गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ से मैंने एक मांग मनवा लिया था

#जिंदगी_के_झरोखे_से


जिस मुशर्रफ ने पूरी वार्ता में कोई सकारत्मक मुह नहीं खोला उससे हमने एक मांग मनवा लिया 


आगरा मे भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार और पकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ के बीच वार्ता होने का एलान हो चुका था कारगिल के जख्मो के बाद जिसमे पाकिस्तानी फौज हमारी जमीन पर आकर बैठ गई थी और उस सरकार को  पता ही नही चला । वो तो उस इलाके के किसी ने पास की छावनी को बताया तब मालूम पडा ।
फिर हमे अपने सैकड़ो जवान की शहादत देकर अपनी जमीन वापस मिली ।ये अलग बात है की भाजपा सरकार ने उसका भी जश्न मनाया ।

खैर उसके बाद ये वार्ता तय हो गई थी ।
शहीदो के परिवारो को तत्काल 10 लाख रुपया मिलता था और पेट्रोल पंप तथा निवास ।
कारगिल युद्द मे आगरा के भी कई जवान शहीद हुये थे । शहीदो के परिवार ताजमहल वाले इलाके मे रह रहे थे और कुछ अपने गांवो मे ।

चूँकि मैं बहुत ज्यादा सक्रीय रह्ता था इसलिए एक दिन एक परिवार की मुझे खबर मिली की वो लोग बात करना चाहते है । मैं मिलने गया तो उन लोगो ने अपना दुख बताया की देखिये सब कुछ हमारा चला गया पर अब 10 लाख का 33% आयकर जमा करने का नोटिस आ गया है और बाकी जो वादे किये गये उसमे से एक भी पूरा नही किया सरकार ने ।

उसके बाद आगरा के बुद्धिजीवियो , लेखक कवियो , शिक्षको तथा पत्रकारो को पूरी बात बताया और साथ ही हिंदुस्तान के वर्तमान समूह संपादक शशिशेखर जी जो उस वक्त आजतक मे बड़े पद पर थे उनको भी अपने कार्यक्रम की जानकारी दिया और उन्होने इस मुद्दे को पूर्ण समर्थन दिया ।

बस वो 8 तारीख थी यानी वाजपेयी मुशर्रफ वार्ता से 7 दिन पहले हम लोग आगरा के शहीद स्मारक से निकल पड़े जुलुस की शक्ल मे करीब 20 फुट लम्बा बैनर लेकर महात्मा गांधी मार्ग पर । जुलुस मे आगे मेरे साथ शहीदो की पत्नियाँ थी और कई प्राचार्य , पूर्व कुलपति, शिक्षक , कवि लेखक नाट्यकर्मी और काफी पत्रकार भी और बैनर था मेरी संस्था पहचान का ।

आजतक की टीम दिल्ली से आ गयी और बाकि आगरा के मीडिया ने भी सहयोग दिया और अगर ४८ घंटे में शहीदों  की पत्नियों की सब मांग पूरी हो गयी थी | मैंने  मुशर्रफ से मांग किया था की जब वार्ता करने आ रहे है तो पहले तो कारगिल पर खेद वक्त कर के आये और दूसरा तमाम ऐसे फ़ौज और एयरफ़ोर्स के परिवार  जिनको लगता था की १९६५ और १९७१ के युद्ध उनके जो परिजन गायब हो गए थे वो पाकिस्तान की जेल् में है तो वो लोग लगातार लिखत पढ़त करते रहे और इस मौके पर आगरा भी आ गए थे | ऐसे ही एक परिवार के साथ मैंने दो तीन पहले ही एक प्रेस कांफ्रेंस किया था | उन  लोगो की मांग भी मैंने जोड़ लिया था की इतने दिनों से बंद हमारे लोगो को छोड़कर आओ तब हम मानेगे की आप सही नियत से आ रहे हो और चेतावनी दे दिया था की यदि मुशर्रफ ने ये मांगे नहीं माना तो वार्ता के दिन वार्ता वाली जगह के आसपास ही मैं मुशर्रफ का विरोध करूँगा | 

शहीदों की पत्नियों की मांग तो भारत सरकार को मानना था तो वो मान ली गयी पर  मुशर्रफ से की गयी मागे अभी पूरी नहीं हुयी थी | वार्ता के एक दिन पहले मेरे दो रिश्तेदार एक  मेरी पत्नी के भाई जो आई ए एस अधिकारी थे और भारत सरकार में महत्तवपूर्ण पद पर थे  इस वार्ता की तैयारी के लिया आगरा आ गए तो होटल जाने से पहले घर आये और दूसरे मेरे फुफेरे भाई जो आई पी एस अधिकारी थे तथा एस पी जी के सबसे पद पर थे और प्रधानमंत्री की सुरक्षा के जिम्मेदार थे वो भी घर आये | जब उन लोगो को मेरे अगले दिन के कार्यक्रम का पता लगा तो ऊँ लोगो ने बहुत डराया की की ये दो राष्ट्राध्यक्षो की वार्ता है और पूरे शहर में कर्फ्यू के हालत होंगे तो पहले तो आप निकलेंगे कैसे और दूसरा ऐसा कुछ करने पर आप के साथ कुछ भी हो सकता है | 
मैंने कहा की देखा जायेगा पर कोशिश तो करुँगा | 
 
वार्ता का दिन आ गया तो अपनी गाडी में बैनर रख कर मैं निकल लिया | हा कर्फ्यू जैसा ही था सारे शहर और सड़क पर कोई नहीं था | आज इस सरकार का दौर होता तो मुझे या तो गिरफ्तार कर लिया जाता या नजरबन्द कर दिया जाता घर में ही पर ऐसा कुछ नहीं हुआ था और तेज चलता हुआ मैं उसी क्षेत्र में अपने एक साथी के घर पहुच गया | शहीदों की पत्नियों से भी आग्रह किया था की अगर संभव हो तो वो लोग उसी जगह पहुचने की कोशिश करे और वार प्रिसनर्स के परिवारों को भी पर मैं जब पंहुचा तो वहा कोई नहीं पंहुचा था तो मैं परेशांन हो गया की अब कैसे होगा | मैं जिसके घर पर बैठा था उनके घर मेरे एक दो साथी जो उसी क्षेत्र के थे वो भी आ गए तथा एक बहुत बुजुर्ग मुसलमान भी आकर बैठ गए | आगरा  ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का मीडिया आगरा में था तथा और मुग़ल शेरटन होटल मीर्डिया सेंटर बना हुआ था | मैंने अपने मीडिया के साथियों द्वारा मुग़ल होटल में ये अफवाह नुमा फैलाने में कामयाबी हासिल कर लिया था की अमर होटल के पास कुछ होने वाला है बस ये नहीं पता था की क्या होगा |तो अलग अलग बहाने से पूर राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय  मीडिया के कैमरे अमर होटल की छत पर पहुच गए और ये भी भ्रम था की जो होगा वो मुग़ल होटल या ताज की तरफ से होगा तो भरी पुलिस भी लग गयी उसी तरफ | 

मैंने उस साथी और वहा मौजूद लोगो से कहा की धरा १४४ तोड़ने लायक तो हम लोग हो गए है और बैनर भी इतने लोग पकड़ कर पूरी चौड़ाई में सड़क पर चल सकते है तो वहा सन्नाटा था | इस माहौल में निकलने में सभी डर रहे थे तो मैंने कहा की कोई बात नहीं आप लोग रहने दीजिये मैं अपनी पत्नी और तीनो छोटे बच्चों को बुला लेता हूँ और हम ५ निकल लेंगे बैनर लेकर हमारा काम हो जायेगा | तब वो ८० साल के बुजुर्ग मुसलमान बोले क्या बरते हो हम चलते है आप के साथ |फिर शर्म के मारे सभी तैयार हो गए | हम लोग धीरे धीरे रणनीति बना कर डा जग्गी के अस्पताल पहुच गए की जिससे भी कोई पूछेगा वो  उस अस्पताल जाने की बात कर वहा पहुचेगा | वहा इकठ्ठा होते ही हम लोग बैनर लेकर पूरी चौड़ाई में सड़क घेर कर अमर होटल की तरफ निकल लिए नारे लगते हुए की कारगिल पर माफ़ी मागो ,माफ़ी माफी  मागो :हमारे जवानों को छोड़ दो छोड़ दो | हिंदुस्तान जिंदाबाद जिन्दाबाद ,पाकिस्तान मुर्दाबाद मुर्दाबाद इत्यादि | चारो तरफ सन्नाटा था तो आवाज गूजने लगी | अमर होटल के ऊपर खड़े मीडिया ने जो कैमरा दूसरी तरफ कर इन्तजार कर रहे थे कैमरा इस सड़क पर घुमा लिय और अधिकांश होटल से नीचे उतर कर इधर दौड़े |पुलिस भी इधर दौड़ी | सबसे आगे मेरे घनिष्ठं  मित्र और आगरा के एस पी सिटी आर पी  सिंह जी थे और उन्होंने मुझे देखा तो जहा थे वाही रुक गए और फ़ोर्स को भी रोक दिया | हम  लोग करीब तीन सौ मीटर चल कर उस जगह पहुच गए जहा एस पी सिटी और पुलिस कड़ी थी | तब तक कही से बचते बचाते दो शादीदो की पत्निया भी आ गयी और दो तीन लोग वार प्रिसनर्स के परिवार वाले भी जो वाही किसी होटल में रुके थे वो भी आ गए | मैंने अपना पूरा भाषण दिया जिसे अंतर राष्ट्रीय मीडिया और राष्ट्रीय मीडिया में से अधिकांश ने लाइव टेलीकास्ट किया क्योकि अमरीका से मेरे एक रिश्तेदार ने मेर्री पत्नी को फोन कर पुछा की अभी चन्द्र प्रकाश जी को देख उनको पुलिस गिरफ्तार कर रही थी | उस बुजुर्ग मुसलमान ने कहा की मिया मुशर्रफ मसला उस कश्मीर का नहीं है जो हमारे पास है मसला उस कश्मीर का है जो तुम्हारे पास है वो हमें दे दो तो मसला हल हो जायेगा | अपनी पूरी बात कह कर इज्जत से हम लोग गिरफ्तार हो गए |शहीदों की पत्नियों को मैंने जाने को कह दिया | 

हम लोगो को गिरफ्तार कर आगरा के पुलिस  लाइन में ले आया गया और सम्मान के साथ सी ओ लाइन के कमरे  में  बैठा दिया गया | आर पी सिंह जी ने कह दिया था या जो भी करण है पानी और चाय भी पिलाई गयी | उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री राजनाथ सिह जी भी प्रधानमंत्री जी   के अगवानी के लिए शहर में थे और वो उस वक्त अमर उजाला अखबार के प्रधान संपादक अशोक अग्रवाल के घर चले गए थे | जब वो वहा बैठे थे तो टीवी पर मेरा ही संमाचार चल रहा था जिसे देखकर अशोक अग्रवाल ने कहा की अरे भाई सी पी राय को क्यों गिरफ्तार कर दिया वो तो बहुत अच्छे आदमी है और अच्छा काम कर रहे थे | इसपर राजनाथ सिंह जी ने आगरा के एस एस पी को फोन मिलवाया और कहा की सी पी राय और उनके लोगो को इज्जत से उनके घर भिवाइये  इधर पूरी दुनिया का मीडीया मुझसे  बात करना चाह रहा था .सबको जवाब दे दे कर मेरा फोन जवाब दे गया था  | मुझे उस साथी के घर पर छोड़ा गया जहा मेरी गाड़ी खड़ी थी | वाही कुछ देर मैंने अपना फोन चार्ज किया और फिर परिवार को फोन कर बता कर की मैं छूट गया हु और अब मुग़ल होटल जा रहा हूँ जहा काफी मीडिया के लोग मेरा इन्तजार कर रहे इसलिए हो सकता है देर से आ पाऊं और मुग़ल शेरटन होटल चला गया | वहा एक एक कर मेरा इंटरव्यू होने लगा तो रात १० बज गए  | मीडिया के लिए नाच गाने और खाने का इंतजाम था | मीडिया के साथियों ने जिद किया की उन  लोगो के साथ ही खाना खाऊ पर मुझे  चिंता थी की आज मैंने इतना रिस्क लेकर किया उसका क्या होगा | 

वाजपेयी जी की मुशर्रफ से अगले दिन तक वार्ता फेल हो गयी थी | अगले दिन मुशर्रफ की सम्पदाको के साथ शाम को चाय थी | वहा मेरा मुद्दा उठ गया तो मुशर्रफ जिसने किसी मुद्दे पर मुह नहीं खोला था इस मुद्दे पर मुह खोला और बोला की हा मैंने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में ये समाचार देखा ॉ मैं भी सिपाही हूँ मैं क्यों चाहूँगा कोई वार प्रिसनर इतने दिन मेरी जेल में रहे | मै ऊँ सभी परिवारो को आमंत्रित करता हूँ को वो लोग मेरे गेस्ट बन कर पाकिस्तान आये | मैं उन सभी लोगो को सभी जेलों में भेजूंगा अगर किसी का भी परिवार का कोई भी मिलता है तो मैं तुरंत उन्हें साथ में वापस भेज दूंगा और बाद में कई परिवार पाकिस्तान गए पर न कोई मिलना था और न कोई मिला | पर मुझ जैसे अदना से से आदमी ने बस थोडा इरादा मजबूत कर और थोड़ी हिम्मत कर चंद लोगो के साथ ये कर दिया की मुशर्रफ को हमारे मामले पर बोलना पड़ा और दो में से एक मांग माननी पड़ी | कारगिल पर उसने खेद व्यक्त नहीं किया ये मांग जरूर रह गयी | 


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