सोमवार, 30 सितंबर 2013

लालू यादव छात्र नेता थे | जयप्रकाश जी के आन्दोलन में भाग लिया | संघर्ष से और गरीबी से राजनीती में आये और मुझे वो दिन याद है जब पहली तनख्वाह मिलने पर उन्होंने बयांन दिया था की २५०० यानि ढाई हजार रुपये जिंदगी में पहली बार देखे है ,,,पर सत्ता मिलते ही सारी वो बातें और लड़ाई भूल गए जिस पर चल कर वो मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचे | सत्ता ने निरंकुश बना दिया | विकास और वादे को भूल कर जातिगत समीकरण बनाने में लग गए | गरीब जनता और साधारण कार्यकर्ता को भूल कर अधिकारियो को और व्यापारियों को बगलगीर बना लिया | ;;;; परिणाम सामने है | न्याय ने सिद्ध किया की न्याय होता है और सी बी आई ने ही सजा दिलाया तो लगा की कोई अधिकारी और संगठन इमानदारी से तय कर ले तो किसी को भी सजा की जगह तक पहुंचा सकता है |नेताओ को समझ में आ जाना चाहिए की अधिकारी और व्यापरी कहा ले जाते है | 
आज की सजा और उससे पहले चौटाला की सजा से भैसे की तरह भ्रस्ताचार के कीचड में सने हुए राजनैतिक लोगो ,अधिकारियो ,कर्मचारियों ,और व्यापारियों को सबक मिल जाना चाहिए और आम लोगो को भी विश्वास हो जाना चाहिए जो भ्रस्ताचार के खिलाफ केवल कुढ़ते रहते है वे आगे आये अपने आसपास निगाह रखे और किसी की भी बढाती हुयी संपत्ति की सूचना सी बी आई , लोकायुक्त ,आयकर इत्यादी विभागों को दें और पकड़वाये और केस के फैसला होने  तक पीछे पड़े रहे जीत आप की होगी | पर केवल जलन के कारन ,झगड़े के कारन शिकायत न करे ,झूठी शिकायत न करें और छोटी छोटी मछलियों के बजाय बड़ी मछलियों से प्रारंभ करें | पर खुद भी गलत काम न करे ,परिवारी को न करने दे | तब न वर्ना कुछ नहीं होगा सब ऐसे ही चलता रहेगा | इक्का दुक्का की सजा से देश नहीं बदलने वाला |

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