रविवार, 18 अगस्त 2019

चिट्ठियां

जी
पहले चिट्ठियां होती थी
सूचना
और
सुख दुःख जानने का साधन
चिट्ठियां भी कई तरह की होती थी
इतना खुला था हमारा जीवन
और हमारा समाज
कि
खुले पोस्ट कार्ड पर
सब कुछ लिख कर भेज देते थे लोग
किसी से कोई धोखा नहीं होता था
क्योकि ये सस्ता होता था
पैसा नहीं होता था लोगो के पास
बस भावनाए और जुडाव होता था
एक चिट्ठी ऐसी भी होती थी
जिस पर टिकेट नहीं लगा होता था
वो भेजने वाले तीन तरह ले लोग होते थे
या तो गरीब रिश्तेदार
या दूर पढ़ रहे छात्र
या फिर वो जो चाहते थे
कि
चिट्ठी हर हालत में मिल जाये उसे
जिसके लिए भेजा है
क्योकि डाक टिकेट का पैसा
उसी से लेना होता था
इसलिए डाकिये की मजबूरी थी
पाने वाले के हाथ में चिट्ठी देना
अंतर्देशीय भी था जो बंद रहता था
पर थोडा महंगा
इसलिए या तो
उसका खर्च वहनं कर कर सकने वाले
लिखते थे इसमें
या फिर कोई गोपनीय बात होने पर
लिखा जाता था ये पत्र
गाँव में तो डाकघर और डाकिया
दोनों वाही के होते थे
पर कोई नहु झांकता था
किसी के पत्र में
किसी का पत्र तभी पढता था
जब वो खुद पढने को कहता था
रजिस्टर्ड  डाक तो
खैर विरले ही भेजते थे
खास कारणों से
चिट्ठिय भी तरह तरह की होती थी
किसी के कोने पर थोड़ी सी हल्दी का रंग
तो किसी पर लाल रंग
हल्दी किसी शुख सूचना के लिए
तो लाल रंग
आशिक के दुःख की निशानी था
और ये बताने की कोशिश
की ये खून से लिखा है
गाँव की चिट्ठियों में
सबके हालचाल पूरे गाँव सहित के साथ
गाय बैल उसकी बीमारी
जो बीमार था ठीक हुआ या नहीं
फल गाय या भैस दूध दे रही या नहीं
और कितना दूध दे रही है
कौन कौन पीता है दूध
बाबा भी पीते है या नहीं
और जिसको बच्चा होना है
उसे मिलता है या नहीं
बगीचे का क्या हाल है
कौन कौन से फल कितना लगा है
किस किस खेत की जुताई हो गयी
किस खेत में पानी लग गया
धन रोपा गया या नहीं
और कौन सी फसल कितनी होगी
इत्यादि जरूर होता था
कोई बीमार था गाँव में तो क्या हुआ
किसका इलाज हो रहा है
और मर गया तो कैसे
और
सब सुख दुःख बताने के बाद
और ये बताने के बाद की फल मर गए
सुखा पड़ गया या बाढ़ में सब बह गया
भैस या गाय मर गयी
वो बच्चा पैदा होते ही मर गया
अंत में ये जरूर लिखा होता था
अपना ध्यान रखना 
यहाँ बाकि सब कुछ ठीक ठाक है
पति पत्नी की चिट्ठिय गोपनीय होती थी
इसलिए उनका ब्यौरा भी लिखना ठीक नहीं
सारे आशिक अंत में जरूर लिखते थे
लिखा है ख़त खून से स्याही न समझाना
शहर की चिट्ठिया इतनी मजेदार नहीं होती थी
इसलिए उन पर भी क्या लिखना
हां तार भी होता था
जो बहुत ही भयानक होता था
तार आने का मतलब ही होता था
की कोई जरूर मर गया
तार खोलते वक्त पढने से पहले ही
रोना धोना शुरू हो जाता था घर में
चाहे किसी ख़ुशी को जल्दी से बताने को
भेज दिया हो किसी अपने ने
तार आने की खबर पूरे गाँव में
और
उस समय के शहरी मुहल्लों में भी
बहुत जल्दी फ़ैल जाती थी
और लोग मुह लटकाए आने लगते थे
दुःख बांटने
चिट्ठिय सहेज कर राखी जाती थी
किसी कोने में या किसी संदूक में
एक और रिवाज था
चिट्ठी आने पर
पूरे परिवार को इकट्ठा कर पढने का
पढना भी तो गाँव में कोई कोई ही
जानता था
वही सबकी चिट्ठी बांचता था
अगर दूर रह रहे पति की चिट्ठी
पत्नी के लिए होती थी
तो कुछ पढ़ कर कुछ छोड़ देता था
और कह देता था
की बाकि बात
वो अपनी मेहरारू को बता देगा
और वो आकर बता देगी
तब कुछ ऐसी ही मर्यादाये होती थी
कोई दुःख का समाचार
चिट्ठी बांचने वाले की अचानक
हिलते हुए ओठो और आँखों से
ही पता लग जाता था
क्योकि कुछ पल वो चुप हो जाता था
दुःख दूसरे का था पर सब रोते थे
जसे
पहले लड़की किसी की भी विदा होती थी
पर रोता पूरा गाँव था
फिर रोना पूरा कर वो बांचता था चिट्ठी
कुछ चिट्ठिय छुपा कर भी रख देने का रिवाज था
कुछ घर में षड़यंत्र के कारण
और कुछ हंसी ठिठोली के लिए
इतिहास में तो चिट्ठियों ने
बड़ी बड़ी क्रांतियाँ करवाई है
तो ज्ञान का प्रसार की किया है
बहुत से जाने मने लोगो की चिट्ठिया
तो आज तक रौशनी का काम करती है
अगर प्रकाशित हो गयी है
या पाण्डुलिपि के तौर पर मौजूद है
क्या होता था जब कोई अपना
कही चला जाता था
तो रोज डाकिये का इन्तजार करना
और
अकसर डाकघर तक चले जाना
पूछने के लिए
की
हमारी कोई डाक है क्या
मिल गयी तो नेमत पाने की ख़ुशी
और नहीं तो उदस होकर लौटना
कितना रोमांच था जिंदगी में
बहुत सी चिट्ठिया
असली भावना का प्रवाह होती थी
मन भी भीग जाता था और भावनाए भी
मेरे पास भी है
सहेज कर रखी हुयी कुछ चिट्ठिया
एक अपने पिता की आखिरी चिट्ठी
और कुछ अपने हमसफ़र की
जिन्हें मैं अक्सर पढता हूँ
अक्श उभर आते है हमेशा उनके
जब भी वो चिट्ठियां पढता हूँ
तो काफी दिन का  दर्द
आँखों के रास्ते बह जाता है
जी हाँ चिट्ठिया क्या होती थी
आज के लोग क्या जाने
और क्या जाने
उनके आने के इन्तजार
और
उनको बार बार पढने
तथा सहेजने का मज़ा
हो सके तो चिट्ठिया लिखिए
और न
यी पीढ़ी को लिखना सीखाइए
मोबाइल और फोन अपनी जगह है
और चिट्ठिया अपनी जगह
वाह रे चिट्ठियां




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