शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

किसी विद्वान साथी ने टिप्पणी किया कि यकीन मानिये कि आज के दौर में स्वामी विवेकानंद ,सर्वपल्ली राधाकृष्णन से लेकर ए पी जे कलाम तक अगर किसी राजनीतिक दल के बाकायदा सदस्य बन जाये तो रसीद कटाने के अगले पल ही उनकी औकात चपरासी से भी कम हो जाएगी ।

वो खुद राजनीती में नहीं है फिर इस टिप्पणी का क्या मतलब है ?

इस टिप्पणी पर क्या जवाब दूँ ? क्या सचमुच इतनी गिरावट आ गयी है ? क्या ये सभी दलों पर लागू होता है ?

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