सोमवार, 5 अगस्त 2019

रब्स्पियर

समय निकाल कर ये #इतिहास_का_एक_अध्याय_जरूर_पढिए --
#हिटलर से पहले “#राब्सपियर” हुआ था जिससे हिटलर ने कोई सबक़ नहीं लिया । सबक़ न लेना ....मुमकिन है
पर इसका परिणाम / दुखद अंत नामुमकिन नहीं !

“एक था रॉब्सपियर। फ्रांस में पैदा हुआ था। राजशाही के खिलाफ था। लोकतंत्र का समर्थक था। गुलामी और मौत की सज़ा के भी बहुत खिलाफ था। फिर वो मज़बूत होता गया। राजा की हत्या का हामी बन गया। उसने ये सज़ा दिलवाई भी। गुलोटिन मशीन से राजा का सिर कटवा दिया। रानी का भी सिर कटवा दिया। इसके बाद खुद शासन में आ गया। असहमत लोगों के सिर कटवाने लगा। उसके शासन को आतंक काल कहा गया।हालात यहां तक खराब हुए कि किसी ने अगर महंगाई का विरोध कर दिया तो भी गद्दार कहकर मार दिया जाता। विपक्षी दल के लोगों का कत्ल थोक के भाव किया गया। अदालतों में ट्रायल बंद हो गए। उसने कहा ट्रायल की ज़रूरत ही क्या है... गद्दार तो शक्ल देखकर पहचान लिया जाता है। उसने अपने बचपन के दोस्तों तक को मरवा दिया क्योंकि वो अपने अखबारों में उसकी नीति के खिलाफ लिखते थे। वो बहुत ताकतवर बन गया... इतना कि उसे कल तक लोकतंत्र का रक्षक माननेवाले डिक्टेटर कहने लगे। जो उसे तानाशाह कहता उसे ही वो मरवाता और फिर एक दिन ऐसा भी आया जब उसे उसके ही लोगों ने घेर लिया। वो समझ गए थे कि कि शेर के मुंह खून लग चुका है और अब वो सबके काबू से बाहर है। जिस राजा को सबने मिलकर मरवा दिया था दरअसल रॉब्सपियर उस राजा से भी बदतर निकला था, वो भी लोकतंत्र के नाम पर।

अंतत: उसने खुद को विरोधियों से घिरा देख अपने ऊपर गोली चला दी। किस्मत भी एक वक्त तक साथ देती है और अब वो समय बीत चुका था। वो खुदकुशी भी नहीं कर सका। उसे अब बेइज्ज़त होना था। लहूलुहान हालात में रॉब्सपियर को उसी मेज़ पर लाकर रखा गया जहां बैठकर वो मौत के परवाने लिखा करता था। आखिरकार शहर के बड़े हुजूम के सामने उसे गुलोटिन पर लाया गया। सूजे मुंह के साथ वो तब तक चीखता-चिल्लाता रहा जब तक कि उसका सिर कट कर गिर नहीं गया। पंद्रह मिनट तक माहौल तालियों से गूंजता रहा। छत्तीस साल का रॉब्सपियर जो चंद साल पहले क्रांति का प्रतीक था आज उसकी मौत फ्रांस में जश्न का कारण बन चुकी थी ।
तानाशाही भी लोकतंत्र के रास्ते आती है ।

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