समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
रविवार, 11 अगस्त 2013
आज मैंने हिटलर के बारे में क्या लिखा की देखिये आज इ टी वी पर इस वक्त उसी पर कार्यक्रम चल रहा है । मेरी द्वारा शुरू की गयी बहस लगता है की हर जगह पहुँचाने लगी है । बहस तो कुछ तत्त्व निकलेगा समुद्र मंथन की तरह ।
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