शनिवार, 23 दिसंबर 2023

ये कौन से राय है

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--

#ये_कौन_से_वाले_राय_है ? 

( जिस सवाल ने पूरी जिंदगी पीछा नही छोडा और दीवार बना रहा किये का हक पाने मे भी )

1991का चुनाव हो चुका था और पार्टी सत्ता से बेदखल ही नही हुई थी बल्की बुरी तरह चुनाव हार चुकी थी ।
यद्दपि प्रदेश का चुनाव उस वक्त देखने के कारण मैं मुलायम सिंह यादव जी को बता चुका था कि 40 विधान सभा और 5 लोक सभा मुश्किल लग रही है और उनका कहना था कि सभी अधिकारी और सभी खुफिया एजेंसियां कम से कम 125 दे रही है ।
हुआ ये की 1989 मे पूरे महीने मुलायम सिंह यादव का चुनाव देखा था जब उन्होने हरियाणा भवन मे होने वाले संसदीय बोर्ड मे जिसमे मेरे पक्ष मे टिकेट को लेकर बहुमत था मेरा टिकेट यह कह कर कटवा दिया था कि मैं तो देश मे प्रचार के लिए जाऊंगा तो मेरा चुनाव कौन देखेगा ।मैं सी पी राय को टिकेट देने के खिलाफ नही हूँ पर वो मेरा चुनाव देखे और मैं मुख्यमंत्री हो जाऊंगा तो विधायक क्या होता है उससे ज्यादा उनको बना दूंगा और मीटिंग से निकल कर सबसे पहले जॉर्ज फर्नांडीज ने मुझे ये बताया और मैं समझ गया की खेल हो गया फिर भी प्रयास जारी रखा पर उनको ये टिकेट एक कांग्रेस से निस्कासित बदनाम व्यक्ति को देना था क्योकी इनका मानना था की बदनाम ही जीत सकता है जबकी विश्वनाथ प्रताप सिंह की लहर का चुनाव था और जो भी खड़ा होता उस सीट पर वही जीतता ।चौ देवीलाल जी मिले उन्होने भी यही कहा कि जिद मत कर वही मुख्यमंत्री होगा फिर के पता की राज्यसभा मे भेज दे या मंत्री बना दे एम एल सी बना कर ।
और मुझे इटावा मे आकर कैम्प करना पडा ।
जिला पंचायत के गेस्ट हाउस का एक नंबर कमरा रहने को मिल गया पर चाय तक पीने को दूर जाना पडता था और खाने स्टेशन के पास ।मुलायम सिंह यादव खुद सिचाई विभाग के गेस्ट हाउस का एक सूट अपना घर बना कर रहते थे क्योकी उनका बस गाँव मे ही एक साधरण सा घर था उस वक्त तक । बाद मे मुलायम सिंह यादव जी ने इन्तजाम कर दिया की उनके छोटे भाई राजपाल यादव मेरा इन्तजाम देखेंगे और भतीजे रनवीर मेरे साथ रहा करेंगे क्षेत्र के दौरे मे ।
उस वक्त इटावा शहर मे एक घर मे ऊपर की मंजिल पर राजपाल यादव और शिवपाल यादव दोनो एक साथ छोटे छोटे हिस्से मे रहते थे ।
राजपाल यादव ने ये तय किया की मेरा दोनो समय का खाना उनके और शिवपाल यादव की संयुक्त रसोई मे होगा दोनो समय पर और दोनो की पत्नियाँ अपने हाथ से बना कर दोनो समय खाना खिलाने लगी ,उस वक्त तक किसी के पास नौकर नही था ।
एक ऐसा दिन भी आया की मुलायम सिंह यादव सुबह 6 बजे बहुत नाराज होकर बोले की आप इटावा छोड दीजिये और जनेश्वर जी के चुनाव को देखिये इलाहबाद जाकर ।कारण ये था की मैं कही भी चला जाता और थोडे लोग भी होते तो भाषण करने लगता जबकी उस वक्त तक स्थिति ये थी कि जब तक 15/20 राइफल इकट्ठा न हो जाये मुलायम सिंह यादव खुद भी प्रचार मे नही निकलते थे क्योकी सामने दर्शन सिंह यादव थे जो बहुत मजबूत थे उस वक्त तक जब तक मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री बन कर उनको भाग कर दिल्ली मे रहने को मजबूर नही कर दिया  पुलिस और सत्ता के सहयोग से ।
ये अलग बात है की बाद मे उनको पार्टी मे लाकर राज्यसभा भी दिया और दर्शन सिंह जी मेरे तो पहले ही दोस्त बन गये थे एक मुलाकात मे और ये शिकायत करते हुये की राय साहब मैं सोचता की ऐसा कौन आ गया जो मेरे घर मे घुस कर मुझे चुनौती दे रहा है और उन जगहो का नाम भी गिनाया जहा मैने उनके खिलाफ आग उगला था ।
मुलायम सिंह यादव ने कहा की आप को पता है की आप जहा यू ही चले जाते हो भट्ठे मे झोंक दिये जाओगे हड्डियां भी नही मिलेंगी की आप के परिवार को लौटा सकूं ।
आप अभी इलाहबाद निकल जाओ ।
मैने जवाब दिया की आप ने जो कहा था बोर्ड की बैठक मे वो याद रखो और मैं कही नही जाऊंगा ।किसी की औकात नही मुझे मारने की ।मेरी मौत ईश्वर ने जैसे तय किया होगा वैसे होगी उसकी चिंता आप मत करो ।
और मैं चुनाव तक वही रहा मुलायम सिंह यादव जी जीत भी गये और मुख्यमंत्री भी बन गये ।
पर मुझसे मुलाकात फिर तब हुई जब सरकार जाने का दिन आ गया और नये चुनाव की घोषणा हो गई ।
इस चुनाव मे मुलायम सिंह यादव ने मुझे लखनऊ रह कर प्रदेश की चुनाव व्यव्स्था देखने का काम सौपा । तब तक गेस्ट हाउस मे रुकने पर रोक नही थी इसलिए मैं स्टेट गेस्ट हाउस मे रुक गया और मेरे बगल वाले कमरे मे अटल बिहारी वाजपेयी जी रुके थे जो लोक सभा चुनाव लड़ रहे थे । हम दोनो के कमरे की बालकनी एक ही थी ( ये किस्सा बाद मे ) वैसे वही गलती किया मैने जो  1977 मे आज़मगढ़ के उप चुनाव मे  इन्दिरा गाँधी जी से मिलने के बाद किया था ।
इसी बीच किसी काम से मैं दिल्ली गया ,किसी काम क्या उस वक्त हमारी सरकार मे केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी के यहा से कुछ सामान लाना था (ये किस्सा भी बाद ने ,और न लिखू तो कोई याद दिला दे क्योकी इसमे एक सच का दर्शन होगा ) ।
दिल्ली से लौटते हुये मैं आगरा नही रुका बल्की इटावा रुका और खाना खाने राजपाल यादव और शिवपाल यादव के घर रुक गया । तभी वहा मुलायम सिंह यादव भी आ गये क्योकी किसी बच्चे की उंगली जल गई थी ।
हम दोनो खाने बैठे और उन दोनो की पत्नियाँ खाना लगा रही थी और ताजी रोटियां परोस रही थी । मुलायम सिंह यादव ने मुझसे पूछा की आप प्रदेश का चुनाव देख रहे है क्या लग रहा है ? मैने कहा की 40 विधानसभा और 5 लोक सभा हो जाये तो काफी है ।वो बोले की सभी अधिकारियो और खुफिया की रिपोर्ट तो कम से कम 125 की है ।
मैने कहा की 225 हो जाये तो मुझे खुशी होगी ।
उन्होने मेरा दिल्ली का काम पूछा और आगे का कार्यक्रम फिर मैं लखनऊ आ गया और वो अपने गन्तव्य को ।
चुनाव परिणाम आया जिसमे चन्द्रशेखर जी सहित हम केवल 4 लोक सभा चुनाव जीत पाये और 30 से भी कम विधायक ।
(बाकी चुनाव के बाद का किस्सा अगले एपिसोड मे )
एक दिन मुलायम सिंह यादव का फ़ोन आया की वो आगरा आ रहे है । आगरा मे राजस्थान के पुराने समाजवादी नेता पंडित रामकिशन जो 1977 मे भरतपुर से सांसद भी रह चुके थे उनके परिवार की बेटी की शादी थी ।
आगरा के बॉर्डर पर हम केवल 9/10 लोग अगवानी करने वाले थे जिसमे एक पूर्व मंत्री थी और भट्ठो का मालिक थे तथा उनके पास जीप थी और दूसरा मै जिसके पास अपनी कार थी और मेरे साथ 6/7 लडके ।
मुलायम सिंह यादव ने मुझे अपनी गाडी मे बुला लिया और मेरी गाडी एक कार्यकर्ता चलाने लगा ।शादी का कार्यक्रम खत्म कर हम लोग वापस उनको इटावा जाने के लिए जब छोड़ने वापस आने लगे तो मुलायम सिंह यादव के साथ बिहार के एक नेता भी आये थे हरेन्द्र नाथ प्रसाद और आते वक्त से इस वक्त तक वो मेरी और मुलायम सिंह यादव जी की लगातार चर्चाये सुन कर कुछ विचलित थे ।कुछ दूर चलते ही उन्होने मुलायम सिंह यादव से पूछा की साहब एक बात पूछना है । मुलायम सिंह यादव ने उनकी तरफ देखा की क्या तो बोले की ये जो राय साहब है ये हमारे बिहार वाले दारोगा प्रसाद राय ( जो यादव थे और कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे थे ) वाले राय है या कल्पनाथ राय वाले राय है (जो भूमिहार थे और इन्दिरा गाँधी के बहुत प्रिय और केन्द्र मे मंत्री ) ? कि आप इनपर इतना भरोसा जता रहे है ।
मुलायम सिंह यादव को शायद ऐसे सवाल की उम्मीद नही थी तो थोडा अचकचाये ,थोडा रुके और बोले कि ये कल्पनाथ राय वाले राय है पर नेताजी यानी राज नारायण जी के बहुत करीबी रहे है और प्योर सोशलिस्ट है और पूरे भरोसे के ।
मैने महसूस किया था उस वक्त की हरेन्द्र बाबू असली जाति  सुन कर अभी भी आश्वस्त नही हो पाये थे ये अलग बात की बाद मे मेरे प्रशंसक हो गये थे ।
कितने खट्टे मीठे अनुभव से भरी है मेरी जिन्दगी भी ।

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