मंगलवार, 5 नवंबर 2024

छात्र राजनीति का वो दौर

#ज़िंदगी_के_झरोखे_से 

#छात्र_राजनीति_का_दौर याद आ गया । मेरे भाषण सुनने के लिए छात्र छात्राएँ बहुत बड़ी संख्या में अपने आप एकत्र हो जाते थे -
#( जब मैं वाद विवाद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने जाता था तो चाहे जितनी दूर हो पर यदि शहर में किसी कालेज या विश्वविद्यालय में हुआ तो काफ़ी संख्या मे वहाँ सुनने और जोश बढ़ाने भी पहुँचते थे कालेज के छात्र और छात्राएँ और कई अध्यापक भी ) ख़ैर वो दौर ही ऐसा था की कोई भी खेल हो वहाँ भी सभी स्कूल कलेजो के सैकड़ा लोग पहुँचते थे अपनी टीम और खिलाड़ी के पक्ष में #
- बस कोई एक साथी कालेज का घंटा बजाता और मैं  लाइब्रेरी के सामने के ऊँचे बरामदे के सामने खड़ा हो जाता था जो गेट के ठीक सामने है और कालेज के दोनो मैदान उसके सामने सड़क के दोनो तरफ़ और लाइब्रेरी के सामने भी तीन तरफ़ सड़क और ठीक सामने काफ़ी चौड़ी जगह और सभी क्लास से बाहर निकल आते थे सभी छात्र और छात्राए और मेरे सामने बडी भीड होती थी मुझे सुनने को । अध्यापक भी जब देखते की मैने घन्टा बजवा दिया है और अपनी सम्बोधन वाली जगह पर खड़ा हूँ तो खुद क्लास के बाहर चाले जाते और हम लोगो के सामने के बजाय दूसरे वाले रास्ते से स्टाफ रूम मे चले जाते ।फिर मेरा भाषण होता था की क्यो हड़ताल हो रही है और सिर्फ हड़ताल होना है या कही जुलुस जाना है ।सारी बात बता कर मैं पहले सबको समर्थन मागता और सहमत होने पर जुलुस का रूट , रास्ते का और जहा जाना होता वहा पहच कर वहा का अनुशासन बताता तथा यदि मौन जुलुस नही है तो चलने के पहले ही नारो का अभ्यास करवाता और फिर कारवा निकल पडता था । ज्यो ही प्रशासन को भनक लगती की मैं निकल रहा हूँ पास के थाने के सी ओ और एस ओ मय फोर्स आ जाते साथ चलने को और पूछ लेते गन्तव्य और कारण और एक इच्छा व्यक्त कर देते की हर बार की तरह मैं अनुशासन कायम रखूंगा और साथ साथ सब चलते ।लेकिन विवि या कलक्टरेत पर दो पी ए सी का ट्रक जरूर पहुचा होता था ।
पर ये तस्वीर तो शहर से दूर मेरे कालेज के दूसरे कैम्पस की है जहां किसी समस्या पर मुझे आमंत्रित किया गया था वहाँ के शिक्षकों और छात्रों द्वारा । मेरा भाषण आख़िरी भाषण था , आप देख सकते है तलियो के लिए तैयार हाथ , फिर उस जमाने में मेरे भाषणों में एक आग होती थी । वो यहां भी काम कर रही थी । फिर मेरे नेतृत्व में जुलूस निकला । 
आजकल के तथाकथित छात्र नेता इस जुलूस की आधी लम्बाई तो इसके एक चित्र में देख सकते है बिल्डिंग के दूसरे छोर पर और कसी हुयी मुट्ठियों के साथ लगने वाले नारो से अन्दाज़ लगा सकते है मेरे शब्दों के असर का । 
फिर जो होना था हुआ और सब हुआ जिसका वर्णन यहाँ नही आत्मकथा में । 
350 से ज़्यादा लोग गिरफ़्तार होकर जेल गए 
और फिर वो समस्या हमेशा के लिए ख़त्म हो गयी ।
आंदोलन तो वो भी था जब लाठीचार्ज और फिर मेरी गिरफ़्तारी के बाद अगले दिन सुबह ही राजनारायण जी जेल में हाज़िर थे और उनके आने का पता लगते ही ज़िले के डी एम एस पी सहित पूरा अमला और प्रशासन हम लोगों को छोड़ने को तैयार था उसी समय और मेरी छात्र संघ का चुनाव कराने की माँग मानने को भी पर राजनारायण जी ने इनकार कर दिया की अभी रहने दो , फिर समर्थन में गिरफ़तारियो का दौर चला सुमन जी , फिर बरेली से आकार कुँवर सर्वराज सिंह , फिर कमांडर साहब के नाम से मशहूर कैप्टैन अर्जुन सिंह भदौरिया और उसके बाद जेल में मिलने राम नरेश यादव , मधू दंडवाते से लेकर चंद्रशेखर जी तक और जब भी कोई आता एक तख़त लग जाता जिसपर से उस नेता का सम्बोधन होता । रोज़ शाम को बैरक में किसी विषय पर कमांडर साहब और मेरा उद्बोधन होता प्रशिक्षण के तौर पर । सभी की नाप हयी ,कपड़े जिसमे गांधी आश्रम का ही कोट भी था हम सभी बंदियों को मिला । बहुत से लोगों की रुचि जेल में गुंडो से दोस्ती करने में थी तो कुछ की पपलू खेलने में भी । गलती से कुछ संघ से जुड़े छात्र भी बंद हो गए थे उनकी रुचि का सार्वजनिक वर्णन निषेध है पर आत्मकथा में होगा और ऐसे काफ़ी थे जिनकी रुचि राजनीतिक मुद्दों और देश को समझने में थी । 
आंदोलन वो भी था जब उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को घेर लिया गया सर्किट हाउस में और अंधेरा होने पर लाइट बुझा कर उन्हें पीछे के रास्ते से निकाल कर ले जाया गया 
आंदोलन वो भी था जब विश्वविद्यालय के कुलपति को खड़ा कर मैं उनकी कुर्सी पर क़ाबिज रहा क़रीब ४ घंटे और फिर अधिकारियों को चाय पिला कर ही उठा । 

वह आंदोलन भी मेरा अनोखा आंदोलन था जिसने सभी के हाथ बांधे थे , मुँह पर पट्टी बंधी थी और सीने पर पोस्टर था जिसपर दिल का दर्द लिखा था और पूरा जुलूस कलक्टरी तक सड़क के किनारे बिलकुल मौन ही गया और वहाँ पट्टी भी खुली और आवाज तथा उद्घोष भी 
और वो ६ वी क्लास में पूरी क्लास को लेकर स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य रहे एच एन कुज़रू जी के घर तक जाकर अपनी बात कहना और उनका गाल थपथपा कर कहना की नेता बनेगा ? और दूसरे ही दिन माँग पूरी कर देना 
अपने पिता से उलझ जाना छात्रों के लिए , 
आंदोलन इस बात के भी हुए की बस और सिनेमा में आधा टिकट लगे , साइकिल स्टैंड पर कितना पैसा लगे ,और भी बहुत कुछ 
ना जाने कितने आंदोलन है इस ज़िंदगी के झरोखे में 
याद के अनुसार सब आत्मकथा में मिलेगा । 
बड़े बड़े क्रांतिकारी युवा और छात्र नेता हम लोगों से आज पूछते है की आप क्या और कौन ?

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