रविवार, 19 दिसंबर 2021

जिन्दगी के झरोखे से। समाजवादी पार्टी की स्थापना

#जिंदगी_के_झरोखे_से

#समाजवादी_पार्टी_की_स्थापना -

1992 की बात है मुलायम सिंह यादव जी 1991 की भयानक हार से उबर कर कभी कभी दिल्ली जाने लगे थे । चन्द्रशेखर जी की सरकार के जाते जाते मेरी सलाह पर अयोध्या काण्ड को आधार बना कर खतरे के आधार पर मुलायम सिंह यादव के उस वक्त बहुत करीबी और दिल्ली मे मीडिया सलाहकार डा बागची ने प्रधानमंत्री के नाम एक चिट्ठी टाइप करवाया और चन्द्रशेखर जी ने भी बिना देरी के मुलायम सिंह यादव जी के लिये एन एस जी जो एस पी जी के गठन से पूर्व उस बक्त तक प्रधानमंत्री की सुरक्षा देखती थी के ब्लैक कैट कमांडो की स्वीकृत कर दिया पर उस वक्त तक पूर्व मुख्यमंत्री सुरक्षा के लिये सरकारी वाहन नही मिलता था तो डा बागची ने मुझसे पूछा की सुरक्षा तो हो गयी अब गाडी की व्यवस्था कैसे होगी और मैने जिम्मेदारी ले लिये कि हो जायेगी । उसके बाद मैं अपने एक मित्र जो गृह मंत्रालय मे राजभाषा अधिकारी थे और टेनिस कोर्ट के सामने वाले आर के पुरम के सरकारी क्वार्टर मे रहते थे उनके घर गया क्योकी उनके घर के पास मैने एक टैक्सी स्टैंड देखा था ।हम दोनो वहा गये और स्टैंड के मालिक सरदार जी से तीन गाड़ियो के बारे मे गाड़ियो की क्वालिटी और रेट के बारे मे तय किया इस शर्त के साथ कि जब भी फोन किया जायेगा हमे तीन गाडी अवश्य मिलेगी जिसमे से तय समय पर दो एन एस जी कैम्प जायेगी कमांडो को लेने और एक मुलायम सिंह यादव जी के लिये तय समय पर एयरपोर्ट पर वी आई पी लाउंज पहुचेगी । सब तय हो गया ।
यहा यह बताना जरूरी नही है की सत्ता से सीधे 29 सीट पर आकर मुलायम सिंह जी बहुत निराश थे (यद्द्पि चुनाव के बीच ही जब मैं दिल्ली से सुब्रमण्यम स्वामी जो उस वक्त वाणिज्य और कपडा मंत्री थे के यहा से कुछ सामान लेकर लखनऊ वापस जा रहा था क्योकी स्वामी जी के एक व्यक्ति के अलावा मैं ही लखनऊ के दफ्तर मे बैठता था और रास्ते मे शिवपाल जी के घर पर मुलाकात मे बता चुका था कि मुझे 40 से ज्यादा आती नही दिख रही है ) तथा विचलित भी और एक साल तक कुछ भी करने को तैयार नही थे पर कैसे चुनाव के बाद तुरन्त चुनाव लड़े हुये लोगो की बैठक क्यो बुलाया ,फिर कुछ ही समय बाद मेरे द्वारा आयोजित आगरा मे विशाल मन्ड्लीय सम्मेलन के आयोजन मे क्यो आने को तैयार हो गये जिसमे 14 लाख की थैली भेंट की गयी तथा 50 ग्राम सोना या शायद मैं अलग अलग एपिसोड मे बताऊंगा ।
ये भी क्यो बताया जाये की एक साल तक घर से नही निकलने की बात करने वाले मुलायम सिंह यादव जी दिल्ली क्यो आये । दिल्ली मे रुकने की जगह सिर्फ यू पी भवन था जो विधायक के नाते मिलता पर मैं नही चाहता था की वो यू पी भवन मे रुके ।तब डा बागची ने हल निकाला और किसी से बात कर के सम्राट होटल मे उनके लिये सूईट बुक करवाया और यू पी भवन का कमरा मेरे लिये तय हो गया क्योकी जब भी उन्हे दिल्ली आना होता मुझे लखनऊ से फोन आ जाता था ,फिर मैं सरदार जी को गाडी के लिये फोन करता और खुद भी दिल्ली पहुच जाता था और यू पी भवन मे सामान रख कर समय पर एयरपोर्ट जाकर रिसीव करना ,रोज सुबह से शाम तक साथ रहना और फिर वापसी पर एयरपोर्ट विदा कर वापस जाना ये अगली सत्ता आने तक चलता रहा । पहली बार आने पर मैने कुछ लोगो से मिलवाया जिनके नामो की जरूरत नही है । शाम को वापस होटल मे आने पर मुलायम सिंह जी बोले कि अरे आप को तो दिल्ली मे बहुत लोग जानते है ,आप तो यहा बहुत काम के रहेंगे ,मैं आप को दिल्ली मे रखुँगा जो कभी भी नही हुआ क्योकी प्राथमिकता मे परिवार और खास जातियां आ गयी ।
खैर सम्राट होटल के बाद आशोका होटल का सूईट बुक होने लगा । एक दिन सूईट के कमरे मे खिडकी के किनारे दो कुर्सियो पर बैठे हम लोग चाय पी रहे थे वही जो मेरे मन मे काफी दिन से घूम रहा यहा मैने उनसे कहा कि फिर से समाजवादी पार्टी की स्थापना किया जाये तब तक हम लोग सजपा मे थे जिनके राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर जी थे और मुलायम सिंह यादव जी प्रदेश अध्यक्ष थे तथा मैं प्रदेश का महामंत्री और प्रवक्ता था । मेरी बात पर उन्होने असहमती व्यक्त किया की मेरा तो केवल 2/4 जिलो मे असर है ,चन्द्रशेखर जी बड़े नेता है उनके साथ रहना ही ठीक है । उसपर मैने कहा की सजपा की जगह समाजवादी पार्टी कर दिया जाये क्योकी वो अजादी की लडाई के समय से एक वैचारिक आन्दोलन रहा है और उससे भावनात्मक रूप से देश भर मे काफी लोग जुडे है चाहे संगठन का स्वरूप यही रहे और चन्द्रशेखर जी रास्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे ,पर आप राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे तो वो एक बडा सन्देश होगा और पहली बार कोई पिछड़ा राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा ,आगे आप की मर्जी आप जो तय करिये ।पर उन्होने इस विचार को पूरी तरह से खारिज कर दिया लेकिन मन मे एक सपना तो मैने जगा ही दिया था ।
हम राज नारायणजी के लोगो का स्थायी अड्डा जनेश्वर जी का घर होता था ,बाकी दिनो मे वही नाश्ता खाना ,वही रुक जाना ,बल्कि देश भर के समाजवादीयो के लिये उनका घर सराय था इसलिये घर के बाहर ही लिख दिया गया था बाद मे लोहिया के लोग । थोडे ही दिन बाद मैं वहा था और बिहार वाले कपिलदेव बाबू भी वहा आये थे । हम तीनो जब साथ बैठे थे तो मैने अपना विचार बताया की मैने मुलायम सिंह जी से ये कहा है पर वो मान नही रहे है ।जनेश्वर जी बोले की ये तो अच्छा विचार है और देश भर मे खाली बैठे सभी समाजवादी साथ आ जायेंगे । कपिलदेव बाबू बोले की मुलायम से हमारी मुलाकात करवाइये हम भी कहेंगे और हमे कुछ नही चाहिए हमारे पास स्वतंत्रता सेनानी का भी पास और पेशन है और विधायक का भी और रहने को जनेश्वर का घर है ,अगर पार्टी बनेगी तो हम पूरा समय देंगे ।फिर जनेश्वर जी और कपिलदेव बाबू की भी बात हुयी और रमाशंकर कौशिक ,भगवती सिंह तथा रामसरन दास से भी चर्चा करने के बाद मुलायम सिंह यादव जी तैयार हो गये और तैयारी शुरू हो गयी । सवाल ये आया की देश भर मे सूचना कैसे हो तो अखबारो मे विज्ञापन दिया गया और मुलायम सिंह जी का फोन नंबर दे दिया गया ।देश भर से फोन आने लगे जगजीवन फोन उठाता था और फिर जिसका भी फोन आया होता था उनका नाम और फोन नंबर मुझे भी लिखवा देता था ।
आखिर 4/5 नवम्बर आ ही गया और बेगम हजरत महल पार्क मे स्थापना सम्मेलन हुआ जिसमे असम केरल बंगाल महाराष्ट्र बिहार मध्यप्रदेश,हरियाणा दिल्ली कश्मीर सहित कई प्रदेशो के लोग शामिल हुये जिसमे असम के पूर्व मुख्यमंत्री गोलप बोरबोरा , हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुकुम सिंह ,बंगाल की सोशलिश्ट पार्टी जिसके मंत्री प्रबाल चन्द्र सिन्हा और किरणमय नन्दा सहित विधायक ,बिहार से बड़े नाम वाले कई समाजवादी शामिल हुये ।पार्टी का स्वरूप राष्ट्रीय उसी दिन दिखने लगा ।ये अलग से लिखूंगा कि किसके और किन कारणो से आगे चल कर सब बड़े नेता साथ छोड़ गये ।
स्थापन सम्मेलन मेरी व्यस्तता का ये आलम था की मैं सिर्फ दो बार मंच पर गया एक बार राजनीतिक प्रस्तांव पर बोलने और दुबारा मुलायम सिंह जी के सर्वसम्मति से राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने पर । 5 को  सम्मेलन खत्म हुआ तो मुलायम सिंह जी बाहर से आये नेताओं से मिलने स्टेट गेस्ट हाउस आये तो सबसे मिलते हुये मेरे कमरा नंबर 47 मे पहुचे ।मैं कुर्सी पर ही बेसुध पड़ा था ।उन्होने धीरे से जगाया और बोले की चाय मगाइये ।दोनो ने चाय पिया तो बोले मैं जानता हूँ कि आप बाहर से आये लोगो की अगवानी और ब्यवस्था मे 3 दिन से ठीक से सोये नही है पर आज से जब तक सबको विदा करना है वो कर के खूब सो लीजियेगा फिर मेरे पास आइएगा तब समीक्षा किया जायेगा और आप का ही ये विचार था तो आगे की बात भी किया जायेगा ।
बाकी सब इतिहास मे दर्ज है और छूटा हुआ सब बाद के एपिसोड मे ।

गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

जिंदगी_के_झरोखे_से

#जिंदगी_के_झरोखे_से ---

सिंगापूर की यात्रा १९८४/८५

एक दिन सुबह सुबह उपाध्याय जी जो हमारे पारिवारिक  मित्र थे घर आये और चाय पीने के बाद बोले की सिंगापूर चलना है रिवाल्वर लेने और साथ में टीवी ,वीसीआर भी ले आएंगे।   उस ज़माने में टीवी सहित अधिकतर इलेक्ट्रॉनिक सामान लोग सिंगापूर से ही लाते थे और बहुत लोग तो काम ही यही करते थे की महीने में बारी बरी अलग लोग सिंगापूर का चक्कर काटते और आकर इलेक्ट्रॉनिक सामान यहाँ बेच कर मुनाफा कमाते ।  वो दो भाई और एक उनके मित्र जाना चाहते थे पर उनकी दिक्कत थी की उनमे से किसी को अंग्रेजी नहीं आती थीं।  तो वो लग चाहते थे की मैं भी साथ चलू।  उनको किसी से शायद ये भी पता लग गया था की सिंगापूर में मेरे कोई रिश्तेदार रहते है।  उन्होंने कहा की वो तीन लोग मिल कर मेरा टिकट और खर्च उठा लेंगे।
मैंने कहा की कल बताता हूँ ,अगले दिन मैंने सिंगापूर अपने साढू  भाई से बात किया क्योकि मेरे घर टेलीफोन सलाहकार समिति के सदस्य वाला फोन लग गया था जो मुझे उस वक्त के संचार मंत्री अर्जुन सिंह ने बनाया था और उसमे १२०० काल फ्री होती थी। वह तीन पीढ़ी  रहे है और वहां विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर थे उस वक्त और ये तो वह जाकर पता लगा की वो उत्तर भारतीय लोगो के संगठन के अध्यक्ष और आर्य समाज के अध्यक्ष भी थे और बाद में विवि से अवकाश लेने पर वह चल रहे डी ए वी विद्यालयों के सर्वे सर्व हो गए जो अभी तक है। जब उनको बताया की मैं सिंगापूर आ रहा हूँ तो बहुत खुश हुये।  मैंने उनसे आने का पूरा डिटेल पूछा और ये भी की तीन अन्य लोग साथ आ रहे है तो कोई सामन्य होटल बता दे और उन सात दिनों के लिए बुक करवा दे जब मैं तारिख बताऊँ तो उन्होंने कहा की होटल की कोई जरूरत नहीं आप हमारे साथ रुकिए और हमारे घर में नीचे कुछ कमरे है जो भारत से आने वालो के काम आते है और उनका बहुत काम किराया है पर आपके साथियो के लिए वो मेहमान है इसलिए कोई किराया नही। 
अगले दिन मैंने उपाध्याय जी से चलने को हां कर दिया और ये भी बता दिया की वो जितना मुझपर खर्च कर रहे है उससे ज्यादा उनका होटल का मेरे साढू  के घर पर रहने के कारन बच जायेगा और तैयारी शुरू हो गयी पासपोर्ट बनवाने के लिए टी सी आई से बात हुयी और उसी से टिकट और वीसा इत्यादि की भी।  मेरा पासपोर्ट बना हुआ था क्योकि उससे पहले ही मैंने अमेरिकन विश्वविद्यालयों में पी एच डी के फॉर्म भरा था और मेरा अलबामा तथा ऑबर्न विवि में स्कालरशिप के साथ चयन भी हो गया था पर कसी वजह से मैं नहीं जा पाया पर उसी के कारन पासपोर्ट बन गया था।  सब हो गया और टिकट आ गया तो उपाध्याय  उनके साथी ने बहुत ज्यादा डालर खरीद लिया जो अपराध था और उस  समय  कस्टम के नियम बहुत सख्त थे।
मुझे तो मेरे बचपन के मित्र जिसके पिता और मेरे पिता साथ में प्रोफ़ेसर थे और हम एक घर के दो हिस्सों में करीब ३० साल से ज्यादा साथ रहे शिशिर सुमन रावत जो उस वक्त मरीन इंजिनियर हो गया था जब उसे पता चला की मैं सिंगापूर जा रहा हूँ तो उसने खुद १०० अमरीकी डालर दे दिए घूमने के नाम पर। उस वक्त सिंगापुर डालर भारत के ६ रूपये के बराबर था जो आज भारत के ५४ रूपये के बराबर है और अमरीकी डालर १३ रूपये के आसपास था और कुछ भारतीय मुद्रा मेरे पास थी थोड़ी सी ही क्योकि बताया  गया था की वो भी काम आ जाती है
मेरे दो बहुत ही घनिष्ट दोस्त उस समय पालम एयरपोर्ट पर कस्टम अफसर थे ,मैंने उनको सूचित कर दिया था की मेरा ये कार्यक्रम है और जाने आने में कोई दिक्कत न हो ये वो लोग देख ले।  उन लोगो की उस दिन छुट्टी थी तो उन्होंने अपने घर ही बुला लिया और हम लोग टैक्सी से उनके घर ही चले गए और वही खाना खाया।  देर रात क्या अगले दिन सुबह की फ्लाइट थी लुफ्थांसा एयरलाइन्स  की।  अचनाक उपध्याय जी ने मेरे दोस्तों को बता दिया की वो इतने डालर लेकर जा रहे है काम तो नहीं पड़ेंगे तब उन लोगो ने कानून बताया की जेल का इंतजाम है ये इसलिए जितना नियम है उससे १०० / ५० ज्यादा तो चल जायेगा बाकि यही रख जाइये और वापसी में ले लीजियेगा।  बच गए। 
रात को फ्लाइट पकड़ा और कुल ५ घंटे का सफर था ,सिंगापूर एयरपोर्ट पर पहुंचे।  क्या शानदार और कितना बड़ा एयरपोर्ट था। बाहर निकले तो सामने एक भारतीय टैक्सी वाला दिख गया उससे बात किया और साढू भाई का पता बताया तो उसने नाम लेकर पूछ लिया की उनके घर जाना है क्या ? और थोड़ी ही देर में हम उनके घर पर थे। उन्होंने मेरे साथ के लोगो को नीचे का तीन बेड वाला एक अकमरा दिया और मुझे ोप्पर घर में बुला लिया रहने को।  ये मेरे साथियो ने पहले ही कह दिया था की वो प्रदेश का कुछ नहीं खाऐंबगे बल्कि जो घर से बना कर बेसन और आते के लड्डू और मटरी इत्यादि लाये है वही खाएंगे और ये बात मैंने परिबार को बता दिया की ऐसी सोच है इन लोगो की ,तो मैं उनके घर ही नाश्ता खाना करता और साथी अपना लाया हुआ कहते।  बड़ी मुश्किल से एकाध बार चाय जरूर पी  लिया  इन लोगो ने।  भारत की आस्थाये भी कितनी कष्टकारी हो जाती है कब ही कभी। 
भारतीयों का बाजार कहे जाने वाले सेरंगुन रोड पर जहा  आसपास सब भारतीय ही रहते थे और उन्ही की अधिकतर दुकाने भी और उनमे सबसे प्रसिद्द मुस्तफा का स्टोर था जी अब शायद बहुत बड़ा माल बन गया है।  मुस्तफा उत्तर प्रदेश के जौनपुर का निवासी था और उसके यहाँ काम करने वाले लड़के लड़किया भी ९०% उसी के आसपास के ही थे हिन्दू मुसलमान सब। दो ही दिन बाद मेरी मुस्तफा से दोस्ती हो गयी और जब भी वहां जाता उसकी चाय या ठंडा जरूर पीता।  उसके स्टोर की स्थिति ये थी की कार हुए जहाज जैसी चीजे छोड़ दीजिये तो बाकि आप के दिमाग में जो भी खरीदने की इच्छा हो सब एक छत के नीचे मौजूद था और सभी सामान बिलकुल ऐसी कीमत पर की हमने दूसरी जगहों पर भी देखा तो मुस्तफा सस्ता था ।  थके हुए थे और रात भर के जगे तो पहले दिन पूर्ण विश्राम और थोड़ा आसपास चहलकदमी का तय किया।
मैं आगरा से चलते वक्त ही तय कर के गया था की क्या करना है और एक ब्रीफकेस जो बहुत पुराना करीब टूटने वाला था वो ले गया था और अपना बहुत पुराना जूता।  इसलिए उसी दिन पहला काम मैंने ये किया की मुस्तफा जाकर पहले अपने लिए हारा की एक जींस और टीशर्ट खरीदा और एक जूता भी और वापस आकर अपना ब्रीफकेस तथा पुराना जूता कूड़े में डाल दिया।  ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योकि वापसी पर कस्टम में हर चीज की कीमत जोड़ी जाती थी और अधिक हुआ तो जुर्माना। 
अगले दिन साढ़ू भाई की राय के अनुसार हम चार भारत के दूतावास गए जहा से रिवाल्वर खरीदने की इजाजत मिलती थी ,वहां भी साढू भाई का नाम काम आया और तुरंत काम हो गया फिर हथियार की दुकान पर पहुंचे और दोनों उपाध्याय भाइयो ने दो रिवाल्वर खरीदा ,एक ने १० हजार की बेवले और दूसरे ने ७ हजार की आर्मेनिएस।  वहा हथियार की खरीद की सिर्फ रसीद मिलती थी और आप का हथियार पुलिस के माध्यम से एयरपोर्ट कार्गो पहुंच जाता और बाद में पालम कार्गो से खबर मिलने पर ट्रांजिट लाइसेंस लेकर आना होता था।
सिंगापूर में दो चीज के लिए मौत की सजा है हथियार और ड्रग।  हम लोग जिस दिन पहुंचे थे उसी एक आदमी ड्रग के साथ पकड़ा गया था और ७वे दिन जब वापस आ रहे थे उसे फांसी लग चुकी थी ऐसा न्याय है वहां क्या।
फिर एक तरीका बनाया मैंने की जब भी खाली होता मुस्तफा और आसपास चला जाता और जो मैंने रात को बैठकर अपनी लिस्ट बनाया था वो सामान देखता उसका ब्रांड नेम और कीमत एक कागज पर लिखता जाता और वो स्टोर में किधर है ये भी ताकि अपना हिसाब लगा कर आखिरी दिन जो पैसा बचा हो उसमे माँ पिता ,भाई बहन पत्नी बेटियां और शशिर के परिवार के लिए कुछ न कुछ जरूर खरीद लूँ और किया भी यही की पूरा हिसाब बन गया तो पहले अटैची की दुकान पर गया आने के एक दिन पहले और इटावा के रहने वाले ठाकुर साहब ने सत्कार भी किया ठीक कीमत पर बहुत अच्छी अटैची भी दिया।
हां जब ठाकुर साहब की दुकान पर बैठा था तो एक घटना घटी की सामने की सड़क पर ट्रक का नीचे का कोई हिस्सा टूट गया जिससे सड़क थोड़ी खुद गयी और मैं अभी बैठा ही था की सड़क ठीक करने वाले आ गए बस सड़क का  उतना हिस्सा घेरा हुए चौकोर काट कर घर कर दिया ,फिर दूसरी गाड़ी में तैयार गिट्टी इत्यदि आयी थी वो भर बुलडोजर से दबा दिया और कुछ छिड़क दिया और थोड़ी देर पास से ही होकर मैं आया तो सड़क बिलकुल पहले जैसी थी।  वही मैंने उस साल ही तैयार जोड़ने का वो तरीका देखा जो आजकल ट्यूबलेस तैयार मे होता  है और ये भी देखा की तैयार का उतना हिस्सा काट कर वहा कुछ भर दे रहे थे और तैयार बिलकुल ठीक हो जा रहा था।
दूसरी चीज सिंगापूर में सड़क पर कागज फेंकने या थूकने पर ५० डालर का जुरमाना था तो भारत के गए लोग भी उसका पालन करते थे। वहां पुलिस कही दिखती नहीं थी पर जो ही कोई गलती करता पता नहीं कहा से तुरंत पहुंच जाती।  मुस्तफा के यहाँ एक बार कोई चालाकी दिखा कर कुछ छुपा कर ले जाने की कोशिश कर रहा था और उसके यहाँ चुकी खुद समान उठा कर काउंटर पर पेमेंट का तरीका था तो जब तक वो अंदर रहे किसी ने कुछ नहीं कहा और अंदर कुछ लोग बैठ कर कैमरे से निगरानी रखते है जो ही उसने स्टोर से एक कदम बाहर रखा उन्होंने पकड़ लिया और मुश्किल से ३/४ मिनट में पुलिस आ गयी। 
पूरे सिंगापूर में साथ दिन में भी न कॉलर गन्दा हुआ और न कपडा ,इतना साफ है और कोई एक इंच भी ऐसी जगह नहीं है जहा हरियाली और घास न हो।  जब मैंने इसके बारे में पुछा तो साढू  भाई ने बताया की दर असल पहले सिंगापूर के प्रधानमंत्री ने खुद अपने घर के आसपास पेड़ लगाए और घर लगाया और जब वो सब ठीक दीखनेक लगा तो उन्होंने जनता को एक दिन सम्बोधित किया की कृपया जब कभी समय हो और अगर मेरे घर की तरफ से कही जाना हो तो जरूर ध्यान से देखिये मैंने अपने घर के आसपास हरियाली उगाया है और अगर आप सब ये अच्छा लगे तो मेरी प्रार्थना है की सभी लोग अपने घर और दफतर इत्यादि के पास भी ऐसा ही करे और यह आंदोलन जैसा बन गया और आज पूरा सिंगापुर हरा भरा है सिर्फ उस हिस्से को छोड़कर जो उन्होंने छोड़ा है आने वाली पीढ़ियों को दिखाने को की कभी सिंगापूर कैसा था और पूर्वजो ने आज कैसा सिंगापूर नयी पीढ़ी को दिया है।
सिंगापुर सिर्फ इतना बड़ा है की आप बस से ४५ मिनट में मलेशिया में प्रवेश कर जाते है। सिंगापूर के लोग भी जब ज्यादा कपडे सिलवाने होते है तो मलेशिया जाते है जहा सिलाई सस्ती है और कपडे भी। सिंगापूर में एक ही मजबूत है पर  चुनाव कोई भी लड़ सकता है लेकिन वहां के प्रधानमंत्री ने काम ही इतना किया की लोग उनकी पार्टी को ही जिताते चले आ रहे है पर वह भारतीय की भी काफी भागीदारी है ,संभव काम से काम दो राष्ट्रपति भारतीय हो चुके और कुछ मंत्री तो हमेशा रहते है।  आज वहा के पूर्व प्रधानमंत्री के पुत्र प्रधानमंत्री है।  सिंगापूर में है नौजवान को तीन साल फ़ौज में रहना अनिवार्य है। सिंगापूर में खेती तो है ही नहीं वो पर्यटन और समुद्री जहाजों के रख रखाव तथा  मुक्त व्यापर पर ही निर्भर है पर आज इतना मजबूत है।
उसी समय मुझे पता चला की प्रधान मंत्री ने कहा की या तो मैं खुद को मृद्ध कर लूँ और अपने परिवार को या अपने देश को इन दो रास्तो में मैंने दूसरा रास्ता चुना।  इस बात पर मैं आज ही किसी का मजाक पढ़ रहा था की भारतीय नेताओ ने भी यही कहा पर चूँकि देश को मजबूत करने और उसके लिए समर्पित होने का रास्ता सिंगापूर के प्रधानमंत्री ने चुन लिया था इसलिए भारतीय नेताओ के पास बस दूसरी च्वाइस ही बची खुद को और परिवार को सम्पन्न करने की।
सिंगापूर की दो घटनाये जानने लायक है १- जब भारत में इंदिरा गाँधी जी की हत्या हो गयी तो पूरी दुनिया की तरह सिंगापूर में भी भारत के लोगो ने उसके खिलाफ जुलुस निकाला।  तो प्रधानमंत्री ने भारतीय लोगो के नेताओ को बुलाया और कहा की मामले पर दुनिया के दूसरे देश को क्या प्रतिक्रिया देनी है यह सरकार का विदेश विभाग तय करेगा और आप लोग सिंगापूर के नागरिक है तो आप सरकार से तो बात कर सकते है और अपनी मांग रख सकते है पर दूसरे देश की अंदरूनी घटनाओ पर प्रतिक्रिया  सकते इसलिए अगर आप लोग अभी भी  भारत की अंदरूनी राजनीति में रूचि रखते है तो मैं जहाज तैयार करावा देता हूँ और अपना सब कुछ बेच कर आप लोग भारत चले जाइये। २- दूसरी घटना संभवतः टाटा के साथ हुयी थी जब वो सिंगापूर में कुछ कारोबार करने और ऑफिस शुरू करने का प्रस्ताव लेकर गए तो प्रधानमंत्री से मिले ,प्रधानमंत्री ने उनसे केवल तीन सवाल किये की हमारे देश को  फायदा होगा और कितना ,हमारे देश के कितने लोगो को नौकरी मिलेगी और किस स्टार  की और इनका जवाब मिलने पर उन्होंने पुछा की कितनी जल्दी वो काम शुरू कर सकते है और वही बैठे बैठे विभाग को बुलाया और किसी बिल्डिंग के बारे में बताया की आप देख कर बताइये की क्या उससे आप का काम चल जायेगा और आप को और क्या क्या चाहिए और एक अधिकारी की ड्यूटी लगा दिया की तय समय में सब हो जाये और  शुरू होने की तारिख लिख ले रहा हूँ उस दिन सुबह १० नबाजे वह खुद आऊंगा। यह राज है वह की तरक्की का अनुशासन का।
अब अपनी यात्रा पर आता हूँ।  मेरे साथ गए लोगो की कोई रूचि घूमने में या सिंगापूर को जानने और देखन इसमे नहीं थी पर मेरी रूचि सब देखने और सब जानने की थी। जानने के लिए तो सुबह नश्तक के समय या रात को खाने के समय या साथ जाते वक्त रस्ते में मैं जो भी सवाल होते पूछता जाता था और साढ़ू भाई विवि से वापस आकर कही न कही ले जाते और बाकि समय मैं खुद घूमता और अपनी लिस्ट बनाता। इसी घुमने में मैं एक बार मुस्तफा स्टोर के बगल से कुछ आगे निकल गया तो देखा की एक बिल्डिंग में काफि लोग जा और आ रहे है ऐसा भी देखा की टूरिस्ट ग्रुप का गाइड कुछ बोल कर वही खड़ा हो गया हो गया और ज्यादातर लोग अंदर जाने लगे तो उत्सुकता  बस मैं भी चला गया देखा की कई मंजिल पर तमाम केबिन बने है और लड़किया हर केबिन में मौजूद है और वो मसाज पार्लर था। मुझे एक भारतीय लड़की मिली तो उसका इंटरव्यू कर डाला की क्यों ये सब कर रही है तभी देखा की स्कूल या कालेज की ड्रेस पहने कुछ लड़किया आयी ,उनके बारे में पुछा तो पता लगा की वो भी यहाँ मसाज के लिए आयी है और शायद और भी कुछ और वहां एक लड़की को एक ही ग्राहक की परमीशन थी और उनका रेगुलर मेडिकल होता था।  यह भी नया ज्ञान मिला पहली बार।
घूमने के क्रम में हम एक दिन समुद्र के किनारे भी गए गए साढ़ू भाई ने नया अपार्टमेंट लिया था ,उसकी बालकनी से क्या खूब नज़ारा था। उसके बाद एक छुट्टी का दिन था उस दिन संतोषा जाने का तय किया गया जजों समुद्र में छोटा सा टापू है। जाते वक्त हम लोग हवा में केबल कार से गए और वापसी में एक काफी बडा स्टीमर समझ लीजिये उससे आये।  संतोष सिंगापूर का मुख्य आकर्षण है लोग वहा आकर  रुकते है या लौट भी जाते है। संतोषा बहुत ही खूबसूरत जगह है जहा आप समुद्र में तैराकी करिये ,घूमिये और खाइये पीजिये। पर मुझे वहां सब चीजों के साथ जो चीज बहुत भाई वो मेरे बचपन के पहले हीरो नेता जी सुभाषचंद्र बोस की यादगार सबकुछ।  वह का रोस्टेड मुर्गा भारत के मुर्गो से दो गुना से ज्यादा।  पूरा परिवार साथ गया था और बहुत ही आनंद आया। सचमुच आज लगा की  नया देखा है पहली बार और नेता जी की याद तो खैर कहने ही क्या। 
एक दिन जब खरीददारी कर रहा था तो पत्नी के लिए कुछ और भी खरीदने का सोचा पर समझ नहीं आया की लूँ कैसे साडी ईत्यादि तो ले लिया था वहां का साबुन ,पेस्ट जिसको आजतक नहीं भूल पाता हूँ और बहुत कुछ कुछ सबके लिए पर कुछ अभी और लेने की गुंजाइश थी। पत्नी भी साइज़ नहीं बता पायी और मैं बताऊँ कैसे कोई ,काउंटर पर लड़की थी और वो सब कई दिन से देख कर और भारतीय जानकार परिवार जैसी हो गयी थी पर मैंने यू  ही कह दिया की पत्नी के लिए खरीदना चाह रहा हूँ पर समझ नही  आ रहा की कैसे लूँ ,बड़ी अजीब स्थिति स्थिति मेरे लिए पर वो बोली की सर परेशान  न हो और यहाँ देख कर बताइये की आप की वाइफ किसके जैसी है अंदाज से और इधर उधर देख कर एक की तरफ मैंने  यूँ ही इशारा कर दिया ,वो उसके पास गयी और आकर उसने दी निकल दिया की ले जाइये ठीक ही होगा वार्ना किसी और के काम आ जायेगा  .
एक दिन मैं यूँ ही घूमता हुआ मैं आर्यसमाज मंदिर चला गया। वहां शाम को लोग एकत्र होते थे।  कुछ साल पहले वाद विवाद प्रतियोगिता के लिए पढ़ने को सत्यार्थ प्रकाश और स्वामी दयानन्द के बारे में पढ़ रखा था तो वह लोगो से नया परिचय हुआ तो किसी ने पूछ लिया की क्या मैं कुछ जानता हूँ स्वामी जी के बारे में बस अवसर मिला तो कुछ बोला भी और दो कविताये भी सुना दिया फिर क्या था वहां के लोगो ने कुछ भेट किया और पर्स थोड़ा और भरी हो गया।
मेरे एक मौसा जी भी सिंगापूर में रहते है जो मौसी जी की शादी के बाद कभी  भारत न खुद आये और न परिवार तथा बच्चो को भेजा की भारत में तो उतरते ही बीमार हो जाएंगे जबकि मेरे साढ़ू भाई जो तीन पीढ़ी से वहां है वो हर साल कुछ दिनों के लिए भारत जरूर आते है और अपने  सहित सबको मिलते है ,मेरी बेटियों की शादी में २०१५ में इतनी उम्र में भी दोनों लोग सिंगापूर से केवल शादी में भाग लेने आये। मैंने उनसे पुछा की क्या आप मेरे मौसा जी को जानते है तो मैंने जो ब्यौरा दिया वो पहचान गए और उनको फोन कर बता दिए की मैं आया हूँ और फिर उधर से अगले दिन डिनर का निमत्रण मिल गया।  मौसी तो मिल कर कुछ देर तक रोती  ही रही।  विदा के समय १०० सिंगापूर डालर और एक कपड़ा भेंट में मिला जो बहुत सुन्दर था और वो कत्थई सफारी सूट मैंने काफी पहना मौसी के प्रेम का उपहार।
साढ़ू की तीसरी पीढ़ी के बावजूद वो लोग घर में भोजपुरी ही बोलते है और शुद्ध भारतीय शाकाहारी भोजन ही करते है। उनकी बेटी ने एक चीनी लड़के से शादी किया है। मेरी पत्नी जब जीवित थी तो वो बेटी और उसका पति तथा बच्चे आगरा आये घूमने ,घर आते ही चारो ने प्रणाम किया।  मैंने सोचा की चाइनीस और थाई खाना लाऊँ इन लोगो के लिए तो जब उससे पुछा तो दामाद बोला की वो जो पानी भर कर कहते है और जो आलू जो डीप फ्राई करते है वो यानि गोलगप्पा और भल्ला इत्यदि। आगरा के सबसे अच्छे ये सब मैं लेकर आया और सबनेक खूब मन से खाया।  आप को आश्चर्य होगा की चीनी दामाद और उसके बच्चे भी हिंदी ही नहीं भोजपुरी के शब्द बोलने लगे थे।
और सातवे दिन हम लोगो को छोड़ने साढू भाई सपरिवार एयरपोर्ट पर आये। बाकि साथियो ने टीवी और वी सी आर खरीद लिया था और मैंने एक कैमरा ,एक
और भी चीजे जो छूट रही होंगी वो आत्मकथा में होगी 

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से-
जब वो #राजीव_गांधी_जिन्दाबाद_बोलते_हुए_आये
और #मुलायम_सिंह_जिन्दाबाद_करते_हुये_निकले
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ये 1993 के विधान सभा चुनाव की बात है ।मैं समाजवादी पार्टी का महामंत्री और प्रवक्ता था ।आगरा मे जातिगत कारणो से पार्टी का कोई बहुत मजबूत आधार नही था पर मेरी अति सक्रियता और सतत संघर्ष से पार्टी कुछ ज्यादा ही नजर आती थी सड़क से समाचारो तक और चूंकि आगरा तीन मध्यप्रदेश और राजस्थान से भी जुड़ा है और आगरा मंडल ही नही इटावा तक के मीडिया का मुख्य केन्द्र है तथा आरएसएस का भी पच्चिमी उत्तर प्रदेश का मुख्यालय है और इस बड़े क्षेत्र का शिक्षा और चिकत्सा का तथा  बुद्धिजीवियो का भी केन्द्र रहा है और  मुलायम सिंह यादव जी की शिक्षा भी यही से हुई है तो उनकी भी आगरा मे ज्यादा रुचि रही और एक टोटका भी शायद उनके दिमाग मे लगातार रहा कि आगरा मे मैने पार्टी का एक तीन दिवसीय कार्यक्रम रखा और उसके बाद ही पार्टी की सरकार बन गई जो 2017 से पहले भी हुआ तो आगरा पार्टी की सक्रियता और प्रचार का केन्द्र था ।
चौ चरण सिंह के समय लोक दल को छोड दे जिसमे वो तीन विधान सभा सीट जीत जाते थे वर्ना 1977 से पहले जब पुरानी समाजवादी पार्टी जीतती थी कुछ सीटे और 1977 मे भी शहर की तीनो सीट कांग्रेस ही जीत गई 

आज उत्तर प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा --

आज उत्तर प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा --


उत्तर प्रदेश का आने वाला चुनाव मील का पत्थर साबित होने वाला है ।बंगाल ने लम्बे समय बाद एक चुनौती को स्वीकार भी किया और चुनौती दिया भी और इबारत लिख दिया राजनीति के पन्ने पर की इरादा हो, संकल्प हो और आत्मबल हो तो कितनी भी बड़ी ताकते सामने हो उन्हे परास्त किया जा सकता है ।

अब बारी उत्तर प्रदेश की है तय करने की कि देश की राजनीति की दशा और दिशा क्या होगी । जो विभिन्न कोनो से आवाज उठती है कि लोकतंत्र खत्म हो जायेगा और संविधान संघविधान मे बदल जायेगा तथा एक संगठन को छोड बाकी सब कैद मे जीवन काटेंगे ,क्या सचमुच वैसा कुछ होगा या ये सब एक भ्रम मात्र है ।तय तो ये भी होना है की जो चल रहा है वही चलेगा या बदलाव आयेगा और खुली बयार फिर से बहेगी ।तय होना है की उत्तर प्रदेश सिर्फ ठोको , मुकदमे लगाओ और जेले भरो पर ही चलेगा या रोटी रोजगार और सचमुच के विकास जिसका लोग सपना देखते है उसपर चलेगा ।

तय ये भी होना है कि 1989 से हर चुनाव मे सत्ता परिवर्तन की बयार इस बार भी बहेगी या कांग्रेस युग की वापसी होगी और सत्ता फिर वापस आयेगी ।

इस युद्द के मुख्य रूप से चार योद्धा है जिसमे भाजपा तथा आरएसएस और समाजवादी पार्टी फिलहाल आमने सामने दिखलाई पड़ रहे है । भाजपा के ऊपर जहा सरकार असफलताओ का बोझ है वही अपने ही विधायको नेताओ और कार्यकर्ताओ की नाराजगी का जोखिम भी ,जहा सभी चीजो की महंगाई का विराट प्रश्न सामने मुह बाये खड़ा है तो किसान आन्दोलन की आंच भी जलाने को तत्पर है ,बेरोजगार नौजवान हुंकार भर रहा है तो कुछ को छोडकर कर पूर प्रशासन तंत्र मे एक कसमसाहट है , या यूँ कहे की चुनावी जमीन भाजपा को निगलने को आतुर दिख रही है ।नागपुर से लेकर दिल्ली और लखनऊ तक भगवा खेमे जबर्दस्त बेचैनी दिखलाई पड़ रही है और साम दाम दंड भेद सब कुछ इस्तेमाल कर किला बचाने की जद्दो-जहद भी साफ नज़र आ रही है तभी राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश तो राजनाथ सिंह मध्य उत्तर प्रदेश और अमित शाह पच्चिमी उत्तर प्रदेश मे चुनाव सम्हालने जा रहे है और प्रधानमंत्री मोदी का अब हर हफ्ते कार्यक्रम लग रहा है । आरएसएस तथा उसके प्रशिक्षित लोग हिन्दू मुसलमान मुद्दा बना देने को कमर कसते नज़र आ रहे है तभी तो केशव मौर्य से मथुरा काशी का राग छिड़वा दिया गया है  भगवा खेमे के योद्धा चाहे उसकी आंच मे प्रदेश बर्बाद क्यो न हो जाये पर चुनाव बड़ी चीज है ।

दूसरी तरफ समाजवादी खेमा लम्बी नीद से उठ कर अपनी अंगडाई लेता हुआ दिख रहा है पर अभी भी जमीनी हकीकत और अपनी कमजोरियो से आंखे मूदे हुये लगता है ।जहा भाजपा सैकड़ो चेहरे और संगठनो के साथ उछल कूद कर रही है वही समाजवादी पार्टी वन मैंन शो के साथ वन मैन आर्मी ही नजर आ रही है । अखिलेश यादव द्वारा मुलायम सिंह यादव को बेइज्जत कर अध्यक्ष पद से हटाने के बाद पार्टी सभी चुनावो मे खेत रही है ।पार्टी का दो मुख्य मजबूत वोट था जिसमे से पिछले विधान सभा चुनाव और लोक सभा चुनाव मे इसमे से यादव लोगो का भाजपा खेमे को काफी समर्थन मिला हिन्दू और मंदिर के नाम पर और अभी भी ये दावा नही किया जा सकता कि 100% यादव वोट पुरानी वाली ताकत तथा जज्बे से सपा के लिये लडेगा और वोट देगा ।दूसरा अडिग वोट मुसलमान का रहा जो 1989 और फिर 1993 से पूरी ताकत के साथ सपा के साथ खड़ा रहा पर इस बार वो विचलित दिखलाई पड़ रहा है और आज़म खान के मामले मे अखिलेश यादव की तब तक की गई बेरुखी जब तक वोवैसी से आज़म से मिलने की इच्छा व्यक्त नही किया और कांग्रेस की तरफ से भी उनके प्रति सहानुभूती नही दर्शाई गई ने भी पूरे मुस्लिम समाज को विचलित कर दिया है साथ मे कभी विष्णू के मंदिर तथा कभी परशुराम के मंदिर की बात कर अखिलेश यादव ने पाया कुछ नही बल्कि भाजपा की नीतियो का पिछलग्गू बनने का काम किया है ।ऐसे मे यदि मुस्लमान को कोई और विकल्प नही मिला तो उसका वोट तो मिल सकता है पर 1991की तरह ही जोश रहित और कम संख्या मे होगा ।पता नही क्यो अखिलेश यादव पर अति जातिवादी होने का ठप्पा भी लग गया है और बडी जातियो के प्रति बेरुखी वाला भाव भी ।ये गलती तो सपा ने प्रारंभ से ही किया कि वो अन्य पिछडी जातियो और अति पिछडी जातियो को ये एहसास नही करा पायी की पार्टी तथा सत्ता उनकी भी है ।मुलायम सिंह के उलट अखिलेश का सुलभ न होना तथा पुराने लोगो के प्रति उपेक्षा भाव और अनुभवी वरिष्ठ लोगो से दूरी भी उनको भारी पड़ती दिख रही है और वो अपना ही राजनीतिक कुनबा ही पूरी तरह समेट नही पा रहे है ।पर अब वो भी सडक पर आ चुके है ।जहा सिर्फ 30या 35 सीट की लडाई मे अपने चाचा शिवपाल यादव और मुलायम सिंह यादव को बाहर का रस्ता दिखा दिया वही कांग्रेस को 125 सीट दे दिया । यद्द्पि भाजपा के सामने आज तक सपा ही है पर अभी तक सपा और उनके सहयोगी 125/130 सीट से ज्यादा पर बढते हुये नज़र नही आ रहे है पर थोडा व्यव्हार और रणनीति बदल कर उछाल लेने से भी इंकार नही किया जा सकता है । कितना ये उनके व्यहार और रणनीति परिवर्तन पर निर्भर है 

तीसरी  पार्टी बसपा है जिसकी नेता मायावती यदि पैसे की भूखी नही होती और धन वैभव तथा अहंकार से दूर रही होती और अपने मिशन के साथियो को दूर नही किया होता तथा काशीराम के रास्ते पर चलती रही होती तो आज देश की सबसे बडी ताकतवर नेता होती या सबसे बड़े 3/4 मे होती ।पर उनकी कमजोरियों और कर्मो ने उनकी लम्बे अर्से से भाजपा की सत्ता के सामने शरणागत कर दिया और लम्बे समय से दिल्ली मे बैठी वो केवल राजनीति की औपचारिकता निभाती हुयी दिख रही है । उनके कर्मो से उनका वोट ठगा हुआ मह्सूस कर रहा है ,फिर भी उनका वोट है ।इस चुनाव मे भी वो पुराने हथकंडो के साथ मिश्रा जी के कन्धे पर चढ़ कर चुनाव को बस जीवित रहने लायक लड़ना चाह्ती है या भाजपा की बैसाखी बन अपनी सुरक्षा और अपने भतीजे की राजनीति मे स्थापना तक के ही इरादे से उतरना चाह्ती है ये वक्त बतायेगा ।  फिर भी मायावती यदि इस चुनाव मे पैसे का लालच छोड कर और क्षेत्रो के सम्मानित लोगो को ढूढ कर टिकेट देती है और अपने खजाने का कुछ अंश लोगो के चुनाव लड़ने पर खर्च करती है तो वो 40 से ज्यादा सीट जीत सकती है और यदि ढर्रा पुराना ही रहता है तो 19 से भी नीचे ही जायेंगी और कितना नीचे इसकी समीक्षा कुछ समय बाद हो सकेगी ।

चौथी पार्टी कांग्रेस है जिसके लिये इस बार सबसे अच्छा अवसर था क्योकी वो 1989 से ही उत्तर प्रदेश सरकार से बाहर है और प्रियंका के रूप मे ये नया चेहरा उनके पास था पर या तो कांग्रेस का नेतृत्व किसी दबाव मे है या फिर मन से हार चुका है और इतना कुण्ठित हो गया है कि नये विचार और कार्यक्रम सोच ही नही पा रहा है । लोगो को जोडने मे कांग्रेस का विश्वास नही नही है बल्कि स्थापित काग्रेसी इस चक्कर मे रह्ते है की जो है उनको भी कैसे निकाला जाये की उनका एकछत्र राज रहे चाहे बंजर जमीन पर ही सही ।खुद राहुल गांधी पूरे परिवार की पूरी ताकत लगाने के बावजूद अपनी पारम्परिक सीट अमेठी हार चुके है और जब सोनिया जी या राहुल जीतते भी है तो अपने जिले की विधान सभा नही जीता पाते पर अभी ये परिवार स्वीकार नही कर पा रहा है की राजनीति कहा जा चुकी और आप करिश्मा करने वाले नही रहे । वैसे भी इधर कांग्रेस सिर्फ उन प्रदेशो मे चुनाव जीती जहा किसी दल से सीधी टक्कर हो और उस प्रदेश मे कांग्रेस का मजबूत नेता हो जिसने अपने प्रदेश मे अपनी साख कायम रखी हो । बंगाल मे शून्य पर आकर और तमिलनाडु केरल तथा असम मे पूरी ताकत और समय लगाकर भी दोनो कूछ हासिल नही कर सके पर अभी भी अपनी कमजोरियो दूर करने और जमीन की हकीकत समझने का कोई इरादा नही दिखता है ।शायद भाजपा और आरएसएस पर ही निगाह रखते तो कुछ तो कमजोरिया दूर कर सकते थे । सिंधिया छोड सकते है महीनो से पता था पर क्यो नही रोक पाये ,सचिन पाइलट ने 5 साल मेहनत की पर उनकी उपेक्षा क्यो और क्यो कुछ फैसला नही ।मध्य प्रदेश में 28 सीटो का चुनाव था और सत्ता का फैसला होना था पर भाई बहन सहित पूरी पार्टी ने कमल नाथ को अकेला छोड दिया ।इतिहास ही याद कर लेते की 1978 मे सिर्फ एक सीट पर इन्दिरा जी ने कैसे गाव गाव पैदल नापा था और जिस गाव मे जहा जगह मिली रुक गई । सांकेतिक राजनीति का तजुर्बा तो हो चुका भट्टा और परसौल मे । जरा पन्ना पलट कर देख लेना चाहिए कि वो सब कर के कितना वोट मिला दोनो जगह । उत्तर प्रदेश में मे भी कही कांग्रेस इसी तरह चलती रही तो कही बंगाल ही न दोहरा दे और अब भी अपने रंगीन चश्मे उतार दे और राजनीतिक पर्यटन को छोडकर कर डट जाते पूर्णकालिक तौर पर और व्यवहारिक राजनीति कर ले तो शायद कुछ साख बच जाये ।वो सत्ता की तरफ जाने वाला रास्ता और समय तो पीछे छूट गया पर सम्मान बचा सकती है और 2024 के लिये बुनियाद रख सकती है ।पर प्रियंका गांधी ने आकर्षण पैदा किया है और संगठन को धार देने की कोशिश की है जिसका परिणाम है की उनकी बड़ी रैलिया हो रही है ।वो नया एजेन्डा भी सेट कर रही है पर जातिवाद के अति का शिकार उत्तर प्रदेश जाती का तड़का भी चाहता है ।अगर कुछ जातिगत छत्रप साथ हो जाते तो कांग्रस कमाल भी कर सकती है ।

कुल मिलाकर पूरा माहौल भाजपा और योगी विरोधी होने के बावजूद आज की तारीख तक विरोध की अकर्मण्यता,सिद्धांतो से विचलन और धारदार राजनीति का अभाव तथा सुविचारित रणनीति का अभाव भाजपा को फिर मुकुट पहना सकता है ।ऊपर लोगो की जिन आशंकाओ का जिक्र किया गया है उनका जवाब देने और फैसलाकुन युद्द छेड़ने की जिम्मेदारी तो विपक्ष के नेताओ की है ।देखते है की 1989 का सिलसिला जारी रहता है और सत्ता बदलती है या 80 के दशक का कांग्रेस का इतिहास भाजपा दोहरा देती है । यदि विपक्ष रणनीतिक साझेदारी के साथ आरएसएस और भाजपा के धार्मिक और जातीय ट्रैप से बच कर फैसलाकुन लडाई लडने उतर सका तो भाजपा को 100 सीट भी नही मिलेगी और सत्ता परिवर्तन होगा और यदि यही ढर्रा रहा तो भाजपा 160 से 210 तक सीट जीतने मे कामयाब हो जाएगी सारी विपरीत स्थितियो के बावजूद भी । सवालो के जवाबो की प्रतीक्षा जनता को भी है और भविष्य के इतिहास को भी ।


शनिवार, 6 नवंबर 2021

पता नही अब कौन सी मुसीबत आ गयी कालोनी मे

पता नही अब कौन सी मुसीबत आ गयी कालोनी मे 

कालोनी मे एम्बुलेंस आई 
किसी को कहा पता है 
कि 
कौन गम्भीर बीमार हो गया 
या 
किसी की लाश आई 
क्योकी खुद के लिये जीना और खुद तक रहना नई सभ्यता है 
पडोसी पडोसी को ही नही जानता 
तो कालौनी वाले क्या जानेंगे 
कल कोई सार्वजनिक सूचना आयेगी कालोनी के पार्क मे शोकसभा की 
तो कोशिश करेंगे की पहचान ले कि किसके घर हुआ है 
अरे हा 
ये तो रोज सामने पडते थे घर से निकलते ही 
शायद सामने वाला दरवाजा इन्ही का है 
फिर 
मुह लटका कर पूछना अरे क्या हो गया था 
आप ने बताया ही नही 
कोई बात थी तो दरवाजा खटखटा देते 
बहुत अच्छे थे या थी 
उधर घड़ी पर निगाह है की कही जाना है और ये मुसीबत 
अरे वो देखो कई लोग  तो अब अंतिम मिनट मे आ रहे है 
हम ही कौन से सगे थे की आकर बैठ गये शुरू से 
कुछ काम ही निपटा लिया होता इतनी देर मे 
अभी वो सीरियल आ रहा था 
और वो फिल्म भी 
पर दिमाग खराब था भागे आ गये 
ओह चलो शोक सभा खत्म तो हुयी 
तो 
हम आप लोगो के घर का क्या नंबर है ।
क्या नाम लिखते है अपना 
हा वो तो घर के सामने ही है 
अंदर से -
ये अपने धर्म या जाती के तो है नही 
अच्छा चल रहे है कोई बात हो तो बता दीजिएगा 
पर उन्होने भी नही पूछा न नाम और न घर का नंबर 
एक और एम्बुलेंस आ गयी 
चलो जल्दी कही रुकना न पड़ जाये 
पता नही अब कौन सी मुसीबत आ गयी कालौनी मे ।

बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

क्योकी वो अभी जिन्दा है

आज ही यानी 27 अक्टूबर की रात और 28 की सुबह उत्तर प्रदेश के एक जिले के एक पिछड़े गाव के उस घर के एक अंधरे कमरे मे जन्म हो गया था एक इन्सान का , न डाक्टर ,न नर्स ,न दवाईया ,न साफ सफाई पर वो जी गया और चल भी गया इतने साल अपने तमाम संघर्षो लोगो के छल और धोखे पर आंख बंद कर विश्वास करते हुये ।
आज उसकी जिंदगी के अनुभव मे एक साल और जुड़ गया ।
लिखना चाहता है वो अपनी जीवन गाथा पर वो एक नितांत साधारण व्यक्ति है और साधारण लोगो की जीवन गाथा नही होती है बस उनके हिस्से मे संघर्ष होते है , उपेक्षा और अपमान होते है ,दुख होता है और तिरस्कार होता है ,और लिखे भी तो क्या लिखे ? गरीबी ,अभाव चार  चम्मच दूध के लिये झगड़ा ,गेहू की रोटी या पूड़ी का वर्णन और ये कि गेहू का आटा कही से आता था विशेष कारण से ,वो बाढ़ जो दरवाजे तक आ गयी थी और सब फसल लील गयी थी और उसके बाद की जिन्दगी ,कहा से शुरू करे वो और कहा खत्म ।इतना ज्यादा है की कई दिन चाहिए लिखने को या कई महीने ।पर क्या होगा लिख कर वो लड़का तो वापस नही आयेगा जो अभाव के कारन अपराधी बन गया था और किसी पडोसी विरोधी से सुपारी लेकर बहाने से बुला कर पुलिस ने गाँव मे ही गोली मार दिया था उसे जिसकी शादी अभी चंद दिन पहले ही हुयी थी और वो लड़कियां भी कहा वापस आ पायेंगी जो एक के बाद एक ब्याह कर लायी गयी थी पड़ोस के घर मे और घर के सामने की पोखरी मे डूबी और मरी पायी गयी थी और पडोसी मुसकराता हुआ फिर दूल्हा बनने को तत्पर दिखा था और उसका परिवार दहेज के लिये ।
क्या क्या लिखे वो सब गडमड हो रहा है और बिखर रहा है यादो मे ।
पर याद है भैस चराने जाना ,फिर उसको तालाब मे नहलाना और उसकी पीठ पर तालाब मे घुमना ,याद तो वो भी है जब डूब ही गया था तालाब मे दो बार पर किसी ने देख लिया तो बच गया और वो जब कुये से पानी निकालते हुये पैर फिसल गया था गिर ही गया होता कूये मे और कहानी खत्म हो गयी होती पर बगल की दीवार मे लगी हुयी खूटी हाथ मे आ गयी थी और बच गया था । याद है खुरपी से खोदना ,फावड़े चलाना ,हल जोतना , कोल्हू हो या रहट बैल के पीछे चलना तो ढेकूल से पानी निकाल कर सिचाइ करना ,थाला से हाथा से पानी खेत मे फेंकना तो चारा काटना पर ये सब लिख कर क्या होगा । बैल भैंस गाय सबको सानी पानी करना तो गुड बनाने के लिये कड़ाह मे झोकना ,भेली बनाना तो आखिर मे बचे कडाहे मे पानी उबाल कर औटी पीना । खेत ने धान रोपना ,तो खेत के मचान पर रखवाली करना ,उसी मे लगा फूट खाना तो खेत से सर पर लाद कर फसल लाना ।खलिहान मे फसल की दवाई ओसाई और फिर सर पर लाद कर घर पहुचाना ।क्या क्या लिखे वो ।वो गिट्टी फोड ,वो लाखन पाती ,कबड्डी ,कुश्ती ।
उस दिन वो एक गरीब की बीबी के स्त्री अंग मे किसी के द्वारा डाल दी गयी लाठी और उसी तरह उसको 7 किलोमीटर दूर थाने ले जाना क्या क्या लिखे 
 ,वो पड़ोस के गुप्ता चाचा पिता के दोस्त जो किसी बहाने अपना पुरुष अंग शरीर ने कही छुला देते थे ,वो मिट्टी के बर्तन बनाने वाले की बहुत बड़ी उम्र की लडकी जो 4 साल के बच्चे के अंग से खेल कर पता नही क्या पाती थी ,  वो स्कूल के मुन्शी जी जो बच्चो से अपने पुरुष अंग पर कोई क्रीम लगवाते थे भरी क्लास मे तो क्या करते होंगे वो जिन बच्चो को विशेष रूप से शिक्षित करने को रात को भी बुलाते थे स्कूल और परिवार समझता था की बच्चा पढाई मे मजबूत हो रहा है ।बम्बई से आई बचपन के दोस्त की लाश पर लिखे जो कमाने गया था पर उत्तर भरतीय होने के कारन शिव सैनिको द्वारा मार दिया गया था ।अच्छा सब बुरा ही नही जांघिया नाच पर तो लिख ही सकता है जिसमे घुघरु लगे जांघिया (अन्डर वियर ) पहन कर कितना अच्छा लगाता था वो नाचता हुआ लोग और तिलैया तो क्या शानदार नाचता था ।दुलारे हर चीज का इलाज थे कुये से पानी भरना , बाल और नाखून काटना ,गाँव और आसपास के गाँव ही नही दूर दूर रिश्तेदारी मे सूचना देना ,न्योता पहुचाना और शादी पता लगाना और उनकी औरत घर अन्दर का सब सम्हाल लेती थी। 
बहुत है लिखने को लगता है कि लिख लेगा वो अगर कोशिश करेगा तो ।
आगे कोशिश जरूर करेगा क्योकी वो सब संघर्ष और तकलीफ के बाद भी आज भी जिन्दा है ।

सपने और आन्दोलन तब से

हमें याद है युवा आंदोलन और उसकी आवाजे क्योकि हम उसका हिस्सा रहे है ।
1967/68 अंग्रेजी हटाओ आंदोलन ( बहुत दिनों तक नारा लगता रहा - अंग्रेजी में काम न होगा फिर से देश गुलाम न होगा )
परिणाम ?????% अंग्रेजी बढती गयी और आंदोलन करने वाला छात्र और नौजवान छला गया ।
1975 जयप्रकाश आंदोलन , कुर्सी खाली करो की जनता आती है , संघर्ष हमारा नारा है ,भावी इतिहास हमारा है , और सत्ता नही व्यवस्था परिवर्तन करना है ।
परिणाम- बस सत्ता बदली और नौजवान फिर छला गया । पढाई और रोजगार का नुकसान हुआ ।
1989 राजा नहीं फ़कीर है देश की तकदीर है ।
परिणाम - एक और सत्ता परिवर्तन और नौजवान से बस छलावा ।
से लेकर 2014 - अच्छे दिन ,2 करोड़ रोजगार ,15 लाख ,गुजरात मॉडल तक 
कब तक नौजवान केवल लोगो को सत्ता दिलवाने का हथियार बनता रहेगा ? इस उम्मीद में की शायद अब उसके लिए अच्छे दिन आएंगे ।
नौजवान भावना में बह कर केवल अपनी जिंदगियां ख़राब करता रहा है ।
नौजवानों कब चेतोगे और एक फैसलकुन फैसला करोगे सचमुच के व्यवस्था परिवर्तन के लिए ,समाज परिवर्तन के लिए ,गैर बराबरी ,भ्र्ष्टाचार और धोखे से मुक्ति के लिए ।
नहीं चेते तो बस किसी न किसी के नारे लगाते रहोगे और अपनी जिंदगी में हारते रहोगे उन लाखो की तरह जो तुमसे पहले हार कर बूढा गए है भरी जवानी में ।
और तुम्हारी जगह फिर नए नौजवानो की फ़ौज तैयार हो जायेगी किसी का आंख बंद कर और जूनून के साथ नारा लगाने को और वो कुर्सियों पर बैठते रहेंगे ।
पर व्यवस्था कभी नहीं बदलेगी ,समाज कभी नहीँ बदलेगा और तुम भी कभी नहीं बदलोगे ।
या फिर खूब चिंतन कर एक बार खड़े हो जाओ और आने वाली पीढ़ियों को मुक्त कर दो इस छल से और उसका रास्ता सुगम बना दो ।
( एक  सफर का चिंतन पर पता नहीं क्यों और कितनी भृकुटियां तन जाएँगी मुझपर जिसकी मैंने कभी चिंता नहीं किया क्योंकि सच जिन्दा रहना चाहिए --- क्योकि मेरी आँखों में कुछ सपने है )
जय हिंद
#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच

2013 मे लिखा था

आज ही मगर 2013 में लिखा था ये मैंने । जरा पढ़ कर बताइये कुछ । क्या गलत और क्या सही लग रहा है आज ।

कल घोषणा नाथ सिंह ने बताया की यदि हिटलर आएगा तो चीन और पाकिस्तान मंगल गृह पर भाग जायेंगे वैसे उनकी मानसिक स्थिति तो उनके उद्बोधन से ही स्पष्ट हो गयी | क्या जब बीजेपी के ६ साल सरकार थी ,अटल और अडवाणी सहित घोषणा नाथ भी मंत्री या मुख्यमंत्री थे और दुश्मन घर के भीतर घुस आया और ये सोते रहे ,दुश्मन संसद में घुस आया और ये सोते रहे ,देश के जगह धमाके करता रहा और ये सोते रहे ,,,उस वक्त बीजेपी देशद्रोही थी ???? अयोग्य थी शासन के लिए ??? अटल इत्यादि अयोग्य थे ??? या उस वक्त हिटलर मंगल गृह पर की साधना कर रहा था ??? ये भी पता लगाना जरूरी है की जब ये सरे हमले हुए थे और शहीदों के ताबूत तक में दलाली ली गयी थी .... जब देश के बड़े आतंकवादी को सैकड़ो करोड़ रूपये के साथ कंधार में देश के मंत्री बीजेपी के ही पहुंचा कर आये थे तो उस वक्त हिटलर ने किस किस का कुरता फाड़ा था ??? या कोई वक्तव्य भी दिया था क्या ???
जब बंगला देश ने हमारे ११ सैनिको को मार कर और जला कर हमें सौंपा था तो हिटलर और उसकी जमात ने क्या किया था ???\
जब नवरत्न कम्पनियाँ घूस लेकर औने पौने में बेचीं गयी तो हिटलर और उसके लोगो की क्या भूमिका थी ?? 
जब चीनी मिले घूसखोरी के साथ बेचीं गयी तो हिटलर और उसकी जमात के लोगो की क्या भूमिका थी ??? 
जब इनका अध्यक्ष रँगे हाथ पकड़ा गया था तो हिटलर को गुसा आया था क्या और गुस्से में क्या किया था ?? 
जब जोशी जी कश्मीर विजय करने निकले थे और फिर डर के मारे कह दिया था की सड़क टूट गयी और और नरसिम्हा राव से गिदगिड़ा कर कहा था की एक बार इज्जत बचा लो फिर कभी कश्मीर का नाम भी नहीं लूँगा [ जो आज तक सही साबित हुआ है ] और सेना के जहाज से जाकर जल्दी से झंडा फहरा कर भागे थे तथा पत्रकार ने पूछा की झंडा तो फहराने के बजाय अपने डर के मारे गिरा दिया इस पर क्या कहना है तो भागते हुए कहा था की भारत जाकर बताऊंगा ,,, उस पर हिटलर और और उसकी जमात का आज क्या रुख है ??? 
भगवान् राम को बेघर कर दिया और दुनिया में बहुत से मन्दिर गिरवा दिए ,भगवान् इन्तजार कर रहे है ,हिटलर उनसे कब मिलेंगे और अपना वादा कब पूरा करेंगे ?? 
३७० .. सामान कानून ,कश्मीर इत्यादि के बारे में क्या राय है आज ??? 
देश में शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ बन कर बहुत अच्छा योगदान देने वाले ईसाई समाज के बारे में क्या राय है ??? 
क्या हिटलर पाकिस्तान पर हमला कर इंदिरा गाँधी जैसा इतिहास रचेंगे ?? जिनकी शहादत को भी हल्का और राजनीती का विषय मानते है इस जमात के लोग ??? 
कम्पूटर का विरोध करने वाले और आधुनिक क्रांति जिसके कारन आज भारत दुनिया में एक ताकत है उसके जनक की शहादत पर राजनीती करने वाले हिटलर क्या अपनी जमात के पुराने वक्तव्यों पर आत्मग्लानी अनुभव करेंगे ??? 
आजादी की लड़ाई में हिस्सेदारी तो दूर बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों की मुखबिरी करने का गुनाह करने वाले इस जमात के लोगो को क्या आज शर्मिंदगी महसूस होती है ??? 
दुनिया को रोशनी देने वाले महामानव महत्मा गाँधी की हत्या करने वाले और लगातार उनकी हत्या को उचित ठहराने वाले इस जमात के लोग क्या उस हत्या पर शर्मिंदा है ?? क्या उन्होंने बापू की हत्या को जायज ठहराने वाली किताबे बेचना बंद कर दिया है ?? 
सरदार पटेल ने इन पर प्रतिबन्ध भी लगया था और इन्हें जेल भी भेजा था और इन लोगो ने उन्हें बहुत गलिय दिया था ?? आखिर आज किस साजिश के तहत उनके नाम का इस्तेमाल कर रहे है ??? 
सावरकर की दो रास्त्र वाली नीति पर इनका अब क्या विचार है ?? 
हेगडेवार की किताब जिसमे उन्होंने हिटलर को महान बताया है और उसकी विचारधारा को भारत के लिए आदर्श बतया था और उसी को आदर्श मान कर संघ की नीव राखी थी ,, उस पर आब क्या विचार है ??? 
देश की नयी विदेश नीति क्या होगी ?? 
देश की नयी रक्षा नीति क्या होगी ?? 
क्या सेना का राजनीतिककरण करने और तमाशाही लादने का इरादा है ????
देश के किसानो के प्रति नीति क्या होगी ?? 
दश के मजदूरों के प्रति नीति क्या होगी ?? 
देश की नयी शिक्षा नीति क्या होगी ?? 
देश की स्वस्थ्य नीति क्या होगी ? 
देश की रोजगार नीति क्या होगी ?? 
देश का संविधान यही रहेगा या बदल दिया जायेगा ?? 
देश की न्याय प्रणाली स्वतंत्र रहेगी या सत्ता की कठपुतली बन जाएगी ?? 
देश की प्रेस मीडिया स्वतंत्र रहेगी या संघ के द्वारा सम्पादित होगी हिटलर की तरह ?? 
बुद्धिजीवियों ,लेखको ,कवियों ,को इनका चरण और भाट बा जाना होगा या स्वतंत्रता होगी या मार दिया जायेंगे ?? 
देश की शिक्षा का पाठ्यक्रम क्या होगा सरस्वती शिशु मंदिर वाला ?? ?????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????/
बहुत से सवाल है जिनका देश जवाब चाहता है पर ये जवाब देने के बजाय केवल सवाल उछालते है ||
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जिस उत्तर प्रदेश और बिहार ने आजादी की लड़ाई का भी नेतृत्व किया और बाद में भी उसका मजाख उड़ने ,उसे कमजोर दिखने और उसके बच्चो को मजदूर बताने ,उसकी माताओं को बुजदिल बता कर क्या सिद्ध करना चाहते है ??? 
क्रांति उत्तर प्रदेश और बिहार करता है ,, परिवर्तन उत्तर प्रदेश और बिहार करता है और सरे घोटाले ,,, साडी काले कारनामे ,, सारा अपवित्र व्यापार गुजरात करता है -----
सीमा पर जान उत्तर प्रदेश का जवान देता है और कफ़न चोरी गुजरती करता है  ----
साहित्य उत्तर प्रदेश और बिहार रचता है और अपराध साहित्य ,घोटाला साहत्य गुजरात रचता है --- 
-----------उत्तर प्रदेश बाँझ नहीं हुआ है --- देश की और उत्तर प्रदेश की बीजेपी बाँझ और दिवालिया हुयी है ------
अपने दिवालियेपन को देश पर और खासकर उत्तर प्रदेश पर लादने की साजिश न करे _____
उत्तर प्रदेश महान है और देश को यही रास्ता भी दिखायेगा और नेतृत्व भी करेगा -------
देश चलाना मिलावट ,कालाबाजारी ,मुनाफाखोरी नहीं है बल्कि संकल्पशक्ति का काम है और गुजरती ---
---------और हिटलर जी अगर देश में ६६ साल में कुछ नहीं हुआ --- तो खुद तुम्हारे अनुसार एक चाय बेचने वाला इतना बड़ा पद कैसे पा गया ---- ये जो करोड़ो रुपये तुम खर्च कर रहे हो अपने प्रचार पर ये तुम्हे तुम्हारे घर की खुदाई में मिला है क्या ??? जिस जहाज और हेलिकोप्टर का इस्तेमाल कर रहे हो ये संघ को अंग्रेज दान दे गए थे क्या ?? आज दुनिया प्रमुख ७ देशो में हमें गिनती है ,,क्या वे शाखाये जो ख़त्म हो चुकी है वहा के बड़े नेकर वाले कारनामे देख कर कर रही है क्या ?? 
हिटलर इतने सवाल और आरोप है की ------- बस अब अगली किश्त में ---
तुम उत्तर प्रदेश को गली देने की हिम्मत करो और फिर मजा देखते जाओ |
तुम जैसे लोगो के कर्मो से महत्मा गाँधी और सरदार पटेल की धरती अपवित्र हो गयी है ??? 
तुम्हारी जमात ने पहले बापू के शरीर की हत्या किया और फिर तुमने उनकी आत्मा को मारा ||| 
महान उत्तर प्रदेश तुम्हे बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है ;;; दुबारा आओ तो उत्तर प्रदेश को गाली मत देना -------------
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#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच

मुलायम सिंह यादव फिर अध्यक्ष हो

#मुलायम_सिंह_यादव जी उम्र के आख़िरी पड़ाव पर है और ज़्यादातर बीमार हो जाते है ऐसे में मेरा #अखिलेश_यादव जी को सुझाव है की उनको अध्यक्ष पद से हटा कर बडा अपमान किया गया था पर तब जो वादा किया था उसी चुनाव के बाद उनको अध्यक्ष पद लौटाने का कम से कम अब तो नेता जी का सम्मान लौटा अध्यक्ष बना दे और ख़ुद मुख्य महासचिव हो जाए ।पार्टी तो उनकी ही है और रहेगी और मुलायम सिंह यादव जी तब से जिस अपमान के सदमे मे जी रहे है क्योकी उनके चित्रो को जूते से रौदा था जवानी कुरबान ने ,उससे निकल कर अपनी अंतिम यात्रा सुकून से कर पायेंगे और अखिलेश जी को आशीर्वाद देकर जायेंगे ।
और विरोधी जो नारा लगाते है कि "जो न हुआ अपने बाप का वो क्या होगा आप का " ये नारा भी बेकार हो जायेगा ।
मैने वो दर्द अभी पिछ्ली मुलाकात मे भी महसूस किया ।ये अलग बात है की इस पोस्ट के बाद मेरी मुलाकात पर भी पाबंदी लगा दिया जाये ।
अगर ऐसा किया तो इस चुनाव में अखिलेश जी को बड़ा फ़ायदा होगा ।
मानना न मानना अब अखिलेश जी की मर्जी ।

रविवार, 24 अक्तूबर 2021

साड़ी शाल जिन्दाबाद पाकिस्तान मुर्दाबाद

आज लखनऊ को सड़कें खाली है 
एक तो करवा चौथ जिसे भारत की फिल्मो ने बहुत लोकप्रिय भी किया है और ग्लैमराइस भी किया है 
पर 
उससे भी ज्यादा आरएसएस और भाजपा के प्रेमी पाकिस्तान से कोई मैच है,अरे वही पाकिस्तान जो आतंकवादी भेजता है और कभी कभी सत्ता उसके साथ नही खेलने और न व्यापार करने का एलान करती है पर अडानी और अंबानी तथा सारे कृपापात्रो का व्यापार चालू रहता है। हा ये टुक टुक मैच भी कैसे नही होता जब शाह साहब के बेटे ही क्रिकेट के सर्वेसर्वा है 
सुना है कि सुरक्षा सलाहकार के बेटे का भी काफी वापरिक याराना है वहा 
दुश्मनी तो चीन से भी भारी वाली है क्योकी रोज घुसा जा रहा है भारत मे वैसे सच तो मोदीजी को ही मानिये जिन्होने एलान किया है की ना कोई आया और न घुसा ,ये अलग बात है कि उन्ही के सांसदो ने अरुणाचल से लेकर लदाख तक की सच्चाई बयान कर दिया और बात दर बार की खबरे भी सब आसमान पर लिख दे रही है ।
पर अपन को क्या ? अपना न व्यापार से सम्बंध है और न किरिकिट ही से ।
हम तो दीवाली मे चीन की झालर नही खरीदेंगे और कागज पर पाकिस्तान लिख कर पर लाल आंख से उसे ड़राएंगे ,फिर डांटेगे और उसके बाद उसे फाड कर जूते से कुचल देंगे और सिद्ध कर देंगे खुद को सच्चा राष्ट्रवादी और कम होगा तो कुछ गालियाँ भी ।
बोलो साड़ी और शाल के आदान प्रदान की जय ।
#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच

सोमवार, 11 अक्तूबर 2021

ये रस्सियाँ

ये रस्सियाँ ----

आज तक समझ मे नही आया 
कि 
क्यो औरतों को 
रस्सियो से बांध दिया जाता है 
उनके गर्दन मे रस्सी
उनकी कमर मे रस्सी 
उनके हाथ मे रस्सी 
और
उनके पांव मे रस्सी 
जो 
उनकी खूबसुरती को 
बदसूरत बना देती है 
वैसे तो 
कुछ कमजोर पुरुष भी
रस्सियो मे बंध जाते है
अपनी अज्ञानता से 
या फर्जी आस्था से 
पर 
क्या बनाया या बिगाडा
किसी का इन रस्सियो ने
सिवाय गुलाम बनाने के
पहले जानवर गुलाम बने और 
रस्सियो मे बंध गये 
और 
अब कुछ इन्सान भी
कब मुक्ति मिलेगी 
इन इन्सानो को 
इन रस्सियो से 
ये सवाल आज मेरा है 
पर कल सबका होगा 
जानवर भी 
कहा बधना चाहते है रस्सियो मे 
और कोशिश करते रहते है 
तोड देने की 
पर इन्सान ने तो
इन रस्सियो को 
खुशी से कबूल किया है 
तो 
इन्हे कब और कौन तोड़ेगा ? 
इन्सान स्वाभाविक
नैसर्गिक सुन्दरता के
साथ कब जिएगा ?

शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2021

उ प्र मे कांग्रेस की डगर आसान नही

#उत्तरप्रदेश_में_कांग्रेस_की_डगर_आसान_नही ।

प्रियंका गांधी रुपी तुरूप का इक्का फेंक दिया कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में , पर राह कुछ आसान नही लग रही है । जब जब प्रियंका गांधी किसी मुहिम पर निकली है उन्होने देश प्रदेश के मीडिया और जनता का ध्यान आकर्षित किया है पर अचानक उछाल लेकर फिर काफी दिनो के लिये दृश्य से बाहर हो जाना सारे किये कराये पर पानी फेर देता है ।ये कमजोरी राहुल जी को भी बार बार पीछे धकेल देती है और भारत की राजनीति मे गैर गम्भीर बना देती है । 
भारत की राजनीति और खासकर उत्तर भारत की राजनीति का चारित्र पूर्णकालिक है ।यहा की जनता तथा कार्यकर्ता नेता से हर वक्त अपने बीच मे होने और हर सुख दुख मे साझीदार होने की उम्मीद रखते है ।अखिलेश यादव भी मुख्य लडाई मे होने के बावजूद पिछले साढे चार साल की अनुपलब्धता के कारण ही लडाई मे उतने मजबूत नही दिख रहे है जबकी उनके पास उनका अधिकांश जातीय वोट मौजूद है जबकी कांग्रेस के पास कोई जातीय वोट बैंक स्पष्ट रूप से एकतरफा दिखलाई नही पड़ रहा है  और मायावती की लगातार चुप्पी और अदृश्य होने के कारण अभी भी कही नज़र नही आ रही है  ।पिछले कई चुनाओ से कांग्रेस 6 से 8 प्रतिशत वोटो के साथ आखिरी पायदान पर सघर्श कर रही है ।
प्रियंका गांधी ने जब उत्तर प्रदेश का जिम्मा लिया उसी वक्त कहा गया की अब वो लखनऊ मे ही रहेंगी और पूरा समय देंगी परंतु पता नही क्यो वो हो नही सका । सोनभद्र की घटना मे जनता का ध्यान आकर्षित किया फिर सन्नाटा रहा ।फिर हाथरस मे गरमी आई तो कभी नाव यात्रा पर हर बार उसके बाद लम्बा सन्नाटा रहा जबकी उस समय तक अन्य विरोधी दल मुखर नही हुये थे ।
उसी समय से यदि प्रियंका गांधी ने दिल्ली को त्याग दिया होता और इस सच्चाई को स्वीकार कर कि जाती भारत की राजनीति की बड़ी सच्चाई है कुछ जातिगत क्षत्रपो को जोड़ लिया होता जिससे वो सवाल खत्म हो जाता की कांग्रेस के पास कौन सा वोट है और उन सभी के साथ सामुहिक रूप से प्रदेश की नाप दिया होता तो आज ये सवाल ही खत्म हो गया होता की अगली सरकार किसकी ।प्रियंका जी ने यदि खुद को मुख्यमंत्री और कुछ अन्य नेताओ को उप मुख्यमंत्री घोसित कर मुहिम चलाया होता तो आज कांग्रेस भाजपा के खिलाफ विकल्प बन गयी होती ।अब हर जाती मे सत्ता मे भागीदारी को लेकर जागरुकता है और वो दिये बिना कोई भी सत्ता नही पा सकता है ।वो समय दूसरा था जब इन्दिरा गांधी या चौ चरण सिंह के नाम से जाती की दीवारे तोड कर वोट पडता था ।
लखीमपुर खीरी की घटना पर एक बार फिर प्रियंका गांधी ने लीड लिया है लेकिंन केवल तेवर और सांकेतिक लड़ाईयो से सत्ता की पायदान तो नही चढा जा सकता है ।यद्दपि अब देर हो चुकी है फिर भी नये सिरे से कोशिश की जा सकती है लचीला होकर , उप्लब्ध होकर और आगे बढ़ कर लीड कर के उत्तर प्रदेश में ब्लॉक ब्लॉक तक पहुच कर तथा वोट बैंक के लिये लोगो को जोड़कर ।पर अभी भी देखना होगा की गिरफ्तारी से छूटने के बाद उनका रुख क्या होता है ।
अगर रवैय्या पुराना ही रहेगा तो इस बात से भी इंकार किया जा सकता है कि ज्यो ज्यो लडाई भाजपा और सपा की आमने सामने होती जाएगी कांग्रेस बंगाल की गति को प्राप्त होती जाएगी । पर इसके लिये अगले एक महीने की घटनाओ पर निगाह रखना होगा ।

शनिवार, 18 सितंबर 2021

उत्तर प्रदेश की जाट राजनीति का पतन

उत्तर प्रदेश की जाट राजनीति को विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पलीता लगाया था 1994 मे ।वैसे तो अजीत सिंह जी की अस्थिरता और राजनीति के प्रति कुछ चीजो का अभाव भी जिम्मेदार रहा ।
1989 मे जो चुनाव हुये थे उसमे शुरू दे स्पष्ट था कि विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री पद के और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री पद के अघोसित प्रत्याशी है ।
पर चुनाव के बाद पुरानी अदावत के कारण विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अजीत सिंह को चढा दिया और मुख्यमंत्री का दावेदार बना दिया जबकी टिकेट के बटवारे मे ही मुलायम सिंह के लोग अधिक थे ।
अजित सिंह जी लखनऊ आ गये । 
उस चुनाव मे मैं मुलायम सिंह यादव का चुनाव देख रहा था क्योकी जब जनता दल के संसदीय बोर्ड मे खेरागढ से मेरे नाम पर ज्यादा सहमती बनी तो उन्होने कह दिया था की इस चुनाव मे सी पी राय मेरा चुनाव देखे क्योकी मैं तो देश और प्रदेश के दौरे पर रहूंगा और जब मैं मुख्यमंत्री बन जाऊंगा तो एम एल ए क्या होता है सी पी राय उससे बहुत बड़े होगे । बैठक खत्म होने पर सबसे पहले जोर्ज फर्नांडीज निकले तो मुझे सामने देखते ही बोले "राय आप मुलायम सिंह यादव का चुनाव देखो वो बैठक मे बोला कि मैं मुख्यमंत्री हो जाऊंगा तो सी पी राय एंम एल ए से बड़े होंगे ।हो सकता है वो आप को राज्य सभा मे रखे या एम एल सी बना कर मंत्री बना दे । बाद मे यही बात चौ देवीलाल ,चंद्रशेखर जी ,विश्वनाथ प्रताप सिंह इत्यादि सभी ने मुझसे कहा पर जो हुआ वो दुनिया को पता है पर ये कम लोग जानते है कि उस चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बन कर मुलायम सिंह यादव जी मुझे मिले ही नही और जब सरकार गिर गयी तब मिले और मुझे संगठन मे जुट जाने के लिये बोल कर प्रदेश का महामंत्री बनाया ।
खैर उस समय प्रेक्षक बन कर मधू दंदवते ,जोर्ज फर्नांडीज और चिमन भाई पटेल लखनऊ आये थे । मधू जी और जोर्ज ने कोशिश किया की आम सहमती से मुख्यमंत्री चुन जाये और प्रारम्भ मे ही दरार न पड़े । तब मधू दंड्वते के साथ मुलायम सिंह यादव मिलने स्टेट गेस्ट हाउस गये और अजीत सिंह से उन्होने कहा की आप मेरे नेता हो क्योकी चौ साहब के बेटे हो ।आप दिल्ली मे रहो और वहा की राजनीति सम्हालो और मुझे प्रदेश मे रहने दो ।एक बार लगा की सहमती बन जाएगी ।अजीत सिंह ने थोडा समय मांगा और वही चूक हो गयी । साथ के लोग जिनका नाम नही लिख रहा हूँ ने अजीत सिंह से कहा की राजा साथ है और ज्यादा विधायक हमारे पक्ष मे है ।इन लोगो को पता ही नही था की बसो मे भर कर विधायक कही और भेज दिये गये थे पिकनिक मनाने जो विधायको की बैठक के एक दिन पहले वाली शाम को सीधे मुलायम सिंह यादव के घर पर आये जहा वो अकेले रहते थे और ऊपर ही खाने का इन्तजाम था तथा उस दौरान उदय प्रताप जी और मेरी कविताए होती रही ।
अजीत सिंह जी चुनाव के लिये अड़ गये और मजबूरी मे चुनाव हुआ ।
इससे पहले चुनाव के पहले वाली शाम को हम लोग मुलायम सिंह यादव के घर मे ऊपर बैठे थे तभी नीचे से जगजीवन का फोन आया कि विश्वनाथ प्रताप सिंह के दो विधायक मिलने आये है । उन्हे ऊपर बुला लिया गया वो थे सच्चिदानंद वाजपेयी जो सरकार मे उच्च शिक्षा मंत्री बने और मुहमद असलम जो वन और पर्यावरण मंत्री बने । दोनो ने बताया की राजा साहब ने अपने ग्रुप के विधायको को आप का साथ देने का आदेश दिया है ।
राजा ने खेल कर दिया था आमने सामने कर के ।
चुनाव हुआ ,मुलायम सिंह यादव को कही बहुत ज्यादा वोट पड़ा तो मंच पर मधू दंदवते जी ने अजित सिंह जी से गिनती के बाद पूछा की वोट डिक्लेयर करे या रहने दे तो अजीत सिंह जी खिन्न होकर चले गये ।
आगे की कहानी सबको पता है और उसके पहले की भी ।
यदि उस दिन अजीत सिंह जी दिल्ली मे मुलायम सिंह का नेता बनना स्वीकार कर उन्हे मुख्यमंत्री बना गये होते तो शायद पुराने लोक दल का आधार बना रहता और इस फार्मूले पर राजनीति की लम्बी पारी चली होती ।
मैं जब सपा से निकाल दिया गया था और लाख कोशिश के बाद भी मुलायम सिंह यादव वापस लेने को तैयार नही थे तो डेढ साल इन्तजार के बाद जितेन्द्र प्रसाद जी तब प्रधानमंत्री के राजनैतिक सचिव थे के बुलावे पर कांग्रेस मे शामिल हो गया था और अजित सिह जी भी कांग्रेस मे आ गये थे तो एक बार अजीत सिंह जी के साथ मुझे पूरे दिन हेलिकोप्टर मे साथ रह कर सभाए करने का मौका मिला । उसी मे मैने उनसे कहा की कांग्रेस के पास जनाधार वाले नेता नही है ,आप यदि इसमे बने रहेंगे तो बहुत बड़े और प्रभावशाली नेता तो होंगे ही उत्तर प्रदेश में आप के बिना कुछ नही होगा और आप के कारण बहुत से पुराने लोक दली तथा।समाज वादी आप के कारन इसमे मिल जायेगे और आप मजबूत ताकत बन जायेंगे ।
पर वो नही हुआ ।आगे का सब जानते ही है ।

दुशांबे का मोदीजी का भाषण

#मोदीजी_का_भाषण

मेरे घर मे डिश कनेक्शन नही है अत: मैं #मोदीजी का कल का शंघाई सहयोग संगठन का भाषण नही सुन पाया था या क्या चुपाऊ ,काफी दिनो से उनका भाषण सुनना ही बंद कर दिया है ,उनके भाषण पर सच झूठ या अज्ञानता के विवाद सोशल मीडिया से पता चल ही जाते है ।
खैर आज उनका भाषण अखबार मे देखने को मिला जिसमे उन्होने (1)  कट्टरता को शान्ती और सुरक्षा के लिये खतरा बताया है और (2) अफगानिस्तान के संदर्भ मे समावेशी शासन की बात किया है तथा अल्पसंख्यको और महिलाओ को लेकर चिंता व्यक्त किया है ।
निश्चित ही अगर ये आरएसएस और भाजपा के चिन्तन सोच और व्यव्हार तथा उदेश्य मे परिवर्तन का द्योतक है तो स्वागत योग्य है और अगर "पर उपदेश कुशल बहुतेरे "है तो फिर जाने ही देते है क्योकी हजारो भाषणो मे एक भाषण और जुड़ गया जैसा है ।
संघ प्रमुख हो या मोदी कई बार सार्वजनिक मंचो पर और खासकर मोदी अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर ऐसे भाषण देते ही रहते है जो पदीय मजबूरी होती है अथवा अन्तर्राष्ट्रिय बिरादरी मे उठने बैठने की मजबूरी होती है जो  उनके मूल विचार का बिल्कुल उलट होता है ।
काश ये दोनो लोग अपने 120 से ज्यादा संगठनो को सामने बैठा कर दिल से यही भाषण दे पाते तो भारत का भला हो जाता ।
अन्यथा चूंकि अब दुनिया एक गाँव बन चुकी है तो सब को सब पता है और निश्चित ही बाकी राष्ट्राध्य्क्ष मंद मंद मुस्कराये होंगे इस भाषण पर ।
पर हम भारत के लोग भारत के हितो के लिये और हितो की सीमा तक तो आंख बंद कर अपने प्रधानमंत्री के साथ है ।
जी बजाओ ताली -भाषण बहुत ही जानदार था और खास बात ये है की पाकिस्तान और इमरान की फ़ूक सरक गयी इस भाषण से ।
वैसे हर घर मे आइना तो जरूर होता है ।

शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

ईश्वर क्या ? और कहा रहता है ईश्वर ? माँ कौन ?

मेरे कृष्ण पर लिखे लेख पर किसी ने लिखा कि:इसके लिए तो अयोध्या की तरह मथुरा भी आज़ाद करवाना होगा :  
कितना अज्ञानी हो गया है समाज का एक वर्ग ? वो ईंट गारे में ईश्वर ढूँढ रहा है ,जो कण कण में है उसे कुछ फुट ज़मीन के दायरे में कैद कर देना चाहता है । 

ख़ैर मैंने ये जवाब दिया - 

“अपने मन में धारण करिए ।जैसे ईंट गारे की इमारत घर नही होती बल्कि उसमें रहने वालो और उनके आचरण तथा प्रेम से घर बनता है 
वैसे ही मन के विचार ,इंसान से प्रेम और सदकर्म ही ईश्वर है
और वो ईंट गारे में नही बल्कि हर इंसान के हृदय और कर्म में होना चाहिए 
वरना तो आशाराम और राम रहीम कि बाढ़ है 
ईश्वर तब गढ़े गए जब क़ानून और संविधान नही था , अब है ।
राजनीति तो कभी जाती को इस्तेमाल करती है और कभी धर्म को
और मंथराए तथा कैकेयी कर्म और गुण से नही बल्कि छल से सत्ताये हासिल करने को हर युग में तत्पर है 
चाहे राम और सीता की कितना भी कष्ट देनापड़े और उनका मार्ग कितना भी कठिन हो , उनके पाँवों में कितना भी छाले पड़े 
पर 
सत्ता चाहिए कैसे भी ।
अज्ञानी अयोग्य और असफल सत्ता । समाज तथा देश को बर्बाद करती हुयी सत्ता । “
अब याद आ रहा है - 
कांकर पाथर ज़ोर के मस्जिद लई बनाया 
ता चढ़ी मुल्ला बाँग दे बहरा हुआ खुदाय ?
माला फेरत जाग मुआ गया न मन का फ़ी 
कर का मनका डारि दे मन का मनका फेर ।
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिहा कोय 
जो दिल देखा आपना मुझ से बुरा न कोय । 
पाहन पूजे हरी मिले , तो मैं पूजूँ पहार 
या तो ये चाकी भली पीस खाय संसार । 
बाक़ी मानने वाले तो पहाड़ की बर्फ़ गलने से बह रहे पानी (#नदी ) को एक नाम देकर माँ मानते है , एक #जानवर को माँ कहते है , मिट्ठी पत्थर से बनी #ज़मीन को माँ कहते है 
पर असल माँ को ? 
और ऐसा मानने बाले देश में २ करोड़ से ज़्यादा माताएँ बहने बेटियाँ वेश्यवृत्ति करती है 
काश उनको माँ मान कर ऐसे ही लड़ते !

मंगलवार, 10 अगस्त 2021

एंटी_क्लॉक_वाइस_घूमती_राजनीति_की_सुइया "#और_विश्वास_का_संकट"

#एंटी_क्लॉक_वाइस_घूमती_राजनीति_की_सुइया "
#और_विश्वास_का_संकट"

मैने कुछ साल पहले लिखा था की आने वाले वक्त मे राजनीती की सूइया एंटी क्लॉक वाइस घूमेगी ।
कांग्रेस पार्टी आज़ादी के लिए बनी वो काम किया कुर्बानी भी दिया आज़ादी की लडाई से बाद तक और शुन्य पर खड़े देश को दुनिया के मुकाबले खड़ा भी कर दिया पर आपात्काल की लफंगा ब्रिगेड की भर्ती ने इसका लगातार क्षरण किया और ये समय समय पर अपने सिद्धांतो से विचलन और हरम की सजिशो के कारण  विघटन का शिकार होती रही ।गांधीवाद की बुनियाद और नेहरु के तथा इन्दिरा गांधी के प्रगतीशील सोच से बढती हुई पार्टी कभी शहबानो तो कभी अयोध्या मे ताला खुलने और नरसिंहा राव के समय के विध्वस और फिर मनमोहन सिंह के समय मध्य मार्ग को छोड पूरी तरह पूंजीवादी रास्ते पर जाने के कारण पतन की आखिरी पायदान पर जा खड़ी हुई ।इससे बडा क्या दिवालियापन हो सकता है की इतनी पुरानी और इतनी बडी पार्टी अपने लिए एक अध्यक्ष नही चुन पा रही है और सडक पर देश और लोकतंत्र के लिए लड़ने के बजाय दिल्ली के चंद बंगलो की आपसी लडाई मे उलझी हुई है ।कांग्रेस के पास बहुत अच्छा अवसर है मजबूत वापसी का पर वह आज सुविधा और भ्रम के बीच झूल रही है । उसके लोग निकल जा रहे पर किसी पास फुर्सत नही है अपनो से संवाद करने और तारतम्य बिठाने का क्योकी कोई भी जिम्मेदार नही है ।वो अपनी भी नही समझ पा रही है की इन्दिरा युग कब का बहुत पीछे जा चुका और अब टाक टू माई चपरासी और टाक तो माई पी ए से दल नही चलने वाला । व्यक्ति विशेष के चमत्कार धूमिल हो चुके है और खुद की सीट बचाना मुश्किल हो रहा है ऐसे मे भी और ज्यादा लोगो को और अपनो को जोडने के बजाय अहंकार से टूटने दिया जा रहा है ।
भाजपा आरएसएस की राजनीतिक विंग के रूप मे स्थापित हुई पहले जनसंघ के नाम पर और मूलतह शहरो मे बसे पकिस्तान से आये लोगो और व्यापार के पक्ष मे बात करने के कारण व्यापारियो तक सीमित रही लम्बे समय तक ।इससे पूर्व बंगाल मे मुस्लिंम लीग से साथ सरकार बना चुकी थी। फिर 1960 के दशक मे गाय के नाम पर सधुवो को उकसा कर पहचान बनायी तो 1967 मे डा लोहिया के गैर कांग्रेसवाद के घोड़े पर सवार होकर मुस्लिम मजलिस ,कम्युनिष्ट इत्यादि के साथ सरकार मे शामिल हुई ,फिर आपात्काल के बाद जनता पार्टी मे शामिल हो सभी दलो की पवित्रता का लाभ लिया और उसके बाद जनता दल और कम्युनिष्टो की मिली जुली सरकार समर्थन किया जिसमे कश्मीर का पलायन हुआ और ये कुछ नही बोली ।जब सारे राजनीतिक हथियार फ़ेल हो गए तो सीधे धर्म और राम को एजेंडा बना लिया फिर बात तब बनी जब तमाम छोटे छोटे दलो की जोडा जिसमे खालिस्तान के समर्थक अकाली दल को तो आतंकवादियो को शहीद कहने वाली महबूबा मुफ्ती को भी और बढते गए अपनी पुरनी बाते छोड़ते गए रणनीतिक तौर कर । जहा जो मिला उसी को पार्टी मे शामिल कर लिया और आज करीब 150 सांसद अधिकतर पूर्व कांग्रेसी या अन्य दलो के है । अंग्रेजी मे भाषण होने लगे और हिन्दी सिसकने लगी ।फिर पहले चीन की साम्यवादी पार्टी से सीखा और फिर इस्राइल से और जिन्न का कोई चिराग हाथ लग गया और विजय आसमान तक पहुचने लगी ,दीनदयाल उपाध्याय का अन्त्योदय दहाड़ मार कर रोने लगा और जाकर अम्बानी अडानी के महलो मे उसे शरण मिली ।सिद्धांत और कर्म के बजाय विश्वास धर्म ,राम और अफवाहो पर ही सीमित हो गया । 
साम्यवादीयो का जिक्र ही नही कर रहा हूँ क्योकी न मैं इनकी भाषा समझ पाया न उद्देश्य ही आजतक और शायद देश की जनता भी ।
समाजवादी पार्टी की  स्थापना 10 % बनाम 90 % की लडाई और गांधी लोहिया जयप्रकाश को लेकर हुई थी खासकर लोहिया के समाजिक न्याय ,सप्त क्रांति और चौखम्भा राज को लेकर ,जे पी की सम्पूर्ण क्रांति और गांधी के प्रीती पराई जानो और समाजिक समरसता को लेकर ,पर समय के साथ समाजिक न्याय पारिवारिक और जातिगत न्याय तक सीमित हो गया और शक्ति के केन्द्रीयकरण ने चौखम्भा राज को गहरे दफना दिया , कौन गांधी और कौन जयप्रकाश ।ऐसी सभी पार्टियाँ जो कभी लोकदल , जनता पार्टी ,जनता दल के नाम पर बने और बिखरे सब एक जैसे ही साबित होते रहे और अपने नेताओ के सीमित उद्देश्य को पूरा कर अविश्वसनीयता तथा असफलता का शिकार होते रहे आरोपो के बोझ से दबे हुये ।
बसपा की स्थापना काशिराम ने बहुत मेहनत से किया था और सोई हुई कमजोर जातियो को जगाया भी और जोडा भी ।
पर वो भी अन्ततः सिर्फ कैसे भी कुर्सी और महल मुकुट ,नोटो की माला तक सिमट गई ।
दोनो ही पार्टिया जिनको गाली देती थी उन्ही की गोद मे बैठ गई ।दोनो ही पार्टियो ने विचार और वैचारिक आधार रखने वालो की कमजोर किया या नेपथ्य ने डाल दिया ।
दोनो ही पार्टियो के नेता 10 से 90 की न्याय दिलाते दिलाते खुद 10 मे शामिल हो गए और लगातार इसमे और ऊंची पायदान पर पहुचने की ही जद्दो जहद दिखती रही ।
अवसर तो इन सभी नेताओ को मिला और वो चाहते तो सम्पूर्ण पिछड़े दलित अल्पसंख्यक और सभी गरीबो को इमानदारी से समान भाव से ताकत देते आगे बढाते , मजबूत करते तो आज राजनीती की दशा और दिशा ही कुछ और होती और देश आखिरी पायदान के व्यक्ति के कल्याण की तरफ बढ़ रहा होता और ये सब दल एक सार्थक भूमिका निभा रहे होते पर इन्होने ये नही करने और स्वार्थी होने तथा संकुचित होने का गुनाह किया है जिसका खमियाजा भोग रहे है और भोगते रहेंगे ।जैसे अन्ना ने आन्दोलनो की विश्वसनीयता खत्म कर कई सालो के लिए उसकी सम्भवना ही खत्म कर दिया वैसे ही इन पिछड़ो और दलितो तथा गरीबो की बात करने वालो ने भी अब लम्बे समय के लिए उसे खत्म कर दिया है क्योकी सब चेहरे विश्वसनीयता खो बैठे है ,किसी के पास 20 कोठिया तो किसी के पास बेहिसाब दौलत ने उनको कायर बना दिया है ।
आज दोनो पार्टियाँ परशुराम परशुराम खेल रही है की कौन कितनी बडी मूर्ति बनाएगा ।राजनीतिक और दिमागी दिवालियेपन ने देश के मतदाता को हिला कर रख दिया है ।
एक नेता तो पहले ही घोसित कर चुके है की वो विष्णू का मंदीर बनायेंगे और कृष्ण की विशाल मूर्ति का भी वादा कर चुके है ।
सरदार पटेल की ऊंची मूर्ति सिर्फ गुजरात के चुनाव के लिए चीन से बनवायी गई और उसके लिए आसपास के गाणव उजड़े और आज सरदार पटेल बाढ मे डूबे अपनी सुरक्षा की गुहार लगा रहे है ।
अभी कोरोना ने आइना दिखा दिया की कोई मन्दिर मस्जिद चर्च किसी काम नही आया , हा गुरद्वारे जरूर काम आये पर सेवा के क्योकी उन्होने अंधभक्ति और ढोग नही बल्की सेवा को ही धर्म के रूप मे अपने मानने वालो के मनो मे बैठा दिया है ।
धर्म और उसके प्रतीको पर प्रश्नचिंह लग गया इस आपदा मे और कोई धर्म और देव किसी भक्त के काम नही आया तो हम डाक्टर को पृथ्वी का देव कहने लगे और अस्पताल को आज का देवालय तथा शिक्षा और विज्ञान तथा अनुसंधान की जरूरत सबको महसूस होने लगी सुविचरित रोजगार नीति और विकास नीति के साथ ।
ये अच्छा अवसर था जनता को अन्धविश्वास और पोंगापंथी से बाहर निकालने का और उसमे वैज्ञानिक सोच पैदा करने का ,यह अच्छा अवसर था सरकार के लिए अपनी 1924 /25 की सोच और उद्देश्य से बाहर   निकल कर नये तरीके से सोचने का और विकास की दिशा और पृतिब्द्धता मोड़ने का ,सब जोडने और शिक्षा चिकित्सा विज्ञान कृषी ,गांधी नेहरु के सपनो के भारत की तामीर करने ,गांधी द्वारा बताये ग्राम स्वराज की तरफ बढ़ने और बड़े पूजिपतियो के सरक्षण के बजाय अधिकतम चीजो के लिए कुटीर उद्द्योग की तरफ बढ़ने और गांधी जी की उस सोच की तरफ बढ़ने का की आसपास के अधिकतम गाव अपने उत्पादन पर ही निर्भर हो जाये जरूरत की अधिकतम चीजो के लिए ।पर सरकार अपने मातृ संगठन की सोच से नही निकली और इवेंट जारी रखा तथा आपदा को अवसर मांन जनता को फिर से मन्दिर और मूर्ति मे उलझा दिया ।
तो विपक्ष के पास भी अवसर था मजदूरो के साथ सड़क सड़क को नाप देने का और कोरोना के प्रति जागरूकता पैदा करते हुये गाव से लेकर शहर की बस्तियो तक छा जाने का पर वो घरो मे बैठा ट्वीट ट्वीट ही खेलता रहा चंद लोगो को छोडकर ।विपक्ष मे जो लोग गरीब गुरबा के कल्याण और समाजिक न्याय की बात कर खड़े हुये थे उनके पास अवसर था मजदूरो की बदहाली और असुरक्षा तथा गरीबो के और माध्यम वर्ग के सवाल पर निकल पड़ने का और धार्मिक पाखंड के नाम पर देश के बटवारे के खिलाफ और उसको वोट के लिए इस्तेमाल होने के खिलाफ बहस छेद कर जनता को उससे बाहर निकाल लाने का पर डरा हुआ ,भ्रमित क्योकी उसकी सिद्धांतो के प्रति प्रतिबद्धता ही नही है और अधिकतर आरोपो से भी घिरे है तो स्वयं की चितंनहीनता के कारण वो स्वयं भी उन्ही लोगो के अभियान मे शामिल हो गया और मन्दिर मंदीर खेलने लगा ,जबकी इस अवसर का लाभ उठा उसे देश और समाज तथा सरकार की हर कमजोरी के खिलाफ वैकल्पिक कार्यक्रम पेश कर जनता मे उछाल देना चाहिये था विचार और फैसलाकुन होने के लिए ।
पर अधिकतर राजकुमारवाद का शिकार विपक्ष अवसर को गंवा बैठा ।तो सत्ता ने भी संवादहीनता और अहंकार तथा अपने 5000 साल पहले के चिंतन वाले थिंकटैंक पर अति आत्मविश्वास के कारण देश और समाज को एक अन्धी खोह की तरफ धकेल दिया है जिसका तुरंत कोई निदान दिखलाई नही पड़ रहा है और सबसे बुरा पक्ष यह है की देश विश्वस के संकट मे फंस गया है और बहस उस मुद्दो पर होने के बजाय जो आज की और कल की आवश्यक आवश्यकता है उलझ गया है की आज़ादी कायम रहेगी या नही ? लोकतंत्र रहेगा या नही ? संविधान रहेगा या नही ? 
और जवाब किसी के पास नही है बल्की जवाब मे सिर्फ सन्नाटा है ।
राजनीती की सुइयां एंटी क्लॉक वाइस घूम गई है काफी हद तक ।अब देखना है की कहा जाकर रुकती है और फिर सही दिशा मे चलना शुरू करती है ।

सोमवार, 9 अगस्त 2021

उत्तर प्रदेश में सत्ता बदलेगी या इतिहास बदलेगा ?

आज उत्तर प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा --

उत्तर प्रदेश का आने वाला चुनाव मील का पत्थर साबित होने वाला है ।बंगाल ने लम्बे समय बाद एक चुनौती को स्वीकार भी किया और चुनौती दिया भी और इबारत लिख दिया राजनीति के पन्ने पर की इरादा हो, संकल्प हो और आत्मबल हो तो कितनी भी बड़ी ताकते सामने हो उन्हे परास्त किया जा सकता है ।
अब बारी उत्तर प्रदेश की है तय करने की कि देश की राजनीति की दशा और दिशा क्या होगी । जो विभिन्न कोनो से आवाज उठती है कि लोकतंत्र खत्म हो जायेगा और संविधान संघविधान मे बदल जायेगा तथा एक संगठन को छोड बाकी सब कैद मे जीवन काटेंगे ,क्या सचमुच वैसा कुछ होगा या ये सब एक भ्रम मात्र है ।तय तो ये भी होना है की जो चल रहा है वही चलेगा या बदलाव आयेगा और खुली बयार फिर से बहेगी ।तय होना है की उत्तर प्रदेश सिर्फ ठोको , मुकदमे लगाओ और जेले भरो पर ही चलेगा या रोटी रोजगार और सचमुच के विकास जिसका लोग सपना देखते है उसपर चलेगा ।
तय ये भी होना है कि 1989 से हर चुनाव मे सत्ता परिवर्तन की बयार इस बार भी बहेगी या कांग्रेस युग की वापसी होगी और सत्ता फिर वापस आयेगी ।
इस युद्द के मुख्य रूप से चार योद्धा है जिसमे भाजपा तथा आरएसएस और समाजवादी पार्टी फिलहाल आमने सामने दिखलाई पड़ रहे है । भाजपा के ऊपर जहा सरकार असफलताओ का बोझ है वही अपने ही विधायको नेताओ और कार्यकर्ताओ की नाराजगी का जोखिम भी ,जहा सभी चीजो की महंगाई का विराट प्रश्न सामने मुह बाये खड़ा है तो किसान आन्दोलन की आंच भी जलाने को तत्पर है ,बेरोजगार नौजवान हुंकार भर रहा है तो कुछ को छोडकर कर पूर प्रशासन तंत्र मे एक कसमसाहट है , या यूँ कहे की चुनावी जमीन भाजपा को निगलने को आतुर दिख रही है ।नागपुर से लेकर दिल्ली और लखनऊ तक भगवा खेमे जबर्दस्त बेचैनी दिखलाई पड़ रही है और साम दाम दंड भेद सब कुछ इस्तेमाल कर किला बचाने की जद्दो-जहद भी साफ नज़र आ रही है । हिन्दू मुसलमान मुद्दा बना देने को कमर कसते नज़र आ रहे है भगवा खेमे के योद्धा चाहे उसकी आंच मे प्रदेश बर्बाद क्यो न हो जाये पर चुनाव बड़ी चीज है ।
दूसरी तरफ समाजवादी खेमा लम्बी नीद से उठ कर अपनी अंगडाई लेता हुआ दिख रहा है पर अभी भी जमीनी हकीकत और अपनी कमजोरियो से आंखे मूदे हुये लगता है ।जहा भाजपा सैकड़ो चेहरे और संगठनो के साथ उछल कूद कर रही है वही समाजवादी पार्टी वन मैंन शो के साथ वन मैन आर्मी ही नजर आ रही है । अखिलेश यादव द्वारा मुलायम सिंह यादव को बेइज्जत कर अध्यक्ष पद से हटाने के बाद पार्टी सभी चुनावो मे खेत रही है ।पार्टी का दो मुख्य मजबूत वोट था जिसमे से पिछले विधान सभा चुनाव और लोक सभा चुनाव मे इसमे से यादव लोगो का भाजपा खेमे को काफी समर्थन मिला हिन्दू और मंदिर के नाम पर और अभी भी ये दावा नही किया जा सकता कि 100% यादव वोट पुरानी वाली ताकत तथा जज्बे से सपा के लिये लडेगा और वोट देगा ।दूसरा अडिग वोट मुसलमान का रहा जो 1989 और फिर 1993 से पूरी ताकत के साथ सपा के साथ खड़ा रहा पर इस बार वो विचलित दिखलाई पड़ रहा है और आज़म खान के मामले मे अखिलेश यादव की तब तक की गई बेरुखी जब तक वोवैसी से आज़म से मिलने की इच्छा व्यक्त नही किया और कांग्रेस की तरफ से भी उनके प्रति सहानुभूती नही दर्शाई गई ने भी पूरे मुस्लिम समाज को विचलित कर दिया है साथ मे कभी विष्णू के मंदिर तथा कभी परशुराम के मंदिर की बात कर अखिलेश यादव ने पाया कुछ नही बल्कि भाजपा की नीतियो का पिछलग्गू बनने का काम किया है ।ऐसे मे यदि मुस्लमान को कोई और विकल्प नही मिला तो उसका वोट तो मिल सकता है पर 1991की तरह ही जोश रहित और कम संख्या मे होगा ।पता नही क्यो अखिलेश यादव पर अति जातिवादी होने का ठप्पा भी लग गया है और बडी जातियो के प्रति बेरुखी वाला भाव भी ।ये गलती तो सपा ने प्रारंभ से ही किया कि वो अन्य पिछडी जातियो और अति पिछडी जातियो को ये एहसास नही करा पायी की पार्टी तथा सत्ता उनकी भी है ।मुलायम सिंह के उलट अखिलेश का सुलभ न होना तथा पुराने लोगो के प्रति उपेक्षा भाव और अनुभवी वरिष्ठ लोगो से दूरी भी उनको भारी पड़ती दिख रही है और वो अपना ही राजनीतिक कुनबा ही पूरी तरह समेट नही पा रहे है ।जहा सिर्फ 30या 35 सीट की लडाई मे अपने चाचा शिवपाल यादव और मुलायम सिंह यादव को बाहर का रस्ता दिखा दिया वही कांग्रेस को 125 सीट दे दिया । यद्द्पि भाजपा के सामने आज तक सपा ही है पर अभी तक सपा और उनके सहयोगी 125/130 सीट से ज्यादा पर बढते हुये नज़र नही आ रहे है पर थोडा व्यव्हार और रणनीति बदल कर उछाल लेने से भी इंकार नही किया जा सकता है । कितना ये उनके व्यहार और रणनीति परिवर्तन पर निर्भर है 
तीसरी  पार्टी बसपा है जिसकी नेता मायावती यदि पैसे की भूखी नही होती और धन वैभव तथा अहंकार से दूर रही होती और अपने मिशन के साथियो को दूर नही किया होता तथा काशीराम के रास्ते पर चलती रही होती तो आज देश की सबसे बडी ताकतवर नेता होती या सबसे बड़े 3/4 मे होती ।पर उनकी कमजोरियों और कर्मो ने उनकी लम्बे अर्से से भाजपा की सत्ता के सामने शरणागत कर दिया और लम्बे समय से दिल्ली मे बैठी वो केवल राजनीति की औपचारिकता निभाती हुयी दिख रही है । उनके कर्मो से उनका वोट ठगा हुआ मह्सूस कर रहा है ,फिर भी उनका वोट है ।इस चुनाव मे भी वो पुराने हथकंडो के साथ मिश्रा जी के कन्धे पर चढ़ कर चुनाव को बस जीवित रहने लायक लड़ना चाह्ती है या भाजपा की बैसाखी बन अपनी सुरक्षा और अपने भतीजे की राजनीति मे स्थापना तक के ही इरादे से उतरना चाह्ती है ये वक्त बतायेगा ।  फिर भी मायावती यदि इस चुनाव मे पैसे का लालच छोड कर और क्षेत्रो के सम्मानित लोगो को ढूढ कर टिकेट देती है और अपने खजाने का कुछ अंश लोगो के चुनाव लड़ने पर खर्च करती है तो वो 40 से ज्यादा सीट जीत सकती है और यदि ढर्रा पुराना ही रहता है तो 19 से भी नीचे ही जायेंगी और कितना नीचे इसकी समीक्षा कुछ समय बाद हो सकेगी ।
चौथी पार्टी कांग्रेस है जिसके लिये इस बार सबसे अच्छा अवसर था क्योकी वो 1989 से ही उत्तर प्रदेश सरकार से बाहर है और प्रियंका के रूप मे ये नया चेहरा उनके पास था पर या तो कांग्रेस का नेतृत्व किसी दबाव मे है या फिर मन से हार चुका है और इतना कुण्ठित हो गया है कि नये विचार और कार्यक्रम सोच ही नही पा रहा है । लोगो को जोडने मे कांग्रेस का विश्वास नही नही है बल्कि स्थापित काग्रेसी इस चक्कर मे रह्ते है की जो है उनको भी कैसे निकाला जाये की उनका एकछत्र राज रहे चाहे बंजर जमीन पर ही सही ।खुद राहुल गांधी पूरे परिवार की पूरी ताकत लगाने के बावजूद अपनी पारम्परिक सीट अमेठी हार चुके है और जब सोनिया जी या राहुल जीतते भी है तो अपने जिले की विधान सभा नही जीता पाते पर अभी ये परिवार स्वीकार नही कर पा रहा है की राजनीति कहा जा चुकी और आप करिश्मा करने वाले नही रहे । वैसे भी इधर कांग्रेस सिर्फ उन प्रदेशो मे चुनाव जीती जहा किसी दल से सीधी टक्कर हो और उस प्रदेश मे कांग्रेस का मजबूत नेता हो जिसने अपने प्रदेश मे अपनी साख कायम रखी हो । बंगाल मे शून्य पर आकर और तमिलनाडु केरल तथा असम मे पूरी ताकत और समय लगाकर भी दोनो कूछ हासिल नही कर सके पर अभी भी अपनी कमजोरियो दूर करने और जमीन की हकीकत समझने का कोई इरादा नही दिखता है ।शायद भाजपा और आरएसएस पर ही निगाह रखते तो कुछ तो कमजोरिया दूर कर सकते थे ।इसका क्या जवाब है कि अच्छे खासे पंजाब के नेतृत्व को कमजोर करने की क्या जरूरत थी । सिंधिया छोड सकते है महीनो से पता था पर क्यो नही रोक पाये ,सचिन पाइलट ने 5 साल मेहनत की पर उनकी उपेक्षा क्यो और क्यो कुछ फैसला नही ।मध्य प्रदेश में 28 सीटो का चुनाव था और सत्ता का फैसला होना था पर भाई बहन सहित पूरी पार्टी ने कमल नाथ को अकेला छोड दिया ।इतिहास ही याद कर लेते की 1978 मे सिर्फ एक सीट पर इन्दिरा जी ने कैसे गाव गाव पैदल नापा था और जिस गाव मे जहा जगह मिली रुक गई । सांकेतिक राजनीति का तजुर्बा तो हो चुका भट्टा और परसौल मे । जरा पन्ना पलट कर देख लेना चाहिए कि वो सब कर के कितना वोट मिला दोनो जगह । उत्तर प्रदेश में मे भी कही कांग्रेस इसी तरह चलती रही तो कही बंगाल ही न दोहरा दे और अब भी अपने रंगीन चश्मे उतार दे और राजनीतिक पर्यटन को छोडकर कर डट जाते पूर्णकालिक तौर पर और व्यवहारिक राजनीति कर ले तो शायद कुछ साख बच जाये ।वो सत्ता की तरफ जाने वाला रास्ता और समय तो पीछे छूट गया पर सम्मान बचा सकती है और 2024 के लिये बुनियाद रख सकती है ।
कुल मिलाकर पूरा माहौल भाजपा और योगी विरोधी होने के बावजूद आज की तारीख तक विरोध की अकर्मण्यता,सिद्धांतो से विचलन और धारदार राजनीति का अभाव तथा सुविचारित रणनीति का अभाव भाजपा को फिर मुकुट पहना सकता है ।ऊपर लोगो की जिन आशंकाओ का जिक्र किया गया है उनका जवाब देने और फैसलाकुन युद्द छेड़ने की जिम्मेदारी तो विपक्ष के नेताओ की है ।देखते है की 1989 का सिलसिला जारी रहता है और सत्ता बदलती है या 80 के दशक का कांग्रेस का इतिहास भाजपा दोहरा देती है । यदि विपक्ष रणनीतिक साझेदारी के साथ आरएसएस और भाजपा के धार्मिक और जातीय ट्रैप से बच कर फैसलाकुन लडाई लडने उतर सका तो भाजपा को 100 सीट भी नही मिलेगी और सत्ता परिवर्तन होगा और यदि यही ढर्रा रहा तो भाजपा 160 से 210 तक सीट जीतने मे कामयाब हो जाएगी सारी विपरीत स्थितियो के बावजूद भी । सवालो के जवाबो की प्रतीक्षा जनता को भी है और भविष्य के इतिहास को भी ।
डा सी पी राय 
स्वतंत्र राजनीतिक चिंतक 
और 
वरिष्ठ पत्रकार 


शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

प्रोफेसर साहब

प्रोफेसर साहब --


प्रोफेसर साहब मेडिकल कालेज के नामी गिरामी प्रोफेसर थे । नाम बडा था ज्ञान भी था ही पर ? जाने देते है ।
जब मेनचेस्टर कहे जाने जिले के मेडिकल कालेज मे प्रोफेसर थे तो उनका  लडका भी वही छात्र हो गया था पता नही अपनी मेहनत से या पिता की जुगाड से । बेटे के साथ एक बहुत कुशाग्र छात्र भी पढता था जो तीन साल तक लगातर प्रथम आता रहा । चौथे साल मे प्रोफेसर साहब का माथा ठनका की उनके रहते हुये कोई और छात्र कैसे टॉपर हो सकता है, बस लग गये और चौथे तथा अंतिम साल मे बेटे को टाप करवा ही दिया ।
समय ने करवट लिया और प्रेम के स्मारक वाले शहर के मेडिकल कालेज मे प्रोफेसर साहब हेड बन कर आ गये और जिस अपने छात्र को उन्होने टॉप नही करने दिया था वो भी अध्यापक बन कर उसी कालेज मे आ गया ।थोडे दिन मे प्रोफेसर साहब का दूसरा बेटा इसी कालेज मे दाखिल हो गया । उसकी परीक्षा का अवसर आया तो जिसका नंबर घटा कर पीछे किया था उनसे ही सिफारिश किया अपने दूसरे बेटे को प्रथम स्थान पर पहुचाने की ।
प्रोफेसर साहब ने अपने दोनो बेटो को अमेरिका भेज दिया और खुद लग गये पैसा बटोरने मे । पैसा दांत से पकडते थे प्रोफेसर साहब और शहर मे सबसे ज्यादा फीस वसूलते थे ,कोई रहम नही । कोई बहुत गरीब और जरूरतमंद हो तो गिड़गिड़ा कर मर जाये पर मजाल क्या कि प्रोफेसर साहब का दिल पिघल जाये ।
प्रोफेसर साहब अब बूढे हो चले थे तो सोचा चले कुछ दिन दोनो बेटो के घर अमरीका मे बिताये और मन लग गया तो भारत का घर इत्यादि बेच कर पति पत्नी वही बच्चो के पास रह जायेंगे । बड़े अरमानो और जोश से टिकेट करवा कर अमरीका बड़े बेटे के घर पहुचे । कुछ दिन तो सब ठीक चला पर फिर बेटे से खटपट होने लगी छोटी बड़ी बात पर और बात यहा तक पहुची की बेटा उनके मुह पर ही बोल देता कि क्यो बिला वजह जिन्दा हो ? क्या बक बक करते हो ?  शाम तक मर क्यो नही जाते ।
और एक दिन बेटे ने घर से जाने का फरमान सुना दिया तब छोटे बेटे को फ़ोन किया पर वो लेने ही नही आया और रुखी से बात कर फोन काट दिया । छोटे बेटे से बोले कि टिकेट होने तक अपने घर ले चलो और फिर बस हवाई अड्डे तक छोड देना, पर वो नही आया ।निराश ,उदास,अपमानित  प्रोफेसर साहब भारत अपने घर लौट आये ।

पत्नी गम्भीर बीमार हो गई तो वही काम आया जिसके नंबर कम कर अपने बेटे को टॉप करवाया था । उन्होने पत्नी का ऑप्रेशन किया । कुछ ही दिन मे प्रोफेसर साहब गम्भीर रूप से बीमार हो गये तो उसी डाकटर साहब ने उन्हे अस्पताल मे भर्ती किया और लगातार उनकी देखभाल किया । पर लगता है कि बीमारी से ज्यादा मन की टूटन ने प्रोफेसर साहब को जख्मी कर दिया था अंदर तक और वो एक दिन उदासी चेहरे पर ओढ़े हुये चल बसे ।
सवाल आया कि दो बेटे है उन्हे खबर कर दिया जाये और उनके इन्तजार मे शरीर को संरक्षित कर रख दिया जाये । बेटो को खबर की गई पर दोनो ने ही आने से इंकार कर दिया कि एक मर गये आदमी को बस आग लगाने को वो अमरीका से नही आ सकते । अन्ततः प्रोफेसर साहब के नौकर ने उनका अंतिम संस्कार किया और उस वक्त मुट्ठी भर केवल वो लोग वहाँ मौजूद थे जो उनके कुछ नही लगते थे पर जिनको पढाया था या जो साथ मे शिक्षक थे और जिन्हे ये एहसास था कि नही गये तो लोग क्या कहेंगे ।
प्रोफेसर साहब का दांत से पकडा पैसा अपने भविष्य की बाट जोह रहा है और वो बड़ी सी कोठी प्रोफेसर साहब की पत्नी के अंतिम दिनो का सहयोगी बन वीरानी मे टुकुर टुकुर देखती रहती है और अपने नये मालिक के साथ फिर से गुलजार होने का इन्तजार कर रही है । नौकर ने बेटे का कर्तव्य निभा दिया और संस्कार कर दिया पर वो बेटा तो नही हो पायेगा अधिकार मे और इसिलिए उसने अपनी रोजी रोटी के लिये दूसरा ठिकाना ढूढना शुरू कर दिया है ।
कुछ दिन मे लोग भूल जाना चाहेंगे प्रोफेसर साहब को पर उनके किस्से सबक बन कर काफी दिनो तक फिजा मे तैरते रहेँगे ।
(अभी अभी लिखी एक कहानी । हम सब के आसपास ना जाने कितने प्रोफेसर साहब है और उनके बेटे भी )


बुधवार, 30 जून 2021

बंगाल का सबक

बंगाल की राजनीति और इस चुनाव के सबक -

पहले बंगाल की बात , बंगाल का चुनाव राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के लिये समन्वित रूप से अध्ययन और शोध का बहुत अच्छा विषय है ।इसका जितना सरलीकरण किया जा रहा है दर असल ये उतना ही पेचीदा है ।पहले 2019 का लोक सभा चुनाव जिसमे भाजपा 18 सीट पा गई ।दर असल वो भाजपा नही पायी बल्कि साम्यवादी पार्टियो के लोगो ने जितवा दिया क्योकी उनकी बड़ी दुश्मन ममता बनर्जी थी जिसने उनसे सत्ता और उनका सुख चैन छीना था । साम्यवादी नीचे का नेता और कार्यकर्ता भाजपा मे चला गया की ममता को कमजोर कर ले और राष्ट्रीय पार्टी जिसकी केंद्र मे सत्ता है उसमे रहने का भी लाभ मिलेगा तथा भाजपा यहा  जमीन पर है नही तो हम फिर वापस आ जायेगे  और बिल्कुल ही शुन्य भाजपा उतनी सीट पा गई ।
इस बार 140 से ज्यादा तृणमूल के लोगो को भाजपा ने टिकेट दे दिया और बड़ी संख्या मे उनके साथ वो स्थानीय नेता भी भाजपा मे आ गये जिनसे लडाई के कारण साम्यवादी भाजपा के साथ गये थे तो वो उस खाली जगह को भरने के लिये तृणमूल मे आ गये ।इस चुनाव मे तृणमूल का कुछ वो वोट जो उन नेताओ से जुडा था जो भाजपा मे गये और कुछ ऐसा वोट भी जो उत्तर प्रदेश बिहार और भाजपायी राज्यो की कहानी नही जानते और उनके जुमलो मे और आक्रमक प्रचार के प्रभाव मे आ गये और सोचा की एक बार भाजपा को भी देख ही ले इन वोटो ने भाजपा को ये सीटे जीता दिया ।
जबकी तृणमूल का अपना खुद का मजबूत आधार, अविवाहित बच्चियो और महिलाओ के लिये योजनाये , ममता की लोक प्रियता ,ममता का जुझारु तेवर जिसने मेरी निगाह मे  दिशा उसी दिन तय कर दिया था जिस दिन ममता ने मोदी जी के मंच पर ही उनके कार्यकर्ताओ की हरकत का विरोध कर बोलने से इंकार कर दिया था प्रोटेस्ट मे ,भाजपा का अहंकार और बंगाल को यू पी बिहार समझने की भूल ,साम्यवादी दलो का जीत के लिये आक्रमक न होना और कांग्रेस नेतृत्व का प्रारम्भिक लम्बे समय तक प्रचार से गायब रहने के कारण उसका वोट ममता की ऐतिहासिक जीत का कारण बना और साम्यवादी तथा कांग्रेस दोनो मे मारक नेतृत्व के अभाव ने उन्हे रसातल मे पहुचा दिया । मेरे इस चिंतन पर चिंतन कर बंगाल के चुनाव पर अध्ययन हो सकता है ।
मैं दो बाते मानता हूँ की यदि ये वोट की अदला बदली नही होती और कांग्रेस तथा साम्यवादी पूरी ताकत से प्रारंभ से ही लड़े होते तो भाजपा पुरानी स्थिति मे ही होती , कांग्रेस और साम्यवादीयो की बढत होती पर फिर भी ममता 170 से 180 सीट लाकर सरकार बनाती ।
दूसरा आरएसएस और भाजपा ने इस चुनाव मे अपने सारे शस्त्र प्रयोग कर लिये और बंगाल ने देख लिया ,बहुत सी बाते जिसके प्रचार मे आकर कुछ प्रतिशत ने भाजपा को वोट दिया अब उनकी बातो को कसौटी पर कसेगा इसलिए भाजपा की ये चरम स्थिति है और अब उसके लिये आगे कोई गुंजाइश नही है बशर्ते ममता इनसे सावधान रहे और इनके वत्सप ज्ञान और अफवाहो से बचा कर रखे और अपने नीचे काडर तथा तंत्र को सम्हाल कर रखे ।
समयावादियो को तो 50 के दशक की तरह फिर से शुरू करने की जरूरत है और अपनी पुरानी घिसी पिटी सोच और भारत के बजाय अमरीका और रुस चीन को देख कर कार्यक्रम और भाषण से बचना होगा ।
भाजपा को और आरएसएस को सबक है की पुराने जुमले और हथकंडे जितना चलना था चल चुके अब वो देश और समाज को ही खायेंगे और दुनिया बहुत आगे जा रही है अब 5000 साल पीछे देख कर भविष्य तय करना बंद करना होगा तो अपनी पुरानी सोच देश पर लादने से बाज आना होगा वर्ना ये लोग तो घरो मे घुस जायेंगे सरकार से बाहर होकर पर देश को बहुत भुगतना होगा । कश्मीर पर निर्णय के बाद लोक सभा मे गृह मंत्री का अहंकार पुर्ण बयान हमे कितना भारी पड गया ये कम से कम सत्ता चलाने वाले लोग तो जान ही गये ।मुस्लिम के सवाल पर अरब की राजकुमारी के मुखर होते ही वहा रहने वाले भारतीयो को क्या क्या भुगतना पड़ा और वहा से सिर्फ पेट्रोल नही बल्कि सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा भी आती है ।भारत के वहा के राजदूत से लेकर ऊपर तक लोगो को सफाई देनी पडी थी और भागवत जी को नयी थ्योरी देनी पडी की भारत मे पूरे 130 करोड लोग हिन्दू है जिनकी मान्यताये अलग अलग है ।अपनी खराब विदेश नीति से और सत्ता के मूल संगठन की हरकतो से हमने बहुत कुछ बिगाडा और बहुत कुछ खोया ।अभी हाल मे अचानक पाकिस्तान से प्रेम का व्यव्हार यूँ ही नही है और हमारे उच्च लोगो और उनके उच्च लोगो की लगातार बात हमारे और उनके लोगो की दुबई मे मुलाकात (ऐसा बताया जाता है ) सब यू ही नही है ।वर्ना तो मुसलमान और पकिस्तान ही संघ भाजपा इनकी भक्त मंडली और सुपारी मीडिया का दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया था । अब विश्व राज नीति बदल रही है और अरब देश से लेकर तुर्की तक एक नयी धुरी बन रही है ।चीन से हमारे विवाद है ,लाल आंख का सवाल था ,साम्यवाद से घृणा के कारण सबसे विश्वसनीय दोस्त रुस के साथ अब वो रिश्ता नही रहा ,अमरीका व्यापारी है और कभी भी बहुत विश्वसनीय नही रहा, वर्तमान सत्ता समूह इस्राइल की तरफ झुका हुआ है पर इस्राइल खुद संकट मे है ,सारे पडोसी जो हमारे लिये छोटे भाई थे और हम पर आश्रित थे उनको हमने सामने खड़ा कर लिया ।
ऐसे मे उम्मीद सिर्फ अरब देशो की नयी धुरी से बचती है जो संघ के सोच और हरकतो से तो नही होने वाला है ।
कांग्रेस को तो लगातार सबक मिल रहे है और हर सबक पर चर्चा होती है कि अब बदलेगा सब ,चिंतन और मंथन होता है,वही पुरानी घिसी पिटी सोच के लोगो की चिंतन मंथन कमेटियां बनती है और फिर वो अपने ढर्रे पर ही चलती है  ।


बुधवार, 23 जून 2021

जिन्दगी के झरोखे से

जिंदगी_के_झरोखे_से--


मेनका गांधी की गालिया और नेता जी राज नारायणजी की शिक्षा --


 मेनका गांधी के बारे मे पढा की उन्होने किसी वेटनरी डाक्टर को भद्दी भद्दी गलियाँ दिया ।इस पर मुझे ये संभवतः 1981/82 का किस्सा याद आ गया ।
राज नारायणजी 6 तीन मूर्ती लेन मे रहते थे और सभी समाजवादीयो का दिल्ली जाने पर रहने सोने ही के साथ नहाने और हर वक्त खाने का ठिकाना यही घर होता था । राज नारायणजी के घर डबल बेड और सोफ़ा नही था । वो खुद नीचे जमीन पर ही बैठते थे और सोते थे । उनके कमरे के बाहर के कमरे मे पूरा इस दीवार से उस दीवार तक बिस्तर और चादर बिछा था । यही पर बीच मे बड़ी से प्लास्टिक बिछ जाती थी और वो दस्तरखान बन जाता था जिपर बैठ कर घर मे उस वक्त मौजूद सभी एक साथ खाना खाते थे और रात को सोने का बिस्तर । चूंकि ये घर संसद सदस्य मनीराम बागड़ी के नाम से था जो ज्यादातर हरियाणा मे या कही अपने घर पर रहते थे पर एक कमरा उनका बंद रहता था बेड वाला और सांसद को मिलने वाला फर्नीचर उस हिस्से मे रखा था ।बाहर के बड़े कमरे मे कुछ सोफे भी थी । राज नारायणजी के पास बाहर का छोटा ऑफिस वाला कमरा था , अन्दर का ये मल्टी पर्पस कमरा था ,जिसमे राज नारायणजी रहते थे दर असल वो साइड का बरामदा घेर कर बना हुआ कमरा था और बगल वाले कमरे का बाथरूम इससे जोड़ दिया गया था । बड़े कमरे के पीछे का एक कमरा था जो कर्मचारियो और जिनको बाहर जगह नही मिलती उनके सोने के काम आता ।पीछे एक बडा स्टोर था जिसमे आटा दाल सब्जिया इत्यादि भरी रहती थी कही कही से प्राप्त हुयी और उसके बगल मे रसोई तथा पीछे छोटा सा आंगन कपडे सूखने को ।
अक्सर हाल ये होता था की बाहर बागड़ी जी वाला ड्राइंग रूम भी पूरा भर जाता था ।
कितने भी लोग हो नेता जी की रसोई सबको खिला देती थी ।
बाहर गेट के ठीक सामने का गेराज क्रन्तिकारी और विद्वान युवा लोगो के कमरे मे तब्दील कर दिया गया था और बाहर तो बहुत बाल लांन था जो अच्छे खासे सम्मेलनो और प्रदर्शन की तैयारियो का गवाह बना ।
पर यहा बात मेनका गांधी के किस्से की ।
मैं जब भी राज नारायणजी के घर रहता वो कही मिलने जाते तो अक्सर मुझे भी ले जाते थे चाहे मोहन मिकिन्स के मालिक ब्रिगेडियर कपिल मोहन का घर हो या किसी भी और बड़े नेता का ।
उस दिन मेनका गांधी ने राज नारायणजी को सुबह नाश्ते के लिये बुलाया था । ये वो समय था जब मेनका गांधी इन्दिरा गाँधी जी के घर से बाहर निकल आई थी और राजनीति मे पैर रख चुकी थी जिसको राज नारायणजी जी का हर तरह सहारा प्राप्त था ।मेनका गांधी महारानी बाग मे अपनी मा के घर रह रही थी ।
नेता जी ने रात को ही बता दिया था कि सुबह कही चलना है तैयार हो जाइयेगा ।
सुबह हम दोनो उनकी कार मे रवाना हो गये ।महारानी बाग की एक अच्छी कोठी मे कार रुकी तो तुरंत मेनका गांधी राज नारायणजी की अगवानी करने बाहर आयी ।
हम लोग अंदर गये और एक भव्य ड्राइंग रूम जो अच्छी तरह सज़ा था मे बैठ गये जहा पानी आया । नेता जी ने मेनका गांधी से मेरा परिचय करवाया नाम बता कर बोले की ये हमारे परिवार के है और बहुत क्रांतिकारी युवा नेता है ,आने वाले समय मे मेरा नाम रोशन करेंगे (जो मैं नही कर सका क्योकी उतनी हिम्मत नही जुटा पाया और उतना त्यागी नही हो पाया ) । फिर टेबल पर आने का आग्रह हुआ । ड़ाइनिँग टेबल पर कटे हुये फल , अंकुरित चना इत्यादि , पाराठे दही , लस्सी , कुछ मिठाईयाँ , जलेबी ,ब्रेड जैम इत्यादि बहुत कुछ लगा था और आया जा रहा था । राज नारायणजी पूरे मन से नाश्ता करने लगे ।मैने भी नाश्ते मे इतनी चीजे पहली बार देखा था पर संकोच मे थोडा थोडा सब लिया और खाने लग गया  ।
तभी मेनका गांधी राजनीतिक बाते और कार्य योजना पर बाते करने लगी । वहा तक तो ठीक था पर अचानक एं टी रामाराव और बहुगुणा जी के बारे मे भद्दी कुछ बाते कह कर भद्दी गलिया देने लगी और फिर उनकी भाषा सतही स्तर पर उतर गयी
और वो भी क्रांतिकारी नेता राज नारायणजी के सामने जो मेरे लिये बर्दाश्त करना मुश्किल था क्योकी राज नारायणजी मेरे आदर्श भी थे और पारिवारिक बुजुर्ग भी ।
मेरा गुस्सा बढ रहा था पर नेता जी  ने भांप कर मुझे चुपचाप नाश्ता करने का इशारा किया । मेनका गांधी के घर से वापसी के लिये हम लोग गाडी मे बैठ गये जहा मेनका गांधी और उनकी मा ने विदा किया ।
गाडी मे बैठते ही मैने कहा की आप ने मेनका को डाँटा क्यो नही वो इतनी छोटी और आप के सामने बेलिहाज ऐसी गालिया दे रही थी इतने बड़े लोगो को ।
राज नारायणजी बोले की मेरा ध्यान नाश्ते मे था जिसके लिये उन्होने मुझे बुलाया था और आप का ध्यान उनकी बातो मे ।
जिस काम के लिये कही गये वही करना चाहिए ।
नाश्ता तो बहुत अच्छा था ।
मैने तो कोई गाली नही सुना ।
वाह लोकबंधु राज नारायणजी ( सुभाषचंद्र बोस के बाद और अजादी के बाद आचार्य नरेंद्र द्वारा दिये नाम के अनुसार असली "नेताजी "।
ये मेरे लिये एक शिक्षा थी ।

शनिवार, 12 जून 2021

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#यादो_के_झरोखे_से

जब #मुलायम_सिंह यादव जी और #मैं_दोनो_डर_के_मारे बिला वजह #हंस और #बोल रहे थे -
1991/92 का किस्सा है उत्तर प्रदेश पार्टी की प्रदेश कार्यकारणी की बैठक थी नैनीताल मे । फिल्मकार मुजफ्फर अली जो समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार भी रह चुके है लखनऊ से उनका नैनीताल झील के पास पार्किंग से ऊपर सामने जा रहे रास्ते से चढ़ कर बहुत ही खूबसूरत बंगला है । मुजफ्फर अली ने पूरी कार्यकारिणी को अपने घर रात्रि भोज पर आमंत्रित किया था । 
हम लोग उत्तर प्रदेश भवन से नीचे उतर कर पार्किंग स्थल पर पहुचे और वही सामने ऊपर जा रहे रास्ते पर जाना था । वहा पार्किंग मे लोगो ने ऊपर चढ़ने के लिए घोड़े से चलने को कहा पर सारे लोगो ने घोड़े पर बैठने से मना कर दिया की ज्यादा दूर नही है पैदल ही चलेंगे ,पर मुलायम सिंह जी घोड़े पर बैठ गए और दूसरे घोड़े पर मैं भी । थोडी देर पहले ही बारिश हुई थी और सड़क भीगी हुई भी थी बल्की ऊपर से नीचे की तरफ पानी बह रहा था ।
पहाडी घोड़े पता नही क्यो खाई वाली तरफ के किनारे पर चलते है आज तक नही जान पाया और पूछ भी नही पाया ,अब पता लगाऊंगा ।
खैर हमारे घोड़े भी खाई के बिल्कुल किनारे पर चलने लगे और बाकी लोग पैदल । बिल्कुल किनारे पर चलते घोड़े पर हम दोनो की हालत खराब हो रही थी पर बीच मे उतर भी नही सकते थे ,समझा जा सकता है कारण और कुछ कह भी नही पा रहे थे तो दोनो ध्यान बटाने और डर पर काबू पाने के लिए कुछ बिला वजह बात करने लगे जोर जोर से बोल कर और उसी के साथ जोर से हंसने लगते 
और बाकी पैदल चलने वाले बिना जाने हमारी हालत और बाते यूँ ही हंसी मे साथ दे रहे थे ।
खैर किसी तरह मुजफ्फर अली का घर आ गया और उतरने का मौका मिला तो जान मे जान आई ।
मुलायम सिंह जी ने धीरे से पूछा सी पी राय डर लग रहा था न कि घोडा कही खाई की तरफ पैर फिसल गया तो ।
मैने कहा हा तभी तो हंस रहे थे और उनसे पूछा आप को ? जवाब वही था ।उतरते वक्त रकाबी मे फंस कर मेरे पजामे का नीचे पायचे का हिस्सा फट गया था ।
पर 
उसके बाद आनंद ही आनंद था । बढिया संस्कृतिक कार्यक्रम और बहुत ही दिव्य भोजन ।
और 
वापसी मे घोड़े पर बैठने की गलती हम दोनो ने नही किया कि खाने के बाद टहलना चाहिये ।
हा हा हा हा हा हा हा ।

रविवार, 16 मई 2021

इलाहबाद का संगम

#जिन्दगी_झरोखे_से --जब सुबह जगा कर एडीएम साहब #संगम ले गए थे --

उस दिन सुबह संगम के दृश्य । न जाने कितनी बार आया था #इलाहबाद पर उस दिन सुबह उठ कर उगते हुए सूर्य की किरणों के साथ संगम जाना और वहा दो नदियो या कहे की दो संस्कृतीयो और दो बहनो गंगा और यमुना का मिलन देखना सचमुच बहुत सुखद अनुभूति रही ।
एक दिन पहले कलक्टर साहब से बात हुई थी तो बोले की संगम गए है या नही और नही कहते ही उन्होने फरमान सुना दिया की सुबह तैयार रहियेगा फला एडिएम साहब संगम प्रेमी है वो  आप को ले जायेंगे । मैं सोचने लगा कि कहा मेरे मुह से नही निकल गया , क्या सचमुच इतनी सुबह आ जायेंगे एडीएम साहब , ना आये तो अच्छा । पर वही हुआ सुबह ही करीब 4,45 पर एडीएम साहब ने सर्किट हाऊस जो कलक्टर साहब जो मेरे मित्र थे उन्होने ही बुक करवाया था के मेरे कमरे का दरवाजा खटखटा दिया और फिर उनके साथ गाडी पर संगम जाना ही पडा ( किसी मुसीबत की तरह जो मेरे चेहरे पर साफ दिख रही है फोटो मे , पर वहा पहुच कर थोडी देर बाद एहसास हुआ की सचमुच मैं आज के पहले एक बहुत अच्छे अनुभव और मनोरम दृश्य से वंचित था ) जहा एक शायद सरकारी वोट तैयार थी और ए डी एम साहब के कोई नीचे वाले कोई कर्मचारी पहले से ही पहुच कर तैयारी किये हुये थे ।
खैर --
सूरज उग रहा था और उनकी किरणे गंगा और जमुना के हरे और सफ़ेद पानी को सुनहरा बना रही थी ।क्या मनोहारी दृश्य था और इतनी सुबह की आस्था का सैलाब उमड़ा हुआ था ।ना जाने कितनी नावो में भरे हुए लोग इस ठिठुरती ठण्ड की परवाह किये बिना आये हुए थे की बिलकुल संगम स्थल पर ही आचमन लेंगे या डुबकी लगाएंगे ताकि ,जो भी उनकी मनोकामना या इच्छा हो । बहुत बड़ी संख्या में चिड़ियों को झुण्ड भी चारो तरफ कलरव कर रहा था ।मैं पूछ नहीं पाया की ये चिड़ियाँ  यहाँ स्थायी रूप से मौजूद रहती है या जाड़े में सूदूर बर्फीले इलाके से साइबेरिया इत्यादि से आई हुयी है इस वक्त ।ये जानकारी कोई दे सके तो आभार व्यक्त करूँगा ।
मुझे उस दिन पहली बार पता लगा की संगम के किनारे का किला अकबर ने बनवाया था ।कही नहीं वर्णन आ पाया होगा मेरे अध्ययन में ।अब जानना पड़ेगा की अकबर ने संगम को किला बनवाने को क्यों चुना और हर बात में विवाद ढूँढने वाले लोग  इसमें कोई विवाद नहीं ढूढ़ पाये क्या ।इस पर बाद में अध्ययन करने पर लिखूंगा ।
मेरे दो संस्कृतियो पर बहस छिड़ सकती है क्योकि दोनों  एक ही इलाके में है और मिलन के बाद तो बस गंगा बचती है और विलीन हो जाती है उसमे यमुना , सरस्वती कहां से निकलती है और कब विलीन हो जाती है रहस्य ही बना हुआ है ।
हां तो संस्कृति पर बहस की बात मैंने जान बूझ कर छेड़ा है । यद्यपि यमुना का हरा जल कुछ साफ़ दीखता है यहाँ पता नहीं कैसे जबकि इसके पीछे यमुना पूरी तरह गन्दी दिखती है लेकिन इस हरे रंग के किनारे की संस्कृति कुछ अलग है और उसका खुलकर वर्णन कर दूंगा तो विवाद बढ़ जायेगा । पर इस दो संस्कृति का मेरा आशय और अनुभव भी क्या है कभी लिखूंगा जरूर ताकि मेरी समझ भी साफ़ हो सके । हो सकता मैं जो समझ रहा हूँ उसमे कुछ पेंच हो या मेरे ही मन में किन्ही लोगो या घटनाओ के कारण कुछ खराश हो ।
गंगा का पानी सफ़ेद और कुछ मटमैला दीखता है संगम पर पर गंगा का किनारा पकडे हुए संस्कृति मटमैली नहीं दिखती ।
बताया गया की संगम पर गंगा और यमुना में भी एक युद्ध चलता रहता है । मैं कहूँगा की दो बहनो की आपसी अठखेली होती है या छेड़छाड़ । पर संस्कृति की बड़प्पन की लड़ाई भी हो सकती है ।
कभी गंगा यमुना को पीछे धकेल देती है तो कभी यमुना गंगा को, पर ये पता नहीं चलता की इस लड़ाई में सरस्वती की भूमिका क्या रहती है , तटस्थ एम्पायर या रेफरी की या बस मजा लेते हुए तीसरे व्यक्ति की ।
पर ये सच्चाई तो कबूल करना ही पड़ेगा की अंत में जीत जाती है गंगा और विलीन हो जाता है उसमे सब कुछ , अस्तित्व , संस्कृति , रंग , स्वाद और दोनों नदिया और फिर हथिनी की चाल से गौर्वान्वित चलने लगती है और गंगा भी विलीन हो जाने के लिए अपने से भी बड़े अस्तित्व में ताकि जीवन , मरण और फिर जीवन का चक्र पूरा हो सके ।
फिर समुद्र से भाप बन कर उड़ता है नया जीवन और नई तरह के जीवन बरस पड़ते है उससे जो फिर कही ताल तलैया , तो अलग अलग क्षेत्र में कोई गंगा , कोई यमुना , कोई राप्ती और कोई सरयू जैसा जीवन पाकर चलती रहे ताकि जीवो का जीवन चलता रहे ।
शायद मैं दर्शन से दर्शन की तरफ चला गया ।पर मुझे याद नहीं की इससे पहले उगता हुआ सूरज कब देखा था ।शायद जब कन्याकुमारी गया था नेता जी के साथ ।
इस सब दृश्य के बीच मोटर बोट मंथर गति से नदियो का सीना चीरती हुयी चली जा रही थी और वहां ले जाने वाले साथी वहां के बारे में , ऐतिहासिकता के बारे में और पुण्य के बारे में वर्णन करते जा रहे थे ।उन्होने आज बताया की यदि संगम नहीं आये तो सब तीर्थ बेकार है तो मन में बरबस आ गया की मैं तो कभी किसी मंदिर ही नहीं गया तीर्थ तो बड़ी बात है ,और तब तो यहाँ आकर भी मैं पुण्य का भागी नहीं बन पाया । वैसे ही शीत प्रकृति के कारण डुबकी लगाने का मतलब कुछ दिनों डॉ0 मित्रो की सेवा में रहना हो जाता पर दृश्य सचमुच ऐसा की मैं लिखे बिना नहीं रह सकता था । शायद ऐसे दृश्य ही लोगों को अपनी तरफ खींचते है और यही खिंचाव आस्था बन जाती है । अब तो साधन हो गए पर जब साधन नहीं रहे होंगे तब जो विलीन हो जाते होंगे इन दृश्यों के आगोश में वो स्वर्ग में जाने वाले और ईश्वर के बुलावे वाले वर्ग में शामिल हो जाते होंगे और जो वापस चले जाते होंगे घर वो ईश्वर की और संगम की कृपा से बच जाने वाले वर्ग में शामिल हो जाते होंगे और इसकी विषद व्याख्या अपने अपने जजमानों को सुनाने वालो की भी काफी तादात होती ही है ।
पर पुण्य मिले या न मिले क्योकि अभी तक कोई प्रमाणिक दस्तवेज और अध्ययन नहीं है जो साबित कर सके की पुण्य क्या है और किस किस को मिला तो क्यों और कैसे मिला और संगम में गहरी डुबकी मार कर भी जिन्हें नहीं मिला क्यों नहीं मिला ।
संगम पर ही जिंदगी जीने वाले मछुवारे ,नाव चलाने वाले और रोज नित्यकर्म से लेकर यही नहाने वाले तो पुण्य से मालामाल हो गए होंगे तो उनके जीवन में क्या विशेष है ये अध्ययन का विषय हो सकता है और शायद शोध से कुछ जानकारी मिले । फिर भी करोडो की आस्था का केंद्र है संगम तभी तो इतने कष्ट सह कर करोडो लोग यहाँ कल्पवास करते है और डुबकी लगाते है । आस्थाएं शायद लोगो को अतिरिक्त ताकत देती और भरपूर ऊर्जा भी ।
जी हां पुण्य मिले या न मिले पर उसी संगम के दर्शन कर लिए आज मैंने भी इतनी सुबह जाकर और इस सुबह जाने की मानसिकता और दबाव में पूरी रात नहीं सोकर तो इस कष्ट के लिए कुछ तो मिलेगा ही ।
पर ये सुबह का दृश्य की किसी भी मायने में कन्याकुमारी के सुबह के दृश्य से पीछे नहीं है और इसे सैलानियो को आकर्षित करने के लिए प्रचारित किया जा सकता था । उस दिन मुझे एहसास हुआ की मेरा प्रदेश किस कदर सुस्त ,दिशाहीन और संकल्पहीन है की राजस्थान अपनी रेट की मार्केटिंग कर लेता है ,कश्मीर , शिमला और अन्य अपनी बर्फ और ठंड, तमिलनाडु कन्याकुमारी का सूर्योदय जो ज्यादातर दिखता ही नही बादलो के कारण इसलिए कह रहा हूँ की जब मैं गया था मुलायम सिंह यादव के दौर मे  कन्याकुमारी तब रात भर जगा बैठा रहा बाल्कनी मे की कही सोता न रह जाउँ और सुबह बस हो गई बादलो मे छुपी हुई ,केरल से लेकर महाराष्ट्र तक समुद्र का किनारा ,तो चेरापूंजी अपनी बारिश और हरियाली ,भूटान सिक्किम मेघालय अरुणाचल अपने पहाड़ और दृश्य तो अमरीका तो बस यू ही किसी भी चीज पर मोटा टिकेट लगा कमा रहा है तो क्या चीज नही है उत्तर प्रदेश मे , साथ ही बिहार और मध्यप्रदेश इत्यादि मे भी , बस सैलानियो के लिए सुरक्षा का भाव अपराधियो और शोहदो से और पुलिस की लूट तथा कमाई के लिए परेशान करने वाली प्रवृति से , और अभाव है मार्केटिंग के लिए भाव , समर्पण ,इरादा और व्यव्स्था की ।
ले दे कर एक ताज महल, या बनारस का घाट भी कुछ लोगो को आकर्षित करता है ।
चलिये इस मुद्दे पर विस्तार से फिर कभी ।
बोलो गंगा मैया की जय (क्योकि जय केवल विजेता और शक्तिशाली की ही बोलने की परम्परा है तो मैं भी इस परम्परा को क्यों तोडू )।

संघर्ष के प्रतीक एक राजनीतिक फकीर राज नारायणजी

संघर्ष को समर्पित एक राजनीतिक कबीर की फकीरी जिंदगी का नाम था ; लोकबन्धु राजनारायण 

 

हमें नफरत नहीं थी अंग्रेजो की कौम औ सूरत से ,हमें नफरत थी तो उनके अन्दाजे हुकूमत से 

गर अपनों की हुकूमत अपनी खातिर हो नहीं सकती तो अपनों की भी सूरत से मोहब्बत हो नहीं सकती | 

 

लोकबन्धु राजनारायण के लिए ये चा र पंक्तियां दिशा निर्देशक का काम करती थी | तभी तो जहा देश की स्वतंत्रता के लिए नेता जी कुल चार बार जेल गए वाही आज़ादी के बाद अपनों के शासन में कुल करीब १५ वर्ष जेल में बिताए | जब भी जहा भी उनको जनता का कष्ट दिखलाई पड़ता या आज़ादी के सपनो का खून होता दिखलाई पड़ता वही वो आन्दोलन का शंख बजा देते थे |

आज़ादी की लड़ाई से लेकर आपातकाल उनके संघर्ष की कहनियाँ ही पसरी हुयी है भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में |अगर हर आन्दोलन का तारीखवार वर्णन करूँगा और विस्तार में जाऊँगा तो किताब बन जाएगी इसलिए बस इशारतन ही जिक्र करूँगा यहाँ | वो मजदूरों का आन्दोलन हो उत्तर प्रदेश से लेकर आसनसोल तक जहा उन्होंने नक्सलवादियो का किला तोड़ते हुए समाजवादी संगठन खड़ा कर दिया था मजदूरों का | वो किसानो का आन्दोलन हो अदलपुरा से लेकर अरदाया तक या लखनऊ की धरती पर विशाल प्रदर्शन जिसमे ; किसान जागा पन्त भागा ; के नारे लगे थे ,वह किसान आन्दोलन रहा हो जिसमे राजनारायण जी को बुरी तरह पीट कर बंद कर दिया गया और आचार्य नरेन्द्र देव की मध्यस्थता से समझौता हुआ | १९५३ में गोरखपुर में रेल मजदूरों पर गोली चलने के खिलाफ आन्दोलन हो ,१९५४ में नहर के पानी का रेट बढ़ने पर आन्दोलन हो ,मिर्जापुर में मजदूर आन्दोलन हो ,५५ में गोरखपुर हो या या लखनऊ का छात्र आन्दोलन ,;;और बहुत महत्वपूर्ण १९५६ में जब वो हजारो हरिजनों को लेकर कशी विश्वनाथ मंदिर में घुस गए थे और तब संघियों ने तथा फासिस्ट ताकतों ने न सिर्फ हरिजनो के मदिर प्रवेश का विरोध किया बल्कि राजनारायण जी पर घटक हमला भी कर दिया था | १९५७ के सिबिल नाफ़रमानी आन्दोलन के संचालक बने ,बिक्रीकर के खिलाफ आन्दोलन ,बिहार में सोशलिस्ट पार्टी के आन्दोलन का सञ्चालन ,;;; स्वतंत्र भारत में जगह जगह लगी अंग्रेजो की मूर्ती तोड़ने पर गिरफ्तार हुए और स्वतंत्र भारत की सरकार में इसके लिए १९ महीने की सजा और ४०० रूपये का जुरमाना हुआ वाही से मूर्ती भंजन प्रथा शुरू हुयी तथा सरकार को बाध्य होकर सभी अंग्रेजो की मूर्तियाँ हटानी पड़ी और काशी में किंग एडवर्ड अस्पताल का नाम बदल कर शिवप्रसाद गुप्त अस्पताल हुआ ,१९५८ में खाद्य आन्दोलन ,और सम्पूनानन्द की सरकार में समितियों का बहिष्कार का फैसला ,१९६० में रास्त्रव्यापी आन्दोलन के संचालक बनाये गए ..देश भर में घूम घूम कर आन्दोलन ,लाल बहदुर शास्त्री के निवास पर पर्दर्शन जैसे हजारो आन्दोलन और उसमे सिद्धांत के साथ साथ अपने शरीर को विरोध का इस कदर हथियार बना देना की तमाम बार की पिटाई से पैर टूटे ,सर टूटा ,और जेलों में रहते रहते तमाम बीमारियों ने पकड़ लिया | 

पहले लखनऊ रेलवे स्टेशन पर रिक्शा नहीं जा सकता था तो एक दिन राजनारायण जी वही विरोध पर अड़ गए ,,धीरे धीरे बड़ी संख्या में जनता एकत्र हो गयी तो मजबूर होकर रिक्शा जाने की इजाजत देनी पड़ी | ऐसा ही एक दिन उन्होंने राजभवन पर भी किया और उनका रिक्शा अन्दर गया | 

वो चाहते तो जातिगत आधार पर सुरक्षित स्थान पर चुनाव लड़ कर हमेशा सासद रह सकते थे पर जैसे डॉ लोहिया ने कहा था नेहरु जी के खिलाफ चुनाव लड़ते हुए की मैं जनता हूँ की मैं पहाड़ से टकरा रहा हूँ और उसे गिरा नहीं सकता पर उसमे दरार पैदा कर कमजोर तो कर ही सकता हूँ ,,उन्ही के रस्ते पर चल कर अजेय ताकत बन गयी कांग्रेस और बलशाली नेता इंदिरा गाँधी के खिलाफ वो चुनाव लडे और ये भी इतिहास है की उनको कोर्ट में भी हराया और फिर वोट में भी हराया | उनका संघर्ष ही था की बहुत बड़ी संख्या में गर्रीब परिवारों के लोग जिन्होंने अपने शहर नहीं देखे थे वो प्रदेश और देश की राजधानियों में पहुंचे और स्थापित हुए | 

एक बार जब संसद में नेहरु मंत्रिमंडल की मंत्री तारकेश्वरी सिन्हा ने डॉ लोहिया से कहा की क्या आप पागलो को साथ लेकर घुमते है तो डॉ लोहिया नाराज हो गए और कहा की तारकेश्वरी अगर मुझे कुछ और राजनारायण मिल जाये तो मैं देश को बदल दूंगा और तुम लोगो को भी बेदखला कर दूंगा | इसी प्रकार एक मौके पर आचार्य नरेन्द्र देव विदेश जा रहे थे तो उस वक्त के आन्दोलन के बारे में पुछा गया की कैसे चलेगा तो आचार्य जी ने कहा की उसे नेता जी चलाएंगे और उनके नामकरण के बाद से राजनारायण जी को नेताजी कहा जाने लगा | 

जब राजनारायण जी केंद्र में स्वस्थ्य मंत्री बने तो उन्होंने परिभाषा ही बदल दिया और जमीन पर बैठना तथा बिना ए सी के रहना और उस समय रूस के अखबार प्रावदा ने लिखा की हिंदुस्तान में एक ही मंत्री है जो जन का मंत्री है और समाजवादी फैसले कर रहा है | राजारायण जी ने चालित अस्पताल चलाये थे की वो गाँवो में जाकर गरीबो का इलाज करेंगे और बेयर फुट डाक्टर के नाम पर उस समय १५ लाख लोगो को नौकरी दे दिया था | पर आर एस एस की कुटिल चलो को देख कर वो विचलित हो गए तथा जिस तरह किसानो और गरीबो के मुख्यमन्त्रियो के खिलाफ साजिश हो रही थी उस पर वो मुखर हो गये तथा तत्कालीन जनसंघ के लोगो की दोहरी सदस्यता के सवाल पर सरकार टूट गयी | 

उन्होंने किसानो की लडाई लड़ने वाले किसान नेता चौ चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का सपना देखा तो फिर उसे पूरा कर के ही रहे | एक दौर था जब देश का प्रधानमंत्री ,प्रदेशो के मुख्यमंत्री उन्होंने बनाये बिगाड़े पर खुद उनका परिवार कहा है | मनीराम बागड़ी ने एक दिन जब ज्यादातर लोग साथ छोड़ गए थे तथा पार्टी ख़त्म जैसी हो गयी थी राजनारायण जी का नगर निगम में क्लर्क बेटा आया हुआ था ,कहा की पार्टी का काम तो अब कुछ रहा नहीं इसलिए टाइप राईटर और फोटोस्टेट मशीन इसे दे दे ये अपने बच्चो के लिए कुछ कम लेगा इन मशीनों से तो उन्होंने जवाब दिया की पार्टी का है पार्टी कोष में पैसा जमा कर दे और ले जाये जबकि दूसरी तरफ एक प्रमुख नेत्री ने बताया की आज ही अचानक उनकी बेटी के लिए एक लड़का मिल गया है जो दो दिन बाद ही विदेश चला जायेगा तो उसी राजनारायण जी ने उनकी शादी की पूरी व्यवस्था कर दिया | 

उनके साथ रहने पर न तो किसी पद की जरूरत महसूस हुयी और न कही किसी से डर लगा | ८० में एक दिन मैं छात्र आन्दोलन में लाठीचार्ज के बाद गिरफ्तार हो गया पता नहीं उन्हें कहा से पता चला दूसरे ही दिन सुबह दिल्ली से चल कर और पूरे प्रशासन के साथ वो आगरा की जेल थे | जब मेरी शादी की पार्टी थी उसी दिन उनके परिवार में भी और उन्हें १०० से ज्यादा बुखार था पर वो मेरी शादी में हाजिर थे ..उससे भी जायदा तो तब हुआ जब मेरी बेटी पैदा हुयी और कुछ कार्यक्रम था उसी दिन उन्होंने बिहार के दो पूर्व मुख्यमन्त्रियो कर्पूरी ठाकुर और सत्येन्द्र नारायण सिन्हा को दिल्ली बुलाया था उनका विवाद निपटाने को और मुझे मना कर दिया था आने को पर अचानक सभी को साथ लिए हुए घर पर आ खड़े हुए | जब केंद्र में मंत्री भी थे तो अचानक जब घर आ जाते थे तब पता लगता था | ये थी इतनी बड़े नेता की खासियत | 

मानवीय पक्ष और राजनीती की ऊँचाइयाँ तथा रिश्ते भी उनसे सीखे जा सकते है ,एक दिन थोडी से परेशानी पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी पैदल तीन मूर्ती लेन वाले घर आ गयी तो इंदिरा जी और संजय गाँधी के निधन पर मैंने उन्हें बिलखते देखा | ऐसा क्या कहा था उन्होंने संजय गाँधी से की उसी दिन से वो सड़क पर संघर्ष करने वाला हो गया | लोगो की चुगली और कान भरने से चरण सिंह से दूरी हो गयी थी पर मैंने उन्हें उनके लिये परेशां रहते हुए देखा | जनेश्वर जी और ब्रजभूषण तिवारी साथ छोड़ गए थे पर चुनाव में मैंने उनकी सहायता करते और जीत की कामना करते हुए देखा था | 

वो चाहे कितने भी कमजोर हो गए हो पर जीतनी भीड़ उनके आसपास रहती थी वो मंत्रियो के यहाँ भी नहीं होती थी | देश के सभी बड़े नेता डालो की सीमाए तोड़ कर उनसे मिलने आते थे तथा सलाह करते थे | ये बताना भी समीचीन होगा की जब चंद्रशेखर जी भारत यात्रा कर रहे थे तो उन्होंने ये रहस्य खोला की यदि राजनारायण जी उनकी जिंदगी में नहीं आये होते काशी तो वो तो नौकरी करना चाहते थे पर राजनारायण जी उन्हें राजनीती में ले आये |एक दिन देश के सात ७ बड़े नेता बैठे थे नेता जी के यहाँ और खिचड़ी तथा लिट्टी चोखा खा रहे थे उस दिन नेता जी ने बड़ी वेदना से कहा की यह दें देखने को मैं क्यों जीवित हूँ जब सत्ता मदांध है और विपक्ष रश्म अदायगी कर रहा है | क्या कानून की पढाई राजनारायण को पढ़े बिना पूरी हो सकती है क्या लोकतंत्र में विपक्ष को मायने देने वाले योद्धा को याद किया बिना लोकतंत्र को जिन्दा रखा जा सकता है | 

आज जब सत्ता तथा उससे जुड़े लोगो की भाव भंगिमा ,बोल और कदमो से लोकतंत्र की हत्या होने और फासीवाद स्थापित करने के इरादे की बू आ रही है तो आज जरूरत है एक राजनारायण की और आज के दौर में दूर दूर तक वैसा कोई नही दिख रहा है | समाजवादी आन्दोलन अगर गाँधी के विचार ,लोहिया की हुंकार ,जयप्रकाश की सम्पूर्ण क्रांति और राजनारायण के सतत और निरपेक्ष संघर्ष कर्पूरी ठाकुर रामसेवक यादव जैसे लोगो की सादगी को अपना हथियार बनाएगा तभी देश के लिए सपने देखे गए वो पूरे होंगे और राजनारायण जी को सच्ची श्रधान्जली होगी |