#जिंदगी_के_झरोखे_से
#क्या_आप_को_पता_है
कि
#अटल_बिहारी_वाजपेयी_सरकार को #मैने_मजबूर_किया_था #शहीदो_के_परिवारो_को_दिया_नोटिस_वापस_लेने और बाकी #वादे_पूरा_करने_को ?
नही न !
#कारगिल के #शहीदो के #परिवारो को मिलने वाले 10 लाख पर 33% आयकर जमा करने का नोटिस भेजा था अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने और बाकी जो शहीदो को मिलता है उस पर चुप्पी साध ली थी ।
और
आगरा मे भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार और पकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ के बीच वार्ता होने का एलान हो चुका था कारगिल के जख्मो के बाद जिसमे पाकिस्तानी फौज हमारी जमीन पर आकर बैठ गई थी और उस सरकार को पता ही नही चला । वो तो उस इलाके के किसी ने पास की छावनी को बताया तब मालूम पडा ।
फिर हमे अपने सैकड़ो जवान की शहादत देकर अपनी जमीन वापस मिली ।ये अलग बात है की भाजपा सरकार ने उसका भी जश्न मनाया ।
खैर उसके बाद ये वार्ता तय हो गई थी ।
शहीदो के परिवारो को तत्काल 10 लाख रुपया मिलता था और पेट्रोल पंप तथा निवास ।
कारगिल युद्द मे आगरा के भी कई जवान शहीद हुये थे । शहीदो के परिवार ताजमहल वाले इलाके मे रह रहे थे और कुछ अपने गांवो मे ।
चूँकि मैं बहुत ज्यादा सक्रीय रह्ता था इसलिए एक दिन एक परिवार की मुझे खबर मिली की वो लोग बात करना चाहते है । मैं मिलने गया तो उन लोगो ने अपना दुख बताया की देखिये सब कुछ हमारा चला गया पर अब 10 लाख का 33% आयकर जमा करने का नोटिस आ गया है और बाकी जो वादे किये गये उसमे से एक भी पूरा नही किया सरकार ने ।
मैं बात कर चला आया और फिर अपने सम्पर्को से अन्य जगह के शहीदो की स्थिति को भी पता किया तथा आयकर विभाग के बड़े अधिकारी से भी बात किया ।
उसके बाद आगरा के बुद्धिजीवियो , लेखक कवियो , शिक्षको तथा पत्रकारो को पूरी बात बताया और साथ ही हिंदुस्तान के वर्तमान समूह संपादक शशिशेखर जी जो उस वक्त आजतक मे बड़े पद पर थे उनको भी अपने कार्यक्रम की जानकारी दिया और उन्होने इस मुद्दे को पूर्ण समर्थन दिया ।
बस वो 8 तारीख थी यानी वाजपेयी मुशर्रफ वार्ता से 7 दिन पहले हम लोग आगरा के शहीद स्मारक से निकल पड़े जुलुस की शक्ल मे करीब 20 फुट लम्बा बैनर लेकर महात्मा गांधी मार्ग पर । जुलुस मे आगे मेरे साथ शहीदो की पत्नियाँ थी और कई प्राचार्य , पूर्व कुलपति, शिक्षक , कवि लेखक नाट्यकर्मी और काफी पत्रकार भी और बैनर था मेरी संस्था पहचान का ।तब की भाजपा सरकार भी इतनी लोकतान्त्रिक थी की मुकदमे कायम नहीं किया तथा हमें जुलुस भी निकालने दिया तथा जिलाधिकारी कार्यलय पर भाषण भी करने दिया और एक बड़े अधिकारी न इ हमारा ज्ञापन भी लिया और इसी कार्यक्रम में नहीं बल्कि आये दिन हम लोग उस कार्यलय या कमिशनर के कार्यालय पर धरना भाषण कर लेते थे और ज्ञापन देकर शांति से वापस चले जाते थे |
उस दिन दिल्ली से आज तक की एक टीम आगरा आ गयी थी और हमारा पूरा कार्यक्रम उन्होंने कवर किया | जिलाधिकारी कार्यालय पर जहा हमारा जुलुस समाप्त हुआ आज तक की टीम ने हमारा भाषण और इंटरव्यू रिकोर्ड किया और उसे अगले २४ घंटे तक अपने समाचार में दिखाया | मैंने उस दिन कुछ मांगे रखा था | पहली मांग थी की कारगिल के शहीदों की पत्नियों को दिया गया आयकर का नोटिस वापस हो और आगे भी उन्सेक आयकर न माँगा जाये .उनका हक़ यानि रहने को घर तथा मिलने वाला पेट्रोल पम्प तत्काल दिया जाए और अगर ये सब नहीं हुआ तो प्रधानमंत्री बिहारी वाजपेयी जी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ के बीच होने वाली शिखर वार्ता के दिन हम फिर जुलुस लेकर निकलेंगे | साथ ही दो मांगे मैंने मुशर्रफ जी से भी कर दिया था | पहली की जब वो भारत से वार्ता करने आ रहे है तो कारगिल के लिए खेद व्यक्त कर के आये और दूसरी की जो भारत के युद्ध बंदी १९६५ और १९७१ से पाकिस्तान की जेल में बंद है उन्हे छोड़ कर आये और इसपर भी मैंने कहा था की मुशर्रफ ने ये मांगे नहीं माना तो १५ को ठीक वार्ता के समय हम लोग उसी क्षेत्र मेर कही से विरोध में निकलेंगे |
आज तक ने हमारा मुद्दा इतना उठा दिया था शशिशेखर जी के कारण की शहीदों की पत्नीयो की मांग अगले ४८ घंटे में ही मान ली गयी | पहला अभियान हम जीत चुके थे | ये जीत उन शहीदों की पत्नियों की थी ,आगरा के उस बुद्धिजीवी समाज की थी जो मेरे साथ खड़ा हुआ था और आजतक सहित उन सभी मीडिया के साथियो की थी जिन्होंने इस पवित्र काम को पूरा सम्मान दिया था |
पर अभी कहानी बाकी थी जो अगले एपिसोड में है |
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