बुधवार, 21 अगस्त 2019

वो अकेला बुजुर्ग पडोसी

वो अकेले बुजुर्ग पडोसी
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मेरे पड़ोस में रहते है

वो अकेले बुजुर्ग इंसान

बहुत दिनो क्या सालो से

जानता हूँ उन्हें मैं

और

बहुत अच्छी है उनसे पहचान

पहले उनका घर भरा भरा था

फिर

धीरे धीरे खाली होता चला गया

कुछ चाहे और कुछ अनचाहे

अचांनक अकेले हो गए वो
कभी बैठने लगे मेरे साथ

और बताने लगे

अपनी पूरी बात

पहले

उनके पास बहुत लोग आते थे

जब वो कुछ थे

और बहुत लोग

उनकी उंगली पकड़ कर

क्या क्या हो गए

तब तो हालत ये थी

किसी के घर मौत भी

हुयी हो

तो फोन करता था

की आप जल्दी आइये

अर्थी उठने वाली है

आप का ही इन्तजार है

शादी हो या कुछ

कितने लोग बुलाते थे

वो लोग जो कहते थे कि 

आप का ज्ञान रौशनी देता है

और आप के बिना तो

कार्यक्रम हो ही नहीं

सकता

पर दिन बदलते ही वो सब कही बिला गए

अब कोई नहीं आता
कोई नहीं बुलाता

सबको बना दिया

पर ये जहा के तहा रह

गए

जब कोई उनका अपना

धोखा देता या

कर देता पीठ पर वार

तो ये रहते थे बहुत दुखी

और बेक़रार

फिर झाड कर गम की धूल

लग जाते थे फिर उसी काम में

पर

तमाम झटको से भी नहीं टूटे थे वो

मैने देखा है

बहुत ही संघर्ष किया उन्होने

पर जब अपने साथ थे

क्या मजाल उनके चेहरे पर

शिकन भी आई हो कभी

लेकिन

बहुत उदासी पसर आई उनकी आंखो मे

जब से अकेले हो गए वो

उनके बच्चे भी चले गए दूर

अपनी अपनी जरूरी वजहों से

उनकी सहमती और ख़ुशी के साथ

बहुत प्यार करते है

उनके बच्चे उन्हे और उनकी चिंता भी

पर मजबूरिया अपनी जगह है

ढाल लिया इस बुजुर्ग ने खुद को हालात में

अक्सर देखता हूँ

उन्हें सुबह बाहर निकल कर
लान से

तुलसी की पत्तियां तोड़ते

बताते है

की उनसे अच्छी चाय

कोई नहीं बना सकता है

सेंक लेते है ब्रेड और

काट लेते है कोई फल

हो जाता है उनका नाश्ता

बताते है

की वो बहुत हेल्दी नाश्ता करते है

नौकर चाकर क्या खिलाएंगे ऐसा

अक्सर दिखते है कपडे फैलाते और उतारते

मैंने कहा
क्यों खुद करते है ये सब

और इस उम्र में

बोले कसरत भी है
और पैसे की बचत भी

मैंने पुछा की आप को क्या कमी

तो बस मुस्करा कर रह गए

मंगाते है खाना है कभी कभी

शायद दो दिन में एक बार

मैंने पूछा की आप को तो

ताज़ा और गर्म खाने की आदत थी

बोले खाना ज्यादा होता है

और

फेंकना सिद्धांत के खिलाफ है

कितनो को तो ये भी नहीं मिलता है

और

क्या बिगड़ता है खाने का फ्रिज में

अंग्रेज तो बहुत दिन तक फ्रिज का ही खाते है

मैंने पुछा की पहले तो आप कहते थे

रोज नए नए रेस्टोरेंट में जाऊंगा

और

नए नए पकवान खाऊंगा

तो बोले तबियत का भी ध्यान रखना है न

और

अकेले जाना अच्छा भी नहीं लगता

और रोज जाने मे खर्चा भी कितना हो जायेगा

कभी कभी बहुत खुश होते है

जब आने वाला होता है उनका कोई बच्चा

घर की सफाई ,बिस्तर की चादर

और सब तैयारी में लगे रहते है

कई दिन तक

फिर जब तक बच्चे साथ होते है

दिखते ही नहीं है बाहर कई दिन

बच्चो के जाने के बाद कई दिनों तक

कुछ गुनगुनाते रहते है

और

बच्चो के यहां से आने के बाद भी

कई दिन उदास होते है

तब पूछना पड़ता है क्या हुआ

बोले की एक तो अकेला होने के कारण

न आराम और न चैन से बाथरूम ही जा पाते है

बज जाती है तभी घंटी

कौन देखे की कौन है

और
हमेशा कुछ न कुछ हो जाता है

कभी दूध गर्म करते है

और बाहर कोई आ गया

और दूध गिर जाता है पूरा
चाय भी

कभी सब्जी जल जाती है

तो कभी रोटी खाक हो जाती है

पुछा की फिर क्या करते है आप

बोले अगर दिन में होता है
तब तो हो जाता है

पर जब रात में जल जाती है

तो खा लेते है मुट्ठी भर चना

या अगर ब्रेड है तो वो

नहीं तो एक कप दूध पीकर सो जाते है

और

बोले उस दिन सुबह बहुत ही अच्छा लगता है

हल्का हल्का

पर प्लीस मेरे बच्चो से कभी कह मत देना

की मैं भूखा भी सोता हूँ
वो सब वैसे ही मेरी बहुत चिंता करते है

परेशांन रहने लगेंगे

उन लोगो के खुश रहने

और मस्त रहने के दिन है

उस दिन बहुत दुखी थे

मैंने पुछा क्या हुआ

बोले

पता नहीं मैंने पिछले जन्म में

कितनो के साथ बुरा किया है

की जिनके लिए सब कुछ करता हूँ

वो सब पीठ पर वार कर चले जाते है

जाने दो पिछले जन्म का कर्जा ही चुका रहा हूँ

और

फिर जोर से ठठाकर हँसे

और चल दिए

मैंने कहा कहा चले

बोले किसी और को ढूढने

जिसका पिछले जन्म का कर्जा हो

कभी कभी जब बीमार हो जाते है

तो दिखलाई नहीं पड़ते

मिले तो पुछा क्या हो गया था

बोले कुछ नहीं

बताओ और क्या हो रहा है

बहुत कुरेदा

तो बोले मेरा दुःख तो

कोई बाँट नहीं सकता

लेकिन मैं अपने थोड़े से सुख

तो बाँट सकता हूँ

आइये कुछ अच्छी बाते करे

एक दिन कुच्छ ज्यादा परेशांन थे

मैंने पुछा आज क्या हुआ

बोले एक चिंता है

मुझे कुछ हो गया तो

दरवाजा तोडना पड़ेगा घर का

कितनी दिक्कत होगी न  बच्चो को
कितने परेशान हो जायेंगे मेरे बच्चे

और खुला रखना भी मुश्किल है

और

उनकी आँखों से टपक गया कुछ

बाँध जो रुका था काफी दिनों से

शायद टूटना ही चाहता था

कि

वो इधर उधर देखने लगे

और खांसने लगे

खुद को रोकने को

और मुझे भरमाने को

फिर धीरे से उठ कर चले गए

कई दिनों से नहीं दिखे है वो बुजुर्ग

मुझे भी उनकी आदत पड़ गयी है

मैं लगातार ढूढ़ रहा हूँ

और

झांक आता हूँ उनके घर की तरफ

लेकिन बस सन्नाटा ही सन्नाटा 

मिलेंगे तो पूछुंगा उनके इधर के नए अनुभव

और

सुनुगा उनका खोखला ठहाका

और फिर मैं भी सर झुका कर

कुछ छुपा कर चला जाऊंगा

अपने घर की तरफ

जहा मेरे अपने इंतजार में होते है ।

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