गुरुवार, 31 अक्तूबर 2024

राम तुम आवोगे न

#राम_तुम_आवोगे_न । 

राम ! तुमको खोजते खोजते पीढ़ियां खत्म होती जा रही है पर तुम हो कि सुन ही नहीं रहे हो । पता नहीं कही कुंभकर्ण की नीद लेकर सो रहे हो  या पृथ्वी पर रहने वालो से रूठ गए हो  । कही अभी भी वन वन भटक तो नहीं रहे हो राम ?  या सरयू में गए थे यो उसके नीचे ही कही अनंत काल के लिए समाधिस्त हो गए हो ।  सरयू के नीचे ही कोई रास्ता तो नहीं मिल गया पाताल लोक का और पृथ्वीवासी धोबी की बातों से बाद में व्यथित हो गए और तय कर लिया कि अब पृथ्वी पर कभी नहीं आओगे और आओगे तो जब कभी सतयुग आ जायेगा तभी आओगे । कही सरयू में समाधि लेने के बहाने सरयू में डूब कर उस पार तो नहीं निकल गए जहां कोई उड़ान खटोला तैयार था तुम्हे स्वर्ग लोक ले जाने को । 

क्या इतने करोड़ी लोगों की पूजा पाठ ,मंदिरों और तीर्थ स्थलों पर जाना और राम आयेंगे सहित तमाम कीर्तन और भजन तुमको सुनाई नहीं पड़ते और लोगो की यात्राएं और मंदिरों में धक्के खाना , तीर्थ स्थलों की और मंदिरों की भीड़ में तुम्हारे  सहित किसी भी ईश्वर को ढूंढने और पाने की जिद में प्राण तक गंवा देना क्या तुमको भावुक नहीं करता है ? क्या राम अपने ही बच्चों और चाहने वालों से अब प्यार नहीं करते हो ? क्या अब राम तुमको अनीति , राक्षसी प्रवृति ,पाप और अत्याचार से कोई तकलीफ नहीं होती है ? क्या अब तुमको  पत्थर बन गई  अहिल्याओ पर तरस नहीं आता है ? पहले तो एक शबरी थी तो उसका उद्धार करने पहुंच गए थे और आज करोड़ी शबरी अपने उद्धार का इंतजार कर रही है , वो इंतजार कर रही है खुद के इंसान बनने का एहसास होने का पर राम तुम देख ही नहीं रहे हो । वो केवट भी तो कब से इंतजार कर रहा है कि उसकी नाव पर कोई राम भी उस पार जाए और उसको भी भवबाधा से उसपर ले जाए । बाली भी तब तो एक था पर अब तो कितने लाखों हो गए है पर पता नहीं उनके घर में कोई सुग्रीव है भी या नहीं ? पहले तुम्हारी पत्नी सीता का हरण हो गया था तो सोने को लंका जलाने चले गए थे और आज तो हर रोज हजारों सीताओं का हरण हो रहा है राम फिर भी आप चुप हो और कही छुपे हुए हो । 

राम तुमको तो राजपाट मिल गया था ।अगर तुम पिता की बात नहीं मानते तो राजा रहते । अगर तुम्हारी मां कौशल्या कैकेई से लड़ लेती और मंथरा को डांट देती और रूठ जाती तुम्हारे पिता दशरथ से तो भी दशरथ कैकेई की बात मानने को मजबूर होते क्या ? अगर तुमने लक्ष्मण ,भारत और शत्रुघ्न की मीटिंग बुला लिया होता और उनके सामने  ये वन गमन की बात नीति और अनीति के आधार पर कहा होता तो वो लोग ही एकमत होकर कह देते कि राम ही राजा रहेंगे बस राज में उन सबको जागीरदारिया और हिस्सा देना पड़ता ।।फिर राम तुम तो अजीब निकले कि तीन तीन राज ठुकरा दिया । पहला अयोध्या का दूसरा बाली का और तीसरा सोने की लंका रावण की । अगर राज से मोह नहीं था तो फिर वापस अयोध्या ही क्यों आए ? और अयोध्या के राजा नहीं बने होते तो न सीता से साथ छूटता और न बेटे लव और खुश से ही । राज तो तुम कही भी कायम कर लेते और इस तरह विषाद में सरयू में डूबना भी नहीं पड़ा होता । राम अगर तुम इस युग में आ जावोगे क्या तब भी वैसा ही सब करोगे ? इस युग में तो लोग तुम्हारा ही राज छीन लेगे । देखो न तुम्हारे नाम पर राज पाने और छीनने के लिए क्या क्या हो रहा ही ।तुमने त्याग दिया था राज तीन तीन जगह पर तुम्हारा नाम लेने वाले सब पा लेना चाहते है चाहे जैसे भी ।तुमने एक सीता के हरण के कारण सोने की लंका जला कर खाक कर दिया था और रावण को मार दिया था पर अब तो रोज हजारों सीताओं का हरण हो रहा है पर रावण का कुछ  बिगड़ना तो दूर वो सत्ता पार्टी में शामिल होकर महान हो जा रहा है । तुमने एक नागरिक की आलोचना पर सीता को घर से निकाल दिया पर अब तो सच वाली आलोचना पर लोग जेल में भेज दिए जा रहे है ।राम इस युग में इस धरती पर इस भारत में तुम बहुत संकट हे हो । 

पहले तो एक रावण था राम पर आज तो जला जला कर लोग परेशान हो गए । पहली जितने सिर कटते थे उतने उग जाते थे और आज जितने हर साल जलाते जाते है उसके कई गुना हर साल पैदा हो जा रहे है रावण ।पहले तो तुमको विभीषण मिल गए थे राम जिसने रहस्य बता दिया था कि नाभी में वाण मारो वही अमृत है और तुम कामयाब रहे थे उस रावण को मारने में पर अब तो कोई विभीषण है नहीं जो रहस्य बता सके कि आज के रावणो की नाभि कहा है और कौन सा अमृत कहा छुपा है जिसके कारण ये खत्म नहीं होते बल्कि फैलते जा रहे है दिन दूनी रात चौगुनी गई से ।

राम वैसे तुम भी खूब फैल गए हो चट्टी चौराहे पर करोड़ों की तादात में अपनी किस्म किस्म की बेजान मूर्ति के रूप में अपने छोटे से बड़े मंदिरों के रूप में । तुम देखते तो होगे कि तुमको कैसी कैसी पोशाक पहनाई जाती है । तुमको कैसे कैसे भोग लगाए जाते है । राम इसमें से तुम कुछ खा पाते हो या पुजारी फौज ही सब खा जाती है तुम्हारे नाम पर । अरे हा राम बहुत दुख हुआ था मुझे जब पता चला कि तुम बीमार हो गए हो । पता तो ये था कि तुम सबको ठीक करते है और सब तुमने है सब तुमसे है पर कैसी दुनिया और कैसे अपने चाहने वाले बना दिए तुमने की उस दिन डाक्टर आला लगा कर तुम्हारा बुखार देख रहे थे । पर ये पता नहीं लगा कि तुमको दवाई क्या दिया डाक्टर ने राम । जरा मुझे भी धीरे से बता देना कि क्या दवाई खाया तुमने और उससे पूरी तरह ठीक हो गए या नहीं ।वैसे पुजारी ने डाक्टर को बुलाया था तो कहा था कि भोग में कोई दूषित खाना या ठंडा खाना खाने से बीमार हो गए राम तुम । क्या राम तुम भी बीमार होते हो ?जब तुम भी बीमार होते हो तो तुममे और आम मनुष्य में क्या अंतर है ? जब तुम भी खाने से बीमार हो जाते हो तो आश्चर्य होता है कि क्या तुम भी नहीं जान पाते हो कि क्या खाद्य है और क्या अखाद्य ? वैसे राम तुमको उन मंदिरों में खड़ा रहना कैस लगता है । पत्थरों के बन गए राम तुम तो सांस कैसे लेते हो और इतने भारी भरकम वास्ते तुम्हारे ऊपर बोझ तो नहीं लगते है राम ? 

अभी अभी तुम्हारा बहुत भव्य मंदिर बना है बड़ी मुश्किल से । राम तुमको भी न्याय अदालत से जाकर मिल पाया है ।लोग तुम्हारी अदालत में जाते है न्याय पाने पर तुम खुद न्याय के लिए तरस गए सालों  तक । वैसे क्या सचमुच ये न्याय तुम्हारे लिए ही हुआ है ? क्या सचमुच इस न्याय का इंतजार कर रहे थे अदालत के दरवाजे पर खड़े हुए । कितना आंदोलन हुआ तुम्हारे लिए और कितने दंगे हुए राम तुम्हारे लिए । कितने लोग मारे गए राम तुम्हारे लिए ,कितनी संपत्ति नष्ट हुई राम तुम्हारे लिए । राम तुम ये सब होते देख रहे थे तटस्थ भाव से ? क्या सचमुच तुमने ये सब देखा और होने दिया अपनी स्वीकृति से ? इस दंगों में तो राम वो सब भी हुआ जिसके खिलाफ रहे हो तुम ऐसा बताता जाता है। वैसे राम क्या ये सच है कि तुम ईश्वर हो और अब तुम्ही रचते हो तो क्या ये सब भी तुमने ही रचा है ।

राम अब तुम एक भव्य मंदिर में भी बैठा दिए गए हो पर हमें तो पता था कि तुम गोरे हो तो उस मंदिर में काले क्यों हो गए ? शंकराचार्य लोग तो कहते है कि तुम्हारा मंदिर अधूरा है और अधूरे घर में तुम्हे विराजमान नहीं करना चाहिए था क्योंकि तुम नीचे बैठे हो और तुम्हारे ऊपर मजदूर चढ़ कर ऊपर का निर्माण करते रहेंगे ।तुम्हे बुरा तो नहीं लग रहा हैं न राम । बारिश में तुम्हारे ऊपर पानी टपकने लगा तुम भीग तो नहीं गए राम ? वरना तुम फिर बीमार हो जाओगे और डाक्टर बुलाना पड़ेगा और तुमको दवाई खाना पड़ेगा ।तुम्हारे नाम पर किरण जुल्म हुआ है राम और तुमको कितना बड़ा घर चाहिए कि तुम्हारा घर बनाने के लिए सैकड़ों लोगों के घर और दुकानें उजाड़ दी गई । जमीन की खरीद फरोख्त में भी खूब भ्रष्टाचार किया गया राम । क्या इन बातों से तुम्हे अब कोई फर्क नहीं पड़ता है ? 
राम तुमने अपनी वो फोटो तो देखा होगा जिसमें तुम्हारी उंगली पकड़ कर कोई ले जा रहा है छोटे बच्चे से तुम और बहुत बड़ा वो आदमी जिसकी उंगली के सहारे तुम चल रहे हो राम । कलयुग इसीलिए बना क्या राम की तुमको लोगो के सहारे की जरूरत होगी और सत्ता की सीढ़ी बन जावोगे तुम तो भ्रष्टाचार का आधार बन जावोगे तुम । रात तुम्हे कैसा लग रहा है रावणो की फौज के बीच असहाय दिखना और किसी आम इंसान की उंगली के सहारे चलना । जीते जागते इन्सान या देव के बजाय पत्थरों में कैद होना । क्या राम अब तुम्हे वो क्रोध भी नहीं आता जब तुमने समुद्र को सुख देने के लिए बाण प्रत्यंचा पर खींच लिया था । राम क्या तुम सचमुच असहाय हो गए हो या आम इंसान से भी पीछे की चीज हो गए हो या लंका की एक लड़ाई से इतना थक गए हो कि लाखों साल के विश्राम पर हो या धोबी से आहत होकर रूठ गए हो या सीता जब साथ किए गए अपने व्यवहार से इतना शर्मिंदा हो कि कही छुपे हो कि चाहे जो हो जाए तुम नहीं आवोगे या अपनी शक्ति और देवत्व भूल गए हो राम ? 

कुछ तो बोलो राम ! तुम हो भी या केवल कल्पना हो । अगर हो तो आवो लाखों रावण निर्द्वंद जो चाह रहे है कर रहे है उनका संहार करो ।अगर सचमुच हो तो आओ और आज की अहिल्याओं का ,सीताओं का और करोड़ी शबरी का उद्धार करो । 

राम तोड़ दो बेड़ियां , निकल आओ बाहर पत्थरों से और इन करोड़ी कैदखानों से और बता दो कि तुम थे ,तुम हो और तुम ही रहोगे । 
राम आवोगे न ? 

रविवार, 27 अक्तूबर 2024

युवा आंदोलन , परिणाम

हमें याद है युवा आंदोलन और उसकी आवाजे क्योकि हम उसका हिस्सा रहे है ।
1967/68 अंग्रेजी हटाओ आंदोलन ( बहुत दिनों तक नारा लगता रहा - अंग्रेजी में काम न होगा फिर से देश गुलाम न होगा )
परिणाम ?????% अंग्रेजी बढती गयी और आंदोलन करने वाला छात्र और नौजवान छला गया ।
1975 जयप्रकाश आंदोलन , कुर्सी खाली करो की जनता आती है , संघर्ष हमारा नारा है ,भावी इतिहास हमारा है , और सत्ता नही व्यवस्था परिवर्तन करना है ।
परिणाम- बस सत्ता बदली और नौजवान फिर छला गया । पढाई और रोजगार का नुकसान हुआ ।
1989 राजा नहीं फ़कीर है देश की तकदीर है ।
परिणाम - एक और सत्ता परिवर्तन और नौजवान से बस छलावा ।
से लेकर 2014 - अच्छे दिन ,2 करोड़ रोजगार ,15 लाख ,गुजरात मॉडल तक 
कब तक नौजवान केवल लोगो को सत्ता दिलवाने का हथियार बनता रहेगा ? इस उम्मीद में की शायद अब उसके लिए अच्छे दिन आएंगे ।
नौजवान भावना में बह कर केवल अपनी जिंदगियां ख़राब करता रहा है ।
नौजवानों कब चेतोगे और एक फैसलकुन फैसला करोगे सचमुच के व्यवस्था परिवर्तन के लिए ,समाज परिवर्तन के लिए ,गैर बराबरी ,भ्र्ष्टाचार और धोखे से मुक्ति के लिए ।
नहीं चेते तो बस किसी न किसी के नारे लगाते रहोगे और अपनी जिंदगी में हारते रहोगे उन लाखो की तरह जो तुमसे पहले हार कर बूढा गए है भरी जवानी में ।
और तुम्हारी जगह फिर नए नौजवानो की फ़ौज तैयार हो जायेगी किसी का आंख बंद कर और जूनून के साथ नारा लगाने को और वो कुर्सियों पर बैठते रहेंगे ।
पर व्यवस्था कभी नहीं बदलेगी ,समाज कभी नहीँ बदलेगा और तुम भी कभी नहीं बदलोगे ।
या फिर खूब चिंतन कर एक बार खड़े हो जाओ और आने वाली पीढ़ियों को मुक्त कर दो इस छल से और उसका रास्ता सुगम बना दो ।
( एक  सफर का चिंतन पर पता नहीं क्यों और कितनी भृकुटियां तन जाएँगी मुझपर जिसकी मैंने कभी चिंता नहीं किया क्योंकि सच जिन्दा रहना चाहिए --- क्योकि मेरी आँखों में कुछ सपने है )
जय हिंद
#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2024

जब मैने आडवाणी जी को गिरफ्तार करने को कहा था । काश ये हो गया होता ।

जब मुख्यमंत्री मुलायम सिंह जी को रात को जगा कर मैने कहा था कि आडवाणी जी को आगे न जाने दे रूरा स्टेशन पर गिरफ्तार कर किसी गेस्ट हाउस में रख दे । 
लालकृष्ण आडवाणी जी ने अपनी रथयात्रा की घोषणा कर दिया था और सोमनाथ से यात्रा शुरू करने के लिए वो दिल्ली से ट्रेन से जा रहे थे । मेरे एक मित्र जो दिल्ली में एक बहुत सेंसटिव विभाग में अधिकारी थे उनका मुझे फोन आया ।उन्होंने कहा की राय साहब यदि ये यात्रा निकल गई तो ये देश को बहुत मुसीबत में डाल सकती है और कुछ भी हो सकता है  । उन्होंने और भी बहुत कुछ कहा जो लिखना उचित नहीं है । 
उनका कहना था कि आप के मुख्यमंत्री के पास ये अवसर है की वो देश को बचाये वरना यात्रा जब उत्तर प्रदेश में आएगी की सरकार को सम्हालना मुश्किल हो जाएगा ।उन्होंने ही राय दिया कि अभी आप मुख्यमंत्री जी के पास जाइए और उनको समझाइए की इतने बजे ट्रेन कानपुर के पास रूरा रेलवे स्टेशन पहुंचेगी ।वही ट्रेन रुकवा कर आडवाणी जी को गिरफ्तार कर ले और उन्होंने ही राय दिया कि उनको चुनार के किले में गेस्ट हाउस में रखा जाए जिससे बहुत भीड़ बाद तमाशा नहीं कर सके । 
मैं कपड़े बदल चुका था पर तुरंत फिर कैसे पहने और मुलायम सिंह जी के घर पहुंच गया । जगजीवन नीचे वाले कमरे में बैठा था । मैने कहा कि अर्जेंट बात करनी है।वो बोला कि साहब सोने चले गए अब मैं तो बजर नहीं दूंगा । तो मैने खुद बजर दबा दिया। मुलायम सिंह जी ने फोन उठाया तो मैं बोला कि मैं सी पी राय हूं । कुछ जरूरी बात है दो मिनट के लिए नीचे आ जाइए । मुलायम सिंह जी नीचे ड्राइंग रूम में आ गए तो मैने उनको पूरी बात बताया और कहा कि बात गंभीर है और बिना देर किए निर्णय लेकर गिरफ्तारी करवा देना चाहिए । मुलायम सिंह जी बोले की जाने दीजिए जब उत्तर प्रदेश की तरफ यात्रा आएगी तब देखा जाएगा । और एक इतिहास बनते बनते रह गया ।शायद वो उस दिन हो गया होता तो नफरत के व्यापार के लिए भाजपा को कुछ और दिन लगा होता । जो माहौल देश भर में बन गया वो नहीं बना होता । देश भर का भाई चारा बिगड़ गया। नफरत की राजनीति परवान चढ़ गई तब बिहार में लालू प्रसाद यादव जी ने उन्हे गिरफ्तार किया । 
बाकी तो हम कल्पना ही कर सकते है कि क्या हुआ होता तो क्या होता ।
ये मैं पाठकों पर छोड़ देता हु की वो ये कल्पना करे ।

जब अशोक सिंहल ने मेरे बारे में बयान दिया था

जब अशोक सिंहल ने मेरे बारे में बयान दिया था 

राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का मामला जोरो पर था । दोनो ही पक्ष अपने अपने पक्ष में देश भर में कार्यक्रम कर रहे थे । ऐसा ही एक कार्यक्रम बाबरी मस्जिद पक्ष ने आगरा की जमा मस्जिद के अंदर रखा था । उस कार्यक्रम में असाउद्दीन वोबैसी के पिता जी आए थे , जफरयाब जिलानी आए थे और ऐसे ही कई बड़े नाम थे इस पक्ष के ।मोहम्मद आजम खान साहब भी आए थे जो मेरी पार्टी के नेता भी थे और मेरे घनिष्ट मित्र भी ।आजम साहब के साथ मुझे भी वहां जाना पड़ा । पता नहीं क्यों या शायद पार्टी का महासचिव और प्रवक्ता होने के कारण मुझे भी मंच पर बुला लिया गया जिसके लिए मैं तैयार नहीं था । थोड़ी देर में मेरा नाम बोलने के लिए पुकार दिया गया जबकि ये केवल बाबरी एक्शन कमेटी का कार्यक्रम था ।
मैने भाषण दिया कि दो ही तरीके है कि दोनों पक्ष आपसी सहमति से इस विवाद का हल निकाल ले या फिर अदालत पर ही छोड़ दे । और कोई तरीका इस विवाद का हल नहीं कर सकता है पर विश्व हिंदू परिषद इसे अदालत का नहीं आस्था का मामला बताता है तो ध्यान रखना होगा कि किसी भी तरह सामाजिक सौहार्द खराब न हो और कौमी एकता बनी रहे इत्यादि इत्यादि।अंत में मैने कह दिया की जब हम जाती और धर्म में बटे हुए थे तो गुलाम हुए थे और जब एक हिन्दुस्तानी बन कर लड़े तो आजाद हो गए । ये बात सबको याद रखना चाहिए । ह से हिंदू और म से मुसलमान जब हम बनता है तब बनता है हिंदुस्तान । 
अगले दिन मेरा भाषण भी अखबार में छपा ।उस दिन अशोक सिंहल जी आगरा अपने घर आए हुए थे और उनका घर कालेज वाले मेरे घर के ठीक पीछे था ।उनको पता नहीं क्या समझ में आया कि उन्होंने बयान दे दिया कि हम चन्द्र प्रकाश राय से कहना चाहते है कि वो किसी मुसलमान को अपना बाप बना ले ।
मुझे अशोक सिंहल जैसे वरिष्ठ व्यक्ति से ऐसी उम्मीद नहीं थी । पर मुझे भी जवाब देना पड़ा कि मुझे तो यकीन है कि मेरे पिता ही मेरे पिता है और मेरे पिता पर मुझे गर्व है इसलिए मुझे पिता बदलने की कोई जरूरत नहीं । अशोक सिंहल जी बहुत वरिष्ठ है अपने बारे में वो स्वयं तय कर ले । 

जो ज्यादा वोट से जितायेगा वाही सीट रखेंगे | जसवंतनगर हार का जीते |

 जो ज्यादा वोट से जितायेगा वही सीट रखेंगे | जसवंतनगर हार कर जीते | 


१९९३ की बात है | समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का समझौता हो चूका था |  मुलायम सिंह यादव जी और काशीराम जी की रैली मैनपुरी से शुरू होकर आगे बढ़ चुकी थी | नारा लगाने लगे थे नीचे के कार्यकर्ता की " मिले मुलायम काशीराम .हवा में उड़ गए जयश्रीराम राम " और इसका असर व्यापक तौर पर दीखने लगा था | चुनाव शुरू हो गया था | मैं दूसरे एपिसोड में लिख चूका हूँ की कैसे इस बार भी मेरी चुनाव लड़ने की इच्छा पूरी नहीं हो पायी की आप अपनों एक सीट पर फंस जायेंगे जबकी आप पचासों सीटो पर सभाए करते है तथा मीडिया सहित अन्य काम भी सम्हालते है | एक एक दिन में कम से कम दस से लेकर १५?१६ सभाए होंने लगी | जहा अन्य डालो की सभाए देर में शुरू होती थी तो समाजवादी पार्टी की मुलायम सिंह जी की कई सभाए तो सुबह ८ बजे ही शुरू हो जाति थी | खुद मैंने एक दिन आगरा से  जाकर सुबह ८ बजे फरूखाबाद की रैली से दिन शुरू किया था | तय येर हुआ था जिस दिन मेरी अलग सभाये या और कोई काम नहीं होगा और मुझे मुलायम सिंह जी के साथ सभाओं में रहना होगा तो  पहली रैली मे हम दोनों साथ रहेंगे और पहली सभा में अपना भाषण कर मैं अगली सभा की तरफ निकल जाऊँगा तथा वहा मेरे पहुचने पर माइक मुझे दे दिया जाएगा और मैं अपना भाषण पूरा करूँगा तथा मुलायम सिंह जी के वहा पहुच जाने पर मैं अगली सभा में चला जाऊंगा और यही क्रम चलता रहता था | आखिरी सभा हम लोग साथ करते और फिर आगे अपने अपने गंतव्य की तरफ बढ़ जाते या जहा खाने की व्यवस्था होती वहा चले जाते थे | 

एक दिन हमारी सभा एटा के निधौलीकला से शुरू हुयी जहा खुद मुलायम सिंह जी चुनाव लड़ रहे थे | मुलायम सिंह जी इस बार तीन क्षेत्रों से चुनाव लड रहे थे | निधौलीकला के आलावा शिकोहाबाद और अपनी सीट जसवंतनगर से भी | सभी सभाओं में मेरे  दिमाग में पता नहीं क्या आ गया की मैंने अपने भाषण में कह दिया की जो ज्यादा वोट से जितायेगा मुलायम सिंह जी वही सीट रखेंगे | उस दिन निधौलीकला से एटा में सभा करते हुए हम लोग फिरोजाबाद और फिर शिकोहाबाद पहुचे | यहाँ की सभा के बाद जसवंतनगर की सभा में पहुचे | जसवंतनगर में सभा में भरी भीड़ थी | पर मैं जब भाषण दे रहा था तो मैंने उन वक्तव्यों पर जिसपर जनता झूम जाति थी और नारे लगाने लगती थी उस सभा में मुझे वो जोश नहीं दिखा और भीड़ का एक हिस्सा बस तमाशबीन जैसा लगा \| अपना भाषण देने के बाद मैं बैठा तो मेरे मुह से निकल गया की जसवंतनगर में मुझे हालात कुछ अच्छे नहीं लग रहे है | मेरी ये बात मुलायम सिंह जी तो नहीं सुन पाए नारे के के बीच पर मेरे बगल में बैठे हुए मोहन प्रकाश जी जो अब  कांग्रेस के देश के बड़े नेता है ,बीच में राष्ट्रीय महासचिव् और प्रवक्ता भी रह चुके है उन्होंने सुन लिया | उस दिन के दौरे में यहाँ तक वो भी साथ थे और फिर उनको दिल्ली जाना था | मोहन प्रकाश जी ने मुलायम सिंह के बैठते ही ये बात उनको बता दिया की सी पी राय तो कह रहे है की यहाँ हालत ठीक नहीं लग रही है | मुलायम सिंह जी ने मुझे घूर कर देखा और बोले की इतनी भारी भीड़ सुनने आई है तो हालत कैसे ठीक नहीं है तो मैंने कहा की भाईसाहब जरा दिखावा लीजियेगा ,मुझे ऐसा ही एहसास हुआ है तो मुलायम सिंह जी गंभ्जीर हो गए और तब तक उनका बोलने के लिए नाम पुकार दिया गया था |

जब वोटो की गिनती हुयी तो मुलायम सिंह जी बाकि दोनों जगह से जीत गए पर जसवंतनगर से प्रारंभ में ८०० वोट से हार की घोषणा हो गयी जबकि पूरे प्रदेश में सपा बसपा गठबंधन बहुमत प्राप्त कर रहा था | जसवंतनगर में वोटो की गिनती दुबारा हुयी तो मुलायम सिंह जी संभतः ११०० वोट से जीत गए | 

जसवंतनगर की सभा से आगे मैं नहीं गया था क्योकि उसके बाद आगरा की चार सभाए थे और वो मेरा जिला था तो मुलायम सिंह जी ने कहा था की मैं साथ ही रहू और अपना भाषण  थोडा छोटा कर दूँ | जसवंतनगर के बाद आगरा में बाह में , फतेहाबाद ,कलाल खेरिया और अंत में लालकिले के पास अम्बेडर पार्क में रात को १० बजे के बाद सभा हुयी | उस समय तक प्सरचार और सभाओं पर इतनी पाबंदिया नहीं थी | उस  दिन हम लोगो ने कुल १६ सभाए किया था | मुलायम सिंह जी ने कहा की खाना कहा खिलावोगे | ऐसा करो की [अपने रिश्तेदार का नाम लेकर बोले जो शिवपाल यादब के साले लगते थे और उनका होटल तथा बार था ]उनको खबर कर दो की हम लोग इतने लोग खाना खायेंगे और फिर मैं इटावा निकल जाऊँगा | मैंने कहा की मैं किसी कार्यकर्ता को अभी भेज दे रहा हूँ पर मैं आप के रिश्तेदार के होटल पर नहीं जाऊंगा | तो उन्होंने करण पुछा | मैंने कहा की आप के रिश्तेदार है इसका मतलब मेरे कार्यकर्ताओ से बत्तमीजी करेंगे क्या और एक दिन एक कार्यकर्ता के साथ हुयी घटना मैंने बता दिया | तब वो बोले की फिर कहा खिलावोगे | साथ में इतनी सुरक्षा और स्टाफ है इसलिए आप के घर इस वक्त इंतजाम नहीं हो पायेगा | मैंने कह की मेरे ऊपर छोड़ दीजिये | उन्होंने बताया की अगले दिन उनका  पूरब का कार्यक्रम है और आप बाकि जगहों की सभाए कर लीजियेगा | डाक्टर कौशल ने वही कह दिया की सी पी राय को आगरा के लिए भी दो तीन दिन के लिए छोड़ दीजिये वर्ना यहाँ अभी चुनाव व्यवस्थित नहीं हो पा  रहा है | 

मैंने अपने सहयोगी तुलसीराम यादव को नीचे से सीढियों के पास बुलाया और उनको निर्देश दिया की वो मेरे घर जाकर मेरी पत्नी से इतने पैसे ले ले और फिर आगरा शहर के बाहर कानपूर रोड पर बुढिया के ताल के पास के ढाबे पर चले जाए और करीब २० लोगो के लिए देशी घी में फला फला चीज बनवाये पर ये बिलकुल न बताये की किसके लिए खाना बन रहा है और खाना अपने सामने ही बनवाये | तुलसीराम ने वाही किया | मुलायम सिंह जी ने मुझसे धीरे से कहा की केवल उम्मीदवारों को भी वहा बुला लीजिये | मैंने सभी उम्मीद्वारो को चुपके चुपके बता दिया की केवल वो लोग सभा के बाद फला ढाबे पर पहुचे | सभा के बाद उस ढाबे पर रात १२ बजे तक खाना और बातचीत हुयी तथा उम्मीदवारों को मुलायम सिंह जी ने कुछ आर्थिक मदद किया | जो उम्मीदवार नहीं थे उनका पैसा मुझे दे दिया की मैं उन  लोगो को दे दूँ | उसके बाद मुलायम सिंह जी इटावा  निकल गए और मैं रात को ही कुछ जरूरी काम निपटाने सादाबाद चला गया जहा से दो बजे रात को घर पंहुचा | 

चुनाव पर परिणाम निकल गया था और सरकार बन गयी थी | सवाल वही था की मुलायम सिंह जी कौन सी सीट रखे तो उन्होंने बयान दिया की उनको तो जसवंतनगर से प्यार है पर चूँकि सी पी राय ने कह दिया था की जो ज्यादा वोट से जितायेगा वही सीट रखंगे इसलिए मैं शिकोहाबाद की सीट रखूँगा | निधौलीकला ने ६५०० वोट से जिताया था और शिकोहाबाद ने १८ हजार से ज्यादा वोट से जिताया था | जसवंतनगर से शिवपाल यादव विधायक हुए तो निधौलीकला से जिसको मुलायम सिंह जी ने हराया था उस अनिल सिंह यादव को ही पार्टी में शामिल कर टिकेट दे दिया था | 

इसके बाद की कुछ कहानिया और भी है की सत्ता बनाने के बाद कैसे एक दिन मुझे हर कोई ढूढ़ रहा था और फिर मैं पहुचा तो मुलायम सिंह जी मुख्यमंत्री कार्यालय से जा चुके थे लेकिन उनके सचिव पी एल पुनिया जी मिले और एक कागज देखने को मिला जिसमे तीन नाम लिखे थे | पहला नाम मेरा था और दो अन्य | वो दोनों तो जोम पद लिखे थे वो पा गए पर मेरा नाम हवा में विलीन हो गया | फिर इस सरकार में रामपुर तिराहा हुआ ,.,हल्ला बोल हुआ जिसका पार्टी में अकेले मैंने विरोध किया और पार्टी से निकाल दिया गया | लिख सका तो इसी किताब में होगा वर्ना अगली किताब में रहेगा क्योकि कहने को बहुत कुछ है जो बाकि है | 


आगरा का ताज महोत्सव कैसे शुरू हुआ और मेरा प्लान

 1990 की बात है | केंद्र में जनता दल की सरकार थी और शरद यादव जी कपड़ा मंत्री थे | शरद यादव जी ने मुझे और जया जेटली जी को जो बाद में जोर्ज फर्नांडीज साहब की पार्टी समता पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी थी हैंडीक्राफ्ट बोर्ड ऑफ़ इंडिया का सदस्य मनोनीत कर दिया था | इस बोर्ड के सदस्य के रूप में मुझे प्रसिद्ध सूरजकुंड हैंडीक्राफ्ट मेला और ग्वालियर मेला जाने का मौका मिला | जहा सूरजकुंड का मेला हैंडीक्राफ्ट के लिए आकर्षण वाला था और वहा खाने पीने की स्टाल से लेकर तमाम तरह की खरीददारी की स्टाल थो वही तमाम अच्छे सांस्कृतिक कर्यक्रम का भी आकर्षण था | दूसरी तरफ ग्वालियर के मेले में बहुत बड़े क्षेत्र में बिलकुल मेले का दृश्य था और मेले का सब कुछ था तो एक बड़ा आकर्षण था जिसके करण देश भर से लोग वहा आते थे वो था गाडियों पर टैक्स की छूट जिसके करण गाड़ियाँ सस्ती मिलती थी | खुद अपने एक रिश्ते के भाई जो आई पी एस अधिकारी थे और तभी एस पी बन कर एस पी जी में पोस्टिंग पर दिल्ली आ गए थे उनके साथ मैं ग्वालियर गया था उनकी गाड़ी खरीदवाने | 

मेरे मन में विचार आया की आगरा अन्तरराष्ट्रीय शहर है तो ऐसा मेला यहाँ क्यों नहीं होना चाहिये और क्यों न सूरजकुंड तथा ग्वालियर के मेले का मिला जुला स्वरुप का मेला आगरा में शुरू किया जाए | उस वक्त आगरा में अमल कुमार कुमार वर्मा जी जिलाधिकारी थे | मैं हैंडीक्राफ्ट बोर्ड ऑफ़ इण्डिया के मेम्बर की हैसियत से अमल कुमार वर्मा  जी से मिला और उनके सामने मैंने अपना प्रस्ताव रखा | वर्मा जी ने मेरे प्रस्ताव पर बहुत सकारात्मक रुख दिखाया और उसी वक्त उनसे मिलने के लिए मिस्टर सक्सेना जो पी सी एस अधिकारी थे और उस वक्त जनरल मैनेजर उद्योग के पद पर आगरा में नियुक्त थे आये हुए थे और बाहर इन्तजार कर रहे थे उनको वर्मा जी ने अन्दर बुला लिया और उनको मेरे प्रस्ताव के बारे में बताया तथा उनको सेल्स टैक्स ,पर्यटन विभाग इत्यादि के नाम नोट करवाया तथा कहा की आप नोडल अधिकारी के रूप में रहेंगे और इन सभी विभागों के अधिकारी की बैठक एक दो दिन में ही बुला लीजिये | 

बैठक तय हो गयी और जिलाधिकारी के निवास पर दो दिन बाद पहली बैठक हुयीं | मैंने दोनों मेले का वर्णन सबके सामने रखा और कहा की आगरा तो अंतर्राष्ट्रीय शहर है यहाँ तो ऐसे कार्यक्रम की और ज्यादा जरूरत है ,साथ ही मैंने प्रस्ताव रखा की आगरा में दोनों मेले का मिला जुला मेला लगाया जाये | तब सवाल आया की सेल्सटैक्स माफ़ करना तो सरकार का काम है उसके लिए ऊपर बात करना होगा तो मैंने कहा की जिलाधिकारी जी सरकारी तौर पर प्रस्ताव भेज दे बना कर और मैं मुख्यमंत्री जी से बात करने की कोशिश करता हूँ | इसी बीच आर बी एस कालेज जहा बचपन से मैं पढ़ा था और जिस कालेज के मुलायम सिंह यादव जी भी छात्र रहे थे उसके प्राचार्य जी ने मुझे बुलाया और मुख्यमंत्री के नाम एक पत्र दिया की कालेज मुख्यमंत्री जी को अपने कृषि परिसर बिचपुरी में एक कार्यक्रम में बुलाना चाहता था | मैंने समय लेकर वो पत्र मुख्यमन्त्री मुलायम सिंह यादव जी को दिया जो निमंत्रण उन्होंने तत्काल स्वीकार कर लिया और बाद में आये भी  तथा बिचपुरी परिसर के उस कार्यक्रम में कालेज को उस समय ५ लाख रुपया देंने की घोषणा भी किया | इसी कालेज के निमन्त्रण वाली मुलाकात में मैंने मुलायम सिंह यादव जी को अपना आगरा में दोनों मेले का मिलाजुला मेला शुरू करने का प्रस्ताव भी दिया और बता दिया की जिलाधिकारी तैयार हो गए है तथा दो बैठके हो चुकी है कमिटी बन गयी है ,बस शासन की स्वीकृति चाहिए तथा ग्वालियर की भांति सेल्स टैक्स में छूट के लिए शासन की सहमती चाहिए तो मुलायम सिंह जी ने ग्वालियर मेले और छूट इत्यादि के बारे में मुझसे कुछ सवाल किये | मेरे जवाब के बाद बोले की आगरा में भी हो और प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी हो और ग्रामीण क्षेत्र सैफई में हो सकता है | ग्रामीण क्षेत्र का विकास होगा और ग्रामीण खेल कूद भी होंगे | मैंने कहा की हो सकता है | साथ ही इस छूट का लाभ उठाने के लिए आसपास के प्रदेशो से हजारो लोग आयेंगे तो भरी बिक्री होगी और कुल मिला कर प्रदेश को ज्यादा ही फायदा हो जायेगा | मुलायम सिंह जी बोले की ठीक है जिलाधिकारी का प्रस्ताव आने दीजिये ,कर देंगे | 

उस वक्त संजय प्लेस की जेल टूट चुकी थी और खाली मैदान था बहुत बड़ा | मेरे दो सुझाव और थे की प्रारंभ में ये मेला संजय प्लेस में लगे क्योकि शहर के बीच लगेगा तो लोग ज्यादा आयेगे और जहा तक गाडियों का सवाल है मेले में केवल बुकिंग स्टाल होगा और गाड़ियाँ अपने गोदाम से मिलेगी | दूसरा सुझाव था की इस मेले की स्थाई व्यवस्था सिकन्दरा के आगे दिल्ली रोड पर दाहिनी तरफ किया जाए जहा स्थाई तौर पर हैंडीक्राफ्ट की दुकाने हो तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों खासकर इस क्षेत्र के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए एक खुला और एक हाल वाला थिएटर हो | जमुना पीछे की तरफ हट नुमा कमरे हो या कई मंजिल के अच्छे कमरे हो जहा सुरक्षा की समुचित व्यवस्था हो और वो सैलानियों के लिए हो तथा उनके लिए रात को सांस्कृतिक कार्यक्रम हो और अच्छा खाने पीने का इंतजाम हो | 

मैंने बीजारोपण कर दिया था पर आगरा का ताज महोत्सव १९९२ में शुरू हो पाया | मेरे हैंडीक्राफ्ट बोर्ड ऑफ़ इन्डिया का मेंबर रहते शुरू नहीं हो सका क्योकि १९९१ में हमारी केंद्र और प्रदेश की दोनों सरकारे गिर गयी थी | मैं जो स्वरूप चाहता था वो भी नहीं हो पाया और दिल्ली रोड पर चाहता था वो भी नहीं हो पाया | सच कहा जाता है की कोई चीज जिसके दिमाग की उपज होती है वो उसी के द्वारा आदर्श रूप ले सकती है वर्ना जैसे एक आदमी से कोई बात कही जाए तो लाइन में अगले व्यक्तियों से आगे जाते जाते अंत में बात कुछ और हो जाती है वैसा ही इस मेले के साथ हुआ | हा ग्वालियर मेले की सेल्स टैक्स छूट वाला विचार जो मुलायम सिंह जी के दिमाग में आ गया था वो सैफइ में क्रियान्वित हो गया | 

मुझे ये अफ़सोस आज भी है की आगरा में जो मैं एक बहुत सार्थक काम करना चाहता था वो पूरा नहीं हो पाया | पर संतोष इस बात का है मन का विचार चाहे जिस रूप में आगरा में जमीन पर आया आया तो और सैफई के काम भी आ गया | 

बुधवार, 23 अक्तूबर 2024

मंदिर का खेल

ऐसे लोगो को क्या कहेंगे जो जब हमारी सजपा सरकार थी दिल्ली में और उत्तर प्रदेश में 1989/90 में तो हम कहते थे की मंदिर दो ही तरीके से बन सकता है की या तो:: दोनों पक्ष सहमत हो जाये ::या फिर;: अदालत और कानून तय कर दे;; ,उस वक्त कहते थे की ये कानून और अदालत का सवाल नहीं आस्था का सवाल है । हम अभी मंदिर बनायेंगे नहीं तो दंगा करवाएंगे , और उत्तर प्रदेश को तो बर्बाद कर ही दिया ,पूरे देश को दंगे की आग में झोंक दिया ।

चन्द्रशेखर जी के प्रधानमन्त्री रहते आपसी बातचीत मे ऐसा ही फार्मूला तय हुआ था और मुस्लिम पक्ष सहमत था तो क्षद्म हिन्दू ये कह कर गये कि अभी राय कर के आते है और भाग गये क्योकी इरादा राम मंदिर नही था सत्ता थी ।

जब अटल की सरकार आई तो अडवाणी बोले की एक मंदिर के लिये सरकार नहीं गँवा सकते और पूरी पार्टी ,साधू संत और संघी सब यही बोलने लगे ।

शहीद के ताबूत में पैसे खाने से लेकर सारे सरकारी संसथान औने पौने में बेचने से लेकर संसद से कारगिल तक देश को देने से लेकर आतंकवादी को सैकड़ो करोड़ रूपये के साथ कंधार पहुँचाने तक सब करम कर दिया देश के साथ ।
फिर हमारी सरकारों में अयोध्या पर आक्रमण किया ।
जब फिर इनकी सरकार बन गयी तो सारे मिल कर फिर अलापने लगे  की पहले सरकार का मज़ा लेंगे ।राम जी आप विश्राम करो सरकार जाने के बाद आप के लिए मुहूर्त तय करेंगे ।
तब  न आस्था का सवाल था और न तुरंत मंदिर बनाने का सवाल था,बोले अदालत ही तय करेगी और अदालत ने तय कर दिया तो उसका भी श्रेय लेने लगे कि उनकी वजह से फैसला हुआ ।
क्या कहना चाहिए ऐसे ढोंगियो को और इनके भ्रष्ट समर्थक ढोंगियो को ???
प्लीस भक्तगण यहाँ प्रलाप न करे वर्ना मुह दिखाने लायक नहीं छोडूंगा ।
धर्म को अगर राजनीती से जोड़ा जायेगा 
बस्ती बस्ती अश्वमेघ का घोडा  जायेगा 
रामराज्य स्थापित करने वालो से   पूछो 
क्या सीता को फिर वन में छोड़ा जायेगा ।
जय हिन्द ।

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2024

जब मुलायम सिंह यादव जी के उपर भाजपा की महिलाओं ने चूड़ियाँ फेंका


जब मुलायम सिंह यादव जी के उपर भाजपा की महिलाओं ने चूड़ियाँ फेंका 


1991 की बुरी हार के बाद मैं मुलायम सिंह यादव जी को अधिक से अधिक सक्रीय करना चाहता था और फिर से अधिक से अधिक लोगो में ले जाना चाहता था | आगरा मध्यप्रदेश ,राजस्थान से जुदा शहर है और तब केवल अखबार होते थे तथा आगरा इस पूरे इलाके का इटावा सहित अखबार का केंद्र था | आगरा में कुछ होने और छपने का अर्थ था उत्तर प्रदेश के इधर के बड़े हिस्से तक पहुचना और मध्य प्रदेश ,राजस्थान के कुछ हिस्सों तक पहुचना | मुलायम सिंह जी ये जानते थे इसीलिए आगरा आने को हमेशा तैयार रहते थे | 

मैंने एक कार्यक्रम बनाया और की मुलायम सिंह जी पूरे दिन के लिए आगरा आये और सुबह की ट्रेन से आये तथा रात को उसी ट्रेन से वापस जाए | मेरे बनाये हर कार्यक्रंम के पीछे कोई मकसद होता है और तब भी था | मुलायम  सिंह जी ने बिना कार्यक्रम  पूछे हा कर दिया | कार्यक्रम के दिन सुबह ही ट्रेन से आगरा के फोर्ट स्टेशन पर वो आ गए | हम लोगो ने वहा उंनका स्वागत किया | स्टेशन से बाहर आंबेडकर पार्क में डा भीम राव आंबेडकर की प्रतिमा पर उनसे माल्यापर्ण करवाया और फिर उन्हे सर्किट हाउस छोड़कर मैं घर आ गया की वो भी नहा धोकर तैयार हो जाए और नाश्ता कर ले तब तक मैं भी तैयार होकर आता हूँ | हर जगह हर पार्टी में कुछ लोग होते है जो काम कुछ अनहि करते है बस बुराई करना और चुगली करना काम होता है | ऐसे तीन लोग सर्किट हाउस पर मौजूद थे पर मुलायम सिंह जी उनका नमस्ते भी स्वीकार किये बिना अन्दर चले गए | ये वो लोग थे जिनकर लिए कुछ दिन पहले ही मुलायम सिंह जी ने मुझसे कहा था की ये लोग हर वक्त केवल नकारत्मक बात करते है और कुछ काम करते नहीं है केवल मेरी बुराई करते है तो मैं अपनी कलम से आदेश कर इन लोगो को पार्टी से निकाल दूँ पर मैंने निकालने से इनकार कर दिया था ये कह कर की वो लोग मेरी बुराई करते है पर मुलायम सिंह जी की तो जिंदाबाद करते है तो मैं ऐसे तीन लोग पार्टी से कम क्यों करूँ | 

जब मैंने देखा की मुलायम सिंह जी उन  लोगो की उपेक्षा कर चले गए तो मैं उन लोगो को अन्दर ले गया और मुलायम सिंह जी से बोला की ये लोग मिलने आये है इतनी सुबह तो या तो अभी कुछ मिनट इनकी बात सुन लीजिये या तैयार होने के बाद सुन लीजियेगा | मुलायम सिंह जी ने कहा की कोई कायदे की बात तो करेंगे नहीं बस आप की बुराई करेंगे और आप कह रहे है की इनकी बात सुन लूँ तो मैंने कहा की फिर भी सुन लीजिये और मैं बाहर निकल कर घर चला गया तैयार होने | 

मैं तैयार होकर सर्किट हाउस पंहुचा फिर काफिला निकल लिया कार्यक्रमों के लिए | सबसे पहले रस्ते में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मूर्ती पर माल्यापर्ण हुआ | उसके बाद प्रतापपुरा चौराहे पर महात्मा गाँधी की मूर्ती पर माल्यापर्ण किया मुलायम सिंह यादव जी ने | फिर कलक्ट्री के पास चर्च में उनका कार्यक्रम था तथा इसाई समुदाय के साथ और उसके बाद वही स्कूल के बच्चों से मुलाक़ात थी | यहाँ से हम सीधे आगरा के प्रसिद्द गुरुद्वारे पहुचे जहा मुलायम सिह जी का स्वागत था ,उनको सरोपा भेट होना था तथा वहा मौजूद सिख समुदाय को संबोधन के बाद प्रसाद ग्रहण करना था | गुरद्वारे से हम आगरा के गृह विज्ञानं संसथान पहुचे जहा उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही लडकियो के साथ बातचीत तथा संबोधन था और वहा मुलायम सिंह जी ने महिलाओं की बराबरी ,भागीदारी ,शिक्षा तथा महिलाओं की समस्याओ पर बोले और घुलमिल कर बच्चियों से चर्चा किया | आगरा विश्वविद्यलय के गृह विज्ञान संस्थानं से हमारा काफिला आर बी एस कालेज पंहुचा जहा पहले शिक्षक समुदाय और फिर छात्रो के साथ कार्यक्रम था | यहाँ मुलायम सिंह जी ने जहा खुद शिक्षक होने के नाते लोगो को खुद से जोड़ा तो स्वयं इसी कालेज का छात्र होने की बात बता कर भावनात्मक सम्बन्ध जोड़ा तो छात्रो में खुद छात्र संघ का नेता होने का वर्णन कर उनका दिल जीता और खूब मन लगा कर पढने लेकिन देश तथा समाज में अपनी  भूमिका निभाने का आह्वान भी किया | 

इसके बाद यूथ होस्टल प्रेस कांफ्रेंस थी जबकि प्रेस कांफ्रेंस अधिकतर मेरे निवास पर होतीं थी लेकिन इस बार कार्यक्रम ही ऐसा बना था की यही रख दिया था | खूब सवाल जवाब हुआ और प्रेस के साथ चाय पी गई ।

इसके बाद सेंट जॉन्स कालेज में बुद्धिजीवियों के साथ कार्यक्रम था ।पूरा हाल भरा था । सेंट जॉन्स के लोग थे ही साथ ही अन्य कवियों लेखकों को भी यहा मैने आमंत्रित कर रखा था । इस कार्यक्रम में मुलायम सिंह जी ने हिंदी और स्वदेशी भाषाओं के पक्ष में जबर्दस्त भाषण दिया |

इसके बाद हम लोग आगरा में  भगवांन शिव के प्रसिद्द मंदिर मनकामेश्वर मंदिर की तरफ निकले जहा मुलायम सिंह जी पूजा करनी थी | जहा ये मंदिर है वो जगह आर एस एस का गढ़ मानी जाती  है और मैंने अयोध्या की गोली की घटना के बाद आगरा आने पर ये कार्युक्रम जानबूझ कर रखा था | काफी लोगो ने मुलायम सिंह जी को भड़काने और डराने का काम  किया की सी पी राय आप को वहा मरवाने ले जा रहा है | वहा कुछ भी हो सकता हैं तो मैंने मुलायम सिंह जी से पुछा की मुझपर विश्वास है की नहीं और यदि है तो मैं जो भीं कार्यक्रम बना रहा हूँ वही होने दीजिये वर्ना सब रदद कर दीजिये | अंततः कार्यक्रम ज्यो का त्यों रहा | मैंने इस क्षेत्र में दो पूरे दिन बिताये थे तथा भाजपा के लोगो से भी बात कर लिया था की यदि मेरे कार्यक्रम में कोई व्यवधान हुआ तो उस वक्त जो होगा उसके जिम्मेदार वो लोग होंगे और आगे का सोच ले की उनके नेता भी शहर में आते है | इसी तरह कुछ अपनी और भी व्यवस्था उस क्षेत्र में बिना पार्टी के लोगो किन जानकारी के कर दिया था | मनकामेंश्वर मंदिर के महंत से मेरे अच्छे सम्बन्ध थे और आज भी है उनसे भी बात कर लिया था की मुलायम सिंह जी गर्भ गृह में दर्शन और पूजा करेंगे और वो आप को ही करवाना है | 

हम लोग मंदिर पहुच गये | फाटक पर ही महंत जी में मुलायम सिह जी को माला पहना कर स्वागत किया और गर्भ गृह में पूजा करवाया तथा प्रसाद दिया | जिस बात का आतंक फैलाया जा रहा था उसमे सिर्फ इतना हुआ की ५/६ भाजपा  की महिलाए मंदिर के पास एक घर में एकत्र हो गयी थी और वाही से हत्यारे मुर्दाबाद का नारा लगा रही थी और चूड़ियाँ फेंक रही थी | हमारे साथ की दो महिलाओं ने उन  लोगो की तरफ जाने की कोशिश किया तो मुलायम सिंह जी ने रोक दिया और फिर उन महिलाओं को हाथ जोड़कर प्रणाम कर मुलायम सिंह जी गाडी में बैठ गए | अख्बर्रो के रिपोर्टर और फोटोग्राफर पूरे समय साथ थे उन  लोगो वो फोटो भी खीचा की महिलाए चूडिया फेंक रही है और मुलायम सिंह जी हाथ जोड़ कर प्रणाम कर रहे है | मेरा इस ,मंदिर पर मुलायम सिंह जो लाने का मकसद पूरा हो चूका था | गाड़ी में बैठते ही मुलायम सिंह जी बोले की ये तो बहुत् अच्छा कार्यक्रम आप ने बना दिया था | आज भाजपा एक्सपोज हो गयी | लोग बेकार इस कार्यक्रम से डरा रहे थे | उन्होंने पुछा की महंत कैसे तैयार हो गए तो मैंने इस वक्त अपनी सारी बात बता दिया तब तक हम लोग जमा मस्जिद पहुच गए | 

मंदिर के बाद अँधेरा हो गया था | उसके बाद मैंने मंदिर के बिलकुल बगल में जमा मस्जिद के सामने जनसभा रखा था | जन सभा में भरी भीड़ जुट चुकी थी | मेरे भाषण के बाद मुलायम सिंह जी बोलने खड़े हुए | मैंने अपने भाषण में बता दिया था की आर एस एस हिन्दू धर्म के दुशमन है और वो एक हिन्दू को मंदिर जाने से तिलमिला गए और रोकना चाहते थे ,हिम्मत नहीं पड़ी तो घर की महिलाओं को आगे कर दिया | भाइयो चूडिया कब तोड़ी जाति है ? मेरा सवाल है इन सब से की आज इनके घर की महिलाओं ने अपनी चूड़ियाँ क्यों तोडा | मुलायम सिंह जी बोलने को खड़े हुए तो बाहों पर कुर्ते की बाह सरकाया और बोले लोग शिखंडी की आड़ से शिकार करने चले है | मुलायम सिंह को डराने चले है पर मुलायम सिंह किसी से डराने वाला नहीं है सिर्फ इश्वर से डरता है | उन्होंने बहुत जोशीला भाषण दिया | जमा मस्जिद के बाद मैंने दो लोगो के घर जाने का कार्यक्रम  रखा था जो मुश्किल से १० ,१० मिनट में करना पड़ा और फिर् मेरे घर खाने के बाद हम फोर्ट स्टेशन पहुच गए | हम सभी थक चुके थे पर संतुष्ट थे की मैं एर जो जो जैसे सोचा था सब वैसे हो गया | ट्रेन का इन्तजार हो रहा था तो मुलायम सिंह जी बोले की सी पी राय बुरी तरह थका दिया कुछ कम कार्यक्रम रखा करिए चाहे तो दुबारा बुला लीजिये | पर उनके चेहरे पर ख़ुशी साफ़ झलक रही थी क्योकि अयोध्या कांड के बाद आर एस एस के गढ़ में ये कार्यक्रम हुआ था | 

जब पुलिस की लाठी का पहला स्वाद चखा था

पुलिस की लाठी का पहला स्वाद 

बात 1967 की है । अंग्रेजी हटाओ आंदोलन जोर पकड़ गया था । 1967 में अधिकतर विश्वविद्यालयों और कालेजों में समाजवादी पार्टी के संगठन समाजवादी युवजन सभा के लोग छात्र संघ के अध्यक्ष हो गए थे। सबसे चर्चित और फायर ब्रांड छात्र नेता थे देवव्रत मजूमदार जो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे।उनके नेत्रत्व में ही बड़े पैमाने पर आन्दोलन चला था | 
पहले जान ले कि अंग्रेजी हटाओ आंदोलन क्यों हुआ था और डा राममनोहर लोहिया जी की इसके पीछे क्या सोच थी । डा लोहिया के आह्वान पर ही ये आंदोलन शुरू हुआ था :: 

समाजवादी राजनीति के पुरोधा डॉ॰ राममनोहर लोहिया के भाषा संबंधी समस्त चिंतन और आंदोलन का लक्ष्य भारतीय सार्वजनिक जीवन से अंगरेजी के वर्चस्व को हटाना था। लोहिया को अंगरेजी भाषा मात्र से कोई आपत्ति नहीं थी। अंगरेजी के विपुल साहित्य के भी वह विरोधी नहीं थे, बल्कि विचार और शोध की भाषा के रूप में वह अंगरेजी का सम्मान करते थे। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महात्मा गांधी के बाद सबसे ज्यादा काम राममनोहर लोहिया ने किया। वे सगुण समाजवाद के पक्षधर थे। उन्होंने लोकसभा में कहा था-

अंग्रेजी को खत्म कर दिया जाए। मैं चाहता हूं कि अंग्रेजी का सार्वजनिक प्रयोग बंद हो, लोकभाषा के बिना लोकराज्य असंभव है। कुछ भी हो अंग्रेजी हटनी ही चाहिये, उसकी जगह कौन सी भाषाएं आती है, यह प्रश्न नहीं है। इस वक्त खाली यह सवाल है, अंग्रजी खत्म हो और उसकी जगह देश की दूसरी भाषाएं आएं। हिन्दी और किसी भाषा के साथ आपके मन में जो आए सो करें, लेकिन अंग्रेजी तो हटना ही चाहिए और वह भी जल्दी। अंग्रेज गये तो अंग्रेजी चली जानी चाहिये।

१९५० में जब भारतीय संविधान लागू हुआ तब उसमें भी यह व्यवस्था दी गई थी कि 1965 तक सुविधा के हिसाब से अंग्रेजी का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन उसके बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया जाएगा। इससे पहले कि संवैधानिक समयसीमा पूरी होती, डॉ राममनोहर लोहिया ने 1957 में अंग्रेजी हटाओ मुहिम को सक्रिय आंदोलन में बदल दिया। वे पूरे भारत में इस आंदोलन का प्रचार करने लगे। 1962-63 में जनसंघ भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो गया। लेकिन इस दौरान दक्षिण भारत के राज्यों (विशेषकर तमिलनाडु में) आंदोलन का विरोध होने लगा। तमिलनाडु में अन्नादुरई के नेतृत्व में डीएमके पार्टी ने हिंदी विरोधी आंदोलन को और तेज कर दिया। इसके बाद कुछ शहरों में आंदोलन का हिंसक रूप भी देखने को मिला। कई जगह दुकानों के ऊपर लिखे अंग्रेजी के साइनबोर्ड तोड़े जाने लगे। उधर 1965 की समयसीमा नजदीक होने की वजह से तमिलनाडु में भी हिंदी विरोधी आंदोलन काफी आक्रामक हो गया। यहां दर्जनों छात्रों ने आत्मदाह कर ली। इस आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने 1963 में संसद में राजभाषा कानून पारित करवाया। इसमें प्रावधान किया गया कि 1965 के बाद भी हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी का इस्तेमाल राजकाज में किया जा सकता है।

‘अंग्रेजी हटाओ’ आंदोलन को उन दिनों यह कहकर खारिज करने की कोशिश की गई कि अगर अंग्रेजी की जगह हिंदी आयेगी तो हिन्दी का वर्चस्ववाद कायम होगा और तटीय भाषाएँ हाशिए पर चली जायेंगी। सत्ताधारियों ने हिन्दी को साम्राज्यवादी भाषा के के रूप में पेश कर हिन्दी बनाम अन्य भारतीय भाषाओं (बांग्ला, तेलुगू , तमिल, गुजराती, मलयालम) का विवाद छेड़ इसे राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए खतरा बता दिया। इसे देश जोड़क भाषा नहीं, देश तोड़क भाषा बना दिया। लोहिया ने इस बात का खंडन करते हुए कहा कि स्वाधीनता आंदोलन में हिन्दी ने देश जोड़क भाषा का काम किया है। देश में एकता स्थापित की है, आगे भी इस भाषा में संभावना है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि हिंदी को राजकाज, प्रशासन, कोर्ट-कचहरी की भाषा नहीं बनाना चाहते तो इसकी जगह अन्य किसी भी भारतीय भाषा को बना दिया जाए। जरूरी हो तो हिन्दी को भी शामिल कर लिया जाए। लेकिन भारत की मातृभाषा की जगह अंग्रेजी का वर्चस्ववाद नहीं चलना चाहिए। [1]

लोहिया जब 'अंगरेजी हटाने' की बात करते थे, तो उसका मतलब 'हिंदी लाना' नहीं था। बल्कि अंगरेजी हटाने के नारे के पीछे लोहिया की एक खास समझदारी थी। लोहिया भारतीय जनता पर थोपी गई अंगरेजी के स्थान पर भारतीय भाषाओं को प्रतिष्ठा दिलाने के पक्षधर थे। 19 सितंबर 1962 को हैदराबाद में लोहिया ने कहा था,

अंगरेजी हटाओ का मतलब हिंदी लाओ नहीं होता। अंगरेजी हटाओ का मतलब होता है, तमिल या बांग्ला और इसी तरह अपनी-अपनी भाषाओं की प्रतिष्ठा।

उनके लिए स्वभाषा राजनीति का मुद्दा नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान का प्रश्न और लाखों–करोडों को हीन ग्रंथि से उबरकर आत्मविश्वास से भर देने का स्वप्न था–

मैं चाहूंगा कि हिंदुस्तान के साधारण लोग अपने अंग्रेजी के अज्ञान पर लजाएं नहीं, बल्कि गर्व करें। इस सामंती भाषा को उन्हीं के लिए छोड़ दें जिनके मां बाप अगर शरीर से नहीं तो आत्मा से अंग्रेज रहे हैं।

दक्षिण (मुख्यत: तमिलनाडु) के हिंदी-विरोधी उग्र आंदोलनों के दौर में लोहिया पूरे दक्षिण भारत में अंगरेजी के खिलाफ तथा हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के पक्ष में आंदोलन कर रहे थे। हिंदी के प्रति झुकाव की वजह से दुर्भाग्य से दक्षिण भारत के कुछ लोगों को लोहिया उत्तर और ब्राह्मण संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में दिखाई देते थे। दक्षिण भारत में उनके ‘अंगरेजी हटाओ’ के नारे का मतलब ‘हिंदी लाओ’ लिया जाता था। इस वजह से लोहिया को दक्षिण भारत में सभाएं करने में कई बार काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। सन १९६१ में मद्रास और कोयंबटूर में सभाओं के दौरान उन पर पत्थर तक फेंके गए। ऐसी घटनाओं के बीच हैदाराबाद लोहिया और सोशलिस्ट पार्टी की गतिविधियों का केंद्र बना रहा। ‘अंगरेजी हटाओ’ आंदोलन की कई महत्त्वपूर्ण बैठकें हैदराबाद में हुई।

तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी ने इस आन्दोलन के विरुद्ध 'हिन्दी हटाओ' का आन्दोलन चलाया जो एक सीमा तक अलगाववादी आन्दोलन का रूप ले लिया। नेहरू ने सन १९६३ में संविधान संशोधन करके हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी अनिश्चित काल तक भारत की सह-राजभाषा का दर्जा दे दिया। सन १९६५ में अंग्रेजी पूरी तरह हटने वाली थी वह 'स्थायी' बना दी गयी। १९६७ के नवम्बर माह में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रनेता देवव्रत मजूमदार के नेतृत्व में 'अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन' किया गया था जिसका असर पूरे देश पर पड़ा। उस समय इंजीनियरिंग के छात्र देवव्रत मजूमदार बीएचयू छात्रसंघ के अध्यक्ष थे। २८ नवम्बर १९६७ को मजूमदार के आह्वान पर बनारस में राजभाषा संशोधन विधेयक के विरोध में पूर्ण हड़ताल हुई। सभी व्यापारिक प्रतिष्ठान और बाजार बंद रहे और गलियों-चौराहों पर मशाल जुलूस निकले।[ विकिपीडिया ]

अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन विस्तार लेता जा रहा था और चारो तरफ फ़ैलने लगा था | उस दौर में अधिकतर स्थानों  छात्र संघ चुनावो में समाजवादी पार्टी के संगठन समाजवादी युवजन सभा का कब्ज़ा हो गया था | आगरा में भी सबसे बड़े कालेज आगरा कालेज में समाजवादी युवजन सभा का अध्यक्ष था | चारो तरफ नारे लग रहे थे " अंग्रेजी में काम न होगा ,फिर से देश गुलाम न होगा '' ए बी सी डी हाय हाय " अंग्रेजी में लिखे हुए नाम पट्टिकाएं काले रंग से पातीं जा रही थी | गाड़ी स्कूटर मोटरसाइकिल जो बहुत कम थे उन पर अंग्रेजी में लिखा हुआ पोता जा रहा था | 

उस दिन हमारे डिग्री कालेज के छात्रो का जुलुस इंटर कालेज को बंद करवा कर हमारे स्कूल में पंहुचा तो तुरंत छुट्टी की घोषणा कर छुट्टी कर दी गयी | वो नारे लगाने में मुझे भी मजा आने लगा और घर जाने के बजाय बस्ता टाँगे हुए मैं भी जुलुस के साथ चल पड़ा | रास्ते में सैंटजोन्स कालेज की छुट्टी करवाता हुआ जुलुस राजामंडी की तरफ बढा ,उधर से आगरा कालेज का जुलुस आ गया था | इसी बीच कुछ छात्रो ने स्टेशन पर ट्रेन पर लिखे पर रंग पोतना चाहा तो पुलिस ने खदेड़ लिया तो उन लोगो ने ट्रेन पर पथराव कर दिया और राजामंडी बाजार की तरफ भाग आये इस भगदड़ में कुछ अफवाह फैली तो बाजार के शटर गिराने लगे दूकानदार लोग और पुलिस को लगा की छात्रो ने बाजार में कुछ कर दिया है | फिर क्या था लाठीचार्ज शुरू हो गया | मैंने शोर्ट कट जो राजामंडी आने के लिए इस्तेमाल होता था हमाड रे घर की तरफ से वो पटरी का किनारा पकड लिया पर मुझे पता नहीं था की उधर कुछ छात्र कांड कर आये थे और उसी से अफरा तफरी मची थी | एक सिपाही ने मुझे दौड़ा लिया | मैं स्कूल की यूनिफार्म नीली शर्ट और खाकी नेकर में था और बस्ता भी था तो मैंने उससे कहा की मैं तो स्कूल में पढता हूँ तो वो बोला की की स्कूल में पढ़ते हो तो आर बी एस स्कूल तो उधर है फिर इधर क्या कर रहे हो और मैंने तुम्हे नारा लगाते देखा था | फिर मैंने भागना चाहा पर तब तक उसकी दो लाठी मुझे पड गयी थी और ये पुलिस की लाठी का पहला स्वाद था | घर पंहुचा तो पिता जी ने पुछा की स्कूल की तो छुट्टी हो गयी थी तो कहा चले गए थे | मैंने बता दिया की जुलुस में गया था तो बहुत डाट पड़ी और जब मैंने बताया की पीठ में चोट लगी है तो उसपर हल्दी लगाईं गयी और ये लेक्चर मिकला की आन्दोलन तो सही बात के लिए हो रहा है औरे डा लोहिया की बात सरकार को मान लेना चाहिए पर तुम्हारी उम्र अभी आन्दोलन में जाने की नहीं है | 

आन्दोलनों  जो होता रहा है वही  इस आन्दोलन का भी हुआ | पर जब बड़ा हुआ तो समझ में आया की ऐसे तमाम आन्दोलन में जा जाने कितना पढाई का नुक्सान हुआ ,काफी सम्पत्तियों का नुक्सान हुआ ,न जाने कितने छात्र जेलों में गए ,उनकी जिन्दगिया बर्बाद हुयी पर हुआ क्या | डा लोहिया जैसे सिद्धांतवादी और इमानदार  बाकी लोग साबित नहीं हुए | अंग्रेजी के खिलाफ आन्दोलन करने वाले अधिकांश लोग और राजनीतिक दल तथा संगठन बाद में उसी अंग्रेजी का प्रयोग कर रहे है और अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल तथा कालेज में पढ़ा रहे है | अक्सर देखा जाता है की हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी वाले ज्यादा सफल हो जाते है | कम्यूटर के खिलाफ आन्दोलन करने वाले सभी उसी का प्रयोग कर रहे है | मैं पलट कर देखता हुआ तो अधिकांश आन्दोलन का चरित्र ऐसा ही निकला | क्या छात्र हो या अन्य सभी का सिर्फ प्रयोग कर लिया गया राजनीतिक उद्देश्यो से ? 

गंगीरी का सम्मेलन युद्ध का मैदान था

सम्मलेन या युद्ध का मैदान था गंगीरी में ?


1993 की ही बात है समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता सम्मेलन चल रहे थे । एक दिन अलीगढ़ के कुछ विधान सभा क्षेत्रों के सम्मेलन थे । सिकन्दराराउ के सम्मेलन के बाद गंगीरी क्षेत्र का सम्मेलन था । मुझे ही संबोधित करना था । उस दिन आगरा में बहुत पुराने समाजवादी नेता और इंदौर के पूर्व सांसद कल्याण जैन जी आए हुए थे तो मैं उनको भी अपने साथ ले गया था । 
गंगीरी के पास पहुंचे तो देखा कि दो गुटों में लोग स्वागत के लिए खड़े हुए है और कार्यक्रम स्थल पर ले जाने के लिए । बहुत कोशिश हुई कि मैं उन लोगो में से किसी गाड़ी में बैठ जाऊं पर मैने दूसरी किसी गाड़ी में बैठने से इनकार कर दिया । हमारा काफिला वहां की मंडी के गेट में घुसा तो मैने देखा की मंडी में जो बड़े बड़े शेड बने होते है उनमें से पहले पड़ने वाले शेड में भारी भीड़ थी लेकिन उससे थोड़ी दूर के शेड में भी भीड़ थी । दोनो जगह तमाम राइफल और बंदूक दिख रही थी और बीच बीच में फायर भी हो रहे थे  और दोनों जगह के माइक से अपने अपने नेता के बारे की आवाज सुनाई पड़ रही थी । मैने देख लिया की पहले शेड में पार्टी के पुराने नेता बाबू सिंह के बेटे जो लंबे समय से पार्टी में काम कर रहे थे वीरेश यादव का खेमा जमा था तो दूसरी जगह अभी हाल में पार्टी के आए और राम गोपाल यादव जी के कृपपात्र महेश यादव का खेमा जमा था और वातावरण में तनाव था।  दोनो पक्ष अपने स्टेज पर ले जाना चाहते थे । पर मैने अपने दिमाग में रणनीति तय कर लिया और पहले शेड के पास गाड़ी रोक कर कल्याण जैन की को उतार दिया की आप इनके मंच पर चलिए मैं अभी आता हूं । वीरेश को मैने धीरे से कहा की मैं अभी आता हूं और मैं दूसरे खेमे के मंच पर चल गया । इस खेमे ने अपने मंच पर मेरे आने को अपनी जीत समझ लिया और नारेबाजी और ज्यादा जोश में होने लगी तो मैने माइक अपने हाथ में ले लिया। मैने जोर से पार्टी की जिंदाबाद और मुलायम सिंह यादव जिंदाबाद का नारा लगाया और आदेश कर दिया की इन दो के अलावा कोई भी नारा लगा तो उसे अनुशासनहीनता मानी जाएगी । और उसके बाद कुछ पार्टी की बात कहते कहते मैने इस बात पर एतराज जताया कि दो जगह सम्मेलन क्यों आयोजित हुआ । इसका कोई जवाब नहीं मिला तो मैने कहा कि पार्टी का संगठन उस जगह बैठा है और पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य आदरणीय कल्याण जैन जी भी वहां बैठे है इसलिए पार्टी की परम्परा और कायदा कहता है कि सबको उसी जगह चलना चाहिए । जो अलग सम्मेलन करेगा उसके खिलाफ मै अभी कार्यवाही करूंगा और पार्टी से निकालने की घोषणा इसी वक्त कर दूंगा । इतना कह कर मैने कहां की मेरी अपील है कि जो लोग मुलायम सिंह यादव के सच्चे सिपाही हो वो सब लोग मेरे साथ वही चले और जो मुलायम सिंह यादव का नुकसान करना चाहते हो वो अलग रहे । फिर मेरे पीछे सारे लोग वीरेश यादव द्वारा आयोजित शेड की तरफ आ गए । 
वहा पहुंचते ही मैने फिर माइक ले लिया और कुछ निर्देश दिया कि कोई  भी मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी के अलावा नारा नहीं लगाएगा और लगाएगा तो खुद को पार्टी के बाहर मान ले इसी वक्त से , दूसरा कोई फायरिंग नही करेगा । सब अपने हथियार नीचे रख ले जिससे किसी फोटो में न आए । सम्मेलन कैसे चलेगा ये बता कर मैने कहा कि वीरेश और महेश पहले गले मिले और सम्मेलन खत्म होने पर भी नारे को लेकर तथा फायरिंग को लेकर जो मैने कहा है वहीं नियम लागू रहेगा । मैं कार्यक्रम खत्म होने पर दोनों की चाय पियूंगा और उस चाय में दोनों को शामिल होना होगा । फिर विधिवत कार्यक्रम हुआ और कार्यक्रम समाप्त होने पर भी सबने अनुशासन बनाए रखा । जब सम्मेलन के बाद हम आगरा के लिए निकले तो कल्याण जैन जी ने बताया कि उस माहौल और फायरिंग के कारण वो तो बहुत डर गए थे बल्कि उनके पैर कांप रहे थे । फिर मुझसे पूछा कि मैने कैसे किया कि सब एक जगह आ गए ।

इलाहबाद_का_चुनाव

#जिंदगी_के_झरोखे_से

#इलाहबाद_का_चुनाव -

एक पुरानी याद जब विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस से बाहर आ गये थे तो इलाहबाद मे लोक सभा सीट का चुनाव हुआ जिसमे वो उम्मीदवार थे ।अजेय लगने वाली कांग्रेस को हराने के लिये पूरा विपक्ष एकजुट हो रहा था ।ये दोनो की प्रतिष्ठा का चुनाव था । कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के पुत्र सुनील शास्त्री को उम्मीदवार बनाया और उधर से चुनाव की कमान मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के हाथ मे थी ।पूरा विपक्ष विश्वनाथ प्रताप सिंह के लिये लगा था ।पूरे देश का मीडिया हाज़िर था तो उस वक्त रामायण सीरियल की लोकप्रियता को देखते हुये उसके पात्र राम लक्षमण भी उसी पोशाक मे जोकर बने प्रचार के लिये हाज़िर थे ।
और देश मे इतनी बड़ी राजनीतिक घटना घट रही हो और हम जैसे लोग वहा नही हो ये कैसे सम्भव था ।
एक तरफ भारी संसाधन थे काग्रेस की तरफ से तो दूसरी तरफ विश्वनाथ प्रताप सिंह एक मोटरसाइकिल पर बैठ कर अपना प्रचार कर रहे थे (ऐसे चुनावो ने बार बार गाड़ियो के काफिले और करोडो रुपये तथा सत्ता की धमक को परास्त कर सिद्ध किया है कि जज्बा हो ,मुद्दे हो और समर्पित नौजवां हो तो सत्ता ,साधन सबको परास्त किया जा सकता है ,ऐसा अनुभव 1984 के आजमगढ़ के चुनाव मे भी हुआ था जहा सबसे ज्यादा खर्च और चमक के बाद भी चंद्रजीत यादव को केवल 15 हजार वोट मिओआ था ) ,और हजारो जागरुक नौजवांन जो उस वक्त कांग्रेस की हार जरूरी मानते थे खुद इलाहबाद पहुच गये थे । विश्वनाथ प्रताप सिंह बोफोर्स की तोप से कांग्रेस को पहले ही घायल कर चुके थे ।
खैर चुनाव हुआ और खूब हुआ और विश्वनाथ प्रताप सिंह चुनाव जीत गये और सम्पूर्ण कांग्रेस हार गयी ।
मुझे उस वक्त का मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह का वो बयान याद है जब हार के बाद उन्होने कहा था कि कांग्रेस के सब नेता बहुत कुछ लेने आते और अपने प्रयास से मिलने वाला वोट गिनवाते तो मैं नोट करता गया और बाद मे जब जोडा तो वो डेढ करोड से ज्यादा निकला ।
उस चुनाव पर उस वक्त की सबसे बड़ी राजनीतिक मैगजीन रविवार के प्रधान संपादक खुद इलाहबाद मे घूमे और उन्होने उस बार इलाहबाद के चुनाव को कवर स्टोरी बनाया और उसमे कुछ खास नामो का जिक्र किया जिसमे जनेश्वर मिश्रा, शिवानंद तिवारी,रघुनाथ गुप्ता  ,मोहन सिंह , मुख्तार अनीस,देवव्रत मजूमदार , मोहन प्रकाश Mohan Prakash, चंचल जी Chanchal Bhu , चन्द्रमाणि त्रिपाठी,नरेंद्र गुरु , क्रांती कुमार ,फतेह सिंह और हमारा भी जिक्र किया उन्होने ।
नीचे रविवार का चित्र है जिसमे ये नाम है और दूसरा चित्र विश्वनाथ प्रताप सिंह के घर का है जब उनके साथ नाश्ता करने के बाद मैं उनके साथ प्रचार के लिये निकल रहा था और साथ मे जफर अली नकवी भी है ।

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2024

पूरा भारत तो कभी नहीं लड़ा

पूरा भारत तो कभी नहीं लड़ा, मुट्ठी भर ने ही बदला हमेशा इतिहास 

डा.सी.पी.राय

सैकड़ों साल पहले ही भारत में लिख दिया गया था कि “ कोउ नृप होय हमें का हानि” । इससे भारत की मिट्टी का मूल चरित्र सिद्ध होता है।

कुछ लोग कह सकते है कि ये गोस्वामी तुलसीदास ने मुगल राज स्थापित होने के बाद लिखा था ,राम के युग मे ही सम्पूर्ण जनता किसी गलत के खिलाफ खड़ी हो गई हो ऐसा तो नही दिखा ,वो चाहे राम को राजा बनने से रोकना हो या फिर सीता की अग्नी परीक्षा या अग्नी परीक्षा के बाद भी उनका वन जाना। विस्तार मे जानाँ विवाद पैदा कर सकता है ।

कृष्ण के युग मे कंस हत्याये करता जा रहा था पर कहा कोई आवाज उठी कि ये गलत है ,चाहे राजा हो या जमीदार या कोई बडा नही है उसे इस तरह हत्याये करने का अधिकार नहीं है। अशोक के काल मे भी कहाँ जनता ने कुछ भी कहा था ,जनता तो हमेशा ताकत और सत्ता की अनुगामिनी ही बनी रही ।

वरना बस सैकड़ो की तादात में आते थे विदेशी लुटेरे और लूट कर चले जाते थे भारत को । जब कोई आता तो खेती करता किसान हल बैल लेकर किनारे खड़े होकर तमाशा देखता और बाक़ी लोग भी।

लड़ता सिर्फ़ वो था जिसे लड़ने के पैसे मिलते थे और ज़्यादातर वो भी सेनापति के घायल होने या मर जाने पर भाग खड़े होते या विजेता से मिल कर उनके लिए लड़ने लगते ।

भारत पर आक्रमण करने वाला या राज करने वाला कोई भी बड़ी फ़ौज लेकर नहीं आया था सबकी लड़ाई और राज भारतीय लोगों के दम पर ही चला। भारत के नागरिक पर जुल्म हो या हत्या सब यही के लोगो ने किया या तो डर कर या फिर बिक कर और विदेशियों को बुलाकर लाने वाले भी भारतीय थे , रास्ता बताने वाले या कमजोरी बताने वाले सारे विभीषण भी भारतीय थे।

मैंने कई बार कहा है उदाहरण के लिए की जब सोमनाथ को लूटा जा रहा था तो वहाँ के सारे पंडे और दर्शनार्थी बैठ कर पूजा करने लगे की अभी भगवान का प्रकोप होगा और सब लुटेरे भष्म हो जाएँगे।

पर वो करने के बजाय अगर उन्होंने अपने थाली लोटे से भी आक्रमण कर दिया होता तो सोमनाथ नहीं लूटा होता , भगवान की मूर्ति और मंदिर की शक्ति का भ्रम भी बना रहता और लुटेरे टुकड़ो मे मुर्दा पड़े होते और उससे भी बड़ा काम ये हुआ होता की आइंदा कोई भी भारत पर आक्रमण करने से पहले सौ बार सोचता की भारत का या उसके किसी भी हिस्से का हर आदमी अपने राज या जमीन के लिए लड़ने को खड़ा हो जाता है।

आगे भी पूरा देश तो कभी खड़ा नहीं हुआ बल्कि थोड़े से लोग खड़े हुए किसी भी लड़ाई में वो अन्दोलन चाहे आज़ादी का रहा हो और चाहे आपातकाल से पहले का।

जिन लोगों ने भी हिंसा का रास्ता अपनाया उनके साथ बहुत कम लोग खड़े हुए । गांधी जी इस मिट्टी की तासीर को अच्छी तरह समझ गए थे इसीलिए उन्होंने अहिंसा का रास्ता अपनाया और इस रास्ते से वो लाखों या करोड़ों जोड़ने में कामयाब हुए पर वो भी पूरे देश को नहीं जोड़ पाये।

अंग्रेजो के समय भी पूरी जनता तो इसी कोऊ नृप वाले भाव की थी तो बहुत से लोग अंग्रेजो का साथ दे रहे थे ,बहुत से प्रशंसक थे तो हाथो मे हथियार लेकर जलियां वाला बाग से होकर पूरे देश मे गोली लाठी चलाने वाले ,  आजाद को गोली मारने वाले ,भगत को फाँसी लगाने वाले और सुभाष की सेना पर गोली बरसाने वाले सब तो भारतीय ही थे केवल आदेश देने वाला अंग्रेज होता था और मुखबिरी कर आज़ादी के लिए लड़ने वालो की पकड़वाने वाले भी भारतीय ही थी ।सभी के खिलाफ अंग्रेजो के पक्ष मे मुकदमा लड़ने वाले भी भारतीय थे और गवाही देने वाले भी भारतीय ही थे।

आज भी वही हालत है जो भारत की तासीर है। बंद जगह पर छिप कर विरोध करना हो या छुपा कर बटन दबा कर सत्ता बदल देना हो बशर्ते बटन दबाने वाले हिसाब से ही परिणाम दे तो इतना तो अधिकतम भारतीय कर सकता है पर खुले मे आकर चुनौती देना भारत के आवांम की आदत नही है।

इतिहास मे भी भारत ने कभी भी किसी मजबूत को चुनौती नही दिया। ये हमारा चरित्र है गुलाम होना या गुलाम बनाना ।संमता मे हमारा विश्वास ही नही है ।कमजोर को मारना और मजबूत के सामने दुम हिलाना।

अगर आज भी देश अपने अहित और बुरे भविष्य पर मुखर नही होता तो ये बहुत चिंता की बात नही है ।अगर आज भी सोमनाथ की तरह देश का बडा हिस्सा मन्दिर मे अपना सुख और भविष्य देख रहा है तो इसमे आश्चर्य की कोई बात नही है।

छोटे स्तर पर भी लोग कहा निकलते है बिजली या पानी नही मिलने पर ,सड़क के लिए या किसी भी बुनियादी समस्या के लिए ।पडोस पर हमला होने या बच्चा उठने या बलत्कार होने पर खिड़किया और पर्दे बंद कर जोर दे टीवी चला देने या कान मे रुई ठूस लेना ज्यादा मुनासिब लगता है।

पानी नही दे सरकार तो अपना जेट पंप लगा लिया , बिजली के लिए अपने जेनरेटर लगा लिया । जितना सहनशीलता है भारत के समाज मे । पर ऐसा भी नही कि कभी नही निकलते।

जरा किसी धार्मिक स्थल को कुछ हो जाये ,किसी के चित्र या प्रतिमा से कुछ हो जाये या दो जानवरो मे से किसी का कुछ हो जाये तो निकलते है पर फिर भी मुट्ठी भर और बच बच कर कि कोई खतरा तो नही और नही है तथा सामने वाला कमजोर या कम है तो कायरता पूरी ताकत से क्रूरता दिखाती है और चीख की आवाज भी बुलंद होती है।

दूसरी तरफ राम भी तो तीन ही थे जिसमे से एक व्यव्स्था के लिए और दो युद्द के लिए और दो साम्राज्य पराजित कर आये थे । कृष्ण ने अकेले केवल दिमाग और जुबान का इस्तेमाल कर भारत को महाभारत तक पहुचा दिया ।बुद्ध निकले तो अकेले थे पर दुनिया के बड़े हिस्से को जोड़ लिया ।ईसा ने सूली पर लटके लटके ही दुनिया के बड़े हिस्से को अपने सामने झुका दिया और करबला मे कहा करोडो थे पर करोडो को अपना अनुयायी बना दिया।

गांधी अफ्रीका मे भी अकेले थे और भारत भ्रमण पर भी अकेले ही निकले और ऐसा निकले कि बिना हथियार के ही इतने बड़े दुश्मन को देश से निकाल दिया। उसके बाद भी किसी एक ने ही सत्ताए बदली है भारत की।

आज फिर भारत आज़ादी बनाम गुलामी, लोकतंत्र बनाम अधिनायकवाद ,संविधान बनाम प्रधान की इच्छा , कानून बनाम सता की लाठी के बीच झूल रहा है।

अधिकांश कोऊ नृप होय वाले है तो बहुत से अज्ञात कारणो से प्रशंसक है तो बहुत से गली गली मे मुखबिर और बहुत से लाठी बन्दूक और कानून की किताब के साथ इनके साथ खड़े है तो बहुत से चाहे कलम से या कला से ,जुबान से या आंखो की भाषा से लडाई भी लड़ रहे है सच की ,ईमान की ,लोकतंत्र की संविधान की और अन्त मे यही जीत जायेंगे सारे जुल्म के बावजूद क्योकी हमेशा ही ये मुट्ठी भर लोग ही जीते है।

इतिहास तो यही बताता है । बस देखना इतना है की वो एक कौन होगा इस युद्ध का नायक और क्या कोई सम्पूर्ण भारत को कभी निकाल सकेगा चाहे जिसके खिलाफ चाहे जब और चाहे जो भी गलत हो ? क्या कोई बदल पायेगा ये आवाज “कोऊ नृप होंय हमे का हानी “से “को नृप होय ये हम ही जानी” मे ।

(लेखक स्वतंत्र राजनीतिक चिंतक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)

शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

ताज महोत्सव मैने शुरू करवाया

लाटरी फाड़ो आंदोलन और फिर खात्मा

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--

कितने लोगो को पता है की  #लाटरी #मैने_खत्म_करवाया ।

पुराने लोग जानते है की एक समय था देश भर मे हर सड़क हर गली और हर बाजार मे लाटरी बहुत बडा व्यवसाय बन गया था । लोगो ने रेस्तरां से लेकर और कारोबार बंद कर लाटरी का कारोबार शुरू कर दिया था । पूरे देश में सड़क सड़क चौराहे , चौराहा लाटरी की दुकानें फैल गई थी । ऐसे बाजार जो बने तो इसलिए थे कि उसमें तरह तरह की दुकानें खुलेगी और लोगो को एक ही स्थान पर कई चीजें मिल जाएंगी तथा उसमें एकाध रेस्तरां तथा चाय खाने की दुकान भी थी ,ऐसा समझ लीजिए कि एक छोटा था मॉल था वो क्योंकि तब मॉल नहीं होते थे ,वो पूरा बाजार ही केवल लॉटरी का बाजार बन गया था । होल सेल वालो का तो कहना ही क्या था । पूरा देश इस लॉटरी की गिरफ्त में आ चुका था । परिवार के परिवार तबाह हो रहे थे ।

उसी दौर मे मुझे कुछ घटनाए पता लगी जिसमे से अभी सिर्फ एक का जिक्र कर दे रहा हूँ -
एक मध्यम वर्ग की महिला भी इसका शिकार हो गयी । हुआ ये की वो घर का समान लेने जाती सब्जी इत्यादि और इस उम्मीद मे लाटरी का टिकेट भी खरीद लेती की शायद घर की हालात कुछ अच्छे हो जाये । उसकी एक बेटी थी शादी को और पति मे घर खर्च काट काट कर कुछ पैसा इकट्ठा किया था ।धीरे धीरे जुवरियो की तरह वो उस पैसे को भी ज्यादा टिकेट खरीद खर्च करने लगी और सब बर्बाद कर बैठी । फिर सब खत्म हो जाने पर परेशान रहने लगी । किसी दुकान पर उसकी किसी औरत से दोस्ती हो गयी थी और जब उसे समस्या पता लगी तो उसने इस महिला को वेश्यावृत्ति मे धकेल दिया । अक्सर ये महिला आत्महत्या करने का सोचती थी इसलिए इसने सारा ब्योरा और अपना गुनाह एक जगह लिख कर रख दिया की उसकी मौत के लिए वो खुद जिम्मेदार है और दूसरे कागज पर अपने पति को सारी बात और अपना माफीनामा । वेश्यावृत्ति के चक्कर मे एक दिन वह जहा पहुची वहा उसके खुद का बेटा और उसके दोस्त थे जिन्होंने दलाल से उसे बुलवाया था और फिर वहा से भाग कर उसने आत्महत्या कर लिया ।बाकी घटनाओं के बारे में व्यक्ति के जिक्र के बिना लिख दे रहा हूं । ऐसे न जाने कितनी बहन बेटियां बर्बाद हुई तो न जाने कितने नौजवान तबाह हो गए थे और अगर परिवार के मुखिया को ही लखपति बनने की लत पड़ गई तो समझा का सकता है कि देश भर में क्या हालत हो गई होगी । ये उस वक्त के लोगो को याद है । 
ये और कुछ अन्य दर्दनाक घटनाए  जिनमे ना जाने कितने लाख घर और लोग बर्बाद हुये , कितनो ने आत्महत्या कर लिया , मेरे संज्ञान मे आई तो मेरी आत्मा ने धिक्कारा की क्या सिर्फ जिन्दाबाद मुर्दाबाद ही राजनीती है या समाज के असली जहर के खिलाफ लड़ना भी हमारी जिम्मेदारी है । 

मैं कोई बहुत बड़ी हस्ती तो नहीं था कि मेरे आह्वान पर देश भर में आंदोलन शुरू हो जाते तो मैने आगरा से इसके खिलाफ लॉटरी फाड़ो आंदोलन शुरू करने का फैसला किया । 
#अलोक_रंजन जो उत्तर प्रदेश के #मुख्यसचिव से रिटायर हुये है और अभी भी लखनऊ मे है वो मेरे आगरा में  डी एम थे और बाबा हरदेव सिंह ए डी एम सिटी ।भाजपा की कल्याण सिंह की सरकार थी ।मैं अलोक रंजन से मिला और उनके सामने मैने वो सारी घटनाए रखा और कहा की मैं कम से कम अपने शहर मे तो लाटरी नही बिकने दूंगा । वो बोले की सरकार के बड़े राजस्व का भी सवाल है और कानून व्यव्स्था का भी पर नैतिक रूप से मैं आप की बात का समर्थन करता हूँ । पर कोई अव्यवस्था फैलेगी या कानून व्यवस्था का सवाल पैदा होगा तो मुझे आप के खिलाफ कार्यवाही करना होगा । इसलिए सांकेतिक रूप से आप विरोध करना चाहे तो करिए । मैने कहा कि मैं तो जहां भी लॉटरी बिकती दिखेगी फाड़ दूंगा जो होगा देखा जाएगा । ये कह कर उनके घर से निकल गया । 
बस एक प्रेस कांफ्रेंस किया और सब घटनाओं के बारे में बताते हुए तथा किस तरह समाज और परिवार बर्बाद हो रहा है बताते हुए घोषित कर दिया कि कल से लॉटरी फाड़ो आंदोलन चलेगा और अगले दिन किस दिशा में तथा किस बाजार में जायेंगे वो भी घोषित कर दिया और उसके बाद लाटरी फाडो अभियान की शुरुवात हो गयी ।
हम निकल पड़े चंद साथियों के साथ । लॉटरी बेचने वालो ने गंभीरता से नहीं लिया था और वहां पहुंचते ही मैने पहली दुकान की सब लॉटरी फाड़ दिया फिर क्या था सभी साथियों ने छीन छीन कर लाटरी फाड़ना शुरू किया । थोड़ा प्रतिरोध कर लाटरी वाले टिकट लेकर भगाने लगे । अगले दिन एक क्षेत्र में हम लोगो पर लॉटरी वालो ने पथराव कर दिया तो मेरे कुछ साथी घायल हो गए ।मैं सीधे डी एम निवास पहुंचा और आलोक रंजन जी से इसके बारे में बताया तो उन्होंने बाबा हरदेव सिंह को कार्यवाही के लिए  भेज दिया और कुछ पथराव करने वाले गिरफ्तार हो गए । अगले दिन अखबार में ये छप गया तो लॉटरी वाले थोड़ा सहम गए । फिर तो हालत ये थी कि मैं जिधर निकल जाता लॉटरी की दुकानें बंद हो जाती , यहां तक कि अफवाह फैल जाए कि मैं उधर आ रहा हूं तो लॉटरी वाले दुकान बंद कर भाग जाते चाहे मैं इस कारण नहीं बल्कि व्यक्तिगत काम से उधर गया होता था । लॉटरी व्यवसाय का बहुत नुकसान होने लगा ,मेरे फाड़ने से भी और दिखाने बंद रहने से भी ।तब पश्चिम के एक बड़े अपराधी जो नेता बन गए थे और उनका नॉर्थ ईस्ट की लॉटरी की सप्लाई का पूरा काम था । उनकी तरफ से 5 लाख रुपए लेकर शांत हो जाने वरना गोली खाने को तैयार रहने की धमकी भी आई और मेरी पार्टी के एकाध लोगों ने इसमें मध्यस्थता करने का प्रयास किया तो मैने कहा कि बिकाऊ मैं हूं नहीं और इतना बदकिस्मत भी नहीं हूं कि ऐसे लोगों के हाथ से मारा जाऊं और अगर अच्छे काम के लिए मर भी गया तो शायद ये अन्दोलन भी जोर पकड़ ले और कामयाबी मिल जाये वर्ना कम से कम अच्छे काम के लिए मरूँगा । अभियान जोर  पकड़ गया था और मेरी देखी देखा प्रदेश और देश में अन्य स्थानों से भी इसके खिलाफ आवाजें उठने लगी थी । अभियान गति पकड़ चुका था । 
उस वक्त की मीडिया ऐसी नही थी सारे अखबारो ने रोज बडा कवरेज दिया और मेरा समाचार पूरे प्रदेश और देश के एडिशन मे छापा जिसका जहां छपता था उसी की वजह से अभियान फैल सका । तब मीडिया सरोकारों से सरोकार भी रखता था और पक्ष विपक्ष नहीं बल्कि समाचारों के साथ रहता था । 
और हा #भाजपा पूरी ताकत से इस आन्दोलन के खिलाफ और #लाटरी व्यापार #के_पक्ष_मे_थी ।
मतलब बहुत कुछ झेलना पडा था मुझे जो सब यहां नहीं लिख रहा हूं । 
कितना लोकप्रिय था वह मेरा अन्दोलन इससे समझ लीजिये की - नैनीताल मे पार्टी के प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक तय हो गयी और मुझे रिजर्वेशन नही मिला तो सीधे ट्रेन पर पहुच गया ,ट्रेन मे टीटी ने पहचान लिया और बोला कि आप बहुत बड़ा काम कर रहे है और बर्थ दे दिया । यही काठगोदाम मे हुआ वहा के स्टेशन मास्टर ने पहचान लिया बैठा कर चाय पिलाया और नैनीताल उनके एक दोस्त जा रहे थे उनके साथ मुझे भेजा और वापसी के रिजर्वेशन का इन्तजाम भी किया । (ऐसा मेरे साथ मुशर्रफ वाले अन्दोलन मे भी हुआ था जब उसके अगले दिन मैं फैजाबाद गया तो बस स्टेशन के पास जो उस बक्त का अच्छा होटल था उसमे किसी ने रुकने का इन्तजाम किया था , मैं काऊंटर पर पहुचा तो आजतक पर मेरा ही समचार चल रहा था ,वहा बैठा मालिक टीवी और मुझे आश्चर्य से देखने लगा ,खैर फिर उसने होटल के बजाय अपने घर का खाना खिलाया और कमरे का पैसा लेने से भी इन्कार कर दिया ) ।

थोडे दिन बाद हमारी सरकार बन गयी और #मुलायम_सिंह_यादव जी #मुख्यमंत्री बन गए ,  तब उनके सामने मैने उत्तर प्रदेश में लाटरी खत्म करने का प्रस्ताव किया जिसका एक पूरा विभाग था । 300 या 400 करोड़ लाटरी से प्रदेश को मिलता था उस समय ।पर मेरे अन्दोलन का नैतिक दबाव भी था और मुख्यमंत्री ने भी जरूरी समझा और उत्तर प्रदेश में तत्काल प्रभाव से लाटरी बंद कर दी गयी फिर ऐसा माहौल बना की धीरे धीरे सभी प्रदेशो को लाटरी बंद करनी पडी ।
उस दिन मैं बहुत सुकून की नीद सोया और बहुत दिनों तक मुझे खुद पर संतोष महसूस होता रहा कि मैने कुछ अच्छा कर दिया था । 

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2024

जयपुर कानक्लेव

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

 मैं जयपुर गया था #etv के कन्क्लेव मे हिस्सा लेने #समाजवादी पार्टी की तरफ से ।कार्यक्रम की अध्यक्षता भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह जी ने किया था तो उद्घाटन उस वक्त विदेश मंत्री और मेरे मित्र सलमान खुर्शीद ने और केन्दीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रहमान जी , मोहसिना किदवई, शिया धर्म गुरु क्ल्वे जव्वाद , पूर्व मंत्री शाहनवाज ,  लालू जी की पार्टी से पूर्व मंत्री फातमी जी , साम्यवादी पार्टी से मेरे मित्र अतुल अनजान ,  पुरी की शंकराचार्य , केन्द्रीय मुख्य सूचना आयुक्त पूर्व आई ए एस हबिबुल्ला सहित सभी बडी पार्टियो के बड़े नेता आये (एक मैं ही साधारण कार्यकर्ता था जिसे सीधे etv ने बुलाया था )
विषय था -माइनोरिटि के समक्ष चुनौतिया ।
कार्यक्रम कई उर्दू वाले देशो मे सीधा प्रसारित हुआ था पूरे समय ।
मुझे याद है की उस दिन कार्यक्रम से एक दिन पहले रात 9 बजे तक तीन बार और फिर कार्यक्रम वाले दिन सुबह ही मुलायम सिंह यादव जी का फ़ोन आया की कौन कौन और है इस कार्यक्रम मे ? जब मैने आधिकतर नाम बता दिये तो बोले आप क्या बोलेंगे कुछ तैयार किया है ? मैने कहा की सब आयोग की रिपोर्ट और बहुत कुछ पढ कर आया हूँ पर यदि बाकी लोग मुद्दे पर बोलेंगे तो मैं केवल मुद्दे पर बोलूंगा जो मेरी आदत है पर यदि लोग राजनीती करेंगे तो मेरा भी जवाब पहले राजनीतिक ही होगा और फिर मुद्दा भी । वो हर फ़ोन पर कोई एक नई बात याद दिलाते और मैं आश्वस्त करता की आप चिंता मत करो कल खुद सुन लेना, मैं इनमे से किसी से भी 19 साबित नही हाऊँगा ।
और हुआ भी वही की पहले सलमान खुर्शीद ने  उद्घाटन भाषण किया फिर राजनाथ सिंह ने भी व्यस्तता बता उनके तुरंत बाद भाषण किया कि जाना है और उन दोनो के बाद ही मुझे बुला लिया गया फिर जो मेरा तरीका है वही किया हाल की तालियो के बीच ।
मुलायम सिंह यादव बैठे रहे अपने लखनऊ मे टीवी के सामने मेरा भाषण हो जाने तक ।

अयोध्या आंदोलन

#जिंदगी_के_झरोखे_से--

#अयोध्या_आंदोलन 

1990 - 25 सितम्बर को गुजरात के सोमनाथ से अडवाणी जी ने रथयात्रा शुरू कर दिया था ।अडवाणी जी देश के लोकतंत्र की एक राष्ट्रीय पार्टी के दो बड़े नेताओ मे से एक और उसके अध्यक्ष थे जिसकी जिम्मेदारी देश के भविष्य के लिए लड़ने और शैडो गवर्नमेंट बना कर वैकल्पिक विकास का एजेंडा शिक्षा स्वास्थ्य कृषी सुरक्षा इत्यादि होना चाहिये था वो इन मुद्दो के लिए नही बल्की मंदिर बनाने के लिए माहौल बनाने निकला था । उनको 30 अक्तूबर को अयोध्या पहुचना था पर 23अक्तूबर को उनको लालू यादव ने समस्तीपुर मे गिरफ्तार कर लिया और फिर उनका रथ वाहि थाने मे ही सड़ गया किसी को उसकी याद नही आई ।
काश अडवाणी जी देश की समस्याओ के लिए रथ लेकर निकले होते गरीबी और बेरोजगारी के खिलाफ निकले होते , गांव की बदहाली के खिलाफ निकले होते , अशिक्षा और अभाव मे मौत के खिलाफ निकले होते तो शायद हम जैसे लोग भी साथ हो लेते पर !
कहानी के विस्तार मे नही जाकर मुद्दे पर आता हूँ जिसके लिए आज लिख रहा हूँ 
राम लला हम आयेंगे ,मंदिर वही बनायेंगे 
बच्चा बच्चा राम का जन्मभूमि के काम 
इत्यादि नारे लगवाये जा रहे थे 
आरएसएस और भाजपा तथा विश्व हिन्दू परिसद ने कार सेवा का एलान किया । 21अक्तूबर से ही देश भर से ये सब संगठन मिल कर लोगो को विभिन्न रस्तो से अयोध्या के 100 किलोमीटर के दायरे मे चारो तरफ लाने लगे ।
और अन्ततः 30 अक्तूबर  और फिर 2 नवम्बर  को इस तरह कूच किया जैसे किसी दूसरे देश मे विजय प्राप्त करने क
जा रहे हो ।
अयोध्या मे पूजा और दर्शन होता था उस समय भी पर विवाद अदालत मे था ।
मैं उस वक्त पार्टी का प्रदेश महामंत्री और प्रवक्ता था हम लोगो ने दो प्रस्ताव किया यह कहते हुये की दर्शन और पूजा सबका अधिकार है पर संविधान और कानून से खिलवाड़ सरकार मे बैठा हुआ और उसकी शपथ लिया कोई भी व्यक्ति नही करने देगा और हम भी नही ।
पर हमारे दो प्रस्ताव है --
हम मध्यस्थता करने को तैयार है दोनो पक्ष साथ बैठ जाये और सहमती से तय कर ले क्या होना चाहिये सरकार उसी को मानेगी 
2--यदि सहमती नही बनती है तो फिर एक ही तरीका है की अदालत जो तय करे वो माना जाये ।
कोई तीसरे तरीके को संविधान और कानून से चलने वाले देश मे किसी भी हालत मे नही स्वीकार किया जा सकता है और न किसी हालत मे स्वीकार किया जायेगा ।
तब इन लोगो ने जवाब दिया था जो आज पूरे देश को जानना चाहिये -
कि 
"यह अदालत और कानून नही बल्की हमारी आस्था का सवाल है और इसे हम खुद हल करेंगे "
बड़े नेताओ ने आफ द रिकार्ड यह कहा था की सिर्फ साफ सफाई करेंगे और घोषणा हो चुकी है तो दर्शन कर लौट जायेंगे ।
लाखो की भीड खेतो मे होकर अयोध्या पहुची और रोकने पर पुलिस तथा प्रशसनिक अधिकारियो पर हमलावर हो गई । अधिकारियो ने बहुत समझाने का प्रयास किया की शान्ती से दर्शन करे और वापस चले जाये पर भीड उग्र हो गई जिसके लिए पीछे से सिखा पढा कर लाया गया था ।
भीड गुम्बद पर चढ़ गई और तोड़फोड़ करने लगी 
मजबूरन पुलिस को बल प्रयोग करना पडा और उसमे 16 लोगो की जाने गई जो बहुत अफसोसजनक है क्योकी वो सब इसी देश के नागरिक थे और अपने परिवारो के प्रिय थे । किसी भी हालत मे कभी भी अपने ही नागरिको पर पुलिस की लाठी और गोली चले यह लोकतंत्र के बिल्कुल खिलाफ है और जिम्मेदार राज्य की अवधारणा के भी खिलाफ है । मरने वाले अधिकतर पिछड़े वर्गो के जवान थे ।ये भी सच है की उन मृतको के परिवारो का इन संगठनो और इनकी सरकारो ने फिर कभी हालचाल भी नही पूछा ।
आरएसएस के झूठ तन्त्र ने फैला दिया की हजारो जाने चली गई और सरयू का पानी लाल हो गया और एक खून खौला देने वाला वीडियो भी बना दिया इन लोगो ने 24 घन्ते मे और देश भर मे बांट भी दिया जैसे अन्ना के आन्दोलन मे मिंनटो मे झंडे और मशाले बट जाती थी ,बस आप दोनो को एक साथ रख कर देख्ते जाइए । मैने दिल्ली मे किसी संघी के घर वो वीडियो देखा ,पूरी पिक्चर थी सारे इफेक्ट डाल कर बनायी गई जिसमे लाशे ही लाशे दिखाई गई ,नाली मे खून बहता दिखाया गया , पहले सोमनाथ से लेकर बाबर तक पता नही क्या क्या बताया गया और उसमे एक हेलिकोप्टर उड़ता दिखाया गया था जिसमे बैठे मुलायम सिह यादव को मशीन गन से लोगो पर गोली चलते दिखाया गया था ।
हमने चुनौती दिया की आप मृतको के नाम बताओ ।  ये लोग जो भी नाम बताते हम पूरा सिस्टम लगा कर उनको ढूढ लाते और मीडिया के सामने पेश कर देते । इंनकी सारी लिस्ट और बात फर्जी नकलती गई और अन्त मे वो 16 लोग बचे जो सचमुच मरे थे और उनकी मौत पर हम सबको अफसोस तब भी था और आज भी है ।
पर यह भी उल्लेखनीय है की कल्याण सिंह की भाजपायी सरकार मे जब सरकारी तौर पर फिर लाखो की भीड आई और विवादित ढांचा तोड गया तो उस पर चढे तमाम लोग उसी के नीचे दब गये थे पर सत्ता का नशा और इस विश्व विजय के जोश मे वो बेचारे समचार की सुर्खिया नही बने ।
उसके बाद अयोध्या से ही मार काट लूट शुरू हो गई और यहा तक की खुद भाजपा का अल्पसंख्यक सेल का अध्यक्ष चीखता ही रह गया की मैं तो आप की पार्टी के इस पद पर हूँ, पर ? (इसका ब्योरा उस दिन के हिन्दू के मौके पर मौजूद रिपोर्टर की रिपोर्ट मे मिल जायेगा ।
कैसे लोग आये थे ये धार्मिक काम करने इसी से समझ लीजिये की रुचिरा गुप्ता इनकी भीड मे ही थी तो उसके शरीर से कपडे गायब हो गए और ये देख कर बी बी सी के रिपोर्टर मार्क टूली ने उसे अपना कोट पहनाया और पिटता रहा पर किसी तरह रुचिरा को भीड से निकालने मे कामयाब रहा ।
दंगो मे 2000 से ज्यादा जाने गई ,हजारो करोड़ की सम्पत्ती नष्ट हुई और उठान लिए हुये विकास का पहिया बैठ गया और सालो पीछे चला गया ।
दंगो मे इन लोगो ने क्या किया था आतंक फैलाने को सर्फ इस बात से जान लीजिये की एक टेप बनाया था जी किसी छत पर अचानक काफी तेज आवाज मे चीखता --बचाओओ ओ ,भागो ओ ओ ,आ गए हजारो मुस्लमान ,अरे मार दिया अरे एक और मार दिया भागो ओ ।
और हम लोग जो आगरा के कालेज कैम्प्स मे रहते थे उसके लोग भी अपने हथियार लेकर निकल आये और छपने की जगह ढूढ़ने लगे ,मैने कहा की यहा कहा कोई मुस्लमान है आसपास पर कोई सुनने को तैयार नही था ,आगरा का लाजपत कुन्ज और ऐसी तमाम कालोनी जो मुस्लिम इलाको से 8 से 10 किलोमीटर दूर है लोग रात रात भर पहरा देने लगे ,रास्तो पर बड़े बड़े पत्थर और पुराने टायर रख दिये इत्यादि 
और मुसलमान अपने मुह्ल्लो मे दुबका था की निकले नही की पी ए सी आयेगी और फिर सिर्फ गोलियो की आवाज होगी ।
(दंगो मे क्या क्या हुआ और कौन लोग मरे , किनके साथ क्या क्या हुआ और क्या क्या कर्म करते हुये महान लोग जय श्रीराम के नारे लगते थे और राम का नाम कर बडा कर रहे थे और कौन सी संपत्तियाँ नष्ट हुई इत्यादि तमाम आयोग और जांच कमेटी की रिपोर्ट अब सार्वजनिक है और हो सचमुच देश के वफादार और जिम्मेदार लोग है उनको सब पढ़ना चाहिये और सब जानना चाहिये ।
हर दंगे के बाद भाजपा की सीटे बढती गई ।
और 
इसी बीच विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अडवाणी जी के अभियान के मुकाबले मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू कर दिया ।उनकी सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया और चंद्रशेखर जी प्रधान मंत्री बन गए ।
# बीच मे ये भी जान लीजिये की विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को भाजपा का समर्थन था और भाजपा के प्रिय जगमोहन कश्मीर के राज्यपाल थे जब कश्मीरी पंडीत कश्मीर छोड कर गए ,पर उस वक्त भाजपा ने न उसे मुड़दा बनाया और न कश्मीरी पण्डितो के सवाल पर उस सरकार से समर्थन ही वापस लिया#
हा तो चंद्रशेखर जी के अटल बिहारी वाजपेयी श्रीमति सिंधिया , भैरोंसिंह शेखावत सहित काफी भाजपा नेताओ से अच्छे सम्बंध थे और उनकी सरकार मे हम लोगो के युवा राजनीती के मित्र सुबोधकांत सहाय गृह मंत्री थे ।
(  मन्दिर सम्बन्धी हिन्दू परिसद और इन लोगो की बैठक और प्रधान मंत्री से मिलकर बात करने की इच्छा पर चंद्रशेखर जी का उनकी बैठक मे श्रीमति सिंधिया के यहा खुद पहुच जाना और फिर उन्होने क्या सुना और क्या कहा तथा फिर मुस्लिम पक्ष से क्या कहा जानने के लिए Chanchal Bhu की वाल खंगालिए थोडा समय निकाल कर )
अन्त मे चंद्रशेखर जी विवाद का एक सर्वसम्मत हाल निकाल ही लिया अपनी दृढता और दूरदर्शिता से जिसपर अंदर सब सहमत थे और वो फौसला करीब ऐसा ही था जो उसके बाद इतनी बर्बादी और दंगो तथा नफरत की खेती के बाद अन्ततः अदालत ने ही दिया # फिर याद रखिये की हमने कहा था की या तो बातचीत से हल कर लो या अदालत को करने दो और तब आस्था के नाम पर अदालत को मानने से इंकार कर दिया था इस जमात ने #
और अपनी सरकार बन जाने पर उसी अदालत को माना भी और दिन रात देश से भी कहते रहे की अदालत को सभी माने मिलजुल कर और पूरे देश ने माना मुसलमान ने भी । पूरा देश शान्त रहा पर यदि अदालत का फौसला इसका उल्टा होता तो क्या होता ,कल्पना से रूह काँप जाती है ।
प्रधान-मंत्री चंद्रशेखर के निवास से विश्व हिन्दू परिसद वाले यह कह कर निकले की थोडी देर मे आपस मे राय कर के आते है और फिर आये ही नही ।
अब पाठक ध्यान से पढे और समझे इस जमात के इरादे की , आदत को , रणनीति को ,इच्छा को , इनके हथकण्डे को , देश के प्रति जिम्मेदारी को , देश के भविष्य को लेकर चिंतन को , चिंता को और इनके देश के लिए सपने ,सिद्धांत और सक्ल्प को । 
( लखनऊ से दिल्ली तक की सत्ता के करीब रह कर , निस्पक्ष रूप से जागृत रह कर जो देखा , जो जाना , जो समझा सब लिख दिया क्योकी जो अब 45 साल के है तब स्कूल मे पढ रहे होंगे और 1990 मे पैदा लोग अब 30 साल के हुये होगे ।देश की 65%आबादी 35 साल के नीचे की है इसका मतलब ये है की उनको जो बताया गया होगा शाखा मे ता सन्घ के प्रचार ने वो उसी को सच मानते है ।इसलिए सभी जागरूक और सच्चे देशभक्तो की जिम्मेदारी है की पूरे देश को सच की तस्वीर दिखाए बड़े पैमाने पर और देश को फसीवद की तरफ जाने से बचाए ।
आज इसिलिए मैने एक पोस्ट मे लिखा था की देश दो पाटो के बीच फंस गया है -एक जो सच है और दूसरा आरएसएस का सच । देखे ईश्वर कैसे बचाता है मेरे देश को ।
जो सच्चे हिन्दू है और सचमुच मे राम कृष्ण और शिव को मानते है और चाहते है की समाज इन तीनो के नाम पर घृणा और दंगे मे न फंसे बल्की इनके जो गुण और ज्ञान आज को और भविष्य को अच्छा बनाते हो और भारत को तथा भारत वासियो को अच्छा बनाते हो उनका प्रसार हो उनकी भी जिम्मेदारी है की देश और समाज को सही धर्म का ज्ञान कराये ,स्वामी विवेकानन्द से लेकर गांधी जी और डा लोहिया तक के धर्म और इन लोगो के बारे मे लिखे का ज्ञान कराने का अभियान चलाये ।
अदालत का फौसला आया , मन्दिर बनेगा , देश मे सब उसके पक्ष मे है पर उसे धार्मिक आयोजन ही रखा जाता और उसमे राजनीती नही की जाती तो भारत बनता 
लेकिन इन लोगो को भारत बनाना ही कब था या है इन्हे तो बस वोट और सरकार बनाना है सब बेच देने के लिए ।

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

ग्रेटर आगरा और भी बहुत कुछ

#जिंदगी_के_झरोखे_से
और 
कुछ आज की चर्चा भी ---
आज अखबार मे ग्रेटर आगरा के संदर्भ मे समाचार पढा और ये कवायद आगरा विकास प्राधिकरण ने शुरू किया है ।
दर असल इस पर मैने काफी काम किया था और तत्कालीन कमिश्नर आगरा प्रदीप भटनागर जी के साथ सभी विभागो के प्रमुखो की ये बैठक कर विस्तार से चर्चा किया था ,शंकावो का समाधान किया था और फिर बैठक से प्रस्ताव पास करवा कर शासन को भेजा था । इससे पहले अपने प्रस्ताव पर डा पारीख सहित आगरा के कई प्रबुद्ध जनो से भी चर्चा कर लिया था ।
उस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मेरे बहुत अच्छे मित्र और आगरा के पूर्व जिलाधिकारी अलोक रंजन जी थे ।प्रस्ताव उनके पास पहुचने पर मैने उनको भी इसके बारे मे विस्तार से बताया था तथा इसके प्रभाव और परिणाम के बारे मे अपनी सोच से अवगत करवा दिया था ।आलोक रंजन जी मेरे प्रस्ताव से पूर्ण सहमत थे और तय हुआ कि जल्दी ही मुख्यमंत्री से समय तय कर मीटिंग रख लिया जाये जिसमे संबंधित विभागो के अधिकारी , आगरा के अधिकारी तथा   कुछ प्रमुख लोगो को बुला लिया जाये और उसमे मैं वही प्रसेन्टेशन दूँगा और मुख्यमंत्री की सहमती के बाद ये काम रफ्तार पकड लगा ।
इस पूरी योजना से एक नये नॉएडा का निर्माण होता ,आगरा के साथ साथ आसपास के जिले प्रभावित होते ,बड़े पैमाने पर कई सालो के लिये रोजगार पैदा होता और आगरा तथा पास के जिलो की अर्थव्यवस्था पर भी असर पडता ।
पर इतने लम्बे समय मे मुख्यमंत्री समय नही दे पाये और एक ऐतिहासिक फैसला जिससे आगरा के साथ पहली बार न्याय होता होने से रह गया ।
इसी बैठक मे मैने आगरा एयर फोर्स मे मौजूद सिविल एयरपोर्ट को खुले रूप से सचमुच एयरपोर्ट मे तब्दील करने और तरीके का भी सुझाव दिया था ।
आगरा की यमुना नदी के साथ प्रदेश और देश की सभी नदियो की कम से जहा तक वो शहरो को छूती है डीसिल्टींग के कारण,परिणाम सहित रचनात्मक सुझाव दिया था जिससे नदी का स्वरूप वापस आता , पानी की कमी दूर होती , पानी की गुणवत्ता अच्छी होती और शहरो वाटर लेबल बढता ।
आगरा का ताज महोतसव भी मेरे ही दिमाग की उपज थी जब मैं हैंडीक्राफ्ट बोर्ड औफ़ इंडिया का सदस्य मनोनीत हुआ था शरद यादव जी द्वारा । उस वक्त ग्वालियर और सूरजकुंड के मिले जुले स्वरूप का तज महोतसव शुरू करने का सुझाव मैने तत्कालीन जिलाधिकारी अमल कुमार वर्मा जी को दिया ।फिर मेरे साथ डी एम की मौजूदगी मे बैठको का सिलसिला चला ।पी सी एस अधिकारी सक्सेना जी जो बाद मे आई ए एस होकर तमाम पदो पर रहे उस वक्त वो जी एम उद्योग थे को नोडल अधिकारी और विकास प्राधिकरण , सेल्स टैक्स , सूचना , प्रशासन सभी को मिला कर कमेटी बनी और महोत्सव की बुनियाद पड गई । मैं जहा मंडी समिति है वहा स्थायी रूप से इस महोत्सव , बाजार,संस्कृतिक स्थल , और विदेशियो के रुकने के लिये हट जैसा कुछ बनवाना चाहता था और साल भर चलने वाले कार्यक्रमो की रूपरेखा मैने रखा था जिसमे ये विशेष महोत्सव भी था और एक महीने का ग्वालियर की तर्ज पर मेला भी जिसमे सेल्स टैक्स से कुछ छूट पर हर चीज की बिक्री भी थी ।
पर तब तक मेरी सरकार चली गई और वर्मा जी भी ट्रांसफर हो गये और फिर स्वरूप ही बदल गया जो अब लोगो के सामने है ।
इसिलिए एक सोच होती है की जो किसी चीज का सपना देखने वाला और उत्प्रेरक होता है उस चीज के संपन्न होने तक उसकी भुमिका जरूर बनी रहनी चाहिए वर्ना कुछ का कुछ हो जाता है ।जैसा राजनीति मे भी होता है की आन्दोलन का नायक अगर बागडोर मे नही रहा तो उसके सपने दूसरो के द्वारा उस परिणाम तक नही पहुच पाते है ।
कहा लोगो को याद होगा की जब आगरा मे पुराने जमाने का टेलिफोन एक्सचेंज होता था तो जनेश्वर मिश्रा जी के संचार मंत्री बनने पर पहला एलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज मैं लेकर आया था । इसी तरह जब जनेश्वर जी रेल मंत्री बने तो कई ट्रेन जो आगरा और टुडला नही रुकती थी उनका स्टापेज करवाया तथा रिजर्वेशन का कोटा बढवाया था ।
एम एल ए और एम पी ना होते हुये भी 2000 से ज्यादा हैंडपंप मुख्यमंत्री से सीधे आगरा की जल समस्या को दूर करने को पास करवाये थे ।
पर ये सब अपना कर्तव्य सोच कर किया था ।ये तो पता था की जाति के कारण मुझे कभी टिकेट नही मिलेगा और मिल गया तो जनता वोट नही देगी ।

अपने समाज के लोगो के लिए ये घटना तो नफ़रत बांटने वाले और आतंक की खेती करने वाले पाकिस्तानियों के लिए भी ये घटना जब एक पाकिस्तानी बच्चे को मैने खून दिया था ।

#जिंदगी_के_झरोखे_से 

अपने समाज के लोगो के लिए ये घटना तो नफ़रत बांटने वाले और आतंक की खेती करने वाले पाकिस्तानियों के लिए भी ये  घटना जब एक पाकिस्तानी बच्चे को मैने खून दिया था । 

आगरा के मेरे एक तथाकथित दोस्त अचानक बीमार पड़ गए । हुआ ये की उनको सीने में दर्द हुआ ओर पसीना हुआ तो उनके परिवार ने समझा कि मास पेशिया दर्द कर रही है और पानी पिला कर वालिनी आयोडेक्स मलना शुरू कर दिया । दर्द बढ़ रहा था और तेज पसीना आ गया तो समझे की गैस चढ़ गई है । फिर मुझे फोन आया की ऐसा हो रहा है और ये ठीक ही नहीं हो रहे है तो मैने उन्हे तुरंत घर के बिलकुल बगल में डा पारिख के अस्पताल ले जाने को कहा और बोला की मैं आ रहा हूं। डा पारिख को मैने फोन किया की इन्हे हार्ट अटैक लगता है इसलिए बिना जांच के तत्काल अटैक और न हो उसे बचाने वाली दवा दे दिया जाए । फिर एक हार्ट एक्सपर्ट को फोन कर दिया और सब बात बता कर बोला की वो तुरंत डा पारिख के अस्पताल आ जाए और जरूरी दवाई लेते आए ताकि जान बचाई जा सके।  परिवार उन्हे लेकर अस्पताल पहुंच गया । इस बीच परिवार वालो ने उनके 30/40 साल पुराने जिगरी दोस्त को भी बुला लिया था और वो भी आ गए थे ।
जब डा पारिख के अस्पताल में मेरे तथाकथित दोस्त को आई सी यू में ले जाया जाने लगा तो उनके जिगरी doar आई सी यू के दरवाजे पर मेरे तथाकथित दोस्त से बोले की भाई अंदर जाने के पहले अपने बेटे से बात दे की तेरे ऊपर मेरे 10 हजार रूपए उधार है । अब इस बात को यही छोड़ देते है और 40 साल के जिगरी दोस्त की परिभाषा तथा 10 हजार की कीमत और उस वक्त को पाठको के चिंतन के लिए छोड़ कर मैं आगे मूल किस्से पर बढ़ता हूं । वो तथाकथित दोस्त स्थिर हो गए इलाके से पर परिवार की अज्ञानता से मेजर हार्ट अटैक हो चुका था और हार्ट का एक हिस्सा डैमेज हो चुका था । मैने राय दिया की हार्ट के मामले में एस्कोर्ट ही जाना चाहिए और डा त्रेहन से ही मिलना ठीक रहेगा । कुछ दिन आराम करने के बाद मेरे इस तथाकथित दोस्त का परिवार मेरी गाड़ी में दिल्ली के एस्कोर्ट हॉस्पिटल आ गया जहा बाकी आगे की सब कार्यवाही हुई और उसके लिए मुझे 5 दिन दिल्ली में रुकना पड़ा क्योंकि उनके परिवार को लगता था की मैं पूरे समय मौजूद नहीं रहूंगा तो पता नही कब क्या दिक्कत हो जाए । अब इस  किस्से की तरफ बढ़ता हूं जो बताना चाह रहा था ,पर किस्सा तो ये भी पाठको को जानना ही चाहिए था की आम आदमी मेडिकल की समस्याओं के प्रति कितना अज्ञानी है और उसके कारण क्या भोग लेता है और ये भी की जिगरी दोस्त कैसे होते है और चंद रुपए किसी दोस्त की जिंदगी से कितने बड़े होते है इत्यादि या आप जो भी सीख सके ।
तो मैं अपने उस तथाकथित दोस्त के इलाज के लिए दिल्ली के एस्कॉर्ट गया था | अचानक माइक से आवाज आई की एक बच्चे की हालत गंभीर है और उसे तत्काल ओ पॉजिटिव खून चाहिए |मेरा खून ओ पॉजिटिव है इसलिए मैं तत्काल काउंटर पर गया और अपना खून देने का प्रस्ताव दिया |मेरे खून को जांच के बाद मेरा खून ले लिया गया  तभी दिल्ली की एक शिक्षिका मिसेस शर्मा आ गयी उनका कोई बहुत अपना भी बहुत गंभीर था पर उन्होंने अपना खून तो दिया ही अपने ऐसे कई रिश्तेदारों को भी फ़ोन कर बुला लिया जिनका ओ ग्रुप का खून था | फिर दो तीन दिनों तक पास के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्र आते रहे खून देने |
फिर एक दिन जिनका बच्चा था वे मिले काउंटर पर और काउंटर वाले ने मुझे बताया की उस दिन तत्काल आप ने खून नही दिया होता तो बच्चा नहीं बचता और वो इन्ही का बच्चा है तथा उस व्यक्ति को जो फोन पर किसी से बात कर रहे थे भी बताया की इस दिन आप के बच्चे की जान इन्होंने ही अपना खून देकर बचाया था ।,, वे लाहौर के बड़े ट्रांसपोर्टर थे ,,, मुसलमान होने के बावजूद वे वही सामने हाथ जोड़े हुए जमीन पर बैठ गए और रोने लगे | मैंने उन्हें उठाया तो उन्होंने कृतज्ञता जाहिर किया और अपना कार्ड दिया की कभी लाहौर आइये | मैंने उनसे केवल एक आग्रह किया की अपने देश के आतंकवादियो को और आकाओ को मत बता दीजियेगा की हिंदुस्तान और हिन्दू लोगो के खून से आप का बच्चा बचा है | उन्होंने कहा की जनता के विचार ऐसे नहीं है बल्कि वहा के फौजी आका और आतंकवादी ताकतें केवल ये खेल करती है | अगर वहां तरक्की हुयी होती तो हम जैसे लोगो को इलाज के लिए भारत क्यों आना पड़ता ? हम लोगो को यहाँ सारी सुविधाएँ मिली | मैंने पूछा की पाकिस्तानी होने के कारन आपसे किसी ने कोई फर्क किया हो किसी मामले में ,उन्होंने कहा कत्तई नहीं ,पता ही नहीं लगा की हम अपने देश में नहीं है | उन्होंने बताया की मैं तो जब बच्चा ठीक होने लगा तो मस्जिद पूछ कर पास ही चला गाया ,जामिया नगर में तमाम मुसलमान मिले सब खुश है ,इस इलाके के एम् एल ए भी मुसलमान है , रास्त्रपति भी मुसलमान है ,हमारे पाकिस्तान में तो कोई हिन्दू नहीं बन सकता | उन्होंने ये वादा किया था की पाकिस्तान जाकर वो ये बातें वहा के लोगो को बताएँगे | पता नहीं बताया या नहीं |
इन पाकिस्तानियों को शर्म नहीं आती की उनके देश से ज्यादा मुसलमान भारत में है और देश के बड़े पदों पर है |

जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ से मैंने एक मांग मनवा लिया था

#जिंदगी_के_झरोखे_से


जिस मुशर्रफ ने पूरी वार्ता में कोई सकारत्मक मुह नहीं खोला उससे हमने एक मांग मनवा लिया 


आगरा मे भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार और पकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ के बीच वार्ता होने का एलान हो चुका था कारगिल के जख्मो के बाद जिसमे पाकिस्तानी फौज हमारी जमीन पर आकर बैठ गई थी और उस सरकार को  पता ही नही चला । वो तो उस इलाके के किसी ने पास की छावनी को बताया तब मालूम पडा ।
फिर हमे अपने सैकड़ो जवान की शहादत देकर अपनी जमीन वापस मिली ।ये अलग बात है की भाजपा सरकार ने उसका भी जश्न मनाया ।

खैर उसके बाद ये वार्ता तय हो गई थी ।
शहीदो के परिवारो को तत्काल 10 लाख रुपया मिलता था और पेट्रोल पंप तथा निवास ।
कारगिल युद्द मे आगरा के भी कई जवान शहीद हुये थे । शहीदो के परिवार ताजमहल वाले इलाके मे रह रहे थे और कुछ अपने गांवो मे ।

चूँकि मैं बहुत ज्यादा सक्रीय रह्ता था इसलिए एक दिन एक परिवार की मुझे खबर मिली की वो लोग बात करना चाहते है । मैं मिलने गया तो उन लोगो ने अपना दुख बताया की देखिये सब कुछ हमारा चला गया पर अब 10 लाख का 33% आयकर जमा करने का नोटिस आ गया है और बाकी जो वादे किये गये उसमे से एक भी पूरा नही किया सरकार ने ।

उसके बाद आगरा के बुद्धिजीवियो , लेखक कवियो , शिक्षको तथा पत्रकारो को पूरी बात बताया और साथ ही हिंदुस्तान के वर्तमान समूह संपादक शशिशेखर जी जो उस वक्त आजतक मे बड़े पद पर थे उनको भी अपने कार्यक्रम की जानकारी दिया और उन्होने इस मुद्दे को पूर्ण समर्थन दिया ।

बस वो 8 तारीख थी यानी वाजपेयी मुशर्रफ वार्ता से 7 दिन पहले हम लोग आगरा के शहीद स्मारक से निकल पड़े जुलुस की शक्ल मे करीब 20 फुट लम्बा बैनर लेकर महात्मा गांधी मार्ग पर । जुलुस मे आगे मेरे साथ शहीदो की पत्नियाँ थी और कई प्राचार्य , पूर्व कुलपति, शिक्षक , कवि लेखक नाट्यकर्मी और काफी पत्रकार भी और बैनर था मेरी संस्था पहचान का ।

आजतक की टीम दिल्ली से आ गयी और बाकि आगरा के मीडिया ने भी सहयोग दिया और अगर ४८ घंटे में शहीदों  की पत्नियों की सब मांग पूरी हो गयी थी | मैंने  मुशर्रफ से मांग किया था की जब वार्ता करने आ रहे है तो पहले तो कारगिल पर खेद वक्त कर के आये और दूसरा तमाम ऐसे फ़ौज और एयरफ़ोर्स के परिवार  जिनको लगता था की १९६५ और १९७१ के युद्ध उनके जो परिजन गायब हो गए थे वो पाकिस्तान की जेल् में है तो वो लोग लगातार लिखत पढ़त करते रहे और इस मौके पर आगरा भी आ गए थे | ऐसे ही एक परिवार के साथ मैंने दो तीन पहले ही एक प्रेस कांफ्रेंस किया था | उन  लोगो की मांग भी मैंने जोड़ लिया था की इतने दिनों से बंद हमारे लोगो को छोड़कर आओ तब हम मानेगे की आप सही नियत से आ रहे हो और चेतावनी दे दिया था की यदि मुशर्रफ ने ये मांगे नहीं माना तो वार्ता के दिन वार्ता वाली जगह के आसपास ही मैं मुशर्रफ का विरोध करूँगा | 

शहीदों की पत्नियों की मांग तो भारत सरकार को मानना था तो वो मान ली गयी पर  मुशर्रफ से की गयी मागे अभी पूरी नहीं हुयी थी | वार्ता के एक दिन पहले मेरे दो रिश्तेदार एक  मेरी पत्नी के भाई जो आई ए एस अधिकारी थे और भारत सरकार में महत्तवपूर्ण पद पर थे  इस वार्ता की तैयारी के लिया आगरा आ गए तो होटल जाने से पहले घर आये और दूसरे मेरे फुफेरे भाई जो आई पी एस अधिकारी थे तथा एस पी जी के सबसे पद पर थे और प्रधानमंत्री की सुरक्षा के जिम्मेदार थे वो भी घर आये | जब उन लोगो को मेरे अगले दिन के कार्यक्रम का पता लगा तो ऊँ लोगो ने बहुत डराया की की ये दो राष्ट्राध्यक्षो की वार्ता है और पूरे शहर में कर्फ्यू के हालत होंगे तो पहले तो आप निकलेंगे कैसे और दूसरा ऐसा कुछ करने पर आप के साथ कुछ भी हो सकता है | 
मैंने कहा की देखा जायेगा पर कोशिश तो करुँगा | 
 
वार्ता का दिन आ गया तो अपनी गाडी में बैनर रख कर मैं निकल लिया | हा कर्फ्यू जैसा ही था सारे शहर और सड़क पर कोई नहीं था | आज इस सरकार का दौर होता तो मुझे या तो गिरफ्तार कर लिया जाता या नजरबन्द कर दिया जाता घर में ही पर ऐसा कुछ नहीं हुआ था और तेज चलता हुआ मैं उसी क्षेत्र में अपने एक साथी के घर पहुच गया | शहीदों की पत्नियों से भी आग्रह किया था की अगर संभव हो तो वो लोग उसी जगह पहुचने की कोशिश करे और वार प्रिसनर्स के परिवारों को भी पर मैं जब पंहुचा तो वहा कोई नहीं पंहुचा था तो मैं परेशांन हो गया की अब कैसे होगा | मैं जिसके घर पर बैठा था उनके घर मेरे एक दो साथी जो उसी क्षेत्र के थे वो भी आ गए तथा एक बहुत बुजुर्ग मुसलमान भी आकर बैठ गए | आगरा  ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का मीडिया आगरा में था तथा और मुग़ल शेरटन होटल मीर्डिया सेंटर बना हुआ था | मैंने अपने मीडिया के साथियों द्वारा मुग़ल होटल में ये अफवाह नुमा फैलाने में कामयाबी हासिल कर लिया था की अमर होटल के पास कुछ होने वाला है बस ये नहीं पता था की क्या होगा |तो अलग अलग बहाने से पूर राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय  मीडिया के कैमरे अमर होटल की छत पर पहुच गए और ये भी भ्रम था की जो होगा वो मुग़ल होटल या ताज की तरफ से होगा तो भरी पुलिस भी लग गयी उसी तरफ | 

मैंने उस साथी और वहा मौजूद लोगो से कहा की धरा १४४ तोड़ने लायक तो हम लोग हो गए है और बैनर भी इतने लोग पकड़ कर पूरी चौड़ाई में सड़क पर चल सकते है तो वहा सन्नाटा था | इस माहौल में निकलने में सभी डर रहे थे तो मैंने कहा की कोई बात नहीं आप लोग रहने दीजिये मैं अपनी पत्नी और तीनो छोटे बच्चों को बुला लेता हूँ और हम ५ निकल लेंगे बैनर लेकर हमारा काम हो जायेगा | तब वो ८० साल के बुजुर्ग मुसलमान बोले क्या बरते हो हम चलते है आप के साथ |फिर शर्म के मारे सभी तैयार हो गए | हम लोग धीरे धीरे रणनीति बना कर डा जग्गी के अस्पताल पहुच गए की जिससे भी कोई पूछेगा वो  उस अस्पताल जाने की बात कर वहा पहुचेगा | वहा इकठ्ठा होते ही हम लोग बैनर लेकर पूरी चौड़ाई में सड़क घेर कर अमर होटल की तरफ निकल लिए नारे लगते हुए की कारगिल पर माफ़ी मागो ,माफ़ी माफी  मागो :हमारे जवानों को छोड़ दो छोड़ दो | हिंदुस्तान जिंदाबाद जिन्दाबाद ,पाकिस्तान मुर्दाबाद मुर्दाबाद इत्यादि | चारो तरफ सन्नाटा था तो आवाज गूजने लगी | अमर होटल के ऊपर खड़े मीडिया ने जो कैमरा दूसरी तरफ कर इन्तजार कर रहे थे कैमरा इस सड़क पर घुमा लिय और अधिकांश होटल से नीचे उतर कर इधर दौड़े |पुलिस भी इधर दौड़ी | सबसे आगे मेरे घनिष्ठं  मित्र और आगरा के एस पी सिटी आर पी  सिंह जी थे और उन्होंने मुझे देखा तो जहा थे वाही रुक गए और फ़ोर्स को भी रोक दिया | हम  लोग करीब तीन सौ मीटर चल कर उस जगह पहुच गए जहा एस पी सिटी और पुलिस कड़ी थी | तब तक कही से बचते बचाते दो शादीदो की पत्निया भी आ गयी और दो तीन लोग वार प्रिसनर्स के परिवार वाले भी जो वाही किसी होटल में रुके थे वो भी आ गए | मैंने अपना पूरा भाषण दिया जिसे अंतर राष्ट्रीय मीडिया और राष्ट्रीय मीडिया में से अधिकांश ने लाइव टेलीकास्ट किया क्योकि अमरीका से मेरे एक रिश्तेदार ने मेर्री पत्नी को फोन कर पुछा की अभी चन्द्र प्रकाश जी को देख उनको पुलिस गिरफ्तार कर रही थी | उस बुजुर्ग मुसलमान ने कहा की मिया मुशर्रफ मसला उस कश्मीर का नहीं है जो हमारे पास है मसला उस कश्मीर का है जो तुम्हारे पास है वो हमें दे दो तो मसला हल हो जायेगा | अपनी पूरी बात कह कर इज्जत से हम लोग गिरफ्तार हो गए |शहीदों की पत्नियों को मैंने जाने को कह दिया | 

हम लोगो को गिरफ्तार कर आगरा के पुलिस  लाइन में ले आया गया और सम्मान के साथ सी ओ लाइन के कमरे  में  बैठा दिया गया | आर पी सिंह जी ने कह दिया था या जो भी करण है पानी और चाय भी पिलाई गयी | उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री राजनाथ सिह जी भी प्रधानमंत्री जी   के अगवानी के लिए शहर में थे और वो उस वक्त अमर उजाला अखबार के प्रधान संपादक अशोक अग्रवाल के घर चले गए थे | जब वो वहा बैठे थे तो टीवी पर मेरा ही संमाचार चल रहा था जिसे देखकर अशोक अग्रवाल ने कहा की अरे भाई सी पी राय को क्यों गिरफ्तार कर दिया वो तो बहुत अच्छे आदमी है और अच्छा काम कर रहे थे | इसपर राजनाथ सिंह जी ने आगरा के एस एस पी को फोन मिलवाया और कहा की सी पी राय और उनके लोगो को इज्जत से उनके घर भिवाइये  इधर पूरी दुनिया का मीडीया मुझसे  बात करना चाह रहा था .सबको जवाब दे दे कर मेरा फोन जवाब दे गया था  | मुझे उस साथी के घर पर छोड़ा गया जहा मेरी गाड़ी खड़ी थी | वाही कुछ देर मैंने अपना फोन चार्ज किया और फिर परिवार को फोन कर बता कर की मैं छूट गया हु और अब मुग़ल होटल जा रहा हूँ जहा काफी मीडिया के लोग मेरा इन्तजार कर रहे इसलिए हो सकता है देर से आ पाऊं और मुग़ल शेरटन होटल चला गया | वहा एक एक कर मेरा इंटरव्यू होने लगा तो रात १० बज गए  | मीडिया के लिए नाच गाने और खाने का इंतजाम था | मीडिया के साथियों ने जिद किया की उन  लोगो के साथ ही खाना खाऊ पर मुझे  चिंता थी की आज मैंने इतना रिस्क लेकर किया उसका क्या होगा | 

वाजपेयी जी की मुशर्रफ से अगले दिन तक वार्ता फेल हो गयी थी | अगले दिन मुशर्रफ की सम्पदाको के साथ शाम को चाय थी | वहा मेरा मुद्दा उठ गया तो मुशर्रफ जिसने किसी मुद्दे पर मुह नहीं खोला था इस मुद्दे पर मुह खोला और बोला की हा मैंने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में ये समाचार देखा ॉ मैं भी सिपाही हूँ मैं क्यों चाहूँगा कोई वार प्रिसनर इतने दिन मेरी जेल में रहे | मै ऊँ सभी परिवारो को आमंत्रित करता हूँ को वो लोग मेरे गेस्ट बन कर पाकिस्तान आये | मैं उन सभी लोगो को सभी जेलों में भेजूंगा अगर किसी का भी परिवार का कोई भी मिलता है तो मैं तुरंत उन्हें साथ में वापस भेज दूंगा और बाद में कई परिवार पाकिस्तान गए पर न कोई मिलना था और न कोई मिला | पर मुझ जैसे अदना से से आदमी ने बस थोडा इरादा मजबूत कर और थोड़ी हिम्मत कर चंद लोगो के साथ ये कर दिया की मुशर्रफ को हमारे मामले पर बोलना पड़ा और दो में से एक मांग माननी पड़ी | कारगिल पर उसने खेद व्यक्त नहीं किया ये मांग जरूर रह गयी | 


बुधवार, 9 अक्तूबर 2024

कारगिल शहीदों का परिवार और १० लाख पर आयकर का नोटिस

#जिंदगी_के_झरोखे_से

#क्या_आप_को_पता_है
कि 
#अटल_बिहारी_वाजपेयी_सरकार को #मैने_मजबूर_किया_था #शहीदो_के_परिवारो_को_दिया_नोटिस_वापस_लेने और बाकी #वादे_पूरा_करने_को ? 

नही न ! 

#कारगिल के #शहीदो के #परिवारो को मिलने वाले  10 लाख पर 33% आयकर जमा करने का नोटिस भेजा था अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने और बाकी जो शहीदो को मिलता है उस पर चुप्पी साध ली थी ।
और 

आगरा मे भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार और पकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ के बीच वार्ता होने का एलान हो चुका था कारगिल के जख्मो के बाद जिसमे पाकिस्तानी फौज हमारी जमीन पर आकर बैठ गई थी और उस सरकार को  पता ही नही चला । वो तो उस इलाके के किसी ने पास की छावनी को बताया तब मालूम पडा ।
फिर हमे अपने सैकड़ो जवान की शहादत देकर अपनी जमीन वापस मिली ।ये अलग बात है की भाजपा सरकार ने उसका भी जश्न मनाया ।
खैर उसके बाद ये वार्ता तय हो गई थी ।
शहीदो के परिवारो को तत्काल 10 लाख रुपया मिलता था और पेट्रोल पंप तथा निवास ।
कारगिल युद्द मे आगरा के भी कई जवान शहीद हुये थे । शहीदो के परिवार ताजमहल वाले इलाके मे रह रहे थे और कुछ अपने गांवो मे ।
चूँकि मैं बहुत ज्यादा सक्रीय रह्ता था इसलिए एक दिन एक परिवार की मुझे खबर मिली की वो लोग बात करना चाहते है । मैं मिलने गया तो उन लोगो ने अपना दुख बताया की देखिये सब कुछ हमारा चला गया पर अब 10 लाख का 33% आयकर जमा करने का नोटिस आ गया है और बाकी जो वादे किये गये उसमे से एक भी पूरा नही किया सरकार ने ।
मैं बात कर चला आया और फिर अपने सम्पर्को से अन्य जगह के शहीदो की स्थिति को भी पता किया तथा आयकर विभाग के बड़े अधिकारी से भी बात किया ।
उसके बाद आगरा के बुद्धिजीवियो , लेखक कवियो , शिक्षको तथा पत्रकारो को पूरी बात बताया और साथ ही हिंदुस्तान के वर्तमान समूह संपादक शशिशेखर जी जो उस वक्त आजतक मे बड़े पद पर थे उनको भी अपने कार्यक्रम की जानकारी दिया और उन्होने इस मुद्दे को पूर्ण समर्थन दिया ।
बस वो 8 तारीख थी यानी वाजपेयी मुशर्रफ वार्ता से 7 दिन पहले हम लोग आगरा के शहीद स्मारक से निकल पड़े जुलुस की शक्ल मे करीब 20 फुट लम्बा बैनर लेकर महात्मा गांधी मार्ग पर । जुलुस मे आगे मेरे साथ शहीदो की पत्नियाँ थी और कई प्राचार्य , पूर्व कुलपति, शिक्षक , कवि लेखक नाट्यकर्मी और काफी पत्रकार भी और बैनर था मेरी संस्था पहचान का ।तब की भाजपा सरकार भी इतनी लोकतान्त्रिक थी की मुकदमे कायम नहीं किया तथा हमें जुलुस भी निकालने दिया तथा जिलाधिकारी कार्यलय पर भाषण भी करने दिया और एक बड़े अधिकारी न इ हमारा ज्ञापन भी लिया और इसी कार्यक्रम में नहीं  बल्कि आये दिन हम लोग उस कार्यलय या कमिशनर के कार्यालय पर धरना भाषण कर लेते थे और ज्ञापन देकर शांति से वापस चले जाते थे |
उस दिन दिल्ली से आज तक की एक टीम आगरा आ गयी थी और हमारा पूरा कार्यक्रम उन्होंने कवर किया | जिलाधिकारी कार्यालय पर जहा हमारा जुलुस समाप्त हुआ आज तक की टीम ने हमारा भाषण और इंटरव्यू रिकोर्ड किया और उसे अगले २४ घंटे तक अपने समाचार में दिखाया | मैंने उस दिन कुछ मांगे रखा था | पहली मांग थी की कारगिल के शहीदों की पत्नियों को दिया गया आयकर का नोटिस वापस हो और आगे भी उन्सेक आयकर न माँगा जाये .उनका हक़ यानि रहने को घर तथा मिलने वाला पेट्रोल पम्प तत्काल दिया जाए और अगर ये सब नहीं  हुआ तो प्रधानमंत्री  बिहारी वाजपेयी जी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ के बीच होने वाली शिखर वार्ता के दिन हम फिर जुलुस लेकर निकलेंगे | साथ ही दो मांगे मैंने मुशर्रफ जी से भी कर दिया था | पहली की जब वो भारत से वार्ता करने आ  रहे है तो कारगिल के लिए खेद व्यक्त कर के आये और दूसरी की जो भारत के युद्ध बंदी १९६५ और १९७१ से पाकिस्तान की जेल में बंद है उन्हे छोड़ कर आये और इसपर भी मैंने कहा था की मुशर्रफ  ने ये मांगे नहीं माना तो १५ को ठीक वार्ता के समय हम लोग उसी क्षेत्र मेर कही से विरोध में निकलेंगे | 
आज तक ने हमारा मुद्दा इतना उठा दिया था शशिशेखर जी के कारण की शहीदों की पत्नीयो की मांग अगले ४८ घंटे में ही मान ली गयी | पहला अभियान हम जीत चुके थे | ये जीत उन शहीदों की पत्नियों की थी ,आगरा के उस बुद्धिजीवी समाज की थी जो मेरे साथ खड़ा हुआ था और आजतक सहित उन सभी मीडिया के साथियो की थी जिन्होंने इस पवित्र काम को पूरा सम्मान दिया था | 
पर अभी कहानी बाकी थी जो अगले एपिसोड में है | 

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2024

1993 क्या चुनाव , टिकेट पर जद्दोजहद और घटनाएं ।

#ज़िंदगी_के_झरोखे_से 


वो  आये बैठे और बोले की कितने राय रहते है इस क्षेत्र में और उठकर चले गए | वो यानी रामगोपाल यादव |


१९९३ का चुनाव था | काफी पहले ही मुलायम सिंह यादव जी का काशीराम जी से समझौता हो चूका था तो मैंने आगरा में आगरा कैंट सीट के जातिगत और  धार्मिक समीकरणों को देखते हुए और जीत की गारंटी को देखते हुए एक साल में बाकि जगहों पर काम करते हुए विशेषकर इस इलाके में बिना किसी को एहसास करवाए हुये की मैं चुनाव लड़ना चाहता हूँ सभी पोलिंग बूथ पर लोगो को कर्यत्क्र्ता बना लिया था और इस पूरे क्षेत्र में काफी कार्यक्रम कर लिए थे | एक रोज इफ्तार भी किया था जिसमे हजारो अल्पसंख्यक समुदाय के लोग जुटे थे और एक कार्यक्रम चलाया था की होली दिवाली मिलन मुस्लिम इलाको में और ईद मिलन हिन्दू इलाको में करवाया था तथा और बहुत से कार्यक्रम कर दिए थे | इस क्षेत्र में केवल दलित और मुस्लिंम वोट ही जितने के लिए काफी थे इसके अलावा ब्राह्मण समुदाय के कार्यक्रमों में म एरी काफी भागीदारी रहती थी और तटस्थ रहने वाला वर्ग जो हमेशा छवि देखकर वोट देता है ये सब मिला कर भारी जीत का विश्वास था | यूँ तो न जाने कितने लोगो कोम टिकेट मेरे कारण मिला पर प्रक्रिया पूरी करने को मैंने भी टिकेट के लिए आवेदन कर दिया था | 


उस दिन लखनऊ के पार्टी कार्यालय में उत्तर प्रदेश की संसदीय बोर्ड की बैठक थी | प्रदेश के अध्यक्ष रामसरन दास जी और बोर्ड के सचिव बलराम यादव ,भगवती सिंह सहित सभी  सदस्य मौजूद थे | रामगोपाल यादव जी भी बैठक में आकर बैठ गए | पहले आगरा मंडल का नंबर था  और उसमे आगरा का | रामसरन दास जी ने बलराम यादव से कहा की क्या सी पी राय ने किसी सीट के लिए आवेदन किया है तो बलराम यादव ने लिस्ट देखकर कहा की हा आगरा कैंट के लिए आवेदन किया है तथा आगरा मंडल की सीटो पर उनकी भी एक लिस्ट है टिकेट के लिये | इसपर रामसरन दास जी बोले फिर विचार क्या करना सी पी राय की सीट फाइनल किया जाए और उनकी लिस्ट को भी रिकमेंड कर नेता जी {यानी मुलायम सिंह जी}  को भेज दिया जाये | इसपर रामगोपाल जी ने कड़े तेवर से कहा की कितने राय है आगरा में की सी पी राय की सीट फाइनल कर रहे है और उनकी लिस्ट क्यों रिकमेंड कर रहे हो बिना विचार किये और दूसरे नाम देखे हुए | फिर क्या था रामगोपाल जी मुलायम सिंह यादव के भाई कहलाते थे तो बोर्ड ने तय किया की सब मुलायम सिंह यादव जी पर छोड़ दिया जाए | 


जब रामसरन दास जी और भगवती सिंह जी ने ये बात मुझे बताया तो मैं मुलायम सिंह यादव जी से मिला और उनको बताया  की मैंने उस क्षेत्र में क्या क्या किया है और क्यों मैं चुनाव जीत जाऊंगा | मैंने कहा १९८९ में आप ने ये कह कर मुझे टिकेट नहीं मिलने दिया था की मैं आप का चुनाव देखु और आप के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद विधायक क्या होता है मैं उससे बड़ा बन जाऊँगा और क्या हुआ ये आप भी जानते है और मैं भी जबकि तब संसदीय बोर्ड में बहुमत मेटे पक्ष में था | मुलायम सिंह यादव जी बोले की वो तो बीत गया पर आप के लिए मेरे दिमाग में बड़ी चीज है जो पिछली बार मैं नहीं कर पाया पर इस बार या तो वो करूँगा या फिर यहाँ आप को अपने साथ रखूँगा मंत्री बना कर | वो बोले की मेर्रे आलावा आप की इस पूरे इलाके में सभाए लगती है तथा आप और भी काम सम्हालते है ऐसे ,मे आप एक सीट पर अपने लिये फंस जायेंगे तो ५० सीट का नुक्सान होगा पार्टी का | आप मेरे ऊपर भरोसा रखो आगे सरकार बनेगी तो सब अच्छा होगा और मुझे मन मार कर मान लेना पड़ा | 


टिकेट के बटवारे की कवायद शुरू हो गयी | प्रदेश महामंत्री का काम करने के साथ मैं देश भए में और प्रदेश भर में तो मुलायम सिंह जिन के साथ दौड़ता रहता था पर आगरा मंडल जिसमे तब अलीगढ मंडल भी था और इटावा के हर छोटे से छोटे कार्यक्रम मे रहता था इसलिए हर विधान्सभा के बारे में पूरी जानकारी थी | मुलायम सिंह यादव जी के घर के अन्दर से बाहर तक मजमा लगा रहता था | एक दिन मुलायम सिंह यादव जी लोहिया ट्रस्ट में मीटिंग कर रहे थे और मैं उनके घर के ड्राइंग रूम में उनका इन्तजार कर रहा था ,तभी रामगोपाल जी ने आगरा मंडल के लोगो के नाम पुकारना शुरू किया और कहा की इनमे से जो जो भी हो आ जाए |लोग आते गए और वो उन लोगो को बी फॉर्म यानी टिकेट देने लगे | मैंने उन लोगो को देखा तो चौंका और धीरे से निकल कर लोहिया ट्रस्ट पहुच गया | मुलायम सिंह जी अपने कमरे से बाहर निकल रहे थे तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया की ये रामगोपाल जी क्या कर रहे है ,एक से एक वाहियात और गलत लोगो को टिकेट दे रहे है | मुलायम सिंह जी ने पुछा क्या बी फॉर्म दे दिया है तो मैंने एक दो नाम लेकर कहा की हा और वो लोग अभी आप के घर पर ही है | मुलायम सिंह जी ने कहा किन हाथ छोडिये मैं चल कर देखता हूँ | मैं जानबूझ कर उनकी गाडी मेर जाने के बजाय पैदल ही चला गया कत्रीब दौड़ता हुआ | मुलायम सिंह जी घर पहुचे और पुछा की रामगोपाल किस किस को बी फॉर्म दे दिया जरा बुलाओ सबको तो उनके स्टाफ ने आवाज लगाया की जिस जिस को बी फॉर्म मिल गया है नेता जी बुला रहे है तो सभी आ गए तो मुलायम सिंह जी सबसे बी फॉर्म मांग लिया और बगल में रख लिया की बी फॉर्म बाद में मिलेगा । सबके चेहरे लटक गए । मुलायम सिंह यादव जी ने कहा कि  अभी आप लोग जाओ बाद में बुलाएंगे । इसके बाद फिर मैं आगरा आ गया मुझे चिंता थी कि जिस सीट पर मुझे लड़ना था उसपर जीतने वाला उम्मीदवार हो या कम से कम सम्मानजनक लड़ाई हो । अभी रामगोपाल जी ने पता नही किसके कहने पर एक ऐसे आदमी को टिकट दे दिया था जो सदर के चौराहे पर अंडे की तेल पर रोज शाम को शराब पीता था । वह किसी तरह कैंट क्षेत्र के एक क्षेत्र से सभासद का चुनाव जीत गया था अपनी बिरादरी के उस क्षेत्र में वोट होने के कारण । 


अगल एपिसोड में में लिख चुका हूं की किस तरह मैने कांग्रेस के कई बार के विधायक जो कृषि मंत्री रह चुके थे डा कृष्णवीर सिंह कौशल और इस चुनाव में भी कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे और टिकेट मिलने की उम्मीद में अपना पर्चा भरने आगरा की कलक्टरी में राजीव गांधी जिंदाबाद का नारा लगाते हुए आए थे और सीढ़ियों पर मेरी उनकी बात हो गई तो उन्होंने कांग्रेस का पर्चा जेब में रख लिया और समाजवादी पार्टी के नाम का नया पर्चा भरा तथा कांग्रेस का झंडा जेब में रखकर वापस मुलायम सिंह यादव जिंदाबाद का नारा लगाते हुए बाहर निकलने लगे तो पूरी कलेक्टरी संन्न देख रही थी ये अनोखा दृश्य जो पहले कभी नही देखा था । उन्ही के साथ फतेहपुर सीकरी क्षेत्र के एक ब्लॉक प्रमुख भी आ गए और उनके सब समर्थक भी । डा कौशल ने सिर्फ एक सवाल पूछा था की कही समाजवादी पार्टी का टिकट भी नही मिला तो बहुत बदनामी हो जाएगी तो मैने कहा की समझ लीजिए टिकेट मिल गया l कल मेरे साथ लखनऊ चलिए और बी फॉर्म लेकर आइए । घर लौट कर मैने मुलायम सिंह यादव जी को बता दिया की कांग्रेस के इस दिग्गज नेता को मैने तोड़ लिया है तो वो बहुत खुश हुए और बोले की वो अगर जीत गए तो वो तो विधान सभा अध्यक्ष के लायक है। आप उन्हें लेकर आ जाओ । 


मैं अगले दिन डा कौशल और अन्य अपने लोगो को लेकर लखनऊ पहुंच गया । मुलायम सिंह जी के घर के ऊपर वाले हिस्से में दाहिनी तरफ के कमरे में मुलायम सिंह जी बैठे और और रामगोपाल जी भी थे । मुझे और डा कौशल को भी वही बुला लिया । पहले उन्होंने डा कौशल के पार्टी में आने पर खुशी जाहिर किया तथा उनके सामने भी कहा की आप जीत कर आइए आप को स्पीकर बनाऊंगा । उनका बी फॉर्म देने का आदेश रामगोपाल जी को दिया और जब उनको बी फॉर्म मिल गया तो मुलायम सिंह जी ने कहा की डाक्टर साहब आप नीच ड्राइंग रूम में बैठिए और चाय पीजिए क्योंकि अब हम लोग कुछ और बाते करेंगे ।आप को राय साहब के साथ जाना हो तो इंतजार करिए वरना आप वापस आगरा अपनी तैयारी में लिए जाना चाहे तो चले जाइए । जब पर्चा भरेंगे तो मैं सी पी राय को भी भेज दूंगा ।


डा कौशल के जाने के बाद हम तीन लोग ही रह गए और अब बाकी सीट के नामों की चर्चा शुरू हो गई । मैने कहा की सबसे पहले चंद्रभान मौर्य विधायक जिनको मैं रामगोपाल जी के राज्यसभा चुनाव में जनता दल से तोड़ कर लाया था उनका टिकेट तो जारी कर देना चाहिए ।तो उनका बी फॉर्म मुझे दे दिया गया । फिर मैंने फतेहपुर सीकरी क्षेत्र के लिए ब्लॉक प्रमुख रामनिवास शर्मा का नाम प्रस्तावित किया तो मुलायम सिंह जी उखड़ गए की वो सीट मिनी छपरौली कहलाती है और हमेशा वहा से जाट ही जीता है तो आप वहा ब्राह्मण क्यों लड़ाना चाहते है ।तो मैने कहा की इसीलिए क्योंकि ब्राह्मण वहा दूसरी बड़ी जाती है और मुस्लिम भी काफी है और काशीराम जी के कारण दलित मिल जाएंगे और ये जीत जाएंगे । मुलायम सिंह जी बहुत संतुष्ट नहीं थे पर कोई बहुत मजबूत और नाम वाला जाट भी हमारे पास नही था तो अनमने भाव से मान गए ये कहते हुए की जिम्मेदारी आप की है ।मैने कहा की पूरी जिम्मेदारी से ये टिकेट में दिलवा रहा हूं पर आप को वहा सभा का टाइम देना पड़ेगा । मुलायम सिंह जी ने कहा की आप तय कर के लिस्ट बना लीजिए की कहा कहा जीत की ज्यादा सभवना है जहा मेरी सभा जरूरी है । इसके बाद एक एक सीट पर मेरे और रामगोपाल जी के बीच जद्दोजहद होती रही । कभी मुलायम सिंह जी मुझे समझाते तो कभी रामगोपाल जी को । सिकंदराराउ पर मैं अमर सिंह यादव को टिकट चाह रहा था की वही जीतेगा और रामगोपाल जी एक फतेह सिंह को पर अमर सिंह का टिकट हो गया । मेरे सारे सुझाव मान लिए गए पर एक अलीगढ़ की सीट गंगीरी पर रामगोपाल जी एक पैसे वाले  महेश यादव को टिकट देना चाह रहे थे पर मैं पार्टी के दो पीढ़ी से वफादार और जमीन पर मजबूत वीरेश यादव को देना चाह रहा था । वीरेश यादव को टिकट देने के पीछे भी ये कारण था की में गंगिरी में समेलन में हिस्सा लेकर आया था । (गगीरी सम्मेलन के बारे में अलग एपिसोड में लिखूंगा ) इस मामले में मुलायम सिंह जी का झुकाव रामगोपाल जी के उम्मीदवार की तरफ देख कर मैने एक। राय दिया की अभी किसी को भेज कर जोर से कहलवा दिया जाए की गंगिरी में वीरेश का टिकट हो गया और उसके बाद अगर चार घंटे भी महेश यादव रुका रह जाए तो उसे टिकेट दे दिया जाए । एक आदमी को भेजा गया और भीड़ में उसने जोर से यही बोल दिया । इतना सुनते ही महेश यादव वहा से चला गया और बाद में मालूम हुआ की उसने कुछ घंटे में ही जानता दल ज्वाइन कर लिया ।इस पूरे एपिसोड में रामगोपाल जी मुझसे बहुत खफा हो गए जबकि मैने जो जो किया वो सिर्फ पार्टी के हित में किया था । ये दोनो मेरे उम्मीदवार जीत गए , चंद्रभान मौर्य भी जीत गए और भी लोग जीते और जो हारे वो बहुत नाम मात्र के वोट से हारे । 


चुनाव शुरू हो गया और मेरी व्यस्तता बहुत बढ़ गई । रोज तमाम सभाएं लगने लगी पर मैं डा कौशल के क्षेत्र में ये सोच कर नही गया की वो खुद कई बार विधायक और मंत्री रहे है ,बड़े नेता है तो अपना चुनाव तो वो खुद सम्हाल लेंगे लेकिन एक दिन उन्होंने मुलायम सिंह जी को फोन किया की वो मुझसे कह दे की मैं उनके इलाके में समय दे दूं , सभाएं भी कर दू तथा पार्टी के लोगो को भी उनसे जोड़ सुन । तब मुझे उनके क्षेत्र में कुल छोटी बड़ी 12/13 सभाएं करनी पड़ी और चार कार्यक्रता बैठक लेनी पड़ी । ऐसी ही मांग हर जगह से थी ।


एक दिन आगरा से फिरोजाबाद तक सुबह से रात तक काफी सभाएं लगा लिया लोगो ने ।आगरा के सभी विधान सभा क्षेत्र में कही एक कही दो सभाएं करता हुआ मैं जब फ्री हुआ तो तुमडला और फिरोजाबाद की सभा बची हुई थी । टुंडला बाजार में में रात को 10  बजे पहुंचा और फिर फिरोजाबाद में रात 11 के बाद पर फिरोजाबाद मे हमेशा ही सभाएं रात को देर से शुरू होती रही है और सुबह 3/4 बजे तक चलती रही है ।पहले सभाओं इत्यादि को लेकर इतनी सख्ती और मुकदमे नही होते थे बल्कि चुनाव उत्सव की तरह होता था ।


फिरोजाबाद में ही मेरा एक सभा में एक डेढ़ घंटे का कैसेट बन गया था जिस सभा में में डेढ़ घंटे से ज्यादा बोला था और फिर आजम खा साहब ये कह कर की कुछ कहने को बचा ही नहीं केवल बीस मिनट बोले थे । वहीं मेरा भाषण का कैसेट 45 रुपए में 1993 के चुनाव में प्रदेश कार्यलय से प्रदेश भर में बिका था और हर जगह पूरे टाइम बजता सुना जा सकता था । फिरोजाबाद में लोकप्रिय था तो लोग इंतजार कर रहे थे । ज्यो की मेरी कार की लाइट दिखलाई पड़ी लोग शोर करने लगे की आ गए आ गए । लोगो हाथ से मिलाता किसी तरह मंच पर पहुंचा ।भाषण  शुरू हुआ । उस वक्त मेरे भाषण का कुछ ऐसा जुनून था की भाषण थोड़ा होता और फिर नारे शुरू हो जाते । एक बार कुछ जोश की बात कह मैने हाथ ऊपर से नीचे किया तो मंच पर माइक के बगल में बैठे एक बहुत बुजुर्ग ने मेरा हाथ पकड़ लिया ।में। तोड़ विचलित हुआ पर भाषण जारी रखा । देख की वो मुझे अंगूठी पहना रहे थे । डा कौशल अपने मंत्री काल में लोगो से दूर हो गए थे जिसके कारण मेरी जीत जाने वाली सीट भी करीब तीन हजार से हार गए और फतेहपुर सीकरी में रामनिवास शर्मा ढाई हजार से इसलिए हार गया क्योंकि हेलीकॉप्टर में कुछ दिक्कत होने के कारण मुलायम सिंह जी की सभा नही लग सकी और काफी मुस्लिम वोट जनता दल में भी चला गया । पर सपा बसपा का गठबंधन जीत गया था ।मेरे अधिकतर उम्मीदवार जो नही जीते वो भी अच्छा और सम्मानजनक लड़े और हमारी सरकार आ गई तथा मुलायम सिंह यादव जी मुख्यमंत्री बन गए । (इस बीच की बहुत सी घटनाएं अलग एपिसोड में होगी या फिर झलकियों के रूप में होगी ।