राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का मामला जोरो पर था । दोनो ही पक्ष अपने अपने पक्ष में देश भर में कार्यक्रम कर रहे थे । ऐसा ही एक कार्यक्रम बाबरी मस्जिद पक्ष ने आगरा की जमा मस्जिद के अंदर रखा था । उस कार्यक्रम में असाउद्दीन वोबैसी के पिता जी आए थे , जफरयाब जिलानी आए थे और ऐसे ही कई बड़े नाम थे इस पक्ष के ।मोहम्मद आजम खान साहब भी आए थे जो मेरी पार्टी के नेता भी थे और मेरे घनिष्ट मित्र भी ।आजम साहब के साथ मुझे भी वहां जाना पड़ा । पता नहीं क्यों या शायद पार्टी का महासचिव और प्रवक्ता होने के कारण मुझे भी मंच पर बुला लिया गया जिसके लिए मैं तैयार नहीं था । थोड़ी देर में मेरा नाम बोलने के लिए पुकार दिया गया जबकि ये केवल बाबरी एक्शन कमेटी का कार्यक्रम था ।
मैने भाषण दिया कि दो ही तरीके है कि दोनों पक्ष आपसी सहमति से इस विवाद का हल निकाल ले या फिर अदालत पर ही छोड़ दे । और कोई तरीका इस विवाद का हल नहीं कर सकता है पर विश्व हिंदू परिषद इसे अदालत का नहीं आस्था का मामला बताता है तो ध्यान रखना होगा कि किसी भी तरह सामाजिक सौहार्द खराब न हो और कौमी एकता बनी रहे इत्यादि इत्यादि।अंत में मैने कह दिया की जब हम जाती और धर्म में बटे हुए थे तो गुलाम हुए थे और जब एक हिन्दुस्तानी बन कर लड़े तो आजाद हो गए । ये बात सबको याद रखना चाहिए । ह से हिंदू और म से मुसलमान जब हम बनता है तब बनता है हिंदुस्तान ।
अगले दिन मेरा भाषण भी अखबार में छपा ।उस दिन अशोक सिंहल जी आगरा अपने घर आए हुए थे और उनका घर कालेज वाले मेरे घर के ठीक पीछे था ।उनको पता नहीं क्या समझ में आया कि उन्होंने बयान दे दिया कि हम चन्द्र प्रकाश राय से कहना चाहते है कि वो किसी मुसलमान को अपना बाप बना ले ।
मुझे अशोक सिंहल जैसे वरिष्ठ व्यक्ति से ऐसी उम्मीद नहीं थी । पर मुझे भी जवाब देना पड़ा कि मुझे तो यकीन है कि मेरे पिता ही मेरे पिता है और मेरे पिता पर मुझे गर्व है इसलिए मुझे पिता बदलने की कोई जरूरत नहीं । अशोक सिंहल जी बहुत वरिष्ठ है अपने बारे में वो स्वयं तय कर ले ।
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