रविवार, 17 मई 2020

रोज की जिंदगी और ये घर ।

रोज की जिंदगी और ये घर ।
=================
एक घर है
जिसके बाहर एक गेट 
और 
उससे बाहर मैं तभी निकलता हूँ 
जब शहर मे कही जाना हो 
या डॉक्टर के यहा जाने की मजबुरी 
फिर एक लान है 
जहा अब कभी नही बैठता 
किसी के जाने के बाद 
फिर एक बरामदा 
वहाँ भी आखिरी बार तब बैठा था 
जब बेटियाँ घर पर थी 
और बारिश हुई थी 
और 
मेरा शौक बारिश होने पर 
बरामदे में बैठ कर हलुवा 
और गर्मागर्म पकौड़ियां खाना 
और अदरक की चाय 
वो पूरा हुआ था आखिरी दिन 
हा
ड्रॉईंग रूम जरूर गुलजार रहता है 
वही बीतता है ज्यादा समय 
सामने टी वी , मेज पर लैपटॉप 
और 
वो खिड़की 
जिससे बाहर आते जाते लोग 
एहसास कराते है 
की आसपास इंसान और भी है 
अंदर मेरा प्रिय टी कार्नर 
जहा सुबह क्या 
दोपहर तक बीत जाती है 
नाश्ते चाय ,अखबार ,फोन 
और 
फेसबुक ट्विटर और ब्लॉगर में 
पता नही चलता 
कैसे बिना नहाए शाम हो जाती है 
उस कोने में 
बच्चो का कमरा न जाये तो अच्छा 
अब कौन याद करे और ! 
रसोई में जाना जरूरी है 
और बाथरूम में भी 
थोड़ा लेट लो वाकर पर 
और खुद को बेवकूफ बना लो 
की हमने भी फिटनेस किया 
पांच बदाम भी खा ही लो 
कपड़े गंदे हो गए मशीन है 
बस डालना और निकलना ही 
नाश्ता और खाना 
और 
कुछ अबूझ लिखने की कोशिश 
घृणा हो गयी ज्ञान और किताबो से 
जिंदगी बिगाड़ दिया इन्होंने 
पर बेमन से पढने की कोशिश 
कभी कभी आ जाता है कोई 
भूला भटका , 
उसकी और अपनी चाय 
और 
बिना विषय के समय काटना 
लो हो गयी शाम 
और 
कुछ पेट मे भी चला ही जाए 
बिस्तर कितनी अच्छी चीज है 
नीद नही आ रही लिख ही दे कुछ 
नीद दवाई भी क्या ईजाद किया है 
जीभ के नीचे दबावो 
और सो जाओ बेफिकर 
अब कल की कल देखेंगे 
छोटा पडने वाला घर 
किंतना बड़ा हो गया है
और 
छोटे से दिन हफ्ते जैसे हो गए है 
पर बीत जाता है हर दिन भी 
और घर के कोने में सिमट कर 
भूल जाती है बाहरी दीवारे ,कमरे 
आज भी बीत गया एक दिन 
और रीत गया जिंदगी से भी कुछ 
कही से बजी कोई पायल 
नही रात को एक बजे का भ्रम 
सो जाता हूँ 
ऐसे ही कल के इंतजार में अकेला ।
हा नितांत अकेला 
बस छत ,दीवारे और सन्नाटा 
ओढ़कर ।