समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
गुरुवार, 31 अक्तूबर 2024
राम तुम आवोगे न
रविवार, 27 अक्तूबर 2024
युवा आंदोलन , परिणाम
शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2024
जब मैने आडवाणी जी को गिरफ्तार करने को कहा था । काश ये हो गया होता ।
जब अशोक सिंहल ने मेरे बारे में बयान दिया था
जो ज्यादा वोट से जितायेगा वाही सीट रखेंगे | जसवंतनगर हार का जीते |
जो ज्यादा वोट से जितायेगा वही सीट रखेंगे | जसवंतनगर हार कर जीते |
१९९३ की बात है | समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का समझौता हो चूका था | मुलायम सिंह यादव जी और काशीराम जी की रैली मैनपुरी से शुरू होकर आगे बढ़ चुकी थी | नारा लगाने लगे थे नीचे के कार्यकर्ता की " मिले मुलायम काशीराम .हवा में उड़ गए जयश्रीराम राम " और इसका असर व्यापक तौर पर दीखने लगा था | चुनाव शुरू हो गया था | मैं दूसरे एपिसोड में लिख चूका हूँ की कैसे इस बार भी मेरी चुनाव लड़ने की इच्छा पूरी नहीं हो पायी की आप अपनों एक सीट पर फंस जायेंगे जबकी आप पचासों सीटो पर सभाए करते है तथा मीडिया सहित अन्य काम भी सम्हालते है | एक एक दिन में कम से कम दस से लेकर १५?१६ सभाए होंने लगी | जहा अन्य डालो की सभाए देर में शुरू होती थी तो समाजवादी पार्टी की मुलायम सिंह जी की कई सभाए तो सुबह ८ बजे ही शुरू हो जाति थी | खुद मैंने एक दिन आगरा से जाकर सुबह ८ बजे फरूखाबाद की रैली से दिन शुरू किया था | तय येर हुआ था जिस दिन मेरी अलग सभाये या और कोई काम नहीं होगा और मुझे मुलायम सिंह जी के साथ सभाओं में रहना होगा तो पहली रैली मे हम दोनों साथ रहेंगे और पहली सभा में अपना भाषण कर मैं अगली सभा की तरफ निकल जाऊँगा तथा वहा मेरे पहुचने पर माइक मुझे दे दिया जाएगा और मैं अपना भाषण पूरा करूँगा तथा मुलायम सिंह जी के वहा पहुच जाने पर मैं अगली सभा में चला जाऊंगा और यही क्रम चलता रहता था | आखिरी सभा हम लोग साथ करते और फिर आगे अपने अपने गंतव्य की तरफ बढ़ जाते या जहा खाने की व्यवस्था होती वहा चले जाते थे |
एक दिन हमारी सभा एटा के निधौलीकला से शुरू हुयी जहा खुद मुलायम सिंह जी चुनाव लड़ रहे थे | मुलायम सिंह जी इस बार तीन क्षेत्रों से चुनाव लड रहे थे | निधौलीकला के आलावा शिकोहाबाद और अपनी सीट जसवंतनगर से भी | सभी सभाओं में मेरे दिमाग में पता नहीं क्या आ गया की मैंने अपने भाषण में कह दिया की जो ज्यादा वोट से जितायेगा मुलायम सिंह जी वही सीट रखेंगे | उस दिन निधौलीकला से एटा में सभा करते हुए हम लोग फिरोजाबाद और फिर शिकोहाबाद पहुचे | यहाँ की सभा के बाद जसवंतनगर की सभा में पहुचे | जसवंतनगर में सभा में भरी भीड़ थी | पर मैं जब भाषण दे रहा था तो मैंने उन वक्तव्यों पर जिसपर जनता झूम जाति थी और नारे लगाने लगती थी उस सभा में मुझे वो जोश नहीं दिखा और भीड़ का एक हिस्सा बस तमाशबीन जैसा लगा \| अपना भाषण देने के बाद मैं बैठा तो मेरे मुह से निकल गया की जसवंतनगर में मुझे हालात कुछ अच्छे नहीं लग रहे है | मेरी ये बात मुलायम सिंह जी तो नहीं सुन पाए नारे के के बीच पर मेरे बगल में बैठे हुए मोहन प्रकाश जी जो अब कांग्रेस के देश के बड़े नेता है ,बीच में राष्ट्रीय महासचिव् और प्रवक्ता भी रह चुके है उन्होंने सुन लिया | उस दिन के दौरे में यहाँ तक वो भी साथ थे और फिर उनको दिल्ली जाना था | मोहन प्रकाश जी ने मुलायम सिंह के बैठते ही ये बात उनको बता दिया की सी पी राय तो कह रहे है की यहाँ हालत ठीक नहीं लग रही है | मुलायम सिंह जी ने मुझे घूर कर देखा और बोले की इतनी भारी भीड़ सुनने आई है तो हालत कैसे ठीक नहीं है तो मैंने कहा की भाईसाहब जरा दिखावा लीजियेगा ,मुझे ऐसा ही एहसास हुआ है तो मुलायम सिंह जी गंभ्जीर हो गए और तब तक उनका बोलने के लिए नाम पुकार दिया गया था |
जब वोटो की गिनती हुयी तो मुलायम सिंह जी बाकि दोनों जगह से जीत गए पर जसवंतनगर से प्रारंभ में ८०० वोट से हार की घोषणा हो गयी जबकि पूरे प्रदेश में सपा बसपा गठबंधन बहुमत प्राप्त कर रहा था | जसवंतनगर में वोटो की गिनती दुबारा हुयी तो मुलायम सिंह जी संभतः ११०० वोट से जीत गए |
जसवंतनगर की सभा से आगे मैं नहीं गया था क्योकि उसके बाद आगरा की चार सभाए थे और वो मेरा जिला था तो मुलायम सिंह जी ने कहा था की मैं साथ ही रहू और अपना भाषण थोडा छोटा कर दूँ | जसवंतनगर के बाद आगरा में बाह में , फतेहाबाद ,कलाल खेरिया और अंत में लालकिले के पास अम्बेडर पार्क में रात को १० बजे के बाद सभा हुयी | उस समय तक प्सरचार और सभाओं पर इतनी पाबंदिया नहीं थी | उस दिन हम लोगो ने कुल १६ सभाए किया था | मुलायम सिंह जी ने कहा की खाना कहा खिलावोगे | ऐसा करो की [अपने रिश्तेदार का नाम लेकर बोले जो शिवपाल यादब के साले लगते थे और उनका होटल तथा बार था ]उनको खबर कर दो की हम लोग इतने लोग खाना खायेंगे और फिर मैं इटावा निकल जाऊँगा | मैंने कहा की मैं किसी कार्यकर्ता को अभी भेज दे रहा हूँ पर मैं आप के रिश्तेदार के होटल पर नहीं जाऊंगा | तो उन्होंने करण पुछा | मैंने कहा की आप के रिश्तेदार है इसका मतलब मेरे कार्यकर्ताओ से बत्तमीजी करेंगे क्या और एक दिन एक कार्यकर्ता के साथ हुयी घटना मैंने बता दिया | तब वो बोले की फिर कहा खिलावोगे | साथ में इतनी सुरक्षा और स्टाफ है इसलिए आप के घर इस वक्त इंतजाम नहीं हो पायेगा | मैंने कह की मेरे ऊपर छोड़ दीजिये | उन्होंने बताया की अगले दिन उनका पूरब का कार्यक्रम है और आप बाकि जगहों की सभाए कर लीजियेगा | डाक्टर कौशल ने वही कह दिया की सी पी राय को आगरा के लिए भी दो तीन दिन के लिए छोड़ दीजिये वर्ना यहाँ अभी चुनाव व्यवस्थित नहीं हो पा रहा है |
मैंने अपने सहयोगी तुलसीराम यादव को नीचे से सीढियों के पास बुलाया और उनको निर्देश दिया की वो मेरे घर जाकर मेरी पत्नी से इतने पैसे ले ले और फिर आगरा शहर के बाहर कानपूर रोड पर बुढिया के ताल के पास के ढाबे पर चले जाए और करीब २० लोगो के लिए देशी घी में फला फला चीज बनवाये पर ये बिलकुल न बताये की किसके लिए खाना बन रहा है और खाना अपने सामने ही बनवाये | तुलसीराम ने वाही किया | मुलायम सिंह जी ने मुझसे धीरे से कहा की केवल उम्मीदवारों को भी वहा बुला लीजिये | मैंने सभी उम्मीद्वारो को चुपके चुपके बता दिया की केवल वो लोग सभा के बाद फला ढाबे पर पहुचे | सभा के बाद उस ढाबे पर रात १२ बजे तक खाना और बातचीत हुयी तथा उम्मीदवारों को मुलायम सिंह जी ने कुछ आर्थिक मदद किया | जो उम्मीदवार नहीं थे उनका पैसा मुझे दे दिया की मैं उन लोगो को दे दूँ | उसके बाद मुलायम सिंह जी इटावा निकल गए और मैं रात को ही कुछ जरूरी काम निपटाने सादाबाद चला गया जहा से दो बजे रात को घर पंहुचा |
चुनाव पर परिणाम निकल गया था और सरकार बन गयी थी | सवाल वही था की मुलायम सिंह जी कौन सी सीट रखे तो उन्होंने बयान दिया की उनको तो जसवंतनगर से प्यार है पर चूँकि सी पी राय ने कह दिया था की जो ज्यादा वोट से जितायेगा वही सीट रखंगे इसलिए मैं शिकोहाबाद की सीट रखूँगा | निधौलीकला ने ६५०० वोट से जिताया था और शिकोहाबाद ने १८ हजार से ज्यादा वोट से जिताया था | जसवंतनगर से शिवपाल यादव विधायक हुए तो निधौलीकला से जिसको मुलायम सिंह जी ने हराया था उस अनिल सिंह यादव को ही पार्टी में शामिल कर टिकेट दे दिया था |
इसके बाद की कुछ कहानिया और भी है की सत्ता बनाने के बाद कैसे एक दिन मुझे हर कोई ढूढ़ रहा था और फिर मैं पहुचा तो मुलायम सिंह जी मुख्यमंत्री कार्यालय से जा चुके थे लेकिन उनके सचिव पी एल पुनिया जी मिले और एक कागज देखने को मिला जिसमे तीन नाम लिखे थे | पहला नाम मेरा था और दो अन्य | वो दोनों तो जोम पद लिखे थे वो पा गए पर मेरा नाम हवा में विलीन हो गया | फिर इस सरकार में रामपुर तिराहा हुआ ,.,हल्ला बोल हुआ जिसका पार्टी में अकेले मैंने विरोध किया और पार्टी से निकाल दिया गया | लिख सका तो इसी किताब में होगा वर्ना अगली किताब में रहेगा क्योकि कहने को बहुत कुछ है जो बाकि है |
आगरा का ताज महोत्सव कैसे शुरू हुआ और मेरा प्लान
1990 की बात है | केंद्र में जनता दल की सरकार थी और शरद यादव जी कपड़ा मंत्री थे | शरद यादव जी ने मुझे और जया जेटली जी को जो बाद में जोर्ज फर्नांडीज साहब की पार्टी समता पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी थी हैंडीक्राफ्ट बोर्ड ऑफ़ इंडिया का सदस्य मनोनीत कर दिया था | इस बोर्ड के सदस्य के रूप में मुझे प्रसिद्ध सूरजकुंड हैंडीक्राफ्ट मेला और ग्वालियर मेला जाने का मौका मिला | जहा सूरजकुंड का मेला हैंडीक्राफ्ट के लिए आकर्षण वाला था और वहा खाने पीने की स्टाल से लेकर तमाम तरह की खरीददारी की स्टाल थो वही तमाम अच्छे सांस्कृतिक कर्यक्रम का भी आकर्षण था | दूसरी तरफ ग्वालियर के मेले में बहुत बड़े क्षेत्र में बिलकुल मेले का दृश्य था और मेले का सब कुछ था तो एक बड़ा आकर्षण था जिसके करण देश भर से लोग वहा आते थे वो था गाडियों पर टैक्स की छूट जिसके करण गाड़ियाँ सस्ती मिलती थी | खुद अपने एक रिश्ते के भाई जो आई पी एस अधिकारी थे और तभी एस पी बन कर एस पी जी में पोस्टिंग पर दिल्ली आ गए थे उनके साथ मैं ग्वालियर गया था उनकी गाड़ी खरीदवाने |
मेरे मन में विचार आया की आगरा अन्तरराष्ट्रीय शहर है तो ऐसा मेला यहाँ क्यों नहीं होना चाहिये और क्यों न सूरजकुंड तथा ग्वालियर के मेले का मिला जुला स्वरुप का मेला आगरा में शुरू किया जाए | उस वक्त आगरा में अमल कुमार कुमार वर्मा जी जिलाधिकारी थे | मैं हैंडीक्राफ्ट बोर्ड ऑफ़ इण्डिया के मेम्बर की हैसियत से अमल कुमार वर्मा जी से मिला और उनके सामने मैंने अपना प्रस्ताव रखा | वर्मा जी ने मेरे प्रस्ताव पर बहुत सकारात्मक रुख दिखाया और उसी वक्त उनसे मिलने के लिए मिस्टर सक्सेना जो पी सी एस अधिकारी थे और उस वक्त जनरल मैनेजर उद्योग के पद पर आगरा में नियुक्त थे आये हुए थे और बाहर इन्तजार कर रहे थे उनको वर्मा जी ने अन्दर बुला लिया और उनको मेरे प्रस्ताव के बारे में बताया तथा उनको सेल्स टैक्स ,पर्यटन विभाग इत्यादि के नाम नोट करवाया तथा कहा की आप नोडल अधिकारी के रूप में रहेंगे और इन सभी विभागों के अधिकारी की बैठक एक दो दिन में ही बुला लीजिये |
बैठक तय हो गयी और जिलाधिकारी के निवास पर दो दिन बाद पहली बैठक हुयीं | मैंने दोनों मेले का वर्णन सबके सामने रखा और कहा की आगरा तो अंतर्राष्ट्रीय शहर है यहाँ तो ऐसे कार्यक्रम की और ज्यादा जरूरत है ,साथ ही मैंने प्रस्ताव रखा की आगरा में दोनों मेले का मिला जुला मेला लगाया जाये | तब सवाल आया की सेल्सटैक्स माफ़ करना तो सरकार का काम है उसके लिए ऊपर बात करना होगा तो मैंने कहा की जिलाधिकारी जी सरकारी तौर पर प्रस्ताव भेज दे बना कर और मैं मुख्यमंत्री जी से बात करने की कोशिश करता हूँ | इसी बीच आर बी एस कालेज जहा बचपन से मैं पढ़ा था और जिस कालेज के मुलायम सिंह यादव जी भी छात्र रहे थे उसके प्राचार्य जी ने मुझे बुलाया और मुख्यमंत्री के नाम एक पत्र दिया की कालेज मुख्यमंत्री जी को अपने कृषि परिसर बिचपुरी में एक कार्यक्रम में बुलाना चाहता था | मैंने समय लेकर वो पत्र मुख्यमन्त्री मुलायम सिंह यादव जी को दिया जो निमंत्रण उन्होंने तत्काल स्वीकार कर लिया और बाद में आये भी तथा बिचपुरी परिसर के उस कार्यक्रम में कालेज को उस समय ५ लाख रुपया देंने की घोषणा भी किया | इसी कालेज के निमन्त्रण वाली मुलाकात में मैंने मुलायम सिंह यादव जी को अपना आगरा में दोनों मेले का मिलाजुला मेला शुरू करने का प्रस्ताव भी दिया और बता दिया की जिलाधिकारी तैयार हो गए है तथा दो बैठके हो चुकी है कमिटी बन गयी है ,बस शासन की स्वीकृति चाहिए तथा ग्वालियर की भांति सेल्स टैक्स में छूट के लिए शासन की सहमती चाहिए तो मुलायम सिंह जी ने ग्वालियर मेले और छूट इत्यादि के बारे में मुझसे कुछ सवाल किये | मेरे जवाब के बाद बोले की आगरा में भी हो और प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी हो और ग्रामीण क्षेत्र सैफई में हो सकता है | ग्रामीण क्षेत्र का विकास होगा और ग्रामीण खेल कूद भी होंगे | मैंने कहा की हो सकता है | साथ ही इस छूट का लाभ उठाने के लिए आसपास के प्रदेशो से हजारो लोग आयेंगे तो भरी बिक्री होगी और कुल मिला कर प्रदेश को ज्यादा ही फायदा हो जायेगा | मुलायम सिंह जी बोले की ठीक है जिलाधिकारी का प्रस्ताव आने दीजिये ,कर देंगे |
उस वक्त संजय प्लेस की जेल टूट चुकी थी और खाली मैदान था बहुत बड़ा | मेरे दो सुझाव और थे की प्रारंभ में ये मेला संजय प्लेस में लगे क्योकि शहर के बीच लगेगा तो लोग ज्यादा आयेगे और जहा तक गाडियों का सवाल है मेले में केवल बुकिंग स्टाल होगा और गाड़ियाँ अपने गोदाम से मिलेगी | दूसरा सुझाव था की इस मेले की स्थाई व्यवस्था सिकन्दरा के आगे दिल्ली रोड पर दाहिनी तरफ किया जाए जहा स्थाई तौर पर हैंडीक्राफ्ट की दुकाने हो तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों खासकर इस क्षेत्र के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए एक खुला और एक हाल वाला थिएटर हो | जमुना पीछे की तरफ हट नुमा कमरे हो या कई मंजिल के अच्छे कमरे हो जहा सुरक्षा की समुचित व्यवस्था हो और वो सैलानियों के लिए हो तथा उनके लिए रात को सांस्कृतिक कार्यक्रम हो और अच्छा खाने पीने का इंतजाम हो |
मैंने बीजारोपण कर दिया था पर आगरा का ताज महोत्सव १९९२ में शुरू हो पाया | मेरे हैंडीक्राफ्ट बोर्ड ऑफ़ इन्डिया का मेंबर रहते शुरू नहीं हो सका क्योकि १९९१ में हमारी केंद्र और प्रदेश की दोनों सरकारे गिर गयी थी | मैं जो स्वरूप चाहता था वो भी नहीं हो पाया और दिल्ली रोड पर चाहता था वो भी नहीं हो पाया | सच कहा जाता है की कोई चीज जिसके दिमाग की उपज होती है वो उसी के द्वारा आदर्श रूप ले सकती है वर्ना जैसे एक आदमी से कोई बात कही जाए तो लाइन में अगले व्यक्तियों से आगे जाते जाते अंत में बात कुछ और हो जाती है वैसा ही इस मेले के साथ हुआ | हा ग्वालियर मेले की सेल्स टैक्स छूट वाला विचार जो मुलायम सिंह जी के दिमाग में आ गया था वो सैफइ में क्रियान्वित हो गया |
मुझे ये अफ़सोस आज भी है की आगरा में जो मैं एक बहुत सार्थक काम करना चाहता था वो पूरा नहीं हो पाया | पर संतोष इस बात का है मन का विचार चाहे जिस रूप में आगरा में जमीन पर आया आया तो और सैफई के काम भी आ गया |
बुधवार, 23 अक्तूबर 2024
मंदिर का खेल
मंगलवार, 22 अक्तूबर 2024
जब मुलायम सिंह यादव जी के उपर भाजपा की महिलाओं ने चूड़ियाँ फेंका
जब मुलायम सिंह यादव जी के उपर भाजपा की महिलाओं ने चूड़ियाँ फेंका
1991 की बुरी हार के बाद मैं मुलायम सिंह यादव जी को अधिक से अधिक सक्रीय करना चाहता था और फिर से अधिक से अधिक लोगो में ले जाना चाहता था | आगरा मध्यप्रदेश ,राजस्थान से जुदा शहर है और तब केवल अखबार होते थे तथा आगरा इस पूरे इलाके का इटावा सहित अखबार का केंद्र था | आगरा में कुछ होने और छपने का अर्थ था उत्तर प्रदेश के इधर के बड़े हिस्से तक पहुचना और मध्य प्रदेश ,राजस्थान के कुछ हिस्सों तक पहुचना | मुलायम सिंह जी ये जानते थे इसीलिए आगरा आने को हमेशा तैयार रहते थे |
मैंने एक कार्यक्रम बनाया और की मुलायम सिंह जी पूरे दिन के लिए आगरा आये और सुबह की ट्रेन से आये तथा रात को उसी ट्रेन से वापस जाए | मेरे बनाये हर कार्यक्रंम के पीछे कोई मकसद होता है और तब भी था | मुलायम सिंह जी ने बिना कार्यक्रम पूछे हा कर दिया | कार्यक्रम के दिन सुबह ही ट्रेन से आगरा के फोर्ट स्टेशन पर वो आ गए | हम लोगो ने वहा उंनका स्वागत किया | स्टेशन से बाहर आंबेडकर पार्क में डा भीम राव आंबेडकर की प्रतिमा पर उनसे माल्यापर्ण करवाया और फिर उन्हे सर्किट हाउस छोड़कर मैं घर आ गया की वो भी नहा धोकर तैयार हो जाए और नाश्ता कर ले तब तक मैं भी तैयार होकर आता हूँ | हर जगह हर पार्टी में कुछ लोग होते है जो काम कुछ अनहि करते है बस बुराई करना और चुगली करना काम होता है | ऐसे तीन लोग सर्किट हाउस पर मौजूद थे पर मुलायम सिंह जी उनका नमस्ते भी स्वीकार किये बिना अन्दर चले गए | ये वो लोग थे जिनकर लिए कुछ दिन पहले ही मुलायम सिंह जी ने मुझसे कहा था की ये लोग हर वक्त केवल नकारत्मक बात करते है और कुछ काम करते नहीं है केवल मेरी बुराई करते है तो मैं अपनी कलम से आदेश कर इन लोगो को पार्टी से निकाल दूँ पर मैंने निकालने से इनकार कर दिया था ये कह कर की वो लोग मेरी बुराई करते है पर मुलायम सिंह जी की तो जिंदाबाद करते है तो मैं ऐसे तीन लोग पार्टी से कम क्यों करूँ |
जब मैंने देखा की मुलायम सिंह जी उन लोगो की उपेक्षा कर चले गए तो मैं उन लोगो को अन्दर ले गया और मुलायम सिंह जी से बोला की ये लोग मिलने आये है इतनी सुबह तो या तो अभी कुछ मिनट इनकी बात सुन लीजिये या तैयार होने के बाद सुन लीजियेगा | मुलायम सिंह जी ने कहा की कोई कायदे की बात तो करेंगे नहीं बस आप की बुराई करेंगे और आप कह रहे है की इनकी बात सुन लूँ तो मैंने कहा की फिर भी सुन लीजिये और मैं बाहर निकल कर घर चला गया तैयार होने |
मैं तैयार होकर सर्किट हाउस पंहुचा फिर काफिला निकल लिया कार्यक्रमों के लिए | सबसे पहले रस्ते में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मूर्ती पर माल्यापर्ण हुआ | उसके बाद प्रतापपुरा चौराहे पर महात्मा गाँधी की मूर्ती पर माल्यापर्ण किया मुलायम सिंह यादव जी ने | फिर कलक्ट्री के पास चर्च में उनका कार्यक्रम था तथा इसाई समुदाय के साथ और उसके बाद वही स्कूल के बच्चों से मुलाक़ात थी | यहाँ से हम सीधे आगरा के प्रसिद्द गुरुद्वारे पहुचे जहा मुलायम सिह जी का स्वागत था ,उनको सरोपा भेट होना था तथा वहा मौजूद सिख समुदाय को संबोधन के बाद प्रसाद ग्रहण करना था | गुरद्वारे से हम आगरा के गृह विज्ञानं संसथान पहुचे जहा उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही लडकियो के साथ बातचीत तथा संबोधन था और वहा मुलायम सिंह जी ने महिलाओं की बराबरी ,भागीदारी ,शिक्षा तथा महिलाओं की समस्याओ पर बोले और घुलमिल कर बच्चियों से चर्चा किया | आगरा विश्वविद्यलय के गृह विज्ञान संस्थानं से हमारा काफिला आर बी एस कालेज पंहुचा जहा पहले शिक्षक समुदाय और फिर छात्रो के साथ कार्यक्रम था | यहाँ मुलायम सिंह जी ने जहा खुद शिक्षक होने के नाते लोगो को खुद से जोड़ा तो स्वयं इसी कालेज का छात्र होने की बात बता कर भावनात्मक सम्बन्ध जोड़ा तो छात्रो में खुद छात्र संघ का नेता होने का वर्णन कर उनका दिल जीता और खूब मन लगा कर पढने लेकिन देश तथा समाज में अपनी भूमिका निभाने का आह्वान भी किया |
इसके बाद यूथ होस्टल प्रेस कांफ्रेंस थी जबकि प्रेस कांफ्रेंस अधिकतर मेरे निवास पर होतीं थी लेकिन इस बार कार्यक्रम ही ऐसा बना था की यही रख दिया था | खूब सवाल जवाब हुआ और प्रेस के साथ चाय पी गई ।
इसके बाद सेंट जॉन्स कालेज में बुद्धिजीवियों के साथ कार्यक्रम था ।पूरा हाल भरा था । सेंट जॉन्स के लोग थे ही साथ ही अन्य कवियों लेखकों को भी यहा मैने आमंत्रित कर रखा था । इस कार्यक्रम में मुलायम सिंह जी ने हिंदी और स्वदेशी भाषाओं के पक्ष में जबर्दस्त भाषण दिया |
इसके बाद हम लोग आगरा में भगवांन शिव के प्रसिद्द मंदिर मनकामेश्वर मंदिर की तरफ निकले जहा मुलायम सिंह जी पूजा करनी थी | जहा ये मंदिर है वो जगह आर एस एस का गढ़ मानी जाती है और मैंने अयोध्या की गोली की घटना के बाद आगरा आने पर ये कार्युक्रम जानबूझ कर रखा था | काफी लोगो ने मुलायम सिंह जी को भड़काने और डराने का काम किया की सी पी राय आप को वहा मरवाने ले जा रहा है | वहा कुछ भी हो सकता हैं तो मैंने मुलायम सिंह जी से पुछा की मुझपर विश्वास है की नहीं और यदि है तो मैं जो भीं कार्यक्रम बना रहा हूँ वही होने दीजिये वर्ना सब रदद कर दीजिये | अंततः कार्यक्रम ज्यो का त्यों रहा | मैंने इस क्षेत्र में दो पूरे दिन बिताये थे तथा भाजपा के लोगो से भी बात कर लिया था की यदि मेरे कार्यक्रम में कोई व्यवधान हुआ तो उस वक्त जो होगा उसके जिम्मेदार वो लोग होंगे और आगे का सोच ले की उनके नेता भी शहर में आते है | इसी तरह कुछ अपनी और भी व्यवस्था उस क्षेत्र में बिना पार्टी के लोगो किन जानकारी के कर दिया था | मनकामेंश्वर मंदिर के महंत से मेरे अच्छे सम्बन्ध थे और आज भी है उनसे भी बात कर लिया था की मुलायम सिंह जी गर्भ गृह में दर्शन और पूजा करेंगे और वो आप को ही करवाना है |
हम लोग मंदिर पहुच गये | फाटक पर ही महंत जी में मुलायम सिह जी को माला पहना कर स्वागत किया और गर्भ गृह में पूजा करवाया तथा प्रसाद दिया | जिस बात का आतंक फैलाया जा रहा था उसमे सिर्फ इतना हुआ की ५/६ भाजपा की महिलाए मंदिर के पास एक घर में एकत्र हो गयी थी और वाही से हत्यारे मुर्दाबाद का नारा लगा रही थी और चूड़ियाँ फेंक रही थी | हमारे साथ की दो महिलाओं ने उन लोगो की तरफ जाने की कोशिश किया तो मुलायम सिंह जी ने रोक दिया और फिर उन महिलाओं को हाथ जोड़कर प्रणाम कर मुलायम सिंह जी गाडी में बैठ गए | अख्बर्रो के रिपोर्टर और फोटोग्राफर पूरे समय साथ थे उन लोगो वो फोटो भी खीचा की महिलाए चूडिया फेंक रही है और मुलायम सिंह जी हाथ जोड़ कर प्रणाम कर रहे है | मेरा इस ,मंदिर पर मुलायम सिंह जो लाने का मकसद पूरा हो चूका था | गाड़ी में बैठते ही मुलायम सिंह जी बोले की ये तो बहुत् अच्छा कार्यक्रम आप ने बना दिया था | आज भाजपा एक्सपोज हो गयी | लोग बेकार इस कार्यक्रम से डरा रहे थे | उन्होंने पुछा की महंत कैसे तैयार हो गए तो मैंने इस वक्त अपनी सारी बात बता दिया तब तक हम लोग जमा मस्जिद पहुच गए |
मंदिर के बाद अँधेरा हो गया था | उसके बाद मैंने मंदिर के बिलकुल बगल में जमा मस्जिद के सामने जनसभा रखा था | जन सभा में भरी भीड़ जुट चुकी थी | मेरे भाषण के बाद मुलायम सिंह जी बोलने खड़े हुए | मैंने अपने भाषण में बता दिया था की आर एस एस हिन्दू धर्म के दुशमन है और वो एक हिन्दू को मंदिर जाने से तिलमिला गए और रोकना चाहते थे ,हिम्मत नहीं पड़ी तो घर की महिलाओं को आगे कर दिया | भाइयो चूडिया कब तोड़ी जाति है ? मेरा सवाल है इन सब से की आज इनके घर की महिलाओं ने अपनी चूड़ियाँ क्यों तोडा | मुलायम सिंह जी बोलने को खड़े हुए तो बाहों पर कुर्ते की बाह सरकाया और बोले लोग शिखंडी की आड़ से शिकार करने चले है | मुलायम सिंह को डराने चले है पर मुलायम सिंह किसी से डराने वाला नहीं है सिर्फ इश्वर से डरता है | उन्होंने बहुत जोशीला भाषण दिया | जमा मस्जिद के बाद मैंने दो लोगो के घर जाने का कार्यक्रम रखा था जो मुश्किल से १० ,१० मिनट में करना पड़ा और फिर् मेरे घर खाने के बाद हम फोर्ट स्टेशन पहुच गए | हम सभी थक चुके थे पर संतुष्ट थे की मैं एर जो जो जैसे सोचा था सब वैसे हो गया | ट्रेन का इन्तजार हो रहा था तो मुलायम सिंह जी बोले की सी पी राय बुरी तरह थका दिया कुछ कम कार्यक्रम रखा करिए चाहे तो दुबारा बुला लीजिये | पर उनके चेहरे पर ख़ुशी साफ़ झलक रही थी क्योकि अयोध्या कांड के बाद आर एस एस के गढ़ में ये कार्यक्रम हुआ था |
जब पुलिस की लाठी का पहला स्वाद चखा था
समाजवादी राजनीति के पुरोधा डॉ॰ राममनोहर लोहिया के भाषा संबंधी समस्त चिंतन और आंदोलन का लक्ष्य भारतीय सार्वजनिक जीवन से अंगरेजी के वर्चस्व को हटाना था। लोहिया को अंगरेजी भाषा मात्र से कोई आपत्ति नहीं थी। अंगरेजी के विपुल साहित्य के भी वह विरोधी नहीं थे, बल्कि विचार और शोध की भाषा के रूप में वह अंगरेजी का सम्मान करते थे। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महात्मा गांधी के बाद सबसे ज्यादा काम राममनोहर लोहिया ने किया। वे सगुण समाजवाद के पक्षधर थे। उन्होंने लोकसभा में कहा था-
- अंग्रेजी को खत्म कर दिया जाए। मैं चाहता हूं कि अंग्रेजी का सार्वजनिक प्रयोग बंद हो, लोकभाषा के बिना लोकराज्य असंभव है। कुछ भी हो अंग्रेजी हटनी ही चाहिये, उसकी जगह कौन सी भाषाएं आती है, यह प्रश्न नहीं है। इस वक्त खाली यह सवाल है, अंग्रजी खत्म हो और उसकी जगह देश की दूसरी भाषाएं आएं। हिन्दी और किसी भाषा के साथ आपके मन में जो आए सो करें, लेकिन अंग्रेजी तो हटना ही चाहिए और वह भी जल्दी। अंग्रेज गये तो अंग्रेजी चली जानी चाहिये।
१९५० में जब भारतीय संविधान लागू हुआ तब उसमें भी यह व्यवस्था दी गई थी कि 1965 तक सुविधा के हिसाब से अंग्रेजी का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन उसके बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया जाएगा। इससे पहले कि संवैधानिक समयसीमा पूरी होती, डॉ राममनोहर लोहिया ने 1957 में अंग्रेजी हटाओ मुहिम को सक्रिय आंदोलन में बदल दिया। वे पूरे भारत में इस आंदोलन का प्रचार करने लगे। 1962-63 में जनसंघ भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो गया। लेकिन इस दौरान दक्षिण भारत के राज्यों (विशेषकर तमिलनाडु में) आंदोलन का विरोध होने लगा। तमिलनाडु में अन्नादुरई के नेतृत्व में डीएमके पार्टी ने हिंदी विरोधी आंदोलन को और तेज कर दिया। इसके बाद कुछ शहरों में आंदोलन का हिंसक रूप भी देखने को मिला। कई जगह दुकानों के ऊपर लिखे अंग्रेजी के साइनबोर्ड तोड़े जाने लगे। उधर 1965 की समयसीमा नजदीक होने की वजह से तमिलनाडु में भी हिंदी विरोधी आंदोलन काफी आक्रामक हो गया। यहां दर्जनों छात्रों ने आत्मदाह कर ली। इस आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने 1963 में संसद में राजभाषा कानून पारित करवाया। इसमें प्रावधान किया गया कि 1965 के बाद भी हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी का इस्तेमाल राजकाज में किया जा सकता है।
‘अंग्रेजी हटाओ’ आंदोलन को उन दिनों यह कहकर खारिज करने की कोशिश की गई कि अगर अंग्रेजी की जगह हिंदी आयेगी तो हिन्दी का वर्चस्ववाद कायम होगा और तटीय भाषाएँ हाशिए पर चली जायेंगी। सत्ताधारियों ने हिन्दी को साम्राज्यवादी भाषा के के रूप में पेश कर हिन्दी बनाम अन्य भारतीय भाषाओं (बांग्ला, तेलुगू , तमिल, गुजराती, मलयालम) का विवाद छेड़ इसे राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए खतरा बता दिया। इसे देश जोड़क भाषा नहीं, देश तोड़क भाषा बना दिया। लोहिया ने इस बात का खंडन करते हुए कहा कि स्वाधीनता आंदोलन में हिन्दी ने देश जोड़क भाषा का काम किया है। देश में एकता स्थापित की है, आगे भी इस भाषा में संभावना है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि हिंदी को राजकाज, प्रशासन, कोर्ट-कचहरी की भाषा नहीं बनाना चाहते तो इसकी जगह अन्य किसी भी भारतीय भाषा को बना दिया जाए। जरूरी हो तो हिन्दी को भी शामिल कर लिया जाए। लेकिन भारत की मातृभाषा की जगह अंग्रेजी का वर्चस्ववाद नहीं चलना चाहिए। [1]
लोहिया जब 'अंगरेजी हटाने' की बात करते थे, तो उसका मतलब 'हिंदी लाना' नहीं था। बल्कि अंगरेजी हटाने के नारे के पीछे लोहिया की एक खास समझदारी थी। लोहिया भारतीय जनता पर थोपी गई अंगरेजी के स्थान पर भारतीय भाषाओं को प्रतिष्ठा दिलाने के पक्षधर थे। 19 सितंबर 1962 को हैदराबाद में लोहिया ने कहा था,
- अंगरेजी हटाओ का मतलब हिंदी लाओ नहीं होता। अंगरेजी हटाओ का मतलब होता है, तमिल या बांग्ला और इसी तरह अपनी-अपनी भाषाओं की प्रतिष्ठा।
उनके लिए स्वभाषा राजनीति का मुद्दा नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान का प्रश्न और लाखों–करोडों को हीन ग्रंथि से उबरकर आत्मविश्वास से भर देने का स्वप्न था–
- मैं चाहूंगा कि हिंदुस्तान के साधारण लोग अपने अंग्रेजी के अज्ञान पर लजाएं नहीं, बल्कि गर्व करें। इस सामंती भाषा को उन्हीं के लिए छोड़ दें जिनके मां बाप अगर शरीर से नहीं तो आत्मा से अंग्रेज रहे हैं।
दक्षिण (मुख्यत: तमिलनाडु) के हिंदी-विरोधी उग्र आंदोलनों के दौर में लोहिया पूरे दक्षिण भारत में अंगरेजी के खिलाफ तथा हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के पक्ष में आंदोलन कर रहे थे। हिंदी के प्रति झुकाव की वजह से दुर्भाग्य से दक्षिण भारत के कुछ लोगों को लोहिया उत्तर और ब्राह्मण संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में दिखाई देते थे। दक्षिण भारत में उनके ‘अंगरेजी हटाओ’ के नारे का मतलब ‘हिंदी लाओ’ लिया जाता था। इस वजह से लोहिया को दक्षिण भारत में सभाएं करने में कई बार काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। सन १९६१ में मद्रास और कोयंबटूर में सभाओं के दौरान उन पर पत्थर तक फेंके गए। ऐसी घटनाओं के बीच हैदाराबाद लोहिया और सोशलिस्ट पार्टी की गतिविधियों का केंद्र बना रहा। ‘अंगरेजी हटाओ’ आंदोलन की कई महत्त्वपूर्ण बैठकें हैदराबाद में हुई।
तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी ने इस आन्दोलन के विरुद्ध 'हिन्दी हटाओ' का आन्दोलन चलाया जो एक सीमा तक अलगाववादी आन्दोलन का रूप ले लिया। नेहरू ने सन १९६३ में संविधान संशोधन करके हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी अनिश्चित काल तक भारत की सह-राजभाषा का दर्जा दे दिया। सन १९६५ में अंग्रेजी पूरी तरह हटने वाली थी वह 'स्थायी' बना दी गयी। १९६७ के नवम्बर माह में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रनेता देवव्रत मजूमदार के नेतृत्व में 'अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन' किया गया था जिसका असर पूरे देश पर पड़ा। उस समय इंजीनियरिंग के छात्र देवव्रत मजूमदार बीएचयू छात्रसंघ के अध्यक्ष थे। २८ नवम्बर १९६७ को मजूमदार के आह्वान पर बनारस में राजभाषा संशोधन विधेयक के विरोध में पूर्ण हड़ताल हुई। सभी व्यापारिक प्रतिष्ठान और बाजार बंद रहे और गलियों-चौराहों पर मशाल जुलूस निकले।[ विकिपीडिया ]
अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन विस्तार लेता जा रहा था और चारो तरफ फ़ैलने लगा था | उस दौर में अधिकतर स्थानों छात्र संघ चुनावो में समाजवादी पार्टी के संगठन समाजवादी युवजन सभा का कब्ज़ा हो गया था | आगरा में भी सबसे बड़े कालेज आगरा कालेज में समाजवादी युवजन सभा का अध्यक्ष था | चारो तरफ नारे लग रहे थे " अंग्रेजी में काम न होगा ,फिर से देश गुलाम न होगा '' ए बी सी डी हाय हाय " अंग्रेजी में लिखे हुए नाम पट्टिकाएं काले रंग से पातीं जा रही थी | गाड़ी स्कूटर मोटरसाइकिल जो बहुत कम थे उन पर अंग्रेजी में लिखा हुआ पोता जा रहा था |
उस दिन हमारे डिग्री कालेज के छात्रो का जुलुस इंटर कालेज को बंद करवा कर हमारे स्कूल में पंहुचा तो तुरंत छुट्टी की घोषणा कर छुट्टी कर दी गयी | वो नारे लगाने में मुझे भी मजा आने लगा और घर जाने के बजाय बस्ता टाँगे हुए मैं भी जुलुस के साथ चल पड़ा | रास्ते में सैंटजोन्स कालेज की छुट्टी करवाता हुआ जुलुस राजामंडी की तरफ बढा ,उधर से आगरा कालेज का जुलुस आ गया था | इसी बीच कुछ छात्रो ने स्टेशन पर ट्रेन पर लिखे पर रंग पोतना चाहा तो पुलिस ने खदेड़ लिया तो उन लोगो ने ट्रेन पर पथराव कर दिया और राजामंडी बाजार की तरफ भाग आये इस भगदड़ में कुछ अफवाह फैली तो बाजार के शटर गिराने लगे दूकानदार लोग और पुलिस को लगा की छात्रो ने बाजार में कुछ कर दिया है | फिर क्या था लाठीचार्ज शुरू हो गया | मैंने शोर्ट कट जो राजामंडी आने के लिए इस्तेमाल होता था हमाड रे घर की तरफ से वो पटरी का किनारा पकड लिया पर मुझे पता नहीं था की उधर कुछ छात्र कांड कर आये थे और उसी से अफरा तफरी मची थी | एक सिपाही ने मुझे दौड़ा लिया | मैं स्कूल की यूनिफार्म नीली शर्ट और खाकी नेकर में था और बस्ता भी था तो मैंने उससे कहा की मैं तो स्कूल में पढता हूँ तो वो बोला की की स्कूल में पढ़ते हो तो आर बी एस स्कूल तो उधर है फिर इधर क्या कर रहे हो और मैंने तुम्हे नारा लगाते देखा था | फिर मैंने भागना चाहा पर तब तक उसकी दो लाठी मुझे पड गयी थी और ये पुलिस की लाठी का पहला स्वाद था | घर पंहुचा तो पिता जी ने पुछा की स्कूल की तो छुट्टी हो गयी थी तो कहा चले गए थे | मैंने बता दिया की जुलुस में गया था तो बहुत डाट पड़ी और जब मैंने बताया की पीठ में चोट लगी है तो उसपर हल्दी लगाईं गयी और ये लेक्चर मिकला की आन्दोलन तो सही बात के लिए हो रहा है औरे डा लोहिया की बात सरकार को मान लेना चाहिए पर तुम्हारी उम्र अभी आन्दोलन में जाने की नहीं है |
आन्दोलनों जो होता रहा है वही इस आन्दोलन का भी हुआ | पर जब बड़ा हुआ तो समझ में आया की ऐसे तमाम आन्दोलन में जा जाने कितना पढाई का नुक्सान हुआ ,काफी सम्पत्तियों का नुक्सान हुआ ,न जाने कितने छात्र जेलों में गए ,उनकी जिन्दगिया बर्बाद हुयी पर हुआ क्या | डा लोहिया जैसे सिद्धांतवादी और इमानदार बाकी लोग साबित नहीं हुए | अंग्रेजी के खिलाफ आन्दोलन करने वाले अधिकांश लोग और राजनीतिक दल तथा संगठन बाद में उसी अंग्रेजी का प्रयोग कर रहे है और अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल तथा कालेज में पढ़ा रहे है | अक्सर देखा जाता है की हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी वाले ज्यादा सफल हो जाते है | कम्यूटर के खिलाफ आन्दोलन करने वाले सभी उसी का प्रयोग कर रहे है | मैं पलट कर देखता हुआ तो अधिकांश आन्दोलन का चरित्र ऐसा ही निकला | क्या छात्र हो या अन्य सभी का सिर्फ प्रयोग कर लिया गया राजनीतिक उद्देश्यो से ?
गंगीरी का सम्मेलन युद्ध का मैदान था
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शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2024
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शनिवार, 12 अक्तूबर 2024
लाटरी फाड़ो आंदोलन और फिर खात्मा
शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2024
जयपुर कानक्लेव
अयोध्या आंदोलन
गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024
ग्रेटर आगरा और भी बहुत कुछ
अपने समाज के लोगो के लिए ये घटना तो नफ़रत बांटने वाले और आतंक की खेती करने वाले पाकिस्तानियों के लिए भी ये घटना जब एक पाकिस्तानी बच्चे को मैने खून दिया था ।
जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ से मैंने एक मांग मनवा लिया था
बुधवार, 9 अक्तूबर 2024
कारगिल शहीदों का परिवार और १० लाख पर आयकर का नोटिस
मंगलवार, 8 अक्तूबर 2024
1993 क्या चुनाव , टिकेट पर जद्दोजहद और घटनाएं ।
#ज़िंदगी_के_झरोखे_से
वो आये बैठे और बोले की कितने राय रहते है इस क्षेत्र में और उठकर चले गए | वो यानी रामगोपाल यादव |
१९९३ का चुनाव था | काफी पहले ही मुलायम सिंह यादव जी का काशीराम जी से समझौता हो चूका था तो मैंने आगरा में आगरा कैंट सीट के जातिगत और धार्मिक समीकरणों को देखते हुए और जीत की गारंटी को देखते हुए एक साल में बाकि जगहों पर काम करते हुए विशेषकर इस इलाके में बिना किसी को एहसास करवाए हुये की मैं चुनाव लड़ना चाहता हूँ सभी पोलिंग बूथ पर लोगो को कर्यत्क्र्ता बना लिया था और इस पूरे क्षेत्र में काफी कार्यक्रम कर लिए थे | एक रोज इफ्तार भी किया था जिसमे हजारो अल्पसंख्यक समुदाय के लोग जुटे थे और एक कार्यक्रम चलाया था की होली दिवाली मिलन मुस्लिम इलाको में और ईद मिलन हिन्दू इलाको में करवाया था तथा और बहुत से कार्यक्रम कर दिए थे | इस क्षेत्र में केवल दलित और मुस्लिंम वोट ही जितने के लिए काफी थे इसके अलावा ब्राह्मण समुदाय के कार्यक्रमों में म एरी काफी भागीदारी रहती थी और तटस्थ रहने वाला वर्ग जो हमेशा छवि देखकर वोट देता है ये सब मिला कर भारी जीत का विश्वास था | यूँ तो न जाने कितने लोगो कोम टिकेट मेरे कारण मिला पर प्रक्रिया पूरी करने को मैंने भी टिकेट के लिए आवेदन कर दिया था |
उस दिन लखनऊ के पार्टी कार्यालय में उत्तर प्रदेश की संसदीय बोर्ड की बैठक थी | प्रदेश के अध्यक्ष रामसरन दास जी और बोर्ड के सचिव बलराम यादव ,भगवती सिंह सहित सभी सदस्य मौजूद थे | रामगोपाल यादव जी भी बैठक में आकर बैठ गए | पहले आगरा मंडल का नंबर था और उसमे आगरा का | रामसरन दास जी ने बलराम यादव से कहा की क्या सी पी राय ने किसी सीट के लिए आवेदन किया है तो बलराम यादव ने लिस्ट देखकर कहा की हा आगरा कैंट के लिए आवेदन किया है तथा आगरा मंडल की सीटो पर उनकी भी एक लिस्ट है टिकेट के लिये | इसपर रामसरन दास जी बोले फिर विचार क्या करना सी पी राय की सीट फाइनल किया जाए और उनकी लिस्ट को भी रिकमेंड कर नेता जी {यानी मुलायम सिंह जी} को भेज दिया जाये | इसपर रामगोपाल जी ने कड़े तेवर से कहा की कितने राय है आगरा में की सी पी राय की सीट फाइनल कर रहे है और उनकी लिस्ट क्यों रिकमेंड कर रहे हो बिना विचार किये और दूसरे नाम देखे हुए | फिर क्या था रामगोपाल जी मुलायम सिंह यादव के भाई कहलाते थे तो बोर्ड ने तय किया की सब मुलायम सिंह यादव जी पर छोड़ दिया जाए |
जब रामसरन दास जी और भगवती सिंह जी ने ये बात मुझे बताया तो मैं मुलायम सिंह यादव जी से मिला और उनको बताया की मैंने उस क्षेत्र में क्या क्या किया है और क्यों मैं चुनाव जीत जाऊंगा | मैंने कहा १९८९ में आप ने ये कह कर मुझे टिकेट नहीं मिलने दिया था की मैं आप का चुनाव देखु और आप के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद विधायक क्या होता है मैं उससे बड़ा बन जाऊँगा और क्या हुआ ये आप भी जानते है और मैं भी जबकि तब संसदीय बोर्ड में बहुमत मेटे पक्ष में था | मुलायम सिंह यादव जी बोले की वो तो बीत गया पर आप के लिए मेरे दिमाग में बड़ी चीज है जो पिछली बार मैं नहीं कर पाया पर इस बार या तो वो करूँगा या फिर यहाँ आप को अपने साथ रखूँगा मंत्री बना कर | वो बोले की मेर्रे आलावा आप की इस पूरे इलाके में सभाए लगती है तथा आप और भी काम सम्हालते है ऐसे ,मे आप एक सीट पर अपने लिये फंस जायेंगे तो ५० सीट का नुक्सान होगा पार्टी का | आप मेरे ऊपर भरोसा रखो आगे सरकार बनेगी तो सब अच्छा होगा और मुझे मन मार कर मान लेना पड़ा |
टिकेट के बटवारे की कवायद शुरू हो गयी | प्रदेश महामंत्री का काम करने के साथ मैं देश भए में और प्रदेश भर में तो मुलायम सिंह जिन के साथ दौड़ता रहता था पर आगरा मंडल जिसमे तब अलीगढ मंडल भी था और इटावा के हर छोटे से छोटे कार्यक्रम मे रहता था इसलिए हर विधान्सभा के बारे में पूरी जानकारी थी | मुलायम सिंह यादव जी के घर के अन्दर से बाहर तक मजमा लगा रहता था | एक दिन मुलायम सिंह यादव जी लोहिया ट्रस्ट में मीटिंग कर रहे थे और मैं उनके घर के ड्राइंग रूम में उनका इन्तजार कर रहा था ,तभी रामगोपाल जी ने आगरा मंडल के लोगो के नाम पुकारना शुरू किया और कहा की इनमे से जो जो भी हो आ जाए |लोग आते गए और वो उन लोगो को बी फॉर्म यानी टिकेट देने लगे | मैंने उन लोगो को देखा तो चौंका और धीरे से निकल कर लोहिया ट्रस्ट पहुच गया | मुलायम सिंह जी अपने कमरे से बाहर निकल रहे थे तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया की ये रामगोपाल जी क्या कर रहे है ,एक से एक वाहियात और गलत लोगो को टिकेट दे रहे है | मुलायम सिंह जी ने पुछा क्या बी फॉर्म दे दिया है तो मैंने एक दो नाम लेकर कहा की हा और वो लोग अभी आप के घर पर ही है | मुलायम सिंह जी ने कहा किन हाथ छोडिये मैं चल कर देखता हूँ | मैं जानबूझ कर उनकी गाडी मेर जाने के बजाय पैदल ही चला गया कत्रीब दौड़ता हुआ | मुलायम सिंह जी घर पहुचे और पुछा की रामगोपाल किस किस को बी फॉर्म दे दिया जरा बुलाओ सबको तो उनके स्टाफ ने आवाज लगाया की जिस जिस को बी फॉर्म मिल गया है नेता जी बुला रहे है तो सभी आ गए तो मुलायम सिंह जी सबसे बी फॉर्म मांग लिया और बगल में रख लिया की बी फॉर्म बाद में मिलेगा । सबके चेहरे लटक गए । मुलायम सिंह यादव जी ने कहा कि अभी आप लोग जाओ बाद में बुलाएंगे । इसके बाद फिर मैं आगरा आ गया मुझे चिंता थी कि जिस सीट पर मुझे लड़ना था उसपर जीतने वाला उम्मीदवार हो या कम से कम सम्मानजनक लड़ाई हो । अभी रामगोपाल जी ने पता नही किसके कहने पर एक ऐसे आदमी को टिकट दे दिया था जो सदर के चौराहे पर अंडे की तेल पर रोज शाम को शराब पीता था । वह किसी तरह कैंट क्षेत्र के एक क्षेत्र से सभासद का चुनाव जीत गया था अपनी बिरादरी के उस क्षेत्र में वोट होने के कारण ।
अगल एपिसोड में में लिख चुका हूं की किस तरह मैने कांग्रेस के कई बार के विधायक जो कृषि मंत्री रह चुके थे डा कृष्णवीर सिंह कौशल और इस चुनाव में भी कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे और टिकेट मिलने की उम्मीद में अपना पर्चा भरने आगरा की कलक्टरी में राजीव गांधी जिंदाबाद का नारा लगाते हुए आए थे और सीढ़ियों पर मेरी उनकी बात हो गई तो उन्होंने कांग्रेस का पर्चा जेब में रख लिया और समाजवादी पार्टी के नाम का नया पर्चा भरा तथा कांग्रेस का झंडा जेब में रखकर वापस मुलायम सिंह यादव जिंदाबाद का नारा लगाते हुए बाहर निकलने लगे तो पूरी कलेक्टरी संन्न देख रही थी ये अनोखा दृश्य जो पहले कभी नही देखा था । उन्ही के साथ फतेहपुर सीकरी क्षेत्र के एक ब्लॉक प्रमुख भी आ गए और उनके सब समर्थक भी । डा कौशल ने सिर्फ एक सवाल पूछा था की कही समाजवादी पार्टी का टिकट भी नही मिला तो बहुत बदनामी हो जाएगी तो मैने कहा की समझ लीजिए टिकेट मिल गया l कल मेरे साथ लखनऊ चलिए और बी फॉर्म लेकर आइए । घर लौट कर मैने मुलायम सिंह यादव जी को बता दिया की कांग्रेस के इस दिग्गज नेता को मैने तोड़ लिया है तो वो बहुत खुश हुए और बोले की वो अगर जीत गए तो वो तो विधान सभा अध्यक्ष के लायक है। आप उन्हें लेकर आ जाओ ।
मैं अगले दिन डा कौशल और अन्य अपने लोगो को लेकर लखनऊ पहुंच गया । मुलायम सिंह जी के घर के ऊपर वाले हिस्से में दाहिनी तरफ के कमरे में मुलायम सिंह जी बैठे और और रामगोपाल जी भी थे । मुझे और डा कौशल को भी वही बुला लिया । पहले उन्होंने डा कौशल के पार्टी में आने पर खुशी जाहिर किया तथा उनके सामने भी कहा की आप जीत कर आइए आप को स्पीकर बनाऊंगा । उनका बी फॉर्म देने का आदेश रामगोपाल जी को दिया और जब उनको बी फॉर्म मिल गया तो मुलायम सिंह जी ने कहा की डाक्टर साहब आप नीच ड्राइंग रूम में बैठिए और चाय पीजिए क्योंकि अब हम लोग कुछ और बाते करेंगे ।आप को राय साहब के साथ जाना हो तो इंतजार करिए वरना आप वापस आगरा अपनी तैयारी में लिए जाना चाहे तो चले जाइए । जब पर्चा भरेंगे तो मैं सी पी राय को भी भेज दूंगा ।
डा कौशल के जाने के बाद हम तीन लोग ही रह गए और अब बाकी सीट के नामों की चर्चा शुरू हो गई । मैने कहा की सबसे पहले चंद्रभान मौर्य विधायक जिनको मैं रामगोपाल जी के राज्यसभा चुनाव में जनता दल से तोड़ कर लाया था उनका टिकेट तो जारी कर देना चाहिए ।तो उनका बी फॉर्म मुझे दे दिया गया । फिर मैंने फतेहपुर सीकरी क्षेत्र के लिए ब्लॉक प्रमुख रामनिवास शर्मा का नाम प्रस्तावित किया तो मुलायम सिंह जी उखड़ गए की वो सीट मिनी छपरौली कहलाती है और हमेशा वहा से जाट ही जीता है तो आप वहा ब्राह्मण क्यों लड़ाना चाहते है ।तो मैने कहा की इसीलिए क्योंकि ब्राह्मण वहा दूसरी बड़ी जाती है और मुस्लिम भी काफी है और काशीराम जी के कारण दलित मिल जाएंगे और ये जीत जाएंगे । मुलायम सिंह जी बहुत संतुष्ट नहीं थे पर कोई बहुत मजबूत और नाम वाला जाट भी हमारे पास नही था तो अनमने भाव से मान गए ये कहते हुए की जिम्मेदारी आप की है ।मैने कहा की पूरी जिम्मेदारी से ये टिकेट में दिलवा रहा हूं पर आप को वहा सभा का टाइम देना पड़ेगा । मुलायम सिंह जी ने कहा की आप तय कर के लिस्ट बना लीजिए की कहा कहा जीत की ज्यादा सभवना है जहा मेरी सभा जरूरी है । इसके बाद एक एक सीट पर मेरे और रामगोपाल जी के बीच जद्दोजहद होती रही । कभी मुलायम सिंह जी मुझे समझाते तो कभी रामगोपाल जी को । सिकंदराराउ पर मैं अमर सिंह यादव को टिकट चाह रहा था की वही जीतेगा और रामगोपाल जी एक फतेह सिंह को पर अमर सिंह का टिकट हो गया । मेरे सारे सुझाव मान लिए गए पर एक अलीगढ़ की सीट गंगीरी पर रामगोपाल जी एक पैसे वाले महेश यादव को टिकट देना चाह रहे थे पर मैं पार्टी के दो पीढ़ी से वफादार और जमीन पर मजबूत वीरेश यादव को देना चाह रहा था । वीरेश यादव को टिकट देने के पीछे भी ये कारण था की में गंगिरी में समेलन में हिस्सा लेकर आया था । (गगीरी सम्मेलन के बारे में अलग एपिसोड में लिखूंगा ) इस मामले में मुलायम सिंह जी का झुकाव रामगोपाल जी के उम्मीदवार की तरफ देख कर मैने एक। राय दिया की अभी किसी को भेज कर जोर से कहलवा दिया जाए की गंगिरी में वीरेश का टिकट हो गया और उसके बाद अगर चार घंटे भी महेश यादव रुका रह जाए तो उसे टिकेट दे दिया जाए । एक आदमी को भेजा गया और भीड़ में उसने जोर से यही बोल दिया । इतना सुनते ही महेश यादव वहा से चला गया और बाद में मालूम हुआ की उसने कुछ घंटे में ही जानता दल ज्वाइन कर लिया ।इस पूरे एपिसोड में रामगोपाल जी मुझसे बहुत खफा हो गए जबकि मैने जो जो किया वो सिर्फ पार्टी के हित में किया था । ये दोनो मेरे उम्मीदवार जीत गए , चंद्रभान मौर्य भी जीत गए और भी लोग जीते और जो हारे वो बहुत नाम मात्र के वोट से हारे ।
चुनाव शुरू हो गया और मेरी व्यस्तता बहुत बढ़ गई । रोज तमाम सभाएं लगने लगी पर मैं डा कौशल के क्षेत्र में ये सोच कर नही गया की वो खुद कई बार विधायक और मंत्री रहे है ,बड़े नेता है तो अपना चुनाव तो वो खुद सम्हाल लेंगे लेकिन एक दिन उन्होंने मुलायम सिंह जी को फोन किया की वो मुझसे कह दे की मैं उनके इलाके में समय दे दूं , सभाएं भी कर दू तथा पार्टी के लोगो को भी उनसे जोड़ सुन । तब मुझे उनके क्षेत्र में कुल छोटी बड़ी 12/13 सभाएं करनी पड़ी और चार कार्यक्रता बैठक लेनी पड़ी । ऐसी ही मांग हर जगह से थी ।
एक दिन आगरा से फिरोजाबाद तक सुबह से रात तक काफी सभाएं लगा लिया लोगो ने ।आगरा के सभी विधान सभा क्षेत्र में कही एक कही दो सभाएं करता हुआ मैं जब फ्री हुआ तो तुमडला और फिरोजाबाद की सभा बची हुई थी । टुंडला बाजार में में रात को 10 बजे पहुंचा और फिर फिरोजाबाद में रात 11 के बाद पर फिरोजाबाद मे हमेशा ही सभाएं रात को देर से शुरू होती रही है और सुबह 3/4 बजे तक चलती रही है ।पहले सभाओं इत्यादि को लेकर इतनी सख्ती और मुकदमे नही होते थे बल्कि चुनाव उत्सव की तरह होता था ।
फिरोजाबाद में ही मेरा एक सभा में एक डेढ़ घंटे का कैसेट बन गया था जिस सभा में में डेढ़ घंटे से ज्यादा बोला था और फिर आजम खा साहब ये कह कर की कुछ कहने को बचा ही नहीं केवल बीस मिनट बोले थे । वहीं मेरा भाषण का कैसेट 45 रुपए में 1993 के चुनाव में प्रदेश कार्यलय से प्रदेश भर में बिका था और हर जगह पूरे टाइम बजता सुना जा सकता था । फिरोजाबाद में लोकप्रिय था तो लोग इंतजार कर रहे थे । ज्यो की मेरी कार की लाइट दिखलाई पड़ी लोग शोर करने लगे की आ गए आ गए । लोगो हाथ से मिलाता किसी तरह मंच पर पहुंचा ।भाषण शुरू हुआ । उस वक्त मेरे भाषण का कुछ ऐसा जुनून था की भाषण थोड़ा होता और फिर नारे शुरू हो जाते । एक बार कुछ जोश की बात कह मैने हाथ ऊपर से नीचे किया तो मंच पर माइक के बगल में बैठे एक बहुत बुजुर्ग ने मेरा हाथ पकड़ लिया ।में। तोड़ विचलित हुआ पर भाषण जारी रखा । देख की वो मुझे अंगूठी पहना रहे थे । डा कौशल अपने मंत्री काल में लोगो से दूर हो गए थे जिसके कारण मेरी जीत जाने वाली सीट भी करीब तीन हजार से हार गए और फतेहपुर सीकरी में रामनिवास शर्मा ढाई हजार से इसलिए हार गया क्योंकि हेलीकॉप्टर में कुछ दिक्कत होने के कारण मुलायम सिंह जी की सभा नही लग सकी और काफी मुस्लिम वोट जनता दल में भी चला गया । पर सपा बसपा का गठबंधन जीत गया था ।मेरे अधिकतर उम्मीदवार जो नही जीते वो भी अच्छा और सम्मानजनक लड़े और हमारी सरकार आ गई तथा मुलायम सिंह यादव जी मुख्यमंत्री बन गए । (इस बीच की बहुत सी घटनाएं अलग एपिसोड में होगी या फिर झलकियों के रूप में होगी ।