रविवार, 20 सितंबर 2020

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से-
जब वो #राजीव_गांधी_जिन्दाबाद_बोलते_हुए_आये
और #मुलायम_सिंह_जिन्दाबाद_करते_हुये_निकले
---एक ऐसा किस्सा जो न कभी देखा और न सुना होगा --
ये 1993 के विधान सभा चुनाव की बात है ।मैं समाजवादी पार्टी का महामंत्री और प्रवक्ता था ।आगरा मे जातिगत कारणो से पार्टी का कोई बहुत मजबूत आधार नही था पर मेरी अति सक्रियता और सतत संघर्ष से पार्टी कुछ ज्यादा ही नजर आती थी सड़क से समाचारो तक और चूंकि आगरा तीन मध्यप्रदेश और राजस्थान से भी जुड़ा है और आगरा मंडल ही नही इटावा तक के मीडिया का मुख्य केन्द्र है तथा आरएसएस का भी पच्चिमी उत्तर प्रदेश का मुख्यालय है और इस बड़े क्षेत्र का शिक्षा और चिकत्सा का तथा  बुद्धिजीवियो का भी केन्द्र रहा है और  मुलायम सिंह यादव जी की शिक्षा भी यही से हुई है तो उनकी भी आगरा मे ज्यादा रुचि रही और एक टोटका भी शायद उनके दिमाग मे लगातार रहा कि आगरा मे मैने पार्टी का एक तीन दिवसीय कार्यक्रम रखा और उसके बाद ही पार्टी की सरकार बन गई जो 2017 से पहले भी हुआ तो आगरा पार्टी की सक्रियता और प्रचार का केन्द्र था ।
चौ चरण सिंह के समय लोक दल को छोड दे जिसमे वो तीन विधान सभा सीट जीत जाते थे वर्ना 1977 से पहले जब पुरानी समाजवादी पार्टी जीतती थी कुछ सीटे, बाह से पहले स्वतंत्र पार्टी और बाद मे लोकदल से रिपुदमन सिंह जीतने लगे तो शहर से बालोजी अग्रवाल सोशलिश्ट पार्टी से जीते थे और 1977 मे भी शहर की तीनो सीट कांग्रेस ही जीत गई थी और बाकी जनता पार्टी जीती थी ।
1993 चुनाव से पूर्व जब मुलायम सिंह यादव के भाई रामगोपल यादव को राज्यसभा के टिकेट दिया गया तो चंद्रशेखर जी से जुड़े विधायको के पार्टी छोड देने के कारण बडा संकट आ गया था उस समय मैने जनता दल से दो वोट मैनेज किये थे बिना एक भी पैसा खर्च किये और बाद मे एतमादपुर के विधायक को पार्टी मे शामिल भी कर लिया ( इस चुनाव का किस्सा अलग से लिखूंगा ) । 
खैर जो मूल किस्सा है जिसके लिए ये एपिसोड लिख रहा हूँ ।
जैसा मैने प्रारंभ मे ही लिखा की पूरी तरह जाति पर आधारित राजनीती के कारण आगरा मे पार्टी मजबूत नही था और मैंने कुछ छात्रो और नौजवानो को जोड़ कर पार्टी चलाना शुरू किया था और लगातार इस कोशिश मे रहता था की कुछ मजबूत लोगो को जोडू, कुछ लोग जुड़े तो कुछ वादा करते रहे पर एन चुनाव मे धोखा दे गए जिनसे हिसाब भी निपटाया मैने मौका पडने पर ।
विधान सभा चुनाव घोसित हो गया था और सभी टिकेट की जोड़ तोड मे लगे थे और चुनकी काशिराम से समझौता हो गया था जिनकी बसपा भी उस चुनाव से पहले तक केवल 11/12 विधायक की पार्टी होती थी और काशिराम भी हमारे ही अप्रत्यक्ष सहोयोग से 1991मे रद्द हुये इटावा जिले का चुनाव दुबारा होने पर इटावा से ही पहली बार सांसद बने थे । पर दोनो दलो के मिल जाने की चुनाव मजबूत हो गया था और 65/35% के फार्मूले पर टिकेट का वितरण होना था । आगरा कैंट की सीट पर मेरी भी निगाह थी क्योकी इस समझौते के कारण समीकरण जीतने लायक हो गए थे पर संसदीय बोर्ड की बैठक मे अध्यक्ष रामसरन दास जी ने ज्यो ही कहा की इस सीट पर सी पी राय को फाइनल कर दिया जाये इसमे कुछ और सोचने की जरूरत ही नही है तो बैठक मे बस इतने से काम के लिए आये रामगोपाल यादव ने जबरदस्त विरोध किया कि उनकी जाती के कितने वोट है वहाँ की टिकेट दिया जाये और मेरा टिकेट रुकवा कर बैठक से चले गए और बोर्ड ने ये मुद्दा मुलायम सिंह यादव के ऊपर छोड दिया । और बाद मे जो भी हुआ मुलायम सिंह यादव ने मुझसे कहा की चुनाव लड़ेंगे तो आप एक सीट पर फंस जायेंगे और वैसे आप इतनी सारी सीट पर जाते है और आप के भाषण की मांग भी रहती है तो छोड दीजिये चुनाव के बाद आप को मैं दिल्ली भेजूंगा आप वहाँ ज्यादा काम आयेंगे ।मैने विरोध भी किया कि आप ने तो 1989मे भी यही कहा था हरियाणा भवन मे संसदीय बोर्ड की बैठक मे की मेरा चुनाव देखिये और मैं मुख्यमंत्री बन जाऊंगा तो विधायक क्या होता है तो बोले की अब वैसा नही होगा मैं जुबान देता हूँ और मैं मांन गया और लग गया अच्छे प्रत्याशी ढूढने मे ।
#उस_दिन मैं आगरा की कलक्ट्री मे था एतमादपुर से चन्द्र भान मौर्य का परचा दाखिल होना था । तभी देख की कांग्रेस के चार बार के विधायक और कैबिनेट स्तर पर कृषी मंत्री रहे डा कृश्न वीर कौशल काफी लोगो के साथ राजीव गांधी जिन्दाबाद का नारा लगाते कांग्रेस के झंडे के साथ कलक्ट्री मे प्रवेश कर रहे थे ।वो पिछला दो चुनाव हार चुके थे और मुझे अच्छी तरह पता था की इस बार इनका टिकेट कट रहा है और कांग्रेस के दिग्गजो मे से एक को एक और ने किसी तरह पटा लिया है और टिकेट उन्ही को मिलेगा ।
बस मेरा दिमाग चल गया ।मैने डा कौशल को नमस्कार किया और उनके साथ साथ सीढिया चढ़ने लगा क्योकी उनका परचा ऊपर के कक्ष मे दाखिल होना था । मैने उनसे कहा की ये पक्का है की आप को टिकेट नही मिल रहा है बल्की फला को मिल रहा है तो बाद मे नाम वापस लेंगे ।आप चाहे तो मैं आप को टिकेट दे दूंगा । उन्होने बस इतना पूछा की क्या बाद मे बेज्जती तो नही होगी ।मैने कहा की मैने कह दिया तो समझ लीजिये हो गया आप कल मेरे साथ चलिये बी फॉर्म भी दिलवा दूंगा और मुलायम सिंह यादव जी से मिलवा भी दूंगा ।फिर क्या था पुराना परचा जेब मे रख नया तुरंत खरीदा गया और समाजवादी पार्टी के नाम का परचा भरा गया ।
आये तो डा साहब और उनके लोग थे राजीव गांधी का नारा लगाते हुये और कांग्रेस का झन्डा लिए हुये पर जब नीचे उतरे तो वही भीड मुलायम सिंह यादव का नारा लगाते हुये और सपा का झन्डा लिए हुये और पूरी कलक्ट्री तथा मीडिया इस भूतों न भविष्य्ते इस घटना पर हत्प्रभ था , और मेरे बारे मे क्या चर्चाये हुई उसके बाद शहर ,राजनीती और मीडिया मे ये समझा जा सकता है ।
टिकेट की लडाई , चुनाव , मेरी सभाए और मेरे भाषण के कैसेट की बिक्री और प्रदेश भर से उसकी मांग इत्यादि पर अगले एपिसोड मे लिखूंगा ।