#जिन्दगी_के_झरोखे_से
आज मेरे द्वारा आयोजित होने वाले #शहादत_सम्मान कार्यक्रम की चर्चा --- पिछ्ले दिनो मैने लिखा था और फोटो सहित पोस्ट किया था कि कैसे मैने पहले #कारगिल के शहीदो के परिवार की लडाई लड़ा था और शहीदो को मिलने वाले 10 लाख मे से 33% आयकर जमा करने का नोटिस अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से वापस ही नही करवाया बल्की मुशर्रफ वार्ता से पहले बाकी वादे भी पूरे करवाये थे
और उसके बाद जिस दिन मुशर्रफ से वाजपेयी जी की वार्ता हो रही थी उस दिन 1965 और 71 के युद्ध बंदियो के सवाल पर उन युद्द बंदियो के परिवारो की लडाई को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रिय मीडिया के सहयोग से मुशर्रफ को मजबूर किया था बोलने के लिए और यह कहने के लिए की ये परिवार पकिस्तान सरकार के निमंत्रण पर वहा आये और सभी जेलो मे जाकर पहचान कर ले ,यदि किसी के भी परिवार के युद्ध बंदी वहाँ होंगे तो वो छोड देंगे ।उसी साल मैने आगरा के शहीद स्मारक पर शहीदो के परिवारो को सम्मानित करने और उन्हे यह एहसास कराने को इस शहादत सम्मान का आयोजन शुरू किया बंगला देश विजय दिवस के दिन ।
कार्यक्रम का #स्याह_पक्ष ये था की पहली बार जब कार्यक्रम हुआ तो कुछ प्रमुख लोगो को आसपास के लोग भी नही बता पाये की #शहीद_स्मारक कहा है ,वो लोग किसी तरह मुश्किल से पहुचे ।
#पीछे_की_एक_कहानी और है कि इसके पहले जलियांवाला बाग दिवस शहीद स्मारक मे मनाया गया । मैं अपने बेटे के साथ गया , आगरा मे प्रसिद्ध होम्योपैथी चिकित्सक डा पारीख अपने दो पौत्रो के साथ आये और वहा हम 5 सहित कुल 11या 12 लोग आये थे । ठाकुर राम सिंह जो काला पानी की सजा काट चुके उन्ही के अथक प्रयास से शहीद स्मारक का निर्माण हुआ था ।वो भी मौजूद थे और उनके चेहरे पर पीडा थी यह हालत देख कर और उन्होने उसे व्यक्त भी किया कि आज लोगो के पास देश के लिए मरने वालो के लिए साल मे दो चार दिन भी थोडा सा समय नही है ।
अपने सम्बोधन मे मुझे पता नही क्या सूझा की मैने बोल दिया की ठाकुर साहब चिंता मत करिये मैं लोगो को यहा आने को मजबूर कर दूंगा ।
और इसी के बाद कारगिल हो गया और फिर उसके शहीदो के परिवारो की लडाई मेरे सामने आई और वही मेरे मन मे ये विचार आया की शहीद स्मारक पर कुछ करू ताकी शहर इसे जाने और इसकी महत्ता को जाने ।
और सचमुच मेरा कहा सफल हो गया और आज आगरा मे अधिकार कार्यक्रम या तो शहीद स्मारक से प्रारम्भ होते है या यहा समापन होता है ।और अब किसी को बताने की जरूरत नही है की शहीद स्मारक कहा है ।
और शायद शहीदो के लिए मोमबत्ती जलाने की शुरुवात भी इसी कार्यक्रम से पहली बार हुई थी ।
खैर अब इस कार्यक्रम पर आता हूँ -
इस कार्यक्रम के लिए सबसे पहले मैं आगरा मे फौज के ब्रिगेड कमाण्डर और एयरफोर्स के एयर कमोडोर से मिला । उन दोनो ने पूरी तरह भागीदारी करने का आश्वासन ही नही दिया बल्की हर वर्ष खुद हिस्सा लिया , एयर कमोदोर वेनुगोपल जी तो बाद मे एयर मार्शल बन गए थे ,अपना बैंड भेजा जो लगातार अवसर के अनुसार धुन बजा कर कार्यक्रम को सार्थक बनाता रहा और सेरिमोनीयल ड्रेस मे अपने लोग भी भेजे जो कार्यक्रम मे सम्मान इत्यादि मे अपनी भूमिका निभाते रहे ।
इसके अलावा आगरा विवि के कुलपति ,सभी प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी और आयकर इत्यादि विभागो के कमिश्नर इत्यादि इस कार्यक्रम मे हिस्सा लेते रहे ।इसी क्रम मे एक बार तत्कालीन विधनसभा अध्यक्ष जो वर्तमान मे राज्यपाल है केसरी नाथ त्रिपाठी जी भी आगरा मे मौजूद थे तो वो भी कार्यक्रम मे आये ,एक वर्ष तीनो सेनाओ की संयुक्त मेडिकल कोर के चीफ एडमिरल वी के सिंह आगरा आये थे तो वो भी शामिल हुये ।
इन चित्रो मे केसरी नाथ त्रिपाठी जी , एडमिरल वी के सिंह के अलावा वर्तमान मे भारत सरकार के सयुक्त सचिव नीतीश्वर कुमार ,कमिश्नर आयकर पन्त साहब वर्तमान मे ए डी जी वी के मौर्य और आशुतोष पांड़े,पूर्व डी आई जी गुलाब सिंह ,फौज और एयर फोर्स के वरिष्ट अधिकारी है तो अंड़मान मे काला पानी की सजा पाये स्व ठा राम सिंह जिनको मैने जिन्दा शहीद की उपाधि दिया था तथा कार्यक्रम मे सब लोग जमीन पर बैठे लेकिन उनको कुर्सी पर बैठा कर उनका सम्मान किया गया ।
कार्यक्रम मे बच्चे शहीदो पर पोस्टर बनाते हुये और फिर वो पोस्टर शहीद स्मारक की दीवारो पर टेप से लगाये गए ।स्कूली बच्चे देश भक्ति के गाने प्रस्तुत करते । सभी शहीदो को पुष्प अर्पित करने के बाद शहीदो के परिजनो को शहादत सम्मान से मुख्य लोगो द्वारा सम्मानित किया जाता रहा और फिर उद्बोधन ।
मुझे याद नही है की किसी भी वर्ष जब मैं शहीद के बारे मे पहले उसकी शाहदत का दृश्य खीचते हुये ब्योरा प्रस्तुत करता और फिर शहीद की पत्नी या परिजन को मंच पर सम्मान के लिए बुलाता 90 % से अधिक लोगो की आंखे गीली न होती रही हो और सबके हाथो मे रुमाल न निकल आये हो , खुद मेरे भी और ज्यादतर तो मेरा बोलना मुश्किल हो जाता था पर किसी तरह अपना कर्तव्य पूरा करता था ।
कार्यक्रम के अन्त मे शहीद स्मारक मे सबसे ऊपर शहीदो के परिवार ,फिर मुख्य लोग और सभी जो आये होते और फिर मेरे द्वारा लगाये गए नारो का साथ देने के बाद सभी अपनी खुद की लाई मोमबत्ती या दिया जलाते और गमगीन माहौल मे कार्यक्रम समाप्त होता रहा ।
विशेष बात ये रही की जो माइक लाईट लगाता था और जो कुर्सी मेज तथा चादर बिछाता था पहले वाले कार्यक्रम को देख कर ही पहले से तय पैसा लेने से इन्कार कर दिया और फिर कभी भी नही लिया ।इसी तरह फूल कोई लाता ,मालाए कोई लाता ,कोई खुद कह कर शाल ले आता और कोई मोमेंटो बनवा देता और ऐसे ही हर वर्ष यह कार्यक्रम संपन्न हो जाता ।सारी मीडिया भी बडा बडा कवरेज देती रही और स्थानीय टीवी चेनप तो देशभक्ति के गाने और शहीदो के दृश्य जोड़ कर एक कैप्सूल बना कर महीनो जब तब चला देते और फिर तमाम शहर के लोग शिकायत करते की उनको क्यो नही बताया और फिर अगली साल वो लोग स्वयं हाज़िर हो जाते ।
यह कार्यक्रम आगरा के शहीद स्मारक पर मेरी साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था ;#पहचान ; द्वारा आयोजित किया जाता रहा जिसमे विवि का महात्मा गाँधी अध्ययन केंद्र भी शामिल हुआ दो बार । इस कार्यक्रम मे कवी लेखक , शिक्षक , अन्य बुद्धिजीवी समाज , सामाजिक कार्यकर्त्ता , छात्र सहित काफी लोग हिस्सा लेते रहे ।
फोटो थोडी धुधली है ।
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