ऐसे लोगो को क्या कहेंगे जो जब हमारी सजपा सरकार थी दिल्ली में और उत्तर प्रदेश में 1989/90 में तो हम कहते थे की मंदिर दो ही तरीके से बन सकता है की या तो:: दोनों पक्ष सहमत हो जाये ::या फिर;: अदालत और कानून तय कर दे;; ,उस वक्त कहते थे की ये कानून और अदालत का सवाल नहीं आस्था का सवाल है । हम अभी मंदिर बनायेंगे नहीं तो दंगा करवाएंगे , और उत्तर प्रदेश को तो बर्बाद कर ही दिया ,पूरे देश को दंगे की आग में झोंक दिया ।
चन्द्रशेखर जी के प्रधानमन्त्री रहते आपसी बातचीत मे ऐसा ही फार्मूला तय हुआ था और मुस्लिम पक्ष सहमत था तो क्षद्म हिन्दू ये कह कर गये कि अभी राय कर के आते है और भाग गये क्योकी इरादा राम मंदिर नही था सत्ता थी ।
जब अटल की सरकार आई तो अडवाणी बोले की एक मंदिर के लिये सरकार नहीं गँवा सकते और पूरी पार्टी ,साधू संत और संघी सब यही बोलने लगे ।
शहीद के ताबूत में पैसे खाने से लेकर सारे सरकारी संसथान औने पौने में बेचने से लेकर संसद से कारगिल तक देश को देने से लेकर आतंकवादी को सैकड़ो करोड़ रूपये के साथ कंधार पहुँचाने तक सब करम कर दिया देश के साथ ।
फिर हमारी सरकारों में अयोध्या पर आक्रमण किया ।
जब फिर इनकी सरकार बन गयी तो सारे मिल कर फिर अलापने लगे की पहले सरकार का मज़ा लेंगे ।राम जी आप विश्राम करो सरकार जाने के बाद आप के लिए मुहूर्त तय करेंगे ।
तब न आस्था का सवाल था और न तुरंत मंदिर बनाने का सवाल था,बोले अदालत ही तय करेगी और अदालत ने तय कर दिया तो उसका भी श्रेय लेने लगे कि उनकी वजह से फैसला हुआ ।
क्या कहना चाहिए ऐसे ढोंगियो को और इनके भ्रष्ट समर्थक ढोंगियो को ???
प्लीस भक्तगण यहाँ प्रलाप न करे वर्ना मुह दिखाने लायक नहीं छोडूंगा ।
धर्म को अगर राजनीती से जोड़ा जायेगा
बस्ती बस्ती अश्वमेघ का घोडा जायेगा
रामराज्य स्थापित करने वालो से पूछो
क्या सीता को फिर वन में छोड़ा जायेगा ।
जय हिन्द ।
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