गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

एक अभिमन्यु

अब तो घरों में खिड़कियां होती है पर पुराने जमाने में घर हो या किला उसमे तमाम झरोखे और रोशनदान होते थे जो रोशनी के काम आते थे तो ताक झांक करने के भी और जरूरत पड़ने पर हमला करने और बचाव करने के भी । जिंदगी भी एक तरह का घर ही तो है जिसमे आप आते है रोते हुए और जिससे आप जाते है तो रुलाते हुए । जिंदगी कितने टेढ़े मेढे रास्तों से गुजरती है हसाती भी है और रुलाती भी है । 
जिंदगी में कितने मौके आते है जब पहाड़ की चढ़ाई लगती है जिंदगी तो कभी पहाड़ सा बोझ लगती है जिंदगी , कभी खाई दिखलाई पड़ती है जिंदगी के अगले कदम पर तो कभी इतनी बड़ी नदी की तैर कर पार करना मुश्किल लगता है और तैरना हो नही आता हो तब तिनके का सहारा भी आकर्षित करता है । वैसे नरेश सक्सेना ने तो अपनी कविता में लिख दिया की " पुल पार होने से पुल पार होता नदी पार नही होती ,  नदी पार नही होती नदी में धसे बिना " ।पर कई जिंदगियां  नदी में धसी ही रह जाती है । पुल भी उनके लिए मृगतृष्णा होता है जिसपर पैर रखने की कोशिश में नदी में समा जाते है और कई बार तो कुछ लोगो को नदी नही नाले नसीब होते है जिसमे होती है सिर्फ कीचड़ या दलदल ।कीचड़ हुई और किसी ने बचा लिया तो नहा धोकर साफ होकर फिर इंसान से दिखने लगते है पर दलदल हुआ तो अस्तित्व ही विलीन हो जाता है उसमे ।
तो मैं बात तो झरोखे की कर रहा था । हा जिंदगी में भी कितने झरोखे होते है रंग बिरंगे और बदरंग भी । इन खरोखो में ही न जाने कितने पात्र नजर आते है ।कुछ युधिष्ठिर तो कुछ धृतराष्ट्र , कुछ कृष्ण तो कुछ भीष्म और  कर्ण भी , कुछ द्रोण तो कुछ विदुर, कुछ दुर्योधन तो कुछ गंधारी , कोई द्रौपदी तो कोई अभिमन्यु भी ।।
जिदंगी के महाभारत में सबसे ज्यादा निरीह तो अभिमन्यु दिखता है जो सीख ही नही पाया चक्रव्यूह के सब दरवाजे तोड़ पाना और फिर भी वक्त ने उसे उसी चक्रव्यूह में फंसा दिया।
जी हा ये किस्सा भी एक अभिमन्यु का ही है जो थोड़ा बड़ा होते ही लड़ने लगा अपने बचपन को जीने के लिए अपनो से , अपनी जिंदगी के लिए अपनो से और अपनो ने भरपूर प्रताड़ित भी किया और मनचाहा थोपा भी । फिर शुरू हो गई जंग जिंदगी की तो लड़ाई दो मोर्चो पर शुरू हो गई एक अपनो से को जिंदगी की लड़ाई के तरीके और लक्ष्य के खिलाफ थे और गैरो से जो प्रयोग तो कर लेना चाहते थे और चुरा लेना चाहते थे अपना वक्त , धन और पुरुषार्थ और बदले में सिर्फ धोखा देना ही था मन । वो अभिमन्यु तो लड़ रहा था जिनसे उनको जनता था की उनसे लड़ना है मारना है या मरना है पर ये अभिमन्यु तो लड़ नही रहा था बल्कि अपना मान कर पूर्ण समर्पण से योगदान कर रहा था की अपने तरक्की करे और हर मुसीबत उनसे दूर रहे । छल उस अभिमन्यु के साथ हुआ पर वो सामने खड़े घोषित दुश्मनों ने किया लेकिन मेरी पुस्तक के पात्र अभिमन्यु के साथ तो हर तरह का छल तथाकथित अपनो ने किया ।
उस महाभारत में शरशैया पर पड़े भीष्म शायद अतीत में झांक कर तौल रहे थे सही और गलत और अंतिम उपदेश दे रहे थे पर इस महाभारत में तो अभिमन्यु घायल पड़ा है मन और आत्मा से और बस याद कर रहा है उस काले अध्याय को जिसने उसको घायल कर दिया है बुरी तरह की फिर से उठने लायक भी नहीं छोड़ा है ।
इस पुस्तक में अभिमन्यु की जिदंगी के बस कुछ अध्याय है बाकी आगे की पुस्तकों में आते रहेंगे । ये लिख इसलिए दिया गया की आगे शायद अन्य किसीको अभिमन्यु बनाने से बचा सके ।
किसी बच्चे का सैकड़ों बार सिर्फ इसलिए पिटना की बाल काटते वक्त नाई ने उसकी चुटिया क्यों काट दिया , या इसलिए की राम की स्पेलिंग क्या होती है आर ए एम ए या आर ए एएम और भ्रमित कर कर के पीटना या इस बात पर पिटना की हिंदी क्यों पढ़ रहे हो तो हिंदी या गणित क्यों नहीं पढ़ रहे हो या बाकी बच्चो के साथ इतनी देर तक क्यों खेल रहे थे और इससे शुरू हुई पिटाई जिंदगी भर चक्रव्यूह में घेर घेर कर इस अभिमन्यु की पिटाई ही करती रही जिंदगी । 
राजनीति के बारे में कहा जाता है की ये धोखे का कारोबार है पर अभिमन्यु ऐसा नहीं जानता था ।समझौते भी नही करना जानता था अभिमन्यु और धंस गया राजनीति की कीचड़ में और वो भी धोखे को ही राजनीति समझने वालो के चंगुल में । कितना मुस्किल होता है किसी को बड़ा भाई बना कर उसके लिए समर्पित हो जाना और कितना आसान होता है छोटा भाई बना कर हर पर उसकी हत्या करते रहना ।
कितना आसान था अभिमन्यु के लिए किसी भी और काम में सफल हो जाना या उतनी मेहनत और पूंजी si कोई भी कारोबार खड़ा कर लेना ? उसके साथ के लोगो ने क्या क्या सफलताएं नही हासिल कर लिया बहुत कम प्रयास से पर राजनीति के धोखे ही किस्मत में लिखे हो और इतने बड़े कलाकारों से पाला पड़ जाए जो लगातार बहुत अपना बने रहे हो बड़ा भाई  बन कर और दिल में लगातार साजिश रही हो और जातिवादी घृणा तो कोई कर भी क्या सकता था । 

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