शनिवार, 23 दिसंबर 2023

ज़िंदगी का अजीब पन्ना

#ज़िंदगी_के_झरोखे_से  —

यह ज़िंदगी का बहुत अजीब सा पन्ना है । 

शादी के कुछ साल बाद मेरी पत्नी को अलसरेटिव कोलाइटिस हो गया जिसके कारण लेटरीन में  बहुत खून निकलता था । आगरा के मेडिकल कालेज सभी विभाग के सभी प्रोफ़ेसर और अन्य डाक्टर लोगो को भी दिखाया । वो कमज़ोर होती जा रही थी और हर मेडिकल विद्वान अपनी तरह बीमारी समझता रहा और इलाज करता रहा 
अन्ततः दिल्ली एम्स गया तब वहाँ जाँच में पता चला की बीमारी कुछ और है और इलाज पता नही क्या क्या होता रहा और इस चक्कर में बीमारी की स्टेज बढ़ गयी थी और उस बीमारी की भी सिर्फ़ एक दवा थी वो सूट करे तो ठीक वरना 
ख़ैर दवा सूट कर गयी पर फिर भी कभी कभी बीमारी उभर जाती और उसके लिए आए दिन दिल्ली जाना होता । सुबह जल्दी उठ कर ट्रेन पकड़ कर दिल्ली जाते और इनको इनके आइ ए एस भाई जो केंद्र सरकार में आ गए थे उनके घर छोड़ कर बस पकड़ एम्स जाता कार्ड लगाने और फिर वापस आकार इनको लेकर जाता और फिर शाम की ट्रेन से आगरा वापसी । आगे चल कर नयी दवाई आ गयी और वो प्रभावी साबित हुयी ।
पर अचानक कैंसर हो गया , जहां जहाँ से राय ले सकता था राय लेकर इलाज करवाया टाटा के डाक्टर से । जो तकलीफ़ें होती थी हुयी और लगा की सब ठीक हो गया पर पाँच साल बाद अचानक पैर कमज़ोर होने लगे । जाँच हुयी तो पता चला की कैंसर दुबारा हो गया और इस बार रीड़ में हो गयी । इलाज करने वाले डाक्टर ने कहा की ये अच्छा नही हुआ । उन्होंने कहा कि इलाज का अब कोई फ़ायदा नही अब केवल सेवा करिए । पर मेरी ज़िद पर फिर इलाज शुरू हुआ पर कुछ होना ही नही था । पैरलेसिस हो गया और सब कुछ बिस्तर पर शुरू हो गया । बहुत तकलीफ़ झेल रही थी । एक नर्स रखा मैंने लेकिन मेरी इंजीनियर बेटी छुट्टी लेकर आयी और दोनो बहनो ने नर्स हटा दिया की हम लोग ख़ुद करेंगे । माँ ने हम लोगों की लैटरीन साफ़ किया तो हम क्यो नही कर सकते । सब बच्चे सेवा में लग गए । दिन बीतने के साथ खाने में दिक्कत होने लगी तो कोशिश होती की जो अच्छा लगे किसी तरह खिला दे ।एक दिन बोली डाल बुखारा खाना है , जिस होटेल में उन्होंने पहले खाया था उसी के मैनेजर को फ़ोन किया की भेज देंगे क्या ? उनको स्थिति पता था उन्होंने भेजा और काफ़ी भेजा , पर मुश्किल से चार चम्मच खाया । एक दिन बोली की साउथ इंडीयन खाना हैं , मैं पैदल ही चला गया उतनी दूर सागर रत्ना तक और जितनी चीजें मिली सब उठा लाया । ऐसे ही दिन बीत रहे थे । 
कैसा होगा ये वक्त जब आप को भी पता हो की अब हमसफ़र को जाना हैं और वो भी जान गया हो की उसका वक्त पूरा हो गया । दिन का ऐसा इंतज़ार ईश्वर किसी को न करवाए । यह मानसिकता और भाव एक एक पल कितना मुश्किल होता है । 
इसी में शादी का २५ साल आ गया । मैंने डाक्टर से कहा की मैं ये दिन मनाना चाहता हूँ , उन्होंने मना किया की कभी भी कुछ भी हो सकता है इसलिए मैं तो हाँ नही कह सकता । जब पत्नी से कहा तो उन्होंने भी इंकार कर दिया की सर पर बाल नही , चेहरा कैसा हो गया है ,जगह जगह चमड़ी उखड़ रही है और मैं २० मिनट भी बैठ नही पाती इसलिए बिलकुल नही । पर मैं जिद कर बैठा की जब जीवित है तो कोई ख़ुशी हाथ से क्यो जाने दे । 
घर के सामने किसी साथी के कारण बहुत सस्ते में होली डे इन होटल  इसका आयोजन करने को तैयार हो गया । दोनो तरफ़ के परिवारों को सूचित कर दिया की समय कम है इसलिए जो मिलना चाहता है आ जाए ।कुल ख़ास ख़ास लोगों को आमंत्रित किया और बेटियों ने माँ को तैयार किया पर ख़ुद यूँ ही साधारण कपड़े में चल दीं । बेटा केक आर्डर कर आया और भव्य पार्टी हुयी पूरी तैयारी से ।जो होता है हुआ और फिर मैंने जीवन में पहली बार गाना गाया जिसे गायक ने पूरा किया “ जब कोई बात बिगड़ जाए जब कोई मुश्किल पड़ जाए तुम देना साथ मेरा “ शायद गलती हो गयी क्योंकि ये भी रो पड़ी और सामने बैठे काफ़ी लोग भी आँख पोछते दिखे । 
जो २० मिनट नही बैठ पाती थी उस दिन ४/५ घंटे बैठी और गयी थी व्हील चेयर पर बैठ कर पर वापस पैर पर चल कर आयी । फिर सुबह ४/५ बजे तक बाते करती रही । लगा की बिलकुल ठीक हो गयी । दूसरे दिन सुबह भी वाकर पकड़ कर चाय पीने आ गयी लेकिन दो दिन बाद फिर बिस्तर पर चली गयी । 
११ दिसंबर को ये कार्यक्रम हुआ था और वो दुनिया से १० फ़रवरी को । मुझे याद है की इनके बड़े भाई जो डाक्टर है वो और सांसद एस पी सिंह बघेल के साथ बाहर लान में बैठा बात कर रहा था तब तक उस वक्त जो नौकर था बाहर आया की वो बुला रही है की मेरे पति को बुला कर लाओ . थोड़ी ही देर में उन्होंने फिर यही दोहराया । एस पी सिंह थोड़ी में आने को कह कर चले गए थे तो हम दोनो अंदर गए । उन्होंने का कहा सब लोग इकट्ठे हो जाओ । सब आ गए । मेरी बेटियाँ कोई धार्मिक किताब पढ़ रही थी अलग बग़ल बैठ कर और उनकी माँ उनको एक प्लेट में रख कर अनाज छुला रही थी और मुँह में गंगा जल डाल रही थी , भतीजा जो एम एस कर रहा था ओक्सीजन सिलेंडर लेने भागा । ड़ा भी आ गए । साँस लेने में दिक्कत हो रही थी । कोई इंजेक्शन भी लगाया पर वो एक बार सबको देखने के बाद मेरी तरह आकर टिक गयी एकटक देखते हुए और उतनी तकलीफ़ के बावजूद मुश्किल से कोशिश किया मुस्कुरा कर मुझे पता नही क्या दिखाने का और आँख बंद कर लिया । मेरा बेटा जिसका तुरंत बाद बोर्ड का इम्तिहान था मैं उसके लिए परेशान था पर वो लपक कर मेरे पास आ गया और मेरे ऊपर हाथ रख कर बोला कुछ नही हुआ कुछ नही हुआ । मेरी बेटी जो कल शाम से पूरी रात और अभी तक महा मृत्युंजय का जाप कर रही थी वो सहसा विश्वास नही कर पा रही थी और किसी ज्योतिषी ने ६८ साल उम्र बताया था और अभी तो 47/48 ही हुई थी उसका बताया भी ग़लत होना उनको समझ में नही आ रहा था । 
जबकि कई दिनो से मैं तीनो बच्चों को राम कृष्ण बुद्ध महावीर तमाम के बारे में बता कर मानसिक रूप से इस दिन के लिए तैयार कर रहा था की जो आता है वो जाता भी है बस ईश्वर जितने दिन के लिए भेजते है उतना ही जीवन है इत्यादी ।
पर कोई अपना अपने के इस दिन की कल्पना भी नही कर पाता है तो स्वीकार कैसे करते । 
कितनी मुश्किल ज़िंदगी रही होगी ये की सब जान कर इंतज़ार करना और बच्चों से अभिनय करना की ख़ुद मेरा वजन कम ही नही हो गया बल्कि चेहरा गम्भीर बीमार होने की चुग़ली करने लगा था । कितना मुश्किल से उसके बाद मैंने दोनो भूमिका निभाया की बच्चे भटके नही बल्कि सब सही रास्ते पर अपनी ज़िंदगी बनाने में कामयाब रहे । 
विस्तार से आत्मकथा में बाक़ी सब ।

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