मंगलवार, 26 सितंबर 2023

ये व्यापार या मौत का कारोबार कब रुकेगा

इतिहास के लिए मौत का तांडव आखिर कब तक ?


इतिहास में जीना कोई बीमारी है या सनक या स्वाभाविक है इतिहास में झांकते रहना ? पता नही क्यों काफी लोग इतिहास में जीते है और इतिहास के लिएं मार काट तक चले जाते है । जबकि इतिहास सबक लेने की चीज है की वो गलतियां दुबारा न की जाए जिनसे दुनिया का और इंसानियत का नुकसान हुआ । इतिहास शिक्षा के लिए है पर इतिहास कतलो गारत के काम आ रहा है और वो गलतियां बड़े पैमाने पर बार बार दोहराई जा रही है और इंसान का कतले आम किया जा रहा है । माना ये जाता था की ज्यो ज्यो शिक्षा बढ़ेगी और समाज विकसित तथा सभ्य होगा त्यों त्यों हिंसा खत्म होगी ,इंसान सभ्य होगा और सहस्तित्व के साथ जीना सीख जाएगा । विवाद संवाद से निपटाना सीख जाएगा और धरती पर खून बहना बंद हो जाएगा पर उसका ठीक उल्टा हो रहा है । चारो तरह आदमी हिंसक जानवर से बदतर होता हुआ दिखलाई पड़ रहा है । दुनिया में चाहे जितनी जंग हुई हो ,मैं उस वक्त की बात नही कर रहा जब काबिलाई समाज था और इस वक्त का भी नही जब राजा सुलतान जमीदार जैसे हिंसक गिरोह थे जिनका अपनी जमीन और संपत्ति से पेट नही भरता था और हर वक्त हथियार उठाए घूमते रहते थे और परिणाम एक ही होता था खुद मारा जाना या दूसरो का मारा जाना । चारो तरह लहू देखे बिना न सोने और न खाने की लत सी लगी हुई थी ।।इंसान ने पत्थर ,लकड़ी से होते हुए लोहे तक और फिर परमाणु बम तक बनाए की आत्मरक्षा के काम आयेंगे पर हथियार भी कही रक्षा करते है किसी की ? ये सब तो बस विनाश के लिए बने और बनते जा रहे है और उतना ही दुनिया का विनाश होता जा रहा है । पूरी दुनिया हर वक्त मौत के मुहाने पर खड़ी है फिर भी कोई पीछे हटने को तैयार नहीं है ।

ताजा मामला यूक्रेन का और उसके ठीक पीछे इजराइल और फिलिस्तीन का है । पहला विश्व युद्ध हुआ हो या दूसरा या कोई युद्ध सबका अंत सेनाओं के बैरक में वापसी से हुआ है और टेबल पर बैठ कर शांति वार्ता से हुआ है । फिर सवाल ये उठता है की एक बड़ी आबादी को बरबादी , हजारो या लाखो का कत्ल , परिवारों में फैला मातम ,इतनी विधवा हुई औरते और अनाथ हुए बच्चे आखिर ये सब क्यों ? वार्ता युद्ध से पहले ही क्यों नही ? हथियारों का उत्पादन और प्रयोग ही क्यों अगर जुबान और दिमाग तथा दिल के प्रयोग से समस्याएं निपटाई जा सकती है ? 

इजराइल और फिलिस्तीन में दोनो तरफ के हजारों बेगुनाह नागरिकों की हत्या हो गई तीन दिन में 

पर हजारों की संख्या में हमास के आतंकी भी मारे गए ।

हासिल क्या हुआ इस मौत के खेल से किसी को भी ? 

अब हमास युद्ध विराम मांग रहा है तो सवाल है की युद्ध हुआ ही क्यों ? सुना है की सिर्फ 35 एकड़ जमीन का झगड़ा है । यहूदी कहते है की 3000 साल से ज्यादा हो गए जब कुछ दिन यहां रहे थे और उनकी धार्मिक किताब में इसका जिक्र है जबकि फिलिस्तीन कहता है की बदहाल हाल में आए यहूदियों को तो उसने शरण दिया था और फिर उसने दुनिया भर से यहूदियों को इकट्ठा कर लिया और अपनी चादर फैलाता जा रहा है । ये सच है की अमरीका तथा संयुक्त राष्ट्र ने यहूदियों के लिए कुछ हिस्सा तय किया और उन्हें बसा दिया पर विवाद एक छोटे से टुकड़े के लिए बना रहा और लगातार ये विवाद हिंसक होता रहा । 

अभी हाल में हमास ने बहुत घृणित काम किया और इजराइल में घुस कर आम इंसानों बच्चो औरतों का कत्ल किया जिसकी निंदा पूरी दुनिया को करना चाहिए । पर उसके बाद इजराइल द्वारा भी वही करने को भी सही नही ठहराया जा सकता है । हमास तो सब कर के कही छिप गया और शायद उसकी एक टुकड़ी अभी भी इजराइल के दक्षिण में है तथा सैकड़ों बेगुनाह यहूदियों को बंधक भी बनाए हुए है । हमास पर चाहे जितना हमले इजराइल करता वो जायज होता पर हमास की तरह ही गाज़ा पर भारी बमबारी कर आम इंसानों का कत्ल तो उतना बड़ा गुनाह ही है । कोई नही बच रहा चाहे वो बूढ़े हो औरते या बच्चे । तमाम लोगो के घर खंडहर में बदल गए है ।लाखो लोगो ने इधर उधर शरण ले रखा है और जो बम से बच रहे है वो दोहरी मार से मर रहे है । एक तरह पूरे इलाके की बिजली और पानी काट दिया गया है और खाने का अभाव हो गया है तो दूसरी तरफ अस्पतालों को भी ध्वस्त कर दिया गया है और इलाज के बिना लोग मर रहे है ।फिलिस्तीन के राजदूत ने कहा है की इजराइल पर हमला फिलिस्तीन ने नही बल्कि आतंकवादी गुट ने किया है ।

दूसरी तरफ इजराइल के अखबारों ने इजराइल के हमले की निंदा किया है ।वहा से सबसे बड़े अखबार ने अपने संपादकीय में लिखा है की हमे रोना चाहिए इजराइल के बेगुनाहों के लिए पर हमे गाज़ा के लिए भी रोना चाहिए । इजराइल के अखबारो ने प्रधानमंत्री नेतन्याहू की कड़ी आलोचना किया है तथा उनके लिए कड़े शब्दो का इस्तेमाल किया है । 

भारत के प्रधानमंत्री ने शायद जल्दबाजी में इजराइल को लेकर बयान दे दिया क्योंकि उनके बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है की भारत की फिलिस्तीन को लेकर जो नीति पीछे से चली आ रही है भारत आज भी उसपर कायम है । गाजा  के अस्पताल पर हमला होने के बाद प्रधानमंत्री ने भी दुख व्यक्त किया और फिलिस्तीन पर पुरानी भारत की नीति को दोहराते हुए सभी तरह की मानवीय मदद करने की बात कहा । भारत ने हमेशा से फिलिस्तीन की सार्वभौमिकता का साथ दिया और उसकी जमीन पर उसके हक के साथ खड़ा रहा है । बुद्ध और गांधी का देश भारत कैसे किसी भी ऐसे युद्ध या सामूहिक हत्या के पक्ष में खड़ा हो सकता है । भारत का रवैया तो हमेशा किसी भी तरह की हिंसा और युद्ध के खिलाफ ही होना चाहिए वो चाहे जहा और चाहे जिसके द्वारा हो ।

इजराइल और फिलिस्तीन के मामले में क्या ऐसा नहीं हो सकता की उस 35 एकड़ में दोनो संयुक्त शासन व्यवस्था कायम कर ले या 17,5 और 17,5  एकड़ आपस में बांट ले ? न जाने कब से लड़ रहे है और कितने हजार या लाख लोग मारे जा चुके है । झगड़ा किसी भी धार्मिक स्थल विचार या किताब का हो सवाल ये है की वो कोई भी धर्म स्थल जो भी हो मंदिर,मस्जिद,चर्च या गुरद्वारा उसमे जाएगा कौन और किसी भी धर्म की किताब चाहे गीता हो ,कुरान , बाइबिल या गुरग्रंथ साहब उसको पढ़ेगा कौन ?इंसान जिंदा रहेगा तभी सब धर्म स्थल आबाद रहेंगे और सभी धार्मिक किताबे पढ़ी जाएगी । अगर इंसान ही नही रहेगा तो सभी धर्म स्थल खंडहर हो जाएंगे और किताबो को कीड़े चाट जायेंगे । इसलिए जरूरत तो इस बात की है की इंसान जिंदा रहे । सवाल ये भी है की धर्म और धर्म स्थल तथा धार्मिक किताबे इंसानों के लिए है या इंसानों इन चीजों के लिए है ? सवाल ये भी है की पहले इंसान पैदा हुआ और उसने इन चीजों की अपने लिए रचना किया या पहले ये सब चीजे बनी और उन्होंने इंसान को रचा ? इन सवालों के जवाब में हो इन मुद्दों का हल है बशर्ते ठंडे दिमाग से सोचा और समझा जाए । सवाल ये भी है की जो बाते अब या आगे चल कर होगी वो मौत के खेल से पहले ही क्यों नही ?

क्यों नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ और बड़े देश मिल कर ऐसी सभी समस्याओं के सार्थक और आखिरी हल निकालते है की मानवता जिंदा रहे और पूरी दुनिया हथियार तथा युद्ध से दूर खुशहाल जिंदगी जी सके ।

वरना भंग कर दे संयुक्त राष्ट्र सहित सभी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को और बड़े देशों को बड़ा मानना बंद कर दे ।।

क्या फिर से जरूरी नहीं दिखता की के नेहरू जी द्वारा स्थापित गुट निरपेक्ष संगठन को फिर से जिंदा किया जाए और उसमे एक प्रभावी ग्रुप बनाया जाए जो इन देशों के विवादो का बिना रुके और बिना थके निदान ढूढे और लागू करवाए ? 

महात्मा  गांधी के देश भारत की भूमिका इस समय प्रमुख हो सकती है अगर  कोई सक्षम और दूरदर्शी नेता  नेतृत्व कर रहा होता की वो गांधी जी के विचारो की मशाल दुनिया के कोने कोने में पहुंचाए और युद्ध तथा आतंकवाद मुक्त दुनिया बनाने के लिए आगे बढ़ कर नेतृत्व करे । भारत में अगर हिंदू मुसलमान ईसाई सब रह सकते है । अमरीका में सभी धर्म के लोग रह सकते है और अपने घर में या धर्म स्थल के अंदर तक अपने धर्म का पालन कर सकते है लेकिन घर के बाहर निकलते ही सभी का धर्म देश के संविधान और कानून का पालन करना हो जाता है तो ऐसा इजराइल और फिलिस्तीन या किसी और देश में क्यों नहीं हो सकता है ?भारत में भी एक धार्मिक स्थल का विवाद अंततः कानून और न्यायालय द्वारा ही हल हो गया शांति से और उस दिन भी सवाल उठा था की फिर इसके लिए विवाद या दंगे हुए ही क्यों और उसके बाद इसे सभी विवाद अदालत द्वारा ही देखे जा रहे है । क्यों नहीं ऐसी ही व्यवस्था दुनिया के सभी  विवादो के लिए हो जाए और हथियार अपनी जगहो पर रखे रखे खुद ही खत्म हो जाए ? क्या तब ये सचमुच में एक खुशहाल दुनिया नही होगी । जरूरत है पूरी दुनिया के सोचने की । मैं भी सोचू तू भी सोच की मुहिम चलाने की । वरना आज यूक्रेन और फिलिस्तीन तथा इजराइल में मानवता चीत्कार कर रही है कल दुनिया कब कहा चीत्कार करने लगेगी कौन कह सकता है । इसलिए इस मौत के खेल को बंद करना ही होगा , हथियार के उत्पादन को रोकना ही होगा और मानवता को बचाना ही होगा ।


डा सी पी राय

स्वतंत्र राजनीतिक विचारक एवं वरिष्ठ पत्रकार