शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

संघी और ऐसे व्यापार

पिछले सालो से लिख और बोल रहा हूँ जो सत्य हो साबित हुआ है ---

संघ के लोग अगर चाहे तो किसान का शोषण न हो और उसे वाजिब दाम मिले | संघ के लोग अपना मूल कार्य मुनाफाखोरी , मिलावटखोरी और जमाखोरी बंद कर दें तो देश में मंहगाई बहुत कम हो जाये | पता नहीं लोग इन्हें बेनकाब क्यों नहीं करते है ??? सारा बिचौलिया कारोबार और ये सब काम करने वालो को हर शहर के लोग पहचानते है ,सुबह किसी मैदान में आदर्श की बात करते और लाठी भाला चलाते देख सकते है और दिन में दुकानों पर ये सब करते हुए इन्हें पहचाना जा सकता है |

पाकिस्तान के अर्बन नक्सल

पाकिस्तान मे भी बडी जमात है जो गलत को गलत कहती है और इसके खिलाफ सड़क पर खड़ी हो जाती है ।
याद है जब हमारे पाइलट अभिनंदन के लिए तमाम छात्र छात्राओ का हुजूम निकल आया था हाथ मे तख्थियां लेकर उनको रिहा करने की मांग का ।
हमारे दोस्त और जाने माने पत्रकार पीरजादा भी ऐसे लोगो मे है जो हमारे बिचार युद्ध मुक्त देश , सीमा मुक्त पड़ोसी , फौज मुक्त सीमा और पडोसियो के ढीले ढाले महासंघ के पक्ष मे है ।
देख लीजिये अपने देश मे अपनो से लड़ रहे है एक बुराई के खिलाफ ।
पर भारत मे संघ परिवार की निगाह मे ऐसे लोग देशद्रोही और अर्बन नक्सल होते है ।

क्या होगा देश का

#राजनीतिक_दल कोई भी रहे हो 
पर पहले वो अपने संविधान और अच्छे बुरे विचारो और कुछ वैचारिक पुस्तको से, संगठन और कार्यकर्ताओ से चलते थे 
पर 
अब तो आयकर ,ई डी और सुपारी मीडिया , विदेशी सलाहकार और पी आर एजेन्सियाँ इत्यादि उनका मार्ग निर्धारित कर रहे है और चला रहे है ।
क्या होगा देश का और लोकतंत्र का ?

तिलक_तराजू_और_तलवार

#तिलक_तराजू_और_तलवार 
इनको   मारो   जूते    चार 
कहते कहते कब तराजू मे दौलत तौलने लगी , कब तिलक को माथे से लगा लिया और कब भ्रष्टाचार की तलवार से अपना ही अंग भंग कर लिया पता ही नही चला ।
अब झूले मे सो जाना ही नियति है ।
बस यूँ ही ।

पिछड़ो मे घृणा

पिछडी जाति के नेताओ को आगे बढने की प्रेरणा और मदद अगड़ो ने ही किया 
किसी का भी इतिहास देख लीजिये 
पर पता नही इन लोगो को अगड़ो से इतनी घृणा क्यो है 
और 
खासकर नई पीढी तो जहरीले हद तक घृणा से सराबोर है ।

भारत के पिछड़े और दलित नेता

जिन #नेताओ की #राजनीती की बुनियाद #90% जनता बनाम 10% सेठो से की हक की लडाई थी और मकसद इस खाई को पाटना था 
वो सब के सब खाई पाट कर पूरे #खानदान और #रिश्तेदार सहित खुद ही 10% #सेठो_मे_शामिल हो गये ,
चाहे जिसका बहीखाता देख लीजिये । 
नाम तो सब आप की जानते है केन्द्र की सत्ता, आयकर और ई डी भी ।

बाबू जगजीवन राम

बाबा साहेब अम्बेडकर के विचारो के बाद पूरे भारत के  #वंचित_समाज के #असली_नेता थे #बाबू_जगजीवन_राम ,जो कांग्रेस के अध्यक्ष रहे तो रक्षा मंत्री सहित विभिन्न विभाग के मंत्री और हर विभाग के सफल मंत्री ।
आपात्काल के खिलाफ कांग्रेस छोड दिया था और बन गये थे जनता सरकार के उप प्रधान मंत्री ।
वंचितो के नेता के नाम पर अब तो बस पूजिवादी हवस और ऐयाशी के मकसद वाले फर्जी नेता है सब और नितांत नाकाबिल भी ।

संघी जवाब नही देता प्रतिप्रश्न करता है

संघी विचारधारा के लोग आप से अक्सर एक धर्म विशेष के किसी मुद्दे पर सवाल पूछ लेते है कि इस पर भी कुछ बोलिए ।
मुझसे भी आज फिर पूछ लिया 
तो मैने कुछ ऐसे
जवाब दिया --

मुझे तमाम किसानो और बेरोजगारो की आत्महत्या पर , उत्तर प्रदेश मे तमाम सधुवो की हत्या पर , चीन द्वारा 1300 वर्ग मील कब्जे पर , देश की अर्थिक बर्बादी पर , इन सब मुद्दो पर आरएसएस की चुप्पी पर ,संघियो द्वारा की जा रही मिलावटखोरी, जमाखोरी,मुनाफाखोरी इत्यादि इत्यादि जैसी एक हजार चीजो पर आप के कमेँट की प्रतीक्षा है 
और 
देश की आज़ादी से लेकर आज तक की जा रही गद्दारी पर और देश को बेचने पर भी आप के कमेँट की प्रतीक्षा है ।

भाजपा भी तुष्टीकरण की राह पर

जब दूसरी सरकार ने ये पैसा दिया था अल्पसंख्यक बेटियो को तो वो #तुष्टीकरण कहा गया और सुपारी मीडिया मे भी खूब उछला 
पर अब भाजपा सरकार मे -?-

#अल्पसंख्यक_बेटियों_को_बीजेपी_सरकार_का_तोहफा
अल्पसंख्यक समुदाय की पुत्रियों को तोहफा
विवाह में बेटी को 20 हज़ार रुपये की दी जाएगी सहायता ।

अभिशप्त प्रदेश

#उत्तरप्रदेश और #बिहार क्यो #अभिशप्त हो गये है इस कदर #जातिवाद से 
जिस जाती का नेता , केवल उस जाती की सरकार बन जाती है और वो जाति जालिम तथा लुटेरी बन जाती है ।
जबकी बहुमत की सरकार बिना सबके कम या अधिक वोट के बन ही नही सकती है ।
मुद्दे और आकांक्षाये गर्त मे चली जाती है 
और सनक , ऐय्याशी और संपत्ति का नशा सर चढ़ कर बोलता है अगली बार हारने तक ।

बिहार चुनाव पर एक नजर



बिहार चुनाव पर एक नजर 

बिहार मे तेजस्वी की रैलियाँ तो नम्बर एक का इशारा कर रही है 
पर रैलियो मे सुनने की गम्भीरता का अभाव भी दिख रहा है और तेजस्वी के बोलते वक्त भी लगातार होता हुडदंग मेरे राजनीतिक चिन्तन और आकलन को थोडा विचलित भी कर रहा है ।
कांग्रेस मे तो भष्मासुरो की भरमार है और चिराग रोशनी के बजाय विपरीत हवा बहा रहा है ।
कभी भाजपा के खिलाफ प्रधानमंत्री मटेरियल माने जाने वाले नितीश मुख्यमंत्री के लिए भी महंगे होते दिख रहे है तो सत्ता की मलाई चाट कर भाजपा ने बडी चालाकी से चाटा हुये दोने की गन्दगी नितीश के मत्थे मढ़ने मे कामयाबी पा लिया है ,ऐसा लगता है ।
कई बार नये हो या पुराने छोटे खिलाडी भी मैदान मे थका देते है और उनसे जीतने वाला भी उस थकान मे बराबरी के पहलवान से मार खा जाता है ।
वैसे ये बिहार है जिससे एक जमाने तक देश को दिशा दिखाने और देश के लिए लडाई छेड़ने की उम्मीद की जाती रही है पर श्री बाबू , दिनकर , जयप्रकाश ,कर्पूरी जैसो की धरती मे राजनीतिक खाद की जगह यूरिया ने उर्वरा शक्ति उत्पादकता  को शायद बहुत चोट पहुचाया है ।
गम्भीर बहस चुनाव से गायब है और अपने अपने पुराने हथियार पर ही शान चढ़ाने की सभी की कोशिश दिख रही है जो एकतरफ़ा फैसलाकुन तो नही दिख रही है ।
इस बार कुर्सी खाली करो की जनता आती है नारा अभी तक तो किसी भी कोने से सुनायी नही दिया ।
दुष्यंत की पंक्तियाँ कि सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही मेरी कोशिश है की कुछ सूरत बदलनी चाहिये जैसी आवाज भी अभी तक कही से नही आई है जबकी चुनाव प्रचार उठान ले चुका है और सारे महारथी सवार हो चुके है अपने रथो पर ।
ऐसा भी नही सुना अब तक कि "पक गई है आदते बातो से सर होंगी नही ,कोई हंगामा करो ऐसे गुजर होगी नही ।
तो कैसा हो गया ये बिहार ? ये वो बिहार तो नही जहा जेल तोड कर अंग्रेजो को चुनौती दिया था जयप्रकाश ने और ये वो बिहार भी नही है जहा के गांधी मैदान मे सशक्त नेता इन्दिरा गांधी को तार्किक और फैसलाकुन चुनौती दिया था ।
अब अगर किसी भी तरह चाहे धर्म या जाती ,धन या धमकी ,शराब या ताड़ी ही सरकार बनने की बुनियाद हो जाये और मुद्दो पर बहस और जवाबदेही कोसी की बाढ  मे बह गई हो और नंगा भूखा मतदाता भी जाती और धर्म मे ही आत्मसम्मान और भविष्य तलाश रहा हो तो क्या बात करना इस चुनाव की और क्या आकलन करना की क्या होगा और इस चुनाव के परिणाम का बिहार के भविष्य पर देश की राजनीती के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा । जो जीतेगा वो लूटेगा और बिहार तथा यहा का किसान मजदूर वैसे ही एक रोटी और कपडे के लिए देश भर मे भटकेगा । शिकायत करने का अधिकार भी कहा है फिर जनता को की सत्ता ने उसके लिए क्या किया ? क्योकी आपने पूछा ही नही किसी भी चुनाव मे की पिछ्ले 5 साल मे क्या किया और फिर ये भी नही की बताओ की अगले 5 साल मे कौन कौन  क्या करेगा ? वो सुन कर और गुन कर वोट डालते तो वो होता और उसके लिए सबकी जवाबदेही होती ।
जो बोवोगे वही तो काटोगे आप चाहे जनता हो , कार्यकर्ता हो या नेता हो ।
तो आईये इन्तजार करते है बिहार के चुनाव मे पाकिस्तान , मुस्लमान ,
कश्मीर,अगड़ा , पिछड़ा , यादव , कुर्मी , पासवान , 
माझी , ठाकुर , ब्राह्मण ,  भूमिहार , कायस्थ जैसे महत्वपूर्ण मुद्दो पर मतदान का । बाढ ये क्या होती है ,चमकी बुखार ये क्या होता है , बेकारी ये क्या होती है , मजदूरो का पलायन या फिर सड़क पर हजारो मील का सफर याद नही ,अपराध देखा नही , पढाई चाहिये नही । छोडिए इन फालतू चाय या काफी के समय की चर्चाओ को ।
आईये बिहार को और बदतर बिहार बनाये है ।
क्या है संभावनाए ?

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

बचपन_का_दोस्त_चांद

#बचपन_का_दोस्त_चांद 

रात को खाना खाने के बाद टहलने निकला तो आसमान में कुछ चमकता सा दिखा , गौर से देखा कि अरे ये तो अपना बचपन का दोस्त चाँद है जिसे मैं जब गांव में रहता था तब रोज देखता था , आसमान साफ था इसलिए दिख गया चाँद वर्ना कहा दिख पाते है चाँद  सितारे शहर में।  सचमुच शहर बहुत सी चीजों को पाता है तो बहुत सी चीजों से मरहूम रह जाता है खासकर प्रकृति के साथ से। शहर में भी आ गया था तो जब तक छत वाला घर घर था या वो कालेज वाला का घर जहां गर्मियों में बाहर चारपाई बिछा कर बिना डर के सो सकते थे तब भी कई बार देखा था चाँद को ।  हा चाँद देखने को शहर वालो को किसी त्यौहार या आयोजन का इन्तजार करना होता है ,महिलाये करवा चौथ पर देख पाती है तो कुछ लोग रोजा तोड़ने के लिए तो बाकि लोग पता नहीं क्यों चंद्र ग्रहण देखने के लिए। आगरा के लोगो का तो उत्सव होता था शरद पूर्णिमा में ताजमहल जाना ।  शरद पूर्णिमा के दिन चाँद पूरा निखरा हुआ होता है जिसे कहते है फूल मून और पहले इस दिन ताजमहल रात भर खुलता था और लाखो लोग ताजमहल जाते थे और इतनी ज्यादा भीड़ होती थी की भारी पुलिस लगानी होती थी और एक तरफ से आने और दूसरी तरफ से जाने का इंतजाम करना होता था ,सीढिया छोटी पड़  जाती थी तो नए रास्ते बनाने होते थे और मचान टाइप फिर भी शरीर से शरीर टकरा कर चलते थे और कई बार तो लगता था की कही रेला लोगो को गिरा न दे वर्ना न जाने कितने लोग घायल हो जायेंगे पर अधिकतर लोग परिवार के साथ पहले ही जाकर खाना पीना साथ लेकर ताजमहल के सामने के लान में जगह घेर लेते थे क्योकि तब तक ये सब मना नहीं था और वही बैठे बैठे निहारते थे ताजमहल और चद्नी या प्रचलित नाम चमकी ।  दरअसल ताजमहल में ऊपर चारो तरफ ऐसे पत्थर लगे है जो चाँद की रौशनी पड़ने पर चमकते है या रौशनी को परवर्तित करते है और ये तो पूरी रात शेर होता था की ;वो चमकी ; ये शोर कुछ लोग तो सचमुच जो देखने गए होते थे उसके लिए करते थे पर नौजवान अक्सर क़िसी लड़की को देख कर हल्ला करते थे और कुछ हरकते भी ।  काफी लोग पुलिस का लॉकअप भी देख लेते थे इस चक्कर में । चांद का करिश्मा देखिये की दुनिया में मशहूर ताजमहल की भीड़ भी उस दिन बढ़ जाती थी जब चाँद चार चाँद लगा देता था । उस वक्त जब चांद से सामना हुआ इतने लम्बे अरसे बाद तो लगा की चाँद शिकायत कर रहा है और उसका मुँह फूला हुआ है कि तुम तो हमें भूल ही गए ।  थोड़ा शर्मिंदा तो हुआ मैं फिर खो गया उन बचपन की यादो में जब रोज ही चाँद देखता था मैं और साथ ही तारे भी।  तारो को गिनने की कोशिश करना और गिनने की दूसरो को चुनती देना और सबका ही हार जाना हमेशा ही होता था।  वो सप्त ऋषि यानि सात तारो को ढूढना भी कितन अच्छा लगता था और आश्चर्य होता था की उनका क्रम बदलता ही नहीं ,लगातार बिलकुल उसी क्रम में और वैसे ही कोण पर मौजूद है सातो ।  पुंछल तारा भी तो दिखता था कभी कभी और उसकी तरह तरह की कहानिया सुनाते थे बुजुर्ग लोग।  ये बाते तो अक्सर होती थी कि किसी की  हाल में ही मृत्यु हुयी हो तो वह उन्हें किसी नए तारे के रूप में खोजता था और बताता था अपनों को कि देखो वो है तुम्हारी नानी नाना दादा दादी या जो भी रिश्ता रहा हो।  मैंने भी जब बाबा से पुछा था की आजी कहा गयी तो वो किसी तारे को दिखा देते थे की वो है भगवांन के पास। 

चाँद भी क्या है की बचपन में माताए चंदा मांमा दूर के पुए पकाये बूर के आप खाये थाली में मुन्ने को दे प्याली में प्याली गयी रूठ मुन्ना गया रूठ गा गा कर धीरे कौर कौर ठूसते ठूसते पूरा खाना खिला देती थी बच्चे को पर बच्चे भी कहा मानने वाले थे वो मैया मोरी चंद खिलौला लैहों कहने लगते और चाँद की मांग लेते खेलने को तो बहलाना पड़ता था गरीब और भूखे बच्चे को चाँद को रोटी बता कर तो बाकी बता कर की देखो वो बुढ़िया चरखा कात रही है और कपङा बना लेगी तो तुमको देगी ,पर चंदा भी कम थोडे है तभी तो ठंढी हवा की शिकायत कर -हठ कर बैठा चांद एक दिन माता से यह बोला सिलवा दो मा मुझे ऊँन का मोटा एक झिंगोला , मांगने लगा । चांदनी रात में नौका विहार पर निबंध भी खूब लिखवाया गया तो प्रेमियों के लिए आकर्षण की चीज रहा है चाँद ,;आजा सनम मधुर चांदनी में हम तुम मिले तो ; तो किसी को यही चाँद  दर्द भी देता रहा है ,केदार नाथ सिंह को अँधेरे  पाख  का चाँद अच्छा लगा तो त्रिलोचन ने कल्पना किया कि ;अगर चाँद मर जाता ,विजय कुमार को चाँद अघोरी लगा तो अवतार को अमावस का चाँद अच्छा लगा ,नरेश सक्सेना ने सुना की आधा चाँद मांगता है पूरी रात ;तो राजेंद्र रहबर की किसी से शिकायत थी की ईद का चाँद हो गया कोई ,वैसे इसका इस्तेमाल तो कई तरह करते रहे लोग कोई शिकायत के लिए तो कोई ताने के लिए ,गणेश पण्डे को सदेश देना था तो उन्होंने ;उस चाँद से कहना ;से भिजवा दिया संदेश ,विष्णु नगर को भी ;एक दिन चाँद ; दिखा ,राघवेंद्र अवस्थी को ;मेरे चांद पर बने बंगले पर हलचल दिखी ,ज्योति खरे कोने में बैठ गयी चाँद से बतियाने ,धर्मवीर भारती को मदभरी चांदनी अच्छा लगी ,तो जावेद अख्तर को दरिया का साहिल हो और पूरे चाँद हो और तुम आओ में कुछ कुछ हुआ ,तो कुंवर नारायण को कुछ ऐसा क्यों लगा ;रात मीठी चांदनी है मौत की चादर तनी है ,और वासना के ज्वार उठ चन्द्रमा तक खिंच रहे ,बालकवि बैरागी ने चंदा से कहा ,तू चंदा मैं चांदनी तू तरुवर मैं शाख रे ,केदार नाथ अग्रवाल को चाँद अकेला दिखा ,तो बच्चन को चांदनी फैली गगन में चाह मन में लगी ,किसी को चाँद उगने का इंतजार रहता है तो किसी को चांद तू जा में रूचि है ,बशीर बद्र का चाँद कही राहो में खो गया ,तो राकेश कौशिक को चाँद बूढ़ा लगा मुक्तिबोध को चाँद का मुँह टेढ़ा दिखा , तो दिनकर जी की रूचि चाँद के कुर्ते में भी थी , मीना कुमारी को चाँद बहुत तनहा तनहा लगा तो शकेब जलाली की शिकायत है की;गले मिला न कभी चाँद वख्त ऐसा था ,बच्चन जी ने बताया की मुझसे चाँद कहा करता था तो साहिर लुधियानवी को चाँद के मद्धम होने से शिकायत है ,किसी को गुलाबी चाँद ने याद किया तो शीन काफ को घाटी का चाँद अच्छा लगा ,शमशेर बहदुर सिंह ने चाँद से थोड़ी गप्पे मारी ,किसी को चाँद झुका दिखा तो किसी को सदियो से चांद  की पीड़ा दिखी किसी को झुरमुट में अटका चाँद दिखा तो मुक्तिबोध को इंतजार था की डूबता चाँद कब डूबेगा ,किसी को लगा कि चाँद सुरागकशी करने निकला है ,बच्चन ने आह्वान किया की चाँद सितारों मिल कर गाओ ,तो निसार अख्तर को उम्मीद है की सौ चाँद चमकेंगे।  बस चाँद एक अनबूझ पहले की तरह साहित्य के इस कलम से उस कलम तक इस पन्ने से उस पन्ने तक सफर कर रहा है लगातार। 

ऐसा नहीं की कविता तक सीमित है चाँद झूम कर तो कभी ग़मगीन होकर खूब गाया भी गया है चाँद , खोया खोया चाँद , खुला आसमान , आँखों में सारी  रात जाएगी की तकलीफ तो चलो दरदार चलो चाँद के पार चलो की ख्वाहिश , चाँद छुपा बादल में तो चाँद सिफारिश जो करता हमारी तो देता वो तुमको बता कह कर भी कह दी गयी बात अपनी ,और ये भी तो कहा  गया बडी शिद्दत से की चौदवी का चाँद हो या आफताभ हो जो भी हो खुद की कसम लाज़वाब हो ,मैंने पुछा चाँद से गाया गया तो आजा सनम मधुर चांदनी में हम तुम ;तो गली में आज चाँद निकला हो ये रात ये चाँद ,सब जगह चाँद ही मिला अपनी बात कहने को शिकायत करने को ,प्रेम का इजहार करने को या दिल टूटने की शिकायत करने को। 

बाकी आरे  आवा पारे आवा नदिया किनारे आवा जैसे गाने भी सुने थे बचपन में तो आजा रे चांदनी हमारी गली चाँद ले के आजा ,आधा है चन्द्रमा रात आधी , ऐ चाँद तेरी चांदनी की कसम ,मेरा चाँद मेरे पास है गाकर कैसा गरूर दिखा दिया चाँद को ही ,चाँद आहे भरेगा फूल दिल थम लेंगे ,चाँद एक बेवा चूड़ी की तरह ,,चाँद जाने कहा खो गया ,तो चाँद जैसे मुखड़े पर बिंदिया सितारा नजर आया और गा दिया किसी ने ,तो चाँद के पास जो सितारा है वो सितारा हंसी लगता है गाकर भी चांद को ही चिढा दिया  ,चाँद की कटोरी है रात ये चटोरी है ,चाँद ने कुछ कहा रात ने कुछ सुना  गाने मे अलग अंदाज से बात कही तो चाँद  निकलेगा जिधर हम न देखेंगे उधर क्या बात है इस गाने में , चाँद  निकला मगर तुम न आये का दर्द भी उड़ेल दिया प्रेमी ने गाकर ,चाँद सा मुखड़ा क्यों शरमाया , आंख मिली और दिल घबराया ,चाँद से पर्दा कीजिये कही चुरा न ले चेहरे का नूर ,चाँद सी महबूबा हो मेरी  कब ऐसा मैंने सोचा था जैसे गाने में चाँद ने खूब धूम मचाई तो माँ ने ;चंदा है तू मेरा सूरज है तू गाकर बच्चे को रिझाया ,चाँद को ढूढने सभी तारे निकल गए ,चंदा मांमाँ से प्यारा मेरा मामा ,चाँद वो चाँद किसने चुराई तेरी मेरी निदिया ,चंदा रे मेरे भैया से कहना बहना याद करे , चंदा रे चंदा कभी तो जमीन पर आ , चंदा रे जा मेरा सन्देश पिया से कहियो ,चंदा से मेरी पतिया ले जाना , चंदा तोरी चांदनी में जिया जला जाए ,धीरे धीरे चल चाँद गगन में , तो गगन के चंदा मत पूछ हमसे कहा हूँ मैं दिल मेरा कहा , जब तक जगे चाँद गगन में मेरे चाँद तुम सोना नहीं ,वो चाँद जहा वो जाए तू भी साथ चले जाना ,रात के मुसाफिर चंदा जरा बता दे मेरा कसूर क्या है तू फैसला सुना दे ,तुझे सूरज कहु या चंदा ,तुम  चन्द्रमा हो मैं धरा की धूल हूँ ,उस चाँद से प्यारे चंदा हो तुम आकाश पे जो मुस्कराता है, वो चाँद जैसी लड़की इस दिल पे छा रही है ,वो चाँद खिला वो तारे हसे ये रात अजब मतवाली है ,ये चाँद सा रोशन चेहरा ,ये वादा करो चाँद के सामने भुला तो न दोगे मेरे प्यार को ;,इस तरह बहन हो बेटी हो ,बेटा हो ,प्रेमी हो प्रेमिका हो ,प्रेम का प्रस्ताव हो ,प्रेम की शिकायत हो , प्रेम का ताना हो या दूरी का दर्द हो ,प्रेम की ख्वाहिश हो या दिल के टूटने का बयां हो इंसान ने सबमे या तो माध्यम बनाया चाँद को या उसी के सर पर धर दिया सब शिकायत और उलाहना । 

कवियताये हो ,फ़िल्मी गीत हो या अन्य भी साहित्य की रचनाये , पेंटिंग हो या फोटोग्राफी सबके आकर्षण का केंद्र और रचना का आधार रहा है चाँद और चाँद केवल इंसानो को ही नहीं प्रभावित करता रहा बल्कि चकोर भी उसका दीवाना है तो इतना बड़ा अथाह समुद्र भी चाँद के प्रेम में पागल है ,ज्योही चाँद थोड़ा पास आता है समुद्र उछल पड़ता है उसे पाने को इस बात की परवाह किये बिना की उसके ज्वार में न जाने कितनो का क्या हो जायेगा । दूसरी तरफ वही इंसान चन्द्रमा पर पैर रख आया और उस दिन मेरे मन में आया था की अब चाँद की पूजा करने वाले क्या करेंगे क्योकि वो भगवान् नहीं रहा अब ,जो उसे देख कर रोजा तोड़ते है और जो उसे छननी में देख कर और पति को देख कर व्रत तोड़ती है वो अब क्या करेंगी पर मेरा डर निर्मूल निकला सब उसी तरह चल रहा है। सोचा मैने ये भी था की अब प्रेम कैसे होगा और चाँद कैसे मदद करेगा जब उस पर बस्ती बस जाएगी तो आजकल चंदा पर नए गाने और कविताये दिख नहीं रही है ,शायद साहित्य को विज्ञानं ने थोड़ा भ्रम मे डाल दिया है ,विज्ञानं भी जरूरी है पर ये क्या की सारी कल्पनाओ पर धूल डाल  देता है जबकि कल्पनाये ही विज्ञानं का आधार है पर ! ये विज्ञानं और साहित्य की लड़ाई पुरानी है और चलती ही रहेगी पर भावनाओ बिना ,प्रेम बिना इंसान क्या ?

तो मैं तो कल्पना के साथ हूँ ,भावना के साथ हूँ प्रेम के साथ हूँ ,विज्ञानं मेरे लिए प्रयोग की चीज है और प्रेम तथा भावना जीने की चीज है कल्पना जीने लिए भविष्य की ताकत और प्रेरणा की चीज है । तो चाँद मैं तो तुम्हे वैसे ही देखूंगा जब मौका मिलेगा और कोई मुफ्त में घर देगा तो भी तुम्हारी ऊपर वाली बस्ती में मैं तो नहीं जाऊंगा ,मैं नहीं म
मानता की बुढ़िया चर्खा  नहीं कात रही है ,मैं नही मानता की गरीब की रोटी की आस नहीं हो तुम ,मैं नहीं मानता की बिना छत  फुटपाथ और मैदान मे सोने वालो  का सहारा नहीं हो तुम ,मैं नहीं मानता कि बात नहीं करते हो तुम ,अभी बात ही तो कर रहा हूँ चाँद से मैं । और फोटो खींचने के पहले टहलना छोड़कर निहारता रहा मैं अपने बचपन के दोस्त चाँद को देर तक और बाते भी करता रहा जिसमे सवाल और जवाब दोनों मेरे ही मन के थे।  क्या आप चाँद को देखते है ? नहीं तो निकलिए घरो से और जैसे सूरज के सामने पीठ कर बैठते है स्वस्थ रहने को वैसे ही चांद  को सामने से निहारिये वैसे भी आप चाँद के लिए खीर बना कर रख देते है न पूरी रात की चाँदनी उतर आएगी उस खीर में और वो अमृत हो जाएगी बीमारियों से मुक्ति दिलाएगी तो चाँद को खुद ही निहार लीजिये रोज या जब दिखे खूब देर तक और अपनी शिकायत ,अपना दर्द सब उसी से कह दीजिये अकेलापन परेशांन नहीं करेगा और  आप आत्महत्या का विचार  क्यों लाते है और क्यों सोचते है की आप ही दुखी है ,बस चाँद की तरफ देखिये उससे प्रेम करिये और उसी से शिकायत फिर चादर तान कर रात के लिए सो जाइये ताकि सुबह जग सके नई ऊर्जा ,उत्साह और संकल्प के साथ।  अच्छा चाँद अभी के लिए विदा कहता हूँ ,कल फिर मिलेंगे।