बुधवार, 12 अक्तूबर 2022

पग यात्रा ,पद यात्रा और पथ यात्रा और राहुल गांधी ।

पग यात्रा ,पद यात्रा और पथ यात्रा और राहुल गांधी ।
पद यात्रा देती है पद प्रतिष्ठा और पहचान ।

भारत क्या पूरी दुनिया मे अनंत काल से पग यात्रा चल रही है ।इंसान रोज अपने पैरो पर चलता है अपने कामो से उद्देश्य कुछ भी हो यूँ ही टहलना ,किसी भी काम से जाना , पूजा पाठ के लिये या नौकरी और व्यापार के लिये जाना पर पग यात्रा व्यक्तियो के स्वयं तक सीमित होती है ।

पद यात्रा का अपना इतिहास है वो अमरीका मे मार्टिन लूथर किंग के नेतृत्व मे कालो के अधिकारो के संघर्ष के लिये हुयी हो जब 1960 के दशक मे वो लड़ रहे थे और 1965 मे सेल्मा अल्बामा से मोन्टगोमरी तक यात्रा निकली तथा अन्ततः अफ्रीकी अमरीकी नागरिको के साथ न्याय हुआ ।  भारत मे अभिनेता सुनील दत्त ने आतंकवाद खिलाफ पद यात्रा किया तो जापान जाकर परमाणु हथियार के खिलाफ । चन्द्रशेखर जी की भारत यात्रा भी एक दौर मे देश के उत्सुकता जा कारण बनी जब उन्होने कन्याकुमारी से दिल्ली तक की यात्रा किया , यद्दपि उसी समय इन्दिरा जी हत्या ने उनकी यात्रा का असर फीका कर दिया पर उनको नेता के रूप मे राष्ट्रीय फलक पर स्थापित कर दिया जिसके कारण वो आगे चल कर प्रधानमंत्री बने ।आन्ध्र प्रदेश मे वाई एस राजशेखर रेड्डी ने पद यात्रा से सत्ता हासिल किया तो उनके पुत्र जगन रेड्डी को भी सत्ता दिलाने का काम किया पद यात्रा ने और चन्द्र बाबू नायडू ने भी ऐसे ही सत्ता हासिल किया ।सीमित मामलो मे इन्दिरा गाँधी के काम आई ऐसे यात्रा 1977 के बाद तो 2017 मे  दिग्विजय सिंह की यात्रा मध्य प्रदेश में कांग्रेस के काम आयी । ऐसी तमाम छोटी बड़ी पद यात्राए होती रही है। अब राहुल गांधी पद यात्रा पर निकले है ।
पद यात्राओ ने हमेशा अपने यात्री को पद प्रतिष्ठा और पहचान दिया है तो राजनीतिक पद यात्राओ ने सत्ता दिया है । यद्दपि सत्ता तो रथ यात्राओ ने भी दिया पर उन्होने साथ ही हिंसा , विध्वस और नफरत भी दिया तथा उनसे मिली सत्ताए लोगो के पैरो के छाले देखने तथा भूखे पेटो की आवाज सुनने मे नाकाम रही क्योकी उनका पाला ही नही पड़ा और वो केवल एकल प्रवचन करते हुये जनता को अपने मनचाहे शोर और स्वार्थ मे डुबोते हुये गुजर गयी ।
जबकि पथ यात्रा विचार यात्रा होती है जो परिवर्तन कारी होती है और गौतम बुद्ध से लेकर महत्मा गाँधी होते हुये विनोबा भावे तक ने अपने अपने स्तर की पथ यात्राए ही किया वैसे अमरीका मे मार्टिन लूथर किंग की यात्रा को भी इसमे शामिल किया जा सकता है ।जहा सिद्धार्थ ने राजपाट छोडा और महत्मा बुद्ध बन गये और एक ऐसा पथ बनाया जिसका अनुगामी विश्व का एक बडा हिस्सा हो गया वही महत्मा गाँधी की चम्पारन से शुरु हुयी यात्रा 1930 के डांडी मार्च तक जाते जाते पूरे भारत को सन्देश दे चुकी थी और जन जन  को गांधी जी से जोड़ चुकी थी और इन यात्राओ ने  अजेय सत्ता को बेदखल ही नही किया बल्कि पूरे विश्व को अहिंसा और सत्याग्रह नामक एक नया और बहुत असरदार हथियार दे दिया । तो विनोबा भावे ने अपनी सीमित यात्रा मे लाखो बेघरो को घर और भूखो को रोटी का साधन दिलवा दिया उन लोगो से जिनके पास ज्यादा था ।
इस वक्त भारत ही नही बल्कि दुनिया की निगाह राहुल गांधी की यात्रा पर है ।राहुल की यात्रा भी इतनी चर्चित नही होती और उत्सुकता पैदा नही करती अगर उन्होने सिरे से सारे पद नही लेने और सत्ता के प्रति निर्मोही होने का मजबूत एलान नही किया होता और भारत के जन सरोकारो से जुडे मुद्दो को धारदार तरीके से उठाते हुये हर तरह की टूटन के खिलाफ और हर तरह के जुडाव के लिये खुद को झोंक नही दिया होता ।अगर एक यात्रा पूरी कर राहुल गाँधी भी काम पूरा किये बिना अपनी पुरानी जिन्दगी मे जाकर रम जाते है तो हो सकता है इसका तत्कालिक लाभ कांग्रेस की मिल जाये और सत्ता भी हासिल हो जाये पर ये बाकी पद यात्राओ की श्रेणी मे से ही एक होकर रह जायेगी और फिर बहुत दिनो के लिये पद यात्राओ का आकर्षण खत्म हो जायेगा ।पर जैसा की दिख रहा है राहुल गाँधी सत्ता के मोह से दूर अपने बौद्धिक चिंतन के साथ एक बडा इरादा और मजबूत समर्पण लेकर चलते हुये दिख रहे है । अगर ये यात्रा अन्तिम नही बल्कि बापू की तरह परिणाम हासिल करने तक निरन्तर चलती रही और देश के कोने कोने तथा जन जन को उद्वेलित कर जोडने मे कामयाब रही तो फिर ये पद यात्रा नही बल्कि पथ यात्रा हो जाएगी । समय इस बात का जवाब देगा की राहुल पद यात्रा तक सीमित रहते है या पथ यात्रा पर चल पडते है क्योकी उनको पद मिल रहा था उन्होने ठुकरा दिया और पहचान की उन्हे जरूरत नही ,हा उस प्रतिष्ठा के लिये वो खुद को तपा सकते है जो पथ यात्रा से ही मिलती है ।
इसका उत्तर केवल आने वाला समय दे पायेगा ।


बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के आगे पीछे

24 साल के बाद अन्ततः राहुल गाँधी की जिद की वजह से इंडियन नेशनल कांग्रेस का नेहरू गांधी  परिवार के बाहर का अध्यक्ष बनने जा रहा है ।राहुल गांधी ने पिछला चुनाव हार जाने पर अचानक कांग्रेस अध्यक्ष पद से स्तीफा दे दिया था और साथ ही ये भी घोसित कर दिया था कि अब वो अध्यक्ष नही बनेगे और ना ही परिवार का कोई भी अध्यक्ष बनेगा ।तब से अंतरिम व्यवस्था मे सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष के रूप मे काम देख रही थी ।नये अध्यक्ष के चुनाव की चर्चा शुरु हुयी तो फिर तमाम प्रदेश से कांग्रेस से राहुल के अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव पास कर दिया और उन्हे तैयार करने को बहुत दबाव भी बनाया पर राहुल अपनी बात पर अडिग रहे और अन्ततः सोनिया जी और जितेन्द्र प्रसाद के चुनाव के बाद पहली बार विधवत चुनाव हो रहा है । इस बार भी गहलौत से लेकर दिग्विजय सिंह तक का एपिसोड हुआ तो मुकुल वासनिक से लेकर मीरा कुमार तक का नाम चला पर अन्ततः दक्षिण के ही दो नेता राज्यसभा मे विपक्ष के नेता मलिकार्जुन खड़गे और संयुक्त राष्ट्र संघ मे रहे शशि थरूर के बीच चुनाव हो रहा है ।यद्द्पि प्रकट तौर पर चुनाव को स्वतंत्र बताया जा रही है पर कही न कही नेतृत्व का पलड़ा खड़गे जी की तरफ झुका लग रहा है ।
खड़गे जी कर्नाटक के दलित नेता है और बहुत अनुभवी है तो थरूर विद्वान और युवा वर्ग मे लोकप्रिय है ।फैसला जो होना है वो सबको पता है पर ये राजनीतिक पण्डितो को समझ मे नही आ रहा है की पंजाब की भांति राजस्थान की अच्छी भली चलती सरकार और राजनीति को क्यो छेडा गया जबकि गहलौत पहले ही दिन से दिल्ली आने के इच्छुक नही थे और खड़गे जी राज्यसभा मे नेता प्रतिपक्ष थे ही जिसके कारण उनका कैबिनेट मंत्री का स्तर था तो उनको बिना हटाये देश भर मे दलित नेता के रूप मे दौडाया जा सकता था प्रोटोकोल के साथ और पार्टी उनका इच्छित राजनीतिक उपयोग कर सकती थी ।
जबकि राजनीति पर पैनी निगाह रखने वालो का मानना है की इस माहौल मे मीरा कुमार सबसे अच्छी कांग्रेस अध्यक्ष साबित हो सकती थी क्योकि वो बाबा साहेब के बाद सबसे बड़े दलित नेता बाबू जगजीवन राम की बेटी है ,महिला है , दलित है , पूर्व आई एफ एस अधिकारी है , लोकप्रिय रही पूर्व लोकसभा अध्यक्ष है जिनकी तारीफ तब भाजपा के नेता भी करते थे और राष्ट्रपति के चुनाव मे विपक्ष की प्रत्याशी रही थी ,उनका पिछड़े वर्ग के कुशवाहा बिरादरी मे विवाह हुआ है । कांग्रेस का अध्यक्ष होते ही उनके प्रधानमंत्री होने की सम्भावना का प्रचार होते हो देश भर के दलितो मे सदेश जाता कि पहली बार दलित प्रधानमंत्री हो सकता है ,बिहार गौरव का सवाल आता तो उत्तर प्रदेश मे मायावती के भाजपा के पक्ष मे खडे दिखने के कारण चौराहे पर खड़ा भ्रमित दलित वर्ग अपनी पुरानी पार्टी की तरफ मुड़ जाता और ऐसा ही असर पूरे देश मे दिखता यदि कांग्रेस उनकी ठीक से ब्रांडिंग करती । देश की आधी आबादी भी प्रधानमंत्री के सपने से जुड़ती ।इसके अलावा जब भी कांग्रेस या मीरा कुमार पर हमला होता वो एक स्त्री पर , एक दलित पर और एक शिक्षित पर हमला बता कर जो आरोप पहले से संघ पर है इन लोगो के विरोध का वो और मजबूती से वर्तमान सत्ता को कटघरे मे खड़ा करता । चूक तो हुयी है और तीन चूक एक साथ हुयी है ।
परंतु फिर भी यदि खडगे जी को जीत के बाद कांग्रेस सर पर उठा लेती है तो राहुल गाँधी की दक्षिण मे बहुत सफल यात्रा के परिणाम स्वरूप और अगर खडगे जी भी अति सक्रीय तथा आक्रमक रहे तो उसका फायदा कांग्रेस पहले दक्षिणी राज्यो मे तो उसी तरह उठा सकती है जैसे 1977 मे पूरे उत्तर भारत मे हार के बावजूद केवल दक्षिण भारत से 154 सीट जीत गयी थी ।
देखना ये होगा की उत्तर भारत मे अगले चुनाव मे कांग्रेस के इस दलित कार्ड से क्या फर्क पडता है ।महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड जहा गठबंधन की नाव पर पार करना चाहेगी कांग्रेस ,वही उत्तर प्रदेश जो सबसे ज्यादा सीट वाला प्रदेश है और कांग्रेस का मुख्य आधार रहा है वहा हताशा और आत्म समर्पण वाली स्थिति रहेगी और कोई नई कूटनीतिक तथा आक्रमक नीति बनेगी । गुजरात के विधान सभा चुनाव वहा के बारे मे संकेत देगे तो बंगाल और उड़ीसा पर अभी कांग्रेस का रवैया देखना होगा,  जबकि मध्य प्रदेश, राजस्थान ,दिल्ली , हरियाणा , पंजाब , हिमाचल , उत्तराखंड और कश्मीर इत्यादि मे कांग्रेस स्वाभाविक तौर पर कुछ बढता हासिल कर सकती है पर इसके लिये इन प्रदेशो की कांग्रेस की राजनीति और राहुल गान्धी के इधर की यात्रा पर निगाह रखनी होगी और तब तक इन्तजार करना होगा ।