक़ाया वसूलने के लिए कुछ किया भी जायेगा या नहीं. सरकार एक ‘बैड बैंक’ बनाने की सोच रही है, जिसके ज़िम्मे सारा डूबा हुआ क़र्ज़ दे दिया जाये और जो उसे वसूलने की कोशिश करता रहे. वसूल पाये या न वसूल पाये, यह अलग बात है. बहरहाल, अब सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद स्थिति शायद कुछ बदले ... "

फुटपाथो पर लोग


फुटपाथो पर सोते और कभी कभी किसी गाडी से कुचलते हुए लोग
चैराहों पर भीख मागते हुए बच्चे
अपना शरीर बेचने को मजबूर बहन ,बेटिया
आत्महत्या करते हुए बेरोजगार नौजवान या किसान
सीमाओ पर शहीद होते जवांन

शायद वोट को प्रभावित नहीं करते ।

इसलिए किसी भी नेता और सरकार तथा तंत्र को इनकी चिंता क्यों हो ?

कांग्रेस के घोटालो पर सत्ता का चुप


दो सवाल जनता पूछ रही है ---

1- कांग्रेस में लाखो करोड़ के घोटालो पर इन दो सालो में मोदी ने क्या क्या कार्यवाही किया और किनको जेल भेजा तथा कितना पैसा सरकारी खजाने में जमा करवाया ?

२- वो काला धन जिससे इण्डिया के मैदान पर पता नहीं कितने सौ मीटर ऊंचा पहाड़ लगने वाला था और पूरा भारत टैक्स फ्री होने वाला था और पता नहीं क्या क्या
उसमे से इन दो सालो में आरएसएस ,मोदी ,बीजेपी , रामदेव सलवारी और रविशंकर इत्यादि इन दो सालो में कितना ले आये ।

क्या ये सवाल आप सबके मन में नहीं है ?

पूंजीपति ही दोस्त


मोदी जी और बीजेपी के जुमलों और नारो की तरह आज का बजट भी छलावा और जुमला ही है और दिशाहीन बजट है ।
दो वर्ष से कुछ बड़े पूंजीपतियो की तिजोरी भरने वाली सरकार ने किसानो और मध्य वर्ग को जुमला देकर उस पाप से मुक्ति चाहा है ।
ये सरकार अभी तय ही नहीं कर पायी है की वह देश की अर्थ व्यवस्था को किस दिशा में ले जाना चाहती है ।
दो साल में विदेश व्यापार करीब 18 % घट गया तो कृषि उत्पादन वृद्धि जो पिछली सरकार में 4.1% रहती थी वो 1/2 % हो गयी है और इन्ही का आर्थिक सर्वे बता रहा है की किसान की आमदनी 20 हजार रुपया प्रति वर्ष है यानी करीब 1600 रुपया महीना उसे पाँच से में दोगुना करने का वादा किया गया है पर आधा प्रतिशत वृद्धि के ये दावा केवल छलावा है ।
गामीण सड़को के लिए 4000 करोड़ रखा गया है ।इतने कम पैसे से क्या होगा ।
दूसरी तरफ शिक्षा और स्वस्थ्य इत्यादि के बजट से कटौती जारी है ।
मनरेगा इत्यादि में भी बढ़ोतरी मामूली है ।
आयकर के छूट के अपने पुराने वादे से सरकार फिर पीछे हट कर वादाखिलाफी कर गयी है ।
जो छूट स्वाभाविक तौर पर जनता को मिलनी चाहिए थी और जिन पर विपक्ष में रहने पर बीजेपी हमलावर रहती थी वो जनता को नहीं देकर भी धोखा ही दे रही है जैसे पेट्रोलियम और जिंस के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार घटने पर भी जनता को उसका लाभ नहीं दिया जा रहा है ।
ये बजट बस छलावा है ।