शनिवार, 23 दिसंबर 2023

मेरे पिता

By Chandra Prakash Rai Sir...

यादो_के_झरोखे_से

#मेरे_पिता प्रोफेसर डा पारस नाथ राय #आज_ही_हमे_छोड_गए_थे_सदा_के_लिए । अपने छात्रो मे बहुत लोकप्रिय रहे , बहुत ही लोकप्रिय पुस्तको के लेखक और ऐसे शिक्षक की अवकाश लेने के बाद भी लोगो ने अवकाश नही लेने दिया ।
पहले लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति ड़ा सोढ़ा ने आमंत्रित कर लिया विशेस कोर्स के निदेशक के रूप मे और यहा का तीन साल पूरा हुआ 
तो 
बी एच यू के कुलपति प्रो पंजाब सिंह ने बुला लिया अपने नये कैम्पस का निदेशक बन कर स्थापित करने और चलाने को ।
उनके छात्र देश भर मे फैले और नाम किया ।

जमीदारी उन्मूलन के बाद अचानक बहुत सँकट मे आ गए मेरे परिवार को मेरे पिता ने बहुत संघर्ष और मेहनत से उबारा । 
खुद केवल 8 पास कर पढ़ाना शुरू कर दिया शायद मात्र 6 रुपया तन्ख्वाह मे वो जमाना ऐसा ही था ।
फिर पढते गए और बढते गए।कुछ लोगो से मिलकर मेरे गांव के क्षेत्र मे ब्लॉक तहबर पुर पर स्कूल और फिर इंटर कालेज की स्थापना किया और उसको बढाने मे बहुत मेहनत किया । मुझे याद है बचपन जब लोगो से फूस,खपड़ैल इत्यादि मांग कर शुरुवात हुई थी ।
उस समय दंगल और संस्कृतिक कार्यक्रम जिसमे नाटक मे मेरे पिता जोकर बनते थे और पेट पर कपडे के नीचे फुटबाल छुपा कर पंप से फुला कर लोगो को हंसाते थे और उन कार्यक्रमो के माध्यम से कालेज के लिए धन एकत्र होता था । 
उन कार्यक्रमो मे शहर के कलक्टर और एस पी भी आते थे घोड़े पर ,तब मोटर नही होती थी ,थाने काफी दूर मे होते थे और  दारोगा लोग साइकिल पर दण्डा या लाठी बाँधे हुये आते थे ।
तब शिक्षक की इतनी कद्र थी की जिले के सर्वोच्च अधिकारी सम्मान करते थे ,सलाह करते थे और सम्बन्ध रखते थे । बचपन की कुछ धुधली सी याद है की एक बार मैं पिता के साथ शहर गया हुआ था तो पता चला की कलक्टर और जिला जज मे कुछ विवाद और कहा सुनी हो गई और किसी ने मेरे पिता से कहा की आप मिल कर सुलझाइये और फिर एकाध और लोगो के साथ मेरे पिता ने वो विवाद सुलझाया था । बाद मे इसी इंटर कालेज के प्राचार्य भी रहे मेरे पिता । 
बाबा जी ने एक बार बताया की बचपन मे पिताजी पढने के बजाय खेल मे ज्यादा रुचि लेते थे तो बाबा जी ने उन्हे गन्ना पेरने वाले कोल्हू मे बैल के जगह बाँध दिया और बैल की तरह चलाया । 
उसके बाद मेरे पिता ने मुड़ कर नही देखा । रात को भी दिये की रोशनी मे पढाई करते थे ।और पढते पढते पहले एल टी करने आगरा आये जो नौकरी मे होने वाले शिक्षको के लिये 2 साल 3/3 महीने का शिक्षक कोर्स था ।
मेरे पिता के निधन पर उनके एक साथी जो आगरा मे उनके साथ थे एल टी करने मे उन्होने बताया की मेरे पिता पढाई के बाद रात 2 बजे तक आगरा के किसी पब्लिशर के यहा किताब लिखने का काम करते थे ताकी मेरे चाचा जो मेडिकल के छात्र थे उनकी पढाई प्रभावित न हो ।
फिर आगरा से ही एम एड किया और प्रसिद्ध शिक्षा शस्त्री डा आर के सिंह जो उस समय आर बी एस कालेज के प्राचार्य थे की निगाह मे आ गए वो आर के सिंह जिनके समय मे दो अमरीकी राष्ट्रपति आर बी एस कालेज आये आइजन हावर और लिंडन जॉन्सन और न जाने कितने लोगो को ड़ा सिंह ने अमरीका पढने भेजा , जिस ड़ा सिंह का नेहरु जी से शिक्षा व्यव्स्था पर हुआ विवाद सुर्खियां बना था उन्होने मेरे पिता को आदेश दिया की जुलाई मे आकर कालेज जोइन कर लो , डा सिंह ने बाद मे मुझे भी बहुत प्रेरित किया की मैं आई ए एस बनू और वो खुद तैयारी करवाना चाहते थे पर मेरा उधर रुझान नही था तो कुछ दिन मुझसे नाराज रहे और मेरी शिकायत करते रहे ।
मेरे पिता ने गांव की जिम्मेदारी और वहा के इंटर कालेज की जिम्मेदारी का जिक्र कर बचने का प्रयास किया पर उस वक्त गुरु की बात से इन्कार कहा सम्भव था ।
मुझे याद है की जब मेरे पिता तहबर पुर इंटर कालेज से विदा हो रहे थे तो लगता था की कोई सभा हो । हजारो लोग विदा करने आये थे और सब ऐसे रो रहे थे और जोर से जैसे बेटी विदा करते वक्त होता है ।
आजमगढ़ से चलने वाली ट्रेन शाहगंज जंक्सन पर बदलनी होती थी ,बडी संख्या मे लोग शाहगंज तक भी पहुच गए विदा करने जो जौनपुर मे पडता है और फिर लखनऊ मे ट्रेन बदल कर आगरा पहुचना होता था तो लखनऊ स्टेशन पर भी कई लोग आये थे ट्रेन बदलवाने और घर से बनवा कर लाई पूरी सब्जी खिलाने ।
ऐसे थे मेरे पिता । जब पहली बार मैं राज्य मंत्री बन आगरा पहुचा था तो मानो पिता जी का चेहरा आभा से दमक उठा था ।ऐसा हर उस काम पर होता था जो अच्छा हो ,वो चाहे खेलो की टीम मे होना ही , डिबेट मे और अन्य प्रतियोगिताओ मे कालेज ,विश्वविद्यालय या राश्ट्रीय स्तर पर प्रथम आना हो या एन सी सी मे राष्ट्रीय स्तर तक नाम करना हो वो वैसे ही खुश होते थे बिल्कुल बच्चो की तरह और बच्चो को भी प्रोत्साहित करने को कुछ देना उनकी आदत थी । उनके रसगुल्लो के किस्से भी सभी जानने वालो से सुने जा सकते है । 
आज ही के दिन उन्होने बनारस मे शरीर त्याग दिया । कुल तीन चार दिन पेट मे दर्द हुआ , जांचो से कुछ पता नही चला और उस दिन बस बाथरूम गए और फिर चले ही गए । मैने आगरा मे अपने साथी डाक्टर लोगो से शाम को ही चर्चा किया था और ये तय हुआ था की किसी तरह उनको आगरा तक ले आऊं औए फिर भी जरूरत हुई तो एम्स चाले जायेंगे ।दूसरे दिन मुझे बनारस के लिए निकलना था की रात 1बजे बनारस से फ़ोन आया और कहने को कुछ नही था ।पूरे परिवार को गाडी मे बैठा कर सुबह 3 बजे खुद चला कर निकला और दोपहर मे 1बजे तक बी एच यू पहुच गये हम लोग पर बडी बेटी नॉएडा मे नौकरी करने लगी थी इसलिए उसे नही ले जा पाये और उसका मजबूरी वाला रोना आजतक भी विचलित करता है ।
पिता जी अक्सर कहते थे आधा पेट खाना और काशी मे बसना वही प्राण तजना ।
शायद उनकी इच्छा पूरी हुई ।
पिता जी आप ने पूरे परिवार को उस मझधार से निकाल कर यहा तक पहुचा दिया पर हमारी पीढी के भी सभी ने किशिश किया है की आपकी ही तरह अगली पीढी को सही रास्ता दिखाये और आगे बढाये और अभी तक तो सब वैसा ही हो रहा है ।ईश्वर करे सभी आने वाली पीढ़िया रास्ता सही रखे चाहे धन और सुख सुविधा कम भी हो पर सम्मान बना रहे ।
( बाकी बहुत कुछ मेरी आत्मकथा मे होगा )

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