मंगलवार, 5 नवंबर 2024

दो घटनाएँ मेरा गुण या अवगुण

दो_घटनाए_जो_मेरा_अवगुण_बताती_है_और_नेता_से_दूर_करती_है

1--मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे और एक सेठ के बुलावे पर आगरा आये जो मेरी निगाह मे निरर्थक और गैर राजनीतिक फैसला था ।उससे तुरंत पहले पार्टी के महानगर अध्यक्ष की मा का देहांत हो गया । अध्यक्ष मुलायम सिंह द्वारा सीधे बनाये हुये थे जिनका राजनीति से कोई सम्बंध नही था पर वो आयकर के वकील थे और है ।ना मेरा तब सम्बंध था और ना फिर कभी मुलाकात हुयी आजतक उस वकील साहब से पर मै पागल आदमी हूँ ।
मुलायम सिंह यादव उस सेठ के घर दूर गाँव के इलाके मे गये और जब किसी के घर मुख्यमंत्री आ रहा हो और वो भी सेठ तथा व्यापारी के घर तो भव्य कार्यक्रम तो होना ही था और फिर भव्य दोहन भी होना होता ही है ।
उनके कार्यक्रम मे महानगर अध्यक्ष के घर जाने का कोई कार्यक्रम नही था और उस वक्त पार्टी मे मुह लगे लोग भी इस विचार के नही थे की वो किसी के घर जाये चाहे कोई भी मर गया हो ।
पर मुझे ये बात पार्टी के सिद्धांतो और मुलायम सिंह यादव के बारे मे जो वर्षो मे हम लोगो ने इमेज बनायी थी उसके खिलाफ लग रही थी ।
लखनऊ वापस जाने के लिए मुलायम सिंह एयरपोर्ट आये उसके पहले ही मैने डी एम संजय प्रसाद से कह कर रूट साफ करवा लिया । ज्योही मुलायम सिंह जहाज की सीढ़ी की तरफ बढे मैने रोक कर अपने उद्गार व्यक्त कर दिये कि ये आप की पहचान के खिलाफ है कि आप किसी सेठ के घर आकर वापस चले जाये और पार्टी अध्यक्ष की मा का निधन हुआ है और वहा दो मिनट भी न जाये ।
तो वो थोडा झुझलाये पर विचलित भी हुये और बोले की अब देर हो गई है और जाना भी चाहे तो 2 घन्टा समय चाहिये । मैने कहा नही मुश्किल से 30 मिनट जाना आना और 5 मिनट रुकना तो बोले पूरी सड़क भरी होगी और वो आप के घर के पास ही तो रहते है कैसे पहुच जायेंगे ? तो मैने कहा की मैने पहले ही रूट लगवा दिया है ।फिर नाराज हुये की हमसे पूछे बिना कैसे करवा दिया और डी एम की तरफ देखने लगे ।संजय प्रसाद ने आंखे झुका लिया और बोले की हा सर इन्होने कहा की चल सकते है तो इन्तजाम कर दिया गया ।
और फिर वही हुआ और 40 से 45 मिनट मे अध्यक्ष की इज्जत और मन भी रह गया और मुख्यमंत्री की  इज्जत भी  रह गई ।पर मुलायम सिंह ने मुझसे कोप तो पाल ही लिया ।
2--मुलायम सिंह यादव इटावा से दिल्ली जाते हुये मेरे घर पर प्रेस से मिल कर जाने वाले थे जो अकसर होता था । एक हमारा कार्यकर्ता था शकील जो खन्दारी बूथ का मजबूत कार्यकर्ता था उसके घर मे मौत हो गई थी । वो स्कूटर मकेनिक था और पास के चौराहे पर जमीन पर ही बैठता और काम करता था । मैने उसको खबर करवा दिया कि वो अपने घर पहुच जाये और दो और उसी मुहल्ले के कार्यकर्त्ताओ को भी भेज दिया ।
जब मेरे घर से चाले तो मै गाडी मे था और मैने मुलायम सिंह जी से कहा की एक मजबूत कार्यकर्ता है उसके साथ ऐसा हो गया है और उसका घर रास्ते ने पड़ेगा । तो वो बोले की गाडी वहा तक जायेगी ।मैने कहा की थोडा सा पैदल चलना होगा पर जरूरी है ।
वहा पहुच कर हम लोग उतरे और करीब 5/ 600 मीटर पतली सी गली मे पैदल चले ।ये बस्ती बघेल मुस्लमान जिनको मैने पार्टी से जोड़ लिया था और दलितो की बस्ती है । ब्लैल कैट कमांडो और हम लोगो को देख कर पूरी बस्ती मे मिंनटों मे बात फैल गई । उस कार्यकर्ता के घर मे मुलायम सिंह को बैठाने के लिए कुछ नही था ।5 मिनट खड़े खड़े हाल चाल हुआ और जब हम लोग उसके घर से निकले तो सारी छते और पूरी गली भरी हुयी थी और अगले दिन ये किस्सा शहर भर मे चर्चा का विषय बन गया था कि मुलायम सिंह तो छोटे से छोटे कार्यकर्ता का भी ध्यान रखते है ।
समाज मे किसी को नेता बनाना और उसकी छवि बनाना आसान काम नही होता है और उसके लिए बडी सोच और बडा दिल रखना पडता है और कोपभाजन का शिकार भी होना पडता है ।
शायद इन्ही अवगुणौ के कारण बड़े नेता मुझसे नाराज ही रहते थे और कार्यकर्ता भी आप का वजन देखकर ही आप के साथ रहता है ।
पर मैं जैसा हूँ ठीक हूँ

देवी लाल और तब की राजनीति

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

पहले #हरियाणा के #मुख्यमंत्री और फिर #देश के #उप_प्रधानमंत्री चौ #देवीलाल का भी मुझे बहुत स्नेह प्राप्त था ,उनके हरियाणा भवन या राष्ट्रपति भवन के गेट नम्बर ३६ के अंदर उनके घर जाना होता था तो घर के पीछे के लॉन में मिलते थे बातें पूछते और कुछ खिला कर ही जाने देते ।
उप प्रधान-मंत्री के रूप मे उन्होने मेरे घर का कार्यक्रम बनाया , जनता दल क्या पूर्ण विपक्ष का एक सबसे बडा स्तम्भ और धुरी बन गए थे उस वक्त वो और देश के सारे नेता उनकी तरफ देखने लगे थे, वही प्रेरणा थे , वही फैसलाकुन होते थे और उन्ही की सहयता पर सब आश्रित हो गए थे ।
वो तो मुझे 1989 का चुनाव भी लड़वाना चाहते थे और संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के नाते उनका फैसला आखिरी होता और बोर्ड के सदस्यो मे से बहुमत मेरे पक्ष मे था ।
पर हरियाणा भवन मे बोर्ड की बैठक मे  मुलायम सिंह यादव जी ने ये कह दिया की मैं देश मे प्रचार करूँगा तो सी पी राय मेरा चुनाव देखेंगे और जब मैं मुख्यमंत्री हो जाऊंगा तो फिर एम एल ए और एम पी क्या होता है उनका ऐसा स्थान हो जायेगा । बोर्ड की बैठक से आकर पहले जॉर्ज फर्नांडीज साहब ने कहा की जब होने वाला सी एम आप को अपना चुनाव इंचार्ज बनाना चाहता है तो चुनाव मत लडो उसका काम देखो ।फिर विश्वनाथ प्रताप सिंह और अन्य भी निकल कर यही बोले ।
एक दिन सुबह 4 बजे अशोका होटल दिल्ली मे भी कुछ ऐसा ही हुआ और फिर दिल्ली एयरपोर्ट के वी आई पी लाऊन्ज मे ।
वो सब किस्से फिर कभी ।
मैं मुलायम सिंह यादव जी के पूरे चुनाव मे जान की बाजी लगाकर जुटा रहा कि एक दिन वो बहुत गुस्से मे बोले की यहा से इलाहबाद जनेश्वर जी के यहा चले जाओ वर्ना आप की यहा हड्डियां भी नही मिलेंगी भट्टे मे झोंक दिये जावोगे जैसा दुस्साहस आप कर रहे हो ।
मेरा जवाब क्या था वो जाने देते है 
पर मैं रिजल्ट तक वही डटा रहा ।
बल्की मुलायम सिंह यादव जी अपने क्षेत्र के दौरे मे मुझे साथ रखते और अपने से पहले मेरा भाषण करवाते थे ।जो क्रम 1993 के बद तक के चुनावो मे भी चलता रहा की उनकी सभावो मे उनसे पहले मेरा भाषण होने लगा सब जगह ।
और बाद मे या आज तक क्या हुआ वो लिखने की जरूरत इसलिए नही की सब जानते है ।

मुलायम सिंह

मुलायम सिंह यादव के बारे मे कहा से बात शुरु करे ? उनकी जिन्दगी के इतने छोर है और सब उलझे हुये ।एक नितांत गरीब घर मे और अभाव मे पैदा होकर 1967 मे विधायक बन जाना और 1977 की सरकार मे सहकारिता मंत्री से चला सफर 1989 मे मुख्यमंत्री बनकर रुकता नही है बल्कि बार बार सरकार बनाता है और एक समय ऐसा आता है जब 39 सांसद होते है पार्टी के तथा बंगाल बिहार महाराष्ट्र उत्तराखंड और मध्यप्रदेश मे भी विधायक हो जाते है और लगता था की पार्टी राश्ट्रीय स्तर पर पहुच जायेगी ।फिर एक समय आता है जब पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा जी ,मुख्यमंत्री नितीश कुमार ,लालू यादव और अजीत सिंह सहित कई लोग उन्हे नेता मान लेते है और समाजवादी पार्टी के नाम और झंडे की भी स्वीकार कर लेते है ।ऐसा हो गया होता तो देश मे एक नया विकल्प बन गया होता पर कुछ लोगो ने साज़िशन फ़ेल कर दिया ।
वो गरीबी और परेशानी से निकले तो गरीब का दर्द नही भूले ।पहली सरकार मे किसानो को तकलीफ दे रही चुंगी माफ कर दिया तो डा लोहिया का अनुसरण करते हुये गरीब और गाव की महिलाओ के शौचालय का मुद्दा प्रमुखता से उठाया ।दवा पढाई मुफ्ती होगी रोटी कपडा सस्ती होगी का डा लोहिया का मन्त्र उन्हे याद रहा ।समाजवादियो की मांग थी की रोजगार दो या बेरोजगारी भत्ता दो तो उन्होने वक्त आने पर 12 हजार भत्ता ही नही दिया बल्कि गरीब कन्याओ को 30 हजार कन्याधन भी दिया ।उन्होने ग्रामिण क्षेत्रो को स्कूल कालेज बनाने को सरकारी प्रोत्साहन दिया तो किसान की फसल सुरक्षित रहे इसके लिये कोल्ड स्टोरेज को भी प्रोत्साहित किया ।चिकत्सा के क्षेत्र मे बडा काम किया तो अपने समय मे नौकरिया भी खूब निकाला ।
जितने अदर से मुलायम थे निर्णय लेने मे उतने ही कठोर थे ।वो अयोध्या मे कानून व्यव्स्था का सवाल हो या सीमा पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्यवाही वो विचलित नही हुये । उन्होने ने वैचारिक विरोध को दुश्मनी नही माना और विरोधियो का भी सम्मान किया था उनके भी सभी जायज काम किया ।
मुलायम सिंह मे अहंकार रंच मात्र नही था और सभी से जुडे रहना , अपनो को सहेज कर रखना तथा गैरो को अपना बना लेना उनकी विशेषता थी इसीलिये उन्होने गरीब से निकल कर उस उंचाई को छुवा ।
राजनीतिक तौर पर वो किसी के साथ जो भी व्यव्हार करते थे पर सामजिक सम्मान का ध्यान रखते थे ।
जब उनका पद छीन लिया गया उसके बाद वो अदर से टूट गये थे पर फिर सम्हल कर अपने बेटे और अपनी बनायी पार्टी का साथ दिया पर कही न कही पार्टी और परिवार मे टूटन से वो दुखी थे और क्यो न होते जब एक समय सभी ने उनका साथ छोड दिया था ।
धरतीपुत्र बिरले ही होते है और दिल से जुड़ कर रिश्ते निभाने वालो का राजनीति मे अभाव है ऐसे मे मुलायम सिंह यादव का चले जाना उनके बिना स्वार्थ जुडे हुये लोगो के लिये एक सदमे के समान है ।
मुलायम सिंह यादव जी की यादों को नमन और विनम्र श्रद्धांजलि।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में वी पी सिंह का पलीता

उत्तर प्रदेश की जाट राजनीति को विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पलीता लगाया था 1994 मे ।वैसे तो अजीत सिंह जी की अस्थिरता और राजनीति के प्रति कुछ चीजो का अभाव भी जिम्मेदार रहा ।
1989 मे जो चुनाव हुये थे उसमे शुरू दे स्पष्ट था कि विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री पद के और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री पद के अघोसित प्रत्याशी है ।
पर चुनाव के बाद पुरानी अदावत के कारण विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अजीत सिंह को चढा दिया और मुख्यमंत्री का दावेदार बना दिया जबकी टिकेट के बटवारे मे ही मुलायम सिंह के लोग अधिक थे ।
अजित सिंह जी लखनऊ आ गये । 
उस चुनाव मे मैं मुलायम सिंह यादव का चुनाव देख रहा था क्योकी जब जनता दल के संसदीय बोर्ड मे खेरागढ से मेरे नाम पर ज्यादा सहमती बनी तो उन्होने कह दिया था की इस चुनाव मे सी पी राय मेरा चुनाव देखे क्योकी मैं तो देश और प्रदेश के दौरे पर रहूंगा और जब मैं मुख्यमंत्री बन जाऊंगा तो एम एल ए क्या होता है सी पी राय उससे बहुत बड़े होगे । बैठक खत्म होने पर सबसे पहले जोर्ज फर्नांडीज निकले तो मुझे सामने देखते ही बोले "राय आप मुलायम सिंह यादव का चुनाव देखो वो बैठक मे बोला कि मैं मुख्यमंत्री हो जाऊंगा तो सी पी राय एंम एल ए से बड़े होंगे ।हो सकता है वो आप को राज्य सभा मे रखे या एम एल सी बना कर मंत्री बना दे । बाद मे यही बात चौ देवीलाल ,चंद्रशेखर जी ,विश्वनाथ प्रताप सिंह इत्यादि सभी ने मुझसे कहा पर जो हुआ वो दुनिया को पता है पर ये कम लोग जानते है कि उस चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बन कर मुलायम सिंह यादव जी मुझे मिले ही नही और जब सरकार गिर गयी तब मिले और मुझे संगठन मे जुट जाने के लिये बोल कर प्रदेश का महामंत्री बनाया ।
खैर उस समय प्रेक्षक बन कर मधू दंदवते ,जोर्ज फर्नांडीज और चिमन भाई पटेल लखनऊ आये थे । मधू जी और जोर्ज ने कोशिश किया की आम सहमती से मुख्यमंत्री चुन जाये और प्रारम्भ मे ही दरार न पड़े । तब मधू दंड्वते के साथ मुलायम सिंह यादव मिलने स्टेट गेस्ट हाउस गये और अजीत सिंह से उन्होने कहा की आप मेरे नेता हो क्योकी चौ साहब के बेटे हो ।आप दिल्ली मे रहो और वहा की राजनीति सम्हालो और मुझे प्रदेश मे रहने दो ।एक बार लगा की सहमती बन जाएगी ।अजीत सिंह ने थोडा समय मांगा और वही चूक हो गयी । साथ के लोग जिनका नाम नही लिख रहा हूँ ने अजीत सिंह से कहा की राजा साथ है और ज्यादा विधायक हमारे पक्ष मे है ।इन लोगो को पता ही नही था की बसो मे भर कर विधायक कही और भेज दिये गये थे पिकनिक मनाने जो विधायको की बैठक के एक दिन पहले वाली शाम को सीधे मुलायम सिंह यादव के घर पर आये जहा वो अकेले रहते थे और ऊपर ही खाने का इन्तजाम था तथा उस दौरान उदय प्रताप जी और मेरी कविताए होती रही ।
अजीत सिंह जी चुनाव के लिये अड़ गये और मजबूरी मे चुनाव हुआ ।
इससे पहले चुनाव के पहले वाली शाम को हम लोग मुलायम सिंह यादव के घर मे ऊपर बैठे थे तभी नीचे से जगजीवन का फोन आया कि विश्वनाथ प्रताप सिंह के दो विधायक मिलने आये है । उन्हे ऊपर बुला लिया गया वो थे सच्चिदानंद वाजपेयी जो सरकार मे उच्च शिक्षा मंत्री बने और मुहमद असलम जो वन और पर्यावरण मंत्री बने । दोनो ने बताया की राजा साहब ने अपने ग्रुप के विधायको को आप का साथ देने का आदेश दिया है ।
राजा ने खेल कर दिया था आमने सामने कर के ।
चुनाव हुआ ,मुलायम सिंह यादव को कही बहुत ज्यादा वोट पड़ा तो मंच पर मधू दंदवते जी ने अजित सिंह जी से गिनती के बाद पूछा की वोट डिक्लेयर करे या रहने दे तो अजीत सिंह जी खिन्न होकर चले गये ।
आगे की कहानी सबको पता है और उसके पहले की भी ।
यदि उस दिन अजीत सिंह जी दिल्ली मे मुलायम सिंह का नेता बनना स्वीकार कर उन्हे मुख्यमंत्री बना गये होते तो शायद पुराने लोक दल का आधार बना रहता और इस फार्मूले पर राजनीति की लम्बी पारी चली होती ।
मैं जब सपा से निकाल दिया गया था और लाख कोशिश के बाद भी मुलायम सिंह यादव वापस लेने को तैयार नही थे तो डेढ साल इन्तजार के बाद जितेन्द्र प्रसाद जी तब प्रधानमंत्री के राजनैतिक सचिव थे के बुलावे पर कांग्रेस मे शामिल हो गया था और अजित सिह जी भी कांग्रेस मे आ गये थे तो एक बार अजीत सिंह जी के साथ मुझे पूरे दिन हेलिकोप्टर मे साथ रह कर सभाए करने का मौका मिला । उसी मे मैने उनसे कहा की कांग्रेस के पास जनाधार वाले नेता नही है ,आप यदि इसमे बने रहेंगे तो बहुत बड़े और प्रभावशाली नेता तो होंगे ही उत्तर प्रदेश में आप के बिना कुछ नही होगा और आप के कारण बहुत से पुराने लोक दली तथा।समाज वादी आप के कारन इसमे मिल जायेगे और आप मजबूत ताकत बन जायेंगे ।
पर वो नही हुआ ।आगे का सब जानते ही है ।

मेरा ग्रेटर आगरा का प्लान

#जिंदगी_के_झरोखे_से
और 
कुछ आज की चर्चा भी ---
आज अखबार मे ग्रेटर आगरा के संदर्भ मे समाचार पढा और ये कवायद आगरा विकास प्राधिकरण ने शुरू किया है ।
दर असल इस पर मैने काफी काम किया था और तत्कालीन कमिश्नर आगरा प्रदीप भटनागर जी के साथ सभी विभागो के प्रमुखो की ये बैठक कर विस्तार से चर्चा किया था ,शंकावो का समाधान किया था और फिर बैठक से प्रस्ताव पास करवा कर शासन को भेजा था । इससे पहले अपने प्रस्ताव पर डा पारीख सहित आगरा के कई प्रबुद्ध जनो से भी चर्चा कर लिया था ।
उस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मेरे बहुत अच्छे मित्र और आगरा के पूर्व जिलाधिकारी अलोक रंजन जी थे ।प्रस्ताव उनके पास पहुचने पर मैने उनको भी इसके बारे मे विस्तार से बताया था तथा इसके प्रभाव और परिणाम के बारे मे अपनी सोच से अवगत करवा दिया था ।आलोक रंजन जी मेरे प्रस्ताव से पूर्ण सहमत थे और तय हुआ कि जल्दी ही मुख्यमंत्री से समय तय कर मीटिंग रख लिया जाये जिसमे संबंधित विभागो के अधिकारी , आगरा के अधिकारी तथा   कुछ प्रमुख लोगो को बुला लिया जाये और उसमे मैं वही प्रसेन्टेशन दूँगा और मुख्यमंत्री की सहमती के बाद ये काम रफ्तार पकड लगा ।
इस पूरी योजना से एक नये नॉएडा का निर्माण होता ,आगरा के साथ साथ आसपास के जिले प्रभावित होते ,बड़े पैमाने पर कई सालो के लिये रोजगार पैदा होता और आगरा तथा पास के जिलो की अर्थव्यवस्था पर भी असर पडता ।
पर इतने लम्बे समय मे मुख्यमंत्री समय नही दे पाये और एक ऐतिहासिक फैसला जिससे आगरा के साथ पहली बार न्याय होता होने से रह गया ।
इसी बैठक मे मैने आगरा एयर फोर्स मे मौजूद सिविल एयरपोर्ट को खुले रूप से सचमुच एयरपोर्ट मे तब्दील करने और तरीके का भी सुझाव दिया था ।
आगरा की यमुना नदी के साथ प्रदेश और देश की सभी नदियो की कम से जहा तक वो शहरो को छूती है डीसिल्टींग के कारण,परिणाम सहित रचनात्मक सुझाव दिया था जिससे नदी का स्वरूप वापस आता , पानी की कमी दूर होती , पानी की गुणवत्ता अच्छी होती और शहरो वाटर लेबल बढता ।

इतने पुरस्कार मिलते थे मुझे

#जिन्दगी_झरोखे_से  -----

जब आगरा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह 1978 में उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम से चार प्रथम पुरष्कार और तीन ट्राफियां मिली थी मुझे ।वाद विवाद प्रतियोगिता ,वाक् प्रतियोगिता ,सेमिनार और निबन्ध प्रतियोगिता  प्रतियोगिताओ में मिले थे ये ।
नाम पुकारा जाता ,मैं मन्च पर जाता और वापस कुर्सी तक पहुचने को होता की फिर नाम पुकार दिया जाता । समय थोडा इसलिए लगता था के मेरे बाद द्वितीय और तृतीय पुरस्कार पाने वाले जाते , फिर ट्राफी के लिए नाम पुकारा जाता । वो लेकर मुड़ते ही थे की फिर अगली प्रतियोगिता के लिए नाम पुकार लिया जाता । कुल 7 बार मंच पर जाना निश्चित ही खुद के लिए तो सुखद गौरव का पल होता ही है , माता पिता ,परिवार और अपने महाविद्यालय के लिए भी और उसपर पूरे पंडाल से आप के लिए लगातार तालियो की गड़गड़ाहट जो उतने समय तक लगातार गूंज रही हो तो सीना भी चौडा हो जाना स्वाभविक होता है और आगे और बेहतर करने के लिए ऊर्जा मिलना भी ।
उप प्रधान-मंत्री के चेहरा फोटो मे साफ नही है वर्ना समझा जा सकता था की उनकी क्या प्रतिक्रिया थी ।
पर ये क्रम तो थोडा कम या ज्यादा कई साल चला दीक्षांत समारोह में और हर बार राज्यपाल या किसी ऐसे ही प्रमुख का आशीर्वाद मिलता रहा और गुरूजनो का तथा परिवार का भी ।

१९८० राज नारायण की का चुनाव और आर एस एस

लोकबंधु_राजनारायण_का_चुनाव_और_आरएसएस 

1980 , चौ चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री थे राजनारायण जी के कारण और राजनारायण जी यानी पुरे देश के नेताजी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे । चौ चरण सिंह ने राजनारायण जी को बनारस से लोकसभा का चुनाव लड़ने को कहा ।यदि जातिवाद मे यकींन करते नेताजी तो कई ऐसी सीट थी जहा से लड़ सकते थे और पूर्ण सुरक्षित सीट भी तय कर सकते थे पर अभी पिछ्ले चुनाव मे ही देश की ताकतवर प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी जी को चुनाव मे हराया था उन्होने तो मान लिया बात और वैसे भी बनारस उनका गृह जिला था पर ये दिक्कत थी कि कांग्रेस से वहा से पंडित कमलापति त्रिपाठी जी चुनाव लड़ रहे थे जिनकी नेताजी बहुत इज्जत करते थे (इस पर किस्सा अलग से बाद मे )
पर 
1980 के इस चुनाव की नौबत चौ चरण सिंह की सरकार से कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने के नाते आयी थी और उसके पहले जनता पार्टी टूटने की नौबत जनसंघीयो की दोहरी सदस्यता और आरएसएस के नाते आयी थी (इस सब पर भी विस्तार से अलग से बाद मे ) । उसी उठापटक मे नेताजी का निस्कासन और उनके समर्थन मे केन्द्र के कई मंत्रियो सहित 100 से ज्यादा सांसदो का इस्तीफा ,उनके द्वारा नेताजी यानी राजनारायण जी को अपना नेता चुनना और नेताजी द्वारा चौ साहब को नेता मानना और दो सांसदो को उनके पास भेजना ,तब चौ साहब का उप प्रधानमंत्री पद से स्तीफा और प्रधानमंत्री बनना इत्यादि अलग अलग लिखा जायेगा और ये भी कि दोहरी सदस्यता का सवाल उठाने और आरएसएस की भूमिका पर सवाल उठाने पर आरएसएस और उससे जुड़े लोगो ने किस कदर कमर के नीचे तक हमला किया लगातार और मुहिम चलायी राजनारायण जी के खिलाफ ये सब लिखूंगा अलग अलग हिस्सो मे ।
फिलहाल बनारस के चुनाव तक सीमित करता हू। राजनारायण जी का चुनाव करीब एकतरफा सा हो गया था उसी मे पहली घटना तो उस दिन हुयी जब चौ चरण सिंह बनिया बाग मे सभा करने आये और मंच से राजनारायण जी की तारीफ करते करते एक हल्का शब्द बोल गये पता नही जान बूझ कर या अनजाने मे जिसका विरोध भी किया मैने उनके मंच से उतरते वक्त और तब राजनारायण जी ने मुझे ज्यादा न बोलने को कह कर चुप करा दिया था ।
चुनाव जब सर्फ दो दिन रह गया था तो हम लोग शहर भर मे अन्तिम व्यवस्थाओ और जन सम्पर्क के लिए घूम रहे थे ।उस दिन शाम थोडी गहरी हो ही रही थी की अचानक नेकरधारी दिखने लगे शहर मे जगह जगह संख्या बहुत नही थी पर वो हर व्यक्ति को बस एक बात कह रहे थे की फैसला हो गया है कि बोट पंडित जी को देना है यानी कांग्रेस उम्मीदवार कमलापति त्रिपाठी जी को जबकी जनता पार्टी जिसके अध्यक्ष चंद्रशेखर जी थे और वर्तमान भाजपा यानी तत्कालीन जनसंघ उसी मे शामिल थी उसके उम्मीदवार जनसंघ के ही ओमप्रकाश सिंह थे जो बाद मे कई बार उत्तर प्रदेश में मंत्री बने भाजपा की सरकारो ने । लेकिन राजनारायण जी आरएसएस के निशाने पर थी और उनके निशाने पर आरएसएस और आरएसएस ये समझ चुकी थी कि जिस आदमी ने कभी डरना और झुकना नही सीखा और तय कर लिया की कांग्रेस को हराना है तो इन्दिरा गांधी जैसी नेता को पहले कोर्ट मे हरा दिया और फिर जनता की अदालत मे भी और ये आदमी अगर मजबूत रह गया तो आरएसएस को कही का नही छोड़ेगा और देश के सामने नंगा कर देगा उनका सिद्धांत और इरादा और फिर उस फकीर आदमी की देश मे विश्वस्नीयता भी जबरदस्त थी ।
कई जगह ये दृश्य देखने के बाद मैं थोडा विचलित हुआ और भाग कर उनके पास पहुचा और उनको बताया की आरएसएस तो अपने उम्मीदवार को हरा कर भी आप को हराने के लिये पंडित जी को वोट डालने की अपील कर रही है और अगर 25/30 हजार वोट भी इधर उधर हो गया तो मुश्किल होगी क्योकि काँटे की टक्कर है ।
नेताजी थोडा सा विचलित हुये पर फिर तुरंत बोले कि ये आप लोग बाहर किसी और से और खासकर अपने कार्यकर्ताओं से मत कहना और जाओ अपना अपना काम करो ।
और नेता जी चंद हजार वोट से चुनाव हार गये ।
लिखने का मकसद चरित्र की व्याख्या करना है ।
बाकी किस्सा अगली कडियो मे और इस चुनाव के दृश्य भी अगली कडियो मे ।

ये कौन से राय है

जिन्दगी_के_झरोखे_से--(ये_कौन_से_राय_है ? ) 

1991का चुनाव हो चुका था और पार्टी सत्ता से बेदखल ही नही हुई थी बल्की बुरी तरह चुनाव हार चुकी थी ।
यद्दपि प्रदेश का चुनाव उस वक्त देखने के कारण मैं मुलायम सिंह यादव जी को बता चुका था कि 40 विधान सभा और 5 लोक सभा मुश्किल लग रही है और उनका कहना था कि सभी अधिकारी और सभी खुफिया एजेंसियां कम से कम 125 दे रही है ।
हुआ ये की 1989 मे पूरे महीने मुलायम सिंह यादव का चुनाव देखा था जब उन्होने हरियाणा भवन मे होने वाले संसदीय बोर्ड मे जिसमे मेरे पक्ष मे टिकेट को लेकर बहुमत था मेरा टिकेट यह कह कर कटवा दिया था कि मैं तो देश मे प्रचार के लिए जाऊंगा तो मेरा चुनाव कौन देखेगा ।मैं सी पी राय को टिकेट देने के खिलाफ नही हूँ पर वो मेरा चुनाव देखे और मैं मुख्यमंत्री हो जाऊंगा तो विधायक क्या होता है उससे ज्यादा उनको बना दूंगा और मीटिंग से निकल कर सबसे पहले जॉर्ज फर्नांडीज ने मुझे ये बताया और मैं समझ गया की खेल हो गया फिर भी प्रयास जारी रखा पर उनको ये टिकेट एक कांग्रेस से निस्कासित बदनाम व्यक्ति को देना था क्योकी इनका मानना था की बदनाम ही जीत सकता है जबकी विश्वनाथ प्रताप सिंह की लहर का चुनाव था और जो भी खड़ा होता उस सीट पर वही जीतता ।देवीलाल जी मिले उन्होने भी यही कहा कि जिद मत कर वही मुख्यमंत्री होगा फिर के पता की राज्यसभा मे भेज दे या मंत्री बना दे एम एल सी बना कर ।
और मुझे इटावा मे आकर कैम्प करना पडा ।
जिला पंचायत के गेस्ट हाउस का एक नंबर कमरा रहने को मिल गया पर चाय तक पीने को दूर जाना पडता था और खाने स्टेशन के पास ।मुलायम सिंह यादव खुद सिचाई विभाग के गेस्ट हाउस का एक सूट अपना घर बना कर रहते थे क्योकी उनका बस गाँव मे ही एक कच्चा घर था उस वक्त तक । बाद मे मुलायम सिंह यादव जी ने इन्तजाम कर दिया की उनके छोटे भाई राजपाल यादव मेरा इन्तजाम देखेंगे और भतीजे रनवीर मेरे साथ रहा करेंगे दौरे मे ।
उस वक्त इटावा शहर मे एक घर मे ऊपर की मंजिल पर राजपाल यादव और शिवपाल यादव दोनो एक साथ छोटे छोटे हिस्से मे रहटे थे ।
राजपाल यादव ने ये तय किया की मेरा दोनो समय का खाना उनके और शिवपाल यादव की संयुक्त रसोई मे होगा दोनो समय पर और दोनो की पत्नियाँ अपने हाथ से बना कर दोनो समय खाना खिलाने लगी ,उस वक्त तक किसी के पास नौकर नही था ।
एक ऐसा दिन भी आया की मुलायम सिंह यादव सुबह 6 बजे बहुत नाराज होकर बोले की आप इटावा छोड दीजिये और जनेश्वर जी के चुनाव को देखिये इलाहबाद जाकर ।कारण ये था की मैं कही भी चला जाता और थोडे लोग भी होते तो भाषण करने लगता जबकी उस वक्त तक स्थिति ये थी कि जब तक 15/20 राइफल इकट्ठा न हो जाये मुलायम सिंह यादव खुद भी प्रचार मे नही निकलते थे क्योकी सामने दर्शन सिंह यादव थे जो बहुत मजबूत थे उस वक्त तक जब तक मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री बन कर उनको भाग कर दिल्ली मे रहने को मजबूर नही कर दिया  पुलिस और सत्ता के सहयोग से ।
ये अलग बात है की बाद मे उनको पार्टी मे लाकर राज्यसभा भी दिया और दर्शन सिंह जी मेरे तो पहले ही दोस्त बन गये थे एक मुलाकात मे और ये शिकायत करते हुये की राय साहब मैं सोचता की ऐस कौन आ गया जो मेरे घर मे घुस कर मुझे चुनौती दे रहा है और उन जगहो का नाम भी गिनाया जहा मैने उनके खिलाफ आग उगला था ।
मुलायम सिंह यादव ने कहा की आप को पता है की आप जहा यू ही चले जाते हो भट्ठे मे झोंक दिये जाओगे हड्डियां भी नही मिलेंगी की आप के परिवार को लौटा सकूं ।
आप अभी इलाहबाद निकल जाओ ।
मैने जवाब दिया की आप ने जो कहा था बोर्ड की बैठक मे वो याद रखो और मैं कही नही जाऊंगा ।किसी की औकात नही मुझे मारने की ।मेरि मौत ईश्वर ने जैसे तय किया होगा वैसे होगी उसकी चिंता आप मत करो ।
और मैं चुनाव तक वही रहा मुलायम सिंह यादव जी जीत भी गये और मुख्यमंत्री भी बन गये ।
पर मुझसे मुलाकात फिर तब हुई जब सरकार जाने का दिन आ गया और नये चुनाव की घोषणा हो गई ।
इस चुनाव मे मुलायम सिंह यादव ने मुझे लखनऊ रह कर प्रदेश की चुनाव व्यव्स्था देखने का काम सौपा ।तब तक गेस्ट हाउस मे रुकने पर रोक नही थी इसलिए मैं स्टेट गेस्ट हाउस मे रुक गया और मेरे बगल वाले कमरे मे अटल बिहारी वाजपेयी जी रुके थे जो लोक सभा चुनाव लड़ रहे थे । हम दोनो के कमरे की बालकनी एक ही थी ( ये किस्सा बाद मे ) वैसे वही गलती किया मैने जी 1977 मे इन्दिरा गाँधी जी से मिलने के बाद किया था ।
इसी बीच किसी काम से मैं दिल्ली गया ,किसी काम क्या उस वक्त हमारी सरकार मे जेन्द्रीय वाणिज्य मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी के यहा से कुछ सामान लाना था (ये किस्सा भी बाद ने ,और न लिखू तो कोई याद दिला दे क्योकी इसमे एक सच का दर्शन होगा ) ।
दिल्ली से लौटते हुये मैं आगरा नही रुका बल्की इटावा रुका और खाना खाने राजपाल यादव और शिवपाल यादव के घर रुक गया । तभी वहा मुलायम सिंह यादव भी आ गये क्योकी किसी बच्चे की उंगली जल गई थी ।
हम दोनो खाने बैठे और उन दोनो की पत्नियाँ खाना लगा रही थी और ताजी रोटियां परोस रही थी । मुलायम सिंह यादव ने मुझसे पूछा की आप प्रदेश का चुनाव देख रहे है क्या लग रहा है ? मैने कहा की 40 विधानसभा और 5 लोक सभा हो जाये तो काफी है ।वो बोले की सभी अधिकारियो और खुफिया की रिपोर्ट तो कम से कम 125 की है ।
मैने कहा की 225 हो जाये तो मुझे खुशी होगी ।
उन्होने मेरा दिल्ली का काम पूछा और आगे का कार्यक्रम फिर मैं लखनऊ आ गया और वो अपने गन्तव्य को ।
चुनाव परिणाम आया जिसमे चन्द्रशेखर जी सहित हम केवल 4 लोक सभा चुनाव जीत पाये और 30 से भी कम विधायक ।
(बाकी चुनाव के बाद का किस्सा अगले एपिसोड मे )
एक दिन मुलायम सिंह यादव का फ़ोन आया की वो आगरा आ रहे है । आगरा मे राजस्थान के पुराने समाजवादी नेता पंडित रामकिशन जो 1977 मे भरतपुर से सांसद भी रह चुके थे उनके परिवार की बेटी की शादी थी ।
आगरा के बॉर्डर पर हम केवल 9/10 लोग अगवानी करने वाले थे जिसमे एक पूर्व मंत्री थी और भट्ठो का मालिक थे तथा उनके पास जीप थी और दूसरा मै जिसके पास अपनी कार थी और मेरे साथ 6/7 लडके ।
मुलायम सिंह यादव ने मुझे अपनी गाडी मे बुला लिया और मेरी गाडी एक कार्यकर्ता चलाने लगा ।शादी का कार्यक्रम खत्म कर हम लोग वापस उनको इटावा जाने के लिए जब छोड़ने वापस आने लगे तो मुलायम सिंह यादव के साथ बिहार के एक नेता भी आये थे हरेन्द्र नाथ प्रसाद और आते वक्त से इस वक्त तक वो मेरी और मुलायम सिंह यादव जी की लगातार चर्चाये सुन कर कुछ विचलित थे ।कुछ दूर चलते ही उन्होने मुलायम सिंह यादव से पूछा की साहब एक बात पूछना है । मुलायम सिंह यादव ने उनकी तरफ देखा की क्या तो बोले की ये जो राय साहब है ये हमारे बिहार वाले दारोगा प्रसाद राय ( जो यादव थे और कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे थे ) वाले राय है या कल्पनाथ राय वाले राय है (जो भूमिहार थे और इन्दिरा गाँधी के बहुत प्रिय और केन्द्र मे मंत्री ) ? कि आप इनपर इतना भरोसा जता रहे है ।
मुलायम सिंह यादव को शायद ऐसे सवाल की उम्मीद नही थी तो थोडा अचकचाये ,थोडा रुके और बोले कि ये कल्पनाथ राय वाले राय है पर नेताजी या राज नारायण जी के बहुत करीबी रहे है और प्योर सोशलिस्ट है और पूरे भरोसे के ।
मैने महसूस किया था उस वक्त की हरेन्द्र बाबू असली जाती सुन कर अभी भी आश्वस्त नही हो पाये थे ये अलग बात की बाद मे मेरे प्रशंसक हो गये थे ।
कितने खट्टे मीठे अनुभव से भरी है मेरी जिन्दगी भी ।

जातिवाद का मज़ा पर फिर भी नहीं बदला

#जिंदगी_के_झरोखे_से 

#जब_जातिवाद_का_पहला_मज़ा_चखा_था_फिर_भी_नहीं_बदला_खुद_को

भाग 1-छात्र आंदोलन 

जातिवाद के हमले का पहला मजा छात्र जीवन में चखा मैंने जब एक खास जाति के  राजा जो राजनेता थे और प्राचार्य तथा शिक्षको ने मुझे वो चुनाव हरा दिया था जो मेरे सतत आंदोलनों और जेल यात्रा के कारण हुआ था :::

70 के दशक से लेकर 80 के दशक का प्रारंभ था वो जब वो आंदोलन छेड़ रखा था मैने की वर्षो से बंद छात्र संघ के चुनाव फिर शुरू करवाए जाए । हम मांग करते , कालेज बंद करवाते , हड़ताल होती ,पुलिस का लाठीचार्ज होता बस एक चीज नहीं होती वो था छात्र संघ चुनाव । वादे हर बार होते पर सत्ता और प्रशासन के वादे और ऊंट का पाद एक बराबर माना जा सकता है ।
ये 80 के दशक का प्रारम्भ था जब छात्र हित की बहुत सी मांगे मुझे परेशान किए हुए थी जिसमे मुख्यतः आई ए एस पी सी एस, मेडिकल और इंजीनियरिंग की विशेष कोचिंग क्लासेस , गरीब छात्रों की फीस माफी , शिक्षण कार्य और क्लासेस की अनिवार्यता , होटल की बदहाली से मुक्ति , छात्राओं के लिए हॉस्टल तथा बाथरूम सहित रेस्टरूम बनाना , छात्रों के लिए साफ बाथरूम, हॉस्टल में खाने की अच्छी व्यवस्था तथा उसका रेट, लाइब्रेरी में अच्छी पुस्तकों का सवाल तथा जो विषय कालेज में नही थे उनको खोलना , रोजगार परक शिक्षा की मांग और या तो कम की गारंटी या बेरोजगारी भत्ता की मांग इत्यादि । 
आए दिन मैं कालेज का घंटा बजा देता और कालेज के बीचोबीच लाइब्रेरी के बरामदे में जो काफी ऊंचा था सामने खड़ा हो जाता ।पहले शिक्षक और फिर छात्र छात्राएं बाहर निकल कर देखते और मुझे वहा खड़ा देख कर आदरणीय शिक्षक अपने शिक्षक कक्ष में चले जाते और छात्र छात्राएं जिनमे मेरे भाषण का बहुत क्रेज था भारी संख्या में सामने आकर खड़े हो जाते । जब इत्मीनान हो जाता की सभी कक्षाएं छूट गई है तब मेरा कोई साथी एक दो बात कह मुझे बोलने को आमंत्रित करता और फिर मेरा विस्तार से भाषण शुरू हो जाता ।
मैं वो सारी बात बताता की आज की हड़ताल क्यों और कक्षाएं बंद करने का उद्देश्य क्या है । विस्तार से सारी बात कहने के बाद  हर बार बताता की जुलूस कहा तक जाएगा विश्वविद्यालय या जिलाधिकारी के ऑफिस । उसी समय ये भी बता देता की चलना कैसे है ,आगे कौन चलेगा ,कौन बीच में और कौन पीछे । सड़क पर हमारा शांतिपूर्ण व्यवहार होगा और हम एक किनारे चलेंगे और वापस आयेंगे । साथ ही हमारे नारे क्या होंगे तथा डी एम या कुलपति से बात करते वक्त कौन कौन बोलेगा तथा कैसे और क्या बात होगी तथा किसी बाहरी ताकत या पुलिस के उकसावे में हमे नही आना है इत्यादि ।
इतना शराफत का तथा एक बार को छोड़कर हमेशा शांत आंदोलन करने के बावजूद इधर मेरा जुलूस निकला और उधर विश्वविद्यालय जो या डी एम कार्यालय भर्ती पुलिस और पी ए सी तैनात हो जाती । मेरे जुलूस से पुलिस आमतौर पर दूरी बना कर रखती थी ।
पर उस बार हम जुलूस लेकर आर बी एस कालेज से निकले जिसमे भारी संख्या में छात्र और कुछ छात्राएं भी थी ,जुलूस सेंट जॉन्स कालेज पहुंचा और मेरे निर्देश के अनुसार कालेज के बाहर ही रुक गया । मैं अकेला कालेज के अंदर गया और प्राचार्य के ऑफिस के पास लटके घंटे को बजा दिया । मुझे देखते ही प्राचार्य ने छुट्टी का ऐलान कर दिया । विशेस बात ये थी की इस कालेज से न के बराबर छात्र किसी आंदोलन या जुलूस में हिस्सा बनते थे । छुट्टी होते ही या तो घर निकल लेते या छात्र छात्राएं कालेज का कोई कोना पकड़ लेते अन्यथा रेस्ट्रा या सिनेमा का रुख करते । 
फिर जुलूस आगरा के सबसे बड़े कालेज आगरा कालेज पहुंचा । इस कालेज की विशेषता ये थी की यहां सभी विचारधारा के छात्र नेता बहुत थे पर अकेले आते थे और बहुत क्रांतिकारी भाषण देते थे पर किसी के भी साथ दस छात्र भी नही होते थे ।
इस बार यहां के प्रोक्टर और प्राचार्य में किसी कारण से जिद पकड़ लिया की चंद्र प्रकाश राय ( मेरा छात्र जीवन का नाम ) को अंदर नही आने देंगे और न हड़ताल ही होने देंगे ।चूंकि यहां के छात्र नेता छात्रों से जुड़े नही थे तथा मेरी तरह छात्रों को सब समझा कर विश्वास में लेने में विश्वास नहीं करते थे इसलिए छात्रों का समर्थन नहीं ले पाते थे ।
कालेज का गेट बंद था बाहर मेरी भारी भीड़ नारे लगा रही थी और मैं गेट पर चढ़ कर चिल्ला रहा था पर छात्र गेट से बहुत दूर रोक दिए गए थे जिनतक मेरी आवाज और बात नही पहुंच रही थीं फिर भी सड़क के दूसरी तरह हास्टल में मौजूद मेरे प्रशंसक कुछ छात्र आकर जुड़ गए और वो उसी कालेज का होने का हवाला देकर गेट खोलने की मांग करते हुए कुछ गेट पर चढ़ गए और कुछ गेट को हिला कर तोड़ने की कोशिश करने लगे । यद्धपि मैने ऐसा करने से रोकने की कोशिश किया पर नाकामयाब रहा । मेरा अनुशासन सिर्फ मेरे साथ आए छात्रों पर लागू हो पाया । इस बीच सिटी मजिस्ट्रेट पांडे जी तथा सी ओ सिटी राज बहादुर सिंह के साथ भारी फोर्स प्राचार्य के बुलाए पर आ गया । सिटी मजिस्ट्रेट मुझसे बोले की आप हमेशा शांतिपूर्ण आंदोलन करते है इसबार भी शांति से लेकर कलेक्टरी जाकर ज्ञापन सौप वापस चले जाइए । पर इस बार मैंने जिद पकड़ लिया की कालेज में में अकेला जाऊंगा और अंदर मौजूद छात्रों से बात करूंगा फिर जो मेरे साथ जाना चाहे उन्हें जाने दिया जाए वरना मैं अपने साथियों के साथ आगे बढ़ जाऊंगा ।
बात नही बनी और आगरा कालेज के छात्र जो गेट को बुरी तरह हिला रहे थे लगता था की गेट तोड़ देंगे उनसे पुलिस का टकराव बढ़ गया और फिर भारी लाठीचार्ज हो गया । सिटी मजिस्ट्रेट और सी वो दोनो मेरे पास आकर खड़े हो गए की कही मेरे ऊपर प्रहार न हो जाए वरना बात ज्यादा बिगड़ जाएगी । फिर भी जिस छात्र को मैं पीटता देखता उसी को बचाने लपक पड़ता और मेरे साथ दोनो अधिकारी भी ,वो छात्र बच जाता पर इतनी भीड़ और लाठचार्ज से में कितनो को बचा पाता । काफी छात्र भाग गए पर काफी घायल हो गए और कुछ ज्यादा घायल हो गए जिनका पुलिस से ज्यादा टकराव हुआ था ।।लाठीचार्ज बंद हुआ और ज्यादा घायल छात्रों को अस्पताल तथा बाकी को गिरफ्तार कर थाने ले जाया गया पीछे पीछे मैं और अन्य कुछ नेता भी थाने पहुंच गए । 
शाम को 6 बजे हमे गिरफ्तार करने की सूचना दी गई और पुलिस दबाव में नियम तोड़ कर उसी वक्त जेल भेजा गया था जब खाने की कोई व्यवस्था नहीं था ।कुछ खाने की व्यवस्था हुई और एक पूरी बैरक कैदियों से खाली करवा कर हमोगो को उसके हवाले कर दिया गया ।
एक पूर्व सांसद साथी जो जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री थे और उस समय दलितों के सवाल पर बहुत ज्यादा मुखर थे जो हम लोगो के समर्थन थाने आ गए थे उनको भी गिरफ्तारी की सूची में नत्थी कर दिया गया ।

भाग 2: जेल की जिंदगी और जेल का सच 

शायद वो 20 तारीख थी हम शाम को जेल पहुंचा दिए गए थे । मेरे परिवार ने शाम को ही फोन से दिल्ली राजनारायण जी यानी देश भर के नेता जी यानी इंदिरा गांधी को कोर्ट और वोट दोनो में हराने वाले नेता जी को सूचित कर दिया की में गिफ्तार हो गया हूं और जेल भेज दिया गया हूं । 
21 तारीख को सुबह ही राजनरायण जी आगरा में जेल के फाटक पर थे ।स्थानीय प्रशासन को पता लगा तो उसके हाथ पैर फूल गए ।  राजनरायण जी के साथ प्रशासन जेल में हाजिर था और कुछ अधिकारी नेता जी से कही का रिश्ता निकाल कर और कुछ किसी और तरह का संपर्क निकाल कर उनको सामान्य बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे  ( ऐसे ही थे वो नेता जी , वन मैंन आर्मी ,अकेले जिधर निकल जाए पूरे शासन और प्रशासन की सांस फूली रहती थी की किसी तरह वो शांति और सद्भाव से प्रदेश से अथवा जिले से चले जाए । ऐसे ही नहीं उनपर आजादी की लड़ाई में अंग्रेजो ने उस वक्त जिंदा मुर्दा पर 5000 इनाम रखा था , ऐसे ही नहीं वो इंडिया गांधी जैसी महान नेता और लौह महिला से लोहा ले बैठे और अंत में कोर्ट तथा बोट दोनो मैदान में हरा भी दिया ये अलग बात है की उसके बावजूद इंदिरा जी से उनके व्यक्तिगत रिश्ते बहुत ही अच्छे बने रहे । ) । प्रशासन इस चक्कर में था की नेता जी बस हा कह दे और तुरंत सबको जेल से रिहा कर पिंड छुड़ाया जाए पर नेता जी छुड़ाने तो आए नही थे बल्कि देखने आए थे की हम जेल जाकर परेशान तो नही है और ताकत तथा जोश  देने आए थे और चूंकि पुराने जमाने से असली वाले सोशलिष्ट जो "जेल फावड़ा वोट "की बात करते थे और "एक पांव रेल में एक पांव जेल में " में विश्वास करते थे वो  जेल को दूसरा घर और पाठशाला मान कर प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल करते थे एकाग्र होकर । राजनरायन जी भी इसी इरादे से आए थे की काफी दिन बाद छात्र जेल में आए है तो यहां से प्रशिक्षित समाजवादी कार्यकर्ता बन कर निकले और उन्होंने मुझे चुपचाप यही करने का निर्देश दिया । 
उनके जाने के अगले दिन आजादी की लड़ाई के योद्धा और पूर्व सांसद और जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमांडर साहब के नाम से मशहूर अर्जुन सिंह भदौरिया एक जत्थे के साथ सत्यग्रह कर खुद जेल भेजने की जिद कर जेल आ गए । जेल प्रशासन उनके आने से परेशान हो गया और सभी राजनैतिक कैदियों की वो व्यवस्थाएं करने को मजबूर हो गया जो नियम अनुसार होनी चाहिए थी । अगले दो दिन में और जत्थे समर्थन में गिरफ्तारी देकर आने लगे । चौथे मेरे साथ समाजवादी युवजन सभा में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे राजनरायन जी के एक और भक्त जो बाद में कई बार विधायक और सांसद बने बरेली के कुंवर सर्वराज सिंह भी मेरे समर्थन में गिरफ्तारी देकर जेल आ गए । छात्रों के अलावा जनता पार्टी के जत्थे भी गिरफ्तारी देकर आने लगे और संख्या बढ़ने लगी । अगल बगल की दो बैरक कैदियों से खाली करवा कर हम लोगो को उनमें रख दिया गया और कुछ खाना बनाना जानने वाले कैदी हम लोगो को दे दिए गए की ये हम लोगो का खाना अलग से हमारी बैरक में ही बनाएंगे और हम लोगो के जिम्मे लगा दिया गया की हम अपने में से कुछ लोगो को लगा दे जो रोज नाश्ते से रात के खाने तक का राशन स्टोर से तुलवा कर ले लिया करे । 
जिंदगी पिकनिक जैसी हो गई ।
इसी बीच कमांडर साहब ने जेल अधीक्षक को तलब किया और निर्देश दिया की कानून के मुताबिक राजनैतिक कैदियों को मौसम के अनुसार दो सेट कपड़े , कोट, तौलिया और जूता या चप्पल मिलना चाहिए । बस अगले दिन गांधी आश्रम का टेलर आ गया सबकी नाप लेने और फिर कुर्ता पजामा , बंद गले का काट, गमछा , और चप्पल गांधी आश्रम से सबके लिए थोड़े दिन में ही आ गई और ओढ़ने बिछाने का सब नया मिल गया । मेरा घर पास में था तो मेरे लिए ओढ़ने बिछाने का व्यक्तिगत घर से आ गया और पहनने के कपड़े ही घर से आ जाते थे ।सुमन जी की सेवा में भी लोग लगे रहते थे । कमांडर साहब नियमित रूप से जेल में ही कपड़े धो लेते या कोई सेवा में धो देता और सर्वराज़ को भी बाहरी मेहमान मान कर कोई न कोई उनका सब कर देता । जेल में मैने दो चार और गंभीर लोगो में एक किनारे पर सोने वाला सीमेंट का अपना अपना चबूतरा ले लिया ताकि राजनीतिक चर्चाएं हो सके । 
हम लोगो ने तय किया की रोज शाम को क्लास लगा करेगी और उसमे मैं बोलूंगा और संचालन करूंगा फिर अगर सुमन जी और सर्वराज कुछ बोलना चाहे या कोई और तो बोले और अंत में कमांडर साहब अपना उद्बोधन ।रोज का विषय में और कमांडर साहब तय कर लेते और ये क्रम चल निकला । इस कार्यक्रम में पूर्व सांसद जी ने अपनी गायन की प्रतिभा और शेरो शायरी के रुझान कर परिचय दिया और माहौल को बोझिल होने से बचाया । 
पर देखा ये गया की प्रशिक्षण और वैचारिक ज्ञान में रुचि लेने वाले  कुछ ही लोग थे और वो प्रशिक्षित होकर अच्छे नेता तथा कार्यकर्ता भी बने ।

: जब जेल में राजनीति का मंच बन गया 

राजनरायन जी ने जाकर और नेताओ को फोन करना और भेजना शुरू किया ।सबसे पहले जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर जी आए और उस वक्त जेल , और प्रशासन तंत्र एक पैर पर खड़ा था । ये तय हुआ कि चंद्रशेखर जी सभी सत्याग्रहियों को स्वोधित करे तो आनन फानन में एक तखत आ गया ,उसपर चादर बिछ गई और सामने दरिया बिछ गई और मेरे संचालन में पहले कमांडर साहब का और फिर चंद्रशेखर जी का भाषण हुआ ।
इसके बाद पूर्व रेल मंत्री और सांसद तथा संसद में अघोषित रूप से नेता विपक्ष की भूमिका निभाने वाले मधू डंडवते जी आ गए । फिर मंच सजा और सभा हुई ।
फिर राजनरायण जी ने पूर्व मुख्य मंत्री राम नरेश यादव को भेजा फिर सभा जमी ।जब तक हम लोग जेल में रहे स्थानीय मिलने वालो का और नेताओ का दिन भर तांता लगा रहा और उसके कारण सामान्य दिनों में चलने वाली जेल व्यवस्था ध्वस्त हो गई थी तथा जेल के अधिकारियों का रुतबा और खास कैदियों के खास होने का रुतबा भी ।

 जेल में समाज का दर्शन 

बाकी का अपना अपना शौक था ।कुछ ने ताश की गड्डियों का इंतजाम कर लिया और दिन उसी से काटने लगे तो चंद ऐसे जो गुंडों को शायद अपना हीरो मानते थे और किसी बहाने से उन्ही से दोस्ती करने और संबंध बनाने में लगे थे । चूंकि राजनैतिक कैदियों पर पाबंदी नहीं रह पाती तो वो जेल भर का भ्रमण करते रहते और बाहर गेट तक घूम आते । एक खास राष्ट्रवादी सांस्कृतिक संगठन से जुड़े दो तीन छात्र भी नेता बनने के चक्कर में जेल आ गए थे और दो दिन बाद रोने लगे थे पर फिर रात को दो तीन लफंगों से उनकी दोस्ती हो गई और उसके बाद वो सब एक तरफ कोने में एक साथ सोने लगे और आंदोलन से आए लोगो का माहौल दूषित करने लगे ।एक लड़का तो मिलने आने वाले की बिना सूंखी मुहर वाला दूसरे का हाथ अपने हाथ पर जोर से दबा कर उसी निशान के सहारे जेल से बाहर चला गया और फिर वापस भी आ गया पता नही कहा कहा घूम कर । पूर्व सांसद जी के भक्त गण उनके लिए  कुछ न कुछ खाने पीने ? को लेकर आते थे और एक कोने में ये लोग खड़े हो जाते पूर्व सांसद जी को घेर कर । बाकी अन्य लोग फल या मिठाइयां लाते और वो सबमें बट जाती थी । एक दिन उत्कंठा वश में भी पूर्व सांसद जी के घेरे में पहुंच गया तो मुझे भी केवल मछली खाने को प्राप्त हो गई ।
कुछ वकील आ गए थे समर्थन में पर थोड़े ही दिन में उनको अपनी वकालत बरबाद होती दिखने लगी और वो मुचलका भर कर घर जाने के फेर में पड़ गए । कई को अपना परिवार संकट में दिखने लगा तो कई अन्य कारणों से रूवासे रहने लगे और मुचलका भरने के फेर में पड़ गए ( तब मुझे दो बाते समझ में आ गई की आजादी की लड़ाई में माफी मागने वाले अंग्रेजो के पिट्ठू बनने वाले कौन और क्यों रहे होंगे और आपातकाल में इंदिरा जी की और आपातकाल की तारीफ कर जेल से भाग खड़े होने वाले कौन लोग और क्यों रहे होगे । और दूसरी की स्वतंत्रता संग्राम रहा हो या आपातकाल या अन्य आंदोलन वो किन लोगो के दम पर सफल हुआ और किस तरह के लोग होते है जो लंबी जेल काट लेते है लेकिन डिगते नही है ।

 : पगली घंटी 

राजनैतिक कैदियों के कारण खूंखार अपराधी जो वैसे जेल के राजा होते है और पूर्ण स्वतंत्र तथा स्वच्छंद जिंदगी जीते है उन पर पाबंदियां लग गई थी इसके कारण एक दिन एक बड़े अपराधी और उसके साथियों का धैर्य जवाब दे गया और वो हमलावर हो गए तथा तेज आवाज में एलान देने लगे ।जेल का वातावरण तनावपूर्ण हो गया तथा एकाध राजनैतिक साथियों को थप्पड़ पड़ गया । 
जेल में एक घंटी बजती है जिसको कहते है पहली घंटी और ये आपदा में बजती है तथा फिर जो जहा दिखता है उसकी वही पिटाई होती है और प्रमुख कारण बने लोगो को जेल की अंग्रेजो के काल से चली सजा मिलती है ।
जो मुख्य अपराधी था तथा सभी पर आक्रमक हो गया था उसको बेड़ी और हायकड़ी सब डाल दी गई जिसे पहन कर आप चल नही सकते , बाथरूम में बैठ नही सकते और ठीक से सो नहीं सकते । उस समेत कई की रात को पिटाई भी होने की आवाजे आई । मुख्य आरोपी जो बड़ा गुंडा था तथा जिसका वैसे राज चलता था और वो बाहर उससे अफसर या कर्मचारी तथा उसके परिवार को खतरा न रहे और साथ ही महीना भी मिलता रहे इस कीमत पर चलता है ।

 : पीलियों या पक्को का जोर और एनकाउंटर 

जेल की सबसे बड़ी और वीभत्स सजा है किसी को आजीवन कारावास काट रहे पीलियो या पक्को को सौंप देना की वो रात भर उसके साथ जो ?  करना चाहे कर ले और वो भी हटकड़ी बेड़ी लगे होने पर प्रतिरोध रहित ।
अगले दिन कुछ पक्को ने ही चटकारे लेकर रात की कहानी उनके बीच बैठने उठने वालो को बताया और फिर पूरे जेल को पता लग गया ।  वो बड़ा गुंडा कुछ दिनों में जमानत पर छूट गया और बाहर एक जेलर पर चाकू से हमला कर दिया जो घायल हो गए पर जान बच गई । संभवतः उसी जेलर ने पक्को को सौंपा था । जेल के सभी लोगो और उनके परिवारों की जिंदगी खौफ के साए में आ गई तब कुछ ही दिनों में सेट तरीके और सेट कहानी के अनुसार और कुछ निश्चित जगहों में से एक जगह पर उस गुंडे का एनकाउंटर हो गया और वो अपनी गति को प्राप्त हो गया । बेचारा बड़ा कसरती थी तथा उसका परिवार आगरा का सबसे अच्छा मसाला बनाता था ।

 : धन है तो सब हाजिर है 

जेल में धन से सब सुविधाएं मिल जाती है । एक डाकू बंद था उसको सब कुछ और सब सुविधाएं हासिल थी यहां तक कि एक वैश्या रिश्तेदार बना कर मिलाई के नाम पर उसके साथ स्टोर रूम में कुछ देर को बंद कर दी जाती थी । जेल भी बाहर के समाज और उसकी सभी बुराइयों का एक आईना है ।

: जेल से रिहाई 

आखिर में जेल प्रशासन और आगरा प्रशासन ऊब गया और हम लोगो को हमारी शर्त के अनुसार बिना शर्त 
ससम्मान रिहा करने को तैयार हो गया और तत्काल सभी कालेजों में चुनाव कराने को तैयार हो गया और उस दिन शाम को हम सब अपने घर पहुंच गए । मेरी दाढ़ी बढ़ गई थी बाल बढ़े थे और जेल में बैठ कर खाने तथा दिन भर आने वालो द्वारा लाई गई चीजे खाने से वजन भी बढ़ गया था ।

भाग 3 :छात्र संघ चुनाव 

अब छात्र संघ चुनाव पर मंथन शुरू हो गया और उसके बाद तक के कार्यक्रम पर चर्चा होने लगी । छात्र संघ चुनाव घोषित हो गया तो राजनरायन जी ने मुझे बुलाया की छात्र संघ चुनाव में क्या होना है और अपनी तरफ से कौन लड़े । अन्य कालेजों के बारे में तो मुझ पर छोड़ दिया उन्होंने लेकिन मेरे कालेज के बारे में विस्तार से चर्चा किया तथा पहले का छात्र संघ का इतिहास ,कौन जीतता रहा , सामाजिक समीकरण क्या है और मेरे यह कहने पर की मैं स्वयं लडूंगा उन्होंने मेरा मजबूत पक्ष जानना चाहा जो सिर्फ दो था की आज तक मैं अकेला उस कालेज का छात्र नेता था तथा एन सी सी हो या खेल या ड्रामा और साहित्य सभी में आगे था इसलिए बहुत इज्जत थी और दूसरा की ये चुनाव मेरे संघर्ष और जेल काटने के परिणाम स्वरूप हो रहा है तो छात्र मुझे ही वोट देंगे और काफी सालो से छात्र संघ नही था तो अब बाकी लोगो को पता ही नही है की ये क्या होता है और क्या तथा कैसे करता है साथ ही जिन मुद्दों को लेकर में लगातार आंदोलन चला रहा था उनके प्रति मेरी ही प्रतिबद्धता है ।
इसपर राजनरायन जी ने पूछा की आज के पहले क्या इस कालेज की खास जाति के अलावा कोई अध्यक्ष हुआ तो मैने बताया की हा सिर्फ एक बार जब खास जाति के 4 मजबूत लोग खड़े हो गए तब जीता था पर हार के बाद खास जाति के सब एक हो गए और फिर उस अध्यक्ष को कालेज में घुसने ही नही दिया ।
इस पर राजनरायन जी बोले बेटा आप भी उस खास जाति का ही प्रत्याशी खड़ा कर किंग मेकर बनो । आप की सारी प्रतिभा और कुर्बानी रखी रह जाएगी और खास जाति आप को हरा देगी । पर मैं नेता जी की इस बात पर बिलकुल सहमत नही हुआ और तर्क दिया की इस तरह तो हम जाती तोड़ो के नारे को खुद छोड़ दे रहे है ,मुझे विश्वास है की पूरा कालेज मेरा साथ देगा । जब मैं हठ कर बैठा तो नेता जी ने कहा की जाइए आप राजनीति का सबक सीख लीजिए । 
मैने कहा नेता जी मैं जीतूंगा और छात्र संघ का उद्घाटन आप को करना होगा । इस पर वो बोले की आप जीत गए तो मैं तो चलूंगा ही पर आप के छात्र संघ का उद्घाटन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी जी करेंगे । आप के कालेज के लोग और आगरा के लोग भी याद रखेंगे की किसी चंद्र प्रकाश की वजह से राष्ट्रपति आए उद्घाटन करने । उन्होंने 500 रुपया भी दिया और मैं खुशी खुशी  दिल्ली से वापस आ गया ।
मैंने अपनी छात्र संघ की अच्छी टीम बनाई और नॉमिनेशन कर दिया । एक खास  जाति का और एक जाट तथा पिछड़ों का पेनल उतरा जिन लोगो का आजतक किसी आंदोलन और छात्र समस्याओं से कोई लेना देना नही था ।दोनो के साथ अपराधी प्रवृति के लोग भी थे और खास जाति वाले पर विद्यार्थी परिषद वालों भी टोपी पहनाने की कोशिश किया क्योंकि इस कालेज में विद्यार्थी परिषद की जड़े कभी जमी ही नहीं थी । 
अगले दिन एक पूर्व राजा जो की काफी बार से विधायक हो रहे थे और इस वक्त कालेज मैनेजमेंट कमेटी के सचिव थे उन्होंने मुझे बुलाया और बंद कमरे में बात किया । वो बोले की आप न हमारी जाती के हो और न इस क्षेत्र के बल्कि पूरब से आए हो फिर भी आप शरीफ हो तथा आप की रिपोटेशन अच्छी है और बाकी दोनो गुंडों के गुट है और मैनेजर हूं इसलिए चाहता हूं की आप जीतो पर आप राजनरायन जी का साथ छोड़ दो और हमारे साथ आ जाओ ।तब तक राजनरायन जी और चौ चरण सिंह में दूरी हो गई थी और राजा सहन चौधरी साहब के साथ थे । मैने राजनरायन जी को छोड़ने से इंकार करते हुए जवाब दिया की आप खुद कह रहे है की में अच्छा हूं और बाकी गुंडे है इसके लिए आप आशीर्वाद दीजिए और छात्रों को स्वतंत्र रूप से चुनाव करने दीजिए । जीत हार छात्रों को ही तय करने दीजिए । इसपर उन्होंने कहा की बाहर जीप खड़ी है वो ,उसका पेट्रोल और चुनाव खर्च सब मेरा और आप को जीता दूंगा पर हमारे हो जाओ। मैं प्रणाम कर और उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर वापस चला गया ।
दो तीन दिन बाद शाम को मेरे साथ का एक लड़का भागता जागता हुआ आया की राजा साहब के घर पर एक मीटिंग चल रही है जिसमे प्राचार्य ,कई अध्यापक खासकर बिचपुरी के विज्ञान और कृषि के है जो खास जाति के है बैठे है । इसपर मैने कहा की राजा साहब मैनेजर है कोई मीटिंग कर रहे होंगे । तब वो बोला की नही खास जाति का अध्यक्ष पद का प्रत्याशी और हमारे पैनल के तथा जाट के पैनल के भी खास  जाति के प्रत्याशी भी है मीटिंग में । मैं आवक रह गया और मुझे इसपर विश्वास नही हुआ । हम दोनो राजा साहब के घर की तरफ चल पड़े ।राजा साहब का शहर में घर कई बीघों जमीन में बगीचे के बीचोबीच बना है जिसमे दूर से आप को उनके बरामदे में बैठे लोगो को देख सकते है पर वो नही देख सकते है । सचमुच  वहा वही दृश्य था और मैं विचलित भी हुआ और क्रोधित भी तथा एक बार मन हुआ की जाकर  सबकी लानत मलानत कर अभी चुनाव प्रक्रिया पर हमला कर और अखबार को सब देकर खुद चुनाव से हटने की घोषणा कर दू ।दूसरी तरह मन और आत्मविश्वास ने कहा की नही कोई कुछ कर ले छात्र छात्राएं मुझे एकतरफा भारी वोट देकर इतिहास बदलेंगे और इसी उहापोह में वापस घर आ गया । प्रचार जोरों पर था ।खास जाति के दो भाइयों ने पूरी ताकत से मेरा साथ पहले दिन से आखिरी दिन तक दिया । बड़ा भाई धर्मेंद्र सिंह मुन्ना जो फुटबाल का बहुत बड़ा खिलाड़ी है तथा इस वक्त भी भारत की टीम में एशिया खेल कर आया था ,उनका छोटा भाई और खिलाड़ी लल्ला जो बाद में जिला क्रीड़ा अधिकारी बन गया और एक और नाम जुड़ गया इस जाती से बाद में एक जमीदार परिवार के दिलीप सिंह । इनमे से मुन्ना और दिलीप कालेज के छात्र नीति फिर भी नैतिक और अपनी साख से साथ दे रहे थे । बाकी कामर्स फैकल्टी पता नही क्यों पूरी साथ हो ली । हमारे कालेज में छ्त्राए कम थी पर उनका करीब पूरा समर्थन मुझे मिला । चुनाव उठते उठाते कालेज जातिवाद का अखाड़ा बन गया । खास जाति एक जगह एकजुट हो गई और जात तथा पिछड़े छात्र एक जगह (जबकि मैं पिछड़े मांगे सौ में साठ की राजनीति करता था पर जातिवाद के चश्मे में मेरा सब गुण और योगदान धुधला हो गया ) । इनमे वो करीब 100 से ज्यादा लोग भी थे जो पीछे ब्लैक लिस्ट हो गए थे तथा किसी भी तरह उनको एडमिशन नहीं मिल रहा था तब आमरण अनशन कर दबाव बना उन सबका मैने एडमिशन करवाया था , इनमे वो भी थे जिनकी फीस माफ करवाया था ।
खैर चुनाव के पहले का आखिरी दिन आ गया । बाकी दो के पास खूब साधन थे ,स्वरियां थी और मसल पावर थी और वो दिख रही थी और इधर बहुत मुश्किल से अपील का पर्चा भर छपा था ,हा मेरे साथियों ने दोनो कैंपस ही नही शहर की काफी मुख्य दीवार मेरे नाम से भर दिया था खुद रात रात भर कूची और रंग या रोशनाई और चुना लेकर जो नाम काफी सालो बाद दीवारों से मिट सका ।
मैने घोषणा किया की पूर्व परंपरा के अनुसार चुनाव के एक दिन पूर्व सभी अध्यक्ष पद के प्रत्याशी लाइब्रेरी के सामने जहा पहले होता था छात्रों को संबोधित करे और हो सके तो पूर्व की भांति क्वालीफाइंग स्प्रीच हो और प्राचार्य तथा उनके द्वारा तय अध्यापक पहले की तरह ही तय करे की कौन चुनाव लडने लायक है पर ये नही माना गया और न बाकी दोनो छात्रों को संबोधित करने ही आए ।
भारी संख्या में छात्र छात्राएं एकत्र थे और उस दिन मेरा वो ऐतिहासिक भाषण हुआ । जिसमे मैने ये भी कहा की कल 31 तारीख तो तय होना है की कालेज शिक्षा मंदिर ही रहेगा या गुंडों का अड्डा होगा और इसी तिराहे पर आंदोलन का आगाज और भाषण नही गुंडों का जमावड़ा होगा । हॉस्टल पढ़ाई का सुरक्षित स्थान होगा या गुंडों की शरण स्थली और पुलिस के निशाने पर होगा ।कल तय होगा की कालेज में आई ए एस और मेडिकल सहित सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए स्पेशल क्लासेस होंगी या यहां गोलियों की आवाजे गूजेगी इत्यादि इत्यादि । यहां बहनों को पढ़ाई और सर्वांगीण विकास का माहौल होगा या उनका आना मुश्किल हो जायेगा ।मेरी ये बात भी  याद रखे लोग को जो गुरुजन आज अपने स्थान और सम्मान से गिर गए है वो आगे के लिए कांटा बो रहे है और ये कांटे उनके दामन में भी जरूर चुभेंगे आगे चलकर । मेरा करीब एक घंटे के भाषण खत्म हुआ तभी कही से कट्टे की दो सलामी हुई। मैंने कहा की यदि ये मुझे डराया जा रहा है तो वो लोग बड़ी गलतफहमी में है । चंद्र प्रकाश यूं तो छात्र छात्रों के प्यार के कारण अध्यक्ष बनेगा और वो सब करेगा जिसके लिए जेल काटी है पर किसी बेईमानी या किसी कारण से नही भी बन सका तब भी यही खड़ा रहेगा और हमेशा छात्रों के साथ  रहेगा और अपनी इन बातो के लिए अपने छात्र जगत के सभी भाई बहनों के लिए पूरी ताकत से लड़ता रहेगा ।
नारे लगने लगे :आगरा में एक प्रकाश :चंद्र प्रकाश चंद्र प्रकाश और मेरा उद्बोधन समाप्त हुआ । मैं अपने कार्यालय की तरफ निकल गया सुबह की तैयारी के लिए और फिर घर ।
अगले दिन चुनाव हुआ और मैं 80 वोट से हार गया हा मेरे पेनल के वो खास जाति के लड़के महामंत्री और एक अन्य पद पर चुनाव जीत गए जो उस दिन राजा की बैठक में मौजूद थे ।
बाकी दोनो प्रत्याशियों में गोलियों चलने लगी और लुका छिपी शुरू हो गई ।  दोनो गैंग की तरह समूह में उठने बैठने लगे । जाट गुट को लगता था की उनका वोट ज्यादा था और उन्हें जितना चाहिए । रात के अंधेरे में मेरे पास भी आए काफी हथियारों से लैस होकर की में भी लिख कर दूं की चुनाव रद्द किया जाए या दुबारा करवाया जाए । मैने इंकार कर दिया ।
जहा जीते हुए लोग छुपते और गुरिल्ला युद्ध लड़ते घूम रहे थे वही अगले ही दिन आगरा से बिचपुरी परिसर तक हर कक्षा और हर हॉस्टल में जाकर मै धन्यवाद देता घूम रहा था । काफी लोग शर्मिंदगी से आंख नही मिला रहे थे या कट कर निकल का रहे थे । इसी क्रम में मैं कुछ ऐसी जगहों पर गया जहा नेपाल और दक्षिण भारत के छात्र पूरा घर किराए पर लेकर एक अपना हास्टल बना कर रहते थे अपने अलग खान पान की जरूरतों के कारण ।  ये सभी छात्र मेरे  धन्यवाद देने पर रोने लगे की सर हमने आप को वोट नहीं दिया ।मैने कहा कोई बात नही मुझमें कोई कमी होगी । वो बोले  हम इतनी दूर से पढ़ने आए है और फला फला अध्यापकों ने बोल दिया था की दिखा कर वोट देना नही तो प्रैक्टिकल में फेल कर देंगे तो सर हम मजबूर थे । मैने उन सबको और सभी छात्रों को आश्वस्त किया की अध्यक्ष नही सही पर में उनके लिए पहले की ही तरह खड़ा मिलूंगा और लड़ता रहूंगा ।

विशेष: दूसरे कालेजों में मेरे समर्थित प्रत्याशी जीत गए 

मैने सेंट जॉन्स कालेज में अध्यक्ष पद पर गिरीश त्यागी को और महामंत्री पद पर एक लड़के आदिल  को खड़ा किया और उनके लिए मैने ही भाषण दिया तथा प्रचार किया वो सब जीत गए । आगरा कालेज में में रणवीर शर्मा के लिए भाषण देने गया उनका अधिकतर पेनल भी जीत गया ।
मेरे कालेज में जो अध्यक्ष बना उसके पिता बहुत विद्वान प्रोफेसर थे और उन्हें हार्ट अटैक हो गया था तो उनको देखने में मेडिकल कॉलेज गया था । वो बोले बेटा मैं चाहता हू की तुम जीत जाओ वरना कालेज भी बर्बाद।होगा और मेरा बेटा भी बर्बाद हो जाएगा ।
बाद में वो अध्यक्ष तथा उसके ही साथियों ने एकदूसरे की हत्या कर दिया ।अध्यक्ष के भाई भी मारा गया तब मां ने भी आत्महत्या कर लिया ।
कालेज लंबे समय गुंडागर्दी का अड्डा बना रहा ।हॉस्टल बदनाम हो गया ।लड़कियों के साथ अभद्रता होती और शिक्षको के गिरेबान भी पकड़े गए जिनमे कुछ वो अध्यापक भी थे जो जातिवाद के अंधे हो भूमिका निभा रहे थे। जाट प्रत्याशी रहा छात्र मुस्किल से विश्वविद्यालय में क्लर्क की नौकरी पा सका ।

ऊपर से मैं चाहे जितना सहज दिख रहा था पर अंदर करते करते तक हिल चुका था और मेरी नीद गायब हो चुकी थी जो काफी बाद में आई जब :;;:;

फिर मुझे कभीं पूरी नीद नहीं आई । आई पर वर्षो के बाद जब ::

भाग 4 : फिर छात्र संघ चुनाव और मेरे पूरे पेनल की जीत :

काफी वर्षो बाद फिर छात्र संघ चुनाव हुआ । इस बार मुझे अपने नेता राजनरायन जी की बात याद रही ।
मैने एक पैनल बनाना शुरू किया तो सबसे पहले ये  जानने का प्रयास किया की खास जाति के किस जिले के लड़के इस बार ज्यादा है और इसके किस उपनाम को लिखने वाले लड़के ज्यादा है । पता लगा की मैनपुरी की संख्या ज्यादा है और हास्टल में भी उनकी संख्या। ज्यादा है क्योंकि हास्टल में रहने वालो का पूरा वोट पड़ता है और करीब करीब  एकजुट पड़ता है क्योंकि एक स्थान पर रहने से उनमें एकराय बनाना और प्रचार करना आसान होता है ।
पर खास जाति का और मैनपुरी का कोई लड़का राजनीति के रुझान वाला नही मिला । तब मैंने एक लड़के को खोजा दुबला पतला लम्बा जो हॉस्टल में रहता था और हाकी भी खेलता था । उससे बात किया तो उसने मना कर दिया की में तो इतनी दूर से पढ़ने आया हूं और खिलाड़ी हूं । मुझे राजनीति से कोई मतलब नहीं है और मैं भाषण भी नही दे सकता हूं । तीन चार दिन में उसका ब्रेनवाश किया और मुश्किल से उसे तैयार किया चुनाब लड़ने को इस आश्वासन के साथ की भाषण में दूंगा और चुनाव भी में ही लडूंगा बस उसका नाम और चेहरा चाहिए । वो तैयार हो गया तो पूरा पेनल बना दिया जिसमे उपाध्यक्ष पद पर एक ब्राह्मण , एक पद पर कामर्स का बनिया जाती का और अन्य पदों में एक जाट ,एक पिछड़ा बाकी खास  जाति का दूसरा उपनाम वाला और इनमे एक लड़की ।
चुनाव मुझे ही लड़ना पड़ा । हर हॉस्टल और क्लास में तथा फिर उसी तिराहे पर मेरे न जाने कितने भाषण हुए 
 । चुनाव हो गया और भाजपा के विद्यार्थी परिषद, कांग्रेस के एन इस यू आई तथा लोकदल के छात्र सभा को हरा कर मेरा पूरा पेनल चुनाव जीत गया ।मेरे थोड़े छल के कारण अध्यक्ष पद से ज्यादा वोट ब्राह्मण उपाध्यक्ष को पड़ा । 
उस दिन जीतने वाले लोग पीछे खड़े थे और अखबारों ने इंटरव्यू मेरा लिया और अगले दिन मेरा उंगली से वी निशान बनाए हुए फोटो छपा । 
(छात्रसंघ का को जो अध्यक्ष बना जो राजनीति में आना ही नही चाहता था वो दल बदल बदल कर इस बार तीसरी बार विधायक है ।) 
रात को मैं घर पहुंचा तो लग रहा था की चल नही उड़ रहा हूं । खूब प्रेम से और रोज से ज्यादा खाना खाया तो मां ने भोजपुरी में  पूछा आज इतने भूखे क्यों हो ।
खाकर सोया तो खून गहरी नीद सोया और घोड़े बेचकर सोया ।
अगले दिन उठा तो दिल में  वर्षो से चुभी फांस गायब हो चुकी थी और सर से एक बड़ा बोझ उतर चुका था ।
छात्र संघ और जाति दंश की कहानी समाप्त होती है ।

यथार्थ के आसपास का लोकार्पण

जिन्दगी_के_झरोखे_से--

जब मेरी काव्य पुस्तक  :यथार्थ के आसपास: का लोकार्पण किया था मुलायम_सिंह_यादव जी ने --
वो 11 नवम्बर 2012 का दिन था जब मुलायम सिंह यादव जी लखनऊ से केवल मेरी काव्य पुस्तक 'यथार्थ_के_आसपास' का लोकार्पण करने के लिए आगरा आये थे और उन्होने करीब 3 घंटे का समय लोकार्पण कार्यक्रम को दिया और फिर डेढ़ घन्टा मेरे घर पर भोजन तथा मेरे परिवार से बातचीत को ।
इस समारोह में मुलायम सिंह यादव ने जी ने ऐसा भाषण दिया की लोग आश्चर्यचकित रह गए ,यहाँ कोई राजनैतिक नेता नहीं बल्कि  एक साहित्यप्रेमी बोल रहा था और उस दिन वो भावनाओ मे बह कर दिल से बोल रहे थे , तभी तो ऐसी बाते कर गए जो कोई नेता नही कहता है और 45 मिनट के भाषण मे 3/4 बार भाऊक भी हो गए जिसमे आंखे भीग गई थी । 
उन्होने भाषण प्रारंभ करते हुये मंच और उपस्थित लोगो को संबोधित करने के बाद बोले की आज सी पी राय ने अपने इस कार्यक्रम मे मुझे बुला का मेरा सम्मान बढाया है । हो सकता है की आप लोगो को नही पता हो पर मैं अच्छी तरह जानता हूँ की सी पी राय का देश के बड़े बड़े लोगो से बहुत अच्छे सम्बंध है और वो चाहते तो किसी भी बड़े से बड़े आदमी से अपनी पुस्तक का लोकार्पण करवा सकते थे पर उन्होने मुझे बुला कर मुझे सम्मानित किया है । आज यहा मैं देख रहा हूँ की पद्मश्री प्राप्त साहित्यकार से लेकर कुलपति ,इतने प्रधानाचार्य ,प्रोफेसर,सभी बड़े डाक्टर , वकील , कवि , साहित्यकार , शहर के सभी जाने माने लोग मौजूद है और इतनी बडी संख्या मे है की हाल छोटा पड़ गया और काफी ज्यादा लोग बाहर ही रह गए ।सी पी राय का जो सम्मान समाज मे है और शिक्षा तथा साहित्य मे है वो इन्हे राजनीती मे नही मिल पाया । मैं मानता हूँ की इन्होने मेरे लिए और पार्टी के बहुत कुछ किया पर आज आप सभी के सामने मैं स्वीकार करता हूँ की मैने इनके साथ न्याय नही किया पर अब आप सबके सामने कहना चाहता हूँ की अब सी पी राय को सूद समेत सम्मान और स्थान राजनीती मे भी दिलवाऊंगा । 
इसके बाद वो भावना मे बह गए और बताने लगे कि आप लोग नही जानते होंगे की इन्होने दल और मेरे लिए क्या क्या किया है और फिर मेरे द्वारा किये गए काम और योगदान गिनवाने लगे कि कैसे बुरे वक्त मे क्या क्या किया ,क्या क्या योगदान दिया ,कैसे  भीड इकट्ठी कर लिया करते थे और कैसे मेरी सभाए और तमाम कार्यक्रम सफल बना देते थे ,फिर अचानक मेरी पत्नी को याद किया की वो आज दुनिया मे नही है और आप लोग जानते ही होंगे कि वो मुझे राखी बांधती थी ।ऐसी ही तमाम बातो के बाद वो मेरी किताब की कविताओ पर आ गए और चूंकि किताब पढ कर आये थे तो कई कविताओ का जिक्र कर उसकी प्रशंसा किया और ये भी कहा कि इस किताब मे मुझसे और पार्टी से शिकायत भी इशारे मे कर दी गई है ।
भाषण मे तीन बार वो भाऊक हो गए ।
कोई नेता कभी अपने किसी कार्यकर्ता के योगदान की चर्चा नही करता और ऐसे कार्यो की तो बिल्कुल नही जिससे ये पता चाले की अरे ये सब काम नेता के नही बल्की इस कार्यकर्ता की सोच के या योगदान के थे ।
पर भावना मे बह कर उन्होने वो सब कह दिया और ये भी स्वीकार कर लिया की तब तक उन्होने मुझे धोखा दिया था और ये वादा भी की अब ऐस नही होगा बल्की मुझे मेरा सब हक सूद सहित वो अब दिलवायेंगे ।
कार्यक्रम से वापस जाने के बाद महीनो तक जो भी उनसे मिलता उसके मेरे इस कार्यक्रम के बारे मे बताते और कहते की इतना भव्य कार्यक्रम उन्होने कभी नही देखा था । उनसे मिलने गई एक बडी राष्ट्रीय कवयित्री से उन्होने कहा की आप भी वैसा कार्यक्रम कभी करो । 
ये अलग बात है की कुछ दिन मे जब वादा निभाने और न्याय करने का सवाल आया तो पहले की ही तरह मुलायम सिंह यादव जी सब भूल गए और 2012, 2014 तथा 2016 तीन मौके आये पर वो पिछ्ले इतने सालो की तरह इन सालो मे भी भूले ही रहे ।
कार्यक्रम को हिंदुस्तान समूह के प्रधान संपादक शशिशेखर जी ने संबोधित की और वो तो बहुत अच्छे वक्ता है ही की जहा बोलते है छा जाते है पर उस दिन उन्होने मेरे साथ 70 के दशक के रिश्तो का कुछ ज्यादा ही निर्वाह कर दिया जो मन को भिगो गया । 
सरकार मे मंत्री अरिदमन सिंह , कुलपति ड़ा वी के सिंह , अंतरराष्ट्रीय ख्याति के होम्योपैथी डाक्टर डा पारीख ने भी संबोधित किया ।
हिन्दी संस्थान के निदेशक ड़ा हरिमोहन शर्मा जी ने पुस्तक की समीक्षा करते हुए गागर में सागर भर दिया और मेरी कविताओ को अर्थ दे दिया । 
स्वतंत्रता सेनानी और खुद भी कवयित्री रानी सरोज गौरहारी जी ने भी आशीर्वाद दिया तो सबसे बड़ा आशीर्वाद मंच पर मेरी माँ का था ,और कार्यक्रम का संचालन नाट्यकर्मी ,इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और आगरा विवि मे रूसी भाषा विभाग के प्रोफेसर जितेन्द्र रघुवंशी ने किया था ।
मेरा भी आत्मपरिचय और पुस्तक परिचय का प्रारम्भ मे ही उद्बोधन हुआ ।
कार्यक्रम से पहले मुलायम सिंह यादव का उपस्थित सभी महत्वपुर्ण लोगो ने स्वागत किया था ।
समरोह में पद्मश्री लाल बहादुर सिंह चौहान , शारदा विश्वविद्यालय के कुलपति ,आगरा के बडी संख्या मे प्रोफ़ेसर , कालेजो के प्राचार्य , शिक्षक , सभी बड़े  डाक्टर ,वकील , कवि  लेखक ,व्यापारी , उद्योगपति , समाजसेवी बड़ी संख्या में मौजूद थे । लोगो का स्नेह था की केवल फ़ोन पर मेसेज से आग्रह कर देने पर भी ये सभी सैकड़ो लोग पधारे  । 
तीनो बच्चे ख़ुशी बांटने को कार्यक्रम मे मौजूद थे ।
कार्यक्रम के बाद मुलायम सिंह यादव जी घर आये और उन्होने पहले ही कह दिया था प्रशासन से भी और मुझसे भी कि घर मे किसी को को नही आने देना है , मैं परिवार से मिलने आ रहा हूँ ।
घर भोजन किया ,बच्चो से बातचीत किया और फिर वापस लखनऊ चाले गए ।
इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया ने लाइव कवरेज के साथ दिल्ली से लेकर पूरे उत्तर प्रदेश में जिस तरह बड़ा कवरेज दिया वो भी उनका मेरे साथ स्नेह था ,सहारा और इटीवी ने लाइव प्रसारण किया था इस कार्यक्रम का शायद मेरी मित्रता के कारण वर्ना पुस्तक लोकार्पण का लाइव प्रसारण कौन करता है ।

छात्र राजनीति का वो दौर

#ज़िंदगी_के_झरोखे_से 

#छात्र_राजनीति_का_दौर याद आ गया । मेरे भाषण सुनने के लिए छात्र छात्राएँ बहुत बड़ी संख्या में अपने आप एकत्र हो जाते थे -
#( जब मैं वाद विवाद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने जाता था तो चाहे जितनी दूर हो पर यदि शहर में किसी कालेज या विश्वविद्यालय में हुआ तो काफ़ी संख्या मे वहाँ सुनने और जोश बढ़ाने भी पहुँचते थे कालेज के छात्र और छात्राएँ और कई अध्यापक भी ) ख़ैर वो दौर ही ऐसा था की कोई भी खेल हो वहाँ भी सभी स्कूल कलेजो के सैकड़ा लोग पहुँचते थे अपनी टीम और खिलाड़ी के पक्ष में #
- बस कोई एक साथी कालेज का घंटा बजाता और मैं  लाइब्रेरी के सामने के ऊँचे बरामदे के सामने खड़ा हो जाता था जो गेट के ठीक सामने है और कालेज के दोनो मैदान उसके सामने सड़क के दोनो तरफ़ और लाइब्रेरी के सामने भी तीन तरफ़ सड़क और ठीक सामने काफ़ी चौड़ी जगह और सभी क्लास से बाहर निकल आते थे सभी छात्र और छात्राए और मेरे सामने बडी भीड होती थी मुझे सुनने को । अध्यापक भी जब देखते की मैने घन्टा बजवा दिया है और अपनी सम्बोधन वाली जगह पर खड़ा हूँ तो खुद क्लास के बाहर चाले जाते और हम लोगो के सामने के बजाय दूसरे वाले रास्ते से स्टाफ रूम मे चले जाते ।फिर मेरा भाषण होता था की क्यो हड़ताल हो रही है और सिर्फ हड़ताल होना है या कही जुलुस जाना है ।सारी बात बता कर मैं पहले सबको समर्थन मागता और सहमत होने पर जुलुस का रूट , रास्ते का और जहा जाना होता वहा पहच कर वहा का अनुशासन बताता तथा यदि मौन जुलुस नही है तो चलने के पहले ही नारो का अभ्यास करवाता और फिर कारवा निकल पडता था । ज्यो ही प्रशासन को भनक लगती की मैं निकल रहा हूँ पास के थाने के सी ओ और एस ओ मय फोर्स आ जाते साथ चलने को और पूछ लेते गन्तव्य और कारण और एक इच्छा व्यक्त कर देते की हर बार की तरह मैं अनुशासन कायम रखूंगा और साथ साथ सब चलते ।लेकिन विवि या कलक्टरेत पर दो पी ए सी का ट्रक जरूर पहुचा होता था ।
पर ये तस्वीर तो शहर से दूर मेरे कालेज के दूसरे कैम्पस की है जहां किसी समस्या पर मुझे आमंत्रित किया गया था वहाँ के शिक्षकों और छात्रों द्वारा । मेरा भाषण आख़िरी भाषण था , आप देख सकते है तलियो के लिए तैयार हाथ , फिर उस जमाने में मेरे भाषणों में एक आग होती थी । वो यहां भी काम कर रही थी । फिर मेरे नेतृत्व में जुलूस निकला । 
आजकल के तथाकथित छात्र नेता इस जुलूस की आधी लम्बाई तो इसके एक चित्र में देख सकते है बिल्डिंग के दूसरे छोर पर और कसी हुयी मुट्ठियों के साथ लगने वाले नारो से अन्दाज़ लगा सकते है मेरे शब्दों के असर का । 
फिर जो होना था हुआ और सब हुआ जिसका वर्णन यहाँ नही आत्मकथा में । 
350 से ज़्यादा लोग गिरफ़्तार होकर जेल गए 
और फिर वो समस्या हमेशा के लिए ख़त्म हो गयी ।
आंदोलन तो वो भी था जब लाठीचार्ज और फिर मेरी गिरफ़्तारी के बाद अगले दिन सुबह ही राजनारायण जी जेल में हाज़िर थे और उनके आने का पता लगते ही ज़िले के डी एम एस पी सहित पूरा अमला और प्रशासन हम लोगों को छोड़ने को तैयार था उसी समय और मेरी छात्र संघ का चुनाव कराने की माँग मानने को भी पर राजनारायण जी ने इनकार कर दिया की अभी रहने दो , फिर समर्थन में गिरफ़तारियो का दौर चला सुमन जी , फिर बरेली से आकार कुँवर सर्वराज सिंह , फिर कमांडर साहब के नाम से मशहूर कैप्टैन अर्जुन सिंह भदौरिया और उसके बाद जेल में मिलने राम नरेश यादव , मधू दंडवाते से लेकर चंद्रशेखर जी तक और जब भी कोई आता एक तख़त लग जाता जिसपर से उस नेता का सम्बोधन होता । रोज़ शाम को बैरक में किसी विषय पर कमांडर साहब और मेरा उद्बोधन होता प्रशिक्षण के तौर पर । सभी की नाप हयी ,कपड़े जिसमे गांधी आश्रम का ही कोट भी था हम सभी बंदियों को मिला । बहुत से लोगों की रुचि जेल में गुंडो से दोस्ती करने में थी तो कुछ की पपलू खेलने में भी । गलती से कुछ संघ से जुड़े छात्र भी बंद हो गए थे उनकी रुचि का सार्वजनिक वर्णन निषेध है पर आत्मकथा में होगा और ऐसे काफ़ी थे जिनकी रुचि राजनीतिक मुद्दों और देश को समझने में थी । 
आंदोलन वो भी था जब उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को घेर लिया गया सर्किट हाउस में और अंधेरा होने पर लाइट बुझा कर उन्हें पीछे के रास्ते से निकाल कर ले जाया गया 
आंदोलन वो भी था जब विश्वविद्यालय के कुलपति को खड़ा कर मैं उनकी कुर्सी पर क़ाबिज रहा क़रीब ४ घंटे और फिर अधिकारियों को चाय पिला कर ही उठा । 

वह आंदोलन भी मेरा अनोखा आंदोलन था जिसने सभी के हाथ बांधे थे , मुँह पर पट्टी बंधी थी और सीने पर पोस्टर था जिसपर दिल का दर्द लिखा था और पूरा जुलूस कलक्टरी तक सड़क के किनारे बिलकुल मौन ही गया और वहाँ पट्टी भी खुली और आवाज तथा उद्घोष भी 
और वो ६ वी क्लास में पूरी क्लास को लेकर स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य रहे एच एन कुज़रू जी के घर तक जाकर अपनी बात कहना और उनका गाल थपथपा कर कहना की नेता बनेगा ? और दूसरे ही दिन माँग पूरी कर देना 
अपने पिता से उलझ जाना छात्रों के लिए , 
आंदोलन इस बात के भी हुए की बस और सिनेमा में आधा टिकट लगे , साइकिल स्टैंड पर कितना पैसा लगे ,और भी बहुत कुछ 
ना जाने कितने आंदोलन है इस ज़िंदगी के झरोखे में 
याद के अनुसार सब आत्मकथा में मिलेगा । 
बड़े बड़े क्रांतिकारी युवा और छात्र नेता हम लोगों से आज पूछते है की आप क्या और कौन ?

30 जनवरी मार्ग गांधी स्मृति

ज़िंदगी_के_झरोखे_से

कल #दिल्ली में तीस जनवरी मार्ग पर #गांधी_स्मृति में काफ़ी समय बिताया मैंने ।इसी जगह उस महात्मा गांधी की जिसका पूरा अंग्रेज साम्राज्य कुछ नही बिगाड़ पाया और बापू के कारण उसे भारत छोड़कर भागना पड़ा उसी महात्मा की अंग्रेजो को भगाने के ग़ुस्से में भारत के पहले आतंकवादी गोडसे ने उन्ही अंग्रेजो कि पिस्तौल से उनकी गोली से हत्या कर दिया था । 
बापू तो यहाँ छोटे से कमरे में रहते थे और मानवता को प्रेरित करने को भजन कीर्तन करते थे पर अंग्रेजो को भगाना उनके वफ़ादारो को बहुत बुरा लग गया था और मिटा दिया एक कृषकाय शरीर को ये अलग बात है की बापू दुनिया के क्षितिज पर छा गए ।
कल उस बापू से मिलने वो कनाडा का परिवार आया था जो इतिहास और राजनीति से मतलब नही रखता बल्कि कनाडा में आइ टी के क्षेत्र में काम करता है । गुजरात का परिवार मिला जो गांधी जी को गुजरात नही बल्कि मानवता की पहचान और एकमात्र उम्मीद मानता है । दक्षिण भारत के तमाम परिवार आए थे ।उत्तर भारत के लोग कम दिखे ।जब पता लगाया तो पता लगा की कोविद से पहले रोज़ हज़ारों लोग आते थे पर अब भी ५००/६०० लोग रोज़ आते है उसमें विदेशी होते है और दक्षिण भारत तथा नार्थ ईस्ट के ज़्यादा लोग होते है , उत्तर भारत के लोग कम होते है । वैसे भी बापू के हत्यारों की विचारधारा ने पैर भी उत्तर भारत में ही ज़्यादा फैलाया है अभी तक तो उसका असर हो सकता है या सामान्य तौर पर भी दक्षिण भारत और गुजरात इत्यादि के ही ज़्यादा लोग पर्यटन करते है विदेशियों के साथ वो कारण हो सकता है । 
पर एक कोने में एक लड़का और लड़की आपस में डायलाग की प्रैक्टिस कर रहे थे उन्ही से आग्रह कर मैंने फ़ोटो खिचवाया । आगे हाल की तरफ़ गया तो पूरा दिल्ली का एक ग्रुप रिहर्सल कर रहा था । उन लोगों से बात करने लगा मैं और कुछ डायलोग भी सुनाने का आग्रह किया ।ये जानना भारत की जनता के लिए बहुत सुखद हो सकता है कि ये दिल्ली के आधुनिक नौजवान थे जो नेता जी सुभाषचंद्र बोस पर आगामी २३/२४ तारीख़ को मंडी हाउस के सभागार में नाटक करने वाले है और नेता जी के नाटक के रिहर्सल के लिए इन नौजवानों को सबसे अच्छा स्थान बापू का वो घर लगा जहाँ बापू शहीद हुए थे ।
एक अंग्रेज अपने बहुत आधुनिक कैमरे से (वही जो साठ के दशक में मोदी जी के पास था ) बापू से जुड़ी एक एक तस्वीर खींच रहा था जो शायद उसके देश के लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण होगी । 
बापू की शहादत और इस बार उपजे अपने भावो पर अलग से लिखूँगा लेकिन कल मन में आया की अपनी सबसे अच्छी दोस्त इशानवी जी को लेकर मुझे यहाँ आना चाहिए और अपने तरीक़े से उन्हें गांधी कथा सुनाना चाहिए तो शायद एक दो दिन में उन्हें लेकर फिर वहाँ जाऊँगा

१९७४ से १९८० तक की राजनीति की सक्षिप्त कहानी जिंदगी के झरोखे से

1973/1974 गुजरात के इंजीनियरिंग कॉलेज के मेस के खाने का रेट 20 प्रतिशत बढ़ गया था क्योंकि सब्सिडी वाले राशन की कटौती कर दी गई थी जिसके खिलाफ छात्रों में आंदोलन कर दिया ( पहले छात्र ज्यादा जागरूक और जिंदा होते थे मुद्दों पर लड़ने के सवाल पर ) ।ये आंदोलन अन्य कालेजों में होते हुए विश्वविद्यालय में गया और फिर फैलता चला गया । छात्रों और पुलिस में टकराव हुआ और छात्रो पर  जबरदस्त आंसू गैस के गोले छोड़े गए। आन्दोलन बढ़ता गया और यहाँ तक  पहुच गया की फ़ौज बुलानी पड़ी थी | जब फ़ौज आई तो छात्राए हाथो में फूल लेकर आगे निकल आई तो फ़ौज वापस चली गयी और छात्रो पर गोली चलाने से फ़ौज ने इनकार कर दिया था | खाने के महंगे होने से शुरू हुआ आन्दोलन धीरे धीरे सरकार के कुशासन और अन्य तमाम मुद्दों पर चला गया और गुजरात के रामं संगठन ,मजदूर और कर्मचारी संगठन होते हुए विपक्षी दलों तक की भागीदारी हो गयीं |पूरे गुजरात में नवनिर्माण समितियों का गठन हो गया और इसके द्वारा आन्दोलन संचालित होने लगा |  पूरे आन्दोलन में सौ से ज्यादा लोग मारे गए और हजारो घायल हुए ,तमाम धाराओ में हजारो की गिफ्तारी हुयी | इंदिरा गाँधी जी ने मुख्यमंत्री चिमन भाई पटेल को स्तीफा देने को कहा | उनके स्टीफे के बाद आन्दोलन विधायको के स्टीफे की मांग की तरफ चल पड़ा और अंतत गुजरात में नए चुनाव हुए जिसमे विरोधी दल जीते और बाबू भाई पटेल मुख्यमंत्री हुए पर ये सरकार भी ज्यादा नहीं चल पायी | महत्वपूर्ण बात ये है की जिस मुख्यमंत्री  चिमन भाई पटेल के खिलाफ आन्दोलन हुआ था वही आगे चल कर जनसंघ के सहयोग से मुख्यमंत्री हुए और बाद में लोकदल का हिस्सा बन गए थे |

गुजरात से चला आन्दोलन बिहार पहुच गया और अन्य प्रदेशो में भी पहुचने लगा |  मध्यप्रदेश के भोपाल में छात्रों पर गोली चली और कई छात्र मारे गए | बिहार में छात्रो के संगठनो ने बैठक कर छात्र संघर्ष समिति का गठन किया  छात्र आन्दोलन उग्र हो गया और तमाम सरकारी समोत्तियो को छाती पहुचाई गयी | सारे विपक्षी दल भी छात्रो के आन्दोलन के पीछे खड़े हो गए | जे पी नव निर्माण आन्दोलन को देखने गुजरात गए | जब आन्दोलन आगे बढा तो छात्रो ने जयप्रकाश नारायण से आन्दोलन का नेत्रत्व करने का आग्रह किया और जयप्रकाश जी जो की राजनीति छोड़कर भूदान आन्दोलन का हिस्सा बन गए थे आन्दोलन का नेत्रत्व करने को तैयार हो गए पर शर्ट ये थी की आन्दोलन अनुशासित और शांतिपूर्ण होगा | जयप्रकाश नारायण के आगे आते ही आन्दोलन पूरे देश में फ़ैलाने लगा | हिंसा और अहिंसा के बीच झूलता आन्दोलन बढ़ता जा रहा था | पटना में विशाल रैली हुयी जिसमे जयप्रकाश नारायण ने आन्दोलन को सम्पूर्ण  क्रांति नाम दिया इस रैली में छात्र नेता के रूप में मुझे भी जाने का अवसर मिला | क्या जनसमुद्र दिख रहा था |   अक्टूबर में फिर बहुत विशाल रैली हुयी और फिर नवनिर्माण आन्दोलन की तरह विधायको के स्टीफे मांगे जाने लगे | कुछ विधायको ने स्तीफा दे भी दिया  | इसी बीच राजनारायण जी ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के चुनाव के खिलाफ इलाहबाद हाई कोर्ट में जो मुकदमा किया था १२ जून को उसका फैसला आ गया और इंदिरा जी के चुनाव को शुन्य घोषित कर दिया गया जिसके करण उनका प्रधानमंत्री पद संकट में आ गया | यद्द्पिं सर्वोच्च नयायालय ने इलाहाबाद उच्च नयायालय के फैसले पर स्टे दे दिया था पर इंदिरा गद्दी छोडो के आह्वान के साथ दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल रैली हुयी २५ जून १९७५ को और उसी रैली में जयप्रकाश नारायण ने फ़ौज और पुलिस से सरकार का आदेश नहीं मानने का आह्वान किया और उसी को आधार बना कर २५ जून की रात को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से  देश  में आपातकाल लागू हो गया और रात से ही सभी विरोधी दल के नेर्ताओ की गिरफ्तारी शुरू हो गयी |मैं एन सी सी का बेस्ट कैडेट भी था और इसी समय मेरा चयन पहले पैरा ब्रिगेड के साथ आर्मी अटैचमेंट कोर्स के लिए हो गया जिसमे एक माह ब्रिगेड के जवान जो जो करते है वाही करना था और उसके ख़त्म होते ही पहली बार एन सी सी के छात्रो के लिए पैराशूट से कुदान की इजाजत मिली थी तो उसमे ३५ दिन के लिए मेरा चयन हो गया और इस करण मेरा गिरफ्तारी में नाम कट गया | पर इस सब से निपटने के बाद हम युवजन सभा के लोग कही न कही मिलने लगे और आपातकाल के खिलाफ चर्चा करने लगे  | हम लोगो के सम्पर्क में संघ के दो लोग आ गए और वो देश भर की झूठी सच्ची कहानिया बताते की कहा लोगो का नाखून नोच लिया गया है और कहा कहा जबरदस्ती नसबंदी की गयी है ,कहा लोगो को गोली से मार दिया गया है और ऐसे कुछ पर्चे भी दे देते की कही चलते फिरते सड़क पर अँधेरे में फेंक देना | बाद मेसमझ में आया की संघियों ने कैसे हमारा झूठ फ़ैलाने में प्रयोग कर लिया गया था और संघ का काम का वाही तरीका आज भी जारी है | 

आर एस एस के तब के सरसंघचालक बाला साहेब देवरस ने इंदिरा गाँधी जी कोम चिट्ठी लिखा और आपातकाल का समर्थन किया और कहा की यदि संघ के लोगो को छोड़ दिया जाए तो आपातकाल के उद्देश्यों की पूर्ती केव लिये वो लोग काम करेंगे | इसके बाद जेलों में बंद संघ के लोगो ने  माफीनामा लिखना शुरू किया और आपत्काल को विकास पर्व लिखकर उसमे सहयोग करने की बात लिख कर सब छूट गये | ये अलग बात है की उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र सेनानी की मुलायम सिंह यादव जी द्वारा शुरू की गयी पेंशंन ये लोग भी ले रहे है |

इंदिरा जी के जीवन में तमाम उपलब्धिया और ख्याति है पर आपातकाल लगाना उनके ऊपर एक धब्बा बना गया | ये अलग बात है की खुद लोकतंत्र में यकीन करने के करण उन्होंने खुद मार्च १९७७ में  आपातकाल को रद्द कर दिया और चुनाव घोषित कर दिया | बाद में इंदिरा जी खुद आपातकाल के लगाने पर खेद भी व्यक्त किया और ऐसा ही विचार समय समय पर राजीव गाँधी ,राहुल गाँधी तथा कांग्रेस के अन्य नेताओ ने भी व्यक्त किया | 

लोकदल ,जनसंघ सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस ओ को मिलकर जनता पार्टी का गठन हुआ  | जिसमे चंद्रशेखर जी के साथ कांग्रेस से आए लोग भी शामिल थे और बाद में जगजीवन रांम ,हेमवनती नन्दन बहुगुणा ,नादिनी सत्पथी इत्यादि ने कांग्रेस छोड़ कर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी बना लिया था और वो लोग भी इस दल में शामिल हो गए थे |
जनता पार्टी ने उत्तर भारत में प्रचंड जीत हासिल किया और पूरे उत्तर भारत में इंदिरा गाँधी जी ,संजय गाँधी समेत सभी कांग्रेस के लोग हार गए परन्तु दक्षिण भारत की मदद से कांग्रेस को १५४ सीट मिली | लेकिन येर सरकार प्रारम्भ में ही विवाद में घिर गयी जब मोरारजी भाई और बाबु जगजीवन राम में प्रधानमंत्री पद पर विवाद हो गया था | सांसदों में सबसे बड़ी संख्या चरण सिंह के लोगो की थी और उसके बाद जनसंघ की | मोरारजी भाई और जगजीवन बाबु के बहुत कम संसद थे  | राजनारायण जी जो उस लड़ाई के मुख्य योद्धा थे और इंदिरा जी को भी उन्होंने हराया था उन्होंने चरण सिंह जी को मोरारजी भाई के पक्ष में कर दिया और वो प्रधामंत्री हो गए | काश बाबु जगजीवन राम जी प्रधानमंत्री बन गए होते तो शायद राजनीतिक इतिहास कुछ और होता या चरण सिंह ही  शुरू में ही बन गए होते तो भी शायद हालत कुछ और बने होते | 

राजनीति इसी को कहते है की उत्तर भारत के प्रभारी थे चरण सिंह और उत्तर भारत पूरा जीते और चरण सिंह सहित सभी लाखो वोट से जीते तथा मोरारजी भाई कुछ हजारो से जीते लेकिन प्रधानमंत्री का सवाल आया तो मोरारजी भाई और अंत में कांग्रेस छोड़कर आये जगजीवन बाबु उम्मीदवार हो गए | ऐसे ही कुल ६\७ लोगो के साथ कांग्रेस के आये चंद्रशेखर जी जनता पार्टी के अध्यक्ष हो गए  |राजनारायण जी सरकार मेर स्वास्थ्य मंत्रीं बन गए थे और उन्होंने आम लोगो तक स्वस्थ्य सवाये पहुचाने का बड़ा शानदार काम किया था | उन्होंने बेयर फुट डॉक्टर्स बनाये जो गाँव गाँव सस्ती और तत्काल जरूरत की दवाई देते थे और रूस से बड़ी बड़ी गाडियों के रूप में चलता फिरता अस्पताल ले आये की वो ब्लोक ब्लोक और गाँव गाँव में पूरा इलाज और जरूरत पड़ने पर आप्त्रेशन भी वाही कर देंगे | रूस के प्रावदा अखबार ने लिखा था की भारत की इस सरकार में एक मंत्री पूरी तरह साम्यवादी नीतिया लागु करने वाला मंत्री है राजनारायण | 
 जनता पार्टी बनी थी तो दलों का विलय हो गया और जनसंघ को छोडकर बाकि दलों के युवा संगठनो तथा छात्र संगठनो का विलय भी हो गया लेकिन जनसंघ ने अपने इन दोनों संगठनो का विलय करने से इनकार कर दिया और अलग संगठन के रूप में चलाते रहे | साथ ही जनसंघ से जुड़े लोग आर एस एस के कार्यक्रमों में भी भाग लेते थे | जनता पार्टी बन गयी थी लेकिन जनसंघ से जुड़े मंत्री लोग अपने विभाग में जो मनोनयन होता था वो सब केवल जनसंघ और आर एस एस से जुड़े लोगो का मनोनयन ही कर रहे थे  | लालकृष्ण अडवानी ने अखबारों के मालिको से बात कर संघ और विद्यार्थी परिसद से जुड़े लोगो को पत्रकार बनवाना शुरू कर दिया था | राजनारायन जी ने एक बार बताया था की प्रारम्भ में उद्योग मंत्री जनसंघ के कोटे के मंत्री बने थे तो उन्होने कुछ गड़बड़ कर दिया था जिन्हें मोरारजी भाई बर्खास्त करना चाहते थे तो अटल जी और अडवाणी जी तथा नाना जी देशमुख सहित कई नेताओ ने उनपर वैसा नहीं करने का दबाव बनाया तो उनका उद्योग विभाग बदल कर जोर्ज फर्नांडीज को दे दिया गया जिन्होंने तमाम दबाव को नकार कर भारत में कोका कोला बंद कर दिया था और फिर ७७ नाम से कोल्ड ड्रिंक शुरू हुआ था |

जनसंघ के लोगो ने अन्य लोगो से मिल कर पहले विधानसभा चुनाव में चरण सिह के लोगो का टिकेट कटवाया और फिर चरण सिंह के मुख्यमंत्रियो के खिलाफ अबियाँ चला कर हटवा दिया जिसमे उत्तर प्रदेश ,में रामनरेश यादव को हटा कर बाबु बनारसीदास को मुख्यमंत्री बनाया गया तो बिहार में कर्पूरी ठाकुर को हटा कर रामसुंदर दास को बनया गया और हरियाणा में चौधरी देवी लाल को हटा कर भजन लाल को मुख्यमंत्री बनाया गया जो बाद में पूरा मंत्रिमंडल लेकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे | इसी समय राजनारायण जी का एक विवाद हो गया | हुआ ये की शिमला के रिज के मैदान में उस प्रदेश के जनसंघ के मुख्य्मंम्त्रीशांता कुमार ने अटल बिहारी वाजपेयी को सभा करने की इजाजत दे दिया था पर जब राजनारायण जी के लोगो जिसमे से के सी त्यागी आज भी सक्रीय है और दिल्ली के प्रोफ़ेसर राजकुमार जैन जिन्होने रिज के मैदान की सभा का सञ्चालन किया था |  राजनारायण जी का कार्यक्रम रखना क चाहा तो धरा १४४ लागु कर दिया और इजाजत नहीं दिया फिर भीं राजनारायण जी वहा गए | विवाद बढ़ गया | राजनारायण जी मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गए | जनसंघ के लोगो के खिलाफ दोहरी सदस्यता का मुद्दा राजनारायण जी और मधु लिमये जी उठा चुके थे और वो मुद्दा जोर पकड़ रहा था | मोरारजी भाई ने रिज के मैदान का मुद्दा बना कर उन्हें सरकार से हटा दिया था | इसी बीच चरण सिंह ने कुछ कह दिया तो उन्हें भी मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था तो राजनारायण जी इण्डिया गेट के पास वोट क्लब पर विशाल किसान रैली का आयोजन किया और उसमे लाखो लोग आये | उसके बाद जन दबाव में चौधरी चरण सिंह जी को उप प्रधानमंत्री बना दिया गया पर गृह मंत्री के बजाय वित्त मंत्री बना दिया गया | पर राजनारायण जी बाहर ही रहे | वैसे तो राजनारायण जी और जोर्ज फर्नांडीज इत्यादि प्रारम्भ  में ही मंत्री नहीं बनाना चाहते थे तो मोरारजी भाई ने जयप्रकाश नारायण और आचार्य कृपलानी से दबाव डाल कर इन ,लोगो को मंत्रिमंडल में शामिल किया की ये लोग मंत्रिमंडल में नहीं रहेंगे तो चलाने में दिक्कत होगी | 

राजनारायण जी ने बताया था की एक बार उनकी मोरारजी देसाईं से मुलाकात हो गयी तो आदत के अनुसार राजनारायण जी उन्हे इत्र् लगाने लगे तो मोरारजी भाई ने कह दिया की वैसे तो आप बदबू बिखेरते रहते हो अब इत्र् क्यों लगा रहे हो तो राजनारायण जी ने उनसे कहा की मेरी ये पंक्तियाँ याद रखना ' रे दुर्योधन मैं जाता हूँ ,तुझको संकल्प सुनाता हूँ .याचना नहीं अब रन होगा ,ये रन बड़ा भीषण होगा ; और इतका कह कर राजनारायण जी निकल गए और फिर जनता पार्टी तोड़ने पर लग गए | राजनारायण जी के समर्थन में पहले दिन चार मंत्रियो ने इस्तीफ़ा दे दिया जनेश्वर मिश्र ,नरसिंह यादव ,धनिक लाल मंडल इत्यादि और धीरे धीरे करवा बढ़ता गया और १०० से ज्यदा सांसदों ने राजनारायण जी को अपना नेता चुन लिया | तब राजनारायण जी जो सब कुछ तय कर चुके थे उन्होंने दो सांसदों को चौधरी चरण सिंह के पास भेजा की अब मंत्रिमंडल छोड़कर आ जाये | राज्नारायण जी ने सांसदों से कहा की आप लोगो ने मुझे नेता चुन दिया पर मेरे नेता चौधरी सिंह है और उनको प्रधानमंत्री बनाने का मेरा निर्णय है | 
चौधरी चरण सिंह जी आये और इंदिरा गाँधी के सहयोग से प्रधामंम्त्री बन गए तथा राजनारायण जी जनता पार्टी एस यानि सेकुलर के राष्ट्रीय अध्यक्ष हो गए | 

इस बीच इंदिरा गाँधी जी की पार्टी दो टुकड़े में टूटग गयी थी और वाई बी चौहान के नेत्रत्व में ज्यादा सांसदों के करण असली कांग्रेस बन गयी थी और सारे प्रमुख अनुभवी नेता चौधरी चरण सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल हो गए थे  | बहुगुणा जी वित्त मंत्री थे | इस बीच बहुगुणा जी इंदिरा जी से मिल गए और उन्होंने चरण सिंह जी को समझाया की आप चुनाव करवा दीजिये | हुआ ये था की जैसा बताया जाता है की इंदिरा जी चरण सिंह से नाराज हो गयी थी और संसद जाने से पहले ही उन्होंने समर्थन वापस ले लिया | चौधरी चरण सिंह ने संसद का सामना करने के बजाय सरकार का इस्तीफ़ा दे दिया और ये काम उन्होंने बहुगुणा जी के सुझाव पर दिया था | तब मीडिया के शोर का जमाना नहीं था | राजनारायण जी कलकत्ता गए हुए थे | उस वक्त नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति थे जो खुद भी किसान परिवार से थे | उन्होंने चरण सिंह का इतीफा लेकर रख लिया और उनके जाने के बाद राजनारायण जी को फोन किया की दिल्ली जल्दी पहुचे और आते ही राष्ट्रपति भवन आये | राजनारायण जी दिल्ली आकर सीधे राष्ट्रपति भवन पहुचे तो राष्ट्रपति जी ने उन्हें पूरी बात बताया और कहा की पहली बार कोई किसान प्रधानमंत्री बना है मैं चाहता हूँ की ये सरकार चले और किसानो के हित में फैसले हो  | आप चरण सिंह कोई समझाओ की वो संसद का सामना करे और कुछ दिन तक संसद चलाये | मैं भी मदद कर दूंगा की कुछ  सांसद आप लोगो के पक्ष में आ जाये और आप लोग भी कोशिश करिए  | राजनारायण जी सीधे चरण सिंह जी के घर गए और उनसे  कहा की पार्टी का अध्यक्ष मैं हूँ मुझसे सलाह किये बिना आप स्तीफा कैसे दे सकते है और पुछा की क्या आप को स्तीफा देने को बहुगुणा ने समझाया ? वो तो इंदिरा जी से मिल गया है | राजनारायण जी ने राष्ट्रपति द्वारा कही बात उनसे कह दिया तो चौधरी चरण सिंह ने कहा की हम लोग जीत जायेंगे क्योकि इंदिरा जी के खिलाफ जनता है और चंद्रशेखर वाली पार्टी को वोट कौन देगा | बहुत कोशिश के बाद भी चौधरी चरण सिंह नहीं माने | राजनारायण जी की बात सही साबित हुयी और दो दिन बाद ही बहुगुणा जी इंदिरा जी के साथ चले गए और पार्टी के मुख्य महासचीव्  तथा चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष बना दिया गए | ये पूरी बात राजनारायण जी ने एक बार चौधरी चरण सिंह  की मौजूदगी में सुनाया था | 

फिर चुनाव हुआ और जितनी बुरी तरह इंदिरा जी पिछले चुनाव में हारी थी उससे ज्तादा ताकत से जीत कर आई और जनता ने ३५३ सीट से जिता कर इंदिरा जी को आपातकाल के आरोपों से मुक्त कर दिया था जबकि चौधरी चरण सिंह की पार्टी को ४१ सीट मिली और जनता पार्टी जिसके नेता जगजीवन राम थे को ३१ सीट मिली तथा टूटी हुयी कांग्रेस के गुट जिसके नेता ए के एंटोनी थे को केवल १३ सीट मिली थी | 

अगर में तो फिर सवाल उठता है की यदि राष्ट्रपति जी की सलाह और राजनारायण जी की बात चौधरी साहब ने मान लिया होता तो क्या होता | राजनारायण जी के साथ रहने का काफी अवसर मिला | अक्सर वो बिना बताये आगरा आ जाते थे | कोई प्रोटोकोल नहीं कोई सूचन नहीं और घर पर पहुच जाते थे तो पता चलता था की आ गए और आते ही बोलते की कुछ खिलाओ फिर चलो जरा गुरु जी से मिला आये और वापसी में मुझे घर छोड़कर दिल्ली चले जाते थे | 

सोमवार, 4 नवंबर 2024

पहली कार्यकारिणी जब पार्टी छोड़ने का मन बना लिया था

#जिंदगी_के_झरोखे_से

पार्टी की पहली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक -उसी अवसर पर कार्यक्रम खत्म होते ही पार्टी छोड़ने का मन बना लिया था मैने 
और 
जब #बिहार वाले #पप्पू_यादव को चुपचाप बिना किसी की जानकारी के ठहराया था मैने और #मुलायम_सिंह यादव जी से मिलवाया था ।
1993 की बात है । समाजवादी पार्टी की स्थापना के बाद आगरा मे पार्टी की तीन दिवसीय बैठक होनी थी और उसकी पूरी जिम्मेदारी अकेले मेरे ऊपर थी । संसाधन थे नही तो मुलायम सिंह यादव जी ने आसपास के जिला अध्यक्षो को स्पष्ट निर्देश दे दिया था कि कौन कितनी मदद करेगा क्योकी 100 से ज्यादा लोगो का ठहरना , खाना , आवागमन , प्रचार ,शहर मे सजावट ,गेट होर्डींग इत्यादि तथा मीडिया का खर्च । दिन पास आते जा रहे थे और कही से पैसा नही आ रहा था ।मैने पहले ग्रांड होटल पूरा बुक कर दिया जिसमे एक हाल मीटिंग के लिए ,एक हाल भोजन के लिए ,एक छोटा हाल प्रेस के लिये ,एक और छोटा मीडिया सेंटर (जो उस समय तक किसी भी पार्टी ने नही बनाया था ) के लिए ,एक अपनी व्यवस्था सम्बन्धी चीजो और लोगो के लिए । इसी होटल का एक पूरा विंग मीडिया के लिए कर दिया था करीब 25 कमरे और मीटिंग हाल के ऊपर एक सुईट मुलायम सिंह यादव जी के लिए की अगर उन्हे किसी से मिलना हो या आराम करना हो और कुछ कमरे अन्य बड़े नेताओ के लिए , होटल का रेस्तराँ चूंकि चलना ही नही था तो वो सुरक्षा , खास आगंतुक लोगो के वेटिंग रूम के लिए इस्तेमाल किया ।
फिर होटल से सारी चीजो का विस्तार से तय हो गया ।
फिर शुरू हुआ बाकी इन्तजाम और मेरा हमेशा से तरीका रहा है की जहा तक हो सके लोगो से आवश्यक चीजे करवा लो ,पैसा मत लो और जिस चीजो के पैसा आप को ही खर्च करना जरूरी हो उतना ही लो तो सबसे पहले मैं अपने छात्र जीवन के दोस्त जो अब एक्सपोर्टर हो गए थे उनसे मिला तो उन्होने तुरंत हा किया और बोले की मेरे तो विदेश से बायर आते रहते है तो 4/5 कमरे हमेशा ही फाईव स्टार मे बुक रहते है उसी मे आप बता दो की महत्वपुर्ण कौन कौन है उतने कमरे मैं अपनी तरफ से करवा देता हूँ कल तक ही ।इस तरह ताज होटल का एक पूरा फ्लोर मेरे इस दोस्त ने बुक कर दिया जिसमे एक नम्बर सुईट था वो मुलायम सिंह यादव को 2 मे जनेश्वर जी 3 कपिलदेव बाबू 4 मे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुकुम सिंह 5 आसाम के पूर्व मुख्यमंत्री गोलप बोरबोरा के लिए  6 किरणमय नन्दा और इसी तरह बाकी सब ।फिर एक दोस्त ने एक दिन क्लार्क शी राज मे ग्रैंड डिनर कर दिया ,एक डिनर मैने अपने घर रख दिया ,एक साथी ने  मीडिया के साथियो के लिए व्यवस्थाये कर  दिया । 
फ़ोन विभाग से अस्थाई फ़ोन करवा लिया मीडीता सेंटर के लिए और वही मीडिया के लिए फ़ैक्स और टाइपिंग की व्यव्स्था कर दिया ।फिर आवश्यकता अनुसार अनुमान से गाडिया किया । मेरे एक आयकर अधिकारी मित्र ने क्लार्क मे तीन कमरे करवा दिये तो एक मित्र होटल मालिक ने कुछ कमरे दे दिये ,एक मित्र पी सी एस अधिकारी भुवनेश्वर सिंह ने एक नया बना पूरा होटल ही करवा दिया सुरक्षा ड्राईवर और कुछ कार्यकर्ताओ के लिए ।इसी बीच मुलायम सिंह जी का फ़ोन आया की एक बड़े पत्रकार आ रहे है और उनकी जिद है की वो मुगल शेरटन मे ही रुकेंगे तो वहाँ जाकर उनके लिए कमरा करवाया जिसका बिल मुझे महंगा पडा ।
हर होटल मे कार्यक्रता की ड्यूटी लगाया तो किसी की पार्टी सम्बन्धी चीजे टाइपिंग करवाने की ,किसी को गाडी तथा पार्किंग और यातायात , किसी को केवल पूरे समय मीडिया के साथ रहने और व्यव्स्था देखने की इत्यादि इत्यादि और अपनी पत्नी को सब कोर्डीनेट करने की क्योकी पार्टी मे सब पढने वाले और कम उम्र के नौजवान थे 2/4 को छोडकर ।
अपने घर पर फ़ोन के पास एक चार्ट चिपका दिया जिसमे नेता का नाम, उसका होटल का नाम, उसका कमरा नम्बर , होटल का फ़ोन नम्बर ,उस होटल मे कौन कार्यकर्ता मिलेगा , अगर गाडी उस नेता को देनी है तो गाडी का नम्बर , ड्राईवर का नाम , मीटिंग स्थल का फ़ोन नम्बर , जरूरत पडने पर अलग अलग डाक्टर के नम्बर इत्यादि और मेरी स्व पत्नी ने ये काम बखुबी अंजाम दिया बिना किसी गलती के ।
दिल्ली गया और वहा बाराखम्भा रोड के एम्पोरियंम से ढूढ कर बहुत ही सुन्दर फ़ाईल लाया जिसमे पूरा चार्ट जो घर पर लगा था ताकी कर नेता को हर एक के बारे मे पता हो ,तीन दिन का मिनट टू मिनट कार्यक्रम और सहयता सम्बन्धी सभी नम्बर इत्यादि थे ।पंछी से सभी के लिए जाते वक्त देने के लिए पेठा और दालमोठ बुक कर दिया तो यादगार गिफ्ट के लिए ताजमहल ।
ये कार्यकारिणी 10 दिन पहले से अखबारो मे छ्पनी शुरू हुई और खत्म होने के कई दिन बाद तक किसी न किसी रूप मे देश और प्रदेश भर मे छपती रही ।हा एक अंग्रेजी अखबार की पत्रकार ऐसी भी थी जिन्होने हमारा कमरा और कोई सुविधा लेने से इंकार कर दिया और उनकी मैगजीन मे एक बडा लेख छपा जिसमे सारा वर्णन था तारीफ भी थी पर अन्ग्रेजी मे हेडींग था की समाजवाद पहुचा होटल मे, जिसकी मुझे उम्मीद भी थी ।उसके बात किसी भी मीटिंग का उतना प्रचार और प्रसार मैने नही देखा ।दूसरी बात थी तीन के कार्यक्रम मे कोई भी गफलत नही ,भ्रम नही , कोई अव्यवस्था नही , किसी कार्यक्रक मे परिवर्तन या देरी नही और एक कागज या अप्लिन भी कम नही पडा और न किसी चीज के लिए अचानक दौडना पडा ।सब कुछ पहले से दिमाग मे था और मौके पर होता था ।
कार्यक्रम की तारीख आ गई मैं व्यव्स्था मे दिन रात लगा था की कोई कमी न रह जाये तो जो नकारा लोग होते है और न किसी काम के होते है और न करते है वो कमिया निकालने मे व्यस्त रहते है और भाग भाग कर चुगली करते है ।
मेरी शायद ये कमी मानी जानी चाहिये की जो काम मिला लग कर उसे कर दिया ,उसकी रोज रिपोर्ट देना की क्या क्या हो गया ,क्या झन्डा गाड़ दिया या क्या मुसीबत झेल रहा हूँ और कर रहा हू इत्यादि मुझसे नही होता और हो जाने के बाद भी उसका व्योपक जिक्र करना या किसने नही किया या बुरा किया ये बताना भी नही होता हा जिन जिन ने जो थोडा भी किया उन सबको नेता से मिलवाना और उन सबकी खूब तारीफ करना जरूर करता रहा मैं जिससे मेरे सर पर पैर रख कर लोगो को बढने का भी मौका मिला और नेता को भी मुझे डाउन कर विकल्प खड़ा करने का मौका मिला ,दूसरा कभी भी किसी की भी बुराई ,चुगली और चापलूसी मे मेरा कोई विश्वास नही रहा ।
पर लोग मेरे साथ सारे हथकण्डे आजमाते रहे और आजमाते भी क्यो नही जब पार्टी के किसी बड़े का उकसावा और हाथ साथ हो ।
इसमे भी ऐसा ही कुछ हुआ और जब एक दिन पहले शाम को मुलायम सिंह जी को आना था तो दिल्ली के रास्ते पर मैं उनके स्वागत मे गया खुशी खशी बताने की सब इन्तजाम हो गया ।
सिकंदरा से आगे ज्योही मैं उनकी गाडी मे बैठा तो बहुत गुस्से मे थे मुलायम सिंह जी और तरह तरह के सवाल करने लगे मुझे रोना आने लगा ।हा ये जिक्र भी कर दूँ की इस कार्यक्रम मे फीरोजाबाद के महामंत्री ने 500 रुपया और विधायक ने 1000 रुपया कुल दिया था और बाकी किसी ने कुछ नही दिया दूसरा ये हो या अन्य सभी कार्यक्रम मैने अपने व्यक्तिगत दोस्तो की मदद से आयोजित किये हमेशा जिनका पार्टी और राजनीती से कोई सम्बंध नही था और सरकारे बनने के बाद भी कभी भी जरूरत पड़ने पर मैं उनमे से किसी का कोई काम भी नही करवा पाया ।
उस वक्त मन हुआ की गाडी रोक कर अभी उतर जाऊँ और साथ चल रही मीडिया को बता दूँ की मैं अभी पार्टी छोड रहा हूँ पर लगा की सारी जिम्मेदारी मैने खुद अपने ऊपर लिया था ऐसा करना ठीक नही बल्की आखिरी दिन शाम को पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दूँगा क्योकी ये नेता तो कां कच्चा है और छोटी सोच का है तो इसके लिए कुछ भी कर लो कभी भी किसी की भी चुगली पर सब किया बर्बाद हो जायेगा और बाद मे हुआ भी ,काश तभी पार्टी छोड देता तो जिन्दगी के इतने साल बर्बाद नही होते और बीबी बच्चो को इतनी तकलीफे नही सहनी पड़ी होती  । साथ बैठे चौ हरमोहन सिंह मेरे चेहरे की तरफ देख रहे थे और शायद मेरा उस वक्त का भाव समझ रहे थे उन्होने कहा की राय साहब की बात भी तो सुन ले ।किसी इमानदार पर उंगली उठे या सच्चाई के साथ केवल काम मे लगे रहने वाले पर तो फिर पागलपन सवार हो जाता है ।
मैने तत्काल जवाब दे दिया यहा पार्टी है नही मैं बना रहा हूँ और कोई खजाना नही है न किसी का सहयोग सब अपने लोगो की मदद से कर रहा हूँ और जिसने जहा जो व्यव्स्था दे दिया कमरा हो या कुछ और उसी से काम चलाना मजबूरी है ।
फिर मैने व्यवस्थाओ का ब्योरा देकर कह दिया की बाकी सब कुछ लिखत पढत मे आप को अपने कमरे मे मिल जायेगा ।
उसके बाद बिल्कुल सन्नाटा रहा पूरे रास्ते ।ताज होटल पहुच कर मैने वहा वाले ड्यूटी के कार्यकर्ता को मिलाया की ये पूरे समय यही रहेगा और सब देखेगा और कमरे पर पहुचा कर मैं बाहर से ही चला गया ।
अगले दिन सुबह बैठक शुरू हुई ।परम्परा ये है की आयोजक प्रारम्भ मे सबका स्वागत करता है ,मीडिया के फोटो सेशन का हिस्सा रह्ता है और समापन पर आभार व्यक्त करता है और कोई कमी इत्यादि के क्षमा की नौटंकी इत्यादि ।
पर मैं दोनो ही अवसर पर बाहर ही रहा और नश्ता लन्च डिनर जिसमे एक मेरे निवास पर था पूरी कार्यकारिणी का और कवि गोष्ठी भी थी उसके अलावा मुलायम सिंह से मिलने ही नही गया हा बाकी सभी के कमरे मे जाता सभी के और सबका सुख दुख पूछना और कोई आदेश पूछना चलता रहा ।
मुलायम सिंह भी समझ गए थे तो जब भी मौका लगता वो इन्तजाम की तरीफ करते मुझसे बात करने की कोशिश करते और कहते की इतना सब कैसे कर लिया आप ने और मैं जवाब नही देता ।फिर दूसरे दिन मेरे घर के डिनर मे वो परिवार से मिलने के लिए घर मे चलने लगे तो उन्होने अपने व्यवहार पर खेद व्यक्त किया और भविष्य मे न करने के साथ यह भी याद दिलाया की उन्होने तो मुझे दिल्ली भेजने का फैसला कर रखा है अगला मौका आते ही और पिछ्ली बार एक ही सीट थी इसलिए वादा पूरा नही कर पाये थे इत्यादि ।फिर भी मेरा मन भारी ही रहा ।उस वक्त की तीन दिन की फोटो मे मैं शायद ही कभी हँसता या मुस्कराता दिखा हाऊँगा ।
खैर इसी बीच कही से खबर आई की बिहार वाले पप्पू यादव मुलायम सिंह जी से मिलना चाहते है और ये गोपनीय है तथा वो पार्टी से जुड़ेंगे ।
मैने पप्पू से बात किया और उनको रात को आगरा बुलाया और मीटिंग हाल को ऊपर जो कमरा मुलायम सिह के लिए रखा था उसी के बगल मे पीछे साइड के दो कमरे उनको और उनके लोगो को दे दिया और ये की वो वापस की अब कल रात को ही जाये और मैं दिन मे मिलवा दूंगा । दूसरे दिन मैने मुलायम सिंह जी को चुपचाप ये बता दिया की आप के बगल के फला रूम मे पप्पू को रुकवाया है मैने । थोडी देर मीटिंग चलने के बाद मुलायम सिह जी ने मुझे बुलवाया और बोले की बाथरूम जाना है और किसी से मिलना भी है तो चलिये बताईए किधर है कमरा और मेरे साथ ऊपर जाकर पप्पू से मिले ।किसी को कानोकांन खबर नही हुई पप्पू आये और चले गए और फिर पार्टी से जुड़ भी गए ,।हा फिर जहा भी मिले बडा भाई कह कर लोगो से परिचय करवया और पूरा सम्मान दिया ।थोडी देर बात कर मुलायम सिंह जी फिर नीचे मीटिंग मे आ गए ।
खैर पूरी सफलता के साथ मैं ये आयोजन करने मे सफल रहा और आखिरी दिन जब मुलायम सिंह को विदा करने गया तो उन्होने पूछा की जिन लोगो को बोला था किस किस ने क्या मदद किया तब मुझे बताना पडा की सिर्फ डेढ़ हजार रुपया पार्टी का योगदान है और करीब इतना कुल खर्च जो आगे पेमेंट करना है और ये तब जबकी ये ये इन्तजाम मेरे फला फला दोस्तो ने किया और मैने क्लार्क के लंच मे भी आप से उन लोगो को मिलवाया था और सबका योगदान बताया था जी की कैश के रूप मे नही बल्की काम के रूप मे है और अब मीटिंग वाले होटल का पूरा पेमेंट नाश्ता इत्यादि के साथ ,मीडिया सेंटर सम्बंधी पेमेंट ,गाड़ियो का और मुगल होटल का करना है तब वो बोले की लखनऊ पहुच कर सबको टाइट करता हूँ और जिसने जो बोला वो देकर जायेगा ।इसके बाद एक हफ्ता हो गया और कोई नही आया और शहर मे मेरि साख का सवाल था तो मैने अपने साथ रहने वाले तुलसीराम से बात किया कि क्या किया जाये वो बोले की नेताजी के पास जाईये और बात करिये पर मैं नही गया तो तुलसीराम जी ने कुछ हजार रुपये अपने पास से दिये की थोडा सहयोग मेरा भी ले लीजिये पर देना बहुत ज्यादा था तो  आगरा के आर बी एस कालेज के पोस्ट आफिस मे जाकर #बेटियो के नाम जमा #एनएससी ले जाकर  तुड़वाया और  तुलसीराम यादव के साथ  जाकर सब पेमेंट किया ।
जबकी परिवार मे एक का एक पद ले लिया तो उसने मुलायम सिंह जी से सब ले लिया और उनको दूध की मक्खी की तरह निकाल फेका ,एक को एक पद से हटाया और फिर बना भी दिया तो वो षडयंत्रकारी हो गया ,एक के कुछ मंत्रालय कम हुये तो वो बगावत कर बैठा और वो तमाम जो शायद कही क्लार्क भी नही बन पाते और मुलायम सिह के कारण क्या क्या बन गए और करोड़पति भी उनमे से कोई भी मुलायम सिह जी के साथ उस वक्त नजर नही आया और एक हम जैसे मूर्ख लोग है जिनकी जिन्दगी का बहुमूल्य समय गया , मेहनत के साथ धन भी गया ,दो दो बार घर बिके कुछ नही मिला फिर भी रिश्ता निभा दिया इस बुरे वक्त तक भी ।
सचमुच हम जैसे लोग बहुत मूर्ख है वर्ना बार बार सच जान कर कौन पत्थर से सर मारता रह्ता है की पत्थर से भगवान निकलेंगे । सगे परिवार और जाती के लोगो ने तो नही माना और जब भी धोखा दिया इनके अपनो ने ही दिया और इन्होने अपने वफादारो को जो गैर थे उनको दिया 
इस कार्यकारिणी के चंद दिन बाद ही सरकार बन गयी और तब से आगरा लकी मान लिया गया पर फिर  जब तक सरकार रही पार्टी के पद भंग और मुलाक़ात बंद । 
जो सिर्फ चुगली और चापलूसी करते रहे और उस वक्त किस हालत मे थे नही लिखूंगा वो सब सैकड़ो करोड़ वाले बने एम पी एम एल सी और मंत्री बने और अब लात मार मार कर सत्ता पार्टी मे आज भी ।सब पिछड़े वर्ग के ही है । 
अभी तो बहुत पिक्चर बाकी है ।

छात्र राजनीति की यादें

#ज़िंदगी_के_झरोखे_से 

#छात्र_राजनीति_का_दौर याद आ गया । मेरे भाषण सुनने के लिए छात्र छात्राएँ बहुत बड़ी संख्या में अपने आप एकत्र हो जाते थे -
#( जब मैं वाद विवाद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने जाता था तो चाहे जितनी दूर हो पर यदि शहर में किसी कालेज या विश्वविद्यालय में हुआ तो काफ़ी संख्या मे वहाँ सुनने और जोश बढ़ाने भी पहुँचते थे कालेज के छात्र और छात्राएँ और कई अध्यापक भी ) ख़ैर वो दौर ही ऐसा था की कोई भी खेल हो वहाँ भी सभी स्कूल कलेजो के सैकड़ा लोग पहुँचते थे अपनी टीम और खिलाड़ी के पक्ष में #
- बस कोई एक साथी कालेज का घंटा बजाता और मैं  लाइब्रेरी के सामने के ऊँचे बरामदे के सामने खड़ा हो जाता था जो गेट के ठीक सामने है और कालेज के दोनो मैदान उसके सामने सड़क के दोनो तरफ़ और लाइब्रेरी के सामने भी तीन तरफ़ सड़क और ठीक सामने काफ़ी चौड़ी जगह और सभी क्लास से बाहर निकल आते थे सभी छात्र और छात्राए और मेरे सामने बडी भीड होती थी मुझे सुनने को । अध्यापक भी जब देखते की मैने घन्टा बजवा दिया है और अपनी सम्बोधन वाली जगह पर खड़ा हूँ तो खुद क्लास के बाहर चाले जाते और हम लोगो के सामने के बजाय दूसरे वाले रास्ते से स्टाफ रूम मे चले जाते ।फिर मेरा भाषण होता था की क्यो हड़ताल हो रही है और सिर्फ हड़ताल होना है या कही जुलुस जाना है ।सारी बात बता कर मैं पहले सबको समर्थन मागता और सहमत होने पर जुलुस का रूट , रास्ते का और जहा जाना होता वहा पहच कर वहा का अनुशासन बताता तथा यदि मौन जुलुस नही है तो चलने के पहले ही नारो का अभ्यास करवाता और फिर कारवा निकल पडता था । ज्यो ही प्रशासन को भनक लगती की मैं निकल रहा हूँ पास के थाने के सी ओ और एस ओ मय फोर्स आ जाते साथ चलने को और पूछ लेते गन्तव्य और कारण और एक इच्छा व्यक्त कर देते की हर बार की तरह मैं अनुशासन कायम रखूंगा और साथ साथ सब चलते ।लेकिन विवि या कलक्टरेत पर दो पी ए सी का ट्रक जरूर पहुचा होता था ।
पर ये तस्वीर तो शहर से दूर मेरे कालेज के दूसरे कैम्पस की है जहां किसी समस्या पर मुझे आमंत्रित किया गया था वहाँ के शिक्षकों और छात्रों द्वारा । मेरा भाषण आख़िरी भाषण था , आप देख सकते है तलियो के लिए तैयार हाथ , फिर उस जमाने में मेरे भाषणों में एक आग होती थी । वो यहां भी काम कर रही थी । फिर मेरे नेतृत्व में जुलूस निकला । 
आजकल के तथाकथित छात्र नेता इस जुलूस की आधी लम्बाई तो इसके एक चित्र में देख सकते है बिल्डिंग के दूसरे छोर पर और कसी हुयी मुट्ठियों के साथ लगने वाले नारो से अन्दाज़ लगा सकते है मेरे शब्दों के असर का । 
फिर जो होना था हुआ और सब हुआ जिसका वर्णन यहाँ नही आत्मकथा में । 
350 से ज़्यादा लोग गिरफ़्तार होकर जेल गए 
और फिर वो समस्या हमेशा के लिए ख़त्म हो गयी ।
आंदोलन तो वो भी था जब लाठीचार्ज और फिर मेरी गिरफ़्तारी के बाद अगले दिन सुबह ही राजनारायण जी जेल में हाज़िर थे और उनके आने का पता लगते ही ज़िले के डी एम एस पी सहित पूरा अमला और प्रशासन हम लोगों को छोड़ने को तैयार था उसी समय और मेरी छात्र संघ का चुनाव कराने की माँग मानने को भी पर राजनारायण जी ने इनकार कर दिया की अभी रहने दो , फिर समर्थन में गिरफ़तारियो का दौर चला सुमन जी , फिर बरेली से आकार कुँवर सर्वराज सिंह , फिर कमांडर साहब के नाम से मशहूर कैप्टैन अर्जुन सिंह भदौरिया और उसके बाद जेल में मिलने राम नरेश यादव , मधू दंडवाते से लेकर चंद्रशेखर जी तक और जब भी कोई आता एक तख़त लग जाता जिसपर से उस नेता का सम्बोधन होता । रोज़ शाम को बैरक में किसी विषय पर कमांडर साहब और मेरा उद्बोधन होता प्रशिक्षण के तौर पर । सभी की नाप हयी ,कपड़े जिसमे गांधी आश्रम का ही कोट भी था हम सभी बंदियों को मिला । बहुत से लोगों की रुचि जेल में गुंडो से दोस्ती करने में थी तो कुछ की पपलू खेलने में भी । गलती से कुछ संघ से जुड़े छात्र भी बंद हो गए थे उनकी रुचि का सार्वजनिक वर्णन निषेध है पर आत्मकथा में होगा और ऐसे काफ़ी थे जिनकी रुचि राजनीतिक मुद्दों और देश को समझने में थी । 
आंदोलन वो भी था जब उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को घेर लिया गया सर्किट हाउस में और अंधेरा होने पर लाइट बुझा कर उन्हें पीछे के रास्ते से निकाल कर ले जाया गया 
आंदोलन वो भी था जब विश्वविद्यालय के कुलपति को खड़ा कर मैं उनकी कुर्सी पर क़ाबिज रहा क़रीब ४ घंटे और फिर अधिकारियों को चाय पिला कर ही उठा । 

वह आंदोलन भी मेरा अनोखा आंदोलन था जिसने सभी के हाथ बांधे थे , मुँह पर पट्टी बंधी थी और सीने पर पोस्टर था जिसपर दिल का दर्द लिखा था और पूरा जुलूस कलक्टरी तक सड़क के किनारे बिलकुल मौन ही गया और वहाँ पट्टी भी खुली और आवाज तथा उद्घोष भी 
और वो ६ वी क्लास में पूरी क्लास को लेकर स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य रहे एच एन कुज़रू जी के घर तक जाकर अपनी बात कहना और उनका गाल थपथपा कर कहना की नेता बनेगा ? और दूसरे ही दिन माँग पूरी कर देना 
अपने पिता से उलझ जाना छात्रों के लिए , 
आंदोलन इस बात के भी हुए की बस और सिनेमा में आधा टिकट लगे , साइकिल स्टैंड पर कितना पैसा लगे ,और भी बहुत कुछ 
ना जाने कितने आंदोलन है इस ज़िंदगी के झरोखे में 
याद के अनुसार सब आत्मकथा में मिलेगा । 
बड़े बड़े क्रांतिकारी युवा और छात्र नेता हम लोगों से आज पूछते है की आप क्या और कौन ?

दगाबाजों के देवता

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

#दगाबाजो_के_देवता --

क्यों कुछ लोग ऐसे होते है की उन पर विश्वास करें या नहीं करें कुछ समझ में नहीं आता है । पर इसके लिए जिम्मेदार भी तो वही होते है, अपने अनिर्णय के कारण और कभी कह कर मुकरने के कारण । क्यों कुछ लोग होते है जिनके लिए कभी बहुत सम्मान पैदा होता है मन में पर दूसरे ही पल घृणा होने लगती है उनसे । जब कोई ऐसी स्थिति से लगातार गुजर रहा हो तो कैसी उथल पुथल भरी होती है उसकी जन्दगी में ,उसके मन में और उसके खून के कतरे कतरे में ।

कुछ लोग बहुत बड़े हो जाते है लोगो को इस्तेमाल कर और सीढियां बना कर ,तमाम लोगो के साथ फरेब कर ,तमाम लोगो के साथ कसाई बन कर उसकी उम्मीदों उसके भविष्य और उसके दिल पर छुरियां चला कर बार बार । न जाने कितनो की क़ुरबानी होने और उनकी जिंदगियों को मिटा कर और उन्हें पावडे बना कर उसे खूबसूरत कालीन समझ उस पर चल कर बुलंदियां पाते है ये लोग । घायल कितने पड़े है पीछे उन्हें वैसे ही भूल जाते जाते है जैसे चलते हाथी को पता ही नहीं होता की कितने कीड़े मकोड़े शहीद हो गए उसके पैरों के नीचे । सच है ऐसे लोगो को लोग कीड़े मकोड़े से ज्यादा महसूस ही नहीं होते कभी भी ।

ये किसकी कहानी है क्या बताऊ । ऐसी तमाम कहानियां बिखरी पड़ी है चारो तरफ और ऐसे चरित्र कोई कहानी के काल्पनिक पात्र नहीं बल्कि चारो तरफ फैले हुए । इनके शिकार भी भरे हुए है चारो तरफ । नाम लेना जरूरी नहीं है और ऐसे लोग नाम नही बस बड़े होते है और हजारो साल पहले ही किसी ने कह दिया था की ; समरथ को नहीं दोष गुसाई ;। बाकी लोगो के भी नाम नहीं बस वे इस्तेमाल होने और गर्त में खो जाने वाले कीड़े मकोड़े है ।

ऐसा मंथन सचमुच समुद्र मंथन से कम नहीं होता है । समुद्र मंथन में तो विष निकला था तो अमृत के साथ बहुत सी अच्छी चीजें भी निकली थी ,पर इस समुद्र मंथन में तो केवल विष ही निकलना है और निकल भी रहा है ।

इस विष की कहानी से दूर बड़े मस्त है अपने वैभव ,अपनी आभा ,अपनी सत्ता और अपने गुरूर में । उन्हें परवाह ही नहीं  है की कोई जीए या मरे । कोई  रहे या न रहे । कोई अपमानित हो या सम्मानित । उन्हें तो बस अपनी और अपनों की चिंता है और चिंता है लाखो साल आगे तक की सत्ता और वैभव की । पता नहीं इन्हें राम ,कृष्ण ,बुद्ध ,महावीर ,नानक ,ईशा ,रावण ,कंस ,जदीज और तमाम राजाओं ,नवाबो की उठती और डूबती जिंदगियो से कुछ सीखने को मिला है या नहीं । पता नहीं दुनिया के सिद्धांतो से ऊपर उठकर इन्हें अमरत्व मिल गया है क्या ? क्या इन्हें कोई वरदान मिल गया है की ये और इनके अपने लाखो साल तक सत्ता और वैभव भोगेंगे ,बिना किसी बीमारी के ,बिना किसी पतन के । इन्हें ये अमरत्व मुबारक ,इन्हें ये वैभव मुबारक ,इन्हें ये सत्ता मुबारक ,इन्हें लोगो की हत्या मुबारक ,इन्हें लोगो को दिए धोखे मुबारक ,इन्हें आगे भी इनके हाथ से चलने वाली छुरियां मुबारक ,इन्हें इनकी चालबाजियां मुबारक । ये कौन है ---- ये मै क्यों बताऊँ ? आप सभी आँखें खोलिए और देख लीजिये ऐसे किसी एक को या बहुतों को । आप को ये ज्ञान मुबारक जो आप को ऐसे लोगो से बचा सके ।

पद ठुकराना

जिंदगी_के_झरोखे_से

मैं पहले पहले राज्य मंत्री दर्जे से इस्तीफा दे चुका था । ऐसा 2007 में भी मै ऐसा ही कर चुका था कि बहाना मिला और मैंने मंत्री दर्जे से इस्तीफा दे दिया था । इस बार भी हुआ ये की 2014 का चुनाव पार्टी हार गई थी तो मैने नैतिकता के आधार पर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था । 
फिर राज्य सभा और विधान परिषद के चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के सचिव शम्भु सिंह यादव ने मुख्यमत्री निवास पर मिलने पर कहा की आदेश हुआ है की मैं जो विभाग बताऊँ उसी मे मुझे कैबिनेट का दर्जा देने का आदेश जारी कर दिया जाये , पर कालीदास मार्ग के उस मुख्यमंत्री बंगले पर ही मैं कह के चला आया की कुछ भी जारी मत करियेगा वर्ना मैं फिर सार्वजनिक रूप से इस्तीफा घोसित कर दूंगा ।
इन पदो के पीछे लाखो लोग पता नही क्या क्या करने को तैयार रहते है 
और मैं बिना हिचक त्यागने को ।
बस मैं ऐसा ही हूं । 

अर्जुन सिंह और पहला फोन

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--
जब कांग्रेस के बड़े नेता #अर्जुन_सिंह ने मेरे घर पहला फ़ोन लगवाया और #वीर_बहादुर_सिंह ने दूसरा ---

देश के जाने माने डाक्टर जो उस वक्त पद्मश्री और वी सी राय अवार्ड से सम्मानित थे डा सी पी ठाकुर कांग्रेस के लोक सभा सदस्य चुने गए थे जो बाद मे भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार मे केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री बने , बिहार भाजपा के अध्यक्ष भी रहे । डा साहब की सरलता ऐसी की पूरे परिवार बेटी दामाद सबसे परिचय करवाते थे और मैं भी उनके घर परिवार सहित जाता था ।हा जब वो भाजपा मे चले गए तो बहुत दिन मुलाकात नही हुई ।एक दिन उनके मंत्री वाले घर के सामने से जा रहा था तो अंदर चला गया ।वो बाहर ही खड़े लोगो से मिल रहे थे ज्योही मेरे ऊपर निगाह पड़ी तुरंत स्टाफ से मुझे अंदर बैठाने को कहा और फ़्री होकर आये तो पहली शिकायत दाग दिया की आप इतने दिन बाद क्यो मिले ? आते क्यो नही है और कोई काम हो तो अधिकार के साथ कह दिया करिये ।जब पता लगा की कोई काम नही तो बोले की पेठा नही मिला बहुत दिन से ।मेरा मिलने का प्रोग्राम ही नही था पर झेप कर और जल्दी फिर आने को कह कर निकल गया था ।
मेरा उनसे एक अन्य सांसद जो रिश्ते मे मेरे मामा लगते थे उनके घर परिचय हुआ था और एक ही परिचय मे संबंध बहुत प्रगाढ हो गए उनके अपनेपन के कारण ।
मेरी पत्नी को कुछ तकलीफ चल रही थी जिसका निदान आगरा मेडिकल कालेज के सारे बड़े प्रोफेसर भी नही कर पाये थे । मैं डा सी पी ठाकुर से उसी के लिए मिलने गया उनकी राय लेने और जरूरत हो तो उनके सहयोग से एम्स मे दिखाने के लिए ।
मैं उनके घर पहुचा ही था की उनको मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस के दिग्गज नेता जो उस वक्त केन्द्र मे संचार मंत्री थे उनका फ़ोन आ गया की मिलने आ जाईये । ड़ा साहब ने अपने क्षेत्र के किसी काम के लिए समय मांगने को नोट करवाया हुआ था । डा साहब बोले कि राय साहब चलिये अर्जुन सिंह जी से मिल कर आते है ।हम लोग अर्जुन सिंह जी के घर पहुचे और जब उनके ऑफिस मे मिलने पहुचे तो डा साहब ने मेरा भी परिचय करवाया और पता नही क्यो अपना रिश्तेदार बताया । ड़ा साहब ने पहले से तैयार अपने कागज दिये और अपनी बात कहा, तभी चाय आ गई । 
अर्जुन सिंह जी ने अचानक मुझसे पूछा की आप के घर फ़ोन है या नही ? मैने बोला की नही है और जरूरत भी नही है तो उसका खर्च क्यो उठाया जाये । उस जमाने मे फ़ोन इने गिने लोगो के यहा होता था और आप को चाहिये तो पैसा जमा कर तीन तीन साल का इन्तजार होता था । यानी फ़ोन लक्जरी था । 
बाहर कही फ़ोन करना अगर जरूरी हुआ तो शहर के बड़े तारघर जाकर बुक करा कर पूरे पूरे दिन क्या रात भी इन्तजार करना पडता था परिवार को नम्बर से और बाकी लोग भी नम्बर लगाये बैठे होते थे ।फ़ोन यानी ट्रंककाल मिल गया तो बडी उप्लब्धी होती थी । बहुत लोगो की काल पूरी ही नही होती कि कट जाती थी या आवाज नही आती और जोर से बोलना पडता था । बडा मजेदार दृश्य होता था ।
खैर अर्जुन सिंह जी ने कहा की नही पैसा नही लगेगा आप के घर फ़ोन लग जायेगा ,जो उस वक्त मेरी समझ मे नही आया ।उन्होने ड़ा साहब से कहा की वो अपने पैड पर या न हो तो एक कागज आगे बढाया की इस पर इनका नाम और पता लिख दीजिये ।ड़ा साहब ने लिख दिया तो उन्होने बजर बजा कर अपने ए पी एस आर के सिंह को बुलाया और उनसे मेरा परिचय कराते हुये कहा की वो कल मुझे संचार भवन मे मिल ले और कमेटी वाली चिट्ठी हाथ मे देकर उसका प्रोसेस मुझे बता दे । अगले दिन मैं संचार भवन गया तो नीचे नाम लिखा था और नीचे से एक चपरासी मुझे आर के सिंह के कमरे मे छोड गया जो अर्जुन सिंह जी के बगल मे ही था । मेरे लिए चाय आई तब तक किसी को सिंह साहब ने फ़ोन किया और वो एक लिफ़ाफ़ा आकर दे गया ।आर के सिंह ने मुझे बताया की मुझे मंत्री जी ने आगरा की टेलिफोन एडवाईजरी कमेटी का सदस्य नियुक्त कर दिया है जिसमे मुझे फ़्री फ़ोन मिलेगा और 1200 काल महीने की फ़्री होगी ।इस कमेटी मे होने के नाते लोगो की समस्याये दूर करवाना तथा विभाग को सुझाव देना मेरा काम होगा जो मैं कभी भी कर सकता हूँ पर हर दो या तीन महीने मे कमेटी की बैठक होगी उसमे भी लिख कर दे सकता हूँ । बैठक मे भाग देने का टी ए डी ए भी शायद होता था । उन्होने ये भी कहा की मुझे आगरा पहुचने पर टेलिफोन के डिस्ट्रिक्ट मैनेजर (डी एम टी) को लिख कर देना होगा की मैं इस नियुक्ति को स्वीकार करता हूँ ।
आगरा पहुचा और वही किया मैने और अगले 24 घंटे मे पता नही कितने दूर से तार खींच कर मेरा लाल रंग का फ़ोन लग गया जिसका नम्बर था 63544 । (फ़ोन और उसके विभाग पर अगली पोस्ट मे लिखूंगा )
कुछ दिनो बाद कमेटी की बैठक हुई और पहली ही बैठक मे टेलिफोन की हालत पर मैं खूब बोला जो सत्ता पक्ष के सांसद और विधायक लोग जो उसके सदस्य थे उनको बुरा लगा । बुरा तो ये भी लगा की विपक्ष का आदमी कांग्रेस सरकार मे इस कमेटी का सदस्य कैसे बन गया । करीब 1 साल मैं टी ए सी सदस्य रहा और अर्जुन सिंह जी संचार मंत्री नही रह गए तो कांग्रेस के सांसद और दो विधायको ने नये संचार मंत्री को लिख कर दिया की मुझे हटा दिया जाये और थोडे दिन बाद मुझे कमेटी से हटा दिया गया पर नियम यह था की यदि मैं फ़ोन बरकरार रखना चाहता हूँ तो लिख कर दे दूँ और नियम अनुसार पैसा जमा कर दूँ फ़ोन लगा रहेगा ।तब तक फ़ोन जरूरत बन गया था और अपने ही नही तमाम जानने वालो को इमर्जेंसी मे काम आ रहा था तो पिता जी बोले की फ़ोन का पैसा जमा कर दो और अब इसे रखा जाये ।
कुछ समय या साल बाद केन्द्रीय मंत्री कल्पनाथ राय जी की बेटी की शादी पड़ गई जिसमे उन्होने मुझे भी आमंत्रित किया था ।उनके निवास 36 औरंगजेब रोड पर ही शादी का कार्यक्रम था ।मैं दिल्ली पहुचा और भाई विकास नारायण राय आई पी एस जो उस वक्त प्रधान मंत्री की सुरक्षा मे एस पी जी मे आ गए थे नेताजी नगर के उनके घर पर रुका और शाम को तैयार होकर कल्पनाथ राय जी के निवास पर पहुचा । कल्पनाथ राय जी से मिला तभी वहा केन्द्रीय शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री ललितेश्वर प्रसाद शाही जी आ गए ।शाही से से मेरे बहुत अच्छे सम्बंध थे और मेरी पत्नी के एक बड़े भाई जो आई ए एस अधिकारी थे वो उनके पी एस भी थे ।राय साहब को प्रणाम कर हम दोनो लोग थोडा पीछे की लाइन मे जाकर बैठ गए ।उत्तर प्रदेश के बहुत ही प्रभावशाली मुख्यमंत्री रहे वीर बहादुर सिंह जी हटा दिये गये थे और केन्द्र मे संचार मंत्री बना दिये गए थे । राजीव गांधी उनसे कुछ नाराज चल रहे थे । इसी बीच वो आये और कल्पनाथ राय जी मिलकर पीछे मेरे बगल वाली सीट पर बैठ गए क्योकी उसी समय एलर्ट हो गया था की प्रधान-मंत्री राजीव गांधी निकल चुके है और यहां पहुचने वाले है । ललितेश्वर प्रसाद शाही साहब ने मुझसे पूछा की वीर बहादुर जी से परिचय है या नही ।मैने कहा की इन्हे कौन नही जानता है पर मैं कभी मिला नही हूँ , तो उन्होने वीर बहादुर सिंह से मेरा परिचय करवाया । नाम के आगे राय सुनकर वीर बहादुर सिंह जी ने पूछा की बंगाली या उत्तर प्रदेश के ? मेरा जवाब सुनकर पूछा कौन जिला और कौन तहसील और क्या करता हूँ इत्यादि ।सब जवाब दे दिया तो वो मुझसे भोजपुरी मे बात करने लगे । 
तभी मुझे पता नही क्या सूझा की मैने अपना टेलिफोन कमेटी का बनने और हटने का किस्सा उनको सुना दिया , तो बोले की ये कहा लिखा है की सिर्फ सत्ता पार्टी वाले ही कमेटी मे होंगे ,कोई भी जिम्मेदार नागरिक बन सकता है ।भोजपुरी मे हम लोगो के पीछे उनके सहायक बैठे थे उनसे उन्होने कहा की इ हमरे घर क हऊऐ ,एन कर नाम पता नोट कईला और कल ही इनके टेलिफोन कमेटी कै मेबर बनायके चिट्ठी दे दिहा अगर इ रुके तौ नाही तो कल ही डाक मे भेज दिहा ।
और मैं दुबारा टी ए सी मेम्बर बन गया और एक और फ़ोन लग गया मेरे घर 72626 जिसका नम्बर था ।
अफसोस की उस रात की फ्लाइट से विदेश गए वीर बहादुर सिंह जी का विदेश मे ही निधन हो गया और कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की अपनी जमीन खो दिया ।
काश वो जिन्दा रहे होते तो उस जिन्दादिल नेता से मैं फिर जरूर मिला होता और फिर पता नही क्या राजनीतिक स्थिति रही होती ।
पर ये तो काश ही रह गया ।