रविवार, 22 नवंबर 2020

फारुख अब्दुल्ला और भाजपा

#फारुख_अब्दुल्ला को चीन का दोस्त बता कर कांग्रेस से उसके साथ रिश्ता पूछ रही #भाजपा कारगिल मे चुनाव मे उनकी #सहयोगी है और दावा किया है की ये समझौता जारी रहेगा ।
बस कांग्रेस उससे समझौता करते ही देशद्रोही हो गई ।
कुछ बात समझ मे आये तो मुझे भी बताईएगा ।

पिछला चुनाव और वोट

पूरे भारत को हमेशा याद रखना होगा की पिछ्ले चुनाव मे करीब 65 करोड़ वोट पडे और उसमे से 23 करोड़ ही भाजपा को मिले 
तो कुछ कम वोट कांग्रेस को भी मिले और ढाई से तीन करोड़ तक चन्द्र बाबू नायडू , ममता बनर्जी, मायावती और अखिलेश को भी मिला ।
ये देश सबका है और इसकी चिंता करने तथा गलत का विरोध करने का अधिकार और कर्तव्य सबका है ।

जातियाँ और धर्म भारत मे

भारत को तरक्की करना और मजबूत होना है तो समझना ही होगा 
कि 
सिर्फ दो ही धर्म है एक गरीब का धर्म और दूसरा अमीर का धर्म 
दो ही जातियाँ है गरीब और अमीर ।
बहुत सी समस्याये खुद हल हो जायेंगी ।

राम पर विवाद या संवाद

एक सवाल है 
राम और कृष्ण पर विवाद की जरूरत है 
या 
उनके जीवन, विचार और  शिक्षा पर व्यापक और सार्थक संवाद की जरूरत है ?

क्या जायज है

क्या ऐसी सोच या सवाल जायज कहे जा सकते है 
कि 
फला धर्म के लोग वो सब करते है तो हम ये सब क्यो न करे ? 
हम अपने को अच्छा रखने और बनाने के जिम्मेदार है 
या दूसरों के साथ प्रतियोगिता मे गड्ढे गिर जायेंगे ?

पूरा भारत तो कभी नही लड़ा (एक ने और मुट्ठी भर ने ही बदला हमेशा इतिहास और हालात )

पूरा भारत तो कभी नही लड़ा 
(एक ने और मुट्ठी भर ने ही बदला हमेशा इतिहास और हालात ) 

सैकड़ों साल पहले ही भारत में लिख दिया गया था कि ; कोउ नृप होय हमें का हानि ; । इससे भारत की मिट्टी का मूल चरित्र सिद्ध होता है ।कुछ लोग कह सकते है कि ये गोस्वामी तुलसीदास ने मुगल राज स्थापित होने के बाद लिखा था ,राम के युग मे ही सम्पूर्ण जनता किसी गलत के खिलाफ खड़ी हो गई हो ऐसा तो नही दिखा ,वो चाहे राम को राजा बनने से रोकना हो या फिर सीता की अग्नी परीक्षा या अग्नी परीक्षा के बाद भी उनका वन जाना । विस्तार मे जानाँ विवाद पैदा कर सकता है ।कृष्ण के युग मे कंस हत्याये करता जा रहा था पर कहा कोई आवाज उठी कि ये गलत है ,चाहे राजा हो या जमीदार या कोई बडा नही है उसे अधिकार इस तरह हत्याये करने का । अशोक के काल मे भी कहा जनता ने कुछ भी कहा था ,जनता तो हमेशा ताकत और सत्ता की अनुगामिनी ही बनी रही ।
वरना बस सैकड़ो की तादात में आते थे विदेशी लुटेरे और लूट कर चले जाते थे भारत को । जब कोई आता तो खेती करता किसान हल बैल लेकर किनारे खड़े होकर तमाशा देखता और बाक़ी लोग भी । लड़ता सिर्फ़ वो था जिसे लड़ने के पैसे मिलते थे और ज़्यादातर वो भी सेनापति के घायल होने या मर जाने पर भाग खड़े होते या विजेता से मिल कर उनके लिए लड़ने लगते । भारत पर आक्रमण करने वाला या राज करने वाला कोई भी बड़ी फ़ौज लेकर नहीं आया था सबकी लड़ाई  और राज भारतीय लोगों के दम पर ही चला । भारत के नागरिक पर जुल्म हो या हत्या सब यही के लोगो ने किया या तो डर कर या फिर बिक कर और विदेशियों को बुलाकर लाने वाले भी भारतीय थे , रास्ता बताने वाले या कमजोरी बताने वाले सारे विभीषण भी भारतीय थे । मैंने कई बार कहा है उदाहरण के लिए की जब सोमनाथ को लूटा जा रहा था तो वहाँ के सारे पंडे और दर्शनार्थी बैठ कर पूजा करने लगे की अभी भगवान का प्रकोप होगा और सब लुटेरे भष्म हो जाएँगे । पर वो करने के बजाय अगर उन्होंने अपने थाली लोटे से भी आक्रमण कर दिया होता तो सोमनाथ नहीं लूटा होता , भगवान की मूर्ति और मंदिर की शक्ति का भ्रम भी बना रहता और लुटेरे टुकड़ो मे मुर्दा पड़े होते  और उससे भी बड़ा काम ये हुआ होता की आइंदा कोई भी भारत पर आक्रमण करने से पहले सौ बार सोचता की भारत का या उसके किसी भी हिस्से का हर आदमी अपने राज या जमीन के लिए लड़ने को खड़ा हो जाता है  । 
आगे भी पूरा देश तो कभी खड़ा नहीं हुआ बल्कि थोड़े से लोग खड़े हुए किसी भी लड़ाई में वो अन्दोलन चाहे आज़ादी का रहा हो और चाहे आपातकाल से पहले का । जिन लोगों ने भी हिंसा का रास्ता अपनाया उनके साथ बहुत कम लोग खड़े हुए । गांधी जी इस मिट्टी की तासीर को अच्छी तरह समझ गए थे इसीलिए उन्होंने अहिंसा का रास्ता अपनाया और इस रास्ते से वो लाखों या करोड़ों जोड़ने में कामयाब हुए पर पूरे देश को नहीं जोड़ पाये वो भी ।
अंग्रेजो के समय भी पूरी जनता तो इसी कोऊ नृप वाले भाव की थी तो बहुत से लोग अंग्रेजो का साथ दे रहे थे ,बहुत से प्रशंसक थे तो हाथो मे हथियार लेकर जलियां वाला बाग से होकर पूरे देश मे गोली लाठी चलाने वाले ,आजाद को गोली मारने वाले ,भगत को फाँसी लगाने वाले और सुभाष की सेना पर गोली बरसाने वाले सब तो भारतीय ही थे केवल आदेश देने वाला अन्ग्रेज होता था और मुखबिरी कर आज़ादी के लिए लड़ने वालो की पकड्वाने वाले भी भारतीय ही थी ।सभी के खिलाफ अंग्रेजो के पक्ष मे मुकदमा लड़ने वाले भी भारतीय थे और गवाही देने वाले भी भारतीय ही थे ।
आज भी वही हालत है जो भारत की तासीर है ।बंद जगह पर छिप कर विरोध करना हो या छुपा कर बटन दबा कर सत्ता बदल देना हो बशर्ते बटन दबाने वाले हिसाब से ही परिणाम दे तो इतना तो अधिकतम भारतीय कर सकता है पर खुले मे आकर चुनौती देना भारत के आवांम की आदत नही है ।इतिहास मे भी भारत ने कभी भी किसी मजबूत को चुनौती नही दिया । ये हमारा चरित्र है गुलाम होना या गुलाम बनाना ।संमता मे हमारा विश्वास ही नही है ।कमजोर को मारना और मजबूत के सामने दुम हिलाना । 
अगर आज भी देश अपने अहित और बुरे भविष्य पर मुखर नही होता तो ये बहुत चिंता की बात नही है ।अगर आज भी सोमनाथ की तरह देश का बडा हिस्सा मन्दिर मे अपना सुख और भविष्य देख रहा है तो इसमे आश्चर्य की कोई बात नही है ।छोटे स्तर पर भी लोग कहा निकलते है बिजली या पानी नही मिलने पर ,सड़क के लिए या किसी भी बुनियादी समस्या के लिए ।पडोस पर हमला होने या बच्चा उठने या बलत्कार होने पर खिड़किया और पर्दे बंद कर जोर दे टीवी चला देने या कान मे रुई ठूस लेना ज्यादा मुनासिब लगता है । पानी नही दे सरकार तो अपना जेट पंप लगा लिया , बिजली के लिए अपने जेनरेटर लगा लिया । जितना सहनशीलता है भारत के समाज मे । पर ऐसा भी नही कि कभी नही निकलते ।जरा किसी धार्मिक स्थल को कुछ हो जाये ,किसी के चित्र या प्रतिमा से कुछ हो जाये या दो जानवरो मे से किसी का कुछ हो जाये तो निकलते है पर फिर भी मुट्ठी भर और बच बच कर कि कोई खतरा तो नही और नही है तथा सामने वाला कमजोर या कम है तो कायरता पूरी ताकत से क्रूरता दिखाती है और चीख की आवाज भी बुलंद होती है ।
दूसरी तरफ राम भी तो तीन ही थे जिसमे से एक व्यव्स्था के लिए और दो युद्द के लिए और दो साम्राज्य पराजित कर आये थे । कृष्ण ने अकेले केवल दिमाग और जुबान का इस्तेमाल कर भारत को  महाभारत तक पहुचा दिया ।बुद्ध निकले तो अकेले थे पर दुनिया के बड़े हिस्से को जोड़ लिया ।ईसा ने सूली पर लटके लटके ही दुनिया के बड़े हिस्से  को अपने सामने झुका दिया और करबला मे कहा करोडो थे पर करोडो को अपना अनुयायी बना दिया ।गांधी अफ्रीका मे भी अकेले थे और भारत भ्रमण पर भी अकेले ही निकले और ऐसा निकले कि बिना हथियार के ही इतने बड़े दुश्मन को देश से निकाल दिया ।उसके बाद भी किसी एक ने ही सत्ताए बदली है भारत की । आज फिर भारत आज़ादी बनाम गुलामी, लोकतंत्र बनाम अधिनायकवाद ,संविधान बनाम प्रधान की इच्छा , कानून बनाम सता की लाठी के बीच झूल रहा है ।अधिकांश कोऊ नृप होय वाले है तो बहुत से अज्ञात कारणो से प्रशंसक है तो बहुत से गली गली मे मुखबिर और बहुत से लाठी बन्दूक और कानून की किताब के साथ इनके साथ खड़े है तो बहुत से चाहे कलम से या कला से ,जुबान से या आंखो की भाषा से लडाई भी लड़ रहे है सच की ,ईमान की ,लोकतंत्र की संविधान की और अन्त मे यही जीत जायेंगे सारे जुल्म के बावजूद क्योकी हमेशा ही ये मुट्ठी भर लोग ही जीते है ।
इतिहास तो यही बताता है । बस देखना इतना है की वो एक कौन होगा इस युद्ध का नायक और क्या कोई  सम्पूर्ण भारत को कभी निकाल सकेगा चाहे जिसके खिलाफ चाहे जब और चाहे जो भी गलत हो ? क्या कोई बदल पायेगा ये आवाज "कोऊ नृप होंय हमे का हानी "से "को नृप होय ये हम ही जानी" मे ।

शनिवार, 21 नवंबर 2020

मौजे का इलास्टिक

कितने लोगो को याद है कि पहले मोजा ऊपर से ढीला हो जाने पर उसके लिए भी इलास्टिक आती थी और ज्यादतर लोग उसका इस्तेमाल करते थे ।

पहले और अब (रफू )

पहले कपडा फट जाने पर फेंक देने का रिवाज नही था अगर गल नही गया है 
बल्की सभी लोग रफू करवा कर पहनते थे ।
और रफुगर भी क्या खूब हुनर रखते थे की बहुतो का रफू किया हुआ पता ही नही चलता था ।

पहले और अब

पुराने जमाने मे किसी शहर मे किसी भी थोडे से परिचित के घर पर चाहे गाँव मे उससे दुश्मनी चल रही रुक जाता था यहा तक की रह कर इलाज करा लेता था और बच्चे तो सालो पढने के लिए रह लेते थे ।
अब तो अपनो के घर भी छोटे हो गये है ।

पहले और अब

पुराने जमाने मे कोई किसी भी पड़ोसी के साथ बच्चे बच्चे या पत्नी और बहू को तीर्थ या अस्पताल , शहर या स्कूल कालेज भेज देता था 
और अब ?

पहले का विश्वास और विश्वस्नीयता

पहले कालेजो मे किसी छात्रा के सिन्दूर या मगल सूत्र देख कर सारे छात्र दीदी या अगर पति भी वही होता था तो भाभी बोलने लगते थे 
यहाँ तक की अपने मुहल्ले की लड़की भी सबकी बहन होती थी ।
अब ?

सिनेमा का बुरा आदमी

पहले सिनेमा और सीरियल मे एक अच्छा आदमी हीरो होता था और बुरा विलेन और अन्त मे अच्छा ही जीतता था 
पर हाजी मस्तान के पैसे लगने के बाद से बुरा आदमी हीरो होने लगा और उसके हालत का बचाव शुरू हुआ 
और याद करिए उसके बाद ही नौजवानो मे भी वैसा बनने की चाहत बढ गई ।

सिनेमा और बुराइयाँ

क्या सिनेमा टीवी काल्पनिक कहानियो और उपन्यासो ने अपराध , भ्रष्टाचार और व्यभिचार के नये नये रास्ते दिखाने और उसके लिए प्रेरित करने का काम किया है 
क्योकी उसमे बहुत कुछ होता है जो उससे पहले समाज मे कही नही था ।

धर्मस्थल और आस्थाए

जब #धर्मस्थल गिने चुने थे और बहुत दूर दूर दुर्गम स्थानो पर थे तो #आस्थाए भी सच्ची थी और ईश्वर का भय भी 
पर जब से धर्मस्थल सड़को गालियो और चौराहो पर आ गये आस्थाए और ईश्वर का भय भी गली चौराहे पर भटक रहे है ।

त्योहार और संस्कार

सिनेमा और टीवी ने तमाम त्योहार उन लोगो तक भी पहुचा दिये जो उन्हे जानते ही नही थे या मनाते नही थे 
काश ये धर्म की शिक्षा और संस्कार भी पहुचाने मे कामयाब हो जाते ।

शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

पता नही कितने लोग मरते

#जिंदगी_के_झरोखे_से

#पता_नही_कितने_लोग_मरे_होते 

हमारी सरकार थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे ।सरकार के खिलाफ दिल्ली से गली तक विपक्ष मुखर था । कुछ मामलो को लेकर मुलायम सिंह यादव जी ने उत्तर प्रदेश बंद का आह्वान कर दिया , जिससे मैं पूरी तरह असहमत था और मैने उनसे विरोध भी व्यक्त किया कि हमारी सत्ता है प्रदेश मे और हम ही बंद काल करे इसका क्या मतलब ? अगर लोगो से लड़ना ही है तो लखनऊ या दिल्ली मे रैली के द्वारा अपना संदेश दिया जा सकता है ।मेरा एतराज इसलिए भी था की हम लोगो जैसी सभी पार्टिया प्रशिक्षित संगठन वाली नही है बल्की भीड वाली है और भीड अनियंत्रित होकर कुछ भी कर सकती है ।
मुख्यमंत्री नही माने और एलान हो गया । 
पार्टी पदाधिकारी होने के कारण मुझे उसे सफल भी करना था और दूसरी तरफ मेरी कोशिश थी की मेरे जिले तो सब शान्ती से हो जाये ।इसके लिए मैने संगठन की बैठक कर काम बाटा एक मेटाडोर पर माइक लगाकर शहर भर मे छोटी छोटी नुक्कड़ सभाए कर और व्यक्तिगत रूप से बाजार कमेटियो के लोगो से बात कर सहयोग भी मांगा । 
बंद के लिए काफी जगह बंद किया लोगो ने लेकिन आरएसएस और भाजपा के लोगो की दुकाने पूरे शहर मे खुली रही । अन्य शहरो मे तो नारा लगा था कि बंद दुकान तुम्हारी और खुली दुकान हमारी और इस नारे के साथ जो जो हुआ उससे सरकार और पार्टी बदनाम हुयी , यहा तक की इलाहबाद मे हाई कोर्ट की घटना ने हमारे चेहरे पर कालिख पोत हमे पूरे देश मे बदनाम भी किया और न्यायालय ने भी हम लोगो पर कड़ा रुख अपनाया ।
पर मेरा मानना था की अपील करना हमारा काम , अपना मुद्दा समझाना हमारा काम और साथ देना या ना देना लोगो का अधिकार है इसलिए उस दिन मैं घर पर ही बैठा था । तुलसीराम यादव सहित कुछ लोग मेरे घर पर मौजूद थे और हम लोग जगह जगह से पता लगा रहे थे की बंद कितना सफल है । पार्टी मे कुछ लोग अति उत्साही थी उनको लेकर मेरा मन शंकित था और मैने घर पर मौजूद लोगो से कहा भी मुझे लग रहा है कि आज फला फला लोग कही घायल न हो जाये अपने कारणो से ।
तब तक तो फ़ोन आया एक कार्यकर्ता का कि फला फला लोगो की भाजपा के लोगो ने बहुत पिटायी कर दिया है और वो लोग जिला अस्पताल ले जाये गये है ।
तुरंत मैने गाडी मे सभी मौजूद लोगो को बैठाया और अस्पताल पहुचा और उन लोगो से घटना की जानकारी लिया और मेरा सोचा ही सच हुआ था ,ये लोग भाजपा और आरएसएस का गढ माने जाने वाले बेलनगंज और रावतपाडा मे जबर्दस्ती दुकाने बंद कराने पहुचे थे और सत्ता के नशे मे थे ।डाक्टर लोगो से इन लोगो के समुचित इलाज की बात किया और प्रशासन से मुकदमा कायम करने के बारे मे बात किया ।
तब तक खबर आयी की पार्टी के लोग किले के पास अम्बेडकर मैदान मे एकत्र हो रहे है तो हम लोग भी उधर के लिए निकल लिए ।
वहा पहुचे तो देखा की अच्छी खासी भीड आ चुकी है और नारे लगाते लोग चले आ रहे है ।
आगरा मे जामा मस्जिद से लेकर कलक्ट्री तक घना मुस्लिम इलाका है और जामा मस्जिद के बाद पूरा हिन्दू बाजार । ताजमहल के आगे बरौली अहीर क्षेत्र पूरा यादव लोगो का है ।उधर ये खबर पहुची की सपाइयो पर हमला हो गया है तो उधर से गाँव के इलाके के लोग जिसको जो सवारी मिली उसी से चल दिया अम्बेडकर पार्क की तरफ और शहर से भी लोग वहा आने लगे । एक दिन पहले अम्बेडकर पार्क मे कोई कार्यक्रम हुआ था तो उसका पंडाल और मंच अभी मौजूद था ।
इन्दौर के पूर्व सांसद कल्याण जैन आगरा मे थे तो वो भी वहाँ पहुच गये ।मुस्लिम समाज के बहुत ही लोकप्रिय नेता हाजी इस्लाम कुरेशी आ गये । आसपास के इलाके मे भी खबर हो गई थी की सपाई इकट्ठे हो रहे है और शायद बाजारो पर हमला कर दे तो पास के बाजारो मे लोगो ने मोर्चाबंदी कर लिया था और ईंट पत्थर के साथ अन्य हथियार लेकर लोग छतो पर जम गये थे और ये बात उधर से आये हुये एक कार्यकर्ता ने मुझे कान मे बता दिया था की माहौल बहुत खराब है ।
मंच से गर्मा गर्म भाषण शुरू हो गये ।भीड जोश मे थी और अनियंत्रित होती जा रही थी तभी हाजी साहब जो सुलझे हुये इन्सांन थे पर उनको पता नही क्या सूझा की उन्होने कह दिया की चलो रावतपाडा और बेलनगंज और आज हिसाब हो ही जाये । भीड हमेशा ऐसी ही बाते पसंद करती है ,ये भीड का मनोविज्ञान होता है ।
मुझे झटका लगा और मैं मंच पर चढ़ गया और जोर से मुलायम सिंह जिन्दाबाद का नारा लगाने लगा जिसमे सारी भीड शामिल हो गई ।
फिर मैने सीधे एक सवाल किया कि क्या आप लोग मुलायम सिंह को कल्याण सिंह बनाना चाहते हो जिन्होने सर्वोच्च न्यायालय में हलफ़नामा देकर भी अयोध्या मे इमारत गिरवा दिया ? हमारी सरकार है और हम एक एक बूद खून का हिसाब करेंगे पर दंगा कर के नही कानून का इस्तेमाल कर के , और मैने थोडा लम्बा भाषण दिया ।जब समझ लिया कि अब जो चाहे करवा सकता हूँ (वैसे भी आम आदमी और आम कार्यकर्ताओ का स्नेह और सम्मान मुझे हमेशा मिला) तब मैने आह्वान कर दिया की हमारा जुलुस रावतपाडा और बेलनगंज नही बल्की कलक्ट्री जायेगा और उसका रास्ता वही तय किया जो पूरा मुस्लिम क्षेत्र मे होकर जाता था और ये भी एलान किया कि यदि 24 घंटे मे सभी हमलावर गिरफ्तार नही हुआ तो अगला जुलुस उन इलाको मे जायेगा जहा मार पीट हुयी ।
बस मैं मंच से उतरा और नारा लगाता हुआ अपने निर्धारित रास्ते पर चल दिया और पीछे पीछे पूरी भीड जिसमे कुछ लोगो ने फिर भी कोशिश किया की भीड दूसरी तरफ मुड़ जाये पर अब वो भीड मेरे असर मे थी ।इस बीच इंटेलीजेंस और पुलिस के लोग भी आ गये थे और मैने उनसे प्रशासन को खबर करवा दिया की सारी भीड आ रही है और अधिकारी वहा मौजूद रहे बात सुनने और अपनी बात कहने के लिए ।
हम लोग कलक्ट्री पहुचे वहा फिर मौने कार्यकर्ताओ के मन वाला जोशीला भाषण दिया और प्रशासन को खूब सुनाया भी ।प्रशासन ने तुरंत सख्त कार्यवाही का आश्वासन दिया तब मैने हाथ जोड़ कर सबको घर जाने और 24 घन्टा समय देने के लिए कहा और लोग शान्ती से अपने घर चले गये ।
बाद मे डी एम और एस एस पी ने मुझे धन्यवाद दिया और बताया की आज कितनी बडी घटना होने से मैने बचा लिया वर्ना पता नही कितने लोग मरते और पूरा शहर दंगे की चपेट मे आ जाता और पुलिस को भी दंगा रोकने को सब कुछ करना पडता सामने चाहे जो भी होता ।
खुद को संतुष्टी मिलती है जब आप कुछ सार्थक और अच्छा कर देते है ।
क्या पाया क्या खोया ये एक तरफ है पर आप ने क्या किया ये भाव आप को सुकून देता है ,अच्छी नीद देता और अपने ऊपर मुस्कराने की हिम्मत देता है ।

मंगलवार, 17 नवंबर 2020

बचपन वाला चंदा मामा

#बचपन_वाला_चंदा_मामा

(समय हो तो जरा पढ कर कुछ लिखिए इस पर )

रात को खाना खाने के बाद टहलने निकला तो आसमान में कुछ चमकता सा दिखा , गौर से देखा कि अरे ये तो अपना बचपन का दोस्त चाँद है जिसे मैं जब गांव में रहता था तब रोज देखता था , आसमान साफ था इसलिए दिख गया चाँद वर्ना कहा दिख पाते है चाँद  सितारे शहर में।  सचमुच शहर बहुत सी चीजों को पाता है तो बहुत सी चीजों से मरहूम रह जाता है खासकर प्रकृति के साथ से। शहर में भी आ गया था तो जब तक छत वाला घर घर था या वो कालेज वाला का घर जहां गर्मियों में बाहर चारपाई बिछा कर बिना डर के सो सकते थे तब भी कई बार देखा था चाँद को ।  हा चाँद देखने को शहर वालो को किसी त्यौहार या आयोजन का इन्तजार करना होता है ,महिलाये करवा चौथ पर देख पाती है तो कुछ लोग रोजा तोड़ने के लिए तो बाकि लोग पता नहीं क्यों चंद्र ग्रहण देखने के लिए। आगरा के लोगो का तो उत्सव होता था शरद पूर्णिमा में ताजमहल जाना ।  शरद पूर्णिमा के दिन चाँद पूरा निखरा हुआ होता है जिसे कहते है फूल मून और पहले इस दिन ताजमहल रात भर खुलता था और लाखो लोग ताजमहल जाते थे और इतनी ज्यादा भीड़ होती थी की भारी पुलिस लगानी होती थी और एक तरफ से आने और दूसरी तरफ से जाने का इंतजाम करना होता था ,सीढिया छोटी पड़  जाती थी तो नए रास्ते बनाने होते थे और मचान टाइप फिर भी शरीर से शरीर टकरा कर चलते थे और कई बार तो लगता था की कही रेला लोगो को गिरा न दे वर्ना न जाने कितने लोग घायल हो जायेंगे पर अधिकतर लोग परिवार के साथ पहले ही जाकर खाना पीना साथ लेकर ताजमहल के सामने के लान में जगह घेर लेते थे क्योकि तब तक ये सब मना नहीं था और वही बैठे बैठे निहारते थे ताजमहल और चद्नी या प्रचलित नाम चमकी ।  दरअसल ताजमहल में ऊपर चारो तरफ ऐसे पत्थर लगे है जो चाँद की रौशनी पड़ने पर चमकते है या रौशनी को परवर्तित करते है और ये तो पूरी रात शेर होता था की ;वो चमकी ; ये शोर कुछ लोग तो सचमुच जो देखने गए होते थे उसके लिए करते थे पर नौजवान अक्सर क़िसी लड़की को देख कर हल्ला करते थे और कुछ हरकते भी ।  काफी लोग पुलिस का लॉकअप भी देख लेते थे इस चक्कर में । चांद का करिश्मा देखिये की दुनिया में मशहूर ताजमहल की भीड़ भी उस दिन बढ़ जाती थी जब चाँद चार चाँद लगा देता था । उस वक्त जब चांद से सामना हुआ इतने लम्बे अरसे बाद तो लगा की चाँद शिकायत कर रहा है और उसका मुँह फूला हुआ है कि तुम तो हमें भूल ही गए ।  थोड़ा शर्मिंदा तो हुआ मैं फिर खो गया उन बचपन की यादो में जब रोज ही चाँद देखता था मैं और साथ ही तारे भी।  तारो को गिनने की कोशिश करना और गिनने की दूसरो को चुनती देना और सबका ही हार जाना हमेशा ही होता था।  वो सप्त ऋषि यानि सात तारो को ढूढना भी कितन अच्छा लगता था और आश्चर्य होता था की उनका क्रम बदलता ही नहीं ,लगातार बिलकुल उसी क्रम में और वैसे ही कोण पर मौजूद है सातो ।  पुंछल तारा भी तो दिखता था कभी कभी और उसकी तरह तरह की कहानिया सुनाते थे बुजुर्ग लोग।  ये बाते तो अक्सर होती थी कि किसी की  हाल में ही मृत्यु हुयी हो तो वह उन्हें किसी नए तारे के रूप में खोजता था और बताता था अपनों को कि देखो वो है तुम्हारी नानी नाना दादा दादी या जो भी रिश्ता रहा हो।  मैंने भी जब बाबा से पुछा था की आजी कहा गयी तो वो किसी तारे को दिखा देते थे की वो है भगवांन के पास। 

चाँद भी क्या है की बचपन में माताए चंदा मांमा दूर के पुए पकाये बूर के आप खाये थाली में मुन्ने को दे प्याली में प्याली गयी रूठ मुन्ना गया रूठ गा गा कर धीरे कौर कौर ठूसते ठूसते पूरा खाना खिला देती थी बच्चे को पर बच्चे भी कहा मानने वाले थे वो मैया मोरी चंद खिलौला लैहों कहने लगते और चाँद की मांग लेते खेलने को तो बहलाना पड़ता था गरीब और भूखे बच्चे को चाँद को रोटी बता कर तो बाकी बता कर की देखो वो बुढ़िया चरखा कात रही है और कपङा बना लेगी तो तुमको देगी ,पर चंदा भी कम थोडे है तभी तो ठंढी हवा की शिकायत कर -हठ कर बैठा चांद एक दिन माता से यह बोला सिलवा दो मा मुझे ऊँन का मोटा एक झिंगोला , मांगने लगा । चांदनी रात में नौका विहार पर निबंध भी खूब लिखवाया गया तो प्रेमियों के लिए आकर्षण की चीज रहा है चाँद ,;आजा सनम मधुर चांदनी में हम तुम मिले तो ; तो किसी को यही चाँद  दर्द भी देता रहा है ,केदार नाथ सिंह को अँधेरे  पाख  का चाँद अच्छा लगा तो त्रिलोचन ने कल्पना किया कि ;अगर चाँद मर जाता ,विजय कुमार को चाँद अघोरी लगा तो अवतार को अमावस का चाँद अच्छा लगा ,नरेश सक्सेना ने सुना की आधा चाँद मांगता है पूरी रात ;तो राजेंद्र रहबर की किसी से शिकायत थी की ईद का चाँद हो गया कोई ,वैसे इसका इस्तेमाल तो कई तरह करते रहे लोग कोई शिकायत के लिए तो कोई ताने के लिए ,गणेश पण्डे को सदेश देना था तो उन्होंने ;उस चाँद से कहना ;से भिजवा दिया संदेश ,विष्णु नगर को भी ;एक दिन चाँद ; दिखा ,राघवेंद्र अवस्थी को ;मेरे चांद पर बने बंगले पर हलचल दिखी ,ज्योति खरे कोने में बैठ गयी चाँद से बतियाने ,धर्मवीर भारती को मदभरी चांदनी अच्छा लगी ,तो जावेद अख्तर को दरिया का साहिल हो और पूरे चाँद हो और तुम आओ में कुछ कुछ हुआ ,तो कुंवर नारायण को कुछ ऐसा क्यों लगा ;रात मीठी चांदनी है मौत की चादर तनी है ,और वासना के ज्वार उठ चन्द्रमा तक खिंच रहे ,बालकवि बैरागी ने चंदा से कहा ,तू चंदा मैं चांदनी तू तरुवर मैं शाख रे ,केदार नाथ अग्रवाल को चाँद अकेला दिखा ,तो बच्चन को चांदनी फैली गगन में चाह मन में लगी ,किसी को चाँद उगने का इंतजार रहता है तो किसी को चांद तू जा में रूचि है ,बशीर बद्र का चाँद कही राहो में खो गया ,तो राकेश कौशिक को चाँद बूढ़ा लगा मुक्तिबोध को चाँद का मुँह टेढ़ा दिखा , तो दिनकर जी की रूचि चाँद के कुर्ते में भी थी , मीना कुमारी को चाँद बहुत तनहा तनहा लगा तो शकेब जलाली की शिकायत है की;गले मिला न कभी चाँद वख्त ऐसा था ,बच्चन जी ने बताया की मुझसे चाँद कहा करता था तो साहिर लुधियानवी को चाँद के मद्धम होने से शिकायत है ,किसी को गुलाबी चाँद ने याद किया तो शीन काफ को घाटी का चाँद अच्छा लगा ,शमशेर बहदुर सिंह ने चाँद से थोड़ी गप्पे मारी ,किसी को चाँद झुका दिखा तो किसी को सदियो से चांद  की पीड़ा दिखी किसी को झुरमुट में अटका चाँद दिखा तो मुक्तिबोध को इंतजार था की डूबता चाँद कब डूबेगा ,किसी को लगा कि चाँद सुरागकशी करने निकला है ,बच्चन ने आह्वान किया की चाँद सितारों मिल कर गाओ ,तो निसार अख्तर को उम्मीद है की सौ चाँद चमकेंगे।  बस चाँद एक अनबूझ पहले की तरह साहित्य के इस कलम से उस कलम तक इस पन्ने से उस पन्ने तक सफर कर रहा है लगातार। 

ऐसा नहीं की कविता तक सीमित है चाँद झूम कर तो कभी ग़मगीन होकर खूब गाया भी गया है चाँद , खोया खोया चाँद , खुला आसमान , आँखों में सारी  रात जाएगी की तकलीफ तो चलो दरदार चलो चाँद के पार चलो की ख्वाहिश , चाँद छुपा बादल में तो चाँद सिफारिश जो करता हमारी तो देता वो तुमको बता कह कर भी कह दी गयी बात अपनी ,और ये भी तो कहा  गया बडी शिद्दत से की चौदवी का चाँद हो या आफताभ हो जो भी हो खुद की कसम लाज़वाब हो ,मैंने पुछा चाँद से गाया गया तो आजा सनम मधुर चांदनी में हम तुम ;तो गली में आज चाँद निकला हो ये रात ये चाँद ,सब जगह चाँद ही मिला अपनी बात कहने को शिकायत करने को ,प्रेम का इजहार करने को या दिल टूटने की शिकायत करने को। 

बाकी आरे  आवा पारे आवा नदिया किनारे आवा जैसे गाने भी सुने थे बचपन में तो आजा रे चांदनी हमारी गली चाँद ले के आजा ,आधा है चन्द्रमा रात आधी , ऐ चाँद तेरी चांदनी की कसम ,मेरा चाँद मेरे पास है गाकर कैसा गरूर दिखा दिया चाँद को ही ,चाँद आहे भरेगा फूल दिल थम लेंगे ,चाँद एक बेवा चूड़ी की तरह ,,चाँद जाने कहा खो गया ,तो चाँद जैसे मुखड़े पर बिंदिया सितारा नजर आया और गा दिया किसी ने ,तो चाँद के पास जो सितारा है वो सितारा हंसी लगता है गाकर भी चांद को ही चिढा दिया  ,चाँद की कटोरी है रात ये चटोरी है ,चाँद ने कुछ कहा रात ने कुछ सुना  गाने मे अलग अंदाज से बात कही तो चाँद  निकलेगा जिधर हम न देखेंगे उधर क्या बात है इस गाने में , चाँद  निकला मगर तुम न आये का दर्द भी उड़ेल दिया प्रेमी ने गाकर ,चाँद सा मुखड़ा क्यों शरमाया , आंख मिली और दिल घबराया ,चाँद से पर्दा कीजिये कही चुरा न ले चेहरे का नूर ,चाँद सी महबूबा हो मेरी  कब ऐसा मैंने सोचा था जैसे गाने में चाँद ने खूब धूम मचाई तो माँ ने ;चंदा है तू मेरा सूरज है तू गाकर बच्चे को रिझाया ,चाँद को ढूढने सभी तारे निकल गए ,चंदा मांमाँ से प्यारा मेरा मामा ,चाँद वो चाँद किसने चुराई तेरी मेरी निदिया ,चंदा रे मेरे भैया से कहना बहना याद करे , चंदा रे चंदा कभी तो जमीन पर आ , चंदा रे जा मेरा सन्देश पिया से कहियो ,चंदा से मेरी पतिया ले जाना , चंदा तोरी चांदनी में जिया जला जाए ,धीरे धीरे चल चाँद गगन में , तो गगन के चंदा मत पूछ हमसे कहा हूँ मैं दिल मेरा कहा , जब तक जगे चाँद गगन में मेरे चाँद तुम सोना नहीं ,वो चाँद जहा वो जाए तू भी साथ चले जाना ,रात के मुसाफिर चंदा जरा बता दे मेरा कसूर क्या है तू फैसला सुना दे ,तुझे सूरज कहु या चंदा ,तुम  चन्द्रमा हो मैं धरा की धूल हूँ ,उस चाँद से प्यारे चंदा हो तुम आकाश पे जो मुस्कराता है, वो चाँद जैसी लड़की इस दिल पे छा रही है ,वो चाँद खिला वो तारे हसे ये रात अजब मतवाली है ,ये चाँद सा रोशन चेहरा ,ये वादा करो चाँद के सामने भुला तो न दोगे मेरे प्यार को ;,इस तरह बहन हो बेटी हो ,बेटा हो ,प्रेमी हो प्रेमिका हो ,प्रेम का प्रस्ताव हो ,प्रेम की शिकायत हो , प्रेम का ताना हो या दूरी का दर्द हो ,प्रेम की ख्वाहिश हो या दिल के टूटने का बयां हो इंसान ने सबमे या तो माध्यम बनाया चाँद को या उसी के सर पर धर दिया सब शिकायत और उलाहना । 

कवियताये हो ,फ़िल्मी गीत हो या अन्य भी साहित्य की रचनाये , पेंटिंग हो या फोटोग्राफी सबके आकर्षण का केंद्र और रचना का आधार रहा है चाँद और चाँद केवल इंसानो को ही नहीं प्रभावित करता रहा बल्कि चकोर भी उसका दीवाना है तो इतना बड़ा अथाह समुद्र भी चाँद के प्रेम में पागल है ,ज्योही चाँद थोड़ा पास आता है समुद्र उछल पड़ता है उसे पाने को इस बात की परवाह किये बिना की उसके ज्वार में न जाने कितनो का क्या हो जायेगा । दूसरी तरफ वही इंसान चन्द्रमा पर पैर रख आया और उस दिन मेरे मन में आया था की अब चाँद की पूजा करने वाले क्या करेंगे क्योकि वो भगवान् नहीं रहा अब ,जो उसे देख कर रोजा तोड़ते है और जो उसे छननी में देख कर और पति को देख कर व्रत तोड़ती है वो अब क्या करेंगी पर मेरा डर निर्मूल निकला सब उसी तरह चल रहा है। सोचा मैने ये भी था की अब प्रेम कैसे होगा और चाँद कैसे मदद करेगा जब उस पर बस्ती बस जाएगी तो आजकल चंदा पर नए गाने और कविताये दिख नहीं रही है ,शायद साहित्य को विज्ञानं ने थोड़ा भ्रम मे डाल दिया है ,विज्ञानं भी जरूरी है पर ये क्या की सारी कल्पनाओ पर धूल डाल  देता है जबकि कल्पनाये ही विज्ञानं का आधार है पर ! ये विज्ञानं और साहित्य की लड़ाई पुरानी है और चलती ही रहेगी पर भावनाओ बिना ,प्रेम बिना इंसान क्या ?

तो मैं तो कल्पना के साथ हूँ ,भावना के साथ हूँ प्रेम के साथ हूँ ,विज्ञानं मेरे लिए प्रयोग की चीज है और प्रेम तथा भावना जीने की चीज है कल्पना जीने लिए भविष्य की ताकत और प्रेरणा की चीज है । तो चाँद मैं तो तुम्हे वैसे ही देखूंगा जब मौका मिलेगा और कोई मुफ्त में घर देगा तो भी तुम्हारी ऊपर वाली बस्ती में मैं तो नहीं जाऊंगा ,मै नहीं  मानता की बुढ़िया चर्खा  नहीं कात रही है ,मैं नही मानता की गरीब की रोटी की आस नहीं हो तुम ,मैं नहीं मानता की बिना छत  फुटपाथ और मैदान मे सोने वालो  का सहारा नहीं हो तुम ,मैं नहीं मानता कि बात नहीं करते हो तुम ,अभी बात ही तो कर रहा हूँ चाँद से मैं । और फोटो खींचने के पहले टहलना छोड़कर निहारता रहा मैं अपने बचपन के दोस्त चाँद को देर तक और बाते भी करता रहा जिसमे सवाल और जवाब दोनों मेरे ही मन के थे।  क्या आप चाँद को देखते है ? नहीं तो निकलिए घरो से और जैसे सूरज के सामने पीठ कर बैठते है स्वस्थ रहने को वैसे ही चांद  को सामने से निहारिये वैसे भी आप चाँद के लिए खीर बना कर रख देते है न पूरी रात की चाँदनी उतर आएगी उस खीर में और वो अमृत हो जाएगी बीमारियों से मुक्ति दिलाएगी तो चाँद को खुद ही निहार लीजिये रोज या जब दिखे खूब देर तक और अपनी शिकायत ,अपना दर्द सब उसी से कह दीजिये अकेलापन परेशांन नहीं करेगा और  आप आत्महत्या का विचार  क्यों लाते है और क्यों सोचते है की आप ही दुखी है ,बस चाँद की तरफ देखिये उससे प्रेम करिये और उसी से शिकायत फिर चादर तान कर रात के लिए सो जाइये ताकि सुबह जग सके नई ऊर्जा ,उत्साह और संकल्प के साथ।  अच्छा चाँद अभी के लिए विदा कहता हूँ ,कल फिर मिलेंगे।

सोमवार, 16 नवंबर 2020

रोज_सीमा_पर_जवान_शहीद_क्यो_हो_रहे_है

#रोज_सीमा_पर_जवान_शहीद_क्यो_हो_रहे_है ?
दो सवाल है -
पहला कि नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक से आतंकवाद तो खत्म हो गया था और फिर 56 इंच और लाल आंख का डर फिर रोज हमारे जवान शहीद क्यो हो रहे है 
दूसरा मरते तो उधर के जवान भी है फिर इस मौत के खेल का मकसद क्या है ? कुछ जीत हार होती ,जमीन छीन लेता कोई तो समझ मे भी आता 
वर्ना बिला वजह दोनो तरफ के घर क्यो सूने हो रहे है ?

रविवार, 15 नवंबर 2020

सत्ता में हो या विपक्ष में पर —

राजनीती में अगर विरोध में है तो संघर्ष और खुद के जनता के लिए कार्यक्रम और वादों को लोगो तक पहुंचना तथा सत्ता की हर बुराई और कमजोरी पर हमला करना और जनता के साथ हर पल खड़ा होना होता है ।
पर -----
अगर खुद सत्ता में है तो जितना जरूरी वादों को पूरा करना तथा विकास करना है उतना ही जरूरी वो काम तथा विकास बिना बाधा और भेद भाव के लोगो तक पहुंचे ये भी है ।
उससे भी ज्यादा जरूरी उसका सम्पूर्ण और आखिरी व्यक्ति तक प्रभावशाली प्रचार करना है ताकि लोग जहा अपने हक़ पर निगाह रखे तथा विकास की निगरानी करे वही उनके मनो में ये बैठे की आप क्या क्या कर रहे है ।
और -----
उससे भी ज्यादा जरूरी आखिरी कार्यकर्ता को भी सत्ता तथा संगठन दोनों से जोड़े रखना और उसे ये एहसास करवाना की वो भी सत्ता का बराबर का भागिदार है तथा उसके सुख और दुःख से पार्टी तथा सत्ता जुडी हुयी है ।
और ----
उससे साथ ही बहुत महत्वपूर्ण है केवल तन्त्र के बजे पार्टी तथा सरकार दोनों स्तरों पर समाज के मुद्दों से जुड़ना और सामाजिक मुद्दों पर भी सतत कार्यक्रम चलाना ।
और----
जरूरी है की विरोधी के हर राजनीतिक दांव पेंच को तुरंत भोथरा करते रहना ।विरोधी किसी चीज का श्रेय ले उसके पहले अपने ही संगठन से उठवा कर उसे श्रेय देना ।
विरोधी हमला करे उसके पहले उसके खेमे और उसके पाले में घुस कर उस पर सार्थक और धारदार राजनैतिक और सैधांतिक हमला कर देना और उसे उसके पाले में ही घेर कर उस पर हमला करते रहना ।
फिर जीत पर जीत आप की होगी क्योंकि जनता का और कार्यकर्ताओ का दिल जीत लेंगे आप ।विरोधी के हर वार को भोथरा और नाकाम कर देंगे आप ।

शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

ये कहा आ गये हम ?

ये कहा आ गये हम 

आज़ादी के बाद आज़ादी की लडाई की सूत्रधार , कर्ता धर्ता कांग्रेस थी जिसने कुर्बानिया दिया था और बस एक सपना लेकर चली थी की मुल्क को सैकड़ो साल की गुलामी से आजाद करवाना है और तानाशाही शासन से लडते वक्त कहा पता होता है की एक दिन अचानक तानाशाह हार कर चल देगा । ये भी तो हो सकता था की लडाई के सारे नायक एक दिन जेलो मे फाँसी चढा दिये जाते या गोलियो से भून दिये जाते ।
आज़ादी मिलने की आहट के साथ कांग्रेस के नेताओ ने सोचना शुरू किया की आजाद देश कैसा बनाना है और चूंकि अन्ग्रेज लूट ले गया था इसलिए संसाधन का भी अभाव था और उसी मे प्राथमिकता तय करनी थी । जवाहर लाल नेहरु ने और साथियो ने तय किया की पहली प्राथमिकता देश को देश की शक्ल देना , शान्ती स्थापित करना और जनता को विश्वास दिलाना है की अब मुल्क हम सबका है और सबको मिल कर बनाना और बढ़ाना है । इसीलिए उन्होने बाँध ,सिचाई के साधन नहरे , बिजली , हर स्तर की और हर तरह की शिक्षा , चिकत्सा इत्यादि को प्राथमिकता दिया तो भविष्यदृष्टा होने के कारण आई आई टी , आई आई एम बनाया तो जमीन से लेकर आसमान तक के अनुसंधान की तरफ भी कदम बढाया ।
वो नही चाहते थे की भारत व्यर्थ की चीजो मे पैसा खर्च करे इसिलिए पंचशील सिद्धांत द्वारा पडोसियों को संदेश दिया की लडाइ के बजाय सह अस्तित्व ही विकास की कुन्जी है और इसमे वो चीन से धोखा खा गये जिस गम मे दुनिया से चले भी गये परंतु जाने से पहले प्राथमिकता मे परिवर्तन कर सैन्य क्षेत्र के लिए भी ऐसी नीव रख गये की फिर 1965 से लेकर बंगला देश होते हुये अब तक उस क्षेत्र मे भी भारत दुनिया की चार ताकतो मे शुमार है ।
आज़ादी की लडाई मे देश के साथ नही रहने वाले या गद्दारी तक करने वालो ने आज़ादी से 22 साल पहले एक संगठन बनाया जिसको कुछ लोग रायल सीक्रेट सर्विस भी कहते है और उनका लगातार यह मानना था की अंग्रेज उनके दुश्मन नही है बल्की मुस्लमान और साम्यवादी उनके बड़े दुश्मन है और इस सोच ने अन्ततः ऐसा जहर पैदा किया की आज़ादी के बाद मुल्क ठीक से सम्हला भी नही था कि अहिंसा से इतनी बडी लडाई जीतने वाले बापू की ह्त्या कर दिया इस विचार ने ।
यह विचार देश ही नही दुनिया की निगाह मे अछूत हो गया तो इन लोगो ने नया पैतरा चला और अपना एक राजनीतिक संगठन बनाया और उसका नाम रखा जनसंघ । काफी दिनो तक इस संगठन को भी लोगो ने भाव नही दिया क्योकी एक तरफ आज़ादी की लडाई मे बडी भूमिका निभाने वाले अलग तरह सोचने वाले ज्ञानी लोगो ने सोशलिस्ट पार्टी बना लिया था जो बहुत प्रभावशाली थी तो राजाओ ने स्वतंत्र पार्टी और कार्ल मार्क्स के विचार भी रुस की क्रांती से दुनिया मे फैल गये थे तो भारत मे भी साम्यवादी पार्टी स्थापित हो चुकी थी ।
राजाओ की स्वतंत्र पार्टी ने आगे चल कर जब विभिन्न दलो के विलय से लोक दल बना था तो उसमे विलय कर लिया था महारानी गायत्री देवी , पीलू मोदी के नेतृत्व मे ।
साम्यवादी पार्टी ने बंगाल और केरल के साथ अन्य स्थानो पर भी मजबूत पैठ बनायी जो काफी दिन तक रही पर भारत की जमीन और भारत की भाषा और सपने से न जुड़ पाने के कारण और लम्बे समय तक रुस और चीन का पिछ्लग्गू दिखने के कारण उसका क्षरण होता गया ।
सोशलिश्ट पार्टी के नेता डा राममनोहर लोहिया जो जवाहर लाल नेहरु के मित्र थे और महात्मा गांधी के भी प्रिय थे अज्ञात कारणो या काल्पनिक भविष्य की परिकल्पनाओ के कारण उसी नेहरु के इतने विरोधी हो गये जो हमेशा चाहते थे की आचार्य नरेंद्र देव ,लोहिया और जयप्रकाश इत्यादि कांग्रेस मे ही रहे और नया भारत बनाने मे सत्ता मे शामिल होकर योगदान दे और गांधी जी भी यही चाहते थे पर बापू की आकस्मिक हत्या के कारण यह नही हो पाया और डा लोहिया इतनी दूर निकल गये की कांग्रेस के सामने अपने को असहाय समझने वाले लोगो को उन्होने एक संजीवनी दे दिया "गैर कांग्रेसवाद "की और अलग अलग विचार के तथा विचारहीन लोग भी एक नाव पर सवार हो गये ।कहा सोशलिश्ट, कहा जनसंघ ,कहा साम्यवादी तो मुस्लिम लीग तक सब एक नाव पर सवार हो गये यद्दपि पूर्व मे भी श्यामाप्रसाद मुखर्जी मुस्लिम लीग के साथ सरकार बना चुके और इस समय काफी जगहो पर कांग्रेस के ही दल बदलुवो के साथ कुछ ही दिनॉ के लिए सरकार बना लिया जिसने यह संदेश भी दिया और इन लोगो मे आत्मविश्वास भी जगाया की इस फार्मूले से सरकार बनायी जा सकती है और फिर इसी तरह बेमेल खिचड़ी सरकारे बनती रही और गिरती रही ।
इस बीच पहले ताकत को केन्द्रित करने के चक्कर मे कांग्रेस ने प्रदेशो मे अपने को कमजोर किया तो आपात्काल लगा कर आज़ादी की लडाई की पूंजी को गंवा दिया ।फिर भी बाद मे उसके लिए प्रायश्चित किया और देश को इस स्थिति तक ला खड़ा किया की देश दुनिया की 5 बडी अर्थिक और सामरिक ताकतो मे शामिल हो गया लेकिन मजबूत और व्यवहारिक नेतृत्व के अभाव मे अपने को सहेज तथा समेट कर नही रख पाने के कारण कांग्रेस कमजोर होती गई और समझौते करते करते क्षेत्रीय दलो का पिछ्लग्गू भी होती गई काफी बड़े क्षेत्र मे और दूसरी तरफ व्यवहारिक और लचीली राजनीती के अभाव मे अपने मजबूत लोगो को खोती चली गई ।
लोकदल और समाजवादी परिवार वाद को ,ऊच नीच की खाई को और 10%बनाम 90%को मुद्दा बना कर चले थे जबकी चौ चरण सिंह जब तक जिन्दा रहे उन्होने किसान को राजनीती के केन्द्र मे रखा पर प्रधानमंत्री तक पहुच कर भी खुद अपने कृषी अर्थशास्त्र को फैसलाकुन तरीके से लागू नही कर पाये । परिवार वाद के खिलाफ राजनीती मे आगे बढे हुये सभी सिर्फ परिवार नही बल्की खानदान वाद और जातिवाद के कीचड़ मे धंस गये आगे चल कर और 90 %की लडाई की बस बात करते रहे और खुद खानदान समेत 10% मे शामिल हो गये और जब इसपर कभी सवाल हुआ तो बेशर्म जवाब था की समता के साथ संपन्नता की लडाई लड़ रहे है वो और अभी कुछ लोगो अंबानी अडानी के साथ बैठे है कभी न कभी सब बैठ जायेंगे ।
बापू की हत्या के बाद पूरी दुनिया मे बदनाम हो गये लोगो ने नई रणनीति पर काम किया और भाषा तथा चेहरे पर प्रगतिशीलता का मुखौटा लगा लिया ,यहा तक की अपने संविधान मे गांधीवाद और समाजवाद को भी जोड़ लिया । जनसंघ की स्थापना के बाद के कई अध्यक्षो का नाम तो आज उनके नेताओ को भी नही याद है पर पहले दीन दयाल उपाध्याय के समय मे अन्त्योदय जैसी बातो से लोगो का ध्यान खीचा ।फिर लोहिया जी और उपाध्याय जी की मुलाकातो ने और साथ ने इनकी कालिख को कम कर समाज मे स्वीकार्यता बढाई तो आपातकाल के बाद जनता पार्टी मे शामिल हो और मंत्री बन कर चेहरे गढ़ने मे कामयाबी मिली ।जहा अटल बिहारी वाजपेयी के रूप मे रणनीतिक तौर पर एक उदारवादी चेहरा गढा गया और भारत के लिए स्वीकार्य बनाया गया वही अडवाणी जी ने 1977 मे ही सूचना प्रसारण मंत्री बनते ही अखबारो मे संघ के लोगो को भरना शुरू किया और आरएसएस की इच्छानुसार काम शुरू हो गया ।आगे चलकर विश्वनाथ प्रताप सिंह के रूप मे इन लोगो को एक और मोहर मिल गया और उन्हे राजा नही फकीर बना कर खुद को थोडा और मजबूत कर लिया ।अटल बिहारी वाजपेयी के चेहरे का फायदा उठा जहा केन्द्र से प्रदेश तक सत्ता पायी वही अपना संघी एजेन्डा भी जारी रखा ।
अन्ततः अन्ना ,विनोद राय जैसो का इस्तेमाल तो गुजरात मे हिन्दू अस्मिता का प्रतीक और फिर मॉडल से लेकर अच्छे दिन तक ने आरएसएस को भारी बहुमत की सत्ता तक पहुचा दिया ।
पर किसने किया क्या ? जो कांग्रेज़ सम्पूर्ण भारत को ही नही बल्की गुट निरपेक्ष आंदोलन के नाम पर 100 से ज्यादा देशो को समेट कर चलती थी वो अपने को भी समेटने मे असफल रही पर देश के प्रति समर्पण , दृष्टी , सपनो और संकल्प के कारण उसने जब और जितना मौका मिला देश के लिए सर्वश्रेस्ठ करने की कोशिश किया ।लेकिन साम्यवादियो ने तो जगह जगह कारखाने बंद करवा कर मजदूरो को बेकार ही किया और सही मायने मे मार्क्सवाद का विस्तार करने मे क्या अपने दल को भारतीय परिपेक्ष्य मे ढाल कर मजबूत करने मे पूरी तरह असफल रहे और अब नजर ही नही आ रहे है केरल के अलावा ।
समाजवादी आन्दोलन और लोहिया के विचार कही दफन हो गये और यह अन्दोलन पूंजीपतियो तथा भ्रष्टाचार की चेरी बन खानदान और जाति के मकडजाल मे फड़फड़ा रहा है और अन्तिम सांसे गिन रहा है ।
आरएसएस ने जरूर अपने को बहुत मजबूत बना लिया है और अपना विस्तार पूंजी से सत्ता के हर तंत्र तक कर लिया है ।चुनाव भाजपा लड़ती है और सामने वो दिखती है पर सत्ता का संचालन और फौसले आरएसएस के होते है ।बिना किसी जवाबदेही के सत्ता का पूरा उपभोग कर रहा है ये संगठन और अपने व्यक्तियो की पार्टी के संगठंन पर हर जगह तथा सत्ता और उसके संस्थनो मे हर जगह बैठता जा रहा है और इसके सभी लोग जिन चीजो की बदनामी होती है उन आरोपो से अछूते नही हौ 
है यद्दपि इसका कहना है कि ये संस्कृतिक संगठन है पर वह संस्कृतिक और समाजिक काम कही दिखता नही सिर्फ फोटो सेशन के अलावा न हिन्दू समाज के दुख दर्द मे ही कही भागीदारी दिखती है । हा भाजपा और उसके नेत्रत्व का चेहरा जरूर इन 6 सालो मे बदरंग हुआ है अज्ञानता और असफलता के कारण , अव्यव्हारिक फौसलो के कारण ।आज जहा देश अर्थिक इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक बदहाली का शिकार है तो सबसे बडी बेरोजगारी का भी ।विदेश नीति के हर मोर्चे पर फ़ेल है तो सारे पडोसियो से सम्बंध खराब किया बैठा है ।चीन ने इतने बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है तो नेपाल , भूटान और बंगला देश भी आंख दिखा रहे है । जनसंघ का नारा था हर हाथ को काम हर खेत को पानी दोनो पता नही कहा विलुप्त हो गये ,हिन्दी सिसक रही है तो देश की बर्बादी मे हिन्दू भी बर्बाद है और हिन्दुस्तन आईने मे खुद को पहचानने की असम्भव कोशिश कर रहा है ।दीन दयाल उपाध्याय का अन्त्योदय आखिरी पायदान पर बैठे अंबानी और अडानी की चौकीदारी कर रहा है ।
लिखने को तो बहुत कुछ है पर सोचने को सिर्फ इतना है कि क्या इसी के लिए इतनी लम्बी आज़ादी की लडाई चली ? क्या इसी के लिए लाखो ने कुर्बानी दिया ? क्या बापू ,भगत ,सुभाष से नेहरु तक के ख्वाब इसी तरह चकनाचूर हो जायेंगे ? क्या राजनीतक दल ऐसे ही अपनी स्वीकार्यता खोते रहेंगे अपने कर्मो से और विचलन से ? क्या भारत  आरएसएस और उसके गुरु गोल्वल्कर के सपनो का हिटलर वाला भारत बन जायेगा जहा सिर्फ और सिर्फ मौत का तांडव और बर्बादी ही बर्बादी होगी ।
और ये भी कि---ये कहा आ गये हम ? 
डा सी पी राय 
स्वतंत्र राजनीतिक चिंतक और वरिष्ठ पत्रकार 
फो -9412254400

गुरुवार, 5 नवंबर 2020

जातिवाद का दौगल चारित्र

जातिवाद को लेकर दोगले चरित्र होते 
कैसे खत्म होगा जातिवाद ?
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तमाम लोगो सहित मैं भी जातिवाद के आतंक से पीड़ित हूँ और उसके ख़त्म होने की कामना करता हूँ पर कैसे ख़त्म होगा जातिवाद ?  मैं ५५ के दशक  में गँव में पैदा हुआ और गाँव से जुडा हूँ और वो भी पूर्वांचल के पर मैंने अपने बचपन में भी जातिवाद का इतना उफान और इतनी घृणा नहीं  देखा था जब लोग पढ़े लिखे नहीं थे ,जितना अब पढ़े लिखो में देश रहा हूँ और वो भी जो तब पैदा हुए जब जातिवाद ख़त्म हो जाना  चाहिए था और कम से कम कही जातिवाद का जहर था भी तो स्कूलों कालेजो में सामान ड्रेस ,समान शिक्षा { उस स्कूल और कालेज में } के कारन ख़त्म हो जाना चाहिए था ,,उस वक्त जातियां थी पर एक दूसरे की पूरक थी और पूरा गाँव एक परिवार था ,किसी का कोई कम नही  रुकता था ,सब सब पर आश्रित थे और सब सबका ध्यान रखते थे और सम्मान करते थे 
किसी भी जाति के व्यक्ति के साथ अकेले बैठ जाइये और उसकी जाती का इतिहास भूगोल पूछ लीजिये फिर देखिये उसकी गौरव गाथा  और साथ उसकी जाती में कौन कौन आता है देश भर में उनमे कौन उच्च है और कौन नीच ,उसकी कितनी धाराये होती है और किनकी किससे शादी नहीं होती ,कौन किसके यहाँ उसी जाती में भी खाना क्या पानी भी नहीं पीता इत्यादि सब सुनने को मिलेगा 
इस पर पूरा लेख बाद में लिखूंगा अभी केवल अपने आसपास के चेहरों का बिना नाम लिखे चरित्र उजागर कर आहा हूँ बड़ा सन्देश देने को काफी लोगो को जिनमे इतनी घृणा भरी है की लगता है कोई बड़ा युद्ध छेड़ने की तैयारी में है जाती के नाम पर समाज में और वो भी आरपार की मार काट वालीं 
मेरे साथ सभी वर्गों के लोग जुड़े है और खुद को समाजवादी भी कहते है पर जैसे मैं उन्हें समाजवाद नहीं पढ़ा पाया सचमुच में इतने सालो में वैसे ही उनमे संस्कार भी नहीं डाल पाया समाजवाद का ,कह सकते है की मेरी असफलता है पर वो सभी मेरे साथ तो कभी कभी कुछ घंटे रहते है बाकि सारा समय तो अपने परिवार और अपनी जाती के साथ रहते है सारी शिक्षा उर संस्कार तो वहा का भरा पड़ा है खून के कतरे कतरे में 
जो साथी प्रमुख पिछड़े वर्ग के है वो बताते है की की हमारा फला धारा से तो शादी ब्याह का रिश्ता ही नहीं पर कुछ लोग महत्वपूर्ण हो गए तो कुछ लोग करने लगे पर हम तो अभी भी नहीं करते है 
जब कभी मैं किसी दलित या मुसलमान के यहाँ किसी अवसर पर जाता हूँ तो ये कन्नी काटने की कोशिश करते है और चले गए तो तबियत कुछ खराब  होती है और वहा खाना पानी कुछ नहीं
जो साथी बघेल जाती के है क्या मजाल की उनकी आप दलित या मुसलमान के घर पानी भी पिला दे ,जो दलित जाती के है उनको बाल्मीकी के घर आप खला पिला नहीं सकते है ;बेचारे देखते रहते है मन मसोस कर और हम खाते पीते रहते है
कौन बड़ा जातिवादी है और जाती के नाम पर भीतर तक घृणा रखता है ?
कुछ ऐसा ही चरित्र है समाज का सम्पुर्ण ,ब्राह्मण सरयूपारी ,कान्यकुब्ज इत्यादि में फंसा है तो क्षत्रिय भी अपने अलग अलग धाराओं में ,बनिया  हो या अन्य सभी का यही हाल है ,पिछड़े और दलित भी इसी चरित्र के साथ जी रहे है तो मुसलमानो से भी सुनता हूँ की फला तो फला है और ऐसा होता है
कौन ख़त्म करेगा जातिवाद ?
और ऐसे चरित्र वाले जब उपदेश देते है और घृणा का हद दर्जे का प्रदर्शन करते है तो आइना दिखाना ही पड़ता है

दगाबाजो_के_देवता

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

#दगाबाजो_के_देवता --

क्यों कुछ लोग ऐसे होते है की उन पर विश्वास करें या नहीं करें कुछ समझ में नहीं आता है । पर इसके लिए जिम्मेदार भी तो वही होते है, अपने अनिर्णय के कारण और कभी कह कर मुकरने के कारण । क्यों कुछ लोग होते है जिनके लिए कभी बहुत सम्मान पैदा होता है मन में पर दूसरे ही पल घृणा होने लगती है उनसे । जब कोई ऐसी स्थिति से लगातार गुजर रहा हो तो कैसी उथल पुथल भरी होती है उसकी जन्दगी में ,उसके मन में और उसके खून के कतरे कतरे में ।

कुछ लोग बहुत बड़े हो जाते है लोगो को इस्तेमाल कर और सीढियां बना कर ,तमाम लोगो के साथ फरेब कर ,तमाम लोगो के साथ कसाई बन कर उसकी उम्मीदों उसके भविष्य और उसके दिल पर छुरियां चला कर बार बार । न जाने कितनो की क़ुरबानी होने और उनकी जिंदगियों को मिटा कर और उन्हें पावडे बना कर उसे खूबसूरत कालीन समझ उस पर चल कर बुलंदियां पाते है ये लोग । घायल कितने पड़े है पीछे उन्हें वैसे ही भूल जाते जाते है जैसे चलते हाथी को पता ही नहीं होता की कितने कीड़े मकोड़े शहीद हो गए उसके पैरों के नीचे । सच है ऐसे लोगो को लोग कीड़े मकोड़े से ज्यादा महसूस ही नहीं होते कभी भी ।

ये किसकी कहानी है क्या बताऊ । ऐसी तमाम कहानियां बिखरी पड़ी है चारो तरफ और ऐसे चरित्र कोई कहानी के काल्पनिक पात्र नहीं बल्कि चारो तरफ फैले हुए । इनके शिकार भी भरे हुए है चारो तरफ । नाम लेना जरूरी नहीं है और ऐसे लोग नाम नही बस बड़े होते है और हजारो साल पहले ही किसी ने कह दिया था की ; समरथ को नहीं दोष गुसाई ;। बाकी लोगो के भी नाम नहीं बस वे इस्तेमाल होने और गर्त में खो जाने वाले कीड़े मकोड़े है ।

ऐसा मंथन सचमुच समुद्र मंथन से कम नहीं होता है । समुद्र मंथन में तो विष निकला था तो अमृत के साथ बहुत सी अच्छी चीजें भी निकली थी ,पर इस समुद्र मंथन में तो केवल विष ही निकलना है और निकल भी रहा है ।

इस विष की कहानी से दूर बड़े मस्त है अपने वैभव ,अपनी आभा ,अपनी सत्ता और अपने गुरूर में । उन्हें परवाह ही नहीं  है की कोई जीए या मरे । कोई  रहे या न रहे । कोई अपमानित हो या सम्मानित । उन्हें तो बस अपनी और अपनों की चिंता है और चिंता है लाखो साल आगे तक की सत्ता और वैभव की । पता नहीं इन्हें राम ,कृष्ण ,बुद्ध ,महावीर ,नानक ,ईशा ,रावण ,कंस ,जदीज और तमाम राजाओं ,नवाबो की उठती और डूबती जिंदगियो से कुछ सीखने को मिला है या नहीं । पता नहीं दुनिया के सिद्धांतो से ऊपर उठकर इन्हें अमरत्व मिल गया है क्या ? क्या इन्हें कोई वरदान मिल गया है की ये और इनके अपने लाखो साल तक सत्ता और वैभव भोगेंगे ,बिना किसी बीमारी के ,बिना किसी पतन के । इन्हें ये अमरत्व मुबारक ,इन्हें ये वैभव मुबारक ,इन्हें ये सत्ता मुबारक ,इन्हें लोगो की हत्या मुबारक ,इन्हें लोगो को दिए धोखे मुबारक ,इन्हें आगे भी इनके हाथ से चलने वाली छुरियां मुबारक ,इन्हें इनकी चालबाजियां मुबारक । ये कौन है ---- ये मै क्यों बताऊँ ? आप सभी आँखें खोलिए और देख लीजिये ऐसे किसी एक को या बहुतों को । आप को ये ज्ञान मुबारक जो आप को ऐसे लोगो से बचा सके ।