मंगलवार, 6 फ़रवरी 2024

मेरा_गांव_मेरा_घर

#मेरा_गांव_मेरा_घर 

आजमगढ़ में मेरे गांव में मेरा पैतृक निवास जिसमे सामने हिस्से में 10 कमरे है, सामने बरामदा है और घर के अंदर आंगन के चारो तरफ बरामदा है 
और जो दाहिनी दिख रहा है ये बैठक कहने को है इसमें सामने बड़ा बरामदा ,अंदर एक बड़ा कमरा ,नीचे तीन छोटे कमरे और ऊपर चार कमरे तथा एक और रसोई है ।।इसी के पीछे 60 के दशक का हो लैटिन बाथरूम बना हुआ है । 
घर के सामने आगे बहुत बड़ा द्वार और उसके भी आके काफी दूर तक जगह तथा अंत में एक छोटा सा बगीचा है ।
पहले कभी दरवाजे पर बहुत बड़ा छायेदार मौलश्री का छाएदार पेड़ तथा तथा आने बरामदे में बहुत ही मीठे और ठंडे पानी का कूवा था । इस रास्ते आने जाने वाले लोग मौलश्री के नीचे कुछ देर सुस्ताते थे और उस कुएं का पानी पीते थे ।ठीक सामने बीच में गन्ना पेरने और रस निकालने का कोल्हू था और दाहिनी तरह गुड बनाने का बड़ा चूल्हा या कडाह, उसके बगल में बहुत बड़ा इमली का पेड़ था और सामने की तरह बहुत बड़ा जामुन का पेड़ और शायद दो पाकड़ और गूलर का पेड़ था ।
दाहिनी तरह सामने तालाब है जो अब लोगो के अतिक्रमण से बहुत छोटा हो गया है और सूख भी गया वरना पहले उसमे बहुत मछली होती थी तथा एक परिवार द्वारा अपनी बहु की डूबा कर हत्या के काम भी आई थी । हम बच्चे लोग कटिया लगा देते थे और ज्योही कोई छोटी मछली पकड़ में आती थी पीछे वाले घर के बगल में जो तब बरदौर थी बैल गाय भैंस के लिए और सामने भूसा घर भी था उसके सामने के खाली मैदान में अरहर की सूखी डंठल जला लेते है और उसी पर मछली रख देते । थोड़ी देर में भुन जाती तो नमक लगाकर खा लेते और फिर दुबारा कटिया लगा लेते ।कभी कभी कहा जाता की तलाब हीड़ना है तो तमाम गांव के लोग तालाब पर हल्ला बोल देते और खूब हीडते थे ,पूरा तालाब मटमैला हो जाता तो सारी मछली परेशान होकर ऊपर आ जाती और मार ली जाती फिर अंत में अगर तय है तो बटवारा हो जाता वरना जिसने जो पकड़ा वो उसकी हो जाती थी ।
जाड़े में गांव में अधिकतम लोग चारपाई पर सोने के बजाय नीचे पुवाल बिछा लेते थे जो नीचे से गर्म रखता था और उसपर चादर या गद्दा बिछा लेते थे तथा रजाई ।
मेरे दरवाजे पर शाम से रात तक बातचीत की महफिल जमाते थी ।अगर गर्मी हुई तो जमीन पर खूब पानी का छिड़काव कर चारपाई और तख्त बिछ जाता, छत को भी पानी से ठंडा कर।लिया जाता सोने के लिए ।दरवाजे महफिल जमाते खासकर मेरे दादा जी के रहते कुछ ज्यादा और गांव में रहने वाले चाचा चूंकि शहर में पढ़ाते थे और वापसी में देर से आते थे तो थोड़ा संक्षिप्त । बाबा के समय जहा मानस चौपाई और दुनियादारी की तमाम बाते होती और अलग अलग घर के आए हुए लोग अपना अपना ज्ञान बाटते थे ,कभी बहस भी हो। जाती थी तो चाचा जी के समय गांव के लोगो की उत्सुकता उस दिन के अखबार को लेकर होती थी और देश दुनिया के क्या समाचार है ये जानने में होती थी ।
हम लोग जब शहर से जाते तो तमाम लोग मिलने आते और सुबह शाम चाय ,घुघनी, दाना भुजा या पकौड़ी और हलवा बनता जितने लोग आए होते थे ।
क्या क्या लिखूं गांव के बारे क्योंकि भावुक हो रहा हूं । मैं इसी घर में नही जो पुराने जमाने का दो मंजिला मोटी दीवार और छत पर करीने से लगाए गए खपड़ैल का घर थे उसके अंधेरे कमरे में पैदा हुआ था।
बाबा जी ईश्वर के यहां चले गए मेरे आगरा में घर से फिर बारी बारी गांव में रहने वाले चाचा और चाची भी चले गए ।।पहले है गर्मी की छुट्टी हम लोगो की गांव में ही कटती थी और कई बार किसी कारण से दो तीन बार जाना हो जाता था लेकिन सभी परिवार के लोग नौकरी वाले हो गए तो ये घर सूना हो गया । एक चचेचा भाई जो नेवी में था और अब बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के ट्रामा सेन्टर में काम करता है वही गांव का सब देखता है। यदि रिटायर होने के बाद उसने गांव में रहने का फैसला किया तो हो सकता है की गांव फिर गुलजार हो जाए और हम लोग भी वहा कुछ दिन बिताने लगे ।
पर सभी भाइयों ने बनारस में घर ले लिया है इसलिए स्थाई निवास तो मुश्किल ही लगता है ।।
अब नही लिखा जाएगा मुझसे ।।
हा ये बता दूं ये जो दिख रहा है ये हमारे घर का सिर्फ  आधा हिस्सा है । पिता जी के चचेरे भाई से बटवारे के बाद जो काफी दिन ग्राम प्रधान रहे तथा वही इंटर कालेज के प्राचार्य रहे ।

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