लोकतंत्र का मूल आधार है बहस , संवाद और असहमती का भी सम्मान
पर
अब असहमति और संवाद को खत्म किया जा रहा है
और
संवाद ,सवाल तथा असहमति को देशद्रोह करार दिया जा रहा है ।
न
तानाशाही की पदचाप सुनने के लिए साहस और असहमति का जज्बा चाहिये ।
बाकी सब बापू ,भगत और सुभाष को मुबारक ।
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें