शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

बहस खेती बनाम पूंजीपति की

गाँव किसान का दर्द और बहस खेती बनाम पूंजी की 

इस समय किसान के खेत का आलू और सब्ज़ियाँ आने लगी तो कितना सस्ता मिल रहा है सब । उससे पहले व्यापारी के गोदाम का था तो आलू ही 50/60 मिल रहा था जिसे गरीब की सब्ज़ी कहते है । यही हाल सब चीज़ का है । किसान पूरी मेहनत से पैदा करता है पर उसके पास भंडारण की क्षमता नही है और 80 प्रतिशत किसान छोटे या सीमान्त किसान है जो सिर्फ उतना ही पैदा कर पाते है की वो खा ले और बाकी बेच कर उसे तत्काल कर्ज चुकाना होता है ,इलाज करवाना होता है जो वो रोके होता है फसल तक ,जरूरी कपडा हो या खेती का सामान या फिर गाय भैस सब उसी मे से आगे पीछे करना होता है ।बच्चो की किताब हो या बेटी को शादी सब करना होता है कुछ नकद और कछ उधार जो उसे गाँव या पास के व्यापारी से मिल पाता है खेत और फसल की गारन्टी पर पैसे की सीमा के अनुसार ।इन्ही तत्कालिक जरूरतो के कारण उसे खाने लायक रोक कर अपनी फसल तत्काल बेचना होता है और इसी बात का फायदा उठाता है व्यापारी ।
एक बार मैने प्रैक्टिकल करने के बाद लिखा था जब मैं आगरा की  मंडी के पास एक कालेज मे गया था तो सोचा की जरा सेब का भाव देखा जाये तो वहाँ 5 किलो या ज्यादा लेने पर सेब 40 रुपया किलो मिल रहा था । मंडी के बाहर की ठेल वाले से पूछा तो 60 हो गया था । फिर केवल 1 किलोमीटर दूर सिकंदरा पर खड़ी ठेल से पूछा तो 80 हो गया ।जब और आगे खन्दारी पर पूछा तो 90 और 100 था और जब शहर के अंदर हरी पर्वत चौराहा पर पूछा तो 120 से कम करने को तैयार नही था ।जिस समय आलू पैदा होता है किसान के खेत से 2 रुपए किलो तक चला जाता है और कभी कभी बोरे की कीमत मे ।कभी तो ये हाल हो जाता है कि किसान वही बाहर आलू फेंक देता है की जो ले जाना चाहे वो ले जाये ।गन्ने के साथ भी हम अक्सर देखते है की गन्ना खेत मे ही जला देते है और टमाटर सड़क पर फेंकते दृश्य भी देखे है ।
पर कभी बिस्किट , कोक ,या फैकट्री की चीजे फेंकते तो नही देखा न दवाई केचप या चिप्स ।और अगर कोई कारण फेकने का आया तो मालिक खुद फैक्ट्री मे आग लगवा कर उससे ज्यादा इन्शीरेंस वसूल लेता है पर किसान के मामले मे इन्श्योरेन्स वाला 10 हजार करोड़ कमाता है और हजारो किसान आत्महत्या करते है क्योकि उनका इन्श्योरेन्स उनका वाजिब मुवावजा देता ही नही है ।
नेता बड़े बड़े वादे किसानो से करते है पर विपक्ष मे और सत्ता मे आते ही पूंजीपतियों के पाले मे खड़े हो जाते है इसलिए किसान बदहाल है वर्ना एक समय तक तो पूरा भारत इसी खेती से ही जिन्दा था और सोने की चिडिया था ।तब कहा थे कारखाने और पूंजीपति । 
यहा तक की लाक डाउन मे भी जब सब बंद था होटल कारखाने जहाज कारे और कपडे भी आल्मारी मे थे तो जरूरत सिर्फ खाने का अन्न , सब्जी दूध सभी को और जो बीमार थे उनको दवाई की पड़ी और किसान ने कोई चीज कम नही होने दिया ।जब मंदी का असर भी कही आता है तो कल कारखाने और दफ्तर लडखडाते है पर खेती उस समय भी देश और समाज को सहारा देती है थामती है और देश को डूबने नही देती ।पर इसका उतना ही उपेक्षित रखा गया और रखा जा रहा है जबकी अमरीका इंग्लॅण्ड जैसे देश खेती को भारी आर्थिक सहयता देते है ।

एक सवाल हमेशा से कचोटता है की जो लोग हमारे सामने जमीन पर रख कर थोडा सा सामान बेच रहे थे या साइकिल पर बेच रहे थे या छोटा मोटा लकडी का खोखा लगाकर बेच रहे थे वो देखते देखते बडी पक्की दुकान के मालिक हो गये ,बडी बडी कोठियो के मालिक हो गये या तक की फैक्ट्री और होटलो के मालिक हो गये और उनके परिवारो मे जितने लडके होते गये उनके उतने करोबार और कोठिया बढती गई ।जब सवाल करो तो कहा जाता है की उसने पैसा लगाया और मेहनत की ।पर किसान भी तो पैसा लगाये बैठा है और अधिकतर मामलो मे इन व्यापारियों से ज्यादा क्योकि किसान का खेत लाखो का है ।उसमें वो खर्च भी करता है बीज पानी खाद पर और दिन रात जाड़ा गर्मी बरसात उसमे पसीना बहाता है ।बिना जान की परवाह किये उसकी रखवाली करता है और कभी बाढ तथा कभी सूखा और कभी फसल तथा पशु की बीमारियो का सबसे ज्यादा रिस्क भी लेता है तो किस मामले मे वो व्यापारी से पीछे है ये सवाल सत्ताओ से भी है और समाज से भी ।उसकी फसल प्राकृतिक आपदा का शिकार होती है तो उसे नाम मात्र का मिलता है ।और बडा सवाल है की व्य्पारी के बच्चे बढे तो व्यापार और घर बढ़ जाते है पर किसान के खेत और मकान छोटे होते जाते है क्यो ? 
किसी किसान को बड़ा होते नही देखा अगर उसके परिवार के कुछ लोग नौकरी या किसी व्यापार मे लग गये तभी उसका जीवन थोडा ठीक होता है वर्ना उसका बेटा फौज मे जाकर जान हथेली पर लिये सिर्फ इसलिए खड़ा रहता है किसी भी परिस्थिती मे सीमा पर ताकी साल के अन्त मे वो कुछ पैसे बचा कर गाँव ले जाये जिससे घर की कुछ जरूरते पूरी हो सके ।
जाह तक फसल कही भी बेचने का सवाल है वो नियम पहले से है पर ८० % से ज़्यादा किसान अपने ब्लॉक या पास की मंडी के बाहर कभी नही जाते क्योंकि उतना उत्पादन ही नही है । 
उनके निकट मंडी बना और हर हाल में उनकी उपज ख़रीद कर और स्वामीनाथन आयोग के अनुसार मूल्य देकर तथा उद्योग की तरह सुरक्षा और इंश्योरेंस देकर ही उसका भला किया जा सकता है तथा उसे कृषि में और गाव में रोका जा सकता है 
गांधी जी की दृष्टि आज भी ठीक है की आसपास के २० गाँव अपनी ज़रूरतें वही से पूरा करे इसके उनका मतलब उन सब चीज़ को भी वही डेवलप करने से था जिनकी ज़रूरत पड़ती है स्कूल कालेज अस्पताल तथा स्थानीय उपज से जुड़े छोटे उद्योग भी ।
नौकरी वालो की तन्ख्वाह पिछ्ले 25सालो मे 250 गुना तक बढी और पूंजीपतियों की संपत्ति तो हजारो गुना पर किसान के फसल की कीमत 19या 20भी मुश्किल से कुछ चीजो की ।
व्यापारी का लाखो करोड़ का कर्जा सरकार माफ कर देती है या बट्टे खाते मे डाल देती तो किसान को भी उतनी ही मदद क्यो नही देती ।नौकरी बाले के बच्चो को अगर पढाई का मिलता है, घर मिलता है उसका मेन्टीनेंस मिलता है, फ़्री बिजली मिलती है ,मेडिकल मिलता है घूमने का पैसा मिलता है तो किसान के बच्चे की पढाई और उसका इलाज क्यो न मिले ? उसको फ़्री नही तो सस्ती बिजली और डीजल क्यो न मिले , उसकी बेटी की शादी की सहयता क्यो न मिले ? उसको चाहे 10 साल मे एक बार ही सही घर ठीक कराने के पैसे क्यो न मिले और प्राकृतिक आपदा आने पर उसका कर्जो माफ क्यो न हो ? 
भारत का मूल गाँव , किसान और खेती है उसे मजबूत करना ही होगा  गांव को शहरो की बराबरी पर विकसित करना ही होगा ।क्या ये तय नही हो सकता कि जो शहर मे एक स्कूल कालेज ,अस्पताल और फैक्ट्री बना रहे है उन्हे उस जिले के गाँव मे भी बनाना ही होगा और उसके लिये लाल फीताशाही खत्म कर , पुलिस का आतंक और शोषण खत्म कर उसे गाँव मे लोगो को सुरक्षा का एहसास कराने की मूल जिम्मेदारी देकर तैयार करना होगा जिससे ये सब खोलने वाले तथा उसमे काम करने वाले शौक से गांवो मे जाने को तैयार हो ।
बहस बडी है पर समय भी बडा है तो कोई तो होगा जो बडा सोचेगा महात्मा गांधी के संदेश समझेगा और भारत को कर्जो से लड़े तथा जनता के पैसे से बडा आदमी बने लोगो का देश नही बल्की खुशहाल गाँव और खुशहाल लोग वाला भारत बनाएगा ।
पर पहले उन सवालो का जवाब ढूढना होगा और सत्ता को जवाबदेह होना होगा जो ऊपर उठे है ।

जिंदगी के झरोखे से ,मन्डलीय सम्मेलन और 14 लाख की थैली

#जिंदगी_के_झरोखे_से 

#1991_मंडलीय_सम्मेलन_और_14_लाख_की_थैली 

बात 1991 के चुनाव के बाद की है पता नही वो घटना अभी तक मैने लिखा या नही जब रात भर चुनाव परिणाम देखने के बाद मैं सुबह ही मुलायम सिंह यादव जी के घर पहुचा था और इतने बुरे परिणाम से वो बेचैन थे ,जबकी पहले ही दिल्ली से लौटते हुये शिवपाल जी कर घर पर उन्हे मैं ऐसे परिणाम की आशंका जाता चुका था प्रदेश का चुनाव देखने के कारण पर सारे अधिकारी और इंटेलीजेंस एजेंसियां उन्हे 125 से 150 तक की रिपोर्ट दे रही थी ।
केवल 29 एम एल ए और चंद्रशेखर जी समेत केवल 4 एम पी सीट सत्ता मे रहते उनको विचलित कर गई थी ।
मिलते ही बोले कि अयोध्या के कारण ये तो सारी जनता नाराज हो गई है इत्यादि । मैने कहा कि छोटा हूँ पर एक बात कहना चाहता हूँ कि अब हमे इसी स्टैंड पर कायम रहना चाहिये । आप ने कुछ बुरा नही किया बल्की मुख्यमंत्री होने के कारण संविधान की रक्षा किया है और उस पर आप को गर्व होना चाहिये । ये ठीक है की संघ अभी जहरीला प्रचार कर कामयाब हो गया पर कल जब लोग समझेंगे की देश तो संविधान और कानून से ही चल सकता है न कि दंगो से तो यही प्रदेश आप को फिर वापस लाएगा ,और हम दोनो चाय पीने बैठ गये और उसी समय ये भी तय हुआ की मात्र 7 दिन मे चुनाव लड़े विधनसभा के 425 और लोक सभा के 85 लोगो की बैठक बुला लिया जाये (इसका किस्सा अलग से ) ।कल्याण सिंह की सरकार बन गई थी ।
पर सरकार जाने के बाद बडा संकट था और पार्टी चलाने मे दिक्कत हो रही थी क्योकि इस मुख्यमंत्री काल मे मुलायम सिंह जी ने पैसे के बारे मे सोचा ही नही था और जहा तक मुझे पता है सिर्फ एक मामले मे ओम प्रकाश चौटाला ने कुछ दिया था जो दिल्ली से टी सीरीज कैसेट के डिब्बो मे ले जाया गया था और जो आया भी वो चुनाव मे खर्च हो गया था । दो बार तो त्योहार के मौके पर भी हम दफ्तर के स्टाफ को तन्ख्वाह नही दे पाये तब मैने तपन दादा को कुछ रुपए दिये की वो जगजीवन और शरमा इत्यादि बराबर बराबर बांट ले और त्योहार मना ले ,तपन अब बुजर्ग हो गये है पर है और जगजीवन तो आज बहुत रईस भी है और एम एल सी भी । इसी तरह मुलायम सिंह जी के घर का फ़ोन कट गया और कई दिन बाद जुड़ा तब एक दिन मैने महामंत्री के रूप मे लोगो का आह्वान कर दिया की जितना मन हो चाहे 5/10 रुपया ही सही मुलायम सिंह यादव जी को मनी ऑर्डर करे ।जो भी पहुचा मैने पूछा नही ।
2 महीने बाद ही मुलायम सिंह यादव जी एक सामाजिक कार्यक्रम के लिये आगरा आये और जैसा की हमेशा होता था कि अन्त मे प्रेस से मुलाकात मेरे निवास पर होती थी । उस दिन भी हुयी ।
प्रेस के बाद इटावा जाना था तो बोले की आप भी चलिये रास्ते मे बात करते चलेंगे और आज ही ट्रेन पकड़ कर लखनऊ जाना है तो आप उसके बाद वापस आ जाईयेगा ,ऐसा अक्सर ही होता था उस दौर मे । मुझे ऐसा याद आता है कि उस दिन देश के जाने माने कवि और हमारे सांसद उदय प्रताप जी भी साथ थे जिन्होने बाद मे मुझसे शिकायत किया था कि रास्ते भर आप दोनो ही बात करते रहे और मैं तो महज श्रोता बना रहा ।
हम लोग इटावा सिचाई विभाग के डाक बंगला पहुचे जहा शायद मुलायम सिंह यादव जी के आने की खबर नही दी गई थी तो जिस सुईट मे ये रुकते थे पुलिस के किसी डी आई जी को आवंटित हो गया था । मैने वहा के व्यवस्थापक को हड़काया कि आवंटन किसी का हो पर जब प्रोटोकोल मे बडा व्यक्ति आ जाता है तो वो आवंटन अपने आप निरस्त हो जाता है ।खैर डरते डरते की साहब मेरे खिलाफ कुछ न हो जाये उसने कमरा खोल दिया ।मुलायम सिंह जी अंदर गये और बस बाथरूम होकर बाहर आ गये कि अच्छा मौसम है ,बाहर पार्क के चबूतरे पर बैठते है जबकी जून आखिर या जुलाई का आरम्भ था और तेज गर्मी थी ।
खैर हम लोग वही बैठ गये । मुलायम सिंह यादव जी का मानना था को कम से कम एक साल चुपचाप आराम किया जाये और राजनीतिक गतिविधिया बंद रखा जाये क्योकि अभी कही भी निकलने पर जनता का गुस्सा झेलना पड़ सकता है ।
मैने कहा की मैं इस बात से सहमत नही हूँ और वही मैने बीजेपी तथा आरएसएस के गढ आगरा से ही तत्काल कार्यक्रम शुरु करने को आमंत्रित किया । वो सहमत नही थे पर मेरे जोर देने पर मान गये की प्रदेश कार्यकारिणी और वरिष्ठ नेताओ की बैठक कर इसपर बिचार हो जाये तो मैने कहा की देर क्यो हो तत्काल बुला लिया जाये और शायद एक हफ्ते बाद ही वो बैठक बुला ली गई लोहिया ट्रस्ट के हाल मे ।वहां मैने सबसे पहले अपनी बात रखा और तर्क की क्यो तत्काल बाहर निकल कर सक्रिय हुआ जाये और आगरा से ही क्यो । तब कुछ लोगो ने कहा की आगरा मे पार्टी नही है और पार्टी का कोर वोटर नही है कार्यक्रम फ़ेल हो सकता है तब मैने आश्वस्त किया कि आगरा मंडल का कार्यकर्ता सम्मेलन रखा जाये और बाकी सब मुझ पर छोड दिया जाये और उसी मे मैने प्रस्ताव रख दिया कि पार्टी चलाने के लिये 5 से 10 लाख तक की थैली भेंट करने की कोशिश भी की जाये और कार्यक्रम तय हो गया सम्भवतः अगस्त की कोई तारीख तय हुयी ,हम लोग मई अन्त मे चुनाव हारे थे ।
मैं वापस आगरा आया और सबसे पहले कागज पर योजना और अनुमानित बजट तथा अपना कार्यक्रम बनाया और दूसरे दिन ही आगरा का सर्किट हाउस तथा सूर सदन हाल बुक कर दिया तथा बाहर पार्किंग मे लगाने के लिये पंडाल और बैठने का इन्तजाम की भीड ज्यादा हो तो अव्यवस्था न हो और अपने एक दोस्त के बात कर गैलरी से बाहर के पंडाल तक देश के किसी भी कार्यक्रम मे पहली बार क्लोस सर्किट टीवी का इस्तेमाल की व्यव्स्था भी । शाम को आगरा मे जो थोडी बहुत पार्टी थी जनता दल टूटने के बाद जिसमे अधिकतर मेरे द्वारा जोड़े गये 8/10 लडके थे उनकी मीटिंग किया और सबको काम अभी से बता दिया । अपने एक दोस्त के होटल मे आने वाले लोगो के लिये 5000 पैकेट खाना बनाने की बात तय कर दिया ।
आगरा के अन्य नेताओ से कह दिया की मुलायम सिंह के आगरा आने से लेकर जाने तक ठहरना , पूरे सम्मेलन का खाना, शहर भर मे स्वागत द्वार और स्वागत , वाल राइटिंग, गाडियाँ इत्यादि सब मेरी जिम्मेदारी और बाकी लोग थैली के लिये धन एकत्र करे ।
इसके बाद मैं मंडल भर के सभी जिलो के दौरे पर निकल गया सभी जिला अध्यक्षो को बता कर और तब तक मंडल बटा नही था अलीगढ़ भी इसी मे था । सभी जिलो मे मैं सम्मेलन और थैली के लिये माहौल बनाने मे कामयाब रहा ।
सम्मेलन से दो दिन पहले से पूरे महात्मा गांधी मार्ग पर वाल राइटिंग मैने खुद भी किया ,खम्भो पर चढ़ चढ़ कर झंडे और बैनर मैने खुद भी बाधे ताकी कार्यकर्ताओ मे उत्साह रहे क्योकि वो धन का नही जन का जमाना था और राजनीती के ये सब काम कार्यकर्ता ही करते थे और हम जैसे लोग तो छात्र राजनीति से ही करते आ रहे थे ।
कार्यक्रम के एक दिन पहले कई दिनो से आता मुलायम सिंह जी का फ़ोन फिर आया कि अभी भी कार्यक्रम रद्द कर दीजिये फेल जो जायेगा और मैने कहा की आप ट्रेन पकड़ लो रात को सुबह मैं स्टेशन पर मिलूंगा ।
उस दिन सुबह 4 बजे मैने कार्यक्रम स्थल की व्यवस्थाये देखा और खुद मंच के पीछे का बडा बैनर टंगवाया और फिर स्टेशन रवाना हो गया । मुलायम सिंह जी और साथ मे आज़म खान साहब आये थे । अपनी योजना के अनुसार पहले स्टेशन के सामने किले के गेट पर अम्बेडकर मैदान मे बाबा साहेब अम्बेडकर की मूर्ति पर इन लोगो से माल्यार्पण करवाया और फिर सर्किट हाऊस पहुचा कर ये कह कर घर आ गया कि आप लोग तैयार हो जाइये और लोगो से मिलिये 10 बजे  निकलेंगे हम लोग ।
घर आया थोडी देर लेटा पर नीद कहा तो उठ कर नहा धोकर तैयार हो गया और 9,45 पर फिर सर्किट हाऊस पहुच गया ।
हम लोग बड़े काफिले के साथ वहाँ से निकले और महत्मा गांधी तथा अन्य महापुरुषो की मूर्तियो पर माल्यार्पण करते हुये काफिला महात्मा गांधी मार्ग पर निकला जिसपर समाज के सभी समाजो तथा धर्मो की तरफ से अलग अलग चौराहो पर स्वागत द्वार पर स्वागत हुआ तथा दो स्थानो पर मुलायम सिंह जी को सिक्को से तौला भी गया और जब हम लोग कार्यक्रम स्थल पर पहुचे तो बाहर ही बडा हुजूम था । अंदर गये तो एक एक सीट पर किसी तरह अटक कर दो दो लोग बैठे थे और सारी सीढियां ही नही बल्की मंच के सामने का खाली स्थान भी भरा था और मंच पर भी तिल रखने को जगह नही थी क्योकि सारे पूर्व और वर्तमान सांसद , विधायक , सभी प्रमुख पदाधिकारी तथा अध्यक्ष इत्यादि मंच पर आ गये थे और मेरे तथा पड़ोस मे रहने वालो के बच्चे भी जबकी मेरे प्रोफेसर पिता तथा पत्नी इत्यादि भी नीचे कार्यकर्ताओ मे बैठे थे ।
दो बात का जरूर उल्लेख करना चाहूँगा कि  मैने अपने कार्यकर्ताओ से कहा था कि जिसकी जहा जिम्मेदारी है वही रहेगा यहा तक की मुलायम सिंह भी सामने आ जाये तो नही हिलना है और बाद मे मैं सबको मिलवाउंगा और साथ फोटो भी करवाउंगा , दूसरा मैने ऐसी व्यव्स्था किया था कि पानी के लिये बस इशारा करिए आप तक पहुच जायेगा और खाने के समय भी सब अपनी जगह ही रहे वही अधिक से अधिक 15 मिनट मे सबको खाना और पानी मिल जायेगा और वही हुआ भी किसी कार्यक्रता ने अपना काम नही छोडा और सारा वितरण मेरी योजना अनुसार ही हो गया ।
मुलायम सिंह जी चाहते थे की अपने स्वागत भाषण और राजनैतिक भाषण के बाद कार्यक्रम का संचालन मैं ही करू पर मेरी ये कमी है की कोई जिम्मेदारी लेने के बाद उसके हर पहलू पर निगाह रखना तथा समय पर व्यवस्थित रूप से चीजो करवा लेना मेरी बेचैनी मे शामिल रहता है इसलिए भाषण के बाद और पूरे कार्यक्रम का ब्योरा देने के बाद मैने पूर्व सिचाई मंत्री बाबू राम यादव से संचालन का आग्रह किया और फिर बाकी सब व्यवस्थित करने मे लग गया जिसका जिक्र ही अखबारो ने किया की सी पी राय मंच पर रहने के बजाय लगातार भाग दौड करते रहे ,करता भी क्यो नही कोई बडी और प्रशिक्षित तथा संपन्न पार्टी तो थी नही ,साधन विहीन ,कमजोर पार्टी थी और आगरा मे सब नये नौजवान थे मेरे जोड़े हुये तो लगता था कही परेशान न हो जाये ।
हा दो दिन पहले लगातार 2/3 घंटे बैठ कर मैने राजनीतिक प्रस्ताव , आर्थिक प्रस्ताव इत्यादि लिख कर प्रिंट करने भेज दिया था और फ़ाईल और कार्यक्रम के पहले वाली रात कई लोग फाइल बनाने मे लगे रहे मेरे घर के बाहर बनी झोपड़ी मे बैठ कर जिसमे कुछ लोग बाद मे बहुत महत्वपूर्ण हो गये और मेरे प्रोफेसर पिता रात को उन सभी को बना बना कर ट्रे भर भर चाय पिलाते रहे और साथ बैठ काम भी करवाते रहे और घर के अंदर मेरी पत्नी और बच्चे भी क्योकि 5000 फाइल बननी थी ।
कार्यक्रम के प्रारंभिक औपचारिकताओ के बाद थैली भेंट होनी शुरु हुयी । वादा किया था कि 10 लाख की कोशिश होगी पर 5 तो होगा ही और भेट किया सब लोगो ने मिल कर 14 लाख जिसके लिये मैने पहले खरीदी अटैची जिसकी दुकान पास ही थी वापस भेज कर बडी अटैची मंगवाया और मथुरा के पंडित राधेश्याम शर्मा ने 50 ग्राम सोना भेट किया ।
दिनभर तमाम नेताओ का भाषण हुआ और अन्त मे मुलायम सिंह जी का नम्बर आया ।वो बहुत भावुक हो गये थे ऐसे स्वागत और कार्यक्रम से तो बोले कि मैं पहले भी कई बार आगरा आया हूँ , चौ चरण सिंह के साथ भी आया जब तीन विधायक थे तो कार्यक्रम रतन मुनी जैन इंटर कालेज मे हुआ था । मैं कल तक सी पी राय से कहता रहा की कैन्सिल कर दीजिये पर इनका आत्मविश्वास था और बोले की बस आप आ जाइये और आज सर्किट हाऊस से यहा तक हर चौराहे पर स्वागत हुआ । यहा भी इतनी भीड हो गई है को अंदर ,बाहर गैलरी और उसके बाहर का पंडाल भरा है और पहली बार मै ये देख रहा हूँ की बाहर वाले लोग भी सब लोग बाहर लगे टीवी पर सब कुछ देख और सुन रहे है । सी पी राय ने उतने अच्छे सब प्रस्ताव लिखे है और बहुत अच्छा सारा इन्तजाम किया है और अनुशासन के साथ सारा इन्तजाम ।
मेरी निगाह मे  यह कार्यकम भीड से ,प्रस्ताव से अनुशासन से , व्यव्स्था से और राजनीती के लिये सर्वश्रेष्ठ कार्यक्रम है और इसका श्रेय केवल सी पी राय को जाता है ।मैने सोचा था 5 लाख नही तो कुछ तो मिलेगा ही पार्टी चलाने को पर यहा तो 5 क्या 14 लाख रुपया और सोना भी मिला है । सी पी राय ने ये कैसे सम्भव किया इनसे बाद मे पूछूंगा पर पार्टी आज से फिर चल गयी और इसके लिये सी पी राय को याद रखा जायेगा ।
नेता के सामने भीड हो और सब अच्छा हो तो जोश तो आ ही जाता है ।जबरदस्त भाषण दिया मुलायम सिंह जी ने और उनके पहले आज़म खान साहब ने भी । काफी बडी संख्या मे नेता लोग बोले ।
सम्मेलन के बाद मैने सूर सदन के बाहर पोर्च से सार्वजनिक सभा को संबोधित करने का इन्तजाम पहले से ही कर रखा था तो मुलायम सिंह को पोर्च पर ले गया । ये बात उनको पहले से नही बताया था ।शाम करीब 5 बज रहा था एम जी रोड पर भीड का समय था और सभा के कारण बडा जाम लग गया ।
सभा के बाद मेरे निवास पर प्रेस से वार्ता और भोजन था । अपने निवास पर मैने कार्यकर्ताओ से उनको मिलवाया ।मुलायम सिंह जी गदगद थे और मेरे सभी कार्यकर्ता भी पर जब स्टेशन उनको छोड़ने गया अपने निवास से तब तक मेरे गले की आवाज मेरा साथ छोड चुकी थी पर तसल्ली इतनी थी की पार्टी को मैने फिर से रफ्तार दे दिया था धन से भी और आत्मविश्वास से भी और खासकर मुलायम सिंह जी का आत्मविश्वास लौट आया था जो बहुत जरूरी था और फिर हम लोग निकल लिये पूरे प्रदेश मे ।
मैने तो बस इमानदारी से अपना कर्तव्य निभाया था ।
कुछ छूट गया होगा तो वो आत्मकथा मे मिलेगा ।

गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

संगम इलाहबाद का

#जिंदगी_के_झरोखे_से

--जब सुबह जगा कर एडीएम साहब #संगम ले गए थे --

उस दिन सुबह संगम के दृश्य । 

न जाने कितनी बार आया था #इलाहबाद पर उस दिन सुबह उठ कर उगते हुए सूर्य की किरणों के साथ संगम जाना और वहा दो नदियो या कहे की दो संस्कृतीयो और दो बहनो गंगा और यमुना का मिलन देखना सचमुच बहुत सुखद अनुभूति रही ।
एक दिन पहले कलक्टर साहब से बात हुई थी तो बोले की संगम गए है या नही और नही कहते ही उन्होने फरमान सुना दिया की सुबह तैयार रहियेगा फला एडिएम साहब संगम प्रेमी है वो  आप को ले जायेंगे । मैं सोचने लगा कि कहा मेरे मुह से नही निकल गया , क्या सचमुच इतनी सुबह आ जायेंगे एडीएम साहब , ना आये तो अच्छा । पर वही हुआ सुबह ही करीब 4,45 पर एडीएम साहब ने सर्किट हाऊस जो कलक्टर साहब जो मेरे मित्र थे उन्होने ही बुक करवाया था के मेरे कमरे का दरवाजा खटखटा दिया और फिर उनके साथ गाडी पर संगम जाना ही पडा ( किसी मुसीबत की तरह जो मेरे चेहरे पर साफ दिख रही है फोटो मे , पर वहा पहुच कर थोडी देर बाद एहसास हुआ की सचमुच मैं आज के पहले एक बहुत अच्छे अनुभव और मनोरम दृश्य से वंचित था ) जहा एक शायद सरकारी वोट तैयार थी और ए डी एम साहब के कोई नीचे वाले कोई कर्मचारी पहले से ही पहुच कर तैयारी किये हुये थे ।
खैर --
सूरज उग रहा था और उनकी किरणे गंगा और जमुना के हरे और सफ़ेद पानी को सुनहरा बना रही थी ।क्या मनोहारी दृश्य था और इतनी सुबह की आस्था का सैलाब उमड़ा हुआ था ।ना जाने कितनी नावो में भरे हुए लोग इस ठिठुरती ठण्ड की परवाह किये बिना आये हुए थे की बिलकुल संगम स्थल पर ही आचमन लेंगे या डुबकी लगाएंगे ताकि ,जो भी उनकी मनोकामना या इच्छा हो । बहुत बड़ी संख्या में चिड़ियों को झुण्ड भी चारो तरफ कलरव कर रहा था ।मैं पूछ नहीं पाया की ये चिड़ियाँ  यहाँ स्थायी रूप से मौजूद रहती है या जाड़े में सूदूर बर्फीले इलाके से साइबेरिया इत्यादि से आई हुयी है इस वक्त ।ये जानकारी कोई दे सके तो आभार व्यक्त करूँगा ।
मुझे उस दिन पहली बार पता लगा की संगम के किनारे का किला अकबर ने बनवाया था ।कही नहीं वर्णन आ पाया होगा मेरे अध्ययन में ।अब जानना पड़ेगा की अकबर ने संगम को किला बनवाने को क्यों चुना और हर बात में विवाद ढूँढने वाले लोग  इसमें कोई विवाद नहीं ढूढ़ पाये क्या ।इस पर बाद में अध्ययन करने पर लिखूंगा ।
मेरे दो संस्कृतियो पर बहस छिड़ सकती है क्योकि दोनों  एक ही इलाके में है और मिलन के बाद तो बस गंगा बचती है और विलीन हो जाती है उसमे यमुना , सरस्वती कहां से निकलती है और कब विलीन हो जाती है रहस्य ही बना हुआ है ।
हां तो संस्कृति पर बहस की बात मैंने जान बूझ कर छेड़ा है । यद्यपि यमुना का हरा जल कुछ साफ़ दीखता है यहाँ पता नहीं कैसे जबकि इसके पीछे यमुना पूरी तरह गन्दी दिखती है लेकिन इस हरे रंग के किनारे की संस्कृति कुछ अलग है और उसका खुलकर वर्णन कर दूंगा तो विवाद बढ़ जायेगा । पर इस दो संस्कृति का मेरा आशय और अनुभव भी क्या है कभी लिखूंगा जरूर ताकि मेरी समझ भी साफ़ हो सके । हो सकता मैं जो समझ रहा हूँ उसमे कुछ पेंच हो या मेरे ही मन में किन्ही लोगो या घटनाओ के कारण कुछ खराश हो ।
गंगा का पानी सफ़ेद और कुछ मटमैला दीखता है संगम पर पर गंगा का किनारा पकडे हुए संस्कृति मटमैली नहीं दिखती ।
बताया गया की संगम पर गंगा और यमुना में भी एक युद्ध चलता रहता है । मैं कहूँगा की दो बहनो की आपसी अठखेली होती है या छेड़छाड़ । पर संस्कृति की बड़प्पन की लड़ाई भी हो सकती है ।
कभी गंगा यमुना को पीछे धकेल देती है तो कभी यमुना गंगा को, पर ये पता नहीं चलता की इस लड़ाई में सरस्वती की भूमिका क्या रहती है , तटस्थ एम्पायर या रेफरी की या बस मजा लेते हुए तीसरे व्यक्ति की ।
पर ये सच्चाई तो कबूल करना ही पड़ेगा की अंत में जीत जाती है गंगा और विलीन हो जाता है उसमे सब कुछ , अस्तित्व , संस्कृति , रंग , स्वाद और दोनों नदिया और फिर हथिनी की चाल से गौर्वान्वित चलने लगती है और गंगा भी विलीन हो जाने के लिए अपने से भी बड़े अस्तित्व में ताकि जीवन , मरण और फिर जीवन का चक्र पूरा हो सके ।
फिर समुद्र से भाप बन कर उड़ता है नया जीवन और नई तरह के जीवन बरस पड़ते है उससे जो फिर कही ताल तलैया , तो अलग अलग क्षेत्र में कोई गंगा , कोई यमुना , कोई राप्ती और कोई सरयू जैसा जीवन पाकर चलती रहे ताकि जीवो का जीवन चलता रहे ।
शायद मैं दर्शन से दर्शन की तरफ चला गया ।पर मुझे याद नहीं की इससे पहले उगता हुआ सूरज कब देखा था ।शायद जब कन्याकुमारी गया था नेता जी के साथ ।
इस सब दृश्य के बीच मोटर बोट मंथर गति से नदियो का सीना चीरती हुयी चली जा रही थी और वहां ले जाने वाले साथी वहां के बारे में , ऐतिहासिकता के बारे में और पुण्य के बारे में वर्णन करते जा रहे थे ।उन्होने आज बताया की यदि संगम नहीं आये तो सब तीर्थ बेकार है तो मन में बरबस आ गया की मैं तो कभी किसी मंदिर ही नहीं गया तीर्थ तो बड़ी बात है ,और तब तो यहाँ आकर भी मैं पुण्य का भागी नहीं बन पाया । वैसे ही शीत प्रकृति के कारण डुबकी लगाने का मतलब कुछ दिनों डॉ0 मित्रो की सेवा में रहना हो जाता पर दृश्य सचमुच ऐसा की मैं लिखे बिना नहीं रह सकता था । शायद ऐसे दृश्य ही लोगों को अपनी तरफ खींचते है और यही खिंचाव आस्था बन जाती है । अब तो साधन हो गए पर जब साधन नहीं रहे होंगे तब जो विलीन हो जाते होंगे इन दृश्यों के आगोश में वो स्वर्ग में जाने वाले और ईश्वर के बुलावे वाले वर्ग में शामिल हो जाते होंगे और जो वापस चले जाते होंगे घर वो ईश्वर की और संगम की कृपा से बच जाने वाले वर्ग में शामिल हो जाते होंगे और इसकी विषद व्याख्या अपने अपने जजमानों को सुनाने वालो की भी काफी तादात होती ही है ।
पर पुण्य मिले या न मिले क्योकि अभी तक कोई प्रमाणिक दस्तवेज और अध्ययन नहीं है जो साबित कर सके की पुण्य क्या है और किस किस को मिला तो क्यों और कैसे मिला और संगम में गहरी डुबकी मार कर भी जिन्हें नहीं मिला क्यों नहीं मिला ।
संगम पर ही जिंदगी जीने वाले मछुवारे ,नाव चलाने वाले और रोज नित्यकर्म से लेकर यही नहाने वाले तो पुण्य से मालामाल हो गए होंगे तो उनके जीवन में क्या विशेष है ये अध्ययन का विषय हो सकता है और शायद शोध से कुछ जानकारी मिले । फिर भी करोडो की आस्था का केंद्र है संगम तभी तो इतने कष्ट सह कर करोडो लोग यहाँ कल्पवास करते है और डुबकी लगाते है । आस्थाएं शायद लोगो को अतिरिक्त ताकत देती और भरपूर ऊर्जा भी ।
जी हां पुण्य मिले या न मिले पर उसी संगम के दर्शन कर लिए आज मैंने भी इतनी सुबह जाकर और इस सुबह जाने की मानसिकता और दबाव में पूरी रात नहीं सोकर तो इस कष्ट के लिए कुछ तो मिलेगा ही ।
पर ये सुबह का दृश्य की किसी भी मायने में कन्याकुमारी के सुबह के दृश्य से पीछे नहीं है और इसे सैलानियो को आकर्षित करने के लिए प्रचारित किया जा सकता था । उस दिन मुझे एहसास हुआ की मेरा प्रदेश किस कदर सुस्त ,दिशाहीन और संकल्पहीन है की राजस्थान अपनी रेट की मार्केटिंग कर लेता है ,कश्मीर , शिमला और अन्य अपनी बर्फ और ठंड, तमिलनाडु कन्याकुमारी का सूर्योदय जो ज्यादातर दिखता ही नही बादलो के कारण इसलिए कह रहा हूँ की जब मैं गया था मुलायम सिंह यादव के दौर मे  कन्याकुमारी तब रात भर जगा बैठा रहा बाल्कनी मे की कही सोता न रह जाउँ और सुबह बस हो गई बादलो मे छुपी हुई ,केरल से लेकर महाराष्ट्र तक समुद्र का किनारा ,तो चेरापूंजी अपनी बारिश और हरियाली ,भूटान सिक्किम मेघालय अरुणाचल अपने पहाड़ और दृश्य तो अमरीका तो बस यू ही किसी भी चीज पर मोटा टिकेट लगा कमा रहा है तो क्या चीज नही है उत्तर प्रदेश मे , साथ ही बिहार और मध्यप्रदेश इत्यादि मे भी , बस सैलानियो के लिए सुरक्षा का भाव अपराधियो और शोहदो से और पुलिस की लूट तथा कमाई के लिए परेशान करने वाली प्रवृति से , और अभाव है मार्केटिंग के लिए भाव , समर्पण ,इरादा और व्यव्स्था की ।
ले दे कर एक ताज महल, या बनारस का घाट भी कुछ लोगो को आकर्षित करता है ।
चलिये इस मुद्दे पर विस्तार से फिर कभी ।
बोलो गंगा मैया की जय (क्योकि जय केवल विजेता और शक्तिशाली की ही बोलने की परम्परा है तो मैं भी इस परम्परा को क्यों तोडू )।

सोमवार, 7 दिसंबर 2020

जिंदगी के झरोखे से 1980 बनारस

#जिंदगी_के_झरोखे_से   #1980_बनारस 

#लोकबंधु_राजनारायण_का_चुनाव_और_आरएसएस 

1980 , चौ चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री थे राजनारायण जी के कारण और राजनारायण जी यानी पुरे देश के नेताजी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे । चौ चरण सिंह ने राजनारायण जी को बनारस से लोकसभा का चुनाव लड़ने को कहा ।यदि जातिवाद मे यकींन करते नेताजी तो कई ऐसी सीट थी जहा से लड़ सकते थे और पूर्ण सुरक्षित सीट भी तय कर सकते थे पर अभी पिछ्ले चुनाव मे ही देश की ताकतवर प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी जी को चुनाव मे हराया था उन्होने तो मान लिया बात और वैसे भी बनारस उनका गृह जिला था पर ये दिक्कत थी कि कांग्रेस से वहा से पंडित कमलापति त्रिपाठी जी चुनाव लड़ रहे थे जिनकी नेताजी बहुत इज्जत करते थे (इस पर किस्सा अलग से बाद मे )
पर 
1980 के इस चुनाव की नौबत चौ चरण सिंह की सरकार से कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने के नाते आयी थी और उसके पहले जनता पार्टी टूटने की नौबत जनसंघीयो की दोहरी सदस्यता और आरएसएस के नाते आयी थी (इस सब पर भी विस्तार से अलग से बाद मे ) । उसी उठापटक मे नेताजी का निस्कासन और उनके समर्थन मे केन्द्र के कई मंत्रियो सहित 100 से ज्यादा सांसदो का इस्तीफा ,उनके द्वारा नेताजी यानी राजनारायण जी को अपना नेता चुनना और नेताजी द्वारा चौ साहब को नेता मानना और दो सांसदो को उनके पास भेजना ,तब चौ साहब का उप प्रधानमंत्री पद से स्तीफा और प्रधानमंत्री बनना इत्यादि अलग अलग लिखा जायेगा और ये भी कि दोहरी सदस्यता का सवाल उठाने और आरएसएस की भूमिका पर सवाल उठाने पर आरएसएस और उससे जुड़े लोगो ने किस कदर कमर के नीचे तक हमला किया लगातार और मुहिम चलायी राजनारायण जी के खिलाफ ये सब लिखूंगा अलग अलग हिस्सो मे ।
फिलहाल बनारस के चुनाव तक सीमित करता हू। राजनारायण जी का चुनाव करीब एकतरफा सा हो गया था उसी मे पहली घटना तो उस दिन हुयी जब चौ चरण सिंह बनिया बाग मे सभा करने आये और मंच से राजनारायण जी की तारीफ करते करते एक हल्का शब्द बोल गये पता नही जान बूझ कर या अनजाने मे जिसका विरोध भी किया मैने उनके मंच से उतरते वक्त और तब राजनारायण जी ने मुझे ज्यादा न बोलने को कह कर चुप करा दिया था ।
चुनाव जब सर्फ दो दिन रह गया था तो हम लोग शहर भर मे अन्तिम व्यवस्थाओ और जन सम्पर्क के लिए घूम रहे थे ।उस दिन शाम थोडी गहरी हो ही रही थी की अचानक नेकरधारी दिखने लगे शहर मे जगह जगह संख्या बहुत नही थी पर वो हर व्यक्ति को बस एक बात कह रहे थे की फैसला हो गया है कि बोट पंडित जी को देना है यानी कांग्रेस उम्मीदवार कमलापति त्रिपाठी जी को जबकी जनता पार्टी जिसके अध्यक्ष चंद्रशेखर जी थे और वर्तमान भाजपा यानी तत्कालीन जनसंघ उसी मे शामिल थी उसके उम्मीदवार जनसंघ के ही ओमप्रकाश सिंह थे जो बाद मे कई बार उत्तर प्रदेश में मंत्री बने भाजपा की सरकारो ने । लेकिन राजनारायण जी आरएसएस के निशाने पर थी और उनके निशाने पर आरएसएस और आरएसएस ये समझ चुकी थी कि जिस आदमी ने कभी डरना और झुकना नही सीखा और तय कर लिया की कांग्रेस को हराना है तो इन्दिरा गांधी जैसी नेता को पहले कोर्ट मे हरा दिया और फिर जनता की अदालत मे भी और ये आदमी अगर मजबूत रह गया तो आरएसएस को कही का नही छोड़ेगा और देश के सामने नंगा कर देगा उनका सिद्धांत और इरादा और फिर उस फकीर आदमी की देश मे विश्वस्नीयता भी जबरदस्त थी ।
कई जगह ये दृश्य देखने के बाद मैं थोडा विचलित हुआ और भाग कर उनके पास पहुचा और उनको बताया की आरएसएस तो अपने उम्मीदवार को हरा कर भी आप को हराने के लिये पंडित जी को वोट डालने की अपील कर रही है और अगर 25/30 हजार वोट भी इधर उधर हो गया तो मुश्किल होगी क्योकि काँटे की टक्कर है ।
नेताजी थोडा सा विचलित हुये पर फिर तुरंत बोले कि ये आप लोग बाहर किसी और से और खासकर अपने कार्यकर्ताओं से मत कहना और जाओ अपना अपना काम करो ।
और नेता जी चंद हजार वोट से चुनाव हार गये ।
लिखने का मकसद चरित्र की व्याख्या करना है ।
बाकी किस्सा अगली कडियो मे और इस चुनाव के दृश्य भी अगली कडियो मे ।