बुधवार, 30 जून 2021

बंगाल का सबक

बंगाल की राजनीति और इस चुनाव के सबक -

पहले बंगाल की बात , बंगाल का चुनाव राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के लिये समन्वित रूप से अध्ययन और शोध का बहुत अच्छा विषय है ।इसका जितना सरलीकरण किया जा रहा है दर असल ये उतना ही पेचीदा है ।पहले 2019 का लोक सभा चुनाव जिसमे भाजपा 18 सीट पा गई ।दर असल वो भाजपा नही पायी बल्कि साम्यवादी पार्टियो के लोगो ने जितवा दिया क्योकी उनकी बड़ी दुश्मन ममता बनर्जी थी जिसने उनसे सत्ता और उनका सुख चैन छीना था । साम्यवादी नीचे का नेता और कार्यकर्ता भाजपा मे चला गया की ममता को कमजोर कर ले और राष्ट्रीय पार्टी जिसकी केंद्र मे सत्ता है उसमे रहने का भी लाभ मिलेगा तथा भाजपा यहा  जमीन पर है नही तो हम फिर वापस आ जायेगे  और बिल्कुल ही शुन्य भाजपा उतनी सीट पा गई ।
इस बार 140 से ज्यादा तृणमूल के लोगो को भाजपा ने टिकेट दे दिया और बड़ी संख्या मे उनके साथ वो स्थानीय नेता भी भाजपा मे आ गये जिनसे लडाई के कारण साम्यवादी भाजपा के साथ गये थे तो वो उस खाली जगह को भरने के लिये तृणमूल मे आ गये ।इस चुनाव मे तृणमूल का कुछ वो वोट जो उन नेताओ से जुडा था जो भाजपा मे गये और कुछ ऐसा वोट भी जो उत्तर प्रदेश बिहार और भाजपायी राज्यो की कहानी नही जानते और उनके जुमलो मे और आक्रमक प्रचार के प्रभाव मे आ गये और सोचा की एक बार भाजपा को भी देख ही ले इन वोटो ने भाजपा को ये सीटे जीता दिया ।
जबकी तृणमूल का अपना खुद का मजबूत आधार, अविवाहित बच्चियो और महिलाओ के लिये योजनाये , ममता की लोक प्रियता ,ममता का जुझारु तेवर जिसने मेरी निगाह मे  दिशा उसी दिन तय कर दिया था जिस दिन ममता ने मोदी जी के मंच पर ही उनके कार्यकर्ताओ की हरकत का विरोध कर बोलने से इंकार कर दिया था प्रोटेस्ट मे ,भाजपा का अहंकार और बंगाल को यू पी बिहार समझने की भूल ,साम्यवादी दलो का जीत के लिये आक्रमक न होना और कांग्रेस नेतृत्व का प्रारम्भिक लम्बे समय तक प्रचार से गायब रहने के कारण उसका वोट ममता की ऐतिहासिक जीत का कारण बना और साम्यवादी तथा कांग्रेस दोनो मे मारक नेतृत्व के अभाव ने उन्हे रसातल मे पहुचा दिया । मेरे इस चिंतन पर चिंतन कर बंगाल के चुनाव पर अध्ययन हो सकता है ।
मैं दो बाते मानता हूँ की यदि ये वोट की अदला बदली नही होती और कांग्रेस तथा साम्यवादी पूरी ताकत से प्रारंभ से ही लड़े होते तो भाजपा पुरानी स्थिति मे ही होती , कांग्रेस और साम्यवादीयो की बढत होती पर फिर भी ममता 170 से 180 सीट लाकर सरकार बनाती ।
दूसरा आरएसएस और भाजपा ने इस चुनाव मे अपने सारे शस्त्र प्रयोग कर लिये और बंगाल ने देख लिया ,बहुत सी बाते जिसके प्रचार मे आकर कुछ प्रतिशत ने भाजपा को वोट दिया अब उनकी बातो को कसौटी पर कसेगा इसलिए भाजपा की ये चरम स्थिति है और अब उसके लिये आगे कोई गुंजाइश नही है बशर्ते ममता इनसे सावधान रहे और इनके वत्सप ज्ञान और अफवाहो से बचा कर रखे और अपने नीचे काडर तथा तंत्र को सम्हाल कर रखे ।
समयावादियो को तो 50 के दशक की तरह फिर से शुरू करने की जरूरत है और अपनी पुरानी घिसी पिटी सोच और भारत के बजाय अमरीका और रुस चीन को देख कर कार्यक्रम और भाषण से बचना होगा ।
भाजपा को और आरएसएस को सबक है की पुराने जुमले और हथकंडे जितना चलना था चल चुके अब वो देश और समाज को ही खायेंगे और दुनिया बहुत आगे जा रही है अब 5000 साल पीछे देख कर भविष्य तय करना बंद करना होगा तो अपनी पुरानी सोच देश पर लादने से बाज आना होगा वर्ना ये लोग तो घरो मे घुस जायेंगे सरकार से बाहर होकर पर देश को बहुत भुगतना होगा । कश्मीर पर निर्णय के बाद लोक सभा मे गृह मंत्री का अहंकार पुर्ण बयान हमे कितना भारी पड गया ये कम से कम सत्ता चलाने वाले लोग तो जान ही गये ।मुस्लिम के सवाल पर अरब की राजकुमारी के मुखर होते ही वहा रहने वाले भारतीयो को क्या क्या भुगतना पड़ा और वहा से सिर्फ पेट्रोल नही बल्कि सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा भी आती है ।भारत के वहा के राजदूत से लेकर ऊपर तक लोगो को सफाई देनी पडी थी और भागवत जी को नयी थ्योरी देनी पडी की भारत मे पूरे 130 करोड लोग हिन्दू है जिनकी मान्यताये अलग अलग है ।अपनी खराब विदेश नीति से और सत्ता के मूल संगठन की हरकतो से हमने बहुत कुछ बिगाडा और बहुत कुछ खोया ।अभी हाल मे अचानक पाकिस्तान से प्रेम का व्यव्हार यूँ ही नही है और हमारे उच्च लोगो और उनके उच्च लोगो की लगातार बात हमारे और उनके लोगो की दुबई मे मुलाकात (ऐसा बताया जाता है ) सब यू ही नही है ।वर्ना तो मुसलमान और पकिस्तान ही संघ भाजपा इनकी भक्त मंडली और सुपारी मीडिया का दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया था । अब विश्व राज नीति बदल रही है और अरब देश से लेकर तुर्की तक एक नयी धुरी बन रही है ।चीन से हमारे विवाद है ,लाल आंख का सवाल था ,साम्यवाद से घृणा के कारण सबसे विश्वसनीय दोस्त रुस के साथ अब वो रिश्ता नही रहा ,अमरीका व्यापारी है और कभी भी बहुत विश्वसनीय नही रहा, वर्तमान सत्ता समूह इस्राइल की तरफ झुका हुआ है पर इस्राइल खुद संकट मे है ,सारे पडोसी जो हमारे लिये छोटे भाई थे और हम पर आश्रित थे उनको हमने सामने खड़ा कर लिया ।
ऐसे मे उम्मीद सिर्फ अरब देशो की नयी धुरी से बचती है जो संघ के सोच और हरकतो से तो नही होने वाला है ।
कांग्रेस को तो लगातार सबक मिल रहे है और हर सबक पर चर्चा होती है कि अब बदलेगा सब ,चिंतन और मंथन होता है,वही पुरानी घिसी पिटी सोच के लोगो की चिंतन मंथन कमेटियां बनती है और फिर वो अपने ढर्रे पर ही चलती है  ।


बुधवार, 23 जून 2021

जिन्दगी के झरोखे से

जिंदगी_के_झरोखे_से--


मेनका गांधी की गालिया और नेता जी राज नारायणजी की शिक्षा --


 मेनका गांधी के बारे मे पढा की उन्होने किसी वेटनरी डाक्टर को भद्दी भद्दी गलियाँ दिया ।इस पर मुझे ये संभवतः 1981/82 का किस्सा याद आ गया ।
राज नारायणजी 6 तीन मूर्ती लेन मे रहते थे और सभी समाजवादीयो का दिल्ली जाने पर रहने सोने ही के साथ नहाने और हर वक्त खाने का ठिकाना यही घर होता था । राज नारायणजी के घर डबल बेड और सोफ़ा नही था । वो खुद नीचे जमीन पर ही बैठते थे और सोते थे । उनके कमरे के बाहर के कमरे मे पूरा इस दीवार से उस दीवार तक बिस्तर और चादर बिछा था । यही पर बीच मे बड़ी से प्लास्टिक बिछ जाती थी और वो दस्तरखान बन जाता था जिपर बैठ कर घर मे उस वक्त मौजूद सभी एक साथ खाना खाते थे और रात को सोने का बिस्तर । चूंकि ये घर संसद सदस्य मनीराम बागड़ी के नाम से था जो ज्यादातर हरियाणा मे या कही अपने घर पर रहते थे पर एक कमरा उनका बंद रहता था बेड वाला और सांसद को मिलने वाला फर्नीचर उस हिस्से मे रखा था ।बाहर के बड़े कमरे मे कुछ सोफे भी थी । राज नारायणजी के पास बाहर का छोटा ऑफिस वाला कमरा था , अन्दर का ये मल्टी पर्पस कमरा था ,जिसमे राज नारायणजी रहते थे दर असल वो साइड का बरामदा घेर कर बना हुआ कमरा था और बगल वाले कमरे का बाथरूम इससे जोड़ दिया गया था । बड़े कमरे के पीछे का एक कमरा था जो कर्मचारियो और जिनको बाहर जगह नही मिलती उनके सोने के काम आता ।पीछे एक बडा स्टोर था जिसमे आटा दाल सब्जिया इत्यादि भरी रहती थी कही कही से प्राप्त हुयी और उसके बगल मे रसोई तथा पीछे छोटा सा आंगन कपडे सूखने को ।
अक्सर हाल ये होता था की बाहर बागड़ी जी वाला ड्राइंग रूम भी पूरा भर जाता था ।
कितने भी लोग हो नेता जी की रसोई सबको खिला देती थी ।
बाहर गेट के ठीक सामने का गेराज क्रन्तिकारी और विद्वान युवा लोगो के कमरे मे तब्दील कर दिया गया था और बाहर तो बहुत बाल लांन था जो अच्छे खासे सम्मेलनो और प्रदर्शन की तैयारियो का गवाह बना ।
पर यहा बात मेनका गांधी के किस्से की ।
मैं जब भी राज नारायणजी के घर रहता वो कही मिलने जाते तो अक्सर मुझे भी ले जाते थे चाहे मोहन मिकिन्स के मालिक ब्रिगेडियर कपिल मोहन का घर हो या किसी भी और बड़े नेता का ।
उस दिन मेनका गांधी ने राज नारायणजी को सुबह नाश्ते के लिये बुलाया था । ये वो समय था जब मेनका गांधी इन्दिरा गाँधी जी के घर से बाहर निकल आई थी और राजनीति मे पैर रख चुकी थी जिसको राज नारायणजी जी का हर तरह सहारा प्राप्त था ।मेनका गांधी महारानी बाग मे अपनी मा के घर रह रही थी ।
नेता जी ने रात को ही बता दिया था कि सुबह कही चलना है तैयार हो जाइयेगा ।
सुबह हम दोनो उनकी कार मे रवाना हो गये ।महारानी बाग की एक अच्छी कोठी मे कार रुकी तो तुरंत मेनका गांधी राज नारायणजी की अगवानी करने बाहर आयी ।
हम लोग अंदर गये और एक भव्य ड्राइंग रूम जो अच्छी तरह सज़ा था मे बैठ गये जहा पानी आया । नेता जी ने मेनका गांधी से मेरा परिचय करवाया नाम बता कर बोले की ये हमारे परिवार के है और बहुत क्रांतिकारी युवा नेता है ,आने वाले समय मे मेरा नाम रोशन करेंगे (जो मैं नही कर सका क्योकी उतनी हिम्मत नही जुटा पाया और उतना त्यागी नही हो पाया ) । फिर टेबल पर आने का आग्रह हुआ । ड़ाइनिँग टेबल पर कटे हुये फल , अंकुरित चना इत्यादि , पाराठे दही , लस्सी , कुछ मिठाईयाँ , जलेबी ,ब्रेड जैम इत्यादि बहुत कुछ लगा था और आया जा रहा था । राज नारायणजी पूरे मन से नाश्ता करने लगे ।मैने भी नाश्ते मे इतनी चीजे पहली बार देखा था पर संकोच मे थोडा थोडा सब लिया और खाने लग गया  ।
तभी मेनका गांधी राजनीतिक बाते और कार्य योजना पर बाते करने लगी । वहा तक तो ठीक था पर अचानक एं टी रामाराव और बहुगुणा जी के बारे मे भद्दी कुछ बाते कह कर भद्दी गलिया देने लगी और फिर उनकी भाषा सतही स्तर पर उतर गयी
और वो भी क्रांतिकारी नेता राज नारायणजी के सामने जो मेरे लिये बर्दाश्त करना मुश्किल था क्योकी राज नारायणजी मेरे आदर्श भी थे और पारिवारिक बुजुर्ग भी ।
मेरा गुस्सा बढ रहा था पर नेता जी  ने भांप कर मुझे चुपचाप नाश्ता करने का इशारा किया । मेनका गांधी के घर से वापसी के लिये हम लोग गाडी मे बैठ गये जहा मेनका गांधी और उनकी मा ने विदा किया ।
गाडी मे बैठते ही मैने कहा की आप ने मेनका को डाँटा क्यो नही वो इतनी छोटी और आप के सामने बेलिहाज ऐसी गालिया दे रही थी इतने बड़े लोगो को ।
राज नारायणजी बोले की मेरा ध्यान नाश्ते मे था जिसके लिये उन्होने मुझे बुलाया था और आप का ध्यान उनकी बातो मे ।
जिस काम के लिये कही गये वही करना चाहिए ।
नाश्ता तो बहुत अच्छा था ।
मैने तो कोई गाली नही सुना ।
वाह लोकबंधु राज नारायणजी ( सुभाषचंद्र बोस के बाद और अजादी के बाद आचार्य नरेंद्र द्वारा दिये नाम के अनुसार असली "नेताजी "।
ये मेरे लिये एक शिक्षा थी ।

शनिवार, 12 जून 2021

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#यादो_के_झरोखे_से

जब #मुलायम_सिंह यादव जी और #मैं_दोनो_डर_के_मारे बिला वजह #हंस और #बोल रहे थे -
1991/92 का किस्सा है उत्तर प्रदेश पार्टी की प्रदेश कार्यकारणी की बैठक थी नैनीताल मे । फिल्मकार मुजफ्फर अली जो समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार भी रह चुके है लखनऊ से उनका नैनीताल झील के पास पार्किंग से ऊपर सामने जा रहे रास्ते से चढ़ कर बहुत ही खूबसूरत बंगला है । मुजफ्फर अली ने पूरी कार्यकारिणी को अपने घर रात्रि भोज पर आमंत्रित किया था । 
हम लोग उत्तर प्रदेश भवन से नीचे उतर कर पार्किंग स्थल पर पहुचे और वही सामने ऊपर जा रहे रास्ते पर जाना था । वहा पार्किंग मे लोगो ने ऊपर चढ़ने के लिए घोड़े से चलने को कहा पर सारे लोगो ने घोड़े पर बैठने से मना कर दिया की ज्यादा दूर नही है पैदल ही चलेंगे ,पर मुलायम सिंह जी घोड़े पर बैठ गए और दूसरे घोड़े पर मैं भी । थोडी देर पहले ही बारिश हुई थी और सड़क भीगी हुई भी थी बल्की ऊपर से नीचे की तरफ पानी बह रहा था ।
पहाडी घोड़े पता नही क्यो खाई वाली तरफ के किनारे पर चलते है आज तक नही जान पाया और पूछ भी नही पाया ,अब पता लगाऊंगा ।
खैर हमारे घोड़े भी खाई के बिल्कुल किनारे पर चलने लगे और बाकी लोग पैदल । बिल्कुल किनारे पर चलते घोड़े पर हम दोनो की हालत खराब हो रही थी पर बीच मे उतर भी नही सकते थे ,समझा जा सकता है कारण और कुछ कह भी नही पा रहे थे तो दोनो ध्यान बटाने और डर पर काबू पाने के लिए कुछ बिला वजह बात करने लगे जोर जोर से बोल कर और उसी के साथ जोर से हंसने लगते 
और बाकी पैदल चलने वाले बिना जाने हमारी हालत और बाते यूँ ही हंसी मे साथ दे रहे थे ।
खैर किसी तरह मुजफ्फर अली का घर आ गया और उतरने का मौका मिला तो जान मे जान आई ।
मुलायम सिंह जी ने धीरे से पूछा सी पी राय डर लग रहा था न कि घोडा कही खाई की तरफ पैर फिसल गया तो ।
मैने कहा हा तभी तो हंस रहे थे और उनसे पूछा आप को ? जवाब वही था ।उतरते वक्त रकाबी मे फंस कर मेरे पजामे का नीचे पायचे का हिस्सा फट गया था ।
पर 
उसके बाद आनंद ही आनंद था । बढिया संस्कृतिक कार्यक्रम और बहुत ही दिव्य भोजन ।
और 
वापसी मे घोड़े पर बैठने की गलती हम दोनो ने नही किया कि खाने के बाद टहलना चाहिये ।
हा हा हा हा हा हा हा ।