#जिन्दगी_के_झरोखे_से--
जब कांग्रेस के बड़े नेता #अर्जुन_सिंह ने मेरे घर पहला फ़ोन लगवाया और #वीर_बहादुर_सिंह ने दूसरा ---
देश के जाने माने डाक्टर जो उस वक्त पद्मश्री और वी सी राय अवार्ड से सम्मानित थे डा सी पी ठाकुर कांग्रेस के लोक सभा सदस्य चुने गए थे जो बाद मे भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार मे केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री बने , बिहार भाजपा के अध्यक्ष भी रहे । डा साहब की सरलता ऐसी की पूरे परिवार बेटी दामाद सबसे परिचय करवाते थे और मैं भी उनके घर परिवार सहित जाता था ।हा जब वो भाजपा मे चले गए तो बहुत दिन मुलाकात नही हुई ।एक दिन उनके मंत्री वाले घर के सामने से जा रहा था तो अंदर चला गया ।वो बाहर ही खड़े लोगो से मिल रहे थे ज्योही मेरे ऊपर निगाह पड़ी तुरंत स्टाफ से मुझे अंदर बैठाने को कहा और फ़्री होकर आये तो पहली शिकायत दाग दिया की आप इतने दिन बाद क्यो मिले ? आते क्यो नही है और कोई काम हो तो अधिकार के साथ कह दिया करिये ।जब पता लगा की कोई काम नही तो बोले की पेठा नही मिला बहुत दिन से ।मेरा मिलने का प्रोग्राम ही नही था पर झेप कर और जल्दी फिर आने को कह कर निकल गया था ।
मेरा उनसे एक अन्य सांसद जो रिश्ते मे मेरे मामा लगते थे उनके घर परिचय हुआ था और एक ही परिचय मे संबंध बहुत प्रगाढ हो गए उनके अपनेपन के कारण ।
मेरी पत्नी को कुछ तकलीफ चल रही थी जिसका निदान आगरा मेडिकल कालेज के सारे बड़े प्रोफेसर भी नही कर पाये थे । मैं डा सी पी ठाकुर से उसी के लिए मिलने गया उनकी राय लेने और जरूरत हो तो उनके सहयोग से एम्स मे दिखाने के लिए ।
मैं उनके घर पहुचा ही था की उनको मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस के दिग्गज नेता जो उस वक्त केन्द्र मे संचार मंत्री थे उनका फ़ोन आ गया की मिलने आ जाईये । ड़ा साहब ने अपने क्षेत्र के किसी काम के लिए समय मांगने को नोट करवाया हुआ था । डा साहब बोले कि राय साहब चलिये अर्जुन सिंह जी से मिल कर आते है ।हम लोग अर्जुन सिंह जी के घर पहुचे और जब उनके ऑफिस मे मिलने पहुचे तो डा साहब ने मेरा भी परिचय करवाया और पता नही क्यो अपना रिश्तेदार बताया । ड़ा साहब ने पहले से तैयार अपने कागज दिये और अपनी बात कहा, तभी चाय आ गई ।
अर्जुन सिंह जी ने अचानक मुझसे पूछा की आप के घर फ़ोन है या नही ? मैने बोला की नही है और जरूरत भी नही है तो उसका खर्च क्यो उठाया जाये । उस जमाने मे फ़ोन इने गिने लोगो के यहा होता था और आप को चाहिये तो पैसा जमा कर तीन तीन साल का इन्तजार होता था । यानी फ़ोन लक्जरी था ।
बाहर कही फ़ोन करना अगर जरूरी हुआ तो शहर के बड़े तारघर जाकर बुक करा कर पूरे पूरे दिन क्या रात भी इन्तजार करना पडता था परिवार को नम्बर से और बाकी लोग भी नम्बर लगाये बैठे होते थे ।फ़ोन यानी ट्रंककाल मिल गया तो बडी उप्लब्धी होती थी । बहुत लोगो की काल पूरी ही नही होती कि कट जाती थी या आवाज नही आती और जोर से बोलना पडता था । बडा मजेदार दृश्य होता था ।
खैर अर्जुन सिंह जी ने कहा की नही पैसा नही लगेगा आप के घर फ़ोन लग जायेगा ,जो उस वक्त मेरी समझ मे नही आया ।उन्होने ड़ा साहब से कहा की वो अपने पैड पर या न हो तो एक कागज आगे बढाया की इस पर इनका नाम और पता लिख दीजिये ।ड़ा साहब ने लिख दिया तो उन्होने बजर बजा कर अपने ए पी एस आर के सिंह को बुलाया और उनसे मेरा परिचय कराते हुये कहा की वो कल मुझे संचार भवन मे मिल ले और कमेटी वाली चिट्ठी हाथ मे देकर उसका प्रोसेस मुझे बता दे । अगले दिन मैं संचार भवन गया तो नीचे नाम लिखा था और नीचे से एक चपरासी मुझे आर के सिंह के कमरे मे छोड गया जो अर्जुन सिंह जी के बगल मे ही था । मेरे लिए चाय आई तब तक किसी को सिंह साहब ने फ़ोन किया और वो एक लिफ़ाफ़ा आकर दे गया ।आर के सिंह ने मुझे बताया की मुझे मंत्री जी ने आगरा की टेलिफोन एडवाईजरी कमेटी का सदस्य नियुक्त कर दिया है जिसमे मुझे फ़्री फ़ोन मिलेगा और 1200 काल महीने की फ़्री होगी ।इस कमेटी मे होने के नाते लोगो की समस्याये दूर करवाना तथा विभाग को सुझाव देना मेरा काम होगा जो मैं कभी भी कर सकता हूँ पर हर दो या तीन महीने मे कमेटी की बैठक होगी उसमे भी लिख कर दे सकता हूँ । बैठक मे भाग देने का टी ए डी ए भी शायद होता था । उन्होने ये भी कहा की मुझे आगरा पहुचने पर टेलिफोन के डिस्ट्रिक्ट मैनेजर (डी एम टी) को लिख कर देना होगा की मैं इस नियुक्ति को स्वीकार करता हूँ ।
आगरा पहुचा और वही किया मैने और अगले 24 घंटे मे पता नही कितने दूर से तार खींच कर मेरा लाल रंग का फ़ोन लग गया जिसका नम्बर था 63544 । (फ़ोन और उसके विभाग पर अगली पोस्ट मे लिखूंगा )
कुछ दिनो बाद कमेटी की बैठक हुई और पहली ही बैठक मे टेलिफोन की हालत पर मैं खूब बोला जो सत्ता पक्ष के सांसद और विधायक लोग जो उसके सदस्य थे उनको बुरा लगा । बुरा तो ये भी लगा की विपक्ष का आदमी कांग्रेस सरकार मे इस कमेटी का सदस्य कैसे बन गया । करीब 1 साल मैं टी ए सी सदस्य रहा और अर्जुन सिंह जी संचार मंत्री नही रह गए तो कांग्रेस के सांसद और दो विधायको ने नये संचार मंत्री को लिख कर दिया की मुझे हटा दिया जाये और थोडे दिन बाद मुझे कमेटी से हटा दिया गया पर नियम यह था की यदि मैं फ़ोन बरकरार रखना चाहता हूँ तो लिख कर दे दूँ और नियम अनुसार पैसा जमा कर दूँ फ़ोन लगा रहेगा ।तब तक फ़ोन जरूरत बन गया था और अपने ही नही तमाम जानने वालो को इमर्जेंसी मे काम आ रहा था तो पिता जी बोले की फ़ोन का पैसा जमा कर दो और अब इसे रखा जाये ।
कुछ समय या साल बाद केन्द्रीय मंत्री कल्पनाथ राय जी की बेटी की शादी पड़ गई जिसमे उन्होने मुझे भी आमंत्रित किया था ।उनके निवास 36 औरंगजेब रोड पर ही शादी का कार्यक्रम था ।मैं दिल्ली पहुचा और भाई विकास नारायण राय आई पी एस जो उस वक्त प्रधान मंत्री की सुरक्षा मे एस पी जी मे आ गए थे नेताजी नगर के उनके घर पर रुका और शाम को तैयार होकर कल्पनाथ राय जी के निवास पर पहुचा । कल्पनाथ राय जी से मिला तभी वहा केन्द्रीय शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री ललितेश्वर प्रसाद शाही जी आ गए ।शाही से से मेरे बहुत अच्छे सम्बंध थे और मेरी पत्नी के एक बड़े भाई जो आई ए एस अधिकारी थे वो उनके पी एस भी थे ।राय साहब को प्रणाम कर हम दोनो लोग थोडा पीछे की लाइन मे जाकर बैठ गए ।उत्तर प्रदेश के बहुत ही प्रभावशाली मुख्यमंत्री रहे वीर बहादुर सिंह जी हटा दिये गये थे और केन्द्र मे संचार मंत्री बना दिये गए थे । राजीव गांधी उनसे कुछ नाराज चल रहे थे । इसी बीच वो आये और कल्पनाथ राय जी मिलकर पीछे मेरे बगल वाली सीट पर बैठ गए क्योकी उसी समय एलर्ट हो गया था की प्रधान-मंत्री राजीव गांधी निकल चुके है और यहां पहुचने वाले है । ललितेश्वर प्रसाद शाही साहब ने मुझसे पूछा की वीर बहादुर जी से परिचय है या नही ।मैने कहा की इन्हे कौन नही जानता है पर मैं कभी मिला नही हूँ , तो उन्होने वीर बहादुर सिंह से मेरा परिचय करवाया । नाम के आगे राय सुनकर वीर बहादुर सिंह जी ने पूछा की बंगाली या उत्तर प्रदेश के ? मेरा जवाब सुनकर पूछा कौन जिला और कौन तहसील और क्या करता हूँ इत्यादि ।सब जवाब दे दिया तो वो मुझसे भोजपुरी मे बात करने लगे ।
तभी मुझे पता नही क्या सूझा की मैने अपना टेलिफोन कमेटी का बनने और हटने का किस्सा उनको सुना दिया , तो बोले की ये कहा लिखा है की सिर्फ सत्ता पार्टी वाले ही कमेटी मे होंगे ,कोई भी जिम्मेदार नागरिक बन सकता है ।भोजपुरी मे हम लोगो के पीछे उनके सहायक बैठे थे उनसे उन्होने कहा की इ हमरे घर क हऊऐ ,एन कर नाम पता नोट कईला और कल ही इनके टेलिफोन कमेटी कै मेबर बनायके चिट्ठी दे दिहा अगर इ रुके तौ नाही तो कल ही डाक मे भेज दिहा ।
और मैं दुबारा टी ए सी मेम्बर बन गया और एक और फ़ोन लग गया मेरे घर 72626 जिसका नम्बर था ।
अफसोस की उस रात की फ्लाइट से विदेश गए वीर बहादुर सिंह जी का विदेश मे ही निधन हो गया और कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की अपनी जमीन खो दिया ।
काश वो जिन्दा रहे होते तो उस जिन्दादिल नेता से मैं फिर जरूर मिला होता और फिर पता नही क्या राजनीतिक स्थिति रही होती ।
पर ये तो काश ही रह गया ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें