रविवार, 20 अक्तूबर 2013

गरीबी और बेरोजगारी विमर्श की कुछ लेखन धाराएँ भी जन्म लेंगी क्या ? जाति धर्म से अलग ? मानवीय असमानता भी तो एक विषय है और सबसे बड़े विषय किसान और मजदूर की तरफ लेखको और कवियों का ध्यान कभी फैशंवश ही जाता है | क्या ये भी महत्वपूर्ण विमर्श बन सकते है ? या ये सब बिकाऊ माल नहीं है और इन्हें क्रेता नहीं मिलेंगे और इनाम भी नहीं मिलेगा ??

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें