शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

जिन्दगी_झरोखे_से

#जिन्दगी_झरोखे_से 

सोशल मीडिया में नोबेल पुरष्कार के लिए आज कल जाति और गोत्र खोज प्रतियोगिता चल रही है ।
देखे पढ़े लिखो का पतन कहा तक होता है ।
पहले कहा जाता था कि ज्यो ज्यो शिक्षा बढ़ेगी समाज से जातिवाद और धार्मिक कट्टरता , अन्धविश्वास और नफरत खत्म होगी और इंसानियत बढ़ेगी ।
पर 
पर इससे अच्छा तो मेरा बचपन वाला अशिक्षित गांव था जिसमे अख़बार रात को चाचा जी शहर से लौटते हुए लाते थे और एक रेडियो पर सबको समाचार और कृषि की जानकारी मिल जाती थी ।
कभी चाचा नेहरू से शास्त्री जी तक का भाषण भी सुन लेता था गांव पर साथ साथ उसी समय किसी मुख्यमंत्री का भाषण जबर्दस्ती नहीं सुनना पड़ता था ।
पूरा गांव की सभी जातियां एक दूसरे की पूरक थी तो एकमात्र मुसलमान परिवार गांव की आवश्यकता , जांघिया नाच दिखने वाले दलित भाई शुभ अवसरों पर मनोरंजन देते थे तो कुम्हार बर्तन और कहाँर भुना हुआ अनाज और कूंए से पानी , बनिया शहर और गांव के बीच की आवश्यकता पूरी करता था तो पंडित जी की बात और कुछ सबसे ज्यादा बुजुर्गों की बात सर्वमान्य थी ।
नाइ चाचा खुद ही शादियां तय कर देते थे तो पिछड़े वर्ग के मुंशी जी किसी को भी डंडे से पढ़ना और जोड़ना घटाना सिखा देते थे और उनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं करता था  
कहा चला गया वो समाज 
या तो पढ़ाई नकली है या नए जमाने की हवा में जहर है ।
फिर भी अभी भी बिना पढ़े लिखे लोग पढ़े लिखो के मुकाबले इस नफरत के व्यापार में हज़ारों मील पीछे है आज भी ।
हां तो 
ये नोबेल पुरष्कार किसे मिलेगा ।

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