गुरुवार, 23 सितंबर 2010

चेहरे नही इंसान पढ़े जाते है ,मजहब नही ईमान पढ़े जाते है |भारत ही ऐसा देश है जहा एक साथ ,गीता और कुरान पढ़े जाते है |इन्होने हमारी एकता को नही तोडा है .अतः हमें एक साथ खड़ा रहना होगा ,ना मस्जिद ना मंदिर ,बस एक देश भारत और हम भारतीय |

रविवार, 19 सितंबर 2010

मुशर्रफ के बयान के बाद भी क्या कुछ होगा

                                                                                                                                                                              पाकिस्तान के पूर्व सेनापति और राष्ट्रपति मुशर्रफ ने अमरीका में यह बयान देकर की अतंकवादियो को पाकिस्तान लगातार प्रशिक्षण दे रहा है ,भारत के आरोपों को तों स्वीकार ही है ,चोरी और सीनाजोरी वाला काम भी किया है |एक तरह देखे तों इस तरह उसने  भारत की सत्ता को, साहस को,और सहन शक्ति को चुनौती दी है | अब तों  भारत को कुछ कड़े कदम उठाने ही होंगे | इसमे तों कोई शक ही नही था  कि ये सारी वारदातें कहा से होती है ,कहा से षड़यंत्र होता है और कहा से हथियार और चंद सिक्को के बदले मरने और मारने के लिए ये लडके भेजे जाते है | अमरीका एक तरफ आतंकवाद से लड़ने कि बात करता है इसी नाम पर कभी इराक तों कभी अफगानिस्तान में फ़ौज उतार देता है  और दूसरी तरफ आतंकवाद कि खेती को उगाने  और उसके लिए खाद पानी का इंतजाम करने के लिए आतंकवाद के जनक और सबसे बड़े सप्लायर देश पाकिस्तान को अरबो डालर हर साल देता है |क्या अमरीका को मुशर्रफ के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले में कार्यवाही नही करनी चाहिये ,क्या मुशर्रफ़ के इस बयान के बाद अमरीका को पाकिस्तान को दी जाने वाली खरबो डालर  वाली सहायता सिर्फ बंद ही नही कर देनी चाहिए  बल्कि दिया हुआ धन वापस नही मांग लेना चाहिए ,क्या इंग्लॅण्ड को मुशर्रफ़ का उनके देश में निवास रद्द नही कर देना चाहिए |यह सवाल कम से कम आतंकवाद का सबसे बड़ा दंश झेल रहे भारतियो के दिमाग में तों कौंध ही रहा है पर अमरीका शायद दोअहरी नीति ही अपनाये रखे |
अमरीका कि यह दोगली नीति उसे भी खोखला कर रही है ,वह भी एक बड़ा आतंकवादी हमला झेल चुका है ,जिसमे उसकी सारी व्यवस्थाएं धरी कि धरी रह गयी |आतंकवादियों ने उन्ही का जहाज इस्तेमाल किया और उनका गरूर भी तोडा तथा उनकी सत्ता को चुनौती भी दिया |इनकी खुद कि रपट बताती है कि उस वक्त किस तरह सारे हुक्मरान जमीन के नीचे बनी खंदको में छुप गए थे |पाकिस्तान हर बार हर युद्ध में मुह कि खा चुका है ,यह अमरीका अच्छी तरह जानता है |लेकिन भारत बड़ी शक्ति ना बन जाये ,उसके सामने खड़ा ना हो जाये और अमरीकी व्यापारियों का हथियार बिकता रहे ,इसके लिए वह जरूरी समझाता है कि भारत को उलझाये रखो |पड़ोसियों को लड़ाते  रहो ,.ठीक वैसे जैसे आजादी के पहले हिन्दू मुसलमानों को लड़ाया करते थे |पाकिस्तान कि हालात इतनी ख़राब है कि वह अमरीका कि भीख पर जीने को मजबूर है ,वरना वहा भूखो मरने कि नौबत आ जाएगी |कभी कुछ नही करने के कारण ,कभी कट्टर कठ मुल्लाओ के दबाव में होने के कारण और ज्यादातर फ़ौज का शासन होने के कारण वहा विकास कि बात ही नही ,और जनता भी अपना दबाव नही बना पाई | पाकिस्तान से मिली खैरात का इस्तेमाल केवल भारत के खिलाफ करता है ,यहाँ कि तरक्की के खिलाफ करता है ,विकास के खिलाफ करता है | क्योकि उसका तों विकास से कुछ लेना देना नही है | वहा तों फ़ौज के बूटो के नीचे लोकतंत्र कुचला जा चुका है और फ़ौज को ताकतवर रहना है तों भारत का हौवा दिखा कर छद्म युद्ध छेड़े ही रखना होगा | वहा के राजनीतिको को भी कुछ काम करने के बजाय यही विकल्प ठीक लगता है कि इस कायराना युद्ध से फायदे ही फायदे है | बिना कुछ किये फ़ौज के साये में सत्ता का लुत्फ़ भी उठाते है और इसके खर्चो का कोई हिसाब किताब नही होता है | जिसके कारण वहा के सारे नेता भारी दौलत और संपत्ति विदेश में बना कर रखते है कि पता नही कब फ़ौज भागा दे और देश छोड़ कर कही शरण लेनी पड़े | कई साल पहले पाकिस्तान के एक बड़े अधिकारी से मिलने का मौका मिला | वे आजादी के बाद अलीगढ से पढ़ कर वहा गए थे | देश के एक विभाग के सबसे बड़े पद पर थे | उन्होंने कहा कि मै यहाँ होता तों क्या होता ? वहा हम सभी भाइयो कि अलग अलग कई एकड़ में कोठियां है ,कई एकड़ का चिलगोजे का फार्म है और बाहर भी बहुत कुछ है ,क्या उतना यहाँ होता ?वे रिटायर होने के बाद सब बेंच कर उसी पच्छिमी देश चले गए जहा सम्पति होने का उन्होंने जिक्र किया था | उस वक्त जिया राष्ट्रपति थे तथा जुनेजो प्रधान मंत्री थे | कट्टर इस्लाम कानून लागू था | उनके बच्चे कि शादी हुई जिसमे मै नही जा पाया था | लेकिन एक हमारे साथी गए थे ,जिनके कारण मेरा परिचय हुआ था | उस साथी ने लौट कर जो फोटो दिखाए तथा जो वर्णन किया वह पाकिस्तान का असली चेहरा जानने के लिए काफी था  | जहा भारत के खिलाफ केवल कायराना युद्ध लड़ कर इतना सब हासिल हो और जनता कोई सवाल नही करती हो ,आतंकवाद वहा का सबसे बड़ा रोजगार बन गया है तों क्या बड़ी बात है |
   जब दुनिया यह सब जानती है ,अमरीका सहित दुनिया के सभी देश यह सब जानते है और भारत कि सरकार यह सब जानती है तों फिर यह सहा क्यों जा रहा है ?अमरीका, इंग्लॅण्ड,सहित वे सभी देश जो सामूहिक रूप से आतंकवाद के खिलाफ लड़ने कि बात करते है यहाँ उन्होंने चुप्पी क्यों ओढ़ राखी है |सिर्फ इसलिए कि उनके लिए आतकवाद नही ,मानवता नही बल्कि उनके हित और उनका व्यापार ज्यादा महत्वपूर्ण है |लेकिन भारत क्यों सह रहा है ?क्या भारत कमजोर हो गया है ?क्या भारत किसी दबाव में है ?क्या भारत में इच्छाशक्ति कि कमी हो गयी है या भारत के वर्तमान नेता कमजोर साबित हो रहे है |क्या यहाँ अब कोई इंदिरा गाँधी जैसा नही है ,लाल बहादुर शास्त्री जैसा नही है |या मन का विश्वास और खून कि गरमी कही कमजोर पड़ गयी है |19७१ में एक सबक दिया तों अगले २० साल से अधिक तक या कारगिल तक देश काफी चैन से रहा |सवाल है कि  युद्ध में हथियार खर्च होता है ,वह हो रहा है ,पैसा खर्च होता है ,वह और ज्यादा हो रहा है ,लोग प्राण गवांते है ,वह भी युद्ध के मुकाबले ज्यादा लोग मर रहे है | युद्ध में तों सिपाही लड़ कर कुछ लोगो को मार कर मरता है और जनता पूरी तरह सुरक्षित रहती है | पर इस युद्ध में तों सिपाही बिना लड़े ही मर रहा है और जनता भी मारी जा रही है ,बेगुनाह जनता  | जब सब कुछ युद्ध से ज्यादा हो रहा है और इन परिस्थितियों से विकास भी प्रभावित होता है और जीवन भी प्रभासित हो रहा है  तों फिर एक बार अंतिम लड़ाई क्यों नही |समझाने  कि कोशिश बहुत हो चुकी ,वार्ताएं बहुत हो चुकी ,बस और ट्रेन चल चुकी ,भारत पाक एकता कि बाते हो चुकी ,विभिन्न वर्गों का आदान प्रदान हो चुका लेकिन कुत्ते कि पूंछ इतने वर्षो बाद भी टेढ़ी कि टेढ़ी है तों अब रास्ता क्या है ,सरकार को बताना तों पड़ेगा कि सब्र का पैमाना कब भरा हुआ माना  जायेगा और सरकार कब फैसलाकुन फैसला लेगी | सौ करोड़ से बड़ा यह देश जवाब का इंतजार कर रहा है |
चार छोकरों कि हरकतें ,उनके धमाके और गोली भारत का रास्ता नही रोक सकती ,सरकार हार जाये पर भारत कि जनता बहुत बहादुर है |अमरीका कि तरह यहाँ कायरता पूर्ण हरकते भी नही होंगी | पूरी कोशिश थी रास्त्रमंडल खेल ख़राब करने की और देश की फिजा ख़राब करने की पर खेल भी हुआ  और  अयोध्या पर अदालत का फैसला भी हुआ और इस देश ने दिखा दिया की यह देश और इसका लोकतंत्र परिपक्व हो चुका है .सब अच्छे माहौल में हुआ और हो रहा है और रहेगा भी लेकिन पडोसी की और उसके पूर्व रास्त्रध्यक्ष की  यह चिकोटी अब बहुत बुरी लगने लगी है|जब कुछ लगातार बुरा लगत है  तों थप्पड़ तों बिना सोचे समझे अपने आप भी चल जाता है |क्या भारत कि सरकार का  स्वस्फूर्त थप्पड़ अब चलेगा ?नही तों कब चलेगा ?जनता रोज रोज के बजाय अब एक अंतिम इलाज चाहती है |जनता कह रही है ;रे रोक युधिस्ठिर को ना अब ,लौटा दे अर्जुन वीर हमें |                                                                                                     
                                                                                                   
                                                                                       
                                                                                                                                                                                                                                                               
बच्चा बोला देख कर एक मस्जिद आलीशान | अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान | मंदिर में घी पूड़ी और चढ़े मिस्ठान | बाहर बैठा दीन देवता मांग रहा है दान | मंदिर मस्जिद के लिए नही ,भारत के नवनिर्माण के लिए संघर्स करे |

शनिवार, 11 सितंबर 2010

 मन बहुत अशांत है ,समाज विरोधी ,मानवता विरोधी , देश विरोधी लोग फिर दंगे कि साजिश कर रहे है | एक फैसला आना है ,अदालत का फैसला |ऐसे मामले में जिसमे एक बार देश दंगो कि आग में झुलस चुका है |चारो तरफ बस चीख पुकार ,हत्याएं ,बलात्कार ,लूट पाट ,बस मौत का तांडव ,आग ही आग |लेकिन एक बार कुछ लोग कामयाब हो गए |दंगे ,बलात्कार ,खून और आग ने उनकी सरकार बनवा दी |फिर मुद्दा भूल गए ,जहा जो मिला टूट पड़े जर ,जोरू या जमीन |एक समय तों ऐसा आ गया था कि सभी शहरो में कहावत चल पड़ी थी कि जमीन ख़ाली मत छोडो ताला लगा दो वरना जन्मभूमि भक्त कब्ज़ा कर लेंगे |जो संगठन अपने को आदर्श कहता था उसके लोग सीडी में नारी या मातृशक्ति का उद्धार करते दिखलाई दिए | संगठन के अध्यक्ष पद पर बैठा व्यक्ति टी वी पर घूस लेता दिखलाई दिया | मंदिर का सबसे बड़ा अलमबरदार गृहमंत्री के पद बैठा तों टी वी पर यह कहता दिखलाई दिया कि एक मंदिर के लिए हम सरकार नही गवा सकते | कश्मीर में झंडा फहराने निकलने वाला पूर्व अध्यक्ष मंत्री पद पाते ही कश्मीर ,धारा ३७० ,समान कानून सब भूल गया | विदेश मंत्री पद पर बैठा सूरमा सेना के जहाज से हजारो के कातिल को और सबसे बड़े आतंकवादी को सैकड़ो करोड़ रूपये के साथ, आदर के साथ उसके घर पहुँचने चला गया | आदर्श हिन्दू नेताओ को झींगा मछली का स्वाद लेते हुए भी हिन्दू समाज ने देखा ,तथाकथित साधू संतो को हजारो एकड़ जमीने हथियाते हुए भी देश ने देखा | दुशमन देश कि छाती पर चढ़ आया और इन देश भक्तो कि सरकार को सोते हुए देश ने देखा ,जिसमे बड़े पैमाने पर देश के जवानो को क़ुरबानी देनी पड़ी तब वह हमारी जमीन आजाद हो पाई ,जवानो ने कहा कि यदि नीचे से ऊपर बैठे हुओ से युद्ध में बोफोर्स तोप नही होती तों लड़ाई मुश्किल थी और यह कह कर इन देश भक्तो कि सरकार में जिस राजीव गाँधी पर इन सबने तोहमते लगे थी उसकी जिंदाबाद करते देखा | इन सूर्माओ कि सरकार में की सरकार में कफ़न से लेकर ताबूत तक के घोटालो को देश ने देखा | जिनका दावा है की उनका संगठन गली गली में फैला है ,वे देश की रक्षा के लिए कटिबद्ध है उनकी सरकार में चार छोकरे तमन्च्चे लेकर देश की अस्मिता और सत्ता तथा सार्वभौमिकता के प्रतीक संसद में घुस आये और इन्हें मेजो के नीचे छुपते हए देखा तब भी गरीबो के घर के नौजवानों ने प्राण की आहुति देकर उसकी रक्षा किया जिन गरीबो से ये नफ़रत करते है क्योकि इनके समर्थक और आधार ही जमाखोर और मुनाफाखोर जमात के लोग है| क्या क्या बताये पूरी सरकार गंध मारने लगी थी | मौका लगते ही देश ने ,जनता ने सबक सिखाया और औकात पर पहुंचा दिया | देश ने अभी यह भी देखा की जिस शिबू सोरेन के कारण इन लोगो ने हफ्तों संसद नही चलाने दिया था ,अब उसी से हाथ मिला कर सरकार बना लिया | सरकार जाने के बाद इनकी पोल फिर खुली बम्बई के हमले के समय ,वहा भी ये और इनका सूरमा संगठन कही दिखलाई नही पड़ा |१९७७ की पहली सरकार में जब ये शामिल थे तों उस समय के लोगो को याद होगा की पहली शपथ में इनके आदमी को उद्द्योग मंत्री बनाया गया था ,तब भी उस माहौल की बनी सरकार में भी इनके उस आदमी ने भ्रस्टाचार कर दिया ,जिसके कारण उसका विभाग बदल कर वह विभाग जोर्ज को दिया गया था |उस घटना का जिक्र मै करना नही चाहता था ,क्योकि पता नही वह व्यक्ति सफाई देने को जिन्दा है या नही ,और समाज की व्यवस्था है की दिवंगतो के बारे में कुछ नही कहा जाता है ,पर मुझे देश को इनका असली चेहरा दिखाने के लिए यह सब याद दिलाना पद रहा है | दीनदयाल उपाध्याय की हत्या को खोलने की ये कभी मांग नही करते है और ना चाहते है ,क्योकि ये इनके कट्टर विचारो का विरोध करने का मन बना चुके थे और अगली जगह पहुँच कर वह शायद ऐसा करने वाले थे | सुबहा होता है की उनकी मौत कुछ उन्ही के कट्टर लोगो ने तों नही कर दिया था क्योकि जो लोग गाँधी जी की हत्या कर सकते है ये कायराना तरीके से किसी की भी हत्या कर सकते है | ये सब इतिहास की बाते है और इतिहास के गर्भ में है ,लेकिन इतिहास लिखा ही इसीलिए जाता है की पीढ़िया पढ़े ,याद रखे और सबक ले की अब वह सब नही होने देंगे | आपातकाल जिसको लेकर ये बहुत गाना गाते है और छाती चौड़ी करने की कोशिश करते है ,देश भूला नही है की चार दिन में ही एक लाख से अधिक ये सूरमा माफ़ी मांग कर और सरकार की नीतियों में आस्था प्रकट कर जेलों से घर पहुँच गए थे तथा ज्योही आपातकाल ख़त्म हुआ दाढ़ी बढ़ा कर आ गए कहते हुए की हम तों फरार थे ,देश ने ये सब देखा है | मंदिर के मामले में जब चंद्रशेखर जी की सरकार में वार्तालाप एक निष्कर्ष पर पहुँच गया था और फैसला होने वाला था समझौते का तों आपस में राय करने की बात कर ये लोग बाहर गए फिर लौट कर ही नही आये ,क्योकि बाहर राय हुई की मुद्दा ही समाप्त  हो जायेगा तों फिर राजनीति करने के लिए क्या रह जायेगा | अपनी सरकार में देश से वादा करने के बावजूद ,सर्वोच्च न्यायलय में हलफनामा देने के बावजूद इन्होने कानून व्यवस्था के लिए और देश की साझा विरासत को बचाने के लिए कुछ नही किया | इन्होने देश देश का कानून भी तोडा ,संविधान को नाकारा और देश का दिल भी तोडा |खैर जब कोई बात नही बनी तों पूरे देश ने कहा की या तों बात से मामला सुलझ जाये या फिर अदालत निर्णय कर दे | देश की उसी भावना के अंतर्गत इतनी लम्बी सुनवाई के बाद अब फैसला आने की घडी आ गयी है तों ये सूरमा फिर कुलबुलाने लगे है ,तरह के ढोंग और व्यूहरचना शुरू कर दिया है की दंगा कैसे भड़काया जाये |इसी देश की कहावत है की काठ हांड़ी केवल एक बार चढ़ती है ,शायद इन्हें याद नही है |
यह देश दंगा नही केवल विकास कहता है ,देश को ताकतवर चाहता है और चाहता है की अमन चैन कायम रहे |इसलिए वह अब इनके साथ नही है| देश इनको समझने लगा है पर फिर भी इनसे सावधान रहने की आवश्यकता है |आइये मिलजुल कर ऐसा माहौल बनाये कि ये घिनौने इरादों में  कामयाब ना हो पाये |१-कण, कण में बसे है अपने आदर्श राम ,हो सके तों उन्हें छोटे वृत्त में ना डालिए ,अपनी जन्म भूमि राम जी सम्हाल लेंगे ,हो सके तों आप मातृभूमि को सम्हालिए |2-धर्म को अगर राजनीति से जोड़ा जायेगा ,बस्ती बस्ती अश्वमेघ का घोडा जायेगा ,राम राज्य स्थापित करने वालो से पूछो ,सीता को क्या फिर से वन में छोड़ा जायेगा |३-साधू जो सचमुच साधू है उन्हें समझाना चाहिए की ---बादशाहों से फकीरों का बड़ा था मर्तबा ,लेकिन जब तक उनका सियासत से कोई मतलब ना था |  जय हिंद

बुधवार, 8 सितंबर 2010

कांग्रेस के लोग राहुल के मिशन को पलीता लगाने में लगे है ,पूरे नौ माह हो गए संगठन कि चुनाव प्रक्रिया में  लगता है कि जो कांग्रेस पहले नंबर पर दिख रही थी वो कोमा में चली गयी है ,पूरी फर्जी सदस्यता ,कोरा और फर्जी कागजी काम ,तमाम भाग दौड़ ,और अंत में वही ढ़ाक के तीन पात ,वही चेहरे ,जिन्हें लोग पसंद नही करते ,वही लोग जिनके कर्मो के कारण पार्टी कमजोर हुई वही सब फिर स्थापित हो गए ,कुछ नही बदला .तमाम जगह चुनाव के नाम पर फर्जी खाना  पूरी हुई .सवाल ये है कि इस सारे फर्जी कामो से पार्टी कैसे खड़ी होगी .पूरी पार्टी सत्ता से या दूसरी पार्टियों से लड़ने के स्थान पर आपसी लड़ाई में लगी है .जनता के सामने तमाम मुसीबते है लेकिन जब तमाम कार्यकर्ता खुद मुसीबत में हो अपना फर्जी अस्तित्व बचाने के तों जनता कि लड़ाई कोंन लड़े .ऐसे कैसे २०१२ का मिशन पूरा होगा .
कार्यकर्ताओ का इस बात पर बिलकुल विश्वाश नही है कि पहले बंजर खेत को उपजाऊ बनाये मेहनत करके और फसल पैदा करने कि कोशिश करे ,जब फसल हो जाये तब तय कर ले कि किसकी कितनी रोटी है .सूत ना कपास औए लट्ठम लट्ठा वाली कहावत सही में देखनी हो तों उत्तर प्रदेश और बिहार कि कांग्रेस कि राजनीत देख ले ,उसका अर्थ पता लग जायेगा . उत्तर प्रदेश और  बिहार कि जनता तमाम दलों से ऊब गयी है और परिवर्तन के लिए कांग्रेस कि तरफ देख रही है ,देश के पैमाने पर राहुल ने एक विश्वाश और उम्मीद भी जगाया है ,लेकिन जनता जाग चुकी है वह फिर से कूए से निकल कर खाई में नही गिरना चाहती है ,वह चाहती है कि उसके सामने कांग्रेस अपना भविष्य का एजेंडा रखे ,संभावित नेता का नाम रखे ,विकास का एक रोड मैप सामने रखे ,जिससे जनता विश्वाश कर सके कि आने वाले लोग इससे पहले वाली सरकारों कि तरह लुटेरे नही होंगे ,विकास के  दुश्मन नही होगे ,कानून व्यवस्था के मामले में नपुंसक नही साबित होंगे .लगता ये है कि राहुल को और ज्यादा समय देकर इन प्रदेशो कि नकेल अपने हाथ में लेनी होगी ,वरना इन कार्यकर्ताओ कि हरकतों से कुछ बनने के स्थान पर बिगड़ ज्यादा रहा है .राहुल जितना माहौल बनाते है सबको ये पुराने बिगडैल बर्बाद कर देते है .जबकि पिछले बीस से अधिक सालो में ये प्रदेश इतने पिछड़ गए है कि इन्हें पटरी पर लाने के लिए कांग्रेस की एक मजबूत  इरादे के साथ ,मजबूत औए ईमानदार नेता के साथ ,विकास कि रणनीति के साथ ,सोचे समझे कार्यक्रम और एजेंडे के साथ बहुत जरूरत है .सभी कि दिलचस्पी इस बात में है कि कांग्रेसियों कि हरकते और आदते दल को बर्बाद करने में कामयाब होती है या राहुल के मजबूत इरादे कामयाब होते है ,जनता तों यही चाहेगी कि राहुल कामयाब हो .

रविवार, 5 सितंबर 2010

महात्मा गाँधी को जवाब चाहिये

                                    महत्मा गाँधी को जवाब चाहिए

--------------------------------------------------------------------------------------------------------

                                                                                                                                                                                                                                                                                       बहुत आश्चर्यचकित है हिंदुस्तान आज उन ताकतों के द्वारा महत्मा गाँधी की माला जपने से जिनके आदर्शो ने आज से 65 वर्ष पूर्व महात्मा गाँधी की महज शारीरिक हत्या कर दी थी ,लेकिन बापू मरे नही | अपने विचारो और आदर्शो के साथ वो आज भी जिन्दा है | 65 वर्ष बीत गए | इतनी  लम्बी अवधि में एक पूरी पीढ़ी गुजर जाती है ,रास्ट्र के जीवन में अनगिनत संघर्षो ,संकल्पों और समीक्षाओ का दौर आता और जाता रहा | इतने उतार और चढाव के बावजूद अगर आज भी किसी का वजूद कायम है तों निश्चय ही उनमे कुछ तों चमत्कार होगा | बापू को इसी नजरिये से देखने की जरूरत है |
मुल्क को आजादी दिलाने के बाद भी वे संतुस्ट नही थे | सत्ता से अलग रहकर वह एक और कठिन कम में लगे थे | वे देश की आर्थिक ,सामाजिक और नैतिक आजादी के लिए एक नए संघर्ष की उधेड़बुन में थे | रामधुन ,चरखा ,चिंतन तथा प्रवचन उनकी दिनचर्या थी | एक दिन पहले ही उनकी प्रार्थना सभा के पास धमाका हुआ था लेकिन दुनिया का महानतम सत्याग्रही विचलित नही हुआ | वह स्वावलंबी भारत का स्वप्न देखते थे |वह गाँवो को अधिकार संपन्न ,जागरूक तथा अंतिम व्यक्ति को भी देश का मजबूत आधार बनाना चाहते थे |जब दिल्ली में उनके कारण आई सरकार स्वरुप ले रही थी ,स्वतंत्रता का जश्न मन रहा था ,तब बापू दूर बंगाल में खून खराबा रोकने के लिए आमरण कर रहे थे | बापू की दिनचर्या में परिवर्तन नही ,विचारो में लेशमात्र भटकाव नही ,लम्बी लड़ाई के बाद भी थकान नही और लक्ष्य के प्रति तनिक भी उदारता नही | अहिंसा को सबसे बड़ा हथियार मानने वाले बापू निर्विकार भाव से अपनी यात्रा पर चले जा रहे थे की तभी एक अनजान हाथ प्रकट हुआ जो आजादी की लड़ाई में कही नही दिखा था ,ना बापू के साथ ,ना सुभाष के साथ और ना भगत सिंह के साथ | उस हाथ में थी अंग्रेजो की बनाई पिस्तोल, उससे निकाली अंग्रेजो की बनाई गोली ,वह भी अंग्रेजो के दम दबा कर भाग जाने के बाद ,तथाकथित हिन्दोस्तानी हाथ से | वह महापुरुष जिसके कारण इतनी बड़ी साम्राज्यवादी ताकत का सब कुछ छीन रहा था ,फिर भी उनके शरीर पर एक खरोंच लगाने की हिम्मत नही कर पाई ,जिस अफ्रीका की रंगभेदी सरकार भी बल प्रयोग नही कर सकी थी, उनके सीने में अंग्रेजो की गोली उतार दी एक सिरफिरे कायर ने वह महापुरुष चला गया हे राम कहता हुआ |गाँधी जी के राम सत्ता और राजनीति के लिए इस्तेमाल होने वाले राम नही थे बल्कि व्यक्तिगत जीवन में आस्था तथा आदर्श के प्रेरणाश्रोत इश्वर थे |
तब आर एस एस पर उगली उठी थी ,उसपर पाबन्दी भी लगी और संघ क कट्टर सदस्य होने के बावजूद अज्ञात कारनो से हत्यारे ने अपने संघ से रिश्ते नकार दिये | सवाल उठा की बापू की हत्या क्यों की गयी |आज भी यह सवाल अनुत्तरित है | इस सवाल की प्रेतछाया से बचाने के लिए ही शायद भाजपा ने कुछ वर्षो पहले गांधीवाद शब्द का प्रयोग किया था संघ से बहुत विरोध हुवा था और फिर कभी नाम नही लिया । यह गिरगिट के रंग बदलने के समान ही था | गाँधी जी फासीवाद के रास्ते की बड़ी बाधा थे | गाँधी जी 'ईश्वर- अल्ला तेरो नाम 'तथा 'वैष्णवजन तों तेने कहिये प्रीत पराई जाने रे 'की तरफ सबको ले जाना चाहते थे | बापू के आदर्श राम ,बुद्ध ,महावीर ,विवेकानंद तथा अरविन्द थे | हिटलर को आदर्श मानने वाले हिटलर कि तारीफ करते हुए किताब लिखने वाले और हिटलर को आदर्श बताने वाले और गान्धी जी हत्यारे को महान बताने कि किताब छाप कर बाटने वाले उन्हें कैसे स्वीकार करते ? गाँधी सत्य को जीवन का आदर्श मानते थे ,झूठ को सौ बार सौ जगह बोल कर सच बनाने वाले उन्हें कैसे स्वीकार करते ? शायद इसीलिए महात्मा के शरीर को मार दिया  गया | 
क्या इससे गाँधी सचमुच ख़त्म हो गए ? बापू यदि ख़त्म हो गए तों मार्टिन लूथर किंग को प्रेरणा किसने दी ? नेल्सन मंडेला ने किस की रोशनी के सहारे सारा जीवन जेल में बिता दिया ,परन्तु अहिंसक आन्दोलन चलते रहे और अंत में विजयी हुए ? दलाई लामा किस विश्वास पर लड़ रहे है इतने सालो से ? खान अब्दुल गफ्फार खान अंतिम समय तक सीमान्त गाँधी कहलाने में क्यों गर्व महसूस करते रहे ? अमरीका के राष्ट्रपति आज भी किसको आदर्श मानते है और दुनिया में बाकी लोगो को भी मानने की शिक्षा देते रहते है ?अभी हाल मे कुछ देशो मे अहिंसक क्रान्ति किसके रस्ते पर चल कर हुई । संयुक्त रास्ट्र संघ के सभा कक्ष से लेकर १२२ देशो की राजधानियों ने महात्मा गाँधी को जिन्दा रखा है |कही उनके नाम पर सड़क बनी ,तों कही शोध या शिक्षा संस्थान और कुछ नही तों प्रतिमा तों जरूर लगी है |जिसको भारत में मिटाने का प्रयास किया गया ,वह पूरी दुनिया में जिन्दा है | महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने कहा की आने वाली पीढियां शायद ही इस बात पर यकीन कर सकेंगी की कभी पृथ्वी पर ऐसा हाड़ मांस का पुतला भी चला था | जिस नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को गाँधी के विरुद्ध बताया गया ,उन्होंने जापान से महात्मा गाँधी को रास्ट्रपिता कह कर पुकारा तथा कहा की यदि आजादी मिलती है तों वे चाहेंगे की देश की बागडोर रास्ट्रपिता सम्हालें ,वह स्वयं एक सिपाही की भूमिका में ही रहना चाहेंगे | परन्तु बापू को सत्ता नही ,जनता की चिंता थी ,उसकी तकलीफों की चिंता थी |
उन्होंने कहा की भूखे आदमी के सामने ईश्वर को रोटी के रूप में आना चाहिए | यह वाक्य मार्क्सवाद के आगे का है | उन्होंने कहा की आदतन खादी पहने ,जिससे देश स्वदेशी तथा स्वावलंबन की दिशा में चल सके ,लोगो को रोजगार मिल सके | नई तालीम के आधार पर लोगो को मुफ्त शिक्षा दी जाये | लोगो को लोकतंत्र और मताधिकार का महत्व समझाया जाये और उसके लिए प्रेरित किया जाये | उन्होंने सत्ता के विकेन्द्रीकरण ,धर्म ,मानवता ,समाज और रास्ट्र सहित उन तमाम मुद्दों की तरफ लोगो का ध्यान खींचा जो आज भी ज्वलंत प्रश्न है|
वे और उनके विचार आज भी जिन्दा है और प्रासंगिक है | अमरीका में कुछ वर्ष पूर्व जब हिलेरी क्लिंटन ने बापू पर कोई हलकी बात कर दिया तों अमरीका के लोगो ने ही इतना विरोध किया की चार दिन के अन्दर ही हिलेरी को खेद व्यक्त करना पड़ा | गुजरात की घटनाओं के समय जब हैदराबाद में दो समुदाय के हजारों लोग आमने -सामने आँखों में खून तथा दिल में नफरत लेकर एकत्र हो गए ,तों वहा दोनों समुदाय की मुट्ठी भर औरते मानव श्रंखला बना कर दोनों के बीच खड़ी हो गयी | यह गाँधी का बताया रास्ता ही तों था ,वहा विचार के रूप में गाँधी ही तों खड़े थे | कुछ साल पहले अहिंसा के पुँजारी बापू के घर गुजरात में राम ,रहीम और गाँधी तीनो को पराजित करने की चेष्टा हुई ,लेकिन हत्यारे ना गाँधी के हो सकते है ,ना राम के ना रहीम के | और गुजरात काण्ड के हीरो पता नही कैसे महात्मा गान्धी का नाम लेने और लगातार लेने कि हिम्मत जुटा रहे है । समय बतायेगा कि बापू और सरदार का नाम लेने के पीछे असली मंशा क्या है । 
महत्मा गाँधी तों नही मरे ,फिर हत्यारे ने मारा किसे था ?ऐसे सिरफिरे लोग और उनके संगठन कितनी हत्याएं करेंगे ?पिछले 65 वर्षो में भी वे गाँधी को नही मार पाये है | वह कौन सा दिन होगा जब फासीवादी लोग गाँधी की पूर्ण हत्या करने में कामयाब हो पाएंगे ? सचेत रहना पड़ेगा की फासीवादी ताकतें अचानक बापू का इस्तेमाल करने लगी ? इसके पीछे देश को हिटलर की तरह भ्रमित कर सत्ता हथियाने और फासीवाद थोप कर बापू की अंतिम हत्या करने का उद्देश्य तो नहीं है ?  जिम्मेदारी और जवाबदेही बापू को मानने वालो की है की सत्ता की ताकत से महात्मा गाँधी को बौना करने ,उन्हें गाली देने और गोली मरने वालो से मानवता को बचाएं और देश को बचाएं  |रास्ता वही होगा जो गाँधीजी  ने दिखाया था | पैसठवा वर्ष जवाब चाहता है दोनों से की फासीवादियो तुमने गाँधी को मारा क्यों था ?उद्देश्य क्या था ? तुम कहा तक पहुंचे ?उनके मानने  वालो से भी कि आर्थिक गैर बराबरी ,सामाजिक गैर बराबरी के खिलाफ ,नफ़रत और शोषण के खिलाफ बापू द्वारा छेड़ा गया युद्ध फैसलाकुन कब तक होगा ? उनके सपनो का भारत कब तक बनेगा ? इन सवालो के साथ महात्मा गाँधी तथा उनके विचार आज भी जिन्दा है और कल भी हमारे बीच मौजूद रहेंगे |