बुधवार, 17 अप्रैल 2024

लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश किधर खड़ा होगा

देश के लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्योहार लोकसभा चुनाव होता है और उसका बिगुल बज चुका है । देश में राजनीतिक , लोकतांत्रिक सत्ता का उत्तर प्रदेश सबसे बडा भागीदार प्रदेश है जहा की 80 सीट देश का भाग्य तय करती है इसीलिए कहां जाता है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर जाता है । आज तक देश के कुल प्रधामंत्रियो आधे केवल उत्तर प्रदेश से हुए है । पिछले दो चुनाव में उत्तर प्रदेश ने भाजपा के लिए संजीवनी और आधार का काम किया और उसकी सरकार बनी तथा उत्तर प्रदेश के बनारस से सांसद लगातार दो बार से प्रधानमंत्री है । इस बार भी सभी दलों तथा राजनीतिक विश्लेषकों की निगाह उत्तर प्रदेश पर ही है । उत्तर प्रदेश इस बार बहुत खामोश है और ये खामोशी ही सभी दलों को बेचैन किए हुए है । राजनीतिक पंडितों का मानना है की अगर मतदाता का रुझान सत्ता की तरफ होता है तो वो चुनाव शुरू होने के साथ ही दिखाई देने लगता है और ज्यों ज्यों चुनाव उठान लेता है सत्ता समर्थक मतदाता ज्यादा मुखर होता जाता है और इस बार वो या तो खामोश है या फिर अलग अलग खांचे में सत्ता से जुड़े प्रत्याशियो के प्रति नाराजगी व्यक्त कर रहा है । 
भाजपा ने अपने काफी सांसदों को फिर से टिकेट दे दिया है जिसमे से अधिकतर सांसद चुनाव जीतने के बाद लौट कर अपने क्षेत्र में गए ही नही या फिर जिस केंद्रीयकृत तरीके से भाजपा की सत्ता चल रही है और उसमे केंद्र तथा प्रदेश के चंद लोगो को छोड़ कर किसी की प्रभावी भूमिका नही है यहां तक की मंत्री सांसद और विधायक का अधिकारी या दरोगा फोन तक उठाने की जहमत नहीं करते तो वो लोग जनता या कार्यकर्ता की किसी भी तरह आवश्यक मदद करने में असफल रहे है और इसलिए भी लोगो से कटे रहे है । इसके परिणाम स्वरूप उन सभी प्रत्याशियों का क्षेत्र में जबरदस्त विरोध है और वो विरोध काफी जगह मुखर होकर प्रकट भी हुआ है । एक दूसरा विरोध जो बड़े पैमाने पर अभी हाल में दिखा की सहारनपुर में क्षत्रीय समाज ने विशाल सम्मेलन किया और उस सम्मेलन में भाजपा का विरोध करने का फैसला किया जबकि क्षेत्रीय समाज के ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी भी है । कुछ राजनीतिक पंडित मानते है की अज्ञात कारणों से एक हवा चल गई है की यदि केंद्र में दुबारा मोदी जी की सरकार आ गई तो उस सरकार में न तो राजनाथ सिंह जी के लिए स्थान होगा और न गडकरी जी के लिए और उससे भी ज्यादा ये चर्चा बड़े पैमाने पर है की उस स्थिति में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को भी मोदी जी और अमित शाह तुरंत हटा देंगे क्योंकि योगी जी इन लोगो के सामने मजबूत विकल्प बन कर उठ खड़े हुए है । इस अफवाह का असर भी मतदाता के एक बड़े वर्ग को प्रभावित करता हुआ दिख रहा है है । 
कोई भी सरकार हो जब वो लगातार दस वर्ष रह लेती है और सत्ता पाने से पहले उसने तमाम वादे किए होते है तो एक बार सत्ता रहने के बाद जनता दुबारा सत्ता इस बात के लिए सौंप देती है की जो कहा था अगर नही कर पाए तो एक बार और मौका देना चाहिए पर दुबारा सत्ता देने का फैसला करते वक्त मतदाता पिछले दस वर्ष को तौलता है , पुराने सभी वादों को याद करता है , ये सारा आने से पहले वाली परिस्थिति को याद करता है और याद करता है की इस पार्टी और नेता को उसने सत्ता किन कारणों और किन आकांक्षाओं के कारण सौंपा था तथा इन दस वर्षो में सचमुच क्या हुआ ,उसकी आकांक्षाओं का कितना हिस्सा पूरा हुआ या नहीं हुआ तथा ये भी याद करता है की पूर्व में जिस सत्ता को उसने बदला था वो क्यों बदला था और वो सत्ता कैसी थी ,क्या क्या किया था उस सत्ता ने और उस सत्ता पर जो आरोप लगे थे उसमे से क्या सही या गलत साबित हवा।।
इस बार के चुनाव को अचानक उठ खड़े हुए इलेक्टोरल बॉन्ड के बवंडर ने भी ग्रहण लगा दिया है और इसके उजागर होने के बाद पी एक केयर फंड को लेकर भी शंका के बदल घुमड़ने लगे है । ऐसे ही जनता जो खुद रोज भोग रही है इसकी तीस भी चीख बन कर सत्ता के कानो में हथौड़े की तरह प्रहार कर रही है । ऐसा देख गया है की जब भी कोई भी सत्ता नौकरशाही और व्यवस्था को सारी ताकत सौप कर खुद को सुरक्षित समझने लगती है दर असल तभी वो ज्यादा असुरक्षित हो जाती है क्योंकि राजनीति नेता या कार्यकर्ता कैसा भी हो उसको जनता का लिहाज करना ही होता है और दरवाजे पर आ गए व्यक्ति के लिए निकलना ही होता है चाहे वो कितनी भी दुरूह परिस्थिति का शिकार हो जबकि नौकरशाही के साथ ऐसी कोई मजबूरी नही है की वो जनता के साथ क्या व्यवहार करे जिसका दुष्परिणाम हर बार हर सरकार को भुगतना पड़ता हैं। वही स्थिति इस बार भाजपा के लिए भी नासूर साबित होती दिख रही हैं।।
उत्तर प्रदेश में कैराना में इकरा हसन , सहारनपर से इमरान मसूद , आजमगढ़ से धर्मेंद्र यादव , बदायू से शिवपाल यादव के पुत्र , मैनपुरी से डिंपल यादव , बांदा से शिवशंकर पटेल , बिजनौर से यशवीर सिंह , ,हाथरस से जसवीर बाल्मिकी,  फतेहपुर सीकरी से भाजपा विधायक चौधरी बाबू लाल के पुत्र रामेश्वर सिंह , अलीगढ़ से बृजेंद्र सिंह, लालगंज से दरोगा सरोज ,मछली शहर से तूफानी सरोज, फर्रुखाबाद से डा नवल शाक्य , फिरोजाबाद से अक्षय यादव , बरेली से प्रवीण सिंह ऐरन, मुजफ्फर नगर में हरेंद्र मलिन ,रामपुर लोकसभा के विपक्षी प्रत्याशी , अमरोहा में दानिश अली ,कानपुर में आलोक मिश्र , उन्नाव में अनु टंडन,जयपुर में अफजाल अंसारी, अंबेडकर नगर में लालजी वर्मा,गोंडा में श्रेय वर्मा , घोसी में राजीव राय , बासगंव में सफल प्रसाद ,बस्ती में राम प्रसाद चौधरी , संभल में जियाउर्रहमान वर्क सहित , मुलायम सिंह यादव के परिवार वाली अन्य सीट तथा अमेठी और रायबरेली सहित करीब 45  सीटे ऐसी है जो भाजपा के लिए कठिन डगर साबित हो रही है और ये विपक्षी उम्मीदवार चुनौती देते दिख रहे है तो भाजपा के नाराज लोग भीतरघर करते हुएं भी दिखलाई पड़ रहे है । यहां ये गौर करने की बात है की जहा 2014 में भाजपा 71 सीट जीती थी वही 2019 में पुलवामा और बालाकोट की लहर के बावजूद उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीट घाट कर 62 हो गई थी तो इस बार तो कोई भी लहर नही हैं जिसके कारण लगता है की मतदाता ने खामोशी बरतते हुएं मतदान के दिन ही फैसला सुनाने का निश्चय कर लिया है ।
राजनीतिक पंडितों की भविष्यवाणियां और समीक्षकों की समीक्षा तथा एग्जिट पोल करने वालो को अक्सर मतदाता झुठलाता हुआ भी दिखता रहा है । इस बार खामोश मतदाता अपने लिए ओर भारत देश के लिए क्या भविष्य बुन रहा है जब तक ई वी एम का गिनती वाला आखिरी बटन नही दब जाता तब तक तो भविष्य के गर्भ में है और उसे जानने के लिए हमे भी 4 जून का इंतजार करना होगा और उसका इंतजार भविष्य को भी है और भारत में रुचि रखने वाली दुनिया में भी । 

डा सी पी राय
वरिष्ठ पत्रकार
एवं राजनीतिक विचारक 

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