मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

में कवि नही हूं बस कुछ लिख देता हूं

                       मै कभी भी साहित्य का विद्यार्थी नहीं रहा ,ना हिंदी साहित्य का ,ना अंग्रेजी साहित्य का |मुझे नहीं पता है लेखन का कोई नियम |ना कोई छंद ना व्याकरण, ना दोहा ,ना गजल ,ना अकविता सचमुच किसी विधा का ज्ञान नहीं है मुझे | साहित्य का विद्यार्थी नहीं रहा अतः शब्द भंडार भी नहीं है मेरे पास | पर शरीर पाया है तो उसके अंदर एक दिल भी पाया है | बस यही दिल है जो कुछ कह देता है कभी कभी |
                      इस दिल से जो निकलता है  ,बस उसे अपने अल्प ज्ञान और टूटे फूटे शब्दों में उतार देता हूँ मै कागज पर | कुछ लोग इसी को कविता नाम दे देते है | पता नहीं ये कविता है या नहीं, उसकी कसौटी पर थोडा भी खरा उतरती है या नहीं ,मै बिलकुल नहीं जानता | पर जब देश एक अँधेरे दौर से गुजर रहा था तो मंचों पर लोग मुझे सुन कर ताली  बजा ही देते थे और मेरी कविता { तुम कहा थे जब उन्हें फांसी पर चढ़ाया गया }लोगो को आक्रोशित करती थी |" सीमा पर जवान अपना खून बहाए पर भारत रत्न मिलता है प्रधानमंत्री को " सुन कर तब के नौजवान कई बार कुछ ज्यादा ही उत्तेजित हो जाते थे |
                   मेरा दिल मेरे बस में नहीं रहता है | तभी तो जिनके लिए गला फाड़ फाड़ कर प्रचार किया था ,उन्हें आये हुए कुछ महीने भी नहीं हुए थे की दिल ने [ राजघाट  की कसम ] लिखने पर मजबूर कर दिया और अपने लोगो का बुरा बना दिया | "आज का समाजवाद" भी बहुत से अपनों के कोप का कारण बन गया | पर क्या करूँ दिल है की मानता ही नहीं |जब जहा कुछ भी चुभता है ,कुछ गलत होता दिखता है दिल मजबूर कर देता है कुछ कहने के लिए |या दिल को जब भी दर्द होता है वो फूट पड़ता है शब्दों में |
                   मै ऐसा नहीं मानता की मेरा लिखा कोई बड़ा बदलाव कर देगा, पर उम्मीद पर दुनिया टिकी है कि शायद एक एक कर बड़ी फ़ौज खड़ी हो जाएगी  | तब एक दिन आयेगा की दुनिया उन तमाम चीजो से उबर जाएगी जो दिल को चुभता है |केवल राजनैतिक और सामाजिक हालात पर ही दर्द नहीं होता बल्कि जब आग से जल कर तेईस लोग ख़त्म हो जाते है या जब जापान में विध्वंस के हालात पैदा होते है तब भी दिल उछाल मार ही देता है |कही दंगा हो तो" बच्चे है ना "के माध्यम से तो "दरवाजे की कुण्डी खटकी मत खोलो दरवाजा जी 'के द्वारा समाज की गन्दगी को दिल इंगित कर ही बैठता है |"कमल हँसता था ,अब रो  रहा है कमल' बहुत लोगो को क्रोधित ही नहीं कर गया बल्कि हिंसक होने तक पहुंचा दिया एक खास विचारधारा के लोगो को | मुझे और मेरे दिल को नहीं लगता की सभी का खुश होना जरूरी है | कुछ लोग मोम का दिल लेकिन पत्थर के विचार लेकर पैदा होते है और जब पत्थर चलेगा तो कुछ खिड़कियाँ भी टूटेंगी और अगर पूरा घर ही शीशे का है तो वह भी टूटेगा |लोगो के तिलस्मी टूटे तो टूटें मै अपना दिल टूटते नहीं देख सकता |अगर कोई घर की सफाई करेगा तो हाथ तो गंदे होंगे ही और हाथ ही क्यों चेहरे पर भी गन्दगी गिरेगी |जाले गिरेंगे तो चिपक भी जायेंगे और बहुत देर तक आप को गन्दा बनाये रखेंगे और लोगो को आप का गन्दा चेहरा दिखलाई भी पड़ता रहेगा |लेकिन जो गन्दगी से ही डर जायेगा उसे सफाई का सोचना भी नहीं चाहिए | घर की सफाई में बहुत कुछ बाहर फेंकना पड़ता है और बहुत कुछ नया अंदर लाना होता है |जब इतना परिवर्तन होगा तो बदलाव भी देखेगा और बदले भी दिख सकते है |
                       जब दिल मोम का हो तो वह किसी भी दर्द से प्रभावित होगा| वह दर्द अपने आस पास का हो या अपने अंदर का हो । मां अपनी हो या अपने बच्चो की या चिड़िया की मां तो मां होती है तो पिता भी किसी पेड़ से कम कहा होते है जो देता है छाया और फल भी और आखिर में क्या पता ईंधन ही बन जाए । बेतिया तो जीवन में जीवन होती है तो जो कही और से आता है जीवन में और जीवन बन जाता है वो भी कैसे छूट सकता है कलम से ।जब औरत घायल हो रही हो चारो तरफ तब ऐसा कैसे हो सकता है की मां बहन बेटी और बीबी को प्यार करने वाला उसे अनदेखा कर दे और तब लिखा जाता है की क्या कोई औरत हिमालय है जिसपर चढ़ जाना चाहते हो या दुश्मन का किला जिसपर विजय पा लेना चाहते हो और औरत को देख कर आंख में नाखून कब उगने शुरू हुए । गांव हमारी जिंदगी से कैसे निकल सकता है जब आप वहा पैदा हुए और रहे हो ।बापू के देश में जब बापू को ही भुलाया जा रहा हो तो कलम का कर्तव्य हो जाता है की देश को भूलने दे लिख जाता है बापू फिर मत आना और राम के देश में जब राम के नाम पर राजनीति होने लगे तो लिखना ही पड़ता है कि राम मत आना । वो हिंदू मुसलमान का सवाल हो या कमल के आसपास का कीचड़ कुछ भी तो नही छूटता है । वो नदी हो ,वातावरण हों, वो ईश्वर हो या किसी वक्त की ईश्वर बन जाने की इच्छा सब कलम के दायरे में आ हो जाते है ।मुनादी हो गुलामी मान लेने की ,मुनादी हो कलम को फेक देने की ,मुनादी हो सत्ता का मौन गुलाम बन जाने की ,मुनादी हो दुनिया एक रंग की हो और एक ही स्वर में बोले तो कवि का विद्रोह तो स्वाभाविक हो जाता है ।आत्महत्या जैसा कायराना कदम भी मुझे उद्वेलित कर देता है ।कवि खुद के जमीर को बेचने बाजार में खड़ा हो जाता है बस चुनौती के लिए पर इस मुनादी पर भी सन्नाटा ही दिखता है ,कोई ग्राहक नही होता ईमान का । युद्ध की त्रासदी हो या पीठ पर पिट्ठू लिए भटकते नौजवान कवि की नजर से कुछ भी नही बचता है । नदी में तैरती लाशे हो या कोराेना की त्रासदी किसी से भी कैसे आंखे मूंद सकता है कोई कवि । कृष्ण से भी शिकायत दर्ज करवा ही देता हूं की कहा हो जब एक और गीता उपदेश की और बड़े महाभारत की जरूरत है ।
                       खैर जो भी है अच्छा या बुरा ,हाजिर है पत्थर खाने और पत्थर मारने वाले दोनों के लिए और दोनों से अलग तठस्थ लोगो के लिए भी |मेरी काव्य यात्रा प्रारंभ ही नहीं होती अगर मेरे स्वर्गीय पिता डॉ पारस नाथ राय  जो बहुत लोकप्रिय शिक्षक भी थे उन्होंने मेरे अंदर साहित्य के प्रति रुझान नहीं पैदा किया होता और मेरी माँ का आशीर्वाद नहीं होता  |उस मेरे महान स्वर्गीय दादा जी जो गाव के थे गाँव में ही रहे पर उनकी बाते किसी विद्वान से कम नहीं थी की प्रेरणा भी मेरा रास्ता बनाती गयी | मेरी स्वर्गीय पत्नी जो बहुत विदुषी थी अच्छी आलोचक ,अच्छी सलाहकार ,सभी तरह के साहित्य में पूरी रूचि रखने वाली सचमुच पूर्ण पत्नी और पूर्ण प्रेमिका पूर्ण दोस्त उनका योगदान तो अकथनीय है |यदि श्री सोम ठाकुर, स्वर्गीय शैल चतुर्वेदी और स्वर्गीय कुलदीप दुबे जैसे बड़े कवियों ने अवसर नहीं दिया होता और प्रेरणा नहीं दी होती तो भी यह यात्रा मुश्किल होती |मै इन सभी का ऋणी हूँ तो साथ साथ काव्ययात्रा प्रारंभ करने वाले साथियों का भी आभारी हूँ |मेरे बच्चे नेहा ,जूही और सिद्धार्थ मेरे श्रोता भी है और सहयोगी भी |मै उन तमाम लोगो का आभारी हूँ जिन्होंने ने किसी भी रूप में मुझे प्रेरणा दिया या सहयोग किया |मै आभारी हूँ देश के प्रसिद्ध कवि पूर्व सांसद उदय प्रताप जी का जिन्होंने मेरी कुछ कविताएं सुन कर मुझे प्रेरित किया संग्रह प्रकाशन हेतु । मैं आभारी हूं देश के जानिए साहित्यकार कवि नरेश सक्सेना जी का जिनकी शिक्षा बहुत ज्यादा काम की है तथा वो यूं ही लिख गई पक्तियो को कविता बनने में मददगार साबित हुई और होती रहेगी । मैं। आभारी हूं जनसंदेश टाइम्स के प्रधान संपादक और कवि भाई सुभाष राय का जिनके अत्यधिक सहयोग से ही मेरे शब्द इस रूप में आ पाए की आज एक संग्रह को शक्ल पी सके ।
                          मेरे गुरुजन और मेरे सभी दोस्त तथा वे सभी लोग जिनका मै यहाँ जिक्र नहीं कर पा रहा हूँ ,लेकिन जिनके योग दान को नाकारा नहीं जा सकता है ,मै उन सभी का भी आभारी हूँ |अब ये शब्द यात्रा आप सभी के सामने है |आप सभी के सुझाव और सहयोग से मुझे बल मिलेगा |आशा ही नहीं बल्कि विश्वास है कि आप सभी का आशीर्वाद मिलेगा जरूर मिलेगा और मै अपनी यह कंटकपूर्ण यात्रा जब तक सांसें साथ देगी जारी रख सकूँगा | अंत में मै आभारी हूँ श्री आलोक शर्मा जी का और उनके लोकमित्र प्रकाशन का जिन्होंने मेरा संग्रह प्रकाशित किया | जो भी लिखा है मेरे स्वर्गीय दादा जी,स्वर्गीय पिता जी, स्वर्गीय पत्नी  और अपनी माँ को समर्पित है |
 
                                                                                                                     डॉ सी .पी .राय 
                                                                                                                   १३/१ एच आइ जी                                                   फ्लेट्स
                                                                                                                     संजय प्लेस, आगरा
                                                                                                                   9412254400,                                                     8979366377
                                                                                                                                    cprai1955@yahoo.co.in
                                                                                         
                                                                                                             

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