सोमवार, 30 जनवरी 2023

३० जनवरी बापू का संदेश

वो 30 जनवरी की तारीख़ थी जो भारत के इतिहास की काली तारीख़ साबित हुयी और भारत ही क्या दुनिया को मानवता का रास्ता दिखाने वाला सूरज अस्त कर दिया गया एक हत्यारे द्वारा ।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हम सबके बापू दिल्ली के बिडला हाउस के एक छोटे से कमरे में रहते थे बहुत ही साधारण तरीक़े से । ज़मीन पर बैठते थे सोते थे , बहुत साधारण बर्तन में सादा भोजन करते थे ।
बापू रोज़ पीछे के मैदान में उपस्थित इंसानो से मिलते थे , उनके प्रश्नो का जवाब देते थे , रामधुन गाते थे , प्रार्थना करते थे और विभिन्न विषयों पर प्रवचन भी करते थे ।
कुछ देर पहले ही तो सरदार पटेल महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात कर के गए थे और कल ही तो बापू में ड़ा राममनोहर लोहिया को बुलाया था चर्चा करने को । रात हो रही थी और ड़ा लोहिया थके हुए थे जबकि बापू कुछ व्यस्त थे । जब बापू वापस आए तो ड़ा लोहिया गहरी नीद में सो गए थे । बापू ने उन्हें नही जगाया और ख़ुद भी ध्यान करने के बाद सो गए । सुबह बापू जल्दी जाग गए और अपनी नित्य की दिनचर्या में व्यस्त हो गए और ड़ा लोहिया उनके बाद जगे । लोहिया बापू के पास गए की बापू मुझे नीद आ गयी थी बताइए क्या आदेश है । बापू का समय निर्धारित होता था और उसी हिसाब से उनका जीवन चलता था इसलिए बापू ने उन्हें आज यानी ३० जनवरी को आने को कहा और इतना ज़रूर कह दिया कि आवश्यक बात करनी है और कांग्रेस के भविष्य पर तथा उसमें इन लोगों की भूमिका पर बात कर कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेना है । ड़ा लोहिया चले गए । 
३० तारीख़ को मिलने वालो ने सरदार पटेल प्रमुख थे और गम्भीर चर्चा कर वो वापस का चुके थे । 
बापू अपने नियत समय पर अपने कमरे के इसी चित्र वाले दरवाजे से प्रार्थना स्थल के लिए निकले और ज्यों ही नीचे की सीढ़ियाँ चढ़ कर आगे बढ़े भारत का पहला आतंकवादी जो इतना कायर था की आज़ादी की इतनी लम्बी लड़ाई में वो देश के लड़ना तो दूर जिसने कभी मुह छुपा कर भी अंग्रेज के ख़िलाफ़ कोई नारा तक नही लगाया था ,जिसने किसी अंग्रेज के घर की दीवार पर ग़ुस्सा दिखाने के लिए कभी एक कंकरी तक नही फेंका था और जिसने चंद दिन पहले ही अपने हाथ पर मुस्लिम नाम लिखवा लिया था उसी ने जिन अंग्रेजो कि कभी औक़ात नही हुयी बापू को उँगली से भी छूने की उन्होंने की अंग्रेज़ी पिस्तौल से उन्ही अंग्रेजो कि बनाई तीन गोलियाँ बापू के सीने में उतार दिया और भागने लगा जिसको वही के माली ने तमाचे मार कर पकड़ लिया ।
अपने को हिंदुओं का ठेकेदार बताने वाली एक सगठन जो अब देश भक्ति का उपदेश देता है ने तुरंत देश भर में फैलाया की बापू को मुसलमान ने मार दिया पर तुरंत नेहरू जी और पटेल जी ने निर्णय लिया और हत्यारे का नाम देश भर तक रेडियो से पहुँचा दिया । देश की जानता रोटी हुयी सड़क पर थी और कांग्रेसी गोलीय जनता को सच बताने निकल पड़ी ।
ड़ा लोहिया बापू से मिलने के लिए आ रहे थे और अभी थोड़ा दूर ही थे की पता लगा की सूरज अस्त हो गया । नेहरू जी ने रोते हुए कहा कि रोशनी ख़त्म हो गयी । 
दूसरी तरफ़ संघ और हिंदू महासभा ने ख़ुशी मनाया और मिठाई बाँटा । 
जी आज तीस जनवरी को 74 साल हो गए । वो ताकते जी बापू की हत्या के लिए ज़िम्मेदार है सब तक पैर जमा चुकी है तथा अपने आका के सपनो को उतार देना चाहती है बापू के भारत में हिटलर और मुसोलिनी ने भी जो रास्ता तय किया था उसी पर चल कर उन्ही की तरह  मानवता का क़त्ल करके और देश को जहन्नुम बना कर । 
इसलिए ३० जनवरी हमें चेतावनी देती है देश को समाज को और मानवता को बचाने की चेतावनी और हिटलर मसोलिनी का नही बल्कि बापू के सपनो का भारत बनाने की । 
काश उस दिन ड़ा लोहिया दो नही गए होते या काश बापू की हत्या नही हयी होती और आचार्य नरेंद्र देव , ड़ा लोहिया , जयप्रकाश , अच्युत पटवर्धन इत्यादि कांग्रेस में ही रहे होते तो शायद तस्वीर कुछ और होती पर आज इस बात को याद करने का दिन नही है बल्कि मानवतावादी सत्य अहिंसा ग्राम स्वराज और स्वावलम्बन बनाम हत्या दंगे , राक्षसी सोच और अंधाधुंध पूंजीवाद के बीच चलती लड़ाई में से अपना पक्ष चुनने का दिन है ।
आइए बापू के साथ खड़े हो । 
#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच

रविवार, 22 जनवरी 2023

पड़ोसियों के साथ महासंघ वक्त की मांग है |

 पड़ोसियों के साथ महासंघ वक्त की मांग है |

क्या अब उचित समय है की भारत, पाकिस्तान, बंगला देश और संभव हो तो नेपाल ,भूटान और श्रीलंका का भी एक ,महासंघ बन जाना चाहिये ? यद्दपि बंगला देश ने काफी तरक्की किया है और मजबूत भी हुआ है | नेपाल भारत और चीन के बीच झूल रहा है सहायता के लिए तो पाकिस्तान अमेरिका और चीन के बीच और यहिओ स्थिति श्रीलंका की भी है | भूटान छोटा है और पड़ोसियों की सहायता पर निर्भर है तो भारत भी अपनी सैन्य आवश्यकताओ के लिए तो अन्य देशो पर निर्भर है इसे भी अंतर्राष्ट्रीय मदद की दरकार भी रहती है |
यद्दपि भारत ने पिछली सरकारों के समय काफी तरक्की किया है और आर्थिक क्षेत्र हो ,अंतरिक्ष का क्षेत्र हो या सैन्य ताकत ,सभी में दुनिया के बड़े देशो की क़तार में खडा हो गया है पर इसकी भी बेतहाशा बढ़ती हुयी जनसँख्या और उसमे युवाओं की बड़ी संख्या इसके सामने चुनौती बनने वाली है क्योकि एक सीमा तक युवा राष्ट्र उत्पादक होता है और ताकत होता है पर अगर नीतियां रोजगार का निर्माण न कर रही है और पूँजी का वितरण देश में और समाज में तार्किक न हो बल्कि उसका विकेन्द्रीयकरण के बजाय केन्द्रीयकरण हो रहा हो तो बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ती है और बेरोजगार युवा देश पर बोझ ही नहीं मुसीबत साबित हो सकता है जिसका भारत के परिपेक्ष्य में अनुमान लगाना मुश्किल नहीं होना चाहिए | पाकिस्तान भी आर्थिक मामलों से लेकर अंदरूनी समस्यायों से झूझ रहा है और आतंकवाद की आंच उसे भी जला रही है |
भारत ,पाकिस्तान और बंगला देश तो हमेशा से एक देश रहा है | इन तीनो देशो किन संस्कृति , खानपान ,[पहनावा ,मौसम ,फसले , नदियाँ ,पहाड़ ,भाषा ,बोली ,इतिहास सब कुछ तो एक ही है | इन देशो का कोई भारत आता है तो न भारत उसे बेगाना लगता है और न इन देशो में जाने वाले भारतीयों को एव लोग बेगाने लगते है | पाकिस्तान जाकर लौटने वाले सारे लोगो नर यही बताया की वहा बहुती प्यार और इज्जत मिली और वहा के लोगो ने हाथोहाथ लिया भारत का जानकार | समस्याए भी एक जैसी ही है करीब करीब | अगर पकिस्तान में धार्मिक कट्टरता ने उसको पीछे किया है तो बंगला देश में भी कट्टर तकते सर उठाती रहती है और भारत भी धार्मिक घृणा की तरफ धकेला जा रहा है कुछ ताकतों द्ववारा |
नेपाल लगातार अस्तिर है तो श्रीलंका अभी एक आन्तरिक युद्ध से ठीक से उबार भी नहीं पाया है | ये सारे देश एक दूसरे के खिलाफ होने या साथ नहीं होंने के कारण सेना और हथियार पर बहुत बड़ा धन खर्च करने को मजबूर है और आपस में सहयोगी नहीं होने के कारण खासकर पकिस्तान की सीमा और व्यापार बंद होने के कारण वही चीजे दूसरो से महंगा लेने को मजबूर है | जबकि अगर ये सब देश एक देश की तरह या ढीले ढाले महासंघ के रूप में काम करने लगे और उन मुद्दों को उठा कर किनारे टांग दे जो इतने वर्षो से केवल आत्मघाती साबित हुए है तो ये सभी बहुत मजबूत हो सकते है | केवल सेना और हथियार का खर्च ही कम हो गया और आपसी तनाव ख़त्म हो जाये तथा सीमाए खुल जाए और दुश्मन की जगह सहयोगी बन जाए तो ये सभी देश खुशहाल हो जायेंगे |
पर सवाल है की ये होगा कैसे ? इन देशो के विद्वान ,सिविल सोसायटी , कलाकार ,लेखक ,कवि और छात्र मिलकर इसकी बुनियाद डाल सकते है अगर बडे पैमाने पर इन लोगो का एक दूसरे के यहाँ आना जान शुरू हो जाये ,मैत्री संघ बन जाए और उसको सरकारों की भी मान्यता तथा सहायता मिले | वैसे तो अगर जर्मनी का एकीकरण हो सकता है तो भारत ,पाकिस्तान और बंगला देश का क्यों नहीं हो सकता ? एक प्रधानमंत्री ,दो उप प्रधानमन्त्री का फार्मूला चल सकता है प्रारम्भिक तौर पर और दो उप राष्ट्रपति का या राष्ट्रपति बारी बरी तीनो जगह से होम सकते है और जब सब ठीक लगे तो एक देश के रूप में काम करने लग सकते है | प्रारम्भिक तौर पर केवल सुरक्षा ,विदेश नीति ,संचार ,और मुद्रा एक रहे और बाकि चीजे तीनो की स्वतन्त्र रहे और सेना का संयुक्त कमांड हो जो आपस के लियुए नहीं बल्कि अन्य देश की सीमओं के लिए काम करे तथा आपसी सीमओं से सेना पूरी तरह हट जाये | आगे चल कर एकीकरण की प्रक्रिया पूरी की जा सकती है पूरा सामंजस्य बैठ जाने और आपसी विश्वास कायम होने तथा तात्कालिक व्यवस्था के सफल हो जाने के बाद |
यही फार्मूला बाकी पड़ोसियों के साथ भी अपनाया जा सकता है | यद्दपि ये आसान नहीं है और दुनिया को अपनी रियाया समझने वाली तकते ऐसा आसानी से होने नहीं देगी पर चुनौती भी तो यही है और उन ताकतों के शोषण तथा दादागिरी के खिलाफ और खुद को सशक्त करने तथा अपनी समस्याओ से निपटने में आपसी सहयोग स्थापित करने के लिये ही तो इस एकीकरण अथवा प्रारम्भिक तौर पर धीलेढाले महासंघ की आवश्यकता है | पर इसके लिए इन देशो और समाजो को उन ताकतों को तो किनारे लगाना ही होगा जो धार्मिक अथवा जातीय कट्टरता वाला समाज अथवा देश बनाना चाहते है क्योकि ऐसा महासंघ तो सिर्फ मानवता की बुनियाद पर और मानवता की बहबूदी के लिए ही बन सकता है | पाकिस्तान या बंगला देश की जनता को ऐसी ताकतों पर लगाम लगाना होगा तो भारत में भी कुछ लोगो को तय करना पड़ेगा की देश के बटवारे से दुखी होना और फिर धर्मं के नाम पर किसी कौम की उपेक्षा या उससे घृणा दोनों साथ तो नहीं चल सकते है |
सवाल ये है की भारत बड़ा है ,क्या इसकी सत्ता ऐसी पहल नहीं कर सकती ? क्या आगे बढ़ कर दीवार गिराने की तरफ पहला हथौड़ा नहीं चला सकती है | इस सत्ता के प्रधानमंत्री मोप्दी जी को इसके लिए पहल करनी चाहिए और सत्ता की
मात्रि संस्था आर एस एस जो भारत बटवारे के खिलाफ बहुत मुखरता से आवाज उठती रही है उसको आगे बढ़ कर इस अभियान की शुरुवात करनी चाहिये और अगर ये लोग आगे नही बढ़ते है तो राहुल गाँधी और कांग्रेस को इस अभियान की शुरुवात करना चाहिये | कांग्रेस की रिश्ते पड़ोसियों से अच्छे रहे है इसलिए वो विश्वास बना सकती है | पर करे कोई भी लेकिन आपसी दीवार अब गिर ही जानी चाहिए | क्योकि लडाइयो से तो बर्बादी के अलावा आजतक कुछ भी हासिल नहीं हुआ तो क्यों न लड़ाई शब्द को मिलकर खूटी पर टांग दिया जाये 

शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

धर्म विशेष राज या वीभत्स तानाशाही

धर्म विशेष का राज या वीभत्स तानाशाही ? 

अच्छा जिस भी देश में किसी धर्म विशेष का राज हुआ , धर्म विशेष के सर्वोत्तम होने के नाम पर और धर्म विशेष का ठेका लेने वाले कट्टरपंथी लोग राज पर क़ाबिज़ हो गए उन देशो को क्या क्या मिला ? 
१- संगठन विशेष का आदेश की संविधान और क़ानून बन जाता है 
२- उस संगठन को ना मानने वाले दुश्मन घोषित कर दिए जाते है और दुश्मन को माफ़ करना इस व्यवस्था के ख़िलाफ़ होता है 
३- उस देश की स्त्रियों पर पाबंदियाँ थोप दो जाती है की -
-वो पढ़ नही सकती 
-वो गा या नाच नही सकती 
-वो संगठन विशेष के लोगो के अलावा किसी के सामने बेपर्दा नही हो सकती 
-वो क्या पहनेगी ये वही संगठन तय करेगा 
४- उस देश में किसको इंसान माना जाएगा या नही माना जाएगा वो संगठन तय करता है 
५- उन दशो में न्याय उस संगठन विशेष के हाथ में होता है । वो जब चाहे किसी को गोली से उड़ा दे या चौराहे पर फाँसी लटका दे या कुचल कर मार दे 
५- उन देशी की पुलिस और फ़ौज उस संगठन विशेष के हाथ में होते है और वो केवल बोलने और लिखने वाली को कुचलने तथा समाज को बर्बाद करने के काम आते है 
६- ऐसे देश अन्ततः बुरी तरह बर्बाद हो जाते है 
७- ऐसे देश दुनिया के साथ चलने के बजाय कही आदिकाल के गौरव के सपने में चलते है 
८- ऐसे देश दुनिया से कट जाते है 
९- जहाँ कोई दूसरा नही होता वहाँ वो अपनों में ही नफ़रत के लिए लोग तय कर देते है और लग जाते है इन अपनो का विनाश करने में 
१०- ऐसा देश और समाज वीभत्स और विकृत तानाशाही का शिकार होता है 
११-  उस देश में क्या पढ़ा जाए , क्या लिखा जाए , क्या बोला जाए , क्या खाया जाए सब वो ठेकेदार संगठन तय करता है 
इंसान इंसान कहाँ रह जाता है बस साँस लेती कठपुतली बन जाता है । चेहरे पर ज़िंदगी नही दिखती बस सर्द सा दिखता है हर चेहरा । 

इसीलिए लोकतत्र और संवेदनशील लोकतंत्र जो बहुमत नही बल्कि सर्वानुमती से चलता है उसे बेहतर माना गया है 

इसीलिए एकरंगी समाज के बजाय बहुरंगी समाज को बेहतर माना गया है 

एक समय पच्छिम के देश को भी लगा की वो श्रेष्ठ है और सब पर उनका राज होना चाहिए , सबको उनकी बात मानना चाहिए पर बर्बाद होकर सच समझ गए और लिबरल होकर सबके लिए दरवाजे खोल दिया और लोकतंत्र को मजबूती से पकड़ लिया 
अब भी जिनका खुमार बाक़ी है वो भी समझ जाएँगे पर ख़ुद को बर्बाद करके 
कुछ तो बर्बाद हो भी रहे है 
वैसे नेपाल हिंदू राष्ट्र रहा है और देशी की भीख या भारत में चौकिदारी कर ज़िंदा है 
इसलिए तय तो करना पड़ेगा की एक चिंतनशील ,विवेकशील , दुनिया से अच्छा मिलता हो वो लेने और ख़ुद के पास जो अच्छा हो वो बाटने वाला  विकसित राष्ट्र बनना है या किसी कूप मंडूक संगठन की तानाशाही और क्रूरतापूर्ण बर्बरता वाला राष्ट्र बनना है 
आज ही तक कर लिया तो भविष्य बच जाएगा अन्यथा फिर पछताए होत का वाली कहावत ही हाथ आएगी । 
फ़िलहाल तो इसी मिले जुले समाज और खुले लोकतंत्र के साथ सैकड़ो साल की ग़ुलामी और अंग्रेजो द्वारा चूस लिए जाने के बावजूद केवल ७० साल में देश दुनिया की हर बड़ी ताक़त के सामने सम्मान से खड़ा है बराबरी के साथ ,सैन्य ताक़त , आर्थिक ताक़त और अंतरिक्ष की ताक़त के साथ अगर कुछ और दिनो में कंगाल नही कर दिया गया और बेच नही दिया गया 
कंगाल करने वाले और बेचने वाले ही एकरंगी निरंकुश  तानाशाही का सपना पाल हुए है और अपनी तानाशाही के लिए सुनहरे सपने दिखा रहे है ख़ास तरह के लोगों को 
पर राम कृष्ण बुद्ध महावीर का देश गांधी नेहरू सुभाष भगत और आज़ाद का देश स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद सरस्वती का देश इनके चंगुल में स्थाई रूप से फँस जाएगा ऐसा लगता तो नही है 
और थोड़ा भी फँसता है भारत की इन महान आत्माओं पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा होगा की कैसा कमजोर समाज बना गए ये लोग ?

काशी को शिव ही बचाएँगे

काशी यानी बनारस की पहचान क्या है ?
मैं नक़ली क्योटो की बात नही कर रहा हूँ बल्कि शिव की नगरी की बात कर रहा हूँ 
मोक्ष की आशा में जीवन के अंतिम समय लोग निवास करते रहे है काशी में 
दुनिया से सबसे ज़्यादा विदेशी आते रहे है काशी यहाँ की पुरानी गलियों के लिए , यहाँ की पुरानी संस्कृति और रहन सहन के लिए ,यहाँ के पंडा पुजारी के तौर तारीको के लिए , यहाँ की आस्था और विश्वास के लिए 
यहाँ के पुरातन घाट और पतली पतली गलियाँ और उसमें बिखरा हुआ आस्था का सामान और साम्राज्य बुलाता रहा है विदेशियों को भी और भारत के लोगों को भी 
गली गली ने फैले मंदिर और शिवलिंग उसके आकर्षण का केंद्र रहे है 
बनारस का स्वाभाविक अल्लहड़पन और मस्ती इसकी पहचान रही है 
बनारस की पुरातन संस्कृति उसकी पहचान रही है 
होली पर गालियाँ बनारस की पहचान रही है 
तो नदी में मंच बना कर या घाट पर होने बाल सांस्कृतिक कार्यक्रम इसकी पहचान रही है 
बिस्मिल्ला खा की शहनाई तो गिरिजा देवी की ठुमरी ,कबीर , बल्लभाचार्य, रविदास ,मुंशी प्रेमचंद , जयशंकर प्रसाद , रामचंद्र शुक्ल , पंडित रविशंकर , हरिप्रसाद चौरसिया , मिश्रा बंधु इत्यादि बनारस की पहचान रहे है 
हर हर महादेव बनारस का अभिवादन भी नारा भी और उदघोष भी ।
काशी नरेश की रामलीला और उनका आज भी हाथी पर निकलना और फिर हर हर महादेव का उद्दघोस , 
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और बसंत कालेज बनारस की पहचान रही है 
पर नज़र लग गयी बनारस को कि जैसे अंग्रेज बनने के चक्कर में लोग अंग्रेज बन नही पाते है और देशी भी रह नही पाते है । जो चाहते हैं वो पूरा मिलता नही और उसके लिए अपना मूल मिटा देते है और फिर अधकचरे बन जाते है वही बनारस का हो रहा है 
धर्म को आर्थिक चंगुल में फ़साने के लिए मूल स्वरूप नष्ट कर दिया ,आस्था की क़ीमत लगा दिया और अब गंगा को रुलाने की तैयारी है । सबके पाप से गंगा पहले ही बहुत दुखी थी अब उसकी छाती पर गाड़ दिए है कुछ अस्थाई घर जिसके रुकने वालो का मल मूत्र आसमान पर तो जाएगा नही गंगा को भी गंदा करेगा ।
गंगा माँ जार जार रो रही है और महादेव हतप्रभ है की उनका अस्तित्व बचा भी या आधुनिक व्यापारियों ने उनका भी सौदा कर दिया है । 
बनारस को , गंगा को अब शिव ही बचाएँगे ।