#जिंदगी_के_झरोखे_से
#जब_जातिवाद_का_पहला_मज़ा_चखा_था_फिर_भी_नहीं_बदला_खुद_को
भाग 1-छात्र आंदोलन
जातिवाद के हमले का पहला मजा छात्र जीवन में चखा मैंने जब एक खास जाति के राजा जो राजनेता थे और प्राचार्य तथा शिक्षको ने मुझे वो चुनाव हरा दिया था जो मेरे सतत आंदोलनों और जेल यात्रा के कारण हुआ था :::
70 के दशक से लेकर 80 के दशक का प्रारंभ था वो जब वो आंदोलन छेड़ रखा था मैने की वर्षो से बंद छात्र संघ के चुनाव फिर शुरू करवाए जाए । हम मांग करते , कालेज बंद करवाते , हड़ताल होती ,पुलिस का लाठीचार्ज होता बस एक चीज नहीं होती वो था छात्र संघ चुनाव । वादे हर बार होते पर सत्ता और प्रशासन के वादे और ऊंट का पाद एक बराबर माना जा सकता है ।
ये 80 के दशक का प्रारम्भ था जब छात्र हित की बहुत सी मांगे मुझे परेशान किए हुए थी जिसमे मुख्यतः आई ए एस पी सी एस, मेडिकल और इंजीनियरिंग की विशेष कोचिंग क्लासेस , गरीब छात्रों की फीस माफी , शिक्षण कार्य और क्लासेस की अनिवार्यता , होटल की बदहाली से मुक्ति , छात्राओं के लिए हॉस्टल तथा बाथरूम सहित रेस्टरूम बनाना , छात्रों के लिए साफ बाथरूम, हॉस्टल में खाने की अच्छी व्यवस्था तथा उसका रेट, लाइब्रेरी में अच्छी पुस्तकों का सवाल तथा जो विषय कालेज में नही थे उनको खोलना , रोजगार परक शिक्षा की मांग और या तो कम की गारंटी या बेरोजगारी भत्ता की मांग इत्यादि ।
आए दिन मैं कालेज का घंटा बजा देता और कालेज के बीचोबीच लाइब्रेरी के बरामदे में जो काफी ऊंचा था सामने खड़ा हो जाता ।पहले शिक्षक और फिर छात्र छात्राएं बाहर निकल कर देखते और मुझे वहा खड़ा देख कर आदरणीय शिक्षक अपने शिक्षक कक्ष में चले जाते और छात्र छात्राएं जिनमे मेरे भाषण का बहुत क्रेज था भारी संख्या में सामने आकर खड़े हो जाते । जब इत्मीनान हो जाता की सभी कक्षाएं छूट गई है तब मेरा कोई साथी एक दो बात कह मुझे बोलने को आमंत्रित करता और फिर मेरा विस्तार से भाषण शुरू हो जाता ।
मैं वो सारी बात बताता की आज की हड़ताल क्यों और कक्षाएं बंद करने का उद्देश्य क्या है । विस्तार से सारी बात कहने के बाद हर बार बताता की जुलूस कहा तक जाएगा विश्वविद्यालय या जिलाधिकारी के ऑफिस । उसी समय ये भी बता देता की चलना कैसे है ,आगे कौन चलेगा ,कौन बीच में और कौन पीछे । सड़क पर हमारा शांतिपूर्ण व्यवहार होगा और हम एक किनारे चलेंगे और वापस आयेंगे । साथ ही हमारे नारे क्या होंगे तथा डी एम या कुलपति से बात करते वक्त कौन कौन बोलेगा तथा कैसे और क्या बात होगी तथा किसी बाहरी ताकत या पुलिस के उकसावे में हमे नही आना है इत्यादि ।
इतना शराफत का तथा एक बार को छोड़कर हमेशा शांत आंदोलन करने के बावजूद इधर मेरा जुलूस निकला और उधर विश्वविद्यालय जो या डी एम कार्यालय भर्ती पुलिस और पी ए सी तैनात हो जाती । मेरे जुलूस से पुलिस आमतौर पर दूरी बना कर रखती थी ।
पर उस बार हम जुलूस लेकर आर बी एस कालेज से निकले जिसमे भारी संख्या में छात्र और कुछ छात्राएं भी थी ,जुलूस सेंट जॉन्स कालेज पहुंचा और मेरे निर्देश के अनुसार कालेज के बाहर ही रुक गया । मैं अकेला कालेज के अंदर गया और प्राचार्य के ऑफिस के पास लटके घंटे को बजा दिया । मुझे देखते ही प्राचार्य ने छुट्टी का ऐलान कर दिया । विशेस बात ये थी की इस कालेज से न के बराबर छात्र किसी आंदोलन या जुलूस में हिस्सा बनते थे । छुट्टी होते ही या तो घर निकल लेते या छात्र छात्राएं कालेज का कोई कोना पकड़ लेते अन्यथा रेस्ट्रा या सिनेमा का रुख करते ।
फिर जुलूस आगरा के सबसे बड़े कालेज आगरा कालेज पहुंचा । इस कालेज की विशेषता ये थी की यहां सभी विचारधारा के छात्र नेता बहुत थे पर अकेले आते थे और बहुत क्रांतिकारी भाषण देते थे पर किसी के भी साथ दस छात्र भी नही होते थे ।
इस बार यहां के प्रोक्टर और प्राचार्य में किसी कारण से जिद पकड़ लिया की चंद्र प्रकाश राय ( मेरा छात्र जीवन का नाम ) को अंदर नही आने देंगे और न हड़ताल ही होने देंगे ।चूंकि यहां के छात्र नेता छात्रों से जुड़े नही थे तथा मेरी तरह छात्रों को सब समझा कर विश्वास में लेने में विश्वास नहीं करते थे इसलिए छात्रों का समर्थन नहीं ले पाते थे ।
कालेज का गेट बंद था बाहर मेरी भारी भीड़ नारे लगा रही थी और मैं गेट पर चढ़ कर चिल्ला रहा था पर छात्र गेट से बहुत दूर रोक दिए गए थे जिनतक मेरी आवाज और बात नही पहुंच रही थीं फिर भी सड़क के दूसरी तरह हास्टल में मौजूद मेरे प्रशंसक कुछ छात्र आकर जुड़ गए और वो उसी कालेज का होने का हवाला देकर गेट खोलने की मांग करते हुए कुछ गेट पर चढ़ गए और कुछ गेट को हिला कर तोड़ने की कोशिश करने लगे । यद्धपि मैने ऐसा करने से रोकने की कोशिश किया पर नाकामयाब रहा । मेरा अनुशासन सिर्फ मेरे साथ आए छात्रों पर लागू हो पाया । इस बीच सिटी मजिस्ट्रेट पांडे जी तथा सी ओ सिटी राज बहादुर सिंह के साथ भारी फोर्स प्राचार्य के बुलाए पर आ गया । सिटी मजिस्ट्रेट मुझसे बोले की आप हमेशा शांतिपूर्ण आंदोलन करते है इसबार भी शांति से लेकर कलेक्टरी जाकर ज्ञापन सौप वापस चले जाइए । पर इस बार मैंने जिद पकड़ लिया की कालेज में में अकेला जाऊंगा और अंदर मौजूद छात्रों से बात करूंगा फिर जो मेरे साथ जाना चाहे उन्हें जाने दिया जाए वरना मैं अपने साथियों के साथ आगे बढ़ जाऊंगा ।
बात नही बनी और आगरा कालेज के छात्र जो गेट को बुरी तरह हिला रहे थे लगता था की गेट तोड़ देंगे उनसे पुलिस का टकराव बढ़ गया और फिर भारी लाठीचार्ज हो गया । सिटी मजिस्ट्रेट और सी वो दोनो मेरे पास आकर खड़े हो गए की कही मेरे ऊपर प्रहार न हो जाए वरना बात ज्यादा बिगड़ जाएगी । फिर भी जिस छात्र को मैं पीटता देखता उसी को बचाने लपक पड़ता और मेरे साथ दोनो अधिकारी भी ,वो छात्र बच जाता पर इतनी भीड़ और लाठचार्ज से में कितनो को बचा पाता । काफी छात्र भाग गए पर काफी घायल हो गए और कुछ ज्यादा घायल हो गए जिनका पुलिस से ज्यादा टकराव हुआ था ।।लाठीचार्ज बंद हुआ और ज्यादा घायल छात्रों को अस्पताल तथा बाकी को गिरफ्तार कर थाने ले जाया गया पीछे पीछे मैं और अन्य कुछ नेता भी थाने पहुंच गए ।
शाम को 6 बजे हमे गिरफ्तार करने की सूचना दी गई और पुलिस दबाव में नियम तोड़ कर उसी वक्त जेल भेजा गया था जब खाने की कोई व्यवस्था नहीं था ।कुछ खाने की व्यवस्था हुई और एक पूरी बैरक कैदियों से खाली करवा कर हमोगो को उसके हवाले कर दिया गया ।
एक पूर्व सांसद साथी जो जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री थे और उस समय दलितों के सवाल पर बहुत ज्यादा मुखर थे जो हम लोगो के समर्थन थाने आ गए थे उनको भी गिरफ्तारी की सूची में नत्थी कर दिया गया ।
भाग 2: जेल की जिंदगी और जेल का सच
शायद वो 20 तारीख थी हम शाम को जेल पहुंचा दिए गए थे । मेरे परिवार ने शाम को ही फोन से दिल्ली राजनारायण जी यानी देश भर के नेता जी यानी इंदिरा गांधी को कोर्ट और वोट दोनो में हराने वाले नेता जी को सूचित कर दिया की में गिफ्तार हो गया हूं और जेल भेज दिया गया हूं ।
21 तारीख को सुबह ही राजनरायण जी आगरा में जेल के फाटक पर थे ।स्थानीय प्रशासन को पता लगा तो उसके हाथ पैर फूल गए । राजनरायण जी के साथ प्रशासन जेल में हाजिर था और कुछ अधिकारी नेता जी से कही का रिश्ता निकाल कर और कुछ किसी और तरह का संपर्क निकाल कर उनको सामान्य बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे ( ऐसे ही थे वो नेता जी , वन मैंन आर्मी ,अकेले जिधर निकल जाए पूरे शासन और प्रशासन की सांस फूली रहती थी की किसी तरह वो शांति और सद्भाव से प्रदेश से अथवा जिले से चले जाए । ऐसे ही नहीं उनपर आजादी की लड़ाई में अंग्रेजो ने उस वक्त जिंदा मुर्दा पर 5000 इनाम रखा था , ऐसे ही नहीं वो इंडिया गांधी जैसी महान नेता और लौह महिला से लोहा ले बैठे और अंत में कोर्ट तथा बोट दोनो मैदान में हरा भी दिया ये अलग बात है की उसके बावजूद इंदिरा जी से उनके व्यक्तिगत रिश्ते बहुत ही अच्छे बने रहे । ) । प्रशासन इस चक्कर में था की नेता जी बस हा कह दे और तुरंत सबको जेल से रिहा कर पिंड छुड़ाया जाए पर नेता जी छुड़ाने तो आए नही थे बल्कि देखने आए थे की हम जेल जाकर परेशान तो नही है और ताकत तथा जोश देने आए थे और चूंकि पुराने जमाने से असली वाले सोशलिष्ट जो "जेल फावड़ा वोट "की बात करते थे और "एक पांव रेल में एक पांव जेल में " में विश्वास करते थे वो जेल को दूसरा घर और पाठशाला मान कर प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल करते थे एकाग्र होकर । राजनरायन जी भी इसी इरादे से आए थे की काफी दिन बाद छात्र जेल में आए है तो यहां से प्रशिक्षित समाजवादी कार्यकर्ता बन कर निकले और उन्होंने मुझे चुपचाप यही करने का निर्देश दिया ।
उनके जाने के अगले दिन आजादी की लड़ाई के योद्धा और पूर्व सांसद और जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमांडर साहब के नाम से मशहूर अर्जुन सिंह भदौरिया एक जत्थे के साथ सत्यग्रह कर खुद जेल भेजने की जिद कर जेल आ गए । जेल प्रशासन उनके आने से परेशान हो गया और सभी राजनैतिक कैदियों की वो व्यवस्थाएं करने को मजबूर हो गया जो नियम अनुसार होनी चाहिए थी । अगले दो दिन में और जत्थे समर्थन में गिरफ्तारी देकर आने लगे । चौथे मेरे साथ समाजवादी युवजन सभा में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे राजनरायन जी के एक और भक्त जो बाद में कई बार विधायक और सांसद बने बरेली के कुंवर सर्वराज सिंह भी मेरे समर्थन में गिरफ्तारी देकर जेल आ गए । छात्रों के अलावा जनता पार्टी के जत्थे भी गिरफ्तारी देकर आने लगे और संख्या बढ़ने लगी । अगल बगल की दो बैरक कैदियों से खाली करवा कर हम लोगो को उनमें रख दिया गया और कुछ खाना बनाना जानने वाले कैदी हम लोगो को दे दिए गए की ये हम लोगो का खाना अलग से हमारी बैरक में ही बनाएंगे और हम लोगो के जिम्मे लगा दिया गया की हम अपने में से कुछ लोगो को लगा दे जो रोज नाश्ते से रात के खाने तक का राशन स्टोर से तुलवा कर ले लिया करे ।
जिंदगी पिकनिक जैसी हो गई ।
इसी बीच कमांडर साहब ने जेल अधीक्षक को तलब किया और निर्देश दिया की कानून के मुताबिक राजनैतिक कैदियों को मौसम के अनुसार दो सेट कपड़े , कोट, तौलिया और जूता या चप्पल मिलना चाहिए । बस अगले दिन गांधी आश्रम का टेलर आ गया सबकी नाप लेने और फिर कुर्ता पजामा , बंद गले का काट, गमछा , और चप्पल गांधी आश्रम से सबके लिए थोड़े दिन में ही आ गई और ओढ़ने बिछाने का सब नया मिल गया । मेरा घर पास में था तो मेरे लिए ओढ़ने बिछाने का व्यक्तिगत घर से आ गया और पहनने के कपड़े ही घर से आ जाते थे ।सुमन जी की सेवा में भी लोग लगे रहते थे । कमांडर साहब नियमित रूप से जेल में ही कपड़े धो लेते या कोई सेवा में धो देता और सर्वराज़ को भी बाहरी मेहमान मान कर कोई न कोई उनका सब कर देता । जेल में मैने दो चार और गंभीर लोगो में एक किनारे पर सोने वाला सीमेंट का अपना अपना चबूतरा ले लिया ताकि राजनीतिक चर्चाएं हो सके ।
हम लोगो ने तय किया की रोज शाम को क्लास लगा करेगी और उसमे मैं बोलूंगा और संचालन करूंगा फिर अगर सुमन जी और सर्वराज कुछ बोलना चाहे या कोई और तो बोले और अंत में कमांडर साहब अपना उद्बोधन ।रोज का विषय में और कमांडर साहब तय कर लेते और ये क्रम चल निकला । इस कार्यक्रम में पूर्व सांसद जी ने अपनी गायन की प्रतिभा और शेरो शायरी के रुझान कर परिचय दिया और माहौल को बोझिल होने से बचाया ।
पर देखा ये गया की प्रशिक्षण और वैचारिक ज्ञान में रुचि लेने वाले कुछ ही लोग थे और वो प्रशिक्षित होकर अच्छे नेता तथा कार्यकर्ता भी बने ।
: जब जेल में राजनीति का मंच बन गया
राजनरायन जी ने जाकर और नेताओ को फोन करना और भेजना शुरू किया ।सबसे पहले जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर जी आए और उस वक्त जेल , और प्रशासन तंत्र एक पैर पर खड़ा था । ये तय हुआ कि चंद्रशेखर जी सभी सत्याग्रहियों को स्वोधित करे तो आनन फानन में एक तखत आ गया ,उसपर चादर बिछ गई और सामने दरिया बिछ गई और मेरे संचालन में पहले कमांडर साहब का और फिर चंद्रशेखर जी का भाषण हुआ ।
इसके बाद पूर्व रेल मंत्री और सांसद तथा संसद में अघोषित रूप से नेता विपक्ष की भूमिका निभाने वाले मधू डंडवते जी आ गए । फिर मंच सजा और सभा हुई ।
फिर राजनरायण जी ने पूर्व मुख्य मंत्री राम नरेश यादव को भेजा फिर सभा जमी ।जब तक हम लोग जेल में रहे स्थानीय मिलने वालो का और नेताओ का दिन भर तांता लगा रहा और उसके कारण सामान्य दिनों में चलने वाली जेल व्यवस्था ध्वस्त हो गई थी तथा जेल के अधिकारियों का रुतबा और खास कैदियों के खास होने का रुतबा भी ।
जेल में समाज का दर्शन
बाकी का अपना अपना शौक था ।कुछ ने ताश की गड्डियों का इंतजाम कर लिया और दिन उसी से काटने लगे तो चंद ऐसे जो गुंडों को शायद अपना हीरो मानते थे और किसी बहाने से उन्ही से दोस्ती करने और संबंध बनाने में लगे थे । चूंकि राजनैतिक कैदियों पर पाबंदी नहीं रह पाती तो वो जेल भर का भ्रमण करते रहते और बाहर गेट तक घूम आते । एक खास राष्ट्रवादी सांस्कृतिक संगठन से जुड़े दो तीन छात्र भी नेता बनने के चक्कर में जेल आ गए थे और दो दिन बाद रोने लगे थे पर फिर रात को दो तीन लफंगों से उनकी दोस्ती हो गई और उसके बाद वो सब एक तरफ कोने में एक साथ सोने लगे और आंदोलन से आए लोगो का माहौल दूषित करने लगे ।एक लड़का तो मिलने आने वाले की बिना सूंखी मुहर वाला दूसरे का हाथ अपने हाथ पर जोर से दबा कर उसी निशान के सहारे जेल से बाहर चला गया और फिर वापस भी आ गया पता नही कहा कहा घूम कर । पूर्व सांसद जी के भक्त गण उनके लिए कुछ न कुछ खाने पीने ? को लेकर आते थे और एक कोने में ये लोग खड़े हो जाते पूर्व सांसद जी को घेर कर । बाकी अन्य लोग फल या मिठाइयां लाते और वो सबमें बट जाती थी । एक दिन उत्कंठा वश में भी पूर्व सांसद जी के घेरे में पहुंच गया तो मुझे भी केवल मछली खाने को प्राप्त हो गई ।
कुछ वकील आ गए थे समर्थन में पर थोड़े ही दिन में उनको अपनी वकालत बरबाद होती दिखने लगी और वो मुचलका भर कर घर जाने के फेर में पड़ गए । कई को अपना परिवार संकट में दिखने लगा तो कई अन्य कारणों से रूवासे रहने लगे और मुचलका भरने के फेर में पड़ गए ( तब मुझे दो बाते समझ में आ गई की आजादी की लड़ाई में माफी मागने वाले अंग्रेजो के पिट्ठू बनने वाले कौन और क्यों रहे होंगे और आपातकाल में इंदिरा जी की और आपातकाल की तारीफ कर जेल से भाग खड़े होने वाले कौन लोग और क्यों रहे होगे । और दूसरी की स्वतंत्रता संग्राम रहा हो या आपातकाल या अन्य आंदोलन वो किन लोगो के दम पर सफल हुआ और किस तरह के लोग होते है जो लंबी जेल काट लेते है लेकिन डिगते नही है ।
: पगली घंटी
राजनैतिक कैदियों के कारण खूंखार अपराधी जो वैसे जेल के राजा होते है और पूर्ण स्वतंत्र तथा स्वच्छंद जिंदगी जीते है उन पर पाबंदियां लग गई थी इसके कारण एक दिन एक बड़े अपराधी और उसके साथियों का धैर्य जवाब दे गया और वो हमलावर हो गए तथा तेज आवाज में एलान देने लगे ।जेल का वातावरण तनावपूर्ण हो गया तथा एकाध राजनैतिक साथियों को थप्पड़ पड़ गया ।
जेल में एक घंटी बजती है जिसको कहते है पहली घंटी और ये आपदा में बजती है तथा फिर जो जहा दिखता है उसकी वही पिटाई होती है और प्रमुख कारण बने लोगो को जेल की अंग्रेजो के काल से चली सजा मिलती है ।
जो मुख्य अपराधी था तथा सभी पर आक्रमक हो गया था उसको बेड़ी और हायकड़ी सब डाल दी गई जिसे पहन कर आप चल नही सकते , बाथरूम में बैठ नही सकते और ठीक से सो नहीं सकते । उस समेत कई की रात को पिटाई भी होने की आवाजे आई । मुख्य आरोपी जो बड़ा गुंडा था तथा जिसका वैसे राज चलता था और वो बाहर उससे अफसर या कर्मचारी तथा उसके परिवार को खतरा न रहे और साथ ही महीना भी मिलता रहे इस कीमत पर चलता है ।
: पीलियों या पक्को का जोर और एनकाउंटर
जेल की सबसे बड़ी और वीभत्स सजा है किसी को आजीवन कारावास काट रहे पीलियो या पक्को को सौंप देना की वो रात भर उसके साथ जो ? करना चाहे कर ले और वो भी हटकड़ी बेड़ी लगे होने पर प्रतिरोध रहित ।
अगले दिन कुछ पक्को ने ही चटकारे लेकर रात की कहानी उनके बीच बैठने उठने वालो को बताया और फिर पूरे जेल को पता लग गया । वो बड़ा गुंडा कुछ दिनों में जमानत पर छूट गया और बाहर एक जेलर पर चाकू से हमला कर दिया जो घायल हो गए पर जान बच गई । संभवतः उसी जेलर ने पक्को को सौंपा था । जेल के सभी लोगो और उनके परिवारों की जिंदगी खौफ के साए में आ गई तब कुछ ही दिनों में सेट तरीके और सेट कहानी के अनुसार और कुछ निश्चित जगहों में से एक जगह पर उस गुंडे का एनकाउंटर हो गया और वो अपनी गति को प्राप्त हो गया । बेचारा बड़ा कसरती थी तथा उसका परिवार आगरा का सबसे अच्छा मसाला बनाता था ।
: धन है तो सब हाजिर है
जेल में धन से सब सुविधाएं मिल जाती है । एक डाकू बंद था उसको सब कुछ और सब सुविधाएं हासिल थी यहां तक कि एक वैश्या रिश्तेदार बना कर मिलाई के नाम पर उसके साथ स्टोर रूम में कुछ देर को बंद कर दी जाती थी । जेल भी बाहर के समाज और उसकी सभी बुराइयों का एक आईना है ।
: जेल से रिहाई
आखिर में जेल प्रशासन और आगरा प्रशासन ऊब गया और हम लोगो को हमारी शर्त के अनुसार बिना शर्त
ससम्मान रिहा करने को तैयार हो गया और तत्काल सभी कालेजों में चुनाव कराने को तैयार हो गया और उस दिन शाम को हम सब अपने घर पहुंच गए । मेरी दाढ़ी बढ़ गई थी बाल बढ़े थे और जेल में बैठ कर खाने तथा दिन भर आने वालो द्वारा लाई गई चीजे खाने से वजन भी बढ़ गया था ।
भाग 3 :छात्र संघ चुनाव
अब छात्र संघ चुनाव पर मंथन शुरू हो गया और उसके बाद तक के कार्यक्रम पर चर्चा होने लगी । छात्र संघ चुनाव घोषित हो गया तो राजनरायन जी ने मुझे बुलाया की छात्र संघ चुनाव में क्या होना है और अपनी तरफ से कौन लड़े । अन्य कालेजों के बारे में तो मुझ पर छोड़ दिया उन्होंने लेकिन मेरे कालेज के बारे में विस्तार से चर्चा किया तथा पहले का छात्र संघ का इतिहास ,कौन जीतता रहा , सामाजिक समीकरण क्या है और मेरे यह कहने पर की मैं स्वयं लडूंगा उन्होंने मेरा मजबूत पक्ष जानना चाहा जो सिर्फ दो था की आज तक मैं अकेला उस कालेज का छात्र नेता था तथा एन सी सी हो या खेल या ड्रामा और साहित्य सभी में आगे था इसलिए बहुत इज्जत थी और दूसरा की ये चुनाव मेरे संघर्ष और जेल काटने के परिणाम स्वरूप हो रहा है तो छात्र मुझे ही वोट देंगे और काफी सालो से छात्र संघ नही था तो अब बाकी लोगो को पता ही नही है की ये क्या होता है और क्या तथा कैसे करता है साथ ही जिन मुद्दों को लेकर में लगातार आंदोलन चला रहा था उनके प्रति मेरी ही प्रतिबद्धता है ।
इसपर राजनरायन जी ने पूछा की आज के पहले क्या इस कालेज की खास जाति के अलावा कोई अध्यक्ष हुआ तो मैने बताया की हा सिर्फ एक बार जब खास जाति के 4 मजबूत लोग खड़े हो गए तब जीता था पर हार के बाद खास जाति के सब एक हो गए और फिर उस अध्यक्ष को कालेज में घुसने ही नही दिया ।
इस पर राजनरायन जी बोले बेटा आप भी उस खास जाति का ही प्रत्याशी खड़ा कर किंग मेकर बनो । आप की सारी प्रतिभा और कुर्बानी रखी रह जाएगी और खास जाति आप को हरा देगी । पर मैं नेता जी की इस बात पर बिलकुल सहमत नही हुआ और तर्क दिया की इस तरह तो हम जाती तोड़ो के नारे को खुद छोड़ दे रहे है ,मुझे विश्वास है की पूरा कालेज मेरा साथ देगा । जब मैं हठ कर बैठा तो नेता जी ने कहा की जाइए आप राजनीति का सबक सीख लीजिए ।
मैने कहा नेता जी मैं जीतूंगा और छात्र संघ का उद्घाटन आप को करना होगा । इस पर वो बोले की आप जीत गए तो मैं तो चलूंगा ही पर आप के छात्र संघ का उद्घाटन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी जी करेंगे । आप के कालेज के लोग और आगरा के लोग भी याद रखेंगे की किसी चंद्र प्रकाश की वजह से राष्ट्रपति आए उद्घाटन करने । उन्होंने 500 रुपया भी दिया और मैं खुशी खुशी दिल्ली से वापस आ गया ।
मैंने अपनी छात्र संघ की अच्छी टीम बनाई और नॉमिनेशन कर दिया । एक खास जाति का और एक जाट तथा पिछड़ों का पेनल उतरा जिन लोगो का आजतक किसी आंदोलन और छात्र समस्याओं से कोई लेना देना नही था ।दोनो के साथ अपराधी प्रवृति के लोग भी थे और खास जाति वाले पर विद्यार्थी परिषद वालों भी टोपी पहनाने की कोशिश किया क्योंकि इस कालेज में विद्यार्थी परिषद की जड़े कभी जमी ही नहीं थी ।
अगले दिन एक पूर्व राजा जो की काफी बार से विधायक हो रहे थे और इस वक्त कालेज मैनेजमेंट कमेटी के सचिव थे उन्होंने मुझे बुलाया और बंद कमरे में बात किया । वो बोले की आप न हमारी जाती के हो और न इस क्षेत्र के बल्कि पूरब से आए हो फिर भी आप शरीफ हो तथा आप की रिपोटेशन अच्छी है और बाकी दोनो गुंडों के गुट है और मैनेजर हूं इसलिए चाहता हूं की आप जीतो पर आप राजनरायन जी का साथ छोड़ दो और हमारे साथ आ जाओ ।तब तक राजनरायन जी और चौ चरण सिंह में दूरी हो गई थी और राजा सहन चौधरी साहब के साथ थे । मैने राजनरायन जी को छोड़ने से इंकार करते हुए जवाब दिया की आप खुद कह रहे है की में अच्छा हूं और बाकी गुंडे है इसके लिए आप आशीर्वाद दीजिए और छात्रों को स्वतंत्र रूप से चुनाव करने दीजिए । जीत हार छात्रों को ही तय करने दीजिए । इसपर उन्होंने कहा की बाहर जीप खड़ी है वो ,उसका पेट्रोल और चुनाव खर्च सब मेरा और आप को जीता दूंगा पर हमारे हो जाओ। मैं प्रणाम कर और उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर वापस चला गया ।
दो तीन दिन बाद शाम को मेरे साथ का एक लड़का भागता जागता हुआ आया की राजा साहब के घर पर एक मीटिंग चल रही है जिसमे प्राचार्य ,कई अध्यापक खासकर बिचपुरी के विज्ञान और कृषि के है जो खास जाति के है बैठे है । इसपर मैने कहा की राजा साहब मैनेजर है कोई मीटिंग कर रहे होंगे । तब वो बोला की नही खास जाति का अध्यक्ष पद का प्रत्याशी और हमारे पैनल के तथा जाट के पैनल के भी खास जाति के प्रत्याशी भी है मीटिंग में । मैं आवक रह गया और मुझे इसपर विश्वास नही हुआ । हम दोनो राजा साहब के घर की तरफ चल पड़े ।राजा साहब का शहर में घर कई बीघों जमीन में बगीचे के बीचोबीच बना है जिसमे दूर से आप को उनके बरामदे में बैठे लोगो को देख सकते है पर वो नही देख सकते है । सचमुच वहा वही दृश्य था और मैं विचलित भी हुआ और क्रोधित भी तथा एक बार मन हुआ की जाकर सबकी लानत मलानत कर अभी चुनाव प्रक्रिया पर हमला कर और अखबार को सब देकर खुद चुनाव से हटने की घोषणा कर दू ।दूसरी तरह मन और आत्मविश्वास ने कहा की नही कोई कुछ कर ले छात्र छात्राएं मुझे एकतरफा भारी वोट देकर इतिहास बदलेंगे और इसी उहापोह में वापस घर आ गया । प्रचार जोरों पर था ।खास जाति के दो भाइयों ने पूरी ताकत से मेरा साथ पहले दिन से आखिरी दिन तक दिया । बड़ा भाई धर्मेंद्र सिंह मुन्ना जो फुटबाल का बहुत बड़ा खिलाड़ी है तथा इस वक्त भी भारत की टीम में एशिया खेल कर आया था ,उनका छोटा भाई और खिलाड़ी लल्ला जो बाद में जिला क्रीड़ा अधिकारी बन गया और एक और नाम जुड़ गया इस जाती से बाद में एक जमीदार परिवार के दिलीप सिंह । इनमे से मुन्ना और दिलीप कालेज के छात्र नीति फिर भी नैतिक और अपनी साख से साथ दे रहे थे । बाकी कामर्स फैकल्टी पता नही क्यों पूरी साथ हो ली । हमारे कालेज में छ्त्राए कम थी पर उनका करीब पूरा समर्थन मुझे मिला । चुनाव उठते उठाते कालेज जातिवाद का अखाड़ा बन गया । खास जाति एक जगह एकजुट हो गई और जात तथा पिछड़े छात्र एक जगह (जबकि मैं पिछड़े मांगे सौ में साठ की राजनीति करता था पर जातिवाद के चश्मे में मेरा सब गुण और योगदान धुधला हो गया ) । इनमे वो करीब 100 से ज्यादा लोग भी थे जो पीछे ब्लैक लिस्ट हो गए थे तथा किसी भी तरह उनको एडमिशन नहीं मिल रहा था तब आमरण अनशन कर दबाव बना उन सबका मैने एडमिशन करवाया था , इनमे वो भी थे जिनकी फीस माफ करवाया था ।
खैर चुनाव के पहले का आखिरी दिन आ गया । बाकी दो के पास खूब साधन थे ,स्वरियां थी और मसल पावर थी और वो दिख रही थी और इधर बहुत मुश्किल से अपील का पर्चा भर छपा था ,हा मेरे साथियों ने दोनो कैंपस ही नही शहर की काफी मुख्य दीवार मेरे नाम से भर दिया था खुद रात रात भर कूची और रंग या रोशनाई और चुना लेकर जो नाम काफी सालो बाद दीवारों से मिट सका ।
मैने घोषणा किया की पूर्व परंपरा के अनुसार चुनाव के एक दिन पूर्व सभी अध्यक्ष पद के प्रत्याशी लाइब्रेरी के सामने जहा पहले होता था छात्रों को संबोधित करे और हो सके तो पूर्व की भांति क्वालीफाइंग स्प्रीच हो और प्राचार्य तथा उनके द्वारा तय अध्यापक पहले की तरह ही तय करे की कौन चुनाव लडने लायक है पर ये नही माना गया और न बाकी दोनो छात्रों को संबोधित करने ही आए ।
भारी संख्या में छात्र छात्राएं एकत्र थे और उस दिन मेरा वो ऐतिहासिक भाषण हुआ । जिसमे मैने ये भी कहा की कल 31 तारीख तो तय होना है की कालेज शिक्षा मंदिर ही रहेगा या गुंडों का अड्डा होगा और इसी तिराहे पर आंदोलन का आगाज और भाषण नही गुंडों का जमावड़ा होगा । हॉस्टल पढ़ाई का सुरक्षित स्थान होगा या गुंडों की शरण स्थली और पुलिस के निशाने पर होगा ।कल तय होगा की कालेज में आई ए एस और मेडिकल सहित सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए स्पेशल क्लासेस होंगी या यहां गोलियों की आवाजे गूजेगी इत्यादि इत्यादि । यहां बहनों को पढ़ाई और सर्वांगीण विकास का माहौल होगा या उनका आना मुश्किल हो जायेगा ।मेरी ये बात भी याद रखे लोग को जो गुरुजन आज अपने स्थान और सम्मान से गिर गए है वो आगे के लिए कांटा बो रहे है और ये कांटे उनके दामन में भी जरूर चुभेंगे आगे चलकर । मेरा करीब एक घंटे के भाषण खत्म हुआ तभी कही से कट्टे की दो सलामी हुई। मैंने कहा की यदि ये मुझे डराया जा रहा है तो वो लोग बड़ी गलतफहमी में है । चंद्र प्रकाश यूं तो छात्र छात्रों के प्यार के कारण अध्यक्ष बनेगा और वो सब करेगा जिसके लिए जेल काटी है पर किसी बेईमानी या किसी कारण से नही भी बन सका तब भी यही खड़ा रहेगा और हमेशा छात्रों के साथ रहेगा और अपनी इन बातो के लिए अपने छात्र जगत के सभी भाई बहनों के लिए पूरी ताकत से लड़ता रहेगा ।
नारे लगने लगे :आगरा में एक प्रकाश :चंद्र प्रकाश चंद्र प्रकाश और मेरा उद्बोधन समाप्त हुआ । मैं अपने कार्यालय की तरफ निकल गया सुबह की तैयारी के लिए और फिर घर ।
अगले दिन चुनाव हुआ और मैं 80 वोट से हार गया हा मेरे पेनल के वो खास जाति के लड़के महामंत्री और एक अन्य पद पर चुनाव जीत गए जो उस दिन राजा की बैठक में मौजूद थे ।
बाकी दोनो प्रत्याशियों में गोलियों चलने लगी और लुका छिपी शुरू हो गई । दोनो गैंग की तरह समूह में उठने बैठने लगे । जाट गुट को लगता था की उनका वोट ज्यादा था और उन्हें जितना चाहिए । रात के अंधेरे में मेरे पास भी आए काफी हथियारों से लैस होकर की में भी लिख कर दूं की चुनाव रद्द किया जाए या दुबारा करवाया जाए । मैने इंकार कर दिया ।
जहा जीते हुए लोग छुपते और गुरिल्ला युद्ध लड़ते घूम रहे थे वही अगले ही दिन आगरा से बिचपुरी परिसर तक हर कक्षा और हर हॉस्टल में जाकर मै धन्यवाद देता घूम रहा था । काफी लोग शर्मिंदगी से आंख नही मिला रहे थे या कट कर निकल का रहे थे । इसी क्रम में मैं कुछ ऐसी जगहों पर गया जहा नेपाल और दक्षिण भारत के छात्र पूरा घर किराए पर लेकर एक अपना हास्टल बना कर रहते थे अपने अलग खान पान की जरूरतों के कारण । ये सभी छात्र मेरे धन्यवाद देने पर रोने लगे की सर हमने आप को वोट नहीं दिया ।मैने कहा कोई बात नही मुझमें कोई कमी होगी । वो बोले हम इतनी दूर से पढ़ने आए है और फला फला अध्यापकों ने बोल दिया था की दिखा कर वोट देना नही तो प्रैक्टिकल में फेल कर देंगे तो सर हम मजबूर थे । मैने उन सबको और सभी छात्रों को आश्वस्त किया की अध्यक्ष नही सही पर में उनके लिए पहले की ही तरह खड़ा मिलूंगा और लड़ता रहूंगा ।
विशेष: दूसरे कालेजों में मेरे समर्थित प्रत्याशी जीत गए
मैने सेंट जॉन्स कालेज में अध्यक्ष पद पर गिरीश त्यागी को और महामंत्री पद पर एक लड़के आदिल को खड़ा किया और उनके लिए मैने ही भाषण दिया तथा प्रचार किया वो सब जीत गए । आगरा कालेज में में रणवीर शर्मा के लिए भाषण देने गया उनका अधिकतर पेनल भी जीत गया ।
मेरे कालेज में जो अध्यक्ष बना उसके पिता बहुत विद्वान प्रोफेसर थे और उन्हें हार्ट अटैक हो गया था तो उनको देखने में मेडिकल कॉलेज गया था । वो बोले बेटा मैं चाहता हू की तुम जीत जाओ वरना कालेज भी बर्बाद।होगा और मेरा बेटा भी बर्बाद हो जाएगा ।
बाद में वो अध्यक्ष तथा उसके ही साथियों ने एकदूसरे की हत्या कर दिया ।अध्यक्ष के भाई भी मारा गया तब मां ने भी आत्महत्या कर लिया ।
कालेज लंबे समय गुंडागर्दी का अड्डा बना रहा ।हॉस्टल बदनाम हो गया ।लड़कियों के साथ अभद्रता होती और शिक्षको के गिरेबान भी पकड़े गए जिनमे कुछ वो अध्यापक भी थे जो जातिवाद के अंधे हो भूमिका निभा रहे थे। जाट प्रत्याशी रहा छात्र मुस्किल से विश्वविद्यालय में क्लर्क की नौकरी पा सका ।
ऊपर से मैं चाहे जितना सहज दिख रहा था पर अंदर करते करते तक हिल चुका था और मेरी नीद गायब हो चुकी थी जो काफी बाद में आई जब :;;:;
फिर मुझे कभीं पूरी नीद नहीं आई । आई पर वर्षो के बाद जब ::
भाग 4 : फिर छात्र संघ चुनाव और मेरे पूरे पेनल की जीत :
काफी वर्षो बाद फिर छात्र संघ चुनाव हुआ । इस बार मुझे अपने नेता राजनरायन जी की बात याद रही ।
मैने एक पैनल बनाना शुरू किया तो सबसे पहले ये जानने का प्रयास किया की खास जाति के किस जिले के लड़के इस बार ज्यादा है और इसके किस उपनाम को लिखने वाले लड़के ज्यादा है । पता लगा की मैनपुरी की संख्या ज्यादा है और हास्टल में भी उनकी संख्या। ज्यादा है क्योंकि हास्टल में रहने वालो का पूरा वोट पड़ता है और करीब करीब एकजुट पड़ता है क्योंकि एक स्थान पर रहने से उनमें एकराय बनाना और प्रचार करना आसान होता है ।
पर खास जाति का और मैनपुरी का कोई लड़का राजनीति के रुझान वाला नही मिला । तब मैंने एक लड़के को खोजा दुबला पतला लम्बा जो हॉस्टल में रहता था और हाकी भी खेलता था । उससे बात किया तो उसने मना कर दिया की में तो इतनी दूर से पढ़ने आया हूं और खिलाड़ी हूं । मुझे राजनीति से कोई मतलब नहीं है और मैं भाषण भी नही दे सकता हूं । तीन चार दिन में उसका ब्रेनवाश किया और मुश्किल से उसे तैयार किया चुनाब लड़ने को इस आश्वासन के साथ की भाषण में दूंगा और चुनाव भी में ही लडूंगा बस उसका नाम और चेहरा चाहिए । वो तैयार हो गया तो पूरा पेनल बना दिया जिसमे उपाध्यक्ष पद पर एक ब्राह्मण , एक पद पर कामर्स का बनिया जाती का और अन्य पदों में एक जाट ,एक पिछड़ा बाकी खास जाति का दूसरा उपनाम वाला और इनमे एक लड़की ।
चुनाव मुझे ही लड़ना पड़ा । हर हॉस्टल और क्लास में तथा फिर उसी तिराहे पर मेरे न जाने कितने भाषण हुए
। चुनाव हो गया और भाजपा के विद्यार्थी परिषद, कांग्रेस के एन इस यू आई तथा लोकदल के छात्र सभा को हरा कर मेरा पूरा पेनल चुनाव जीत गया ।मेरे थोड़े छल के कारण अध्यक्ष पद से ज्यादा वोट ब्राह्मण उपाध्यक्ष को पड़ा ।
उस दिन जीतने वाले लोग पीछे खड़े थे और अखबारों ने इंटरव्यू मेरा लिया और अगले दिन मेरा उंगली से वी निशान बनाए हुए फोटो छपा ।
(छात्रसंघ का को जो अध्यक्ष बना जो राजनीति में आना ही नही चाहता था वो दल बदल बदल कर इस बार तीसरी बार विधायक है ।)
रात को मैं घर पहुंचा तो लग रहा था की चल नही उड़ रहा हूं । खूब प्रेम से और रोज से ज्यादा खाना खाया तो मां ने भोजपुरी में पूछा आज इतने भूखे क्यों हो ।
खाकर सोया तो खून गहरी नीद सोया और घोड़े बेचकर सोया ।
अगले दिन उठा तो दिल में वर्षो से चुभी फांस गायब हो चुकी थी और सर से एक बड़ा बोझ उतर चुका था ।
छात्र संघ और जाति दंश की कहानी समाप्त होती है ।