रविवार, 21 अप्रैल 2024

ज़िंदगी_के_झरोखे_से

#ज़िंदगी_के_झरोखे_से 

#नेताजी यानी स्व मुलायम सिंह यादव जी ने एक दिन ये किस्सा सुनाया था । सुनाए तो बहुत से इस दिनों पर फिलहाल शुरुवात इस किस्से से ---

एक तथाकथित ईमानदार ,महान बड़े नेता है । उन्होंने प्राइवेट मेडिकल कालेजों द्वारा खूब आरती कबूल किया ।
एक दिन नेता जी ने पूछ लिया कि बहुत बदनामी हो रही है तुम्हारे कारण ।
साहब शाम को नेता जी से मिलने पहुंचे और थोडी देर में बात कर चले गए ।
नेता जी की निगाह उस साहब के सोफे के बगल में पड़ी तो वहा वो एक बैग छोड़ गए थे ।
नेता जी ने अपने पीए से पूछा तो पता लगा कि ईमानदार साहब छोड़ गए है आरती । 
नेता जी ने तुरंत बैग गाड़ी में रखवाया और पहुंच गए ईमानदार जी के घर और खूब लानत मलानत किया कि तुम्हारी इतनी हैसियत की मुझे खरीदोगे इत्यादि इत्यादि ।
और 
उसके बाद ईमानदार साहब ने ईमानदारी के जो जो गुर दिखाये वो तो दुनिया ने देखा ।
( किसी का नाम नही लिखा मैने पर नेता जी की इच्छा पूरी करने का प्रारम्भ भर किया है ) 
नाम लेना तो बिना पढ़े लिखे का काम है ।

बुधवार, 17 अप्रैल 2024

भगवती सिंह जी नही रहे

भगवती सिंह जी नही रहे 
आज मुलायम सिंह यादव जी के यहाँ से फ़ोन से दुखद खबर मिली कि ड़ा लोहिया के साथ काम किए हुए , लोकबंधु राज नारायण के सहयोगी रहे और मुलायम सिंह के साथी रहे मेरे लिए बड़े भाई सामान भगवती सिंह जी का आज निधन हो गया ।
मेरी उनसे पहली मुलाकात राज नारायणजी के साथ हुयी थी और फिर जनेश्वर जी के यहा तो होती ही रही ।90 के दशक मे इनके साथ पार्टी का प्रदेश महामंत्री रहने का सौभाग्य भी मिला जब मुलायम सिंह यादव जी मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनो थे ।
भगवती सिंह जी कई बात मंत्री रहे , सांसद रहे पर उससे भी ज़्यादा उनको उनके संघर्षों के लिए याद किया जाएगा । जेल यात्रायें क्या गिना जाए उनके शरीर के हर हिस्से पर पड़ी पुलिस की लाठियों की चोट भी गिनना मुश्किल है । 
लखनऊ के बहुत ही लोकप्रिय नेता था भगवती सिह जी और पूरा जीवन बिलकुल बेदाग़ रहा ।
लखनऊ की बहुत ही महत्वपूर्ण संस्था चंद्र भान गुप्ता ट्रस्ट के लगातार अध्यक्ष रहे है भगवती सिंह जी जिसके स्कूल कालेज लाइब्रेरी इत्यादि है पर कभी किसी ने उनपर सवाल नही उठाया ।
उन्हें समझने के लिए एक घटना काफ़ी है जब लखनऊ में आयोजित एक प्रदर्शन के लिए मुझे प्रभारी बनाया गया था पर भगवती सिंह जी के होते मैं आगे रहता इसका सवाल ही कहा उठता था । वहाँ आयी मीडिया ने जब भगवती सिह जी से बात करना चाहा तो उन्होंने इनकार कर दिया और पास खड़े लोगों से पूछा सी पी राय कहा है , ये उनका काम है ,और मीडिया के लोगों से बोले की आप लोग सी पी राय से बात करिए । मुझे आवाज लगायी गयी और फिर साथ खड़े होकर बात हुयी । 
उनके संघर्षों को लिखने और उनका वर्णन करने के लिए कई किताबें लिखनी पड़ेगी ।
एक बार वो वन मंत्री थे ।मेरे साथ एक बहुत ही गरीब कार्यकर्ता रहता था जो बाद में तो कंधे पर चढ़ कर बहुत बड़ा आदमी हो गया उसके भाई के लिए मैंने आग्रह किया भगवती सिह जी ने थोड़े ही दिन में उसे गार्ड बना दिया । 
भगवती सिह जी ड़ा लोहिया की शायद आख़िरी कड़ी थे । वो ख़ुद में असली समाजवाद के चलते फिरते विश्व विद्यालय थे और उनके समाजवादी सोच और संघर्ष दिखता था ।वो ड़ा लोहिया के जेल फावड़ा वोट के सच्चे प्रतिनिधि थे ।
उन्होंने अपने आत्मसम्मान से कभी समझौता नही किया । एक बार हम दोनो एक ही समय पर मुलायम सिंह जी के घर पहुँचे । दोनो को ही वहाँ से फ़ोन आया था । पहुँचने पर बताया गया कि अभी मुलाक़ात नही हो पाएगी । भगवती सिंह जी ने जगजीवन से कहा की मुलायम सिंह ने ख़ुद फ़ोन किया था आने को ( मुलायम सिंह जी अक्सर अपने ख़ास लोगों को सीधे ख़ुद फ़ोन मिला लेते थे ) तो ठीक है मैं घर जा रहा हूँ उन्हें बता देना और मुझसे बोले आप चाहो तो इंतज़ार कर लो तब तक जगजीवन चाय पिलाएगा , और तुरंत वापस चले गए । 
पर पिछले सालो में नकली समाजवादियों ने उनकी बहुत उपेक्षा और बेक़दरी किया जो आज शायद नकली हमदर्दी जताने उनके घर अवश्य पहुँचेंगे ।
बड़े भाई भगवती सिंह की कमी पूरी नही की जा सकती है । आज अंतिम (सांकेतिक संस्कार होगा क्योकी उन्होने देह दांन कर दिया है ताकी उनके अंग शायद किसी के काम आये और शरीर चिकत्सा के छात्रो के पढ़ने के काम आये ) समय हाज़िर हो अंतिम दर्शन से तो वंचित रह गया हूँ पर शीघ्र उस घर हाज़िर होऊँगा जहाँ महत्वपूर्ण मंत्री रहने पर भी कभी आने के लिए पूछना नही पड़ा और इंतज़ार नही करना पड़ा । राज नारायण जी जनेश्वर मिश्रा जी ,रमाशंकर कौशिक,मोहन सिह और ब्रजभूषण तिवारी के बाद जहाँ मेरा सचमुच वाला आख़िरी शुभचितंक चला गया वही समाजवादी आंदोलन की सचमुच वाली आख़िरी मशाल भी बुझ गयी ।

                                                 प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति होने का मतलब 

                                                                                                                   डॉ सी पी राय 

                                                                                            स्वतंत्र राजनैतिक चिन्तक एवं  स्तंभकार 

---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

                             काफी वर्षों के बाद  एक परिपक्व और बहुत ज्यादा अनुभवी ,ज्ञानी और सर्वस्वीकार नेता 
भारत के राष्ट्रपति बने है । पिछले इतने सालों में जब से भी ज्यादातर  लोगो राष्ट्रपति चुनाव याद हो मुझे नहीं लगता की लोगो को इस तरह का दृश्य याद होगा की राष्ट्रपति का चुनाव इतना चर्चित हुआ हो ,इतना विवादित करने की कोशिश की गयी हो और चुनाव के बाद वैसे दृश्य देखने को मिले हो जो देश के आम चुनाव में दिखते है । सडकों पर खुशियाँ मनाते ,नाचते गाते और मिठाइयाँ बाँटते ,पटाखे छोड़ते इतनी बड़ी संख्या में लोग शायद पहले कभी याददाश्त में दिखलाई नहीं पड़े । पर दुसरे प्रत्याशी और कुछ अन्य लोगो ने इतने बड़े पद की गरिमा के साथ जो खिलवाड़ किया वो भी यद् नहीं आता है । पर दलों की सीमायें टूटी ,यहाँ तक की जो लोग राजनीतिक मजबूरी के कारण वोट खिलाफ डाल रहे थे उनमे से भी बड़ी संख्या में लोग प्रणव जी की जीत भी चाहते थे और कई अवसरों पर उनकी प्रशंसा भी कर चुके थे और चुनाव से पहले ही उन्हें बधाई भी दे चुके थे । 

                              पर प्रणव मुखर्जी जी में कुछ तो है जो औरों से अलग है ,उन्हें औरों से अलग करता है । क्या किसी को याद है की पहले किस राष्ट्रपति का चुनाव होते ही बड़े बड़े लोग एक साथ उनके घर पहुंचे हो और बाकायदा मीडिया ने उसे दिखाया हो । याद करना पड़ेगा की इससे पहले किस राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण से लेकर उनका हर कार्य पूरे समय देश भर देखा और दिखाया गया हो । ऐसा लग रहा था की  सचमुच कोई रास्त्राध्यक्ष सामने आया हो । सच कहता हूँ मुझ जैसे लोगो को भी आत्मसम्मान की अनुभूति हो रही थी आज और लग रहा था की देश को कोई दिशा देने वाला मिल गया । संवैधानिक मजबूरियां अलग जगह है पर जब किसी जिम्मेदार पद पर कोइ सचमुच  योग्य और असरदार व्यक्ति आ जाता है तो उसकी आभा बहुत सी चीजों को खुद रास्ते पर ले आती है ।शायद इसी की उम्मीद ये महान भारत महामहिम प्रणव मुखर्जी से भी लगा बैठा है ।इसिलए पूरा देश शामिल था इस चुनाव में ,इसके परिणाम में और इसके जश्न में ।

                            सवाल ये है की प्रणव मुखर्जी के कारण क्या बदल सकता है देश में ,व्यवस्था में और उनके अंदर क्या विशेषताएं है जो देश को, देश के लोगो को, समाज को ,सरकार को प्रभावित कर सकती हैं ।

               

 

लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश किधर खड़ा होगा

देश के लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्योहार लोकसभा चुनाव होता है और उसका बिगुल बज चुका है । देश में राजनीतिक , लोकतांत्रिक सत्ता का उत्तर प्रदेश सबसे बडा भागीदार प्रदेश है जहा की 80 सीट देश का भाग्य तय करती है इसीलिए कहां जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर जाता है । आज तक देश के कुल प्रधामंत्रियो आधे केवल उत्तर प्रदेश से हुए है । पिछले दो चुनाव में उत्तर प्रदेश ने भाजपा के लिए संजीवनी और आधार का काम किया और उसकी सरकार बनी तथा उत्तर प्रदेश के बनारस से सांसद लगातार दो बार से प्रधानमंत्री है । इस बार भी सभी दलों तथा राजनीतिक विश्लेषकों की निगाह उत्तर प्रदेश पर ही है । उत्तर प्रदेश इस बार बहुत खामोश है और ये खामोशी ही सभी दलों को बेचैन किए हुए है । राजनीतिक पंडितों का मानना है की अगर मतदाता का रुझान सत्ता की तरफ होता है तो वो चुनाव शुरू होने के साथ ही दिखाई देने लगता है और ज्यों ज्यों चुनाव उठान लेता है सत्ता समर्थक मतदाता ज्यादा मुखर होता जाता है और इस बार वो या तो खामोश है या फिर अलग अलग खांचे में सत्ता से जुड़े प्रत्याशियो के प्रति नाराजगी व्यक्त कर रहा है । 
भाजपा ने अपने काफी सांसदों को फिर से टिकेट दे दिया है जिसमे से अधिकतर सांसद चुनाव जीतने के बाद लौट कर अपने क्षेत्र में गए ही नही या फिर जिस केंद्रीयकृत तरीके से भाजपा की सत्ता चल रही है और उसमे केंद्र तथा प्रदेश के चंद लोगो को छोड़ कर किसी की प्रभावी भूमिका नही है यहां तक की मंत्री सांसद और विधायक का अधिकारी या दरोगा फोन तक उठाने की जहमत नहीं करते तो वो लोग जनता या कार्यकर्ता की किसी भी तरह आवश्यक मदद करने में असफल रहे है और इसलिए भी लोगो से कटे रहे है । इसके परिणाम स्वरूप उन सभी प्रत्याशियों का क्षेत्र में जबरदस्त विरोध है और वो विरोध काफी जगह मुखर होकर प्रकट भी हुआ है । एक दूसरा विरोध जो बड़े पैमाने पर अभी हाल में दिखा की सहारनपुर में क्षत्रीय समाज ने विशाल सम्मेलन किया और उस सम्मेलन में भाजपा का विरोध करने का फैसला किया जबकि क्षेत्रीय समाज के ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी भी है । कुछ राजनीतिक पंडित मानते है की अज्ञात कारणों से एक हवा चल गई है की यदि केंद्र में दुबारा मोदी जी की सरकार आ गई तो उस सरकार में न तो राजनाथ सिंह जी के लिए स्थान होगा और न गडकरी जी के लिए और उससे भी ज्यादा ये चर्चा बड़े पैमाने पर है की उस स्थिति में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को भी मोदी जी और अमित शाह तुरंत हटा देंगे क्योंकि योगी जी इन लोगो के सामने मजबूत विकल्प बन कर उठ खड़े हुए है । इस अफवाह का असर भी मतदाता के एक बड़े वर्ग को प्रभावित करता हुआ दिख रहा है है । 
कोई भी सरकार हो जब वो लगातार दस वर्ष रह लेती है और सत्ता पाने से पहले उसने तमाम वादे किए होते है तो एक बार सत्ता रहने के बाद जनता दुबारा सत्ता इस बात के लिए सौंप देती है की जो कहा था अगर नही कर पाए तो एक बार और मौका देना चाहिए पर दुबारा सत्ता देने का फैसला करते वक्त मतदाता पिछले दस वर्ष को तौलता है , पुराने सभी वादों को याद करता है , ये सारा आने से पहले वाली परिस्थिति को याद करता है और याद करता है की इस पार्टी और नेता को उसने सत्ता किन कारणों और किन आकांक्षाओं के कारण सौंपा था तथा इन दस वर्षो में सचमुच क्या हुआ ,उसकी आकांक्षाओं का कितना हिस्सा पूरा हुआ या नहीं हुआ तथा ये भी याद करता है की पूर्व में जिस सत्ता को उसने बदला था वो क्यों बदला था और वो सत्ता कैसी थी ,क्या क्या किया था उस सत्ता ने और उस सत्ता पर जो आरोप लगे थे उसमे से क्या सही या गलत साबित हवा।।
इस बार के चुनाव को अचानक उठ खड़े हुए इलेक्टोरल बॉन्ड के बवंडर ने भी ग्रहण लगा दिया है और इसके उजागर होने के बाद पी एक केयर फंड को लेकर भी शंका के बदल घुमड़ने लगे है । ऐसे ही जनता जो खुद रोज भोग रही है इसकी तीस भी चीख बन कर सत्ता के कानो में हथौड़े की तरह प्रहार कर रही है । ऐसा देख गया है की जब भी कोई भी सत्ता नौकरशाही और व्यवस्था को सारी ताकत सौप कर खुद को सुरक्षित समझने लगती है दर असल तभी वो ज्यादा असुरक्षित हो जाती है क्योंकि राजनीति नेता या कार्यकर्ता कैसा भी हो उसको जनता का लिहाज करना ही होता है और दरवाजे पर आ गए व्यक्ति के लिए निकलना ही होता है चाहे वो कितनी भी दुरूह परिस्थिति का शिकार हो जबकि नौकरशाही के साथ ऐसी कोई मजबूरी नही है की वो जनता के साथ क्या व्यवहार करे जिसका दुष्परिणाम हर बार हर सरकार को भुगतना पड़ता हैं। वही स्थिति इस बार भाजपा के लिए भी नासूर साबित होती दिख रही हैं।।
उत्तर प्रदेश में कैराना में इकरा हसन , सहारनपर से इमरान मसूद , आजमगढ़ से धर्मेंद्र यादव , बदायू से शिवपाल यादव के पुत्र , मैनपुरी से डिंपल यादव , बांदा से शिवशंकर पटेल , बिजनौर से यशवीर सिंह , ,हाथरस से जसवीर बाल्मिकी,  फतेहपुर सीकरी से भाजपा विधायक चौधरी बाबू लाल के पुत्र रामेश्वर सिंह , अलीगढ़ से बृजेंद्र सिंह, लालगंज से दरोगा सरोज ,मछली शहर से तूफानी सरोज, फर्रुखाबाद से डा नवल शाक्य , फिरोजाबाद से अक्षय यादव , बरेली से प्रवीण सिंह ऐरन, मुजफ्फर नगर में हरेंद्र मलिन ,रामपुर लोकसभा के विपक्षी प्रत्याशी , अमरोहा में दानिश अली ,कानपुर में आलोक मिश्र , उन्नाव में अनु टंडन,जयपुर में अफजाल अंसारी, अंबेडकर नगर में लालजी वर्मा,गोंडा में श्रेय वर्मा , घोसी में राजीव राय , बासगंव में सफल प्रसाद ,बस्ती में राम प्रसाद चौधरी , संभल में जियाउर्रहमान वर्क सहित , मुलायम सिंह यादव के परिवार वाली अन्य सीट तथा अमेठी और रायबरेली सहित करीब 45  सीटे ऐसी है जो भाजपा के लिए कठिन डगर साबित हो रही है और ये विपक्षी उम्मीदवार चुनौती देते दिख रहे है तो भाजपा के नाराज लोग भीतरघर करते हुएं भी दिखलाई पड़ रहे है । यहां ये गौर करने की बात है की जहा 2014 में भाजपा 71 सीट जीती थी वही 2019 में पुलवामा और बालाकोट की लहर के बावजूद उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीट घाट कर 62 हो गई थी तो इस बार तो कोई भी लहर नही हैं जिसके कारण लगता है की मतदाता ने खामोशी बरतते हुएं मतदान के दिन ही फैसला सुनाने का निश्चय कर लिया है ।
राजनीतिक पंडितों की भविष्यवाणियां और समीक्षकों की समीक्षा तथा एग्जिट पोल करने वालो को अक्सर मतदाता झुठलाता हुआ भी दिखता रहा है । इस बार खामोश मतदाता अपने लिए ओर भारत देश के लिए क्या भविष्य बुन रहा है जब तक ई वी एम का गिनती वाला आखिरी बटन नही दब जाता तब तक तो भविष्य के गर्भ में है और उसे जानने के लिए हमे भी 4 जून का इंतजार करना होगा और उसका इंतजार भविष्य को भी है और भारत में रुचि रखने वाली दुनिया में भी । 

डा सी पी राय
वरिष्ठ पत्रकार
एवं राजनीतिक विचारक 

बुधवार, 3 अप्रैल 2024

क्या मंहगा चुनाव लोकतंत्र पर बोझ है

2024 के लोकसभा चुनाव की घोषणा भी हो चुकी है और प्रथम चरण के पर्चे भी भरे जा चुके है । सभी प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार जोरों पर है और खर्च भी बेतहाशा हो रहा है । इस चुनाव में कुल  करीब एक लाख बीस हजार करोड़ रुपया खर्च होने का अनुमान लगाया जा रहा है जो इससे कही अधिक भी हो सकता है । इसके मुकाबले 2019 के चुनाव में अनुमानतः कुल 60 हजार करोड़ रुपया खर्च हुआ था जो तब तक का सबसे महंगा चुनाव माना गया ।  जबकि 2014 में कुल 9357 करोड़ रुपया खर्च हुआ था और 2009 में केवल भाजपा ने 448 करोड़ रुपया तथा कांग्रेस ने 343 करोड़ रूपया खर्च होना बताया था बाकी सब दलों के तथा अन्य खर्च अतिरिक्त है । 1951/52 के 10 करोड़ खर्च के मुकाबले ये खर्च तेजी से सुरसा की तरह बढ़ता जा रहा है जो देश के हालात , लोकतंत्र और चुनाव की शुचिता तथा चुनाव खर्चों की चिंता करने वालो को उद्वेलित कर रहा है ।
चुनाव इतना महंगा कैसे हो गया ?  कितना महंगा और आम आदमी की पहुंच से दूर ? कब से महंगा हुआ ये  सब सबके सामने है । अब तो चुनाव आयोग ने ही प्रत्याशी का खर्च 70 लाख कर दिया है और पार्टी द्वारा किया जाने वाला खर्च अलग । वर्तमान में कई चुनाव लडे हुए साथियों से जब खर्च पूछा तो चौकाने वाली चीजे सामने आई । समाज में एक बहुत प्रतिष्ठित दंपत्ति ने बड़े शहर से मेयर का चुनाव लडा जब उनसे बात किया तो तो उन्होंने बताया की दोनो की जमा कुल पूजी 35 लाख खर्च हो गए और चुनाव हार गए यदि 1 करोड़ होता तो चुनाव लडा जा सकता था । बाकी साथियों ने बताया की काम से 2 करोड़ रुपया चाहिए लोकसभा में सामान्य चुनाव लड़ाने के लिए और जीत के लिए ये आंकड़ा 5 से 10 करोड़ और उससे अधिक पर पहुंच जाता है । उन लोगो ने ही बताया कि लोकसभा चुनाव में हर ब्लॉक में कम से कम दो गाड़ी चलाना होता है और एक क्षेत्र में 15 से 18 तक ब्लॉक होते है तो कम से कम 30 से 45 तक गाड़ी का खर्च कम से कम 2 लाख रुपया प्रतिदिन होता है । प्रत्याशी , चुनाव एजेंट तथा अन्य सहयोगियों की भी कम से कम 5 से 10 तक गाड़ी चलती है । हर ब्लॉक पर कम से कम एक कार्यालय चलता है जिसका खर्च 5 से 10 हजार प्रतिदिन होता है । केंद्रीय कार्यालय का खर्च भी 10 हजार प्रतिदिन होता है।।लोगो का प्रतिदिन खाना पीना और चाय पानी का खर्च । लोकसभा क्षेत्र में 50/60 छोटी सभाएं 5/10  हजार प्रति के हिसाब से और 15/20 बड़ी सभाएं ब्लॉक मुख्यालय पर 10/20 हजार प्रति कम से कम और किसी बड़े नेता की एक रैली 5 से 10 लाख तक । इसके अलावा हर गांव में चुनाव से एक दिन पहले 5 से 10 हजार खाना पीना का खर्च और वोट के ठेकेदारों को 500 से 1000 तक प्रति वोट दिलवाने का तथा अंत में 2500 के आसपास बूथ के लिए दिए गए बस्ते में 1000 प्रति बस्ता और वोट की गिनती का खर्च । इसके अलावा हैंड बिल ,पोस्टर पर्चा और बहुत कुछ जैसे सोशल मीडिया , स्थानीय अखबार इत्यादि में विज्ञापन । हिसाब लगाया जा सकता है की प्रत्याशी के स्तर पर कितना खर्च होने लगा है और पार्टी के स्तर पर होने वाला खर्च अलग है ।
जरा देख लेते है की एक सांसद को कुल कितना पैसा मिलता है । सांसद को 1 लाख रुपए तनख्वाह मिलती है तो 60 हजार रूपए कार्यालय भत्ता मिलता है और 70 हजार रूपए क्षेत्र का भत्ता मिलता है । दिल्ली में सभी सांसद दो व्यक्ति रख सकते है जिनके लिए 60 हजार रुपया मिलता है । जो संसद संसद की गतिविधियों में ज्यादा सक्रिय रहना चाहते है वो दोनो व्यक्ति संसद से ही मांग लेते है और संसद से अवकाश प्राप्त लोग उन्हें मिल जाते है जो वहा के कार्यों में मदद करते है तथा वो 60 हजार उन्हें मिल जाता है ।कुछ सांसद अपने किसी व्यक्ति को भी उसमे से एक पद पर नियुक्त कर लेते है । इसी तरह सांसद का क्षेत्र बहुत बड़ा होता है और वहा भी उसे कम से कम एक बहुत जिम्मेदार व्यक्ति जो उसकी अनुपस्थिति में भी उसका काम सम्हाल सके चाहिए होता है । दिल्ली हो तो भी क्षेत्र के लोगो के आने पर उनका खाना चाय ही नही बल्कि कई बार इलाज का खर्च और वापसी का किराया भी देना होता है और क्षेत्र में लोगो को चाय पिलाने ,रात को रूक गया कोई तो उसका खाना , इलाज , सबके शादी ब्याह और गमी में अवश्य जाना तथा हर शादी में कुछ न कुछ लिफाफे में देना ये सब खर्चे होते है सांसद के । बाकी उसको दिल्ली में पानी बिजली और रहने को वरिष्ठ के आधार पर दो कमरे के फ्लैट से लेकर 4 कमरे तक का घर मिलता है फर्नीचर सहित जो दिल्ली में मिलना ही चाहिए । रेलवे पास मिलता है और फोन मिलता है । इसको भी लोग आय में जोड़ लेते है ।
पर असल आय 1 लाख रुपया और जब संसद चलती है तो उतने दिन तथा अन्य बैठकों के दिन भत्ता मिलता है । किसी भी तरह से सांसद की हाथ में आने वाले आय 15 से 18 लाख रुपया साल ही होती है । अधिक से अधिक 1 करोड़ रुपया उसे 5 साल में मिलता है तो वो 5 से 10 करोड़ रुपया खर्च कहा से करता है । अगर ये पैसा पार्टी देती है तो वो इतना पैसा चुनाव में क्यों खर्च करती है ? अगर प्रत्याशी खर्च करता है तो वो क्यों करता है ? यही से शुरू होती है भ्रष्टाचार की कहानी और इसकी शुरुवात हुई जब सांसदों और विधायकों को विकास के लिए फंड मिलने लगा जो 2 करोड़ से शुरू होकर 5 करोड़ पहुंच गया । प्रारंभ में आरोप लगाता था की इस फंड से 5 प्रतिशत सांसद जी को स्वतः मिल जाता है यानी 25 लाख रुपया साल । फिर ये आरोप कुछ मामलों में 50 प्रतिशत तक लगाने लगा खासकर स्कूल या अन्य संस्थाओं की मदद के मामले में । इसमें सच क्या है ये तो या सांसद बता सकते है या उन्हें देने वाले । एक पूर्व जन प्रतिनिधि ने बताया की क्षेत्र के लिए आप जितना पैसा सरकार या किसी संस्था से पास करवा लाते है उसमे भी मिलता है तथा बहुत से नेता ठेका भी अपने किसी के नाम से चलाते है ।
चाहे जैसे भी पैसा आता है और चाहे जैसे भी जाता है पर सवाल ये है की जिस देश में गरीबी के रेखा के नीचे का आलम ये है की 80 करोड़ लोगो को मुफ्त में अनाज देना पड़ रहा है और बेरोजगारी के अभी आए आंकड़े डराने वाले है उस देश में जनता की सेवा की जिम्मेदारी लेने वाले पद का चुनाव इतना महंगा क्यों ? तय तो ये था की गरीब भी चुनाव लड़ेगा तो वो अब इस दृश्य में तो पूरी तरह ओझल हो चुका है तो लोकतंत्र में बराबरी कहा बची ? पूजीवाद का ये नंगा नाच क्यों और महंगे चुनाव के लिए तरह तरह की धन की लूट क्यों ?ये सवाल लोकतंत्र ले माथे पर और भारत के संविधान के माथे पर चिपक गए गए है और मुंह चिढ़ा रहे है । 
अब सवाल ये है की यही चलता रहेगा या इसका कुछ निदान भी खोजा जाएगा ? निदान खोजेगा कौन ? उससे बड़ा सवाल है की जो जनता भ्रष्टाचार से आजिज आ चुकी है और उससे पिंड छुड़ाना चाहती है तथा अपने नेताओ को साफ पाक देखना चाहती है वो खुद इस महंगे चुनाव का हिस्सा क्यों बन जाती है ? क्यों शराब हो या साड़ी , पूरी हो या मुर्गा स्वीकार ही क्यों करती है ? क्यों एक दिन 500 रुपया ले लेती है और 5 साल निराश होकर गाली देती रहती है ? क्यों अपनी सड़क पुलिया , नहर और बिजली के न होने या खराब होने की शिकायत करती है ? 
क्या जनता को और प्रशिक्षित करने की जरूरत है ? तो करेगा कौन ? क्योंकि राजनीतिक दलों को तो ये सूट कर रहा है और उनका काम चल रहा है । साथ ही सवाल है की राजनीतिक दल भी इस महंगे चुनाव के चक्कर में कही पूजीपटियो की कठपुतली तो नही बनते जा रहे है और कही अपने सिद्धांतों तथा विश्वसनीयता से समझौता तो नही कर रहे है ? चुनाव आयोग भी 70 लाख रुपया खर्च करने की छूट ही क्यों दे रहा है ? क्यों नही वो 5 साल में सांसद को होने वाली कुल आमदनी का केवल 5 या 10 प्रतिशत ही खर्च करने की अनुमति देता है ।
क्या एक लोकसभा क्षेत्र में छात्र संघ चुनाव की तरह एक ही मंच पर हर प्रत्याशी को लॉटरी से निकाल कर टाइम नही दिया।जा सकता और सभी प्रत्याशी 10 / 10 मिनट में अपना भाषण दे । ये आयोजन ब्लॉक स्तर पर भी हो सकता है जिसका खर्च सरकार या चुनाव आयोग वहन करे । इसी तरह राजनीतिक दलों के वादे और घोषणाएं बराबर बराबर अखबार और टीवी की आयोग की तरफ से ही जारी की जाए । दल और प्रत्याशी द्वारा किसी भी खर्च पर रोज लगा दी जाए । क्या किसी भी विधायक, सांसद और अन्य पदों पर भी अधिकतम दो बार ही रहने का नियम नही बनाया जाना चाहिए ताकि नए लोगो को मौका मिले और ये नियम पार्टी के अध्यक्ष पद पर भी लागू हो और हारने वाला भी दो बार के बाद चुनाव नही लड़।सके ।
अमरीका में राष्ट्रपति प्रणाली है पर चुनाव में 19 वोट डाले जाते है जिसमे उप राष्ट्रपति , प्रतिनिधि सभा,सीनेट,  राज्यपाल ,प्रदेश के दोनों हाउस के सदस्य , काउंटी के चेयरमैन, सिटी कौंसिल के सदस्य , स्कूल कालेज प्रबंधन के सदस्य से लेकर हाई कोर्ट के जज तक । अमेरिका का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है जिसमे पहले तो चुनाव में प्रत्याशी होने के लिए वोट पड़ता है और फिर जनता इलेक्टोरल कालेज के लिए मतदान करती है जो राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति का चुनाव करते है । वहा कि चुनाव प्रणाली में कई बार जनता का पापुलर वोट किसी को मिलता है पर इलेकोटोरल वोट से वो जीत जाता है जिसका राजा उदाहरण हिलेरी क्लिंटन का था जिसे 65 लाख से ज्यादा पॉपुलर वोट यानी जनता का वोट पड़ा था पर वो इलेक्टोरल वोट में हार गई । वहा अलग अलग राज्य की अलग अलग इलेक्टोरल वोट की वैल्यू है और मान लिया की किसी राज्य में 40 वोट है तो जिस किसी को 21 वोट मिल जाता है वो 40 वोट उसका हो जाता है । ऐसे भी कई छोटे राज्यों में जीतने के बावजूद बड़े राज्य हार तय कर देते है । वहा बहुत छोटे छोटे पॉकेट में चुनाव कार्यालय होते है जिसे सिटी कार्यालय भी कह सकते है और उसके ऊपर काउंटी फिर स्टेट कार्यालय होते है और सबकी अलग भूमिका होती है । निचला कार्यालय दो तरह के लोग चलाते है एक जो पेड होते है और दूसरे जी रिटायर लोग या पार्टी समर्थक जो अपनी सहूलियत के हिसाब से समय देते है । इस स्तर पर फोन बैंकिंग का काम और नए वोटर बनाने का काम होता है जो बहुत महत्त्वपूर्ण होता है । वह मौजूद हर व्यक्ति को वोटर लिस्ट के पन्ने दिए जाते है तथा एक पेज भी जिसपर लिखा होता है की क्या बात करनी है ।इसके अलावा सड़क तथा मुहल्ले में संपर्क कर अपने प्रत्याशी के पक्ष में नए वोटर बनाना भी होता है । समय समय पर हर स्तर पर मीटिंग होती है और समीक्षा के साथ रणनीति पर चर्चा होती है । इलेक्शन फंडिंग के लिए भी दावत के साथ छोटी छोटी मीटिंग हर क्षेत्र में होती है और जज लोगो के चुनाव के लिए उनकी अलग मीटिंग होती है । 
अमरीका में मुख्य भूमिका राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों की तीन डिबेट की होती है जिसे पूरा देश टीवी के माध्यम से सुनता है और वहा भी नारे तथा आरोप काम करते है । ट्रम्फ ने : अमेरिका इस ओनली फॉर अमेरिकन:  का नारा दिया और हिलेरी पर ईमेल लीक होने और राष्ट्र की सुरक्षा से खिलवाड़ का माला उठाया तो हिलेरी ने ट्रमफ द्वारा कभी देश को कोई टैक्स नही देने और गैर जिम्मेदार होने का आरोप लगाया । अमरीका का चुनाव बहुत महंगा चुनाव होता है जिसमे सबसे महंगा मीडिया और सोशल मीडिया से प्रचार होता है ।
इसलिए अमरीका से हम उसकी महगाई तो नही ले सकते है पर चुनाव में प्रत्याशी होने के लिए हर स्तर पर दल के अंदर चुनाव उनकी एक अच्छी चीज है तो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के बीच डिबेट दूसरी अच्छी चीज है जिसमे एक डिबेट में संपादक लोग सवाल करते है और सभी मुद्दों पर प्रत्याशी का विचार और ज्ञान सामने आ जाता है । ये दोनो चीजे भारत में लोकतंत्र को और प्रभावी बना सकती है । 
ऐसा कर के तो देखे हो सकता है चुनाव के माथे पर चिपका सवाल मुंह चिढ़ाना बंद कर।दे और भारत का लोकतंत्र और स्वस्थ तथा शक्तिशाली लोकतंत्र बन जाए ।

डा सी पी राय
वरिष्ठ पत्रकार 

शनिवार, 30 मार्च 2024

चुनाव महंगा क्यों

देश आजाद हुआ था तो तय हुआ था की जाति धर्म,ऊंच नीच , औरत, आदमी ,अमीर गरीब सब छोड़कर हर नागरिक बराबर होगा । हर नागरिक का वोट बराबर होगा होगा , हर नागरिक के हक बराबर होंगे , हर नागरिक के लिए अवसर बराबर होंगे वो चाहे नौकरी हो ,व्यापार हो या सत्ता को चुनना या सत्ता में भागीदार होना । तय तो ये था की गरीब से गरीब व्यक्ति भी लोकतंत्र में सिर्फ मतदान नही बल्कि चुनाव लड़ने में भी बराबर का हक रखेगा । 
प्रारंभिक तौर पर ऐसा हुआ भी और साधन विहीन लोग भी चुनाव लडे तथा जीते भी । नेहरू जी के खिलाफ डा राममनोहर लोहिया,आचार्य कृपलानी सहित न जाने कितनी का चुनाव प्रचार जिसमे वो बिना साधन के लड़ रहे थे और इसी तरह अनगिनत लोग चुनाव लड़ते थे और कभी जीते कभी हारे ।
1978 में बहुत चर्चित आजमगढ़ का उप चुनाव जिसमे भारत और उत्तर प्रदेश की पूरी सत्ता की प्रतिष्ठा दाव पर थी और 1977 की जबरदस्त हार के बाद इंदिरा गांधी जी का भविष्य दांव पर था इस चुनाव में भी मैने काम किया था । राम नरेश यादव के मुख्यमंत्री बन जाने से लोकसभा सीट खाली हो गई थी और उसपर जनता पार्टी की तरफ से राम वचन यादव और कांग्रेस की तरफ से मोहसिना किदवई उम्मीदवार थी । आजमगढ छोटा सा शहर था तब ,कोई खास होटल नही था और पी डबल्यू डी को बहुत छोटा सा गेस्ट हाउस था जो सत्ता पक्ष के बड़े पद वाले दिग्गजों के लिए ही कम पड़ गया था और इंदिरा गांधी जी को कोई कमरा नही मिला था तो वो उतने दिन घूम घूम कर प्रचार करती रही और जिस गांव में जो भी घर ठीक लगा वहा रुक गई ।बहुत साधारण बिना खर्च और बिना दिखावे तथा बिना आडंबर वाला चुनाव था और सत्ता को हरा कर इंदिरा जी की गांव गांव की पदयात्रा जीत गई थी । 
1980 में बनारस में जनता पार्टी (एस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राज नारायण जी जिसकी केंद्र में सरकार थी और चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री थे और कांग्रेस के दिग्गज नेता पंडित कमला पति त्रिपाठी जी का चुनाव भी देखा । वो चुनाव भी आपसी सौहार्द वाला और बहुत साधारण चुनाव था ।
आजमगढ़ ने 1984 में बहुत महंगा चुनाव भी  देखा दिग्गज नेता चंद्रजीत यादव ने बेतहाशा पैसा खर्च किया और बहुत गाड़ियां तथा साधन लगाया पर उन्हें केवल 12000 वोट मिला और उनसे ज्यादा 17000 वोट एक निर्दलीय जो साधनविहीन थे उन्हें मिल गया था तथा जीतने वाले और हारने वाले ने साधारण चुनाव लडा था ।यानी पैसा काम नही आया और उसके दिखावे को जनता ने नकार दिया ।
1993 में तक भी ऐसी स्थितियां रही जब उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा का गठबंधन हुआ था तो ऐसे कई लोग विधायक हो गए थे जो आर्थिक रूप से कमजोर थे । मुझे याद है की मुख्यमंत्री के कार्यालय में सचिव से मिलने कुछ विधायक आए थे , मैं भी वहां बैठा था । वो चप्पल पहनने के शायद आदी नही थे तो उन्होंने उतार दिया था और वापस जाने के लिए जब लिफ्ट के पास पहुंच गए तो लिफ्ट वाले ने उनके पैर की तरफ इशारा किया तो वो वापस आए अपनी चप्पल पहनने । मुझे याद है 1989 का चुनाव जिसमे मैं मुलायल सिंह यादव जैसे दिग्गज नेता के चुनाव में काम कर रहा था और वो हर गांव में पड़ी चारपाई या तख्त पर भाषण के बाद बैठ जाते तो गांव के लोग मुड़े तुड़े छोटे नोट या सिक्के उनके कुर्ते पर रख देते थे और कुछ सौ रुपए मुश्किल से मिलते थे । मेरे सामने सबसे ज्यादा 6500 रुपया एक बड़ी जाती के गांव में मिला था । बहुत कम साधन यानी आपस में सहयोग की गई जीप और दिल्ली के एक साथी द्वारा दी गई डी एल वाई टैक्सी से चुनाव लड़ लिया गया था । कही न कोई खाने का भंडारा और न चाय ,ये अलग बात है की कोई गांव वाला ही चाय पिला देता था या कुछ खिला देता था ।
इस तरह बहुत से चुनाव इतिहास में दर्ज है जिसमे बहुत गरीब उम्मीदवार ने संपन्न को हरा दिया । कई बड़े पूजीपतियो को हार का मुंह देखना पड़ा ।
फिर चुनाव इतना महंगा कैसे होने लगा  ? कितना महंगा और आम आदमी की पहुंच से दूर ? कब से महंगा हुआ ये  सब सबके सामने है । अब तो चुनाव आयोग ने ही प्रत्याशी का खर्च 70 लाख कर दिया है और पार्टी द्वारा किया जाने वाला खर्च अलग । वर्तमान में कई चुनाव लडे हुए साथियों से जब खर्च पूछा तो चौकाने वाली चीजे सामने आई । समाज में एक बहुत प्रतिष्ठित दंपत्ति ने बड़े शहर से चुनाव लडा जब उनसे बात किया तो तो उन्होंने बताया की दोनो की जमा कुल पूजी 35 लाख खर्च हो गए और चुनाव हार गए यदि 1 करोड़ होता तो चुनाव लडा जा सकता था । बाकी साथियों ने बताया की लोकसभा चुनाव में हार ब्लॉक में कम से कम दो गाड़ी चलाना होता है और एक क्षेत्र में 15 से 18 तक ब्लॉक होते है तो कम से कम 30 से 45 तक गाड़ी का खर्च कम से कम 2 लाख रुपया प्रतिदिन होता है । प्रत्याशी , चुनाव एजेंट तथा अन्य सहयोगियों की भी कम से कम 5 से 10 तक गाड़ी चलती है । हर ब्लॉक पर कम से कम एक कार्यालय चलता है जिसका खर्च 5 से 10 हजार प्रतिदिन होता है । केंद्रीय कार्यालय का खर्च भी 10 हजार प्रतिदिन होता है।।लोगो का प्रतिदिन खाना पीना और चाय पानी का खर्च । लोकसभा क्षेत्र में 50/60 छोटी सभाएं 5/10  हजार प्रति के हिसाब से और 15/20 बड़ी सभाएं ब्लॉक मुख्यालय पर 10/20 हजार प्रति कम से कम और किसी बड़े नेता की एक रैली 5 से 10 लाख तक । इसके अलावा हर गांव में चुनाव से एक दिन पहले 5 से 10 हजार खाना पीना का खर्च और वोट के ठेकेदारों को 500 से 1000 तक प्रति वोट दिलवाने का तथा अंत में 2500 के आसपास बूथ के लिए दिए गए बस्ते में 1000 प्रति बस्ता और वोट की गिनती का खर्च । इसके अलावा हैंड बिल ,पोस्टर पर्चा और बहुत कुछ जैसे सोशल मीडिया , स्थानीय अखबार इत्यादि में विज्ञापन । हिसाब लगाया जा सकता है की प्रत्याशी के स्तर पर कितना खर्च होने लगा है और पार्टी के स्तर पर होने वाला खर्च अलग है ।
जरा देख लेते है की एक सांसद को कुल कितना पैसा मिलता है । सांसद को 1 लाख रुपए तनख्वाह मिलती है तो 60 हजार रूपए कार्यालय भत्ता मिलता है और 70 हजार रूपए क्षेत्र का भत्ता मिलता है । दिल्ली में सभी सांसद दो व्यक्ति रख सकते है जिनके लिए 60 हजार रुपया मिलता है । जो संसद संसद की गतिविधियों में ज्यादा सक्रिय रहना चाहते है वो दोनो व्यक्ति संसद से ही मांग लेते है और संसद से अवकाश प्राप्त लोग उन्हें मिल जाते है जो वहा के कार्यों में मदद करते है तथा वो 60 हजार उन्हें मिल जाता है ।कुछ सांसद अपने किसी व्यक्ति को भी उसमे से एक पद पर नियुक्त कर लेते है । इसी तरह सांसद का क्षेत्र बहुत बड़ा होता है और वहा भी उसे कम से कम एक बहुत जिम्मेदार व्यक्ति जो उसकी अनुपस्थिति में भी उसका काम सम्हाल सके चाहिए होता है । दिल्ली हो तो भी क्षेत्र के लोगो के आने पर उनका खाना चाय ही नही बल्कि कई बार इलाज का खर्च और वापसी का किराया भी देना होता है और क्षेत्र में लोगो को चाय पिलाने ,रात को रूक गया कोई तो उसका खाना , इलाज , सबके शादी ब्याह और गमी में अवश्य जाना तथा हर शादी में कुछ न कुछ लिफाफे में देना ये सब खर्चे होते है सांसद के । बाकी उसको दिल्ली में पानी बिजली और रहने को वरिष्ठ के आधार पर दो कमरे के फ्लैट से लेकर 4 कमरे तक का घर मिलता है फर्नीचर सहित जो दिल्ली में मिलना ही चाहिए । रेलवे पास मिलता है और फोन मिलता है । इसको भी लोग आय में जोड़ लेते है ।
पर असल आय 1 लाख रुपया और जब संसद चलती है तो उतने दिन तथा अन्य बैठकों के दिन भत्ता मिलता है । किसी भी तरह से सांसद की हाथ में आने वाले आय 15 से 18 लाख रुपया साल ही होती है । अधिक से अधिक 1 करोड़ रुपया उसे 5 साल में मिलता है तो वो 5 से 10 करोड़ रुपया खर्च कहा से करता है । अगर ये पैसा पार्टी देती है तो वो इतना पैसा चुनाव में क्यों खर्च करती है ? अगर प्रत्याशी खर्च करता है तो वो क्यों करता है ? यही से शुरू होती है भ्रष्टाचार की कहानी और इसकी शुरुवात हुई जब सांसदों और विधायकों को विकास के लिए फंड मिलने लगा जो 2 करोड़ से शुरू होकर 5 करोड़ पहुंच गया । प्रारंभ में आरोप लगाता था की इस फंड से 5 प्रतिशत सांसद जी को स्वतः मिल जाता है यानी 25 लाख रुपया साल । फिर ये आरोप कुछ मामलों में 50 प्रतिशत तक लगाने लगा खासकर स्कूल या अन्य संस्थाओं की मदद के मामले में । इसमें सच क्या है ये तो या सांसद बता सकते है या उन्हें देने वाले । एक पूर्व जन प्रतिनिधि ने बताया की क्षेत्र के लिए आप जितना पैसा सरकार या किसी संस्था से पास करवा लाते है उसमे भी मिलता है तथा बहुत से नेता ठेका भी अपने किसी के नाम से चलाते है ।
चाहे जैसे भी पैसा आता है और चाहे जैसे भी जाता है पर सवाल ये है की जिस देश में गरीबी के रेखा के नीचे का आलम ये है की 80 करोड़ लोगो को मुफ्त में अनाज देना पड़ रहा है और बेरोजगारी के अभी आए आंकड़े डराने वाले है उस देश में जनता की सेवा की जिम्मेदारी लेने वाले पद का चुनाव इतना महंगा क्यों ? तय तो ये था की गरीब भी चुनाव लड़ेगा तो वो अब इस दृश्य में तो पूरी तरह ओझल हो चुका है तो लोकतंत्र में बराबरी कहा बची ? पूजीवाद का ये नंगा नाच क्यों और महंगे चुनाव के लिए तरह तरह की धन की लूट क्यों ?ये सवाल लोकतंत्र ले माथे पर और भारत के संविधान के माथे पर चिपक गए गए है और मुंह चिढ़ा रहे है । 
अब सवाल ये है की यही चलता रहेगा या इसका कुछ निदान भी खोजा जाएगा ? निदान खोजेगा कौन ? उससे बड़ा सवाल है की जो जनता भ्रष्टाचार से आजिज आ चुकी है और उससे पिंड छुड़ाना चाहती है तथा अपने नेताओ को साफ पाक देखना चाहती है वो खुद इस महंगे चुनाव का हिस्सा क्यों बन जाती है ? क्यों शराब हो या साड़ी , पूरी हो या मुर्गा स्वीकार ही क्यों करती है ? क्यों एक दिन 500 रुपया ले लेती है और 5 साल निराश होकर गाली देती रहती है ? क्यों अपनी सड़क पुलिया , नहर और बिजली के न होने या खराब होने की शिकायत करती है ? 
क्या जनता को और प्रशिक्षित करने की जरूरत है ? तो करेगा कौन ? क्योंकि राजनीतिक दलों को तो ये सूट कर रहा है और उनका काम चल रहा है । साथ ही सवाल है की राजनीतिक दल भी इस महंगे चुनाव के चक्कर में कही पूजीपटियो की कठपुतली तो नही बनते जा रहे है और कही अपने सिद्धांतों तथा विश्वसनीयता से समझौता तो नही कर रहे है ? चुनाव आयोग भी 70 लाख रुपया खर्च करने की छूट ही क्यों दे रहा है ? क्यों नही वो 5 साल में सांसद को होने वाली कुल आमदनी का केवल 5 या 10 प्रतिशत ही खर्च करने की अनुमति देता है ।
क्या एक लोकसभा क्षेत्र में छात्र संघ चुनाव की तरह एक ही मंच पर हर प्रत्याशी को लॉटरी से निकाल कर टाइम नही दिया।जा सकता और सभी प्रत्याशी 10 / 10 मिनट में अपना भाषण दे । ये आयोजन ब्लॉक स्तर पर भी हो सकता है जिसका खर्च सरकार या चुनाव आयोग वहन करे । इसी तरह राजनीतिक दलों के वादे और घोषणाएं बराबर बराबर अखबार और टीवी की आयोग की तरफ से ही जारी की जाए । दल और प्रत्याशी द्वारा किसी भी खर्च पर रोज लगा दी जाए । क्या किसी भी विधायक, सांसद और अन्य पदों पर भी अधिकतम दो बार ही रहने का नियम नही बनाया जाना चाहिए ताकि नए लोगो को मौका मिले और ये नियम पार्टी के अध्यक्ष पद पर भी लागू हो और हारने वाला भी दो बार के बाद चुनाव नही लड़।सके ।
ऐसा कर के तो देखे हो सकता है चुनाव के माथे पर चिपका सवाल मुंह चिढ़ाना बंद कर।दे और भारत का लोकतंत्र और स्वस्थ तथा शक्तिशाली लोकतंत्र बन जाए ।

डा सी पी राय
वरिष्ठ पत्रकार 

शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

मेरी_लिखी_कहानी

#मेरी_लिखी_कहानी अगर पढ़ना चाहे —-

#प्रोफेसर_साहब --

प्रोफेसर साहब मेडिकल कालेज के नामी गिरामी प्रोफेसर थे । नाम बडा था ज्ञान भी था ही पर ? जाने देते है ।
जब मेनचेस्टर कहे जाने जिले के मेडिकल कालेज मे प्रोफेसर थे तो उनका  लडका भी वही छात्र हो गया था पता नही अपनी मेहनत से या पिता की जुगाड से । बेटे के साथ एक बहुत कुशाग्र छात्र भी पढता था जो तीन साल तक लगातर प्रथम आता रहा । चौथे साल मे प्रोफेसर साहब का माथा ठनका की उनके रहते हुये कोई और छात्र कैसे टॉपर हो सकता है, बस लग गये और चौथे तथा अंतिम साल मे बेटे को टाप करवा ही दिया ।
समय ने करवट लिया और प्रेम के स्मारक वाले शहर के मेडिकल कालेज मे प्रोफेसर साहब हेड बन कर आ गये और जिस अपने छात्र को उन्होने टॉप नही करने दिया था वो भी अध्यापक बन कर उसी कालेज मे आ गया ।थोडे दिन मे प्रोफेसर साहब का दूसरा बेटा इसी कालेज मे दाखिल हो गया । उसकी परीक्षा का अवसर आया तो जिसका नंबर घटा कर पीछे किया था उनसे ही सिफारिश किया अपने दूसरे बेटे को प्रथम स्थान पर पहुचाने की ।
प्रोफेसर साहब ने अपने दोनो बेटो को अमेरिका भेज दिया और खुद लग गये पैसा बटोरने मे । पैसा दांत से पकडते थे प्रोफेसर साहब और शहर मे सबसे ज्यादा फीस वसूलते थे ,कोई रहम नही । कोई बहुत गरीब और जरूरतमंद हो तो गिड़गिड़ा कर मर जाये पर मजाल क्या कि प्रोफेसर साहब का दिल पिघल जाये ।
प्रोफेसर साहब अब बूढे हो चले थे तो सोचा चले कुछ दिन दोनो बेटो के घर अमरीका मे बिताये और मन लग गया तो भारत का घर इत्यादि बेच कर पति पत्नी वही बच्चो के पास रह जायेंगे । बड़े अरमानो और जोश से टिकेट करवा कर अमरीका बड़े बेटे के घर पहुचे । कुछ दिन तो सब ठीक चला पर फिर बेटे से खटपट होने लगी छोटी बड़ी बात पर और बात यहा तक पहुची की बेटा उनके मुह पर ही बोल देता कि क्यो बिला वजह जिन्दा हो ? क्या बक बक करते हो ?  शाम तक मर क्यो नही जाते ।
और एक दिन बेटे ने घर से जाने का फरमान सुना दिया तब छोटे बेटे को फ़ोन किया पर वो लेने ही नही आया और रुखी से बात कर फोन काट दिया । छोटे बेटे से बोले कि टिकेट होने तक अपने घर ले चलो और फिर बस हवाई अड्डे तक छोड देना, पर वो नही आया ।निराश ,उदास,अपमानित  प्रोफेसर साहब भारत अपने घर लौट आये ।

पत्नी गम्भीर बीमार हो गई तो वही काम आया जिसके नंबर कम कर अपने बेटे को टॉप करवाया था । उन्होने पत्नी का ऑप्रेशन किया । कुछ ही दिन मे प्रोफेसर साहब गम्भीर रूप से बीमार हो गये तो उसी डाकटर साहब ने उन्हे अस्पताल मे भर्ती किया और लगातार उनकी देखभाल किया । पर लगता है कि बीमारी से ज्यादा मन की टूटन ने प्रोफेसर साहब को जख्मी कर दिया था अंदर तक और वो एक दिन उदासी चेहरे पर ओढ़े हुये चल बसे ।
सवाल आया कि दो बेटे है उन्हे खबर कर दिया जाये और उनके इन्तजार मे शरीर को संरक्षित कर रख दिया जाये । बेटो को खबर की गई पर दोनो ने ही आने से इंकार कर दिया कि एक मर गये आदमी को बस आग लगाने को वो अमरीका से नही आ सकते । अन्ततः प्रोफेसर साहब के नौकर ने उनका अंतिम संस्कार किया और उस वक्त मुट्ठी भर केवल वो लोग वहाँ मौजूद थे जो उनके कुछ नही लगते थे पर जिनको पढाया था या जो साथ मे शिक्षक थे और जिन्हे ये एहसास था कि नही गये तो लोग क्या कहेंगे ।
प्रोफेसर साहब का दांत से पकडा पैसा अपने भविष्य की बाट जोह रहा है और वो बड़ी सी कोठी प्रोफेसर साहब की पत्नी के अंतिम दिनो का सहयोगी बन वीरानी मे टुकुर टुकुर देखती रहती है और अपने नये मालिक के साथ फिर से गुलजार होने का इन्तजार कर रही है । नौकर ने बेटे का कर्तव्य निभा दिया और संस्कार कर दिया पर वो बेटा तो नही हो पायेगा अधिकार मे और इसिलिए उसने अपनी रोजी रोटी के लिये दूसरा ठिकाना ढूढना शुरू कर दिया है ।
कुछ दिन मे लोग भूल जाना चाहेंगे प्रोफेसर साहब को पर उनके किस्से सबक बन कर काफी दिनो तक फिजा मे तैरते रहेँगे ।
(अभी अभी लिखी एक कहानी । हम सब के आसपास ना जाने कितने प्रोफेसर साहब है और उनके बेटे भी )

जिन्दगी_झरोखे_से

#जिन्दगी_झरोखे_से --

जब सुबह जगा कर एडीएम साहब #संगम ले गए थे --

उस दिन सुबह संगम के दृश्य । न जाने कितनी बार आया था #इलाहबाद पर उस दिन सुबह उठ कर उगते हुए सूर्य की किरणों के साथ संगम जाना और वहा दो नदियो या कहे की दो संस्कृतीयो और दो बहनो गंगा और यमुना का मिलन देखना सचमुच बहुत सुखद अनुभूति रही ।
एक दिन पहले कलक्टर साहब से बात हुई थी तो बोले की संगम गए है या नही और नही कहते ही उन्होने फरमान सुना दिया की सुबह तैयार रहियेगा फला एडिएम साहब संगम प्रेमी है वो  आप को ले जायेंगे । मैं सोचने लगा कि कहा मेरे मुह से नही निकल गया , क्या सचमुच इतनी सुबह आ जायेंगे एडीएम साहब , ना आये तो अच्छा । पर वही हुआ सुबह ही करीब 4,45 पर एडीएम साहब ने सर्किट हाऊस जो कलक्टर साहब जो मेरे मित्र थे उन्होने ही बुक करवाया था के मेरे कमरे का दरवाजा खटखटा दिया और फिर उनके साथ गाडी पर संगम जाना ही पडा ( किसी मुसीबत की तरह जो मेरे चेहरे पर साफ दिख रही है फोटो मे , पर वहा पहुच कर थोडी देर बाद एहसास हुआ की सचमुच मैं आज के पहले एक बहुत अच्छे अनुभव और मनोरम दृश्य से वंचित था ) जहा एक शायद सरकारी वोट तैयार थी और ए डी एम साहब के कोई नीचे वाले कोई कर्मचारी पहले से ही पहुच कर तैयारी किये हुये थे ।
खैर --
प्रयाग का संगम 
----------------------
सूरज उग रहा था और उनकी किरणे गंगा और जमुना के हरे और सफ़ेद पानी को सुनहरा बना रही थी ।क्या मनोहारी दृश्य था और इतनी सुबह की आस्था का सैलाब उमड़ा हुआ था ।ना जाने कितनी नावो में भरे हुए लोग इस ठिठुरती ठण्ड की परवाह किये बिना आये हुए थे की बिलकुल संगम स्थल पर ही आचमन लेंगे या डुबकी लगाएंगे ताकि ,जो भी उनकी मनोकामना या इच्छा हो । बहुत बड़ी संख्या में चिड़ियों को झुण्ड भी चारो तरफ कलरव कर रहा था ।मैं पूछ नहीं पाया की ये चिड़ियाँ  यहाँ स्थायी रूप से मौजूद रहती है या जाड़े में सूदूर बर्फीले इलाके से साइबेरिया इत्यादि से आई हुयी है इस वक्त ।ये जानकारी कोई दे सके तो आभार व्यक्त करूँगा ।
मुझे उस दिन पहली बार पता लगा की संगम के किनारे का किला अकबर ने बनवाया था ।कही नहीं वर्णन आ पाया होगा मेरे अध्ययन में ।अब जानना पड़ेगा की अकबर ने संगम को किला बनवाने को क्यों चुना और हर बात में विवाद ढूँढने वाले लोग  इसमें कोई विवाद नहीं ढूढ़ पाये क्या ।इस पर बाद में अध्ययन करने पर लिखूंगा ।
मेरे दो संस्कृतियो पर बहस छिड़ सकती है क्योकि दोनों  एक ही इलाके में है और मिलन के बाद तो बस गंगा बचती है और विलीन हो जाती है उसमे यमुना , सरस्वती कहां से निकलती है और कब विलीन हो जाती है रहस्य ही बना हुआ है ।
हां तो संस्कृति पर बहस की बात मैंने जान बूझ कर छेड़ा है । यद्यपि यमुना का हरा जल कुछ साफ़ दीखता है यहाँ पता नहीं कैसे जबकि इसके पीछे यमुना पूरी तरह गन्दी दिखती है लेकिन इस हरे रंग के किनारे की संस्कृति कुछ अलग है और उसका खुलकर वर्णन कर दूंगा तो विवाद बढ़ जायेगा । पर इस दो संस्कृति का मेरा आशय और अनुभव भी क्या है कभी लिखूंगा जरूर ताकि मेरी समझ भी साफ़ हो सके । हो सकता मैं जो समझ रहा हूँ उसमे कुछ पेंच हो या मेरे ही मन में किन्ही लोगो या घटनाओ के कारण कुछ खराश हो ।
गंगा का पानी सफ़ेद और कुछ मटमैला दीखता है संगम पर पर गंगा का किनारा पकडे हुए संस्कृति मटमैली नहीं दिखती ।
बताया गया की संगम पर गंगा और यमुना में भी एक युद्ध चलता रहता है । मैं कहूँगा की दो बहनो की आपसी अठखेली होती है या छेड़छाड़ । पर संस्कृति की बड़प्पन की लड़ाई भी हो सकती है ।
कभी गंगा यमुना को पीछे धकेल देती है तो कभी यमुना गंगा को, पर ये पता नहीं चलता की इस लड़ाई में सरस्वती की भूमिका क्या रहती है , तटस्थ एम्पायर या रेफरी की या बस मजा लेते हुए तीसरे व्यक्ति की ।
पर ये सच्चाई तो कबूल करना ही पड़ेगा की अंत में जीत जाती है गंगा और विलीन हो जाता है उसमे सब कुछ , अस्तित्व , संस्कृति , रंग , स्वाद और दोनों नदिया और फिर हथिनी की चाल से गौर्वान्वित चलने लगती है और गंगा भी विलीन हो जाने के लिए अपने से भी बड़े अस्तित्व में ताकि जीवन , मरण और फिर जीवन का चक्र पूरा हो सके ।
फिर समुद्र से भाप बन कर उड़ता है नया जीवन और नई तरह के जीवन बरस पड़ते है उससे जो फिर कही ताल तलैया , तो अलग अलग क्षेत्र में कोई गंगा , कोई यमुना , कोई राप्ती और कोई सरयू जैसा जीवन पाकर चलती रहे ताकि जीवो का जीवन चलता रहे ।
शायद मैं दर्शन से दर्शन की तरफ चला गया ।पर मुझे याद नहीं की इससे पहले उगता हुआ सूरज कब देखा था ।शायद जब कन्याकुमारी गया था नेता जी के साथ ।
इस सब दृश्य के बीच मोटर बोट मंथर गति से नदियो का सीना चीरती हुयी चली जा रही थी और वहां ले जाने वाले साथी वहां के बारे में , ऐतिहासिकता के बारे में और पुण्य के बारे में वर्णन करते जा रहे थे ।उन्होने आज बताया की यदि संगम नहीं आये तो सब तीर्थ बेकार है तो मन में बरबस आ गया की मैं तो कभी किसी मंदिर ही नहीं गया तीर्थ तो बड़ी बात है ,और तब तो यहाँ आकर भी मैं पुण्य का भागी नहीं बन पाया । वैसे ही शीत प्रकृति के कारण डुबकी लगाने का मतलब कुछ दिनों डॉ0 मित्रो की सेवा में रहना हो जाता पर दृश्य सचमुच ऐसा की मैं लिखे बिना नहीं रह सकता था । शायद ऐसे दृश्य ही लोगों को अपनी तरफ खींचते है और यही खिंचाव आस्था बन जाती है । अब तो साधन हो गए पर जब साधन नहीं रहे होंगे तब जो विलीन हो जाते होंगे इन दृश्यों के आगोश में वो स्वर्ग में जाने वाले और ईश्वर के बुलावे वाले वर्ग में शामिल हो जाते होंगे और जो वापस चले जाते होंगे घर वो ईश्वर की और संगम की कृपा से बच जाने वाले वर्ग में शामिल हो जाते होंगे और इसकी विषद व्याख्या अपने अपने जजमानों को सुनाने वालो की भी काफी तादात होती ही है ।
पर पुण्य मिले या न मिले क्योकि अभी तक कोई प्रमाणिक दस्तवेज और अध्ययन नहीं है जो साबित कर सके की पुण्य क्या है और किस किस को मिला तो क्यों और कैसे मिला और संगम में गहरी डुबकी मार कर भी जिन्हें नहीं मिला क्यों नहीं मिला ।
संगम पर ही जिंदगी जीने वाले मछुवारे ,नाव चलाने वाले और रोज नित्यकर्म से लेकर यही नहाने वाले तो पुण्य से मालामाल हो गए होंगे तो उनके जीवन में क्या विशेष है ये अध्ययन का विषय हो सकता है और शायद शोध से कुछ जानकारी मिले । फिर भी करोडो की आस्था का केंद्र है संगम तभी तो इतने कष्ट सह कर करोडो लोग यहाँ कल्पवास करते है और डुबकी लगाते है । आस्थाएं शायद लोगो को अतिरिक्त ताकत देती और भरपूर ऊर्जा भी ।
जी हां पुण्य मिले या न मिले पर उसी संगम के दर्शन कर लिए आज मैंने भी इतनी सुबह जाकर और इस सुबह जाने की मानसिकता और दबाव में पूरी रात नहीं सोकर तो इस कष्ट के लिए कुछ तो मिलेगा ही ।
पर ये सुबह का दृश्य की किसी भी मायने में कन्याकुमारी के सुबह के दृश्य से पीछे नहीं है और इसे सैलानियो को आकर्षित करने के लिए प्रचारित किया जा सकता था । उस दिन मुझे एहसास हुआ की मेरा प्रदेश किस कदर सुस्त ,दिशाहीन और संकल्पहीन है की राजस्थान अपनी रेट की मार्केटिंग कर लेता है ,कश्मीर , शिमला और अन्य अपनी बर्फ और ठंड, तमिलनाडु कन्याकुमारी का सूर्योदय जो ज्यादातर दिखता ही नही बादलो के कारण इसलिए कह रहा हूँ की जब मैं गया था मुलायम सिंह यादव के दौर मे  कन्याकुमारी तब रात भर जगा बैठा रहा बाल्कनी मे की कही सोता न रह जाउँ और सुबह बस हो गई बादलो मे छुपी हुई ,केरल से लेकर महाराष्ट्र तक समुद्र का किनारा ,तो चेरापूंजी अपनी बारिश और हरियाली ,भूटान सिक्किम मेघालय अरुणाचल अपने पहाड़ और दृश्य तो अमरीका तो बस यू ही किसी भी चीज पर मोटा टिकेट लगा कमा रहा है तो क्या चीज नही है उत्तर प्रदेश मे , साथ ही बिहार और मध्यप्रदेश इत्यादि मे भी , बस सैलानियो के लिए सुरक्षा का भाव अपराधियो और शोहदो से और पुलिस की लूट तथा कमाई के लिए परेशान करने वाली प्रवृति से , और अभाव है मार्केटिंग के लिए भाव , समर्पण ,इरादा और व्यव्स्था की ।
ले दे कर एक ताज महल, या बनारस का घाट भी कुछ लोगो को आकर्षित करता है ।
चलिये इस मुद्दे पर विस्तार से फिर कभी ।
बोलो गंगा मैया की जय (क्योकि जय केवल विजेता और शक्तिशाली की ही बोलने की परम्परा है तो मैं भी इस परम्परा को क्यों तोडू )।

जिन्दगी_झरोखे_से

#जिन्दगी_झरोखे_से 

सोशल मीडिया में नोबेल पुरष्कार के लिए आज कल जाति और गोत्र खोज प्रतियोगिता चल रही है ।
देखे पढ़े लिखो का पतन कहा तक होता है ।
पहले कहा जाता था कि ज्यो ज्यो शिक्षा बढ़ेगी समाज से जातिवाद और धार्मिक कट्टरता , अन्धविश्वास और नफरत खत्म होगी और इंसानियत बढ़ेगी ।
पर 
पर इससे अच्छा तो मेरा बचपन वाला अशिक्षित गांव था जिसमे अख़बार रात को चाचा जी शहर से लौटते हुए लाते थे और एक रेडियो पर सबको समाचार और कृषि की जानकारी मिल जाती थी ।
कभी चाचा नेहरू से शास्त्री जी तक का भाषण भी सुन लेता था गांव पर साथ साथ उसी समय किसी मुख्यमंत्री का भाषण जबर्दस्ती नहीं सुनना पड़ता था ।
पूरा गांव की सभी जातियां एक दूसरे की पूरक थी तो एकमात्र मुसलमान परिवार गांव की आवश्यकता , जांघिया नाच दिखने वाले दलित भाई शुभ अवसरों पर मनोरंजन देते थे तो कुम्हार बर्तन और कहाँर भुना हुआ अनाज और कूंए से पानी , बनिया शहर और गांव के बीच की आवश्यकता पूरी करता था तो पंडित जी की बात और कुछ सबसे ज्यादा बुजुर्गों की बात सर्वमान्य थी ।
नाइ चाचा खुद ही शादियां तय कर देते थे तो पिछड़े वर्ग के मुंशी जी किसी को भी डंडे से पढ़ना और जोड़ना घटाना सिखा देते थे और उनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं करता था  
कहा चला गया वो समाज 
या तो पढ़ाई नकली है या नए जमाने की हवा में जहर है ।
फिर भी अभी भी बिना पढ़े लिखे लोग पढ़े लिखो के मुकाबले इस नफरत के व्यापार में हज़ारों मील पीछे है आज भी ।
हां तो 
ये नोबेल पुरष्कार किसे मिलेगा ।

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024

जिंदगी के झरोखे से

#जिंदगी_के_झरोखे_से 
वो 30 जनवरी की तारीख़ थी जो भारत के इतिहास की काली तारीख़ साबित हुयी और भारत ही क्या दुनिया को मानवता का रास्ता दिखाने वाला सूरज अस्त कर दिया गया एक हत्यारे द्वारा ।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हम सबके बापू दिल्ली के बिडला हाउस के एक छोटे से कमरे में रहते थे बहुत ही साधारण तरीक़े से । ज़मीन पर बैठते थे सोते थे , बहुत साधारण बर्तन में सादा भोजन करते थे ।
बापू रोज़ पीछे के मैदान में उपस्थित इंसानो से मिलते थे , उनके प्रश्नो का जवाब देते थे , रामधुन गाते थे , प्रार्थना करते थे और विभिन्न विषयों पर प्रवचन भी करते थे ।
कुछ देर पहले ही तो सरदार पटेल महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात कर के गए थे और कल ही तो बापू में ड़ा राममनोहर लोहिया को बुलाया था चर्चा करने को । रात हो रही थी और ड़ा लोहिया थके हुए थे जबकि बापू कुछ व्यस्त थे । जब बापू वापस आए तो ड़ा लोहिया गहरी नीद में सो गए थे । बापू ने उन्हें नही जगाया और ख़ुद भी ध्यान करने के बाद सो गए । सुबह बापू जल्दी जाग गए और अपनी नित्य की दिनचर्या में व्यस्त हो गए और ड़ा लोहिया उनके बाद जगे । लोहिया बापू के पास गए की बापू मुझे नीद आ गयी थी बताइए क्या आदेश है । बापू का समय निर्धारित होता था और उसी हिसाब से उनका जीवन चलता था इसलिए बापू ने उन्हें आज यानी ३० जनवरी को आने को कहा और इतना ज़रूर कह दिया कि आवश्यक बात करनी है और कांग्रेस के भविष्य पर तथा उसमें इन लोगों की भूमिका पर बात कर कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेना है । ड़ा लोहिया चले गए । 
३० तारीख़ को मिलने वालो ने सरदार पटेल प्रमुख थे और गम्भीर चर्चा कर वो वापस का चुके थे । 
बापू अपने नियत समय पर अपने कमरे के इसी चित्र वाले दरवाजे से प्रार्थना स्थल के लिए निकले और ज्यों ही नीचे की सीढ़ियाँ चढ़ कर आगे बढ़े भारत का पहला आतंकवादी जो इतना कायर था की आज़ादी की इतनी लम्बी लड़ाई में वो देश के लड़ना तो दूर जिसने कभी मुह छुपा कर भी अंग्रेज के ख़िलाफ़ कोई नारा तक नही लगाया था ,जिसने किसी अंग्रेज के घर की दीवार पर ग़ुस्सा दिखाने के लिए कभी एक कंकरी तक नही फेंका था और जिसने चंद दिन पहले ही अपने हाथ पर मुस्लिम नाम लिखवा लिया था उसी ने जिन अंग्रेजो कि कभी औक़ात नही हुयी बापू को उँगली से भी छूने की उन्होंने की अंग्रेज़ी पिस्तौल से उन्ही अंग्रेजो कि बनाई तीन गोलियाँ बापू के सीने में उतार दिया और भागने लगा जिसको वही के माली ने तमाचे मार कर पकड़ लिया ।
अपने को हिंदुओं का ठेकेदार बताने वाली एक सगठन जो अब देश भक्ति का उपदेश देता है ने तुरंत देश भर में फैलाया की बापू को मुसलमान ने मार दिया पर तुरंत नेहरू जी और पटेल जी ने निर्णय लिया और हत्यारे का नाम देश भर तक रेडियो से पहुँचा दिया । देश की जानता रोटी हुयी सड़क पर थी और कांग्रेसी गोलीय जनता को सच बताने निकल पड़ी ।
ड़ा लोहिया बापू से मिलने के लिए आ रहे थे और अभी थोड़ा दूर ही थे की पता लगा की सूरज अस्त हो गया । नेहरू जी ने रोते हुए कहा कि रोशनी ख़त्म हो गयी । 
दूसरी तरफ़ संघ और हिंदू महासभा ने ख़ुशी मनाया और मिठाई बाँटा । 
जी आज तीस जनवरी को 74 साल हो गए । वो ताकते जी बापू की हत्या के लिए ज़िम्मेदार है सब तक पैर जमा चुकी है तथा अपने आका के सपनो को उतार देना चाहती है बापू के भारत में हिटलर और मुसोलिनी ने भी जो रास्ता तय किया था उसी पर चल कर उन्ही की तरह  मानवता का क़त्ल करके और देश को जहन्नुम बना कर । 
इसलिए ३० जनवरी हमें चेतावनी देती है देश को समाज को और मानवता को बचाने की चेतावनी और हिटलर मसोलिनी का नही बल्कि बापू के सपनो का भारत बनाने की । 
काश उस दिन ड़ा लोहिया दो नही गए होते या काश बापू की हत्या नही हयी होती और आचार्य नरेंद्र देव , ड़ा लोहिया , जयप्रकाश , अच्युत पटवर्धन इत्यादि कांग्रेस में ही रहे होते तो शायद तस्वीर कुछ और होती पर आज इस बात को याद करने का दिन नही है बल्कि मानवतावादी सत्य अहिंसा ग्राम स्वराज और स्वावलम्बन बनाम हत्या दंगे , राक्षसी सोच और अंधाधुंध पूंजीवाद के बीच चलती लड़ाई में से अपना पक्ष चुनने का दिन है ।
आइए बापू के साथ खड़े हो । 
#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच

जिंदगी_के_झरोखे_से

#जिंदगी_के_झरोखे_से

एक लघु कथा -- 
माँ ।---

वो पुराना घर 
कहते थे की किसी राजा के कारिंदों का था  
कुछ लोग बताते थे की राजा के घोड़े बांधते थे 
पर अब तो कुछ लोग रह रहे थे वहां 
और 
ऐसा घर पाना भी कितनी बडी सुविधा थी ।
उस छोटे से दो कमरे के घर में वही एक कमरा टपकता था बारिश में
और उस परिवार के पास उस कमरे की छत की मरम्मत लायक पैसे नहीं थे 
और 
जिस संस्था का घर था उसके पास तब तक पैसे नहीं थे जब तक ये परिवार रहां उस घर में  
ज्यो ही जाती विशेष का व्यक्ति उसी घर में आ गया पूरा घर ही बदल गया और बहुत कुछ नया भी बन गया 
पर भटक न जाऊं मैं तो बस एक माँ की कहानी लिख रहा था 
तो 
बारिश कितनी बड़ी सजा थी उस माँ के लिए और बच्चो के लिए 
पिता तो सो जाता था 
पर माँ कैसे भीग जाने देती अपने छोटे छोटे बच्चो को ।
पहले मच्छरदानी लगाया 
फिर उस पर कुछ प्लास्टिक बिछाया 
फिर भी बात नही बनी तो बच्चो को उस कोने में लिटाया जहा पानी नही आ रहा था और 
पानी वाली जगह कही बाल्टी रखा और कही टब ।
पूरी रात जी पूरी पूरी रात 
वो बैठी रहती थी बर्तन बदल बदल कर पानी फेंकने को कि एकमात्र बिस्तर भीग न जाये ।
कितनी राते नहीं सोती थी वो माँ अपने बच्चो के लिए औरअपने परिवार के लिए 
पूरे दिन काम भी पूरा करती थी बिना चेहरे पर शिकन लिए 
अभी कल की ही तो बात है 
बेटी पैदा होने वाली थी । पैसे नहीं थी तो सरकारी अस्पताल के जर्नल वार्ड में कुछ अपनों के कारण इंतजाम हो गया था 
और डॉ चार दिन कम से कम रोकते है और कुछ दिन आराम करने तथा शरीर के सामान्य हो जाने को समय देने को बोलते है पर गरीबी और घर की मजबूरी के कारण वो एक दिन में ही घर आ गयी थी और लग गई थी घर के हर काम में ।
और ऊपर से ये टपकती छत 
पर कोई भी हालात उसे नहीं तोड़ पाता था ।
वही खिलखिलाती हंसी 
वही समर्पण और कभी उफ़ की आवाज़ नहीं 
और बारिश भी निकल गयी तथा वो दौर भी ।
बड़ा कर काबिल बना दिया उसने अपने बच्चो को बिना शिकन और अभावों का एहसास किये और कराये हुए ।
वो बस एक माँ थी ।

शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2024

जब लोकबंधु राज नारायण जी ने अमरीका नही जाने जा दिया :

#जिंदगी_के_झरोखे_से 

जब लोकबंधु राज नारायण जी ने अमरीका नही जाने जा दिया : 

1983 की बात है मेरी स्वर्गीय पत्नी के बड़े भाई प्रो प्रकाश चंद्र शर्मा जो अमरीका में प्रोफेसर थे और उनका बड़ा नाम था । उन्होंने राय दिया की मुझे अमरीका के एक दो विश्वविद्यालयों में पी एच डी के लिए अप्लाई करना चाहिए तो मैने भी हां कर दिया । उन्होनें दो विश्वविद्यालय के फार्म भेज दिया । मैने आवेदन कर दिया और मेरा अलबामा तथा अबर्न दोनो विश्वविद्यालय में एडमिशन हो गया और स्कालरशिप के साथ । 
टोफेल पास करना जरूरी होता है उसके लिए भी अप्लाई कर दिया और हेली रोड कनाट प्लेस के अमेरिकन सेंटर में उसका भी इम्तहान हो गया । 
मैं खुशी खुशी राज नारायण जी को बताने चला गया की ऐसा ऐसा हो गया है और मैं अमरीका जा रहा हूं। पी एच डी वहा से कर के आऊंगा तो अच्छे विश्वविद्यालय में नौकरी मिल जाएगी । वो तो सुनते ही बहुत नाराज हो गए और बोले की क्या सिर्फ अपने लिए जीना चाहते हो या समाज के लिए ? किसलिए समाजवादी विचारधारा को अपनाया था इसलिए की एक दिन अमरीका चले जागोगे और वहा किसी मेम से शादी कर वही के हो जावोगे ? सिर्फ अपने बारे में सोचना है और सिर्फ अपने लिए जीना है तो जाओ ।
मैं परेशान हो गया । बचपन से समाजवादी नारे लगाता रहा ,ऊंच नीच की खाई और गैर बराबरी को खत्म होगी एक दिन इस विश्वास के साथ जीता रहा और अब सचमुच क्या मैं अमरीका जाकर लौटूंगा ? अगर वही बस गया तो घर परिवार रिश्तेदार और सब साथी तो छूट जायेंगे ।
और अंततः मैं अमरीका नहीं गया जिसपर मेरी पत्नी के बड़े भाई प्रकाश जी बहुत दिन तक नाराज रहे । ये भी सच है की न जाने के कारण जिंदगी में बहुत कष्ट सहना पड़ा और बहुत संघर्ष करना पड़ा । 
2016 में जब अमरीका गया तो पत्नी के उन्ही बड़े भाई प्रकाश जी  के घर अबर्न गया तो वो मुझे विश्वविद्यालय दिखाने ले गए और मेरा डिपार्टमेंट जहा मेरा एडमिशन हुआ था और अटलांटा में उनके साथ उनके बेटे के घर भी गया  जो वहा बहुत बड़ा कैंसर सर्जन है जिसने भारतीय रेस्त्रां में खाना खिलाया । उनकी बेटी जो सभावतः जी कंपनी में दूसरे बड़े पद पर है वो बाहर थी । फिर उनके साथ अबर्न से  लंबे ट्रिप पर फ्लोरिडा गया कहा इंटरनेशनल इलेक्ट्रिक व्हिकिल कांफ्रेंस थी । उन्होंने मुझसे आवेदन करवा दिया उस कांफ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए की में सोशल साइनटिस्ट हूं पर सामाजिक दृष्टि से इलेक्ट्रिक व्हिकिल की जरुरत पर अध्ययन में रुचि रखता हूं तो मुझे भी वहा से निमंत्रण आ गया मेल पर और फारेन गेस्ट प्रोफेसर के रूप में वहा लगने वाली 650 डालर की डेलीगेशन फीस भी माफ कर दी गई । प्रकाश जी अमरीका में इलेक्ट्रिक व्हिकिल पर जो तमाम रिसर्च हो रही है जिसमे सड़क को आर्मेचर के रूप में इस्तेमाल करने की भी है ताकि चलती हुई कर बिजली बनाती चले जो उसके काम आए और। बाकी एक तकनीक से स्टोर हो जाएगी और एक रिसर्च है की कैसे बैटरी को वजन से हल्की बैटरी बनाया जाए जो हजार किलोमीटर तक एक चार्जिंग में चल जाते इसको प्रकाश जी ही इसके हेड है ।अबर्न से फ्लोरिडा 1000 मील का कार से सफर कर शाम को हम लोग फ्लोरिडा पहुंच गए और हिल्टन होटल में रुकने का इंतजाम था वहा रुक गए । बीच में एक विश्वविद्यालय में उनके छात्र प्रोफेसर हो गए थे तो उनके घर पर लंच हुआ । बहुत श्रद्धा से उन्होंने तमाम पकवान बनवाया हुआ था । अमरीका के हाइवे बहुत अच्छे है तथा दोनो तरह बस हरियाली ही हरियाली है ।है 50 किलोमीटर पर रेस्ट एरिया बना हुआ है जहा रूक कर आप बाथरूम जा सकते है ,कुछ खा पी सकते है या खरीद सकते है ।स्टेट बदलने पर एकाध स्टेट में रेस्ट एरिया में स्वागत में स्टेट की तरफ से जूस इत्यादि भी मिला ।
फ्लोरिडा के पास ही नासा है । प्रकाश जी ने एक दिन सुबह ही मुझे वहां छोड़ दिया की शाम को आकर ले जाएंगे । नासा में मैने पूरा दिन बताया । उसका किस्सा अलग से ।
कांफ्रेंस के बाद हम लोग वापस अबर्न आ गए और रात में घर में बैठे बार कर रहे थे तो दो बाते हुई मैने पूछा की आप को 45 
साल से ज्यादा हो गए आप ने क्या खोया क्या पाया ? उन्होंने अपना बहुत ज्यादा बड़ा वाला घर जैसा फिल्मों में दिखता है वो दिखा चुके थे ,दो और घर जो उससे छोटे थे और किराए पर  उठे थे वो दिखा चुके थे और वहा ऐसा ही होता है की आदमी अपनी हैसियत के मुताबिक बड़ा घर लेता है और बच्चे अपने रास्ते अपने कैरियर के लिए निकलते जाते है तो घर छोटा करते जाते है तथा रिटायर लोग आमतौर पर बहुत छोटे घर में चले जाते है ऐसा घर भी जो वो ले रहे थे दिखाने ले गए थे ।अभी वाला घर भी बड़ा ही है और घर पिछवाड़े अपने प्लेटफार्म से उतरते ही गोल्फकोर्स है को खेलते रहते है । पीछे जो लकड़ी का प्लेटफार्म है उसपर बार्बे क्यू बना हुआ है पार्टियों के लिए और नीचे थोड़ा सा किचेन गार्डन है । खैर वो बोले की यहां बस काम और मेहनत से ही सर्वाइव किया जा सकता है और आगे बढ़ा जा सकता है । 5 दिन सुबह से शाम तक मेहनत करनी होती है यहां तक की भारत की तरह यहां काम का समय नहीं है शाम को भी यदि कोई छात्र को पूछता है तो रुकना होता है और रिसर्च के लिए भी । छुट्टी के दिन घर की सफाई , कपड़े धोना ,प्रेस करना सब खुद करना पड़ता है क्योंकि यहां नौकर अफोर्ड नही किया जा सकता है । बच्चो से भी कभी कभी ही मुलाकात होती है व्यस्तता के कारण । जीवन यही है । भारत की तरह अपनो और दोस्तो से गप मारने का कोई स्कोप नही है । यहां सब कुछ सिस्टेमेटिक है ,सब ऑनलाइन अपने आप हो जाता है ।किसी दफ्तर नही जाना ,कोई घूस नही मांगता , पुलिस या कोई परेशान नहीं करता और पूर्ण सुरक्षा है घर अगर जंगल के पास है और अकेला भी है तो कोई डर नही है । शीशे के दरवाजे है पर आप बंद कर कितने भी दिन के लिए चले जाइए । पॉल्यूशन नाम की चीज नही है ,पानी साफ है ,पुलिस मित्र की तरह है इत्यादि इत्यादि । पर कही मुझे उनके अंदर भारत की कसक दिखी जबकि वो अक्सर भारत आते रहते है ।
तभी मेरे अमरीका नही आ पाने का जिक्र छिड़ गया तो बोले की कोई बात नही आप की डेस्टिनी वही थी । ठीक है आप ने बहुत संघर्ष किया पर आज आपका भी वहा नाम है आज आप वहा राज्यमंत्री है ।
और अगले दिन उन्होंने अटलांटा एयरपोर्ट छोड़ दिया जहा से में न्यू यॉर्क चला गया । वहा मेरी पत्नी की भतीजी रहती है उसके पतिदेव मुझे लेने एयरपोर्ट आ गए । वही मेरा जन्मदिन मना और फिर अगले दिन से मैं न्यू यॉर्क के साइट सीन के साथ 5 दिन में टूर पर वॉशिंगटन डी सी , बोस्टन ,नियाग्रा फॉल्स इत्यादि चला गया । इसका किस्सा अलग से ।
मुझे सारे संघर्ष के बावजूद अमरीका पी एच डी करने नही जाने का कोई दुख नही है । राज नारायण जी की इच्छा का मैने मान रखा ।

एक थे बेनी बाबू

जिंदगी_के_झरोखे_से
एक बेनी बाबु थे यानी बेनी प्रसाद वर्मा। वो भी मेरे साथ मुलायम सिंह यादव के महामंत्री रह चुके है | एक दिन उनके पैसे से नमक वाला खाना भी खाया है | १९९० की बात है मुझे उन्होंने फोन कर घर बुलाया तब वो सरकार में कैबिनेट मंत्री भी थे और पार्टी के मंत्री भी । उन्होंने कहा चलिए आज आप को बढ़िया खाना खिलाते है और बाहर तो बोले सरकारी गाड़ी छोड़िए आप की ही गाड़ी से चलते है । आगे बढ़े तो उन्होंने गाड़ी क्लार्क अवध होटल ले चलने को कहा । वहा सबसे टॉप फ्लोर पर रेस्त्रां में चले गए हम लोग । उन्होंने कई नॉन वेज डिशेस का ऑर्डर किया और पहले चिकन सूप मगवाया। बात चलने लगी और वो पार्टी के बारे में कुरेद कुरेद कर कुछ बाते पूछते रहे तथा मुझे जितना बोलना चाहिए था उतना मैं बोला । कुछ मामलों पर नेता जी के विचार पता नहीं क्यों मुझसे जानना चाहते थे | खाने के बाद आइक्रीम खाते हुए बहुत अफ़सोस से बोले की मुलायम सिंह ने बहुत चालाक बना दिया है सी पी राय कुछ नहीं बोले | अब क्या कहता मैं ? 

यूं तो जब भी कोई राजनीतिक हलचल होती देश या प्रदेश की उनका फोन आ जाता था इस राजनीतिक हलचल के बारे में मेरा विचार जानने को । चुनाव परिणामों पर भी वो मेरी राय जानना चाहते थे ।सबका जिक्र कहा तक करे पर एक घटना का जिक्र और और कर देता हूं

अमर सिंह के कारण बेनी प्रसाद वर्मा, मो आजम खान और हम भी पार्टी से निस्कासित कर दिए गए थे । मुझे काफी सालो से हमेशा जुकाम होता रहता था जिसके बाद मेरे पूरे साइनस में पोलिप बनते बनते भर गया था और मुझे सांस लेने में दिक्कत आती थी । किसी ने राय दिया की दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में एक डाक्टर है जो पोलिप ऑपरेट कर निकाल देने के एक्सपर्ट है । मैं एक विश्वविद्यालय के साथी को लेकर दिल्ली जाना चाहता था ऑपरेशन के लिए पर बच्चे नही माने । बच्चो के साथ में दिल्ली पहुंच गया ।मेरी बड़ी बेटी सॉफ्टवेयर इंजिनियर बन चुकी थी और नोएडा में एक पीजी में रहती थी तो छोटी बेटी उसके साथ रुक गई और यू पी भवन में एक कमरा मुझे रहने को मिल गया तो बेटा मेरे साथ रुक गया ।

डाक्टर साहब ने पोलिप के 5000 ऑपरेशन कर रखा था । उनका कहना था की 15 मिनट में वो एक ऑपरेशन कर देते है पर मेरे ऑपरेशन में डेढ़ घंटा लग गया तो बच्चे थोड़ा घबड़ा गए । पोलिप इतना ज्यादा था की इतना समय लग गया । 

मुझे ऑपरेशन थियेटर से बाहर जब कमरे में लाया गया तो अभी तक मैं एनेस्थीसिया के नशे में ही था ।

इसी समय बेनी बाबू का फोन आ गया । बेटे ने बताया की अभी ऑपरेशन थियेटर बाहर आए ही है पापा । बेनी बाबू बोले की जरूरी बात है इसलिए बात करवाइए । बेनी बाबू कांग्रेस में शामिल हो गए थे और कांग्रेस सरकार के मंत्रिमंडल की शपथ होनी थी । उस समय उनकी जो सूचना आई वो राज्यमंत्री पद के लिए शपथ हेतु आई थी । बेनी बाबू बहुत वरिष्ठ नेता तो थे ही और कुर्मी बिरादरी में बड़ा जनाधार भी था । 

मुझे फोन दे दिया बेटे ने तो बोले अरे रायसाहब ये सोनिया ने तो धोखा दे दिया , राज्यमंत्री बना रही है ,में शपथ लेने जाऊं या नही जाऊं । मैने कहा की मुझे लगता है की आप को स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया जाएगा और यदि ऐसा होता है तो बुरा नही है तथा शपथ लेकर सोनिया जी को धन्यवाद देने भी जाएगा , शीघ्र कैबिनेट मंत्री और महत्त्वपूर्ण मंत्री भी बन जाएंगे । तब बोले की मुलायम सिंह का फोन आया था वो तो शपथ लेने से मना कर रहे थे तो मैंने कहा की आप उनकी पार्टी से बाहर आए है तो वो क्यों चाहेंगे की आप महत्वपूर्ण बने । शपथ लीजिए और केवल राज्यमंत्री बनाया जाए तो स्टीफा देना अपने हाथ में है और उन्होंने शपथ ले लिए तथा उस वक्त स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री बने और फिर स्टील के कैबिनेट मंत्री भी बना दिए गए ।

अकसर दिल्ली जाना होता और चर्चाएं होती रहती । ज्यादातर बेडरूम में लेते रहते या बैठे होते तो हर वक्त बगल में रखे थूकदान में थूकते रहते थे ।

एक दिन ऐसा भी आया जब उन्होंने लोकसभा में मुलायम सिंह यादव की मौजूदगी में ही उनपर बहुत से आरोप लगाए और उन्हे आतंकवादियों का साथी तक कह दिया और तमतमाते हुए उनका पैर पटक कर :::::; माई फुट वाला डायलॉग खूब चर्चा में रहा । 

बाद के चुनाव में चुनाव हार गए और फिर ऐसी परिस्थितियां बनी की समाजवादी पार्टी में वापस आ गए और उतनी गालियां देने के बदले राष्ट्रीय महासचिव बना दिए गए और राज्यसभा में भी भेज दिए गए क्योंकि वो एक पिछड़ी जाति के नेता थे ।

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2024

पहाड़ की नागिन की तरह इठलाती हुई सड़के

पहाड़ की नागिन की तरह इठलाती हुई सड़के कितनी रोमांचित करती है , कभी नीचे तो लगातार नीचे और कभी सीधी चढाई, एक तरफ ऊंचा पहाड़ तो दूसरी तरफ खाई ।
देखते है की बस वो रहा जहा जाना है पर कितना घुमाव होता है उतनी सी दूरी मे और कितने ऊंचा नीचा रास्ता होता है , बिल्कुल जिन्दगी की तरह । बहुत विरले होते है जो मुह मे सोने की चम्मच लेकर पैदा होते है , बाकी तो सभी की जिदगियाँ पहाड़ की चढाई जैसी ही होती है घुमावदार और थोडा सा चलने मे हंफ़ा देने वाली और ज्यादा समय लेने वाली । राजनीती मे तो ये कुछ ज्यादा ही होता है ।
पहाड़ के आज के सफर मे मुझे कुछ यूँ लगा की ये आज की व्यव्स्था और राजनीती जैसा है , एक तरफ गहरी खाई जो अधिकतर जनता के हिस्से मे आती है और दूसरी तरफ ऊंचा सीधा पहाड़ जिस पर चढा ही नही जा सकता है । खाई मे अगर मौत या तकलीफे है तो पहाड़ भी तो अनुत्पादक है और बेजान रूखा सा ।
कभी कभी लगता है की हम क्या देखने आते है इतना चल कर वो पहाड़ जिनकी हरियाली हमारे कर्मो से खत्म होती जा रही है ,या फिर कभी कभी गिर गयी बर्फ और चूँकि फिल्मो मे किसी हीरो हीरोइन को बर्फ का गोला एक दूसरे पर फेंकते देखा तो हम भी फेंक लेते है ,जैसे मेरी छोटी सी नतिनी इशान्वी मेरे ऊपर फेंक कर बहुत खुश हो रही थी ।
एक सिल्ली बर्फ को घिसवा कर ऐसा खेल अपनी छत पर भी खेला जा सकता है , पर फिर पहाड़ तो पहाड़ है और बात उसके नाम मे होती है कभी मसूरी , कभी शिमला तो कभी कश्मीर ।
मुझे पता नही क्यो पहाड़ो मे विचरण करना और थकना बिल्कुल पसंद नही है , पहाड़ ही क्यों समुद्र के बीच पर भी ।
मुझे अच्छा लगता है वह स्थान जहा से पहाड़ियां दिखती हो बर्फ से आच्छादित , या वह कमरे की खिडकी जिससे बस समुद्र को निहार सकूँ , अच्छा तो मुझे हरिद्वार का वो गेस्ट हाउस भी लगता है जो बिल्कुल बेराज पर बना है और उसकी बालकनी मे बैठ कर बेराज से कल कल की आवाज के साथ बहते पानी की आवाज और दूर तक के नदी का एहसास और उसके पार जंगल और पहाड़ की खामोशी ।
मुझे अच्छा लगता बस ये सब निहारना और खो जाना खुद मे या फिर कलम पकड़ कर रच देना कुछ । 
मुझे लगता है की प्रकृती निहारने की चीज है नापने की नही ।
आज भी गया मैं प्रकृती को निहारने पर गाड़ियो की भीड , चिल्ल पो , भीड का सैलाब इन सबने ग्रस लिया है प्रकृती को 
अब खोजूंगा कोई और जगह जहा ये शोर न हो ।
2006 मे ही तो आये थे जब हम सब थे ,उनके भगवान के पास जाने के पहले और रुके थे आई ए एस अकादमी के सामने वाले उस गेस्ट हाउस मे जो एकलौता जैसे झूल रहा हो पहाड़ से नीचे और उसके बाहर बना चबूतरा कितनी खूबसूरत जगह थी जहा धूप खिलती थी तो चमक उठता था सामने बर्फ से ढका पहाड़ । 
तब हमने तय किया था की यहा फिर आयेंगे पर फिर एक साल भर शायद हुआ था और साथी बिछड़ गया और शिमला हो ,कुफरी हो या मसूरी का वो गेस्ट हाउस या हरिद्वार की नदी के बेराज का वो खूबसूरत गेस्ट हाउस हमारी बाट ही जोह रहे है तब से।
अब तो डर लगने लगा है किसी भी ऐसे स्थांन पर किसी से भी ये कहने मे कि यहा फिर आयेंगे ।
पर

मंगलवार, 6 फ़रवरी 2024

मेरा_गांव_मेरा_घर

#मेरा_गांव_मेरा_घर 

आजमगढ़ में मेरे गांव में मेरा पैतृक निवास जिसमे सामने हिस्से में 10 कमरे है, सामने बरामदा है और घर के अंदर आंगन के चारो तरफ बरामदा है 
और जो दाहिनी दिख रहा है ये बैठक कहने को है इसमें सामने बड़ा बरामदा ,अंदर एक बड़ा कमरा ,नीचे तीन छोटे कमरे और ऊपर चार कमरे तथा एक और रसोई है ।।इसी के पीछे 60 के दशक का हो लैटिन बाथरूम बना हुआ है । 
घर के सामने आगे बहुत बड़ा द्वार और उसके भी आके काफी दूर तक जगह तथा अंत में एक छोटा सा बगीचा है ।
पहले कभी दरवाजे पर बहुत बड़ा छायेदार मौलश्री का छाएदार पेड़ तथा तथा आने बरामदे में बहुत ही मीठे और ठंडे पानी का कूवा था । इस रास्ते आने जाने वाले लोग मौलश्री के नीचे कुछ देर सुस्ताते थे और उस कुएं का पानी पीते थे ।ठीक सामने बीच में गन्ना पेरने और रस निकालने का कोल्हू था और दाहिनी तरह गुड बनाने का बड़ा चूल्हा या कडाह, उसके बगल में बहुत बड़ा इमली का पेड़ था और सामने की तरह बहुत बड़ा जामुन का पेड़ और शायद दो पाकड़ और गूलर का पेड़ था ।
दाहिनी तरह सामने तालाब है जो अब लोगो के अतिक्रमण से बहुत छोटा हो गया है और सूख भी गया वरना पहले उसमे बहुत मछली होती थी तथा एक परिवार द्वारा अपनी बहु की डूबा कर हत्या के काम भी आई थी । हम बच्चे लोग कटिया लगा देते थे और ज्योही कोई छोटी मछली पकड़ में आती थी पीछे वाले घर के बगल में जो तब बरदौर थी बैल गाय भैंस के लिए और सामने भूसा घर भी था उसके सामने के खाली मैदान में अरहर की सूखी डंठल जला लेते है और उसी पर मछली रख देते । थोड़ी देर में भुन जाती तो नमक लगाकर खा लेते और फिर दुबारा कटिया लगा लेते ।कभी कभी कहा जाता की तलाब हीड़ना है तो तमाम गांव के लोग तालाब पर हल्ला बोल देते और खूब हीडते थे ,पूरा तालाब मटमैला हो जाता तो सारी मछली परेशान होकर ऊपर आ जाती और मार ली जाती फिर अंत में अगर तय है तो बटवारा हो जाता वरना जिसने जो पकड़ा वो उसकी हो जाती थी ।
जाड़े में गांव में अधिकतम लोग चारपाई पर सोने के बजाय नीचे पुवाल बिछा लेते थे जो नीचे से गर्म रखता था और उसपर चादर या गद्दा बिछा लेते थे तथा रजाई ।
मेरे दरवाजे पर शाम से रात तक बातचीत की महफिल जमाते थी ।अगर गर्मी हुई तो जमीन पर खूब पानी का छिड़काव कर चारपाई और तख्त बिछ जाता, छत को भी पानी से ठंडा कर।लिया जाता सोने के लिए ।दरवाजे महफिल जमाते खासकर मेरे दादा जी के रहते कुछ ज्यादा और गांव में रहने वाले चाचा चूंकि शहर में पढ़ाते थे और वापसी में देर से आते थे तो थोड़ा संक्षिप्त । बाबा के समय जहा मानस चौपाई और दुनियादारी की तमाम बाते होती और अलग अलग घर के आए हुए लोग अपना अपना ज्ञान बाटते थे ,कभी बहस भी हो। जाती थी तो चाचा जी के समय गांव के लोगो की उत्सुकता उस दिन के अखबार को लेकर होती थी और देश दुनिया के क्या समाचार है ये जानने में होती थी ।
हम लोग जब शहर से जाते तो तमाम लोग मिलने आते और सुबह शाम चाय ,घुघनी, दाना भुजा या पकौड़ी और हलवा बनता जितने लोग आए होते थे ।
क्या क्या लिखूं गांव के बारे क्योंकि भावुक हो रहा हूं । मैं इसी घर में नही जो पुराने जमाने का दो मंजिला मोटी दीवार और छत पर करीने से लगाए गए खपड़ैल का घर थे उसके अंधेरे कमरे में पैदा हुआ था।
बाबा जी ईश्वर के यहां चले गए मेरे आगरा में घर से फिर बारी बारी गांव में रहने वाले चाचा और चाची भी चले गए ।।पहले है गर्मी की छुट्टी हम लोगो की गांव में ही कटती थी और कई बार किसी कारण से दो तीन बार जाना हो जाता था लेकिन सभी परिवार के लोग नौकरी वाले हो गए तो ये घर सूना हो गया । एक चचेचा भाई जो नेवी में था और अब बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के ट्रामा सेन्टर में काम करता है वही गांव का सब देखता है। यदि रिटायर होने के बाद उसने गांव में रहने का फैसला किया तो हो सकता है की गांव फिर गुलजार हो जाए और हम लोग भी वहा कुछ दिन बिताने लगे ।
पर सभी भाइयों ने बनारस में घर ले लिया है इसलिए स्थाई निवास तो मुश्किल ही लगता है ।।
अब नही लिखा जाएगा मुझसे ।।
हा ये बता दूं ये जो दिख रहा है ये हमारे घर का सिर्फ  आधा हिस्सा है । पिता जी के चचेरे भाई से बटवारे के बाद जो काफी दिन ग्राम प्रधान रहे तथा वही इंटर कालेज के प्राचार्य रहे ।

मंगलवार, 30 जनवरी 2024

30 जनवरी मार्ग और बापू

#जिंदगी_के_झरोखे_से 
वो 30 जनवरी की तारीख़ थी जो भारत के इतिहास की काली तारीख़ साबित हुयी और भारत ही क्या दुनिया को मानवता का रास्ता दिखाने वाला सूरज अस्त कर दिया गया एक हत्यारे द्वारा ।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हम सबके बापू दिल्ली के बिडला हाउस के एक छोटे से कमरे में रहते थे बहुत ही साधारण तरीक़े से । ज़मीन पर बैठते थे सोते थे , बहुत साधारण बर्तन में सादा भोजन करते थे ।
बापू रोज़ पीछे के मैदान में उपस्थित इंसानो से मिलते थे , उनके प्रश्नो का जवाब देते थे , रामधुन गाते थे , प्रार्थना करते थे और विभिन्न विषयों पर प्रवचन भी करते थे ।
कुछ देर पहले ही तो सरदार पटेल महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात कर के गए थे और कल ही तो बापू में ड़ा राममनोहर लोहिया को बुलाया था चर्चा करने को । रात हो रही थी और ड़ा लोहिया थके हुए थे जबकि बापू कुछ व्यस्त थे । जब बापू वापस आए तो ड़ा लोहिया गहरी नीद में सो गए थे । बापू ने उन्हें नही जगाया और ख़ुद भी ध्यान करने के बाद सो गए । सुबह बापू जल्दी जाग गए और अपनी नित्य की दिनचर्या में व्यस्त हो गए और ड़ा लोहिया उनके बाद जगे । लोहिया बापू के पास गए की बापू मुझे नीद आ गयी थी बताइए क्या आदेश है । बापू का समय निर्धारित होता था और उसी हिसाब से उनका जीवन चलता था इसलिए बापू ने उन्हें आज यानी ३० जनवरी को आने को कहा और इतना ज़रूर कह दिया कि आवश्यक बात करनी है और कांग्रेस के भविष्य पर तथा उसमें इन लोगों की भूमिका पर बात कर कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेना है । ड़ा लोहिया चले गए । 
३० तारीख़ को मिलने वालो ने सरदार पटेल प्रमुख थे और गम्भीर चर्चा कर वो वापस का चुके थे । 
बापू अपने नियत समय पर अपने कमरे के इसी चित्र वाले दरवाजे से प्रार्थना स्थल के लिए निकले और ज्यों ही नीचे की सीढ़ियाँ चढ़ कर आगे बढ़े भारत का पहला आतंकवादी जो इतना कायर था की आज़ादी की इतनी लम्बी लड़ाई में वो देश के लड़ना तो दूर जिसने कभी मुह छुपा कर भी अंग्रेज के ख़िलाफ़ कोई नारा तक नही लगाया था ,जिसने किसी अंग्रेज के घर की दीवार पर ग़ुस्सा दिखाने के लिए कभी एक कंकरी तक नही फेंका था और जिसने चंद दिन पहले ही अपने हाथ पर मुस्लिम नाम लिखवा लिया था उसी ने जिन अंग्रेजो कि कभी औक़ात नही हुयी बापू को उँगली से भी छूने की उन्होंने की अंग्रेज़ी पिस्तौल से उन्ही अंग्रेजो कि बनाई तीन गोलियाँ बापू के सीने में उतार दिया और भागने लगा जिसको वही के माली ने तमाचे मार कर पकड़ लिया ।
अपने को हिंदुओं का ठेकेदार बताने वाली एक सगठन जो अब देश भक्ति का उपदेश देता है ने तुरंत देश भर में फैलाया की बापू को मुसलमान ने मार दिया पर तुरंत नेहरू जी और पटेल जी ने निर्णय लिया और हत्यारे का नाम देश भर तक रेडियो से पहुँचा दिया । देश की जानता रोटी हुयी सड़क पर थी और कांग्रेसी गोलीय जनता को सच बताने निकल पड़ी ।
ड़ा लोहिया बापू से मिलने के लिए आ रहे थे और अभी थोड़ा दूर ही थे की पता लगा की सूरज अस्त हो गया । नेहरू जी ने रोते हुए कहा कि रोशनी ख़त्म हो गयी । 
दूसरी तरफ़ संघ और हिंदू महासभा ने ख़ुशी मनाया और मिठाई बाँटा । 
जी आज तीस जनवरी को 74 साल हो गए । वो ताकते जी बापू की हत्या के लिए ज़िम्मेदार है सब तक पैर जमा चुकी है तथा अपने आका के सपनो को उतार देना चाहती है बापू के भारत में हिटलर और मुसोलिनी ने भी जो रास्ता तय किया था उसी पर चल कर उन्ही की तरह  मानवता का क़त्ल करके और देश को जहन्नुम बना कर । 
इसलिए ३० जनवरी हमें चेतावनी देती है देश को समाज को और मानवता को बचाने की चेतावनी और हिटलर मसोलिनी का नही बल्कि बापू के सपनो का भारत बनाने की । 
काश उस दिन ड़ा लोहिया दो नही गए होते या काश बापू की हत्या नही हयी होती और आचार्य नरेंद्र देव , ड़ा लोहिया , जयप्रकाश , अच्युत पटवर्धन इत्यादि कांग्रेस में ही रहे होते तो शायद तस्वीर कुछ और होती पर आज इस बात को याद करने का दिन नही है बल्कि मानवतावादी सत्य अहिंसा ग्राम स्वराज और स्वावलम्बन बनाम हत्या दंगे , राक्षसी सोच और अंधाधुंध पूंजीवाद के बीच चलती लड़ाई में से अपना पक्ष चुनने का दिन है ।
आइए बापू के साथ खड़े हो । 
#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच

मंगलवार, 9 जनवरी 2024

1991 और वो सरदार जी

#जिंदगी_के_झरोखे_से 

सरदार जी जो बस बड़ी बाते कर एम एल सी बन गए :

1989 की बात है जब मैं मुलायम सिंह यादव जी के चुनाव का काम देख रहा था जसवंत नगर इटावा में । संभवतः पीलीभीत क्षेत्र के एक सरदार जी तथाथित तैर पर किसानों की कुछ समस्या लेकर मुलायम सिंह जी से मिले थे और शायद ये भी कह दिया था की उनके पास अच्छी खासी ताकत है कही भी भीड़ जाने के लिए ।तभी ये चुनाव पड़ गया । इस समय इटावा में बाबू दर्शन सिंह यादव जी बहुत बड़े और ताकतवर व्यक्ति थे तथा कभी मुलायम सिंह जी की मदद करते थे पर एक राजनीतिक घटनाक्रम के कारण जिसमे पहले उनको जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ाने की बात कह कर मुलायम सिंह जी ने रामगोपाल यादव को उम्मीदवार बना दिया था उसी से आहत होकर बैर भी हो गया था और वो काग्रेस में चले गए थे तथा वहा के नेता हो गए थे । जसवंत नगर में मुकाबला उन्ही दर्शन सिंह यादव जी से होना था । इस समय सरकारी गेस्ट हाउस में रुकने पर पाबंदी नहीं थी वैसे भी मुलायम सिंह जी ने सिंचाई विभाग के एक सूट को अपना स्थाई निवास बना रखा था क्योंकि शहर में उनका घर नही था और गांव में भी बस घर था , और चुनाव में गाड़ियों का काफिला लेकर चलने तथा हथियारों के साथ चलने पर रोक नही थी । 
दर्शन सिंह जी का आतंक था की भट्ठे में झोकवा देते है लोगो को और वो मुलायम सिंह जी पर शक्ति में इस वक्त कुछ हद भारी भी थे या ऐसा मनोवैज्ञानिक असर था  इसीलिए जब तक 10/12 राइफल एकत्र नही हो जाती तब तक मुलायम सिंह जी भी प्रचार के लिए नही निकलते थे ( ये भी यही जिक्र कर दे की इसी चुनाव में मुलायम सिंह जी पर गोली भी चली थी जिसमे वो बाल बाल बच गए थे एक हमर  द्वारा धक्का दे दिए जाने के कारण ,फिर शायद दर्शन सिंह जी भी कही हाथ लग गए थे शायद इसलिए की उस घटना के वक्त मैं मौजूद नही था बाद में लोगो से और मीडिया के दोस्तो से पता लगा था जिन लोगो के अचानक उसी स्थान पर पहुंच जाने के कारण दर्शन सिंह जी बच गए थे )। 
ये चुनाव बड़ा तनाव वाला था इसी में एक बार मुलायम सिंह जी नाराज होकर मुझे कह दिया था की मैं तत्काल इटावा छोड़ दूं और इलाहाबाद जनेश्वर मिश्र जी के चुनाव में चला जाऊं क्योंकि मैं कही भी चला जाता और भाषण देने लगाया तो उस दिन मुलायम सिंह जी ने गुस्से में कहा था की आप जानते है को वो भट्ठे में झोकवा देगा और आप की हड्डियां भी नही मिलेंगी और मैं आप के परिवार को क्या जवाब दूंगा और मैने जाने से इंकार कर दिया ये कह कर की मेरी मौत जब आनी होगी तभी आयेगी उसके पहले किसी की औकात नही जो मुझे मार दे और मैने अपनी तरह ही प्रचार जारी रखा ।
मैं बात कर रहा था सरदार जी की जिनका नाम अब याद नहीं । 
इस माहौल के कारण उनकी बन गई और 10/12 सिख लोगो के साथ आ गए और सिंचाई विभाग के गेस्ट हाउस की एनेक्सी में जम गए और जम कर दारू और मुर्गा चलने लगा ।
एक दिन उनका इम्तहान हो गया । वोटिंग के दिन जसवंत नगर कस्बे के पास  वाली पोलिंग पर गोली चल गई और मतदाताओं को भगाया जाने लगा जिसमे स्थानीय दरोगा तथा एस डी एम भी शामिल थे । उस पोलिंग पर मुलायम सिंह जी के पक्ष में मतदान होने की सभवना थी । मेरे पास खबर आई तो मैंने सरदार जी से कहा की आप लोग तुरंत चलो ऐसा हो गया है। मैने 10 मिनट इंतजार किया पर सारे लोग एक दूसरे का मुंह देखते रहे और जाने के प्रति बिलकुल अनिक्षुक तब मैंने अपनी गाड़ी उस पोलिंग की तरफ बढ़ा दिया और वहा जाकर अधिकारियों से भिड़ गया । इतने दिनो में पूरा क्षेत्र मुझे जान गया था और मेरे भाषणों का आकर्षण भी खूब था +जिसका जिक्र अगले किस्से में ) तो मुझे देखते ही तीतर बितर हुए लोग पोलिंग पर इकट्ठे हो गए और अंततः अधिकारियों को झुकना पड़ा और फिर पोलिंग शुरू हो गई ।
चुनाव हो गया मुलायम सिंह जी जीत गए और मुख्यमंत्री बन गए । दर्शन सिंह जी के कारोबार और भट्ठो पर खुद तांडव चला सत्ता का उनकी आर्थिक कमर भी तोड़ी गई और उनको दिल्ली में घर लेकर तब तक शरण लेनी पड़ी जब तक सत्ता रही । ये अलग बात है की बाद में उनसे समझौता भी हुआ और पार्टी में उनका सम्मान भी हुआ और उनको राज्य सभा सदस्य भी बनाया गया जिसपर मुलायम सिंह जी ने भी कहा की इस क्षेत्र में कोई भी विरोधी क्यों हो और दर्शन सिंह जी मुझसे मिले तो पहले तो ये कहा की आप ही है वो सी पी राय ? मैं सोचता था की कौन है ये नौजवान को बिना डरे मेरे क्षेत्र में चुनौती दे रहा है और फिर उनसे मेरी बहुत अच्छी दोस्ती हो गई । उन्होंने कहा की मैने सोचा की अपनी दुश्मनों अगली पीढ़ी को क्यों दिया जाए इसलिए समझौता कर लिया ।
इस बीच उत्तर प्रदेश में एम एल सी चुनाव आ गए । इसी चुनाव में मैने आगरा के खेरागढ़ से टिकट मांगा था जिसके लिए संसदीय बोर्ड के अधिकांश सदस्य मेरे पक्ष में था चौ देवीलाल विशेस तौर पर और जॉर्ज फर्नाडीज इत्यादि भी पर मुलायम सिंह जी वहा एक बदनाम व्यक्ति को टिकट देना चाहते थे तो उन्होंने संसदीय बोर्ड में ये कह दिया की सी पी राय मेरा चुनाव देखे और जब मैं मुख्यमंत्री हो जाऊंगा तो एम एल ए क्या होता है सी पी राय उससे ज्यादा बना दिए जायेंगे और इसपर पहले जॉर्ज साहब फिर देवीलाल जी और चंद्र शेखर जी सहित सभी ने कहा कि में जाकर मुलायम सिंह जी का चुनाव देखूं और जब वो मुख्यमंत्री हो जाएंगे तो उनका बड़ा है बोर्ड के सामने तो हो सकता है कि राज्यसभा दे या एम एल सी बना कर मंत्री ही बना दे , पर दोनो के चुनाव हुए तो मेरा नाम कही नही था और वो सरदार जी सिर्फ बाते बना कर एमएलसी बना दिया गए ।।फिर मुलायम सिंह जी मुझसे जब तक  सरकार रही मिले ही नही हा मुलाकात हुई जब सरकार जा रहती और 1991 का चुनाव आने वाले थे ।